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#आव
bharatlivenewsmedia · 2 years
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Nilesh Rane: विनायक राऊतांनी चेन आणि पैसे घेतले शिवसेनेच्या खासदाराचा आरोप, निलेश राणेंची संतप्त प्रतिक्रिया, “आव आणता काय?”
Nilesh Rane: विनायक राऊतांनी चेन आणि पैसे घेतले शिवसेनेच्या खासदाराचा आरोप, निलेश राणेंची संतप्त प्रतिक्रिया, “आव आणता काय?”
Nilesh Rane: विनायक राऊतांनी चेन आणि पैसे घेतले शिवसेनेच्या खासदाराचा आरोप, निलेश राणेंची संतप्त प्रतिक्रिया, “आव आणता काय?” Vinayak Raut : विनायक राऊतांनी चैन आणि पैसे घेतले शिवसेनेच्या खासदाराचा आरोप, निलेश राणेंची संतप्त प्रतिक्रिया रत्नागिरी : पैसे आणि सोन्यासाठी रत्नागिरी सिंधुदुर्गचे खासदार असलेल्या विनायक राऊत (Vinayak Raut) यांचे लोकांच्या खिशात हात जातात, असं त्यांच्याच पक्षाचे…
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balrams-world · 4 months
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satlokashram · 5 months
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कबीर, सज्जन सगे कुटम्ब हितु, जो कोई द्वारै आव। कबहु निरादर न कीजिए, राखै सब का भाव।। भावार्थ:- भद्र पुरूषों, सगे यानि रिश्तेदारों, कुटम्ब यानि परिवारजनों तथा हितु यानि आपके हितैषियों का आपके द्वार पर आना हो तो कभी अनादर नहीं करना चाहिए। सबका भाव रखना चाहिए।
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#GodMorningMonday
कबीर, सज्जन सगे कुटम्ब हितु, जो कोई द्वारै आव।
कबहु निरादर न कीजिए, राखै सब का भाव।।
भावार्थ:- भद्र पुरूषों, सगे यानि रिश्तेदारों, कुटम्ब यानि परिवारजनों तथा हितु यानि आपके हितैषियों का आपके द्वार पर आना हो तो कभी अनादर नहीं करना चाहिए। सबका भाव रखना चाहिए।
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brijpal · 2 months
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#SpiritualKnowledge
आध्यात्मिक ज्ञान
कबीर, सज्जन सगे कुटम्ब हितु, जो कोई द्वारै आव। कबहु निरादर न कीजिए, राखै सब का भाव ।।
भावार्थ - भद्र पुरूषों, सगे यानि रिश्तेदारों, कुटम्ब यानि परिवारजनों तथा हितु यानि आपके हितैषियों का आपके द्वार पर आना हो तो कभी अनादर नहीं करना चाहिए। सबका भाव रखना चाहिए।
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sstkabir-0809 · 7 months
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( #MuktiBodh_Part118 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part119
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 232-233
कुछ वर्षों के बाद दुर्वासा के शॉप के कारण द्वारिका में अनहोनी घटनाऐं होने लगी। आपसी झगड़े होने लगे। एक-दूसरे को छोटी-सी बात पर मारने लगे। सारी द्वारिका मेंउपद्रव होने लगे। द्वारिका नगरी के बड़े-सयाने लोग मिलकर श्री कृष्ण जी के पास गए तथा
दुःख बताया कि नगरी में किसी को किसी का बोल अच्छा नहीं लग रहा है। बिना बात के मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। छोटे-बड़े की शर्म नहीं रही है। क्या कारण है तथा यह कैसे शान्त होगा? श्री कृष्ण जी ने बताया कि ऋषि दुर्वासा के शॉप के कारण यह हो रहा है। इसका समाधान सुनो! नगरी के सर्व नर (छोटे नवजात लड़के साहित) यादव प्रभास क्षेत्र में उसी स्थान पर यमुना नदी में स्नान करो जिस स्थान पर कड़ाही का चूर्ण डाला था। शॉप से बचने के लिए द्वारिका नगरी के सब बालक, नौजवान तथा वृद्ध स्नान करने गए। स्नान करके बाहर निकलकर एक-दूसरे से गाली-गलौच करने लगे और उस कड़ाही के चूरे से उत्पन्न घास को उखाड़कर एक-दूसरे को मारने लगे। तलवार की तरह घास से सिर कटकर दूर गिरने लगे। कुछ व्यक्ति बचे थे। अन्य सब के सब लड़कर मर गए। उन बचे हुओं को ज्योति निरंजन काल ने स्वयं श्री कृष्ण में प्रवेश करके उस घास से मार डाला। अकेला श्री कृष्ण बचा था। एक वृक्ष के नीचे जाकर लेट गया। एक पैर को दूसरे पैर के घुटने पर रखकर लेट गया। दांये पैर के तलुए (पँजे) में पदम जन्म से लगा था जो चमक रहा था। जिस बालिया नाम के भील शिकारी ने मछली से निकले कड़ाही के कड़े का विष लगाकर तीर बनवाया था। वह शिकारी उसी तीर को लेकर उस स्थान पर शिकार की तलाश में आया जिस वृक्ष के नीचे श्री कृष्ण लेटे थे। वृक्ष की छोटी-छोटी टहनियाँ चारों और नीचे पृथ्वी को छू रही थी। लटक रही थी। उन झुरमुटों में से श्री कृष्ण के पैर का पदम ऐसा लग रहा था जैसे किसी मृग की आँख चमक रही हो। शिकारी बालिया ने आव-देखा
न ताव, उस चमक पर तीर दे मारा। तीर निशाने पर लगा। पैर के तलवे में विषाक्त तीर लगने से श्री कृष्ण की चीख निकली। बालिया समझ गया कि किसी व्यक्ति को तीर लगा है। निकट जाकर देखा तो कोई राजा है। पूछने पर पता चला कि श्री कृष्ण है। अपनी गलती की क्षमा याचना करने लगा कहा कि भगवान! धोखे से तीर लग गया। मैंने आपके पैर के पदम की चमक मृग की आँख जैसी लगी। क्षमा करो। श्री कृष्ण ने कहा कि बालिया तेरा कोई दोष नहीं है, होनी प्रबल होती है। मैंने तेरा बदला चुकाया है। त्रोतायुग में तू कसकंदा का राजा सुग्रीव का भाई बाली था। मैं अयोध्या में रामचन्द्र नाम से राजा दशरथ के घर जन्मा था। उस समय मैंने तेरे को वृक्ष की ओट लेकर धोखा करके लड़ाई में मारा था। अब तू मेरा एक काम कर। द्वारिका में जाकर बता दे कि सर्व यादव दुर्वासा के शॉपवश आपस में लड़कर मर गए हैं। कुछ समय उपरांत द्वारिका की स्त्रियों की भीड़ लग गई। हाहाकार मच गया। पाण्डव श्री कृष्ण के रिश्तेदार थे। वे भी आ गए। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि आप सर्व गोपियों यानि यादवों की स्त्रियों को अपने पास ले जाना। यहाँ कोई नर यादव नहीं बचा है। आसपास के भील इनकी इज्जत खराब करेंगे। पाण्डवों से कहा कि तुम राज्य अपने पौत्र को देकर हिमालय में जाकर घोर तप करो और अपने युद्ध में किए पापों का नाश करो। अर्जुन ने पूछा भगवान! एक प्रश्न आज मैं आपसे करूँगा। आप सत्य उत्तर देना। आप अंतिम श्वांस गिन रहे हो, झूठ मत बोलना। श्री कृष्ण ने कहा कि प्रश्न कर। अर्जुन बोला! आपने गीता का ज्ञान कुरूक्षेत्र के मैदान में महाभारत युद्ध से पहले सुनाया था। उसमें कहा था कि अर्जुन! युद्ध कर ले। तुम्हें कोई पाप नहीं लगेंगे। तू निमित मात्र बन जा। सब सैनिक मैंने मार रखे हैं। तू युद्ध नहीं करेगा तो भी मैं इन्हें मार दूँगा। जब युद्धिष्ठिर को भयंकर स्वपन आने लगे। आपसे कारण जाना तो आपने बताया था कि युद्ध में किए बंधुघात के पाप के परिणाम स्वरूप कष्ट आया। समाधान यज्ञ करना बताया। उस समय मैं आपसे विवाद नहीं कर सका क्योंकि भाई की जिंदगी का सवाल था। आज फिर आपने वही जख्म हरा कर दिया। इतनी झूठ बोलकर हमारा नाश किसलिए करवाया? कौन-से जन्म का बदला लिया? श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन! तुम मेरे अजीज हो! होनहार
बलवान होती है। गीता में क्या कहा, उसका मुझे कोई ज्ञान नहीं। आप मेरी आज्ञा का पालन करो। यह कहकर श्री कृष्ण मर गए। पाँचों पाण्डवों व साथ गए नौकरों ने मिलकर सब यादवों का अंतिम संस्कार किया। कुछ के शव दरिया में प्रवाह कर दिए। श्री कृष्ण ने कहा था कि मेरे शरीर को जलाकर बची हुई अस्थियाँ व राख को एक लकड़ी के संदूक (ठवग) में डालकर दरिया में बहा देना। पाण्डवों ने वैसा ही किया। {वह संदूक समुद्र में चला गया।
फिर उड़ीसा प्रांत के अंदर जगन्नाथ पुरी के पास बहता हुआ चला गया। उड़ीसा के राजा इन्द्रदमन को स्वपन में श्री कृष्ण ने दर्शन देकर कहा कि एक संदूक समुद्र में इस स्थान पर है। उसमें मेरे शरीर की अस्थियाँ तथा राख हैं। उसको निकाल कर उसी किनारे पर उन अस्थियों (हडिड्यों) को जमीन में दबाकर ऊपर एक सुंदर मंदिर बनवा दे। ऐसा किया गया। जो जगन्नाथ नाम से मंदिर प्रसिद्ध है।}
◆ चार पाण्डव पहले चले गए। अर्जुन को गोपियों को लेकर आने को छोड़ गए। अर्जुन के पास वही गांडीव धनुष था जिससे लड़ाई करके महाभारत में जीत प्राप्त की थी। अर्जुन द्वारिका की सर्व स्त्रियों को बैलगाडि़यों में बैठाकर इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के लिए चल पड़ा।रास्ते में भीलों ने अर्जुन को घेर लिया। अर्जुन को पीटा। गोपियों को लूटा। कुछ स्त्रियों को भील उठा ले गए। अर्जुन कुछ नहीं कर सका। धनुष उठा भी नहीं सका। तब अर्जुन ने कहा
था कि कृष्ण नाश करना था। युद्ध में पाप करवाने के लिए तो बल दे दिया। लाखों योद्धा इसी गांडीव धनुष से मार गिराए। कोई मेरे सामने टिकने वाला नहीं था। आज वही अर्जुन है, वही धनुष है। मैं खड़ा-खड़ा काँप रहा हूँ। कृष्ण जालिम था। धोखेबाज था। कबीर परमेश्वर जी हमें समझाते हैं कि यह जुल्म कृष्ण ने नहीं किया, ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) ने किया है। श्री कृष्ण का जीवन देख लो। श्री कृष्ण अपने कुल को मथुरा से लेकर जान
बचाकर द्वारिका आया। द्वारिका में उनकी आँखों के सामने सब यादव कुल नष्ट हो गया। श्री कृष्ण का बेटा मर गया। पोता मर गया। सर्व कुल नष्ट हो गया। स्वयं बेमौत मरा। उसके कुल की स्त्रियों की दुर्गति भीलों ने की। जबरदस्ती उठा ले गए। उनकी इज्जत
खराब की। नरक का जीवन जीने के लिए मजबूर हुई। उसी श्री कृष्ण की पूजा करके जो सुख-शान्ति की आशा करता है। उसमें कितनी बुद्धि है, इस घटना से पता चलता है।
क्रमशः________
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sujit-kumar · 1 year
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 108
‘‘कबीर जी द्वारा स्वामी रामानन्द के मन की बात बताना’’
दूसरे दिन विवेकानन्द ऋषि अपने साथ नौ व्यक्तियों को लेकर जुलाहा काॅलोनी में नीरू के मकान के विषय में पूछने लगा कि नीरू का मकान कौन सा है? कालोनी के एक व्यक्ति को उनके आव-भाव से लगा कि ये कोई अप्रिय घटना करने के उद्देश्य से आए हैं। उसने शीघ्रता से नीरू को जाकर बताया कि कुछ ब्राह्मण आपके घर आ रहे हैं। उनकी नीयत झगड़ा करने की है। नीमा भी वहीं खड़ी उस व्यक्ति की बातें सुन रही थी उसी समय वे ब्राह्मण गली में नीरू के मकान की ओर आते दिखाई दिए। नीमा समझ गई कि अवश्य कबीर ने इन ब्राह्मणों से ज्ञान चर्चा की है। वे ईष्र्यालु व्यक्ति मेरे बेटे को मार डालेगें��� इतना विचार करके सोए हुए बालक कबीर को जगाया तथा अपनी झोंपड़ी के पीछे ले गई वहाँ लेटा कर रजाई डाल दी तथा कहा बेटा बोलना नहीं है। कुछ व्यक्ति झगड़ा करने के उद्देश्य से अपने घर आ रहे हैं। नीमा अपने घर के द्वार पर गली में खड़ी हो गई। तब तक वे ब्राह्मण घर के निकट आ चुके थे। उन्होंने पूछा क्या नीरू का घर यही है ? नीमा ने उत्तर दिया हाँ ऋषि जी! यही है कहो कैसे आना हुआ। ऋषि विवेकानन्द बोला कहाँ है तुम्हारा शरारती बच्चा कबीर? कल उसने भरी सभा में मेरे गुरुदेव का अपमान किया है। आज उस की पिटाई गुरु जी सर्व के समक्ष करेंगे। इसको सबक सिखाऐंगे। नीमा बोली मेरा बेटा निर्दोष है वह किसी का अपमान नहीं कर सकता। आप मेरे बेटे से ईष्र्या रखते हो। कभी कोई ब्राह्मण उलहाने (शिकायत) लेकर आता है कभी कोई तो कभी कोई आता है। आप मेरे बेटे की जान के शत्रु क्यों बने हो? लौट जाइए।
सर्व ब्राह्मण बलपूर्वक नीरू की झोंपड़ी में प्रवेश करके कपड़ों को उठा-2 कर बालक को खोजने लगे। चारपाइयों को भी उल्ट कर पटक दिया। जोर-2 से ऊंची आवाज में बोलने लगे। मात-पिता को दुःखी जानकर बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी रजाई से निकल कर खड़े हो गए तथा कहा ऋषि जी मैं झोपड़ी के पीछे छुपा हूँ। बच्चे की आवाज सुनकर सर्व ब्राह्मण पीछे गए। वहाँ खड़े कबीर जी को पकड़ कर अपने साथ ले जाने लगे। नीमा तथा नीरू ने विरोध किया। नीमा ने बालक कबीर जी को सीने से लगाकर कहा मेरे बच्चे को मत ले जाओ। मत ले जाओ----- ऐसे कह कर रोने लगी। निर्दयों ने नीमा को धक्का मार कर जमीन पर गिरा दिया। नीमा फिर उठ कर पीछे दौड़ी तथा बालक कबीर जी का हाथ उनसे छुटवाने का प्रयत्न किया। एक व्यक्ति ने ऐसा थप्पड़ मारा नीमा के मुख व नाक से रक्त टपकने लगा। नीमा रोती हुई गली में अचेत हो गई। नीरू ने भी बच्चे को छुड़वाने की कोशिश की तो उसे भी पीट-2 कर मृत सम कर दिया। काॅलोनी वाले उठाकर उनके घर ले गए। बहुत समय पश्चात् दोनों सचेत हुए। बच्चे के वियोग में रो-2 कर दोनों का बुरा हाल था। नीरू चोट के कारण चल-फिरने में असमर्थ जमीन पर गिर कर विलाप कर रहा था। कभी चुप होकर भयभीत हुआ गली की ओर देख रहा था। मन में सोच रहा था कि कहीं वे लौट कर ना आ जाऐं तथा मुझे जान से न मार डालें। फिर बच्चे को याद करके विलाप करने लगता। मेरे बेटे को मत मारो-मत मारो इसने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा। ऐसे पागल जैसी स्थिति नीरू की हो गई थी। नीमा होश में आती थी फिर अपने बच्चे के साथ हो रहे अत्याचार की कल्पना कर बेहोश (अचेत) हो जाती थी। मोहल्ले (काॅलोनी) के स्त्री पुरूष उनकी दशा देखकर अति दुःखी थे।
प्रातःकाल का समय था। स्वामी रामानन्द जी गंगा नदी पर स्नान करके लौटे ही थे। अपनी कुटिया (भ्नज) में बैठे थे। जब उन्हें पता चला कि उस बालक कबीर को पकड़ कर ऋषि विवेकानन्द जी की टीम ला रही है तो स्वामी रामानन्द जी ने अपनी कुटिया के द्वार पर कपड़े का पर्दा लगा लिया। यह दिखाने के लिए कि मैं पवित्र जाति का ब्राह्मण हूँ तथा शुद्रों को दीक्षा देना तो दूर की बात है, सुबह-2 तो दर्शन भी नहीं करता।
ऋषि विवेकानन्द जी ने बालक कबीर देव जी को कुटिया के समक्ष खड़ा करके कहा हे गुरुदेव। यह रहा वह झूठा बच्चा कबीर जुलाहा। उस समय ऋषि विवेकानन्द जी ने अपने प्रचार क्षेत्र के व्यक्तियों को विशेष कर बुला रखा था। यह दिखाने के लिए कि यह कबीर झूठ बोलता है। स्वामी रामानन्द जी कहेंगे मैंने इसको कभी दीक्षा नहीं दी। जिससे सर्व उपस्थित व्यक्तियों को यह बात जचेगी कि कबीर पुराणों के विषय में भी झूठ बोल रहा था जिन के बारे में कबीर जी ने लिखा बताया था कि श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्मा जी नाशवान हैं। इनका जन्म होता है तथा मृत्यु भी होती है तथा इनकी माता का नाम प्रकृति देवी (दुर्गा) है तथा पिता का नाम सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म है। जिन हाथों से कबीर परमेश्वर को पकड़ कर लाए थे। उन सर्व व्यक्तियों ने अपने हाथ मिट्टी से रगड़-रगड़ कर धोए तथा सर्व उपस्थित व्यक्तियों के समक्ष बाल्टी में जल भर कर स्नान किया सर्व वस्त्र जो शरीर पर पहन रखे थे वे भी कूट-2 कर धोए।
स्वामी रामानन्द जी ने अपनी कुटिया के द्वार पर खड़े पाँच वर्षीय बालक कबीर से ऊँची आवाज में प्रश्न किया। हे बालक ! आपका क्या नाम है? कौन जाति में जन्म है? आपका भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? उस समय लगभग हजार की संख्या में दर्शक उपस्थित थे। बालक कबीर जी ने भी आधीनता से ऊँची आवाज में उत्तर दिया:-
जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठंू पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।
भावार्थ:- कबीर जी ने कहा हे स्वामी रामानन्द जी! परमेश्वर के घर कोई जाति नहीं है। आप विद्वान पुरूष होते हुए वर्ण भेद को महत्त्व दे रहे हो। मेरी जाति व नाम तथा भक्ति पंथ जानना चाहते हो तो सुनों। मेरा नाम वही कविर्देव है जो वेदों में लिखा है जिसे आप जी पढ़ते हो। मैं वह निरंजन (माया रहित) कंत (सर्व का पति) अर्थात् सबका स्वामी हूँ। मैं ही सर्व सृष्टि रचनहार (सृष्टा) हूँ। यह सृष्टि मेरे ही आश्रित (तीर यानि किनारे) है। मैं ऊपर सतलोक में निवास करता हूँ। मैं वह अमर अव्यक्त (अविगत सत्) कबीर हूँ। जिसका वर्णन गीता अध्याय 8 श्लोक सं.20 से 22 में है। हे स्वामी जी गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में गीता ज्ञान दाता अर्थात् काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) अपने विषय में बताता है कि! यह मूर्ख मनुष्य समुदाय मुझ अव्यक्त को कृष्ण रूप में व्यक्ति मान रहे हैं। मैं सबके समक्ष प्रकट नहीं होता। यह मनुष्य समुदाय मेरे इस अश्रेष्ठ अटल नियम से अपरिचित हैं (24) गीता अ. 7 श्लोक 25 में कहा है कि मैं (गीता ज्ञान दाता) अपनी योगमाया (सिद्धिशक्ति) से छिपा हुआ अपने वास्तविक रूप में सबके समक्ष प्रत्यक्ष नहीं होता। यह अज्ञानी जन समुदाय मुझ कृष्ण व राम आदि की तरह माता से जन्म न लेने वाले प्रभु को तथा अविनाशी (जो अन्य अव्यक्त परमेश्वर है) को नहीं जानते।
हे स्वामी रामानन्द जी गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) ने अपने को अव्यक्त कहा है यह प्रथम अव्यक्त प्रभु हुआ। अब सुनो दूसरे तथा तीसरे अव्यक्त प्रभुओं के विषय में। गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य अव्यक्त परमात्मा का वर्णन किया है कहा है:- यह सर्व चराचर प्राणी दिन के समय अव्यक्त परमात्मा से उत्पन्न होते है रात्रि के समय उसी में लीन हो जाते हैं। यह जानकारी काल ब्रह्म ने अपने से अन्य अव्यक्त प्रभु (परब्रह्म) अर्थात् अक्षर ब्रह्म के विषय में दी है। यह दूसरा अव्यक्त (अविगत) प्रभु हुआ तीसरे अव्यक्त (अविगत) परमात्मा अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म के विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में कहा है कि जिस अव्यक्त प्रभु का गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में वर्णन किया है वह पूर्ण प्रभु नहीं है। वह भी वास्तव में अविनाशी प्रभु नहीं है। परन्तु उस अव्यक्त (जिसका विवरण उपरोक्त श्लोक 18-19 में है) से भी अति परे दूसरा जो सनातन अव्यक्त भाव है वह परम दिव्य परमेश्वर सब भूतों (प्राणियों) के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता। वह अक्षर अव्यक्त अविनाशी अविगत अर्थात् वास्तव में अविनाशी अव्यक्त प्रभु इस नाम से कहा गया है। उसी अक्षर अव्यक्त की प्राप्ति को परमगति कहते हैं। जिस दिव्य परम परमात्मा को प्राप्त होकर साधक वापस लौट कर इस संसार में नहीं आते (इसी का विवरण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा श्लोक 16-17 में भी है) वह धाम अर्थात् जिस लोक (धाम) में वह अविनाशी (अव्यक्त) परमात्मा रहता है वह धाम (स्थान) मेरे वाले लोक (ब्रह्मलोक) से श्रेष्ठ है। हे पार्थ! जिस अविनाशी परमात्मा के अन्तर्गत सर्व प्राणी हैं। जिस सच्चिदानन्द घन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परमेश्वर तो अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है (गीता अ. 8/मं.20, 21, 22) हे स्वामी रामानन्द जी मैं वही तीसरी श्रेणी वाला अविगत (अव्यक्त) सत् (सनातन अविनाशी भाव वाला परमेश्वर) कबीर हूँ। जिसे वेदों में कविर्देव कहा है वही कबीर देव मैं कहलाता हूँ।
हे स्वामी रामानन्द जी! सर्व सृष्टि को रचने वाला (सृष्टा) मैं ही हूँ। मैं ही आत्मा का आधार जगतगुरु जगत् पिता, बन्धु तथा जो सत्य साधना करके सत्यलोक जा चुके हैं उनको सत्यलोक पहुँचाने वाला मैं ही हूँ। काल ब्रह्म की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव वाला कबीर देव (कर्विदेव) मैं ही हूँ। जिसका प्रमाण अर्थववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मन्त्रा 7 में लिखा है।
काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।7।।
यः अथर्वाणम् पित्तरम् देवबन्धुम् बृहस्पतिम् नमसा अव च गच्छात् त्वम् विश्वेषाम् जनिता यथा सः कविर्देवः न दभायत् स्वधावान्
अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देव बन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बृहस्पतिम्) बड़ा स्वामी अर्थात् परमेश्वर व जगत्गुरु (च) तथा (नमसाव) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ (गच्छात्) सतलोक गए हुओं को यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों की (जनिता) रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः/ कविर्देवः) कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
केवल हिन्दी अनुवाद:- जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार बड़ा स्वामी अर्थात् परमेश्वर व जगत्गुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक गए हुओं को यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही वह आप कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
भावार्थ:- इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।
जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है) जगत् गुरु, परमेश्वर आत्माधार, जो पूर्ण मुक्त होकर सत्यलोक गए हैं यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, काल (ब्रह्म) की तरह धोखा न देने वाला ज्यों का त्यों वह स्वयं कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणंम त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम् देव देव। इसी परमेश्वर की महिमा का पवित्र ऋग्वेद मण्डल नं. 1 सूक्त नं. 24 में विस्तृत विवरण है।
पाँच वर्षीय बालक के मुख से वेदो व गीता जी के गूढ़ रहस्य को सुनकर ऋषि रामानन्द जी आश्चर्य चकित रह गए तथा क्रोधित होकर अपशब्द कहने लगे। वाणीः-
रामानंद अधिकार सुनि, जुलहा अक जगदीश। ���ास गरीब बिलंब ना, ताहि नवावत शीश।।407।।
रामानंद कूं गुरु कहै, तनसैं नहीं मिलात। दास गरीब दर्शन भये, पैडे लगी जुं लात।।408।।
पंथ चलत ठोकर लगी, रामनाम कहि दीन। दास गरीब कसर नहीं, सीख लई प्रबीन।।409।।
आडा पड़दा लाय करि, रामानंद बूझंत। दास गरीब कुलंग छबि, अधर डांक कूदंत।।410।।
कौन जाति कुल पंथ है, कौन तुम्हारा नाम। दास गरीब अधीन गति, बोलत है बलि जांव।।411।।
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।412।।
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।413।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।414।।
मान बड़ाई छाड़ि करि, बोलौ बालक बैंन। दास गरीब अधम मुखी, एता तुम घट फैंन।।415।।
तर्क तलूसैं बोलतै, रामानंद सुर ज्ञान। दास गरीब कुजाति है, आखर नीच निदान।।423।।
परमेश्वर कबीर जी (कविर्देव) ने प्रेमपूर्वक उत्तर दिया -
महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन। दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।428।।
मैं अविगत गति सैं परै, च्यारि बेद सैं दूर। दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।429।।
सकल सिंध भरपूर हूँ, खालिक हमरा नाम। दासगरीब अजाति हूँ, तैं जो कह्या बलि जांव।।430।।
जाति पाति मेरे नहीं, नहीं बस्ती नहीं गाम। दासगरीब अनिन गति, नहीं हमारै चाम।।431।।
नाद बिंद मेरे नहीं, नहीं गुदा नहीं गात। दासगरीब शब्द सजा, नहीं किसी का साथ।।432।।
सब संगी बिछरू नहीं, आदि अंत बहु जांहि। दासगरीब सकल वंसु, बाहर भीतर माँहि।।433।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।434।।
पौहमी धरणि आकाश में, मैं व्यापक सब ठौर। दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।436।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम। दासगरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।439।।
सुनि रामानंद राम हम, मैं बावन नरसिंह। दास गरीब कली कली, हमहीं से कृष्ण अभंग।।440।।
हमहीं से इंद्र कुबेर हैं, ब्रह्मा बिष्णु महेश। दास गरीब धर्म ध्वजा, धरणि रसातल शेष।।447।।
सुनि स्वामी सती भाखहूँ, झूठ न हमरै रिंच। दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।453।।
गोता लाऊं स्वर्ग सैं, फिरि पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।476।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव। गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नांव।।477।।
मुरजीवा माणिक चुगैं, कंकर पत्थर डारि। दास गरीब डोरी अगम, उतरो शब्द अधार।।478।।
स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है। परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ। गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह। दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चैरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताऐं वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1) क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2) अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ। इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
स्वामी रामानन्द जी क्या क्रिया करते थे?
भगवान विष्णु जी की एक काल्पनिक मूर्ति बनाते थे। सामने मूर्ति दिखाई देने लग जाती थी (जैसे कर्मकाण्ड करते हैं, भगवान की मूर्ति के पहले वाले सारे कपड़े उतार कर, उनको जल से स्नान करवा कर, फिर स्वच्छ कपड़े भगवान ठाकुर को पहना कर गले में माला डालकर, तिलक लगा कर मुकुट रख देते हैं।) रामानन्द जी कल्पना कर रहे थे। कल्पना करके भगवान की काल्पनिक मूर्ति बनाई। श्रद्धा से जैसे नंगे पैरों जाकर आप ही गंगा जल लाए हों, ऐसी अपनी भावना बना कर ठाकुर जी की मूर्ति के कपड़े उतारे, फिर स्नान करवाया तथा नए वस्त्र पहना दिए। तिलक लगा दिया, मुकुट रख दिया और माला (कण्ठी) डालनी भूल गए। कण्ठी न डाले तो पूजा अधूरी और मुकुट रख दिया तो उस दिन मुकुट उतारा नहीं जा सकता। उस दिन मुकुट उतार दे तो पूजा खण्डित। स्वामी रामानन्द जी अपने आपको कोस रहे हैं कि इतना जीवन हो गया मेरा कभी, भी ऐसी गलती जिन्दगी में नहीं हुई थी। प्रभु आज मुझ पापी से क्या गलती हुई है? यदि मुकुट उतारूँ तो पूजा खण्डित। उसने सोचा कि मुकुट के ऊपर से कण्ठी (माला) डाल कर देखता हूँ (कल्पना से कर रहे हैं कोई सामने मूर्ति नहीं है और पर्दा लगा है कबीर साहेब दूसरी ओर बैठे हैं)। मुकुट में माला फँस गई है आगे नहीं जा रही थी। जैसे स्वपन देख रहे हों। रामानन्द जी ने सोचा अब क्या करूं? हे भगवन्! आज तो मेरा सारा दिन ही व्यर्थ गया। आज की मेरी भक्ति कमाई व्यर्थ गई (क्योंकि जिसको परमात्मा की कसक होती है उसका एक नित्य नियम भी रह जाए तो उसको दर्द बहुत होता है। जैसे इंसान की जेब कट जाए और फिर बहुत पश्चाताप करता है। प्रभु के सच्चे भक्तों को इतनी लगन होती है।) इतने में बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि स्वामी जी माला की घुण्डी खोलो और माला गले में डाल दो। फिर गाँठ लगा दो, मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा। रामानन्द जी काहे का मुकुट उतारे था, काहे की गाँठ खोले था। कुटिया के सामने लगा पर्दा भी स्वामी रामानन्द जी ने अपने हाथ से फैंक दिया और ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन् ! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो। आपके शरीर की तुलना में मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया। सामने पूर्ण परमात्मा को पा कर न जाति देखी न धर्म देखा, न छूआ-छात, केवल आत्म कल्याण देखा। इसे ब्राह्मण कहते हैं।
बोलत रामानंद जी, हम घर बड़ा सुकाल। गरीबदास पूजा करैं, मुकुट फही जदि माल।।
सेवा करौं संभाल करि, सुनि स्वामी सुर ज्ञान। गरीबदास शिर मुकुट धरि,माला अटकी जान।।
स्वामी घुंडी खोलि करि, फिरि माला गल डार। गरीबदास इस भजन कूं, जानत है करतार।।
ड्यौढी पड़दा दूरि करि, लीया कंठ लगाय। गरीबदास गुजरी बौहत, बदनैं बदन मिलाय।।
मनकी पूजा तुम लखी, मुकुट माल परबेश। गरीबदास गति को लखै, कौन वरण क्या भेष।।
यह तौ तुम शिक्षा दई, मानि लई मनमोर। गरीबदास कोमल पुरूष, हमरा बदन कठोर।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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mantralipi · 2 years
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महा काली साधना के कुछ नियम और गुप्त कथा || know about mahakali sadhana disciplines or hidden story
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महा काली साधना के कुछ नियम और गुप्त कथा || know about mahakali sadhana disciplines or hidden story
महा काली साधना के कुछ नियम और गुप्त कथा
किसी भी मन्त्र-तन्त्र की साधना से पूर्व निम्नलिखित निर्देशों को ध्यान में रखना आवश्यक है :- (९) मंत्र-तन्त्र का जप अंग-शुद्धि, सरलीकरण एवं विधि-विधान पुर्बक करना उचित है। आत्म-रक्षा के लिए सरलीकरण की आवश्यकता (२), किसी भी तन्त्र अथवा मन्त की साधना करते समय उक्त पर पूणं श्रद्धा रखना आवश्यक है, अन्यंथा वांछित फल प्राप्त नहीं 'होगा । (३) मन्त्रतन्त्र साघन के समय शरीर का स्वस्थ्य एवं पवित्र रहना आव-श्यक है। चित्त शान्त हो तथा मन में किसी प्रकार की ग्लानि न रहे। 
(४ शुद्ध, हवादार, पवित्र एवं एकान्त-स्थान में ही मन्त्र साधना करनी चाहिए । मन्त्र-तन्त्र साधना की समाप्ति तक एक स्थान परिवतेन नहीं करना चाहीये । 
(५) जिस मंत्र की जैसी -विधि वणित दै, उसी के अनुरूप सभी कमं करने बाहिए अन्यथा परिवर्तन करने से निघ्न-बाधाएँ उपस्थित हो सकती हैं तथा सिद्धी में भी ज्यादा पड़ने के लिये
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naveensarohasblog · 2 years
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part108
‘‘कबीर जी द्वारा स्वामी रामानन्द के मन की बात बताना’’
दूसरे दिन विवेकानन्द ऋषि अपने साथ नौ व्यक्तियों को लेकर जुलाहा काॅलोनी में नीरू के मकान के विषय में पूछने लगा कि नीरू का मकान कौन सा है? कालोनी के एक व्यक्ति को उनके आव-भाव से लगा कि ये कोई अप्रिय घटना करने के उद्देश्य से आए हैं। उसने शीघ्रता से नीरू को जाकर बताया कि कुछ ब्राह्मण आपके घर आ रहे हैं। उनकी नीयत झगड़ा करने की है। नीमा भी वहीं खड़ी उस व्यक्ति की बातें सुन रही थी उसी समय वे ब्राह्मण गली में नीरू के मकान की ओर आते दिखाई दिए। नीमा समझ गई कि अवश्य कबीर ने इन ब्राह्मणों से ज्ञान चर्चा की है। वे ईष्र्यालु व्यक्ति मेरे बेटे को मार डालेगें। इतना विचार करके सोए हुए बालक कबीर को जगाया तथा अपनी झोंपड़ी के पीछे ले गई वहाँ लेटा कर रजाई डाल दी तथा कहा बेटा बोलना नहीं है। कुछ व्यक्ति झगड़ा करने के उद्देश्य से अपने घर आ रहे हैं। नीमा अपने घर के द्वार पर गली में खड़ी हो गई। तब तक वे ब्राह्मण घर के निकट आ चुके थे। उन्होंने पूछा क्या नीरू का घर यही है ? नीमा ने उत्तर दिया हाँ ऋषि जी! यही है कहो कैसे आना हुआ। ऋषि विवेकानन्द बोला कहाँ है तुम्हारा शरारती बच्चा कबीर? कल उसने भरी सभा में मेरे गुरुदेव का अपमान किया है। आज उस की पिटाई गुरु जी सर्व के समक्ष करेंगे। इसको सबक सिखाऐंगे। नीमा बोली मेरा बेटा निर्दोष है वह किसी का अपमान नहीं कर सकता। आप मेरे बेटे से ईष्र्या रखते हो। कभी कोई ब्राह्मण उलहाने (शिकायत) लेकर आता है कभी कोई तो कभी कोई आता है। आप मेरे बेटे की जान के शत्रु क्यों बने हो? लौट जाइए।
सर्व ब्राह्मण बलपूर्वक नीरू की झोंपड़ी में प्रवेश करके कपड़ों को उठा-2 कर बालक को खोजने लगे। चारपाइयों को भी उल्ट कर पटक दिया। जोर-2 से ऊंची आवाज में बोलने लगे। मात-पिता को दुःखी जानकर बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी रजाई से निकल कर खड़े हो गए तथा कहा ऋषि जी मैं झोपड़ी के पीछे छुपा हूँ। बच्चे की आवाज सुनकर सर्व ब्राह्मण पीछे गए। वहाँ खड़े कबीर जी को पकड़ कर अपने साथ ले जाने लगे। नीमा तथा नीरू ने विरोध किया। नीमा ने बालक कबीर जी को सीने से लगाकर कहा मेरे बच्चे को मत ले जाओ। मत ले जाओ----- ऐसे कह कर रोने लगी। निर्दयों ने नीमा को धक्का मार कर जमीन पर गिरा दिया। नीमा फिर उठ कर पीछे दौड़ी तथा बालक कबीर जी का हाथ उनसे छुटवाने का प्रयत्न किया। एक व्यक्ति ने ऐसा थप्पड़ मारा नीमा के मुख व नाक से रक्त टपकने लगा। नीमा रोती हुई गली में अचेत हो गई। नीरू ने भी बच्चे को छुड़वाने की कोशिश की तो उसे भी पीट-2 कर मृत सम कर दिया। काॅलोनी वाले उठाकर उनके घर ले गए। बहुत समय पश्चात् दोनों सचेत हुए। बच्चे के वियोग में रो-2 कर दोनों का बुरा हाल था। नीरू चोट के कारण चल-फिरने में असमर्थ जमीन पर गिर कर विलाप कर रहा था। कभी चुप होकर भयभीत हुआ गली की ओर देख रहा था। मन में सोच रहा था कि कहीं वे लौट कर ना आ जाऐं तथा मुझे जान से न मार डालें। फिर बच्चे को याद करके विलाप करने लगता। मेरे बेटे को मत मारो-मत मारो इसने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा। ऐसे पागल जैसी स्थिति नीरू की हो गई थी। नीमा होश में आती थी फिर अपने बच्चे के साथ हो रहे अत्याचार की कल्पना कर बेहोश (अचेत) हो जाती थी। मोहल्ले (काॅलोनी) के स्त्री पुरूष उनकी दशा देखकर अति दुःखी थे।
प्रातःकाल का समय था। स्वामी रामानन्द जी गंगा नदी पर स्नान करके लौटे ही थे। अपनी कुटिया (भ्नज) में बैठे थे। जब उन्हें पता चला कि उस बालक कबीर को पकड़ कर ऋषि विवेकानन्द जी की टीम ला रही ��ै तो स्वामी रामानन्द जी ने अपनी कुटिया के द्वार पर कपड़े का पर्दा लगा लिया। यह दिखाने के लिए कि मैं पवित्र जाति का ब्राह्मण हूँ तथा शुद्रों को दीक्षा देना तो दूर की बात है, सुबह-2 तो दर्शन भी नहीं करता।
ऋषि विवेकानन्द जी ने बालक कबीर देव जी को कुटिया के समक्ष खड़ा करके कहा हे गुरुदेव। यह रहा वह झूठा बच्चा कबीर जुलाहा। उस समय ऋषि विवेकानन्द जी ने अपने प्रचार क्षेत्र के व्यक्तियों को विशेष कर बुला रखा था। यह दिखाने के लिए कि यह कबीर झूठ बोलता है। स्वामी रामानन्द जी कहेंगे मैंने इसको कभी दीक्षा नहीं दी। जिससे सर्व उपस्थित व्यक्तियों को यह बात जचेगी कि कबीर पुराणों के विषय में भी झूठ बोल रहा था जिन के बारे में कबीर जी ने लिखा बताया था कि श्री विष्णु जी, श्री शिव जी तथा ब्रह्मा जी नाशवान हैं। इनका जन्म होता है तथा मृत्यु भी होती है तथा इनकी माता का नाम प्रकृति देवी (दुर्गा) है तथा पिता का नाम सदाशिव अर्थात् काल ब्रह्म है। जिन हाथों से कबीर परमेश्वर को पकड़ कर लाए थे। उन सर्व व्यक्तियों ने अपने हाथ मिट्टी से रगड़-रगड़ कर धोए तथा सर्व उपस्थित व्यक्तियों के समक्ष बाल्टी में जल भर कर स्नान किया सर्व वस्त्र जो शरीर पर पहन रखे थे वे भी कूट-2 कर धोए।
स्वामी रामानन्द जी ने अपनी कुटिया के द्वार पर खड़े पाँच वर्षीय बालक कबीर से ऊँची आवाज में प्रश्न किया। हे बालक ! आपका क्या नाम है? कौन जाति में जन्म है? आपका भक्ति पंथ (मार्ग) कौन है? उस समय लगभग हजार की संख्या में दर्शक उपस्थित थे। बालक कबीर जी ने भी आधीनता से ऊँची आवाज में उत्तर दिया:-
जाति मेरी जगत्गुरु, परमेश्वर है पंथ। गरीबदास लिखित पढे, मेरा नाम निरंजन कंत।।
हे स्वामी सृष्टा मैं सृष्टि मेरे तीर। दास गरीब अधर बसूँ अविगत सत् कबीर।
गोता मारूं स्वर्ग में जा पैठंू पाताल। गरीब दास ढूंढत फिरू हीरे माणिक लाल।
भावार्थ:- कबीर जी ने कहा हे स्वामी रामानन्द जी! परमेश्वर के घर कोई जाति नहीं है। आप विद्वान पुरूष होते हुए वर्ण भेद को महत्त्व दे रहे हो। मेरी जाति व नाम तथा भक्ति पंथ जानना चाहते हो तो सुनों। मेरा नाम वही कविर्देव है जो वेदों में लिखा है जिसे आप जी पढ़ते हो। मैं वह निरंजन (माया रहित) कंत (सर्व का पति) अर्थात् सबका स्वामी हूँ। मैं ही सर्व सृष्टि रचनहार (सृष्टा) हूँ। यह सृष्टि मेरे ही आश्रित (तीर यानि किनारे) है। मैं ऊपर सतलोक में निवास करता हूँ। मैं वह अमर अव्यक्त (अविगत सत्) कबीर हूँ। जिसका वर्णन गीता अध्याय 8 श्लोक सं.20 से 22 में है। हे स्वामी जी गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में गीता ज्ञान दाता अर्थात् काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) अपने विषय में बताता है कि! यह मूर्ख मनुष्य समुदाय मुझ अव्यक्त को कृष्ण रूप में व्यक्ति मान रहे हैं। मैं सबके समक्ष प्रकट नहीं होता। यह मनुष्य समुदाय मेरे इस अश्रेष्ठ अटल नियम से अपरिचित हैं (24) गीता अ. 7 श्लोक 25 में कहा है कि मैं (गीता ज्ञान दाता) अपनी योगमाया (सिद्धिशक्ति) से छिपा हुआ अप��े वास्तविक रूप में सबके समक्ष प्रत्यक्ष नहीं होता। यह अज्ञानी जन समुदाय मुझ कृष्ण व राम आदि की तरह माता से जन्म न लेने वाले प्रभु को तथा अविनाशी (जो अन्य अव्यक्त परमेश्वर है) को नहीं जानते।
हे स्वामी रामानन्द जी गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) ने अपने को अव्यक्त कहा है यह प्रथम अव्यक्त प्रभु हुआ। अब सुनो दूसरे तथा तीसरे अव्यक्त प्रभुओं के विषय में। गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में गीता ज्ञान दाता ने अपने से अन्य अव्यक्त परमात्मा का वर्णन किया है कहा है:- यह सर्व चराचर प्राणी दिन के समय अव्यक्त परमात्मा से उत्पन्न होते है रात्रि के समय उसी में लीन हो जाते हैं। यह जानकारी काल ब्रह्म ने अपने से अन्य अव्यक्त प्रभु (परब्रह्म) अर्थात् अक्षर ब्रह्म के विषय में दी है। यह दूसरा अव्यक्त (अविगत) प्रभु हुआ तीसरे अव्यक्त (अविगत) परमात्मा अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म के विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 20 से 22 में कहा है कि जिस अव्यक्त प्रभु का गीता अध्याय 8 श्लोक 18-19 में वर्णन किया है वह पूर्ण प्रभु नहीं है। वह भी वास्तव में अविनाशी प्रभु नहीं है। परन्तु उस अव्यक्त (जिसका विवरण उपरोक्त श्लोक 18-19 में है) से भी अति परे दूसरा जो सनातन अव्यक्त भाव है वह परम दिव्य परमेश्वर सब भूतों (प्राणियों) के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता। वह अक्षर अव्यक्त अविनाशी अविगत अर्थात् वास्तव में अविनाशी अव्यक्त प्रभु इस नाम से कहा गया है। उसी अक्षर अव्यक्त की प्राप्ति को परमगति कहते हैं। जिस दिव्य परम परमात्मा को प्राप्त होकर साधक वापस लौट कर इस संसार में नहीं आते (इसी का विवरण गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा श्लोक 16-17 में भी है) वह धाम अर्थात् जिस लोक (धाम) में वह अविनाशी (अव्यक्त) परमात्मा रहता है वह धाम (स्थान) मेरे वाले लोक (ब्रह्मलोक) से श्रेष्ठ है। हे पार्थ! जिस अविनाशी परमात्मा के अन्तर्गत सर्व प्राणी हैं। जिस सच्चिदानन्द घन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है, वह सनातन अव्यक्त परमेश्वर तो अनन्य भक्ति से प्राप्त होने योग्य है (गीता अ. 8/मं.20, 21, 22) हे स्वामी रामानन्द जी मैं वही तीसरी श्रेणी वाला अविगत (अव्यक्त) सत् (सनातन अविनाशी भाव वाला परमेश्वर) कबीर हूँ। जिसे वेदों में कविर्देव कहा है वही कबीर देव मैं कहलाता हूँ।
हे स्वामी रामानन्द जी! सर्व सृष्टि को रचने वाला (सृष्टा) मैं ही हूँ। मैं ही आत्मा का आधार जगतगुरु जगत् पिता, बन्धु तथा जो सत्य साधना करके सत्यलोक जा चुके हैं उनको सत्यलोक पहुँचाने वाला मैं ही हूँ। काल ब्रह्म की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव वाला कबीर देव (कर्विदेव) मैं ही हूँ। जिसका प्रमाण अर्थववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मन्त्रा 7 में लिखा है।
काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।7।।
यः अथर्वाणम् पित्तरम् देवबन्धुम् बृहस्पतिम् नमसा अव च गच्छात् त्वम् विश्वेषाम् जनिता यथा सः कविर्देवः न दभायत् स्वधावान्
अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देव बन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बृहस्पतिम्) बड़ा स्वामी अर्थात् परमेश्वर व जगत्गुरु (च) तथा (नमसाव) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ (गच्छात्) सतलोक गए हुओं को यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों की (जनिता) रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः/ कविर्देवः) कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
केवल हिन्दी अनुवाद:- जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार बड़ा स्वामी अर्थात् परमेश्वर व जगत्गुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक गए हुओं को यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही वह आप कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
भावार्थ:- इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।
जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है) जगत् गुरु, परमेश्वर आत्माधार, जो पूर्ण मुक्त होकर सत्यलोक गए हैं यानि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं, उनको सतलोक ले जाने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, काल (ब्रह्म) की तरह धोखा न देने वाला ज्यों का त्यों वह स्वयं कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणंम त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम् देव देव। इसी परमेश्वर की महिमा का पवित्र ऋग्वेद मण्डल नं. 1 सूक्त नं. 24 में विस्तृत विवरण है।
पाँच वर्षीय बालक के मुख से वेदो व गीता जी के गूढ़ रहस्य को सुनकर ऋषि रामानन्द जी आश्चर्य चकित रह गए तथा क्रोधित होकर अपशब्द कहने लगे। वाणीः-
रामानंद अधिकार सुनि, जुलहा अक जगदीश। दास गरीब बिलंब ना, ताहि नवावत शीश।।407।।
रामानंद कूं गुरु कहै, तनसैं नहीं मिलात। दास गरीब दर्शन भये, पैडे लगी जुं लात।।408।।
पंथ चलत ठोकर लगी, रामनाम कहि दीन। दास गरीब कसर नहीं, सीख लई प्रबीन।।409।।
आडा पड़दा लाय करि, रामानंद बूझंत। दास गरीब कुलंग छबि, अधर डांक कूदंत।।410।।
कौन जाति कुल पंथ है, कौन तुम्हारा नाम। दास गरीब अधीन गति, बोलत है बलि जांव।।411।।
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर पद पंथ। दास गरीब लिखति परै, नाम निंरजन कंत।।412।।
रे बालक सुन दुर्बद्धि, घट मठ तन आकार। दास गरीब दरद लग्या, हो बोले सिरजनहार।।413।।
तुम मोमन के पालवा, जुलहै के घर बास। दास गरीब अज्ञान गति, एता दृढ़ विश्वास।।414।।
मान बड़ाई छाड़ि करि, बोलौ बालक बैंन। दास गरीब अधम मुखी, एता तुम घट फैंन।।415।।
तर्क तलूसैं बोलतै, रामानंद सुर ज्ञान। दास गरीब कुजाति है, आखर नीच निदान।।423।।
परमेश्वर कबीर जी (कविर्देव) ने प्रेमपूर्वक उत्तर दिया -
महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन। दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।428।।
मैं अविगत गति सैं परै, च्यारि बेद सैं दूर। दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।429।।
सकल सिंध भरपूर हूँ, खालिक हमरा नाम। दासगरीब अजाति हूँ, तैं जो कह्या बलि जांव।।430।।
जाति पाति मेरे नहीं, नहीं बस्ती नहीं गाम। दासगरीब अनिन गति, नहीं हमारै चाम।।431।।
नाद बिंद मेरे नहीं, नहीं गुदा नहीं गात। दासगरीब शब्द सजा, नहीं किसी का साथ।।432।।
सब संगी बिछरू नहीं, आदि अंत बहु जांहि। दासगरीब सकल वंसु, बाहर भीतर माँहि।।433।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।434।।
पौहमी धरणि आकाश में, मैं व्यापक सब ठौर। दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।436।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम। दासगरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।439।।
सुनि रामानंद राम हम, मैं बावन नरसिंह। दास गरीब कली कली, हमहीं से कृष्ण अभंग।।440।।
हमहीं से इंद्र कुबेर हैं, ब्रह्मा बिष्णु महेश। दास गरीब धर्म ध्वजा, धरणि रसातल शेष।।447।।
सुनि स्वामी सती भाखहूँ, झूठ न हमरै रिंच। दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।453।।
गोता लाऊं स्वर्ग सैं, फिरि पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।476।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव। गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नांव।।477।।
मुरजीवा माणिक चुगैं, कंकर पत्थर डारि। दास गरीब डोरी अगम, उतरो शब्द अधार।।478।।
स्वामी रामानन्द जी ने कहाः- अरे कुजात! अर्थात् शुद्र! छोटा मुंह बड़ी बात, तू अपने आपको परमात्मा कहता है। तेरा शरीर हाड़-मांस व रक्त निर्मित है। तू अपने आपको अविनाशी परमात्मा कहता है। तेरा जुलाहे के घर जन्म है फिर भी अपने आपको अजन्मा अविनाशी कहता है तू कपटी बालक है। परमेश्वर कबीर जी ने कहाः-
ना मैं जन्मु ना मरूँ, ज्यों मैं आऊँ त्यों जाऊँ। गरीबदास सतगुरु भेद से लखो हमारा ढांव।।
सुन रामानन्द राम मैं, मुझसे ही बावन नृसिंह। दास गरीब युग-2 हम से ही हुए कृष्ण अभंग।।
भावार्थः- कबीर जी ने उत्तर दिया हे रामानन्द जी, मैं न तो जन्म लेता हूँ ? न मृत्यु को प्राप्त होता हूँ। मैं चैरासी लाख प्राणियों के शरीरों में आने (जन्म लेने) व जाने (मृत्यु होने) के चक्र से भी रहित हूँ। मेरी विशेष जानकारी किसी तत्त्वदर्शी सन्त (सतगुरु) के ज्ञान को सुनकर प्राप्त करो। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10-13 में वेद ज्ञान दाता स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण परमात्मा के तत्व (वास्तविक) ज्ञान से मैं अपरिचित हूँ। उस तत्त्वज्ञान को तत्त्वदर्शी सन्तों से सुनों उन्हें दण्डवत् प्रणाम करो, अति विनम्र भाव से परमात्मा के पूर्ण मोक्ष मार्ग के विषय में ज्ञान प्राप्त करो, जैसी भक्ति विधि से तत्त्वदृष्टा सन्त बताऐं वैसे साधना करो। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में लिखा है कि श्लोक 16 में जिन दो पुरूषों (भगवानों) 1) क्षर पुरूष अर्थात् काल ब्रह्म तथा 2) अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म का उल्लेख है, वास्तव में अविनाशी परमेश्वर तथा सर्व का पालन पोषण व धारण करने वाला परमात्मा तो उन उपरोक्त दोनों से अन्य ही है। हे स्वामी रामानन्द जी! वह उत्तम पुरूष अर्थात् सर्व श्रेष्ठ प्रभु मैं ही हूँ। इस बात को सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्षुब्ध हो गए तथा कहा कि रे बालक! तू निम्न जाति का और छोटा मुँह बड़ी बात कर रहा है। तू अपने आप भगवान बन बैठा। बुरी गालियाँ भी दी। कबीर साहेब बोले कि गुरुदेव! आप मेरे गुरुजी हैं। आप मुझे गाली दे रहे हो तो भी मुझे आनन्द आ रहा है। लेकिन मैं जो आपको कह रहा हूँ, मैं ज्यों का त्यों पूर्णब्रह्म ही हूँ, इसमें कोई संशय नहीं है। इस बात को सुनकर रामानन्द जी ने कहा कि ठहर जा तेरी तो लम्बी कहानी बनेगी, तू ऐसे नहीं मानेगा। मैं पहले अपनी पूजा कर लेता हूँ। रामानन्द जी ने कहा कि इसको बैठाओ। मैं पहले अपनी कुछ क्रिया रहती है वह कर लेता हूँ, बाद में इससे निपटूंगा।
स्वामी रामानन्द जी क्या क्रिया करते थे?
भगवान विष्णु जी की एक काल्पनिक मूर्ति बनाते थे। सामने मूर्ति दिखाई देने लग जाती थी (जैसे कर्मकाण्ड करते हैं, भगवान की मूर्ति के पहले वाले सारे कपड़े उतार कर, उनको जल से स्नान करवा कर, फिर स्वच्छ कपड़े भगवान ठाकुर को पहना कर गले में माला डालकर, तिलक लगा कर मुकुट रख देते हैं।) रामानन्द जी कल्पना कर रहे थे। कल्पना करके भगवान की काल्पनिक मूर्ति बनाई। श्रद्धा से जैसे नंगे पैरों जाकर आप ही गंगा जल लाए हों, ऐसी अपनी भावना बना कर ठाकुर जी की मूर्ति के कपड़े उतारे, फिर स्नान करवाया तथा नए वस्त्र पहना दिए। तिलक लगा दिया, मुकुट रख दिया और माला (कण्ठी) डालनी भूल गए। कण्ठी न डाले तो पूजा अधूरी और मुकुट रख दिया तो उस दिन मुकुट उतारा नहीं जा सकता। उस दिन मुकुट उतार दे तो पूजा खण्डित। स्वामी रामानन्द जी अपने आपको कोस रहे हैं कि इतना जीवन हो गया मेरा कभी, भी ऐसी गलती जिन्दगी में नहीं हुई थी। प्रभु आज मुझ पापी से क्या गलती हुई है? यदि मुकुट उतारूँ तो पूजा खण्डित। उसने सोचा कि मुकुट के ऊपर से कण्ठी (माला) डाल कर देखता हूँ (कल्पना से कर रहे हैं कोई सामने मूर्ति नहीं है और पर्दा लगा है कबीर साहेब दूसरी ओर बैठे हैं)। मुकुट में माला फँस गई है आगे नहीं जा रही थी। जैसे स्वपन देख रहे हों। रामानन्द जी ने सोचा अब क्या करूं? हे भगवन्! आज तो मेरा सारा दिन ही व्यर्थ गया। आज की मेरी भक्ति कमाई व्यर्थ गई (क्योंकि जिसको परमात्मा की कसक होती है उसका एक नित्य नियम भी रह जाए तो उसको दर्द बहुत होता है। जैसे इंसान की जेब कट जाए और फिर बहुत पश्चाताप करता है। प्रभु के सच्चे भक्तों को इतनी लगन होती है।) इतने में बालक रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि स्वामी जी माला की घुण्डी खोलो और माला गले में डाल दो। फिर गाँठ लगा दो, मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा। रामानन्द जी काहे का मुकुट उतारे था, काहे की गाँठ खोले था। कुटिया के सामने लगा पर्दा भी स्वामी रामानन्द जी ने अपने हाथ से फैंक दिया और ब्राह्मण समाज के सामने उस कबीर परमेश्वर को सीने से लगा लिया। रामानन्द जी ने कहा कि हे भगवन् ! आपका तो इतना कोमल शरीर है जैसे रूई हो। आपके शरीर की तुलना में मेरा तो पत्थर जैसा शरीर है। एक तरफ तो प्रभु खड़े हैं और एक तरफ जाति व धर्म की दीवार है। प्रभु चाहने वाली पुण्यात्माऐं धर्म की बनावटी दीवार को तोड़ना श्रेयकर समझते हैं। वैसा ही स्वामी रामानन्द जी ने किया। सामने पूर्ण परमात्मा को पा कर न जाति देखी न धर्म देखा, न छूआ-छात, केवल आत्म कल्याण देखा। इसे ब्राह्मण कहते हैं।
बोलत रामानंद जी, हम घर बड़ा सुकाल। गरीबदास पूजा करैं, मुकुट फही जदि माल।।
सेवा करौं संभाल करि, सुनि स्वामी सुर ज्ञान। गरीबदास शिर मुकुट धरि,माला अटकी जान।।
स्वामी घुंडी खोलि करि, फिरि माला गल डार। गरीबदास इस भजन कूं, जानत है करतार।।
ड्यौढी पड़दा दूरि करि, लीया कंठ लगाय। गरीबदास गुजरी बौहत, बदनैं बदन मिलाय।।
मनकी पूजा तुम लखी, मुकुट माल परबेश। गरीबदास गति को लखै, कौन वरण क्या भेष।।
यह तौ तुम शिक्षा दई, मानि लई मनमोर। गरीबदास कोमल पुरूष, हमरा बदन कठोर।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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jeevanjali · 23 days
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Akshaya Tritiya 2024: आखिर क्यों मनाई जाती है अक्षय तृतीया ? जानिए इसके पीछे के कारण Akshaya Tritiya 2024: हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का बड़ा महत्व है। यह एक ऐसा दिन है जहां आपको कोई भी शुभ काम करने के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है।
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rakeshbhatt22 · 24 days
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कबीर, सज्जन सगे कुटम्ब हितु,
जो कोई द्वारै आव।
कबहु निरादर न कीजिए,
राखै सब का भाव ।।
#GodNightTuesday
#जगत_उद्धारक_संत_रामपालजी
📚 अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें आध्यात्मिक पुस्तक "ज्ञान - गंगा"।
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bharatlivenewsmedia · 2 years
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MVA : ‘औरंगाबादच्या नामांतराचा आव आणायचा, हिरवं प्रेम हेच खरं हिंदुत्व म्हणायचं’ संदीप देशपांडेंनी मुख्यमंत्र्यांच्या राजीनाम्याची स्क्रिप्ट सांगितली…
MVA : ‘औरंगाबादच्या नामांतराचा आव आणायचा, हिरवं प्रेम हेच खरं हिंदुत्व म्हणायचं’ संदीप देशपांडेंनी मुख्यमंत्र्यांच्या राजीनाम्याची स्क्रिप्ट सांगितली…
MVA : ‘औरंगाबादच्या नामांतराचा आव आणायचा, हिरवं प्रेम हेच खरं हिंदुत्व म्हणायचं’ संदीप देशपांडेंनी मुख्यमंत्र्यांच्या राजीनाम्याची स्क्रिप्ट सांगितली… MNS : संदीप देशपांडेंनी मुख्यमंत्र्यांच्या राजीनाम्याची स्क्रिप्ट सांगितली, वाचा सविस्तर… मुंबई : सध्या राज्यातील राजकारणात सत्तांतराच्या शक्यतेचं वादळ आलंय. सत्ताधाऱ्यांसह विरोधी पक्षही या वादळाचा भाग आहेत. अश्यात सरकार अल्पमतात आल्याने…
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dgnews · 28 days
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निगम आयुक्त श्री हरेन्द्र नारायन ने सोनागिरी पुस्तकालय एवं उद्यानों का किया निरीक्षण
भोपाल, 26अप्रैल 2024 निगम आयुक्त श्री हरेन्द्र नारायन ने वार्ड 64 के अंतर्गत सोनागिरी पुस्तकालय का नवीनीकरण कर प्रदान किए गए बेहतर स्वरूप का अवलोकन किया साथ ही विभिन्न उद्यानों का निरीक्षण किया और पुस्तकालय में छात्र/छात्राओं के अध्ययन के लिए आव-रु39ययक संसाधन एवं सुविधाएं सुनि-िरु39यचत करने के निर्दे-रु39या दिए साथ ही उद्यानों का बेहतर रख-ंउचयरखाव सुनि-िरु39यचत करने और पेड़-ंउचयपौधों की…
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seedharam · 1 month
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#सत���ुरू_उपदेश...
गरीब,जो जाने तो जान ले, बहूर न ऐसा दॉव *
आगे पीछे की कहुं, शब्दमहल में आव **
✓✓✓ अपने देव दूर्लभ अनमोल मानव जीवन के मूल उद्देश्य को जानने और प्राप्त करने के लिए सपरिवार देखिए साधना टीवी चैनल पर प्रसारित अनमोल सत्संग कार्यक्रम अभी......
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jyotis-things · 1 month
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( #Muktibodh_Part255 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part256
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 490-491
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1147- 1169 :-
गरीब, मन को मुरजीवा करैं, गोता दिल दरियाव।
माणिक भरे समुद्र में, बाहिर लेकै आव।।1147।।
गरीब, बैरागर के गंज हैं, ऊंचै शून्य सुमेर।
तापर आसन मार कर, सुन मुरली की टेर।।1148।।
गरीब, बाजै मुरली कौहक पद, बिना कण्ठ मुख द्वार।
आठ बखत सुनता रहै, सुनि अनहद झनकार।।1149।।
गरीब, उस मुरली की लहरि सैं, कहर जरैं ज्यौं घास।
आठ बखत पद में रहै, कोई जन हरि के दास।।1150।।
गरीब, मुरली मधुर अधर बजै, राग छतीसौं बैंन।
इत उत मुरली एक हैं, चरनां बिसरी धैंन।।1151।।
गरीब, मुरली उरली बिधि नहीं, बाजत है परलोक।
सरब जीव अचराचरं, सुनि करि पाया पोष।।1152।।
गरीब, मुरली मदन मुरारि मुख, बाजी नन्द द्वार।
सकल जीव ल्यौलीन गति, सुनिया गोपी ग्वाल।।1153।।
गरीब, बाजत मुरली मुख बिना, सुनियत बिनही कान।
स्वर्ग सलहली गर्ज धुन,फिर भी अबिगत पद निर्वाण।।1154।।
गरीब, मुरली बजै कबीर की, परखो मुरली बिबेक।
ताल ख्याल नहीं भंग होय, बाजैं बजैं अनेक।।1155।।
गरीब, अनंत कोटि बाजै बजैं, ता मधि मुरली टेर।
रनसींगे सहनाईयां, झालरि झांझरि भेर।।1156।।
गरीब, बजैं नफीरी शुन्य में, घट मठ नहीं आकाश।
सो जन भिन्न भिन्न सुनत हैं, जो लीन करैं दमश्वास।।1157।।
गरीब, मुरली गगन गर्ज धुनि, जहां चन्द्र नहीं सूर।
नाद अगाध घुरैं जहां, बाजत अनहद तूर।।1158।।
गरीब, तूर दूर नहीं निकट हैं, तन मन करि ले नेश।
मुरली के मोहे पडे, ब्रह्मा बिष्णु महेश।।1159।।
गरीब, बिष्णु सुनी शंकर सुनी, ब्रह्मा सुनी एक रिंच।
पारब्रह्म कूं मोहिया, और भू आत्म पंच।।1160।।
गरीब, मुरली सरली सुरति सर, जिन सरबर तूं न्हाय।
अनंत कोटि तीरथ बगै, परबी द्यौं समझाय।।1161।।
गरीब, मुरली बजै अगाधि गति, शिब विरंच बिष्णु सुन लीन्ह।
उस मुरली की टेर सुन, नारद डारी बीन।।1162।।
गरीब, नारद शारद सब थके, सनक सनन्दन संत।
अनंत कोटि जुग कलप क्या, बाजत हैं बे अंत।।1163।।
गरीब, सुन्दर मुर्ति मोहनी, पीतांबर पहिरानं।
मुरली जाके मुख बजै, दर दिवाल गलतानं।।1164।।
गरीब, कालंदरी के तीर, बाजी मुरली मुख कबीर।
सुनी ब्रह्मा बिष्णु महेश कुं, और दरिया का नीर।।1165।।
गरीब, सूक्ष्म मूर्ति स्वर्ग में, छत्रासेत शिर शीश।
बाहर भीतर खेलता, है कबीर अबिगत जगदीश।।1166।।
गरीब, भिरंग नाद अगाध गति, राग रूप होय जात।
नूरी रूप हो गया, पिण्ड प्राण सब गात।।1167।।
गरीब, उस मुरली की टेर सुनि, फेरि धरत नहीं जूंनि।
आसन गगन औजूद बिन, बिचरत शून्य बेशुंनि।।1168।।
गरीब, बिन शाखा फूलै फलै, बिना मूल महकंत।
बिना घटा लखि दामनी, बिन बादल गरजंत।।1169।।
सरलार्थ :- जैसे समुद्र में मोती हैं। (मूरजीवा) गोताखोर होकर समुद्र से
मोती लाता है। ऐसे मानव के दिल रूपी दरिया में परमात्मा की शक्ति का खजाना है। सत्य साधना करने से वह भक्त की आत्मा में प्रवेश कर जाती है। जैसे कोई बैंक में नौकरी करता है।
बैंक रूपयों से भरा है, परंतु वह नौकरी करता रहेगा तो बैंक से उसकी तनख्वाह उसे मिल जाएगी, उसके खाते में आ जाएगी।(1147)
(बैरागर) हीरों के (गंज) खजाने हैं, ऊँचे-ऊँचे ढ़ेर लगे हैं। तापर आसन लायकर यानि भक्ति करने से भक्त को अध्यात्मिक शक्ति मिलती है। परमात्मा के पास तो शक्ति के पहाड़ हैं। सुमेरू पर्वत सबसे विशाल माना जाता है। उससे परमात्मा की शक्ति की उपमा की है कि सत्य साधना करने से भक्त की भक्ति की कमाई (धन) अत्यधिक हो जाएगा। उसके कारण शरीर में धुन (संगीत) सुनाई देने लगेगा। वैसे तो परमात्मा के सतलोक में असँख्यों
धुन (संगीत की ध्वनि) हो रही हैं। जब भक्ति कमाई (शक्ति) अधिक हो जाती है, तब मूरली की (टेर) ध्वनि सुनाई देने लगती है। इसलिए उपमात्मक तरीके से समझाया है कि सुमेरू पर्वत जितनी विशाल भक्ति की शक्ति हो जाए, तब उसे सुमेरू जैसी भक्ति के बाद मुरली
सुनाई देगी। तब आपका सत्यलोक जाने का मार्ग खुल गया है। जीवात्मा उसे सुनती-सुनती उस ओर चलती है। सतलोक पहुँच जाती है। वह निरंतर बजती रहती है। उस मुरली की
आवाज सुनने से (कहर) भयंकर दंड देने वाले पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे सूखा घास जलकर भस्म बन जाता है।
श्री कृष्ण जी नंद बाबा के द्वार पर पृथ्वी पर मुरली बजाते थे तो अनेकों गोपियाँ (गौ पालन करने वालों की पत्नियाँ) तथा ग्वाले सुनकर मस्त हो जाते। गोपियाँ रात्रि में अपने पतियों को सोये हुए छोड़कर चुपचाप मुरली सुनने चाँदनी रात्रि में जंगल में श्री कृष्ण के पास चली जाती थी।
परंतु जो मुरली सतपुरूष कबीर जी के सत्यलोक में बज रही है, उसकी मधुरता तथा आकर्षण श्री कृष्ण वाली मुरली से असँख्य गुणा अधिक है। स्वर्ग में बादल की गर्ज जैसी आवाज आती है। (अविगत पद निर्वाण) पूर्ण मोक्ष की पद्यति भिन्न है। कबीर परमात्मा की
मुरली की ध्वनि को परखो जो सत्यलोक में बज रही है। काल ने धोखा देने के लिए ब्रह्मलोक में भी मुरली की ध्वनि चला रखी है जो सतपुरूष कबीर जी की सत्यलोक वाली मुरली की ध्वनि की तुलना में बहुत खराब है। सत्यलोक में असँख्यों बाजे बज रहे हैं। संगीत चल रहा है। उनके बीच में ही मुरली की ध्वनि भी चल रही है। जो मुरली काल ब्रह्म ने ब्रह्मलोक में नकली बजा रखी है, परमात्मा कबीर जी ने अपने लोक वाली मुरली ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव को एक-एक बार सुनाई थी। वे उस मुरली की (टेर) ध्वनि पर मोहित हो गए हैं। परंतु उनकी साधना सतलोक वाली नहीं है। इसलिए वे उसे नहीं सुन पा रहे हैं।
परमात्मा कबीर जी अच्छी भक्त आत्माओं को मिलते हैं। इस क्रम में ऋषि नारद को भी मिले थे। उसे भी सतलोक वाली मुरली एक बार सुनाई थी। कुछ समय तक नारद जी सुनते रहे। उस मुरली की सुरीली ध्वनि को सुनकर नारद मुनि ने अपनी मुरली फैंक दी कि यह तो उस मुरली की तुलना में कुछ मायने नहीं रखती।(1148-1164)
जिस समय परमात्मा कबीर जी काशी नगर (भारत) में जुलाहे की भूमिका करके तत्त्वज्ञान प्रचार किया करते थे। उस समय धनी धर्मदास जी को मिले थे। सेठ धर्मदास जी श्री कृष्ण के परम भक्त थे। बाद में तत्त्वज्ञान सुनकर तथा सत्यलोक में परमात्मा कबीर जी
को आँखों देखकर मान गए थे कि समर्थ परमात्मा कबीर जी हैं। एक दिन चलती बात पर धर्मदास जी ने कहा कि हे सतगुरू देव! श्री कृष्ण की मुरली की ध्वनि में इतना आकर्षण था, बताते हैं कि गौएँ, गोपियाँ तथा ग्वाले आकर्षित होकर उसकी ओर स्वतः चले आते थे। ऐसी क्या शक्ति थी उनमें? परमात्मा बोले कि हे धर्मदास! इसका उत्तर जुबानी नहीं दिया जा सकता। कार्यरूप देकर (practically) उत्तर दिया जाएगा। चलो उस स्थान पर जहाँ श्री कृष्ण मुरली बजाया करते थे। परमात्मा कबीर जी अपने प्रिय भक्त धर्मदास जी को साथ लेकर कालंदरी (यमुना) के उस तट पर गए जहाँ श्री कृष्ण मुरली बजाया करते। कबीर
परमात्मा ने आकाश की ओर संकेत किया। एक मुरली उनके हाथ में आ गई। परमात्मा ने मुरली बजानी प्रारम्भ की। आसपास के क्षेत्र के सभी स्त्री-पुरूष, पशु-पक्षी, स्वर्ग लोक के
देवता, स्वर्ग गए हुए ऋषि-मुनि, तीनों ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी अपने-अपने लोक त्यागकर मुरली की (टेर) ध्वनि सुनने आए थे।
यमुना नदी का जल भी परमात्मा की मुरली की टेर सुनने के लिए रूक गया। एक पहर यानि तीन घण्टे तक मुरली बजाई। सब यथास्थिति में खड़े रहे। टस से मस भी नहीं हुए। जब मुरली रूकी तो सब कबीर जी की जय-जयकार करने लगे। स्थानीय लोगों ने जानना चाहा कि यह कौन देव है जिसने इतनी मधुर मुरली बजाई है। इनकी शक्ति का कोई वार-पार नहीं है। उन्हें बताया गया कि ये पूर्ण परमात्मा हैं। काशी में जुलाहे का कार्य कर
रहे हैं। सब अपने-अपने स्थान को लौट गए।
संत मलूक दास जी को परमात्मा कबीर जी मिले थे। सत्यलोक दिखाया। अपने से परिचित करवाया था। उन्होंने कहा था :-
एक समय गुरू मुरली बजाई, कालंदरी के तीर।
सुरनर मुनिजन थकत भए थे, रूक गया जमना नीर।
जपो रे मन साहेब नाम कबीर।।(1165)
परमात्मा कबीर जी सूक्ष्म रूप में स्वर्ग में गुप्त निगरानी रखते हैं। सत्यलोक में
सिंहासन पर बैठे हैं। सिर के ऊपर सफेद (white) छत्र लगा रखा है। नराकार है। उस मुरली की टेर सुनकर यदि साधक शरीर त्याग देता है तो वह बहुत समय तक पुनर्जन्म नहीं लेता। उसमें आकाश में उड़ने की सिद्धि आ जाती है। वह ऊपर सुन्न में तथा अन्य शून्य स्थानों में भ्रमता रहता है। उसे कोई (आसन) ठिकाना नहीं होता। उसका स्थूल शरीर भी नहीं होता। सूक्ष्म शरीर में अपनी भक्ति को खा-खर्चकर पुनः पृथ्वी पर मानव जन्म भी प्राप्त कर सकता है। चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों के शरीरों में भी जन्म ले सकता है।(1166-1168)
सतलोक में परमात्मा की शक्ति से फूल बिना शाखा के दिखाई देते हैं। यह कुछ क्षेत्र है। बिना घटा बादल के (दामिनि) बिजली देखो। बिना बादल के बादल की गर्जना सुनो। ऐसा दिव्य है सतलोक।(1169)
(अब आगे अगले भाग में)
क्रमशः_____
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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rupeshkumar9060 · 1 month
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नैना अंतर आव तू, ज्यूं हो नैन झंपेऊ।
ना हो देखूं और को न तुझ देखन देऊ।।
#GodNightSaturday
#SantRampalJiQuotes
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