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मेरी मनमानियों पर हँस के पिघल जाने वाले ,
मुड़कर ना जाना इधर आने वाले।
देना दस्तकें तमाम दिल पर मेरे,
ना होना तुम रुसवा इधर आने वाले।
तुम कहना मुझे जो पसंद हो तुम्हें,
चुप रहना नहीं इधर आने वाले।
करते आते हैं आडंबर आने वाले कई,
तुम सादगी लाना इधर आने वाले।
मेरी मनमानियों पर हँस के पिघल जाने वाले,
ना लौटना कभी इधर आने वाले।
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मुझे कभी खोजना नहीं पड़ा तुम्हें
तुम सदैव से मेरे आस-पास ही मौजूद रहे
कभी तुम मुझे मिले किताबों के पन्नों में
एक सुर्ख गुलाब की तरह
कभी तुम मेरी सोच में उतर आये
एक सवाल की तरह
कभी मेरी नाराजगी में तो कभी
मेरी मुस्कुराहट में मुस्कुराते दिखाई दिए
कभी तुम मिले तो हकीकत में मौजूद रहे
गर ना मिल पाए तो ख्वाबों में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा गए
कभी मेरी आदतो में दिखे तो
कभी मेरी समझदारी में दिखे किसी जवाब की तरह
कभी मेरी कहानियों में तो कभी कविताओं में नजर आये
मुझे कभी खोजना नहीं पड़ा तुम्हें
तुम सदैव मुझ से कही ज्यादा मेरे आस-पास ही मौजूद रहे।
©magicalwords0903
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मैंने सिर्फ तुमसे प्रेम नहीं किया,
मैंने प्रेम किया तुम्हारी कही - अनकही अनगिनत बातों से।
मैंने प्रेम किया तुम्हारी खामोश मुस्कान से।
मैंने किया प्रेम तुम्हारे हर इम्तिहान से।
मैंने प्रेम किया तुम्हारी उन धड़कनों से, जो भीतर ही भीतर कई समीकरणों को हल कर रही थीं।
मैंने प्रेम किया तुम्हारे तर्क-वितर्क से।
मैंने तुम्हारे हर एक पल से प्रेम किया है , जिसमें तुम जिए हो।
मैंने प्रेम किया तुम्हारी स्मृतियों से।
मैंने सिर्फ तुमसे प्रेम नहीं किया।
मैंने तुम्हारे उस हर एक सूत्र से प्रेम किया है,जिसे तुमने बांधा अपने साथ।
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वो नीला आसमान जिस ने बांधी रखी हुई है एक पोटली,
जिसमें उसने इकट्ठे किए हुए हैं कई चमकीले मोती।
मैं सोचती हूं उसके घर भी होगा कोई शरारती बच्चा!!
जो फेंक देता होगा उस पोटली को आसमान से नीचे,
और बिखर जाते होंगे सारे मोती सितारों की तरह,
फिर हो जाती होगी रात।
जब समेटे जाते होंगे वो मोती,
तक निकल आता होगा सुबह का सूर्य।
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माँ प्रेम है
माँ सौहार्द है
माँ ममता है
माँ विश्वास है
माँ आशा है
माँ वरदान है
माँ गर्व है
माँ सम्मान है
माँ त्याग है
माँ तपस्या है
माँ संघर्ष है
माँ निष्कर्ष है
माँ सहजता है
माँ निर्मलता है
माँ यात्रा है
माँ गन्तव्य है
माँ भाषा है
माँ क्षमता है
माँ सरलता है
माँ शीतलता है
माँ व्याख्या है
माँ सन्दर्भ है
माँ जीवन हैं
माँ सार है।
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तुम मेरे हिस्से तो आए,
पर किस्तों में आ पाए हो तुम मेरे हिस्से।
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जब छोटी-छोटी नदियाँ बड़ी होती हैं,
वो खो देती हैं अपना अस्तित्व।
वो बिसरा देती हैं अपना भूत,
जानी जाती हैं एक नई पहचान से।
ये देती हैं मछलियों, कछुओं और घड़ियालों को खुद में आसरा,
कराती हैं उन्हें विश्व की सैर अपनी पीठ पर बैठा कर।
लेकिन उन नदियों के कंधो पर लाद दिया जाता है
उनकी उम्र से ज्यादा भार।
पर जब इन नदियों की रेती पर बच्चे बनाते हैं घरौंदें,
तब ये नदियां खेलती हैं बच्चों के संग कई खेल,
हो जाती हैं बड़े होते - होते एक बार फिर से छोटी।
पर जब ये उदास होती हैं तो पी जाती हैं अपने सारे आ��सू,
सुखा देती हैं अपना सारा जल,
रह जाता है सिर्फ खारापन नदियों की तलहटी में।
और क्रोध में ये खींच लाती हैं आदमी को अपनी तरफ।
जब ये नदियां बड़े होते- होते थक जाती हैं,
तो मिल जा बैठती है समुन्दर में।
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कुछ दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं,
नहीं होते कभी चाह कर भी बंद।
पर बंद हो जाती हैं उनमें से आना धूप,
उसकी दरारें नहीं देख पाती कोई नई कहानी,
वो दरवाजे खुले तो रहते हैं पर बंद कर लेते हैं आवाजाही का रास्ता।
वो नहीं आने देते भीतर किसी अनचाहे व्यक्ति को,
वो खोलते होंगे अपनी कुण्डी अपने प्रिय के लिए।
ये दरवाजे भूल जाते होंगे अपनी दहलीज पर पड़े अखबार को पढ़ना।
पर रोज सवेरे बुहारते होंगे अपने हिस्से की जमीन।
कुछ दरवाजे खुले तो सदैव रहते हैं,
पर उनमें प्रवेश वर्जित होता है।
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अब जब तुम जाना चाहो तुम चले जाना
मैं नहीं कहूँगी तुम्हें पल भर भी ठहरने को
मैं नहीं कहूँगी कि तुम वापस आना मुझ तक
मैं करूंगी तुम्हें विदा एक लम्बी और अंतहीन मुस्कान के साथ
मैं छोड़ आउंगी तुम्हें तुम्हारी बाँह पकड़ के अपनी चौखट से दूर
तुम चले जाना मेरे अंधकार को काटते हुए उस तेज़ रोशनी की ओर।
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लौटता हुआ प्रेम,
संग ले जाता है अपने इंतजार
रख जाता है हृदय की चौखट पर स्मृतियों का पिटारा
लौटता हुआ प्रेम,
संग ले जाता है अपने हरीतिमा सी फुलवारी
टाँग जाता है हृदय के दरवाजे पर अश्रु निराशा में टूटे हुए फूल
लौटता हुआ प्रेम,
लौटा ले जाता है संग अपने लुभावना प्रभात
और छोड़ जाता है ढलती सी सांझ प्रत्येक बेला मे
लौटता हुआ प्रेम,
ले जाता है संग अपने चंचलता
और चिपका जाता है हृदय की दीवारों पर मायूसी की परत
लौटता हुआ प्रेम,
लौट जाता है घने कोहरे को चीरते हुए
कभी न लौट आने के लिए।
-रुपाली यादव
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