DIVYA DHARMA YAGYA DIWAS
(Divine Meritorious Meal Days) will be organized under the guidance of JagatGuru Tatvadarshi Sant Rampal Ji Maharaj.
Other Special Programs will be Organized in Divya Dharma Diwas as well -
Dowry-free marriages will be conducted in 17 minutes as per the guidelines shown by Sant Rampal Ji Maharaj according to Amar Granth Sahib.
कबीर, अभ्यागत आगम निरखि, आदर मान समेत।
भोजन छाजन, बित यथा, सदा काल जो देत।।
भावार्थ:- आपके घर पर कोई अतिथि आ जाए तो आदर के साथ भोजन तथा बिछावना अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार सदा समय देना चाहिए।
17 से 20 फरवरी 2024 को "संत रामपाल जी महाराज के बोध दिवस" और "कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस" पर होने वाले महासमागम पर आप सभी परिवार सहित सादर आमंत्रित हैं।
संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
पूर्ण परमात्मा चारों युगों में आते हैं, अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
"सतयुग में सत्यसुकृत नाम से, त्रेता में मुनीन्द्र नाम से आये, द्वापर में करुणामय नाम से तथा कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर नाम से प्रकट हुए। आज वर्तमान में इस पृथ्वी पर संत रामपाल जी महाराज जी के रूप में विद्यमान है।।
श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर दर्शन करने आ रहे लोगों के लिए सतगुरु रामपाल जी महाराज द्वारा एक महीने यानी 25 फरवरी से 26 मार्च तक ऐतिहासिक भण्डारा करवाया जा रहा है।
👉 अधिक जानकारी के लिए "Sant Rampal Ji Maharaj" Youtube
तत्वादर्शी संत रामपाल जी महाराज 🌺जी के सानिध्य में सतलोक आश्रम शामली में विशाल समागम के दौरान🌼 दहेज मुक्त विवाह संपन्न हुआ #SatlokAshramShamliUp #BodhDiwas #DowryFreeMarriages #SaintRampalJi #SatlokAshramShamli #saintrampalji #SelfieWithBook #KabirIsGod #GodKabir
प्रारब्ध कर्म:- प्रारब्ध कर्म वे कर्म हैं जो जीव को जीवन काल में भोगने होते हैं जो संचित कर्मों से औसत करके बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि पाप कर्म एक हजार (1000) हैं और पुण्य कर्म पाँच सौ (500) हैं तो दोनों से औसत में लिए जाते हैं। प्रारब्ध कर्म यानि जीव का भाग संचित कर्मों से Average में लेकर बनाया जाता है। यदि 20-20 प्रतिशत लेकर प्रारब्ध बना तो पाप कर्म 50 और पुण्य कर्म 25 बने। इस प्रकार प्रारब्ध कर्म यानि जीव का भाग्य बनता है। इनको प्रारब्ध कर्म कहते हैं।
वेदों को पढ़कर कंठस्थ करने वाले वेदों के गूढ़ रहस्यों को न समझकर उनके विरुद्ध साधना करते-कराते हैं।
वेदों में पत्थर की मूर्ति की पूजा का कहीं उल्लेख नहीं है, वे वेदों के विदान कहलाने वाले पत्थर पूजा करते तथा कराते हैं। वेदों में वर्णित सिरजनहार को भुला दिया है।