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#पतंजलि के योग सूत्र
ramanan50 · 1 year
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ल्हासा में मिले इंटरस्टेलर स्पेसशिप पर संस्कृत दस्तावेज
भारत और पश्चिम के बीच ज्ञान प्राप्त करने में महत्वपूर्ण अंतर इस तथ्य में निहित है कि जबकि ज्ञान पश्चिम में एक सकारात्मक अवधारणा है, यह भारत में नकारात्मक अवधारणा है । ज्ञान, अपने मूल रूप में जागरूकता में,हमारे लिए किसी नई और बाहरी चीज का अधिग्रहण नहीं है,बल्कि अज्ञान, भ्रांतियों को दूर करना है अविद्या ।एक बार जब झूठी धारणाओं को हटा दिया जाता है तो वास्तविक ज्ञान आगे चमकता है ।बौद्ध धर्म और जैन…
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pradhyayoga · 10 months
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योग क्या है ?
योग क्या है ?
हम में से ज्यादा तर लोग आज योग को मात्र शारीरिक स्वाथ्य के रूप में लेते है , कुछ आसान और शरीर की अलग अलग मुद्राओ को करना ही योग मानते है ,आधुनिक युग में योग के अलग -अलग तरीके आपको दिखाए जाते है जो की लुभावने होते है पर क्या वो आपके लिए लाभकारी है ,ये समझने के लिए पहले हमे योग क्या है ये जानना होगा -
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शरीर, मन और आत्मा का एकीकरण है योग
शरीर, मन और आत्मा का एकीकरण ही योग कहा गया है ,योग का अर्थ ही है जोड़ना / मिलाना ,और भी सरल शब्दों में कहा जाये तो अपने शरीर को स्वस्थ्य से ,मन को अच्छे विचारो से और अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाना /जोड़ना या मिलाने का प्रयास करना ही योग है ,
योग एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण को समर्पित है। यह एक अद्वैत सिद्धांत है जो मनुष्य के सम्पूर्ण विकास और पूर्णता को प्राप्त करने की मार्गदर्शन करता है। योग आत्मा की अनुभूति और उसके अभिविकास को संभव बनाता है, जिससे हम आनंद, शांति, स्वस्थता और सच्ची संतुष्टि की अनुभूति कर सकते हैं।
योग का शास्त्रीय आधार पतंजलि के 'योग सूत्र' माना जाता है। पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जिन्हें 'अष्टांग योग' कहा जाता है। ये अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। इन अंगों के माध्यम से, योगी अपने मन को नियंत्रित करते हैं, शरीर को स्वस्थ रखते हैं और आत्मा के साथ अद्वैत अनुभव करते हैं।
योग के माध्यम से हम अपने शरीर की स्थायित्वता, लचीलापन, शक्ति और स्थै��्य को विकसित करते हैं। आसनों के द्वारा हम अपने शरीर को सुव्यस्थ और लचीला बनाते हैं। प्राणायाम के माध्यम से हम अपने प्राण (श्वास-प्रश्वास) को नियंत्रित करते हैं और अपने मन को शांत करते हैं। प्रत्याहार के द्वारा हम अपने इंद्रियों को इन्द्रिय विषयों से वश में लाते हैं और मन को बाहरी विषयों से आंतरिक मंदिर में नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार योगी अपने मन को नियंत्रित कर अपनी चिंताओं और विचारों को स्वयं संयमित करते हैं।
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योग का ध्यान और समाधि अंग मन को एकाग्र करने, उसे अपनी सच्ची पहचान में ले जाने और आत्मा के साथ एकीकृत होने के लिए हैं। योगी ध्यान के माध्यम से अपने आंतरिक स्वरूप की पहचान करते हैं और समाधि में वह अपनी अस्तित्वता को भुल जाता है और परमात्मा के साथ अभिन्न हो जाता है। इस स्थिति में, योगी को सच्ची आनंद, शांति और आत्मिक समृद्धि की अनुभूति होती है।
योग आजकल एक प्रमुख ध्यान विधा के रूप में भी चर्चा में है। यहालांकि, योग केवल एक ध्यान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक पूर्ण जीवनशैली को भी दर्शाता है। योग का अभ्यास व्यक्ति को तनाव, रोग, मानसिक चिंताओं और अनियंत्रित मन के साथ निपटने में मदद करता है। योग के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत करते हैं, स्वस्थ और खुश जीवन जीते हैं और स्वयं को संतुष्ट रखते हैं।
योग का महत्वपूर्ण अंश योगासन है, जिसमें विभिन्न शारीरिक पोज़ और आसनों को प्रदर्शित किया जाता है। योगासनों के अभ्यास से हमारे शरीर की लचीलापन, संतुलन, स्थायित्व और शक्ति में सुधार होती है। इसके अलावा, योग आसनों के द्वारा हम विभिन्न रोगों को नियंत्रित कर सकते हैं, जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग, अस्थमा, अवसाद आदि।
योग का अभ्यास मनोरोगों में भी मदद करता है। ध्यान और मन को नियंत्रित करके हम स्वयं को शांत और स्वस्थ बना सकते हैं। योग का अभ्यास करने से मन में स्थिरता और एकाग्रता की स्थिति बढ़ती है, जिससे समस्याओं और टेंशन को नियंत्रित किया जा सकताहै।
योग का अभ्यास सिर्फ शारीरिक और मानसिक लाभों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा के साथ एकीकृत होने की भी साधना है। जब हम योग के माध्यम से अपने मन को नियंत्रित करते हैं और अपनी आंतरिक स्वरूप को पहचानते हैं, तब हम एक ऊँचे स्तर पर उठते हैं और अपने स्वभाव के मूल्यों को समझते हैं। इस प्रकार, योग हमें सच्ची स्वतंत्रता, आनंद और मुक्ति की अनुभूति दिलाताहै।
योग हमारे शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण को साधना करने और समर्पित होने का एक विज्ञान है। इसके माध्यम से हम अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं और एक सुखी, स्वस्थ और पूर्ण जीवन जी सकते हैं। योग का अभ्यास करने से हम अपनी सामर्थ्यों को पहचानते हैं और आपातकाल में भी स्थिर रहते हैं। इसलिए, योग हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है और हमें स्वस्थ, स्थिर और संतुष्ट बनाने में सहायता प्रदान करता है। योग का अभ्यास आपकी जीवनशैली को सुधारता है और आपको एक सकारात्मक दिशा में ले जाता है।
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jyotishwithakshayg · 8 months
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💥भारत के ऋषि - मुनियों का विश्व के महान वैज्ञानिक होने का परिचय 💥
पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया...
👉1. अश्विनीकुमार -:
मान्यता है कि ये देवताओं के चिकित्सक थे। कहा जाता है कि इन्होंने उड़ने वाले रथ एवं नौकाओं का आविष्कार किया था।
👉2. धन्वंतरि -:
इन्हें आयुर्वेद का प्रथम आचार्य व प्रवर्तक माना जाता है। इनके ग्रंथ का नाम धन्वंतरि संहिता है। शल्य चिकित्सा शास्त्र के आदि प्रवर्तक सुश्रुत और नागार्जुन इन्हीं की परंपरा में हुए थे।
👉3. ऋषि भारद्वाज -:
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
👉4. ऋषि विश्वामित्र -:
ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
👉5. गर्गमुनि -:
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्री कृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनि जी ने पहले बता दिए थे।
👉6. पतंजलि -:
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
👉7. महर्षि कपिल -:
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक व सूत्रों के रचयिता थे महर्षि कपिल, जिन्होंने चेतना की शक्ति एवं त्रिगुणात्मक प्रकृति के विषय में महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
👉8. कणाद ऋषि -:
ये वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक हैं। ये अणु विज्ञान के प्रणेता रहे हैं। इनके समय अणु विज्ञान दर्शन का विषय था, जो बाद में भौतिक विज्ञान में आया।
👉9. सुश्रुत -:
ये शल्य चिकित्सा पद्धति के प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे। इन्होंने सुश्रुत संहिता नामक ग्रंथ में शल्य क्रिया का वर्णन किया है। सुश्रुत ने ही त्वचारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) और मोतियाबिंद की शल्य क्रिया का विकास किया था। पार्क डेविस ने सुश्रुत को विश्व का प्रथम शल्य चिकित्सक कहा है।
👉10. जीवक -:
सम्राट बिंबसार के एकमात्र वैद्य। उज्जयिनी सम्राट चंडप्रद्योत की शल्य चिकित्सा इन्होंने ही की थी। कुछ लोग मानते हैं कि गौतम बुद्ध की चिकित्सा भी इन्होंने की थी।
👉11. बौधायन -:
बौधायन भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुलयशास्त्र के रचयिता थे। आज दुनिया भर में यूनानी उकेलेडियन ज्योमेट्री पढाई जाती है मगर इस ज्योमेट्री से पहले भारत के कई गणितज्ञ ज्योमेट्री के नियमों की खोज कर चुके थे। उन गणितज्ञ में बौधायन का नाम सबसे ऊपर है, उस समय ज्योमेट्री या एलजेब्रा को भारत में शुल्वशास्त्र कहा जाता था।
👉12. भास्कराचार्य -:
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
👉13. चरक -:
चरक औषधि के प्राचीन भारतीय विज्ञान के पिता के रूप में माने जातें हैं। वे कनिष्क के दरबार में राज वैद्य (शाही चिकित्सक) थे, उनकी चरक संहिता चिकित्सा पर एक उल्लेखनीय पुस्तक है। इसमें रोगों की एक बड़ी संख्या का विवरण दिया गया है और उनके कारणों की पहचान करने के तरीकों और उनके उपचार की पद्धति भी प्रदान करती है। वे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण पाचन, चयापचय और प्रतिरक्षा के बारे में बताते थे और इसलिए चिकित्सा विज्ञान चरक संहिता में, बीमारी का इलाज करने के बजाय रोग के कारण को हटाने के लिए अधिक ध्यान रखा गया है। चरक आनुवांशिकी (अपंगता) के मूल सिद्धांतों को भी जानते थे।
👉14. ब्रह्मगुप्त -:
7 वीं शताब्दी में, ब्रह्मगुप्त ने गणित को दूसरों से परे ऊंचाइयों तक ले गये। गुणन के अपने तरीकों में, उन्होंने लगभग उसी तरह स्थान मूल्य का उपयोग किया था, जैसा कि आज भी प्रयोग किया जाता है। उन्होंने गणित में शून्य पर नकारात्मक संख्याएं और संचालन शुरू किया। उन्होंने ब्रह्म मुक्त सिध्दांतिका को लिखा, जिसके माध्यम से अरब देश के लोगों ने हमारे गणितीय प्रणाली को जाना।
👉15. अग्निवेश :- ये शरीर विज्ञान के रचयिता थे।
👉16. शालिहोत्र :- इन्होंने पशु चिकित्सा पर आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की।
👉17. व्याडि :-
ये रसायन शास्त्री थे। इन्होंने भैषज (औषधि) रसायन का प्रणयन किया। अलबरूनी के अनुसार, व्याडि ने एक ऐसा लेप बनाया था, जिसे शरीर पर मलकर वायु में उड़ा जा सकता था।
👉18. आर्यभट्ट :-
इनका जन्म 476 ई. में कुसुमपुर ( पाटलिपुत्र ) पटना में हुआ था। ये महान खगोलशास्त्र और व गणितज्ञ थे। इन्होने ही सबसे पहले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की वियाख्या की थी और सबसे पहले इन्होने ही बताया था की धरती अपनी ही धुरी पर धूमती है और इसे सिद्ध भी किया था। और यही नही इन्होने हे सबसे पहले पाई के मान को निरुपित किया।
👉19. वराहमिहिर :-
इनका जन्म 499 ई . में कपित्थ (उज्जैन ) में हुआ था। ये महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्र थे। इन्होने पंचसिद्धान्तका नाम की किताब लिखी थी जिसमे इन्होने बताया था कि, अयनांश , का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर होता होता है | और इन्होने शून्य और ऋणात्मक संख्याओ के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया।
👉20. हलायुध :-
इनका जन्म 1000 ई . में काशी में हुआ था। ये ज्योतिषविद , और गणितज्ञ व महान वैज्ञानिक भी थे। इन्होने अभिधानरत्नमाला या मृतसंजीवनी नमक ग्रन्थ की रचना की | इसमें इन्होने या की पास्कल त्रिभुज ( मेरु प्रस्तार ) का स्पष्ट वर्णन किया है।पुरातन ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन ऋषि-मुनि एवं दार्शनिक हमारे आदि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अनेक आविष्कार किए और विज्ञान को भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
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bhramriyog · 8 months
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प्राणायाम: प्राणायाम शरीर, आत्मा और मन को कैसे लाभ पहुंचाता है?
पतंजलि के योग सूत्र के अनुसार, प्राणायाम सिर्फ एक साँस लेने का व्यायाम नहीं है; यह ध्यान का मार्ग है। प्राणायाम प्राचीन योग प्रणाली में एक मुख्य अभ्यास है जो सचेत और नियंत्रित सांस विनियमन पर केंद्रित है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण विकसित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। “प्राणायाम” दो संस्कृत शब्दों का संयोजन है: “प्राण,” जिसका अर्थ है जीवन शक्ति या महत्वपूर्ण ऊर्जा, और “यम”, जिसका…
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jkstvnews101 · 9 months
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International Yoga Day 2023: 180 से अधिक देशों में बनाया गया अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस
 दुनिया भर में योग और ध्यान के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 21 जून को अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है आवर और दुनिया भर के लोग इसमें भाग लेतें हैं
इस वर्ष विश्वभर में 9वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2023 मनाया जा रहा है। इस वर्ष योग दिवस 2023 की थीम ‘वसुधैव कुटुंबकम के लिए योग’ रखी गई है। वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ है- धरती ही परिवार है। योग प्राचीन काल से भारत की संस्‍कृति का हिस्‍सा रहा है. भारत में ऋषि मुनियों के दौर से योगाभ्यास होता आ रहा है। ये योगाभ्यास बहुत ही शानदार तरीके से मनाया जाता हैं लोग यहाँ लोग योगा अभ्यास बहुत ही शांति पूर्वक करते हैं यहाँ हट तरीके के लोग आते जातें है read more
और पढिये: भृगु सहिंता ग्रंथ: भृगु शास्त्री पंडित निखिल शर्मा यजमान की पत्रिका देखकर कर बता देतें है भविष्य।
ये दिन हर एक भारतवासी को गौरवांवित करने वाला दिन है क्‍योंक‍ि अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस के जरिए भारतीय संस्‍कृति से जुड़ा योग विदेशों तक पॉपुलर हो गया, योग पर भारतीय संस्कृति मे पहली पुस्तक योग गुरु पतंजलि द्वारा योग सूत्र लिखी गई। पहले के समय में ऋषि-मुनि योग करके ही खुद को निरोग बनाकर रखते थे।
और पड़े :-International Yoga Day 2023: 180 से अधिक देशों में बनाया गया अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस
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prabhatprakashan12 · 10 months
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हीलिंग इज द न्यू हाई 
हीलिंग इज द न्यू हाई 
वेक्स किंग सबसे कठिन क्षण
मेरे जीवन के सबसे कठिन क्षणों को मेरे शरीर ने भी महसूस किया था। जब मैं उस ब्रेकअप से गुजरा तो मुझे जो दर्द महसूस हुआ, वह केवल भावनात्मक नहीं था। सड़क पर चलते हुए मैंने कई बार ऐसा कुछ देखा, जो मुझे मेरी पूर्व प्रेमिका की याद दिलाता था—कोई महिला, जो उसके समान कपड़े पहने हुए थी या बहस करता कोई जोड़ा, जिन्हें देखकर वह मेरे कान में कुछ फुसफुसाती थी। ऐसा कुछ भी देखकर मेरा दिल भारी हो जाता था। लगता, जैसे छाती पर कोई बोझ रहा है। साँस लेना मुश्किल हो जाता और फिर मैं बीमार महसूस करने लगता। मेरे पैर अचानक भारी हो जाते और चलना मुश्किल हो जाता। ऐसा महसूस होता, जैसे मेरे अंग दूसरे के साथ सद्भाव में काम करना भूल गए हैं।
वेक्स किंग  की  पुस्तक  योजना
अगर कहूँ तो  मैं जब  हीलिंग इज द न्यू हाई  बना रहा था, तब मैं इसमें योग दर्शन के कुछ सिद्धांत शामिल करना चाहता था; क्योंकि इन सिद्धांतों ने सच में मेरी यात्रा में शानदार ढंग से मुझे मार्ग दिखाया है। कई लोग योग के शारीरिक आसनों का अभ्यास शुरू करते हैं और उसके बाद योग दर्शन की जानकारी पाते हैं; लेकिन मैंने पहले इस दर्शन को जाना। मैं इस बात से प्रेरित हुआ था कि बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने अपने बेहतर जीवन या उपचार या विकास के कुछ हिस्से का श्रेय अपने योग अभ्यास को द���या था।
अतः एक दिन मैंने हीलिंग इज द न्यू हाई खरीदी, जिसका शीर्षक था—‘द योग सूत्राज ऑफ पतंजलि’, यानी ‘पतंजलि के योग सूत्र’। संस्कृत के ‘सूत्र’ शब्द का अंग्रेजी अर्थ ‘थ्रेड’, यानी धागा होता है और यह पुस्तक ज्ञान या शिक्षा के धागों की खोज है, जो योग के समग्र अभ्यास को सक्षम बनाते हैं। सूत्रों के अंग्रेजी अनुवाद के साथ यह पुस्तक यह मार्गदर्शन भी करती है कि कैसे हर व्यक्ति योग अभ्यासी को उसके ‘स्व’ की ओर—ज्ञानोदय की ओर ले जाने में मदद कर सकता है।
आंतरिक उपचार कैसा दिखता है?
जब मैं स्व-उपचार के बारे में बात करता हूँ, तो मुझसे अकसर पूछा जाता है कि सही मायने में यह कैसा दिखता है? और यह वास्तव में एक कठिन प्रश्न है। मैं आपको यह नहीं बताना चाहता कि आपको कैसा महसूस करना चाहिए, या आपको किस परिणाम के लिए लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए, क्योंकि इस मामले में ‘चाहिए’ जैसा कुछ नहीं होता। अलग-अलग लोग अलग-अलग चीजें महसूस करते हैं। जब वे अपने आंतरिक कार्य में गहराई में डूबते हैं तो विभिन्न परिवर्तनों और विकास पैटर्न का अनुभव करते हैं।
मुझे लगता है कि यह थोड़ा सा अस्वीकरण है। लेकिन इस प्रक्रिया में आप कुछ सामान्य प्रभाव अनुभव कर सकते हैं। इन्हें इस समझ के साथ पढ़ें कि आपकी यह यात्रा बस, आपके लिए अनूठी है। यदि आप इनमें से किसी भी चीज का अनुभव नहीं करते हैं, या यदि आप पूरी तरह से अलग-अलग चीजों का अनुभव करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप इसे गलत कर रहे हैं ………..
और पढ़ें: हीलिंग इज द न्यू हाई
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Which yoga is best for long life? लम्बा जीवन जीने के लिए कौन सा योगासन करें?
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Which yoga is best for long life? प्राणायाम करने से हम मानसिक और आध्यात्निक तौर पर सशक्त बनते है, वस्तुतः प्राणायाम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'प्राण+आयाम'...प्राण का अर्थ होता है जीवनी शक्ति, आयाम के दो अर्थ है, पहला कंट्रोल करना या रोकना और दूसरा लम्बा या विस्तृत करना...इसी प्रकार अपनी देह के जीवन की अवस्था का नाम प्राण है और उस अवस्था के अवरोध को हम आयाम कहते है...इसका अर्थ यह है कि जीवन की अवस्था के अवरोध का नाम ही प्राणायाम हैं (Which yoga is best for long life?...महर्षि पतंजलि ने इसे परिभाषित करते हुए प्राणायाम योग सूत्र 2/49 में कहा है :- तस्मित् सति श्वासप्रश्वास योर्गविविच्छेद
Which yoga is best for long life? आज हम सबको अपनी जड़ों की ओर लौटने का समय आ गया है. क्योंकि जिस हम लोग जिस जीवन शैली के जाल में फंस गये है उससे निकलने के उपायों पर अगर हमने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो हम अपने इस अनमोल से जीवन से आनंद खो देंगे. और किस तरह ये वक्त हम सबकी मुट्ठी से निकल जाएगा और किस तरह हम आप पर उम्र ढलने के चिन्ह दिखने लगेंगे पता ही नहीं चलेगा. इस लिए आवश्यक है कि हम समय रहते हमारे जीवन पर मंडराते खतरे से निपटने के लिए सही प्रयास करते हुए अपनी दिशाएं तय करें. आपको बता दें की वास्तव हम किन दिशाओं और प्रयासों की बात कर रहे हैं और मैं किस जीवनशैली की बात कर रहा हूं, और जीवन शैली की के चलते आपके ऊपर मंडरा रहे कौन-कौन से खतरे की तरफ इशारा कर रहा हूं, वास्तव में मैं योग, साधना,ध्यान और प्राणायाम की बात कर रहा हूं. क्योंकि यहीं तो हमारी भारतीय संस्कृति की जड़ें है और इन्ही जड़ों की तरफ लौटने की हम बात क्र रहे हैं. जैसा की आप्जनते हैं हमने पिछले कुछ दशकों में पूरी दुनिया को योग से परिचित कराया है किन्तु अभी भी हमारी युवा पीढ़ी केवल विश्व योग दिवस के दिन ही योग और प्राणायाम से जुड़ती है बाकी के 364 दिनों में हम-आप फिर से उसी जीवन की आपा-धापी और भागदौड़ का हिस्सा हो जाते है और फाल्स्वरूप हम वक्त से पहले ही बूढ़े हो जाते हैं. आज के समय में मनुष्य कितना कमजोर है यह यथार्थ ने केवल हमने बल्कि पूरी दुनिया ने कोरोना लहर के दौरान देख लिया, जान ले की इस बीमारी ने अनेकों ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाया जो शरीर से तो पूरी तरह स्वस्थ दिखाई देते थे किन्तु अंदर से कमजोर थे और जिनके अंदर रोग से लड़ने की क्षमता थी ही नहीं. क्योंकि हम-सबने अपने शरीर को कभी रोगों से लड़ने के लिए तैयार ही नहीं किया. हम-सबने कभी अपनी आतंरिक शक्ति पर काम करना जरूरी ही नहीं समझा या फिर इस सबके लिए समय ही नहीं निकाल पाए. इसका परिणाम ये हुआ कि एक सूक्ष्म से वायरस ने पुरे विश्व में मानव जाति के लिए घोर आपदा खड़ी कर दी, और जब आपदा हम-सबके सिर पर आकर खड़ी हो गई तब हमें अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ प्रयत्न करने की याद आई किन्तु इससे पहले की हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ पाती उससे पहले ही हम बीमारी का शिकार हो गए ।
योग हमें बनाता है अंदर से मजबूत- Yoga makes us strong from inside
आपको बताते चलें योग शब्द की उतपत्ति आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा हुई थी. योग शब्द का शाब्दिक अर्थ संस्कृत धातु के 'युज' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता स्वयं की चेतना अथवा आत्मा का मिलन या फिर इसका अर्थ समाधि से भी ले सकते है. वैसे तो योग भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी अमूल्य धरोहर है. किन्तु वर्तमान परिवेश में लोग योग को मात्र एक शारीरिक व्यायाम के रूप में ही देखते हैं, परंतु इसके विपरीत वास्तव में योग एक विज्ञान है और योग विज्ञान में जीवनशैली का पूर्ण सार समाहित है, योग वह क्रिया है जिसके माध्यम से अध्यात्म को समझा जा सकता है,योग के जनक के रूप में हम महर्षि पतंजलि को जानते है,महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पूरी तरह से योग विज्ञानं को समर्पित है और इन सूत्रों का ध्येय योग सूत्र के अभ्यास को जनसामान्य के समझने योग्य और आसान बनाना है, पतंजलि योग दर्शन के अऩुसार ''योगश्चित्तवृत्त निरोध''. अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो 'चित्त की वृत्तियों के निरोध की क्रिया ही योग है'
प्राणायाम से बनाएं खुद को रखें निरोग और स्वस्थ- Keep yourself healthy with Pranayama
योग विज्ञानं में प्राणायाम का सबसे अधिक महत्व है, क्योंकि प्राणायाम सीधे हमारे प्राण से जुड़ा है, प्राणायाम के द्वारा हमें मानसिक और आध्यात्निक तौर पर मजबूती मिलती है, जैसा किह्म्ब्ता चुके हैं प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है 'प्राण+आयाम'...प्राण का अर्थ होता है जीवनी शक्ति और आयाम के दो अर्थ है, पहला नियंत्रित करना या रोकना और दूसरा लम्बा या विस्तृत करना...हमारी देह के जीवन की अवस्था का नाम ही प्राण है और इस अवस्था के अवरोध को आयाम कहां जाता है...इसका अर्थ यह है कि जीवन की अवस्था के अवरोध का नाम ही प्राणायाम हैं...पतंजली ने प्राणायाम योग सूत्र 2/49 में इसे परिभाषित करते हुए कहा है:- तस्मित् सति श्वासप्रश्वास योर्गविविच्छेद आपको बता दें श्वासों को भीतर-बाहर छोड़ना ही केवल प्राणायाम नहीं है क्योंकि जब हम श्वास लेते है तो केवल ऑक्सीजन हमारे भीतर प्रवेश नहीं करती बल्कि एक दिव्य शक्ति,एक दिव्य ज्योति भी वायु साथ भीतर जाती है और यही हमारे प्राणों की रक्षा करती है, जिसे हम प्राणवायु, प्राणशक्ति भी कहते है, प्राणायाम एक ऐसा माध्यम है जो हम-सबको इस शक्ति का बोध कराता है, तथा इस दिव्य शक्ति से हमारा साक्षात्कार कराता है, प्राणायाम पंचकोष- 1. प्राण 2. अपान 3.उदान 4.समान 5.व्यान आदि पांच कोषों को दूर करने का काम करता है, जैसा की सर्व विदित है प्राण का मुख्य प्रवेश द्वार नासिका है, नासिका छिद्रों द्वारा श्वासों का अंदर व बाहर की दिव्यता का अनुभव करना है, प्राणायाम का उद्देश्य हमें आतंरिक जगत की दिव्यता का बोध कराना है
तनाव से मुक्ति के लिए करें यह प्राणायम- Do this pranayama to get rid of stress
आज के परिवेश में हर व्यक्ति किसी न किसी बात से परेशान है, तनाव ग्रस्त है, किन्तु योग विज्ञानं में प्राणायामों को अपनाकर आप तनावमुक्त जीवन जी सकते है, कितु इसके लिए आवश्यक है इन प्राणायामों का शुद्ध अंतकरण से नियमित अभ्यास. तनावमुक्त जीवन जीने के लिए योग में मुख्यत पांच तरह के प्राणायाम होते है, वो इस प्रकार है:-  1.भ्रामरी प्राणायाम 2. नाड़ी शोधन 3. योग निद्रा 4. ध्यान 5. ऊ.जप उपरोक्त पांच प्राणायामों को अपनाकर आप न केवल तनाव मुक्त जीवन जी सकते हैं बल्कि अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाकर स्वस्थ और लम्बा जीवन (Which yoga is best for long life? भी जी सकते हैं. Read the full article
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supermamaworld · 2 years
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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर हिन्दी निबंध पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2015 को पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया। इस दिन करोड़ों लोगों ने विश्व में योग किया जो कि एक रिकॉर्ड था। योग व्यायाम का ऐसा प्रभावशाली प्रकार है, जिसके माध्याम से न केवल शरीर के अंगों बल्कि मन, मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाया जाता है। यही कारण है कि योग से शा‍रीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जा सकती है।  योग शब्द की उत्पत्त‍ि संस्कृति के युज से हुई है, जिसका मतलब होता है आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन। योग लगभग दस हजार साल से भी अधिक समय से अपनाया जा रहा है।  वैदिक संहिताओं के अनुसार तपस्वियों के बारे में प्राचीन काल से ही वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी योग और समाधि को प्रदर्श‍ित करती मूर्तियां प्राप्त हुईं। हिन्दू धर्म में साधु, संन्यासियों व योगियों द्वारा योग सभ्यता को शुरू से ही अपनाया गया था, परंतु आम लोगों में इस विधा का विस्तार हुए अभी ज्यादा समय नहीं बीता है। बावजुद इसके, योग की महिमा और महत्व को जानकर इसे स्वस्थ्य जीवनशैली हेतु बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है, जिसका प्रमुख कारण है व्यस्त, तनावपूर्ण और अस्वस्थ दिनचर्या में इसके सकारात्मक प्रभाव।   योग की प्रामाणिक पुस्तकों जैसे शिवसंहिता तथा गोरक्षशतक में योग के चार प्रकारों का वर्णन मिलता है।  1 मंत्रयोग, जिसके अंतर्गत वाचिक, मानसिक, उपांशु आर अणपा आते हैं। 2 हठयोग  3 लययोग  4 राजयोग, जिसके अंतर्गत ज्ञानयोग और कर्मयोग आते हैं।  व्यापक रूप से पतंजलि औपचारिक योग दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं। पतंजलि के योग, बुद्धि नियंत्रण के लिए एक प्रणाली है, जिसे राजयोग के रूप में जाना जाता है। पतंजलि के अनुसार योग के 8 सूत्र बताए गए हैं, जो निम्न प्रकार से हैं -  1 यम - इसके अंतर्गत सत्य बोलना, अहिंसा, लोभ न करना, विषयासक्ति न होना और स्वार्थी न होना शामिल है। 2 नियम - इसके अंतर्गत पवित्रता, संतुष्ट‍ि, तपस्या, अध्ययन, और ईश्वर को आत्मसमर्पण शामिल हैं। 3 आसन - इसमें बैठने का आसन महत्वपूर्ण है  4 प्राणायाम - सांस को लेना, छोड़ना और स्थगित रखना इसमें अहम है। 5 प्रत्याहार - बाहरी वस्तुओं से, भावना अंगों से प्रत्याहार।  6 धारणा - इसमें एकाग्रता अर्थात एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना महत्वपूर्ण है। 7 ध्यान - ध्यान की वस्तु की प्रकृति का गहन चिंतन इसमें शामिल है। 8 समाधि - इसमें ध्यान की वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना शामिल है। इसके दो प्रकार हैं- सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प में https://www.instagram.com/p/CfDiVa_v0hO/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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vaidicphysics · 4 years
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वेद की प्रतिष्ठा एवं मानवता की सम्पूर्ण विजय के लिए मिल कर खड़े हो जाओ
मेरे स्नेही आर्यजनो! विभिन्न विवादों को छोड़कर वेद की प्रतिष्ठा एवं मानवता की सम्पूर्ण विजय के लिए मिल कर खड़े हो जाओ। आर्य निर्मात्री सभा, दर्शन योग महाविद्यालय, वानप्रस्थ साधक आश्रम, आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, परोपकारिणी सभा, श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास, दोनों सार्वदेशिक सभा (वामपंथी अग्निवेश जी को छोड़कर), गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, सभी गुरुकुल, पतंजलि योगपीठ, वैदिक मिशन ट्रस्ट (आचार्य धर्मबन्धु जी), डी.ए.वी., आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा, सभी आर्य व वैदिक संस्थानों को केवल वेद व ऋषियों के महान् ज्ञान-विज्ञान व आदर्शों की प्रतिष्ठा के लिए ही प्रयत्न करना चाहिए। जीवात्मा साकार वा निराकार का जैसे विवाद कृपया बन्द कर दीजिये।
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मैं तो वेद की वैज्ञानिकता की प्रतिष्ठा और आधुनिक भौतिकी को एक नयी दिशा देकर सम्पूर्ण मानव जाति को वैदिक सनातन धर्म के ध्वज तले लाने के लिए कृतसंकल्प हूँ। इस विषय में मैं सभी आर्यजनों के साथ सदैव खड़ा हूँ। प्रत्येक आर्य विद्वान्, आर्य नेता अथवा सामान्य आर्यजन मेरा है और मैं भी उसका हूँ। इसलिए मैं इस परिवार को एक सूत्र में बंधा देखना चाहता हूँ। मैंने जो वीडियो बनाया था, वह कुछ युवकों के शंका समाधान के लिए था, न कि किसी का विरोध वा समर्थन के लिए। कोई मेरा विरोध करे, वह भी मेरा है और जो कोई मेरा समर्थन करे, वह भी मेरा है।
मैं इससे आगे बढ़कर वेदों, ऋषियों व देवों की जय बोलने वाले सभी पौराणिक, जो अपने को सनातनी कहते हैं, से भी विनम्र प्रार्थना करुँगा कि उन्हें यदि वेद, देवों व ऋषियों के महान् ज्ञान-विज्ञान की प्रतिष्ठा में मेरा कोई सहयोग चाहिए, तो मैं उनके साथ भी कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़ा हूँ और उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वे ऋषि दयानन्द जी को एक बार निष्पक्ष होकर पढ़ने का मानस बनाएँ। सुनी-सुनी बातों के आधार पर आर्य समाज के विरुद्ध कोई एक पक्षीय धारणा नहीं बनाएँ। वेद हम सबका है, ऋषि, मुनि व देव गण हमारे सबके हैं, फिर क्यों हम दूर-दूर खड़े होकर एक दूसरे को नीचा दिखा रहे हैं?
इसके पश्चात् मैं संसार के सभी मत पन्थों के अनुयायी एवं वैज्ञानिकता पर विश्वास करने वाले सज्जनों से निवेदन करता हूँ कि वे यदि स्वयं को तथा हमें भी मानव समझते हैं, तो सम्पूर्ण मानवता की विजय कैसे होगी? मानवता का सम्पूर्ण हित कैसे होगा? कैसे मानव-मानव के बीच की दीवार गिराई जा सकेगी? कैसे विज्ञान हम सबको स्थायी सुख व शान्ति दे सकेगा? कैसे विश्व भर में एक सत्य मत की स्थापना होगी? क्यों हम सभी विभिन्न मत-मजहबों में बंटते गये व जा रहे हैं? यदि आप इन सब विषयों पर सच्चे हृदय एवं प्रखर मस्तिष्क से विचार व कार्य करना चाहते हैं, तब मैं मानवता के ऐसे प्रत्येक हितैषी का साथ देना चाहूँगा।
आइये! हम सब मिलकर इस सम्पूर्ण विश्व को परमात्मा का एक प्यारा परिवार बनाएं, जिससे हम सभी सुख-शान्ति से रह सकें।
आपका -आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
प्रमुख, श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास (वैदिक एवं आधुनिक भौतिक विज्ञान शोध संस्थान)
https://drive.google.com/file/d/1vfhINnKHVKQCujcyepdPWq1tsqeC5Z6S/view?usp=sharing
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yogatoursindia · 4 years
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::"सत्य":: सत्य पर आधारित जीवन जीना योग के यमों में से एक है: सत्य। सत्य का अभ्यास करने का अर्थ है हमारी भावनाओं, विचारों और शब्दों में सच्चाई होना। इसका मतलब है खुद के साथ और दूसरों के साथ ईमानदार होना। सत्य का आमतौर पर अर्थ माना जाता है झूठ न बोलना। सत् और तत् धातु से मिलकर बना है सत्य, जिसका अर्थ होता है यह और वह- अर्थात यह भी और वह भी, क्योंकि सत्य पूर्ण रूप से एकतरफा नहीं होता। रस्सी को देखकर सर्प मान लेना सत्य नहीं है, किंतु उसे देखकर जो प्रतीति और भय उत्पन हुआ, वह भी सत्य है। सत्य को समझने के लिए एक तार्किक बुद्धि की आवश्यकता होती है। तार्किक‍ बुद्धि आती है भ्रम और द्वंद्व के मिटने से। भ्रम और द्वंद्व मिटता है मन, वचन और कर्म से एक समान रहने से | #यम #सत्य #पतंजलि #सूत्र #yama #limbsofyoga #patanjali #satya #yog #yoga #yogaflow #yogalove #yogaroutine #yogadaily #yogaforeveryone #yogaeveryday #yogaguru #i #yogapath #yogatoursindia
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thegyangangasblog · 3 years
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Benefits of Yoga in Hindi
योग के कई लाभ हैं, लेकिन आइए कुछ अधिक सामान्य लोगों पर करीब से नज़र डालें। योग आपके शरीर में तनाव हार्मोन को कम करके और आपके सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाकर आपके मूड को बेहतर बनाने में मदद करता है। यह आपको यह भी सिखा सकता है कि आप अपने परिवेश के अनुकूल कैसे बेहतर हो सकते हैं। ऐसा करने से, यह चिंता और क्रोध को कम करने और आपके मूड को समग्र रूप से सुधारने के लिए फायदेमंद है।
yoga quotes in hindi : योग आकार में आने के सबसे फायदेमंद और प्रभावी तरीकों में से एक है। यह लचीलेपन को बढ़ा सकता है, तनाव और दर्द को कम कर सकता है और आपको बेहतर नींद में मदद कर सकता है। यह फोकस और एकाग्रता को भी बढ़ाता है और आपके समग्र आत्म-सम्मान का निर्माण करता है। अष्टांग में, अष्टांग योग पतंजलि द्वारा योग सूत्र में पाया जाने वाला एक विशिष्ट प्रकार का आसन है। हठ योग में, कुछ आसन शुरुआती लोगों को दिए जाते हैं जबकि कुछ नहीं। यदि आप योग के लिए नए हैं, तो आप एक शुरुआती कक्षा से शुरू कर सकते हैं और वहां से अपना रास्ता तय कर सकते हैं। आप डीवीडी, ऑनलाइन कक्षाओं या किताबों के साथ घर पर खुद भी विभिन्न प्रकार के योग का पता लगा सकते हैं। यदि आप अपने योग अभ्यास को अगले स्तर तक ले जाने के लिए तैयार हैं, तो अष्टांग और हठ योग आपको अपने लक्ष्यों तक पहुँचने में मदद कर सकते हैं। अष्टांग योग हठ योग से कैसे भिन्न है?
योग कुछ प्रकार के होते हैं, लेकिन उन सभी का एक ही लक्ष्य होता है: अपने मन और शरीर के साथ काम करना ताकि आप बेहतर महसूस कर सकें। उदाहरण के लिए, हठ योग में, आप श्वास पर ध्यान केंद्रित करेंगे। कुंडलिनी में, आप अपनी आंतरिक शक्ति से जुड़ने पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अष्टांग में, आप उन पोज़ पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो धीरज का निर्माण करके आपको मजबूत और अधिक लचीला बनने में मदद कर��ंगे।
कुछ लोग सोच रहे होंगे कि अष्टांग योग क्या है और यह अन्य प्रकार के योगों से अलग क्यों है। इसे समझने के लिए हमें बहुत पीछे जाने की जरूरत है- भारत। अष्टांग योग होने से पहले, योगिक जीवन ध्यान और आध्यात्मिक विकास से भरा हुआ था। यह कार्य और प्रार्थना की प्रणाली पर आधारित एक प्राकृतिक जीवन शैली का पालन करने का एक तरीका है जो आपको ज्ञानोदय तक पहुंचने में मदद करता है।
किसी भी उम्र या शारीरिक क्षमता के लोगों के लिए योग के कई फायदे हैं। यह मन, शरीर और आत्मा को मजबूत कर सकता है, मूड में सुधार कर सकता है, तनाव के स्तर को कम कर सकता है, चोट को रोक सकता है और लचीलेपन को बढ़ा सकता है। यह आपको बेहतर नींद में भी मदद कर सकता है। योग एक प्राचीन परंपरा है जो आज भी प्रचलित है। योग कई प्रकार के होते हैं लेकिन सबसे सामान्य प्रकार हठ योग है। इस शैली में सांस लेने की तकनीक में कुछ बदलाव के साथ अधिक आराम की मुद्रा की विशेषता है। इस प्रकार के योग के एक उन्नत रूप को अष्टांग योग कहा जाता है जिसमें अधिक चुनौतीपूर्ण रहते हुए प्रतिदिन अभ्यास करने के लिए उच्च स्तर की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
ऐसे कई प्रकार के योग हैं। कुछ लोग हठ, कुंडलिनी, विनयसा या अयंगर योग करना पसंद करते हैं। प्रत्येक प्रकार के योग के अपने विशिष्ट लाभ होते हैं।
अष्टांग योग एक विशिष्ट प्रकार का आसन है जो अष्टांग विनयसा योग प्रणाली में पाया जाता है, जो आज सबसे लोकप्रिय प्रकार के योगों में से एक है। प्रणाली में आठ प्राथमिक आसन शामिल हैं, और छह सहायक सटीक अनुक्रमों और आंदोलनों के साथ हैं।
योग आकार में आने के सबसे फायदेमंद और प्रभावी तरीकों में से एक है। यह लचीलेपन को बढ़ा सकता है, तनाव और दर्द को कम कर सकता है, आपको बेहतर नींद में मदद कर सकता है, फोकस और एकाग्रता को बढ़ा सकता है, आपके समग्र आत्म-सम्मान का निर्माण कर सकता है और मूड को बढ़ा सकता है। योग सांस पर केंद्रित है, जो आपको आराम करने और वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
शुरुआती लोगों के लिए सही योग मुद्रा खोजना मुश्किल हो सकता है। कई अलग-अलग प्रकार के योग मुद्राएं हैं, लेकिन सबसे आम है खड़े, बैठे और झुके हुए संस्करण। अलग-अलग लोगों के शरीर में अलग-अलग स्थान होंगे जो इन आसनों का अभ्यास करते समय असहज महसूस करते हैं, यही कारण है कि आपके लिए आरामदायक स्थिति खोजना महत्वपूर्ण है। दीवार के सामने खड़े होकर अपने पैरों को कंधे-चौड़ाई से अलग रखें। अपने हाथों को सीधे अपने पीछे दीवार पर रखें।
यह एक शुरुआती के लिए एक समस्या है जो सुनिश्चित नहीं है कि कौन सा सही मुद्रा है। वे एक अलग प्रकार के योग को भी पूरी तरह से आजमाना चाह सकते हैं क्योंकि जब वे एक स्थिति में फंस जाते हैं तो उनके लिए प्रगति करना निराशाजनक होता है। अपने आस-पास योग कक्षा खोजना और स्वतंत्र रूप से अभ्यास करने के लिए समय और पैसा निकालना आसान नहीं हो सकता है।
अपने शरीर के लिए एक आरामदायक मुद्रा खोजने के लिए, अलग-अलग पोज़ में अभ्यास करने का प्रयास करें जब तक कि आप सही महसूस न करें। तब, आपको पता चल जाएगा कि आपके लिए कौन सी मुद्रा सबसे अच्छी है!
यह लचीलेपन की कमी या खराब मुद्रा के कारण हो सकता है। यह निर्धारित करने के लिए कि कौन सी मुद्रा सबसे अधिक आरामदायक होगी, किसी को अपनी अनूठी सीमाओं की पहचान करनी चाहिए और योग मुद्रा का अभ्यास करते समय उनके भीतर रहना चाहिए।
सबसे आम योग मुद्राएं खड़े, बैठे और झुके हुए संस्करण हैं। अलग-अलग लोगों के शरीर में अलग-अलग स्थान होंगे जो इन आसनों का अभ्यास करते समय असहज महसूस करते हैं, इसलिए आपके लिए काम करने वाली मुद्रा खोजना महत्वपूर्ण है।
शुरुआती लोगों के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि वे अपनी सांस लेने पर काम करें। श्वास योग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके बिना किसी मुद्रा को ठीक से पकड़ना वास्तव में कठिन हो सकता है। सुनिश्चित करें कि आप अपनी सांस को सुनें और एक लय खोजें जो आपके लिए आरामदायक हो। जब आप हेडस्टैंड की तरह पोज़ कर रहे हों, तो सुनिश्चित करें कि अपने शरीर को एक स्थिति में रखने पर ध्यान न दें; इसके बजाय, अपने हाथों और पैरों की गति पर ध्यान दें।
योग का अभ्यास करने के कई लाभ हैं, जिनमें से एक सबसे लोकप्रिय तनाव कम करना है। यहां शुरुआती लोगों के लिए कुछ पोज़ दिए गए हैं जो इसमें मदद कर सकते हैं! यह योगा पोज़ फॉर बिगिनर्स आपको अपना संतुलन खोजने में मदद करेगा, तनाव को दूर करेगा जो अंदर बनता है, और योग के लाभों का आनंद लें।
योग का अभ्यास करने के शीर्ष लाभों में से एक तनाव में कमी है। शुरुआती लोगों के लिए योगा पोज़ इसमें मदद कर सकता है! जब आप अपने शरीर को संतुलित करना सीखते हैं और अपनी भावनाओं के माध्यम से काम करते हैं, तो आप तनाव से मुक्त नई ऊर्जा का अनुभव करेंगे।
निम्नलिखित पोज़ न केवल शुरुआती लोगों के लिए बढ़िया हैं, बल्कि वे किसी के लिए भी फायदेमंद हैं, जिन्हें तनाव प्रबंधन में मदद की ज़रूरत है। आप इस मुद्रा के साथ अपने संतुलन पर काम कर सकते हैं! 1) स्थायी योद्धा I - ताड़ासन / पर्वत मुद्रा में खड़े हों। वहां से अपने दाहिने घुटने को जमीन पर टिकाएं, अपने बाएं पैर को आगे की ओर रखें और कमर के बल झुकें। वहां से अपने दाहिने घुटने को जमीन पर टिकाएं, अपने बाएं पैर को आगे की ओर रखें और कमर के बल झुकें। दाहिने पैर के पिछले हिस्से को दोनों हाथों से पकड़ें। 2) स्टैंडिंग टिड्डी - ताड़ासन / माउंटेन पोज़ में अपने बाएं पैर को पीछे ले जाकर शुरू करें और फिर खुद को एक तख़्त में नीचे कर लें।
यदि आप योग के लिए नए हैं, तो इसे आजमाने के लिए अभी से बेहतर समय नहीं है। यह तनाव को दूर करने और आपके संपूर्ण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करने का एक शानदार तरीका है। एक नई मुद्रा की कोशिश करते समय, धीमा हो जाएं और सांस लेते और छोड़ते हुए अपने शरीर को सुनें। जैसे ही आप मुद्रा में जाते हैं, श्वास लेते हैं, जैसे ही आप इससे बाहर आते हैं, साँस छोड़ते हैं।
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thesahitya5 · 3 years
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आरोग्य सूत्र - भारत की प्राचीन विधा योग
आरोग्य सूत्र – भारत की प्राचीन विधा योग
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष – योग भारत की प्राचीन विधा है| हमारे अनेक ग्रंथ जो योग पर लिखे गए हैं| उनमें से अधिकांश में आध्यात्मिक उन्नति के बारे में ही उल्लेख किया गया है| पतंजलि योग शास्त्र,हठयोग प्रदीपिका, व अन्य अनेक ग्रंथ योग पर लिखे गए हैं| हमारे ऋषि मुनियों ने ईश्वर प्राप्ति के लिए योग का मार्ग उत्तम माना है| ईश्वर प्राप्ति को ही केंद्र मानकर इन ग्रंथों की रचना हुई| इसी कारण यह विधा…
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kaminimohan · 4 years
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योग, रोग और आसन 
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-कामिनी मोहन पाण्डेय। 
-Yoga For Health - Yoga From Home
इस बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2020 की थीम कोरोना वायरस से बचे रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बहुत महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि संयुक्तराष्ट्रसंघ के द्वारा International Yoga Day 2020 की थीम - "Yoga For Health - Yoga From Home"
भारत में हजारों वर्षों से चली आ रही योग की सनातन परंपरा को पहली बार 11 दिसम्बर 2014 को  संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को  विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की मान्यता दी। 21 जून 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। इस अवसर पर 192 देशों और 47 मुस्लिम देशों में योग दिवस का आयोजन किया गया। पातंजलि -योगसूत्र के रचनाकार है जो हिन्दुओं क�� छः दर्शनों (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त) में से एक है। पुष्यमित्र कण्व वंश के संस्थापक ब्राह्मण राजा के अश्वमेध यज्ञों की घटना को लिया जा सकता है। यह घटना ई.पू. द्वितीय शताब्दी की है। इसके अनुसार महाभाष्य की रचना का काल ई.पू. द्वितीय शताब्दी का मध्यकाल अथवा 150 ई.पूर्व माना जा सकता है।
 विश्व योग दिवस 21 जून ही क्यों?
भारतीय संस्कृति के अनुसार, ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। 21 जून साल का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इस दिन सूर्य जल्दी उदय होता है और देर से ढलता है इसीलिए ही 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।
वर्तमान समय में अपनी व्यस्त जीवन शैली के कारण लोग असंतोष का शिकार है। अवसाद से ग्रसित लोगों की संख्या करोड़ों में है। अवसाद से मुक्ति पाने में योग सहायक है। योग से न केवल व्यक्ति का तनाव दूर होता है बल्कि मन और मस्तिष्क भी शांत रहता है। योग हमारे शरीर को पवित्र कर आत्‍मा से साक्षात्कार कराता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से परेशान लोगों के लिए योग बहुत ही उपयोगी है। योग का प्रभाव सभी को ज्ञात है, इसीलिए योग विदेशों में भी प्रसिद्ध है। योग स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ मोक्ष -परम आनंद-आत्मा का परमात्मा के साथ जुड़ाव करने में भी सक्षम है। जन्म मरण के चक्र से मुक्ति का नाम परम आनंद है। सुख दुख के अनुभव से परे चले जाने का नाम परम आनंद है। योग निष्ठा की दृष्टि से जो कर्म किए जाते हैं उनमें फल और आसक्ति का त्याग किया जाता है। योग निष्ठा उसका नाम है जिसमें जीव, ईश्वर और प्रकृति तीनों पदार्थों को अनादि और नित्य मानकर निष्काम भाव से कर्म किया जाता है।
 पतंजलि योग सूत्र में महर्षि पतंजलि ने विभिन्न ध्यानपारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर उनकों सूत्रों में संहिताबद्ध किया है। यह सूत्र योग के आठ अंगों को दर्शाते है। इसमें कुल 195 सूत्र है जिन्हे चार पदों में विभाजित किया गया है।
समाधि पद - इसमें 52 सूत्र है। - इसके अनुसार मन की वृतियों का निरोध ही योग हैं।
साधना पद - इसमें 55 सूत्र है। - क्रिया योग क्या है और उसके अंगों का वर्णन इस पद में शामिल है। तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
विभूति पद - इसमें भी 55 सूत्र है। - इस अध्याय में संयम का वर्णन है। जिसमे ध्यान, धारणा और समाधि यह योग के आठ अंगों में से अंतिम तीन अंग शामिल है।
केवल्य पद - इसमें 34 सूत्र है। - परममुक्ति पर आधारित यह अध्याय सबसे छोटा है।
पातंजलि ने  योगसूत्र में योग के लिए कहा है    योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः  चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। हम इस वाक्य के दो अर्थ लगा सकते हैं।चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम
और इस अवस्था को लाने के उपाय का नाम योग हैं।
 मनुष्य सदा ही संयोग चाहता है लेकिन उसे हमेशा वियोग ही मिलता है। इसीलिए संसार को दुख रूप कहा गया है भगवत गीता के आठवें अध्याय के 15वें श्लोक में दुःखालयमशाश्वतम् -दुख के स्थान रूप आया है।
पूरा श्लोक इस प्रकार है-
मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: 8।।15।।
-परम सिद्धि को प्राप्त महात्माजन मुझको प्राप्त होकर दुखों के घर एवं क्षणभंगुर पुनर्जन्म को नहीं प्राप्त होते।
गीता में ‘योग’ का अर्थ मुख्य रूप से समता है। इसके अतिरिक्त गीता में योग की तीन परिभाषा��ं भी मिलती हैं जो कि दूसरे अध्याय के क्रमश: 48वें एवं 50वें श्लोक में तथा छठे अध्याय के 23वें श्लोक में देखी जा सकती हैं। ये परिभाषाएं क्रमश: इस प्रकार हैं 
“समत्वं योग उच्यते”(गीता 2/48)
“योग: कर्मसु कौशलम्” (गीता 2/50)
तं विद्याद्दु:खसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्। (गीता 6/23)
गीता के तीनों श्लोकांश के पूरे श्लोक के अर्थ को समझते हैं-
योगस्थः कुरु कर्माणि, योग में स्थित होकर कर्म करो। 
योग में स्थित होकर केवल ईश्वर के लिए कर्म करने को कहा है।
“योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते”।।
(गीता  2/48)
आसक्ति का त्याग करके सिद्धि -असिद्धि में सम रहकर योग में स्थित होकर कर्मों को कर यह समत्व ही योग है।
'योगः कर्मसु कौशलम्‌' कर्मों में कुशलता ही योग है।
योग: कर्मसु कौशलम्’ यह श्लोकांश योगेश्वर श्रीकृष्ण के श्रीमुख से श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय के 50वें श्लोक से उद्धृत है। 
“बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। 
तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम्” (गीता 2।।50।।)
सम बुद्धि से युक्त मनुष्य जीवित अवस्था में ही पाप और पुण्य दोनों का त्याग कर देता है अतः योग में लग जा, क्योंकि कर्मों में योग ही कुशलता है।
‘योग: कर्मसु कौशलम्’  के दो अर्थ लिये जा सकते हैं –
1. कर्मसु कौशलं योग: अर्थात्
 कर्मों में कुशलता ही योग है।
२. कर्मसु योग: कौशलम् अर्थात् 
कर्मों में योग ही कुशलता है।
भगवान श्रीकृष्ण योग में स्थित होकर कर्म करने की आज्ञा देते हैं- ऐसे में योगः कर्मसु कौशलम् का सही अर्थ कर्मों में योग ही कुशलता है। कर्मों का महत्व नहीं है बल्कि योग समता का ही महत्व है।
तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा
(गीता।।6.23।।)
-  जिसमें दुखों के संयोग का ही वियोग है, उसी को योग नाम से जानना चाहिए। वह योग न उकताये हुए अर्थात् धैर्य और उत्साह युक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना ही कर्तव्य है।
(1)  पातंजलि योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृतिनिरोधः (1/2)  चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
(2)  सांख्य दर्शन के अनुसार - पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते।  पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।
(3) विष्णु पुराण के अनुसार - योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
(4)  भगवद्गीता के अनुसार - सिद्धासिद्धयो समोभूत्वा समत्वं योग उच्चते (2/48) दुख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रहना योग है।
(5) भगवद्गीता के अनुसार - तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्   (गीता 2/50) कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है।
(6)  बौद्ध धर्म के अनुसार - कुशल चितैकग्गता योगः   कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
पतंजलि के 'अष्टांग योग' के आठ अंग हैं:
योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः (योग सूत्र 2॥२८॥)
योगाङ्गानुष्ठाना - योग के आठ अंगों का अनुष्ठान और उनके आचरण से अशुद्धियों का नाश होता है। ज्ञानदीप्तिराविवेक, ज्ञान और विवेक का प्रकाश ख्यातिपर्यंत हो जाता है।
योग के ये आठ अंग क्या क्या हैं?
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि (योग सूत्र  2॥२९॥)
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि - ये योग के अष्टांग आठ अंग हैं। 
 यम (पांच परिहार): अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयासक्ति और गैर स्वामिगत।
 नियम (पांच धार्मिक क्रिया): पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान  को आत्मसमर्पण।
आसन :मूलार्थक अर्थ बैठने का आसन और पतंजलि सूत्र में ध्यान।
 प्राणायाम (सांस को स्थगित रखना): प्राण, सांस, अयाम, को नियंत्रित करना या बंद करना। साथ ही जीवन शक्ति को नियंत्रण करने की व्याख्या की गयी है।
प्रत्याहार (अमूर्त): बाहरी वस्तुओं से भावना अंगों के प्रत्याहार।
 धारणा (एकाग्रता): एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाना।
 ध्यान :ध्यान की वस्तु की प्रकृति गहन चिंतन।
समाधि  (विमुक्ति):ध्यान के वस्तु को चैतन्य के साथ विलय करना। इसके दो प्रकार है - सविकल्प और अविकल्प। अविकल्प समाधि में संसार में वापस आने का कोई मार्ग या व्यवस्था नहीं होती। समाधि को योग पद्धति की चरम अवस्था माना जाता है।       
 प्राण अर्थात् साँस, आयाम यानी दो साँसों मे दूरी बढ़ाना, श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को  प्राणायाम कहते हैं।
   श्वास को धीमी गति से गहरे खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करते हैं कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करते हैं  कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। हम साँस लेते है तो सिर्फ़ हवा नहीं खींचते, हम उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को अपने भीतर आत्मसात करते है। प्राणों को आयाम देने की भी कई विधियां है इनमें भस्त्रिका, कपालभाति , वाह्य, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, उद्गीत, प्रणव, अग्निसार , उज्जायी, सीत्कारी, शीतली, चंंदभेेदी प्राणायाम प्रमुखता से किए जाते हैं।
 रोग और आसन
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रोग मुक्त होने के लिए हमें योग की शरण में जाना चाहिए। योग का अर्थ है दो का एक में जुड़ना, जीवात्मा का परम आत्मा से जुड़ना। 
आसन के लिए चित्तवृत्ति का निरोध पहली शर्त है। 
इसके लिए खुली हवा और मनोरम प्राकृतिक स्थान का चयन करना चाहिए।
पेट की बीमारियों में- उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, वज्रासन, योगमुद्रासन, भुजंगासन, मत्स्यासन।
सिर की बीमारियों में- सर्वांगासन, शीर्षासन, चन्द्रासन।
मधुमेह- पश्चिमोत्तानासन, नौकासन, वज्रासन, भुजंगासन, हलासन, शीर्षासन।
 गला- सुप्तवज्रासन, भुजंगासन, चन्द्रासन।
गठिया– पवनमुक्तासन, पद्मासन, सुप्तवज्रासन, मत्स्यासन, उष्ट्रासन।
गर्भाशय– उत्तानपादासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, ताड़ासन, चन्द्रानमस्कारासन।
 कमर दर्द – हलासन, चक्रासन, धनुरासन, भुजंगासन।
फेफड़े- वज्रासन, मत्स्यासन, सर्वांगासन।
यकृत- लतासन, पवनमुक्तासन, यानासन।
गुदा,बवासीर,भंगदर - उत्तानपादासन, सर्वांगासन, जानुशिरासन, यानासन।
गैस– पवनमुक्तासन, जानुशिरासन, योगमुद्रा, वज्रासन।
जुकाम– सर्वांगासन, हलासन, शीर्षासन।
मानसिक शांति – सिद्धासन, योगासन, शतुरमुर्गासन, खगासन योगमुद्रासन।
 रीढ़ की हड्डी - सर्पासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, शतुरमुर्गासन करें।
 गठिया - पवनमुक्तासन, साइकिल संचालन, ताड़ासन करें।
गुर्दे के रोग– सर्वांगासन, हलासन, वज्रासन, पवनमुक्तासन करें।
गला- सर्पासन, सर्वांगासन, हलासन, योगमुद्रा करें।
हृदय रोग- शवासन, साइकिल संचालन, सिद्धासन किया करें।
दमा के लिए- सुप्तवज्रासन, सर्पासन, सर्वांगासन, पवनतुक्तासन, उष्ट्रासन करें।
रक्तचाप के लिए– योगमुद्रासन, सिद्धासन, शवासन, शक्तिसंचालन क्रिया करें।
सिर दर्द के लिए- सर्वांगासन, सर्पासन, वज्रासन, धनुरासन, शतुरमुर्गासन करें।
पाचन शक्ति के लिए- यानासन, नाभि आसन, सर्वांगासन, वज्रासन करें।
मोटापा घटाने के लिए– पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, सर्पासन, वज्रासन, नाभि आसन करें।
आंखों के लिए- सर्वांगासन, सर्पासन, वज्रासन, धनुरासन, चक्रासन करें।
 बालों के लिए– सर्वांगासन, सर्पासन, शतुरमुर्गासन, वज्रासन करें।
प्लीहा के लिए- सर्वांगासन, हलासन, नाभि आसन, यानासन करें।
 कद बढ़ाने के लिए- ताड़ासन, शक्ति संचालन, धनुरासन, चक्रासन, नाभि आसन करें।
कानों के लिए– सर्वांगासन, सर्पासन, धनुरासन, चक्रासन करें।
नींद के लिए– सर्वांगासन, सर्पासन, सुप्तवज्रासन, योगमुद्रासन करें।
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mdctiindia · 4 years
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हिंदू दर्शन के प्राचीन मूलभूत सूत्र के रूप में योग की चर्चा की गई है और शायद सबसे अलंकृत पतंजलि योगसूत्र में इसका उल्लेख किया गया है। अपने दूसरे सूत्र में पतंजलि, योग को कुछ इस रूप में परिभाषित करते हैं: " योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "- योग सूत्र 1.2 अतः योग तथा आध्यात्म हेतु अपने मन, वचन तथा कर्मा को एकाग्रचित करने हेतु योग तथा प्राणायाम अवश्य अपनायें। अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें 📲 6392568066 हमारा मिशन: स्वस्थ भारत _ समृद्ध भारत #mdctiindia #mdcti #theknowledgehub #mdvti #mdvtiindia #yogaeverydamnday #yogawithadriene #yogadiploma #yoga #yogapractice #yogainspiration #yogaposes #yogateacher #yogacards #ayurveda #admissionnow #get #you #youtube #youth (at The Knowledge Hub) https://www.instagram.com/p/B_wgFnunrLw/?igshid=1t24ioh4yb4hp
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theindiapost · 5 years
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विद्यार्थी काल से ही योगाभ्यास मे रूचि आवश्यक - डॉ नवदीप जोशी
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राष्ट्रीय खेल दिवस: सेंट मार्क्स गर्ल्स स्कूल में 130 छात्राओं ने योग उत्सव में लिया हिस्सा, इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉक्टर नवदीप जोशी अध्यक्ष योग स्पोर्ट एसोसिएशन, इंडिया एवं डायरेक्टर नवयोग ग्राम (सूर्योदय सेवा समिति ) रहे। उन्होंने कहा विद्यार्थी काल से यदि बच्चों मे योगाभ्यास की रूचि पैदा कर दी जाय तो उसका जीवन उत्साह से भरा रहता है। पतंजलि सूत्र मे कहा है सुखी मनुष्यों के साथ मैत्री , दुखी मनुष्यों के साथ दया , पुण्यात्मा के साथ प्रसन्नता , पापीयों के साथ उपेक्षा की भावना करने से मन शुद्ध एवं निर्मल हो जाता है । जो सफलता के लिए ज़रूरी है ।  सेंट मार्क्स गर्ल्स स्कूल,पश्चिम विहार नई दिल्ली में योग उत्सव का आयोजन 29 अगस्त 2019 को राष्ट्रीय खेल दिवस के उपलक्ष्य में किया गया जिसमें 8 विद्यालयों के 130 छात्राओं ने हिस्सा लिया। 2 वर्गों में यह प्रतियोगिता करवाई गई, जिसमें 12 वर्ष से कम व 16 वर्ष से कम छात्राओं ने हिस्सा लिया। प्रतियोगिता में एकल प्रतियोगिता व समूह प्रतियोगिता शामिल की गई। Read the full article
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swamigyan · 5 years
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📚सिद्धार्थ-हरमन हेस-ओशो की प्रिय पुस्तकें📚 हरमन हेस की सिद्धार्थ बहुत ही विरल पुस्‍तकों में से एक है। वह पुस्‍तक उसकी अंतर्तम गहराई से आयी है। हरमन हेस सिद्धार्थ से ज्‍यादा सुंदर और मूल्‍यवान रत्‍न कभी नहीं खोज पाया। जैसे वह रत्‍न तो उसमें विकसित ही हो रहा था। वह इससे ऊँचा नहीं जा सका। सिद्धार्थ हेस की पराकाष्‍ठा है। वह बुद्ध को छोड़ कर अपने किसी अहंकार के कारण नहीं जा रहा। वह किसी और बड़े गुरु में नहीं जा रहा। बाद में सिद्धार्थ एक नाविक बन जाता है। लोगों को नदी पार करते-करते वह नदी के भावों में बह जाता है। कब नदी उदास होती है, कब नदी शांत होती है, कब उसमें उत्‍तेजना आती है, कब वह प्रसन्‍न होती है। कब वह क्रोध में उफनती है। ये सारे बोध वह पीता रहता है आपने अंतस में। वह अपने उद्वेग भी देखता रहता है। धीरे-धीरे वह शांत हो जाता है। और वह उस सब को पा लेता है। जिस के लिए उसने जीवन दाव पर लगया था। उसकी सुवास, उसकी सुगंध नदी पार जाने वाले महसूस करने लगते है। उसकी आंखे नदी की गहराई से भी गहरी और शांत हो जाती है। हरमन हेस ने सिद्धार्थ लिखा नहीं है....वह एक जर्मन लेखक था। वह भारत के धर्म संप्रदाय के विषय में भी ज्‍यादा नहीं जान पाया। पर उसका पात्र जो उसने अपनी कलम से पैदा किया सच में जीवित हो उठा है। उपन्‍यास के खत्‍म होते-होते आदमी उसमें खो जाता है। ☀️OG☀️ सदगुरू ओशो पतंजलि का योग सूत्र-4 https://www.instagram.com/p/Bx2xE0cFhIh/?igshid=p7rfij3c4m0k
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