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#बौद्ध धर्म
ramanan50 · 1 year
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ल्हासा में मिले इंटरस्टेलर स्पेसशिप पर संस्कृत दस्तावेज
भारत और पश्चिम के बीच ज्ञान प्राप्त करने में महत्वपूर्ण अंतर इस तथ्य में निहित है कि जबकि ज्ञान पश्चिम में एक सकारात्मक अवधारणा है, यह भारत में नकारात्मक अवधारणा है । ज्ञान, अपने मूल रूप में जागरूकता में,हमारे लिए किसी नई और बाहरी चीज का अधिग्रहण नहीं है,बल्कि अज्ञान, भ्रांतियों को दूर करना है अविद्या ।एक बार जब झूठी धारणाओं को हटा दिया जाता है तो वास्तविक ज्ञान आगे चमकता है ।बौद्ध धर्म और जैन…
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dasi-payal · 1 year
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#Real_Facts_About_Buddhism
क्या महात्मा बुद्ध ने कभी कहा कि
वो भगवान हैं ?
अगर नहीं तो फिर हम उन्हें
भगवान क्यों बोलते हैं ?
जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
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todaypostlive · 1 year
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बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा पहुंचे गया, एक महीने के प्रवास में रहेंगे
बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा पहुंचे गया, एक महीने के प्रवास में रहेंगे
गया। बौद्ध धर्म गुरू  दलाई नामा गुरूवार की सुबह  दिल्ली से विशेष चार्टर्ड विमान से  गया एयरपोर्ट पहुंचे। वहां जिले के जिला पदाधिकारी डॉक्टर त्यागराज एसएम ने धर्म गुरू का गर्मजोशी से स्वागत कर पुष्प गुच्छ भेंट किया। इसके उपरांत वरीय पुलिस अधीक्षक हरप्रीत कौर, सचिव बीटीएम सी, तिब्बत मॉनेस्ट्री के सचिव/पदाधिकारी ने भी बौद्ध धर्म गुरू का स्वागत किया। वे फिर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सीधे तिब्बत…
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shopsalary · 2 years
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सनातन धर्म में कौन कौन आते हैं?
सनातन धर्म में कौन कौन आते हैं?
सनातन धर्म को हम जैसा समझते हैं, वो वैसा बिलाकुल भी नहीं हैं। हम ऐसा लगता है। की सनातन धर्म में बस हिंदू ही आते हैं। लकिन ये बिलाकुल भी सत्य नहीं है? यद्यपि आज सनातन का पराया हिंदू से हैं। यहां से ऐसा नहीं है, सनातन धर्म में सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलंबी भी सनातन धर्म का हिसा है, इसली ये बोलना गलत होगा की एक हिंदू धर्म से ही सनातन धर्म है, सनातन धर्म से ही सनातन धर्म है। . ये सब धर्म सनातनी ही…
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naveensarohasblog · 1 year
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#गीता_तेरा_ज्ञान_अमृत_Part_2
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जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान जिस समय (सन् 2012 से लगभग 5550 वर्ष पूर्व) बोला गया, उस समय कोई धर्म नहीं था। हिन्दू धर्म यानि आदि शंकराचार्य द्वारा चलाई गई पाँच देव उपासना वाली परंपरा को अपनाने वाले हिन्दू कहे जाने लगे। (वास्तव में यह सनातन पंथ है जो लाखों वर्षों से चला आ रहा है।) उस (हिन्दू धर्म) की स्थापना आदि (प्रथम) शंकराचार्य जी ने सन् 2012 से 2500 वर्ष पूर्व की थी। आदि शंकराचार्य जी का जन्म ईसा मसीह से 508 वर्ष पूर्व हुआ था। आठ वर्ष की आयु में उन्हें उपनिषदों का ज्ञान हो गया। सोलह वर्ष की आयु में आदि शंकराचार्य जी ने एक विरक्त साधु से दीक्षा ली जो गुफा में रहता था। कई-कई दिन बाहर नहीं निकलता था। उस महात्मा ने आदि शंकराचार्य जी को बताया कि ‘‘जीव ही ब्रह्म है।‘‘ (अयम् आत्मा ब्रह्म) का पाठ पढ़ाया तथा चारों वेदों में यही प्रमाण बताया। लोगों ने आदि शंकराचार्य जी से पूछा कि यदि जीव ही ब्रह्म है तो पूजा की क्या आवश्यकता है? आप भी ब्रह्म, हम भी ब्रह्म (ब्रह्म का अर्थ परमात्मा) इस प्रश्न से आदि शंकराचार्य जी असमंजस में पड़ गए। आदि शंकराचार्य जी ने अपने विवेक से कहा कि श्री विष्णु, श्री शंकर की भक्ति करो।
फिर पाँच देवताओं की उपासना का विधान दृढ़ किया - 1) श्री ब्रह्मा जी 2) श्री विष्णु जी 3) श्री शिव जी 4) श्री देवी जी 5) श्री गणेश जी।
परंतु मूल रूप में इष्ट रूप में तमगुण शंकर जी को ही माना है। यह विधान आदि शंकराचार्य जी ने 20 वर्ष की आयु में बनाया अर्थात् 488 ईशा पूर्व हिन्दू धर्म की स्थापना की थी। उसके प्रचार के लिए भारत वर्ष में चारों दिशाओं में एक-एक शंकर मठ की स्थापना की। आदि शंकराचार्य जी ने
गिरी साधु बनाए जो पर्वतों में रहने वाली जनता में अपने धर्म को दृढ़ करते थे।
पुरी साधु बनाए जो गाँव-2 में जाकर अपने धर्म को बताकर क्रिया कराते थे।
सन्यासी साधु बनाए जो विरक्त रहकर जनता को प्रभावित करके अपने साथ लगाते थे।
वानप्रस्थी साधु बनाए जो वन में रहने वाली जनता को अपना मत सुनाकर अपने साथ जोड़ते थे।
वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) तथा गीता व पुराणों, उपनिषदों को सत्यज्ञानयुक्त पुस्तक मानते थे जो आज तक हिन्दू धर्म के श्रद्धालु इन्हीं धार्मिक ग्रन्थों को सत्य मानते हैं। इस प्रकार हिन्दू धर्म की स्थापना ईसा से 488 वर्ष पूर्व (सन् 2012 से 2500 वर्ष पूर्व) हुई थी। आदि शंकराचार्य जी 30 वर्ष की आयु में असाध्य रोग के कारण शरीर त्यागकर भगवान शंकर के लोक में चले गए क्योंकि वे शंकर जी के उपासक थे, उन्हीं के लोक से इसी धर्म की स्थापना के लिए आए माने गए हैं। उस समय बौद्ध धर्म तेजी से फैल रहा था। उसको उन्हांेने भारत में फैलने से रोका था। यदि बौद्ध धर्म फैल जाता तो चीन देश की तरह भारतवासी भी नास्तिक हो जाते।
ईसाई धर्म की स्थापना:-
श्री ईसा मसीह जी से ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा जी की जब 32 वर्ष की आयु थी, उनको क्रश पर कीलें गाढ़कर विरोधी धर्म गुरूओं ने गवर्नर पर दबाव बनाकर मरवा दिया था।
ईसा जी को उसी प्रभु ने ‘‘इंजिल‘‘ नामक ग्रन्थ देकर उतारा था जिसने गीता तथा वेदों का ज्ञान दिया था। ‘‘इंजिल‘‘ पुस्तक में भिन्न ज्ञान नहीं है क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान तो पहले गीता, वेदों में बताया जा चुका था। वह किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है। वह गीता तथा वेदों वाला ज्ञान मानव मात्र के लिए है। ईसा जी के लगभग छः सौ वर्ष पश्चात् हजरत मुहम्मद जी ने इस्लाम धर्म की स्थापना की। मुहम्मद जी को पवित्र ‘‘र्कुआन् शरीफ‘‘ ग्रन्थ उसी ब्रह्म ने दिया था। इसमें भी भक्ति विधि सम्पूर्ण नहीं है, सांकेतिक है क्योंकि भक्ति का ज्ञान वेदों, गीता में बता दिया था। इसलिए र्कुआन् शरीफ ग्रन्थ में पुनः बताना अनिवार्य नहीं था। जैसे गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में, यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा जिसन�� सर्व सृष्टि की रचना की है, उसके विषय में किसी तत्वदर्शी सन्त से पूछो, वे ठीक-ठीक ज्ञान तथा भक्तिविधि बताऐंगे।
जो सन्त उस पूर्ण परमात्मा का ज्ञान जानता है तो वह सत्य साधना भी जानता है।
बाईबल ग्रन्थ का ज्ञान भी गीता ज्ञान दाता ने ही दिया है, (बाईबल ग्रन्थ तीन पुस्तकों का संग्रह है - 1. जबूर, 2. तौरत, 3. इंजिल) बाईबल ग्रन्थ के उत्पत्ति ग्रन्थ में प्रारम्भ में ही लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्यों को अपनी सूरत अर्थात् स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया है, नर-नारी करके उत्पत्ति की है। छः दिन में सृष्टि की रचना करके परमेश्वर ने 7वें दिन विश्राम किया।
र्कुआन् शरीफ:- पुस्तक र्कुआन् शरीफ में सूरति फूर्कानि नं. 25 आयत नं. 52 से 59 में कहा है कि अल्लाह कबीर ने छः दिन में सृष्टि रची, फिर ऊपर आकाश में तख्त (सिंहासन) पर जा विराजा। उस परमेश्वर की खबर किसी बाहखबर अर्थात् तत्वदर्शी सन्त से पूछो। र्कुआन् के लेख से स्पष्ट है कि र्कुआन् शरीफ का ज्ञान दाता भी उस पूर्ण परमात्मा अर्थात् अल्लाहु अकबर (अल्लाह कबीर) के विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं रखता।
र्कुआन् शरीफ की सूरति 42 की प्रथम आयत में उन्हीं तीन मन्त्रों का सांकेतिक ज्ञान है जो गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में हैं। कहा है कि ब्रह्मणः अर्थात् सच्चिदानन्द घन ब्रह्म की भक्ति के ’’ऊँ-तत्-सत्’’ तीन नाम के स्मरण करो। र्कुआन् शरीफ में सूरति 42 की प्रथम आयत में इन्हीं को सांकेतिक इस प्रकार लिखा हैः- ’’अैन्-सीन्-काॅफ’’
’’अन्’’ हिन्दी का ‘‘अ‘‘ अक्षर है जिसका संकेत ओम् की ओर है। अैन् का भावार्थ ओम् से है, सीन् = स अर्थात् जो गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में दूसरा तत् मन्त्र है, उसका वास्तविक जो मन्त्रा है, उसका पहला अक्षर ’’स’’ है, यही ओम + सीन् या तत् मिलकर सतनाम दो मन्त्र का बनता है और र्कुआन् शरीफ में जो तीसरा मन्त्र ’’काफ’’ = ’’क’’ है जो गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में लिखे तीन नामों में अन्तिम ’’सत्’’ मन्त्र है। (जैसे गुरू मुखी में क को कका, ख को खखा तथा ग को गगा, ऊ को ऊड़ा, ई को इड़ा कहते तथा लिखते हैं। इसी प्रकार कुरान में अ, स, क को लिखा है।)
‘‘सत्‘‘ मन्त्र सांकेतिक है परन्तु वास्तविक जो नाम है, उसका पहला अक्षर ’’क’’ है, (वह ‘‘करीम’’ मंत्र है) जिसे सारनाम भी कहते हैं। जिन भक्तों को मेरे (संत रामपाल दास) से तीनों मन्त्रों का उपदेश प्राप्त है, वे उन दोनों सांकेतिक मन्त्रों के वास्तविक नामों को जानते हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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helputrust · 17 days
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23.05.2024, लखनऊ | बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया I कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने गौतम बुद्ध जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें सादर नमन किया I
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्मदिवस एवं महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है । महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन में संघर्ष, दु:ख और संवेदना को समझा और मानवता के लिए शांति, प्रेम और सहानुभूति का संदेश दिया । उनकी शिक्षाएं हमें बताती हैं कि जीवन में समृद्धि पाने का रास्ता सिर्फ बाह्य संपत्ति और आनंद में ही नहीं है बल्कि आंतरिक शांति और आत्म-समर्पण के माध्यम से भी है । हमें दुख से निपटने के लिए अपने मन को संयमित करना चाहिए और साथ ही दूसरों की सहायता करने का भी प्रयास करना चाहिए । बुद्ध पूर्णिमा के दिन हमें अपने आप को उन्मुक्त करने का संकल्प लेना चाहिए एवं शांति और प्रेम के संदेश को फैलाने का काम करना चाहिए । इस बुद्ध पूर्णिमा पर आइए हम सभी महात्मा बुद्ध के महान संदेशों को याद करने का और उन्हें अपने जीवन में अमल में लाने का संकल्प लें तथा अपने आस-पास के लोगों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का विस्तार करें ताकि हम सभी मिलकर एक समृद्ध और खुशहाल समाज का निर्माण कर सकें ।“
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mittalnisha · 25 days
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क्या महात्मा बुद्ध को यथार्थ ज्ञान नहीं था ?
बौद्ध धर्म को मानते मानते आखिर चीन इतना नास्तिक क्यों हो गया?
देखें साधना चैनल शाम 7:30 बजे।
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dhirandar-4455 · 1 year
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Supreme God is Kabir
🎋बौद्ध धर्म की मान्यता अनुसार परमात्मा नहीं है और न ही कोई सृष्टि रचने वाला है, परन्तु यह उनकी गलत धारणा है। हमारे धर्म ग्रंथों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि के रचयिता हैं जो सबका पालन पोषण करते हैं।
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prince-kumar · 1 year
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#Real_Facts_About_Buddhism
बौद्ध धर्म की मान्यता अनुसार परमात्मा नहीं है और न ही कोई सृष्टि रचने वाला है, परन्तु यह उनकी गलत धारणा है। हमारे धर्म ग्रंथों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि के रचयिता हैं !
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dasi-payal · 1 year
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#Real_Facts_About_Buddhism
एक बार किसी ने आदि शंकराचार्य जी से पूछा कि इस संसार मे सबसे बड़ा पशु कौन है? तब उन्होंने कहा कि जो शास्त्र में लिखी हुई बात को न माने, वो सबसे बड़ा पशु है।
गौतम बुद्ध भी शास्त्रों को नहीं मानते थे।
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rakesh-joher · 1 year
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बौद्ध धर्म की मान्यता अनुसार परमात्मा नहीं है और न ही कोई सृष्टि रचने वाला है, परन्तु यह उनकी गलत धारणा है। हमारे धर्म ग्रंथों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि के रचयिता हैं जो सबका पालन पोषण करते हैं।
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santram · 1 year
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बौद्ध धर्म की मान्यता अनुसार परमात्मा नहीं है और न ही कोई सृष्टि रचने वाला है, परन्तु यह उनकी गलत धारणा है। हमारे धर्म ग्रंथों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही सृष्टि के रचयिता हैं जो सबका पालन पोषण करते हैं।
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iasgkhindi · 2 years
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धर्म और राज्य क्या है ? अवधारणा और विशेषताएं ( What is the Religion and State
परिचय -
धर्म विश्व के अधिकांश देशों की राजव्यवस्थाओं के समक्ष एक जटिल प्रश्न की तरह उपस्थित रहा है । 
कुछ देशों की राजव्यवस्थाएँ धर्म के अधीन चलती रही हैं तो कुछ देशों में शासन ने धर्म का प्रचंड विरोध किया है । 
जहाँ तक भारत का प्रश्न है , यहाँ का समाज प्राचीनकाल से ही धर्म के प्रश्न पर प्रायः विनम्र और लचीला रहा है । इसका सबसे स्पष्ट प्रमाण यही है कि नए - नए धर्मों का जितना विकास भारत में हुआ , उतना कहीं और नहीं ।
 सनातन हिंदू परंपरा के भीतर से यहाँ बौद्ध , सिख और जैन धर्म निकले ।
 कुछ अत्यंत विरल अपवादों को छोड़ दें तो नए - नए धर्मों की स्थापना से भारतीय समाज में विशेष तनाव नहीं देखे गए । 
धार्मिक सहिष्णुता और सर्वधर्मसदभाव ( Religious harmony ) भारतीय परंपरा की सामान्य विशेषताएँ हैं । 
यूरोप की स्थिति इससे अलग थी । वहाँ धर्म के सांगठनिक रूप अर्थात् चर्च का केन्द्रीय महत्त्व था ।
 चर्च ने लगभग एक हज़ार साल तक अपना वर्चस्व इस तरह बनाए रखा कि वहाँ न समाज का विकास हुआ , न राजनीति , अर्थव्यवस्था , दर्शन या कला का ।
 व्यक्ति की स्वतंत्रता का इतना अधिक दमन किया गया कि व्यक्ति चर्च से परेशान हो उठा ।
 चौदहवीं शताब्दी में हुआ पुनर्जागरण ( Renaissance ) , जो आगे चलकर धर्मसुधार आंदोलन ( Reformation ) में रूपांतरित हुआ , अपनी मूल प्रकृति में धर्म के इसी वर्चस्ववादी रूप के प्रति प्रतिक्रियावश पैदा हुआ था ।
  इन सब स्थितियों में 1851 ई . में जॉर्ज जैकब होलिओक नामक विचारक ने धर्मनिरपेक्षता अर्थात् ' सेकुलरिज्म ' के विचार की औपचारिक स्थापना की । 
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no-snowman · 2 years
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हिंदू धर्म आज हिंदू धर्म एक बहुत ही प्राचीन धर्म है जिसका भारत के अधिकांश इतिहास में संस्कृतियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। आधुनिक मुख्यधारा और वैश्विक विस्तार ने इसे दुनिया के सबसे व्यापक धर्मों में से एक बना दिया है। हिंदू धर्म भारतीय उपमहाद्वीप का प्रमुख धर्म है, और दुनिया के सबसे पुराने जीवित धर्मों में से एक है। इसे सनातन धर्म या "सनातन धर्म" भी कहा जाता है। बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म पर हिंदू धर्म का भी एक बड़ा प्रभाव था। हिंदू धर्मग्रंथों को पवित्र ग्रंथों के रूप में जाना जाता है, लेकिन सभी हिंदू उन्हें दिव्य रहस्योद्घाटन नहीं मानते हैं। हिंदू धर्म एक जटिल और विविध धर्म है, जिसका कोई एक संस्थापक या आधिकारिक पाठ नहीं है।
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connecttoindia · 17 days
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बुद्धम् शरणम् गच्छामि ॥ ॥ धम्मम् शरणम् गच्छामि॥ ॥ संघम् शरणम् गच्छामि ॥
अर्थ :
मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ। मैं धर्म की शरण में जाता हूँ। मैं संघ की शरण में जाता हूँ।"
यह बौद्ध धर्म के त्रिरत्न (तीन रत्न) के प्रति श्रद्धा और समर्पण को दर्शाने वाला वाक्यांश है।
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