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#प्रसिद्ध कृष्ण
loksutra · 2 years
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IND vs ENG 2रा ODI खेळत आहे 11 खेळाडूंच्या यादीचा अंदाज आजचा सामना - IND vs ENG 2रा ODI 11: श्रेयस अय्यर विराट कोहलीची जागा घेईल का? येथे भारत आणि इंग्लंडची संभाव्य प्लेइंग इलेव्हन आहे
IND vs ENG 2रा ODI खेळत आहे 11 खेळाडूंच्या यादीचा अंदाज आजचा सामना – IND vs ENG 2रा ODI 11: श्रेयस अय्यर विराट कोहलीची जागा घेईल का? येथे भारत आणि इंग्लंडची संभाव्य प्लेइंग इलेव्हन आहे
भारत विरुद्ध इंग्लंड खेळत आहे 11: भारत आणि इंग्लंड गुरुवारी, 14 जुलै 2022 रोजी 3 सामन्यांच्या वनडे मालिकेतील दुसऱ्या सामन्यात आमनेसामने येतील. हा सामना लंडनमधील लॉर्ड्सवर होणार आहे. 12 जुलै रोजी केनिंग्टन ओव्हल येथे झालेल्या पहिल्या एकदिवसीय सामन्यात भारताने इंग्लंडचा 10 गडी राखून पराभव केला. भारत विजयाच्या वाटेवर आहे. टी-20 मालिकेप्रमाणेच त्याला हा सामना जिंकून एकदिवसीय मालिकाही जिंकायची आहे. जर…
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darshaknews · 2 years
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विराट कोहलीने कृष्णाला दिल्या 'टिप्स', पुढच्याच चेंडूवर अय्यरला बाद केले, पाहा
विराट कोहलीने कृष्णाला दिल्या ‘टिप्स’, पुढच्याच चेंडूवर अय्यरला बाद केले, पाहा
भारत विरुद्ध लीसेस्टरशायर: भारतीय संघ सध्या इंग्लंड दौऱ्यावर आहे. या दौऱ्यावर टीम इंडिया 5 कसोटी सामन्यांच्या मालिकेतील उर्वरित 1 सामना खेळणार आहे, परंतु सध्या भारतीय संघ लीसेस्टरशायरविरुद्ध सराव सामना खेळत आहे. वास्तविक, 4 भारतीय खेळाडू लीसेस्टरशायरकडून खेळत आहेत. भारताचा वेगवान गोलंदाज प्रसिध कृष्णाही लीसेस्टरशायरकडून खेळत आहे. या सराव सामन्याच्या पहिल्या दिवशी प्रसिध कृष्ण हा एकमेव भारतीय…
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marathinewslive · 2 years
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भारत विरुद्ध झिम्बाब्वे, दुसरी एकदिवसीय, भारताची भविष्यवाणी इलेव्हन: भारताने विजयी संयोजनासह टिंकर करावे का? | क्रिकेट बातम्या
भारत विरुद्ध झिम्बाब्वे, दुसरी एकदिवसीय, भारताची भविष्यवाणी इलेव्हन: भारताने विजयी संयोजनासह टिंकर करावे का? | क्रिकेट बातम्या
भारत आणि झिम्बाब्वे यांच्यातील पहिला एकदिवसीय सामना गुरुवारी एकतर्फी झाला. भारताचा स्टँड-इन कर्णधार नंतर केएल राहुल हरारे स्पोर्ट्स क्लब येथे नाणेफेक जिंकून त्याने झिम्बाब्वेविरुद्ध प्रथम गोलंदाजी करण्याचा निर्णय घेतला. भारताने झिम्बाब्वेला १८९ धावांत गुंडाळले अक्षर पटेल (२४ धावांत ३ बाद), दीपक चहर (२७ धावांत ३ बाद), प्रसिद्ध कृष्ण (50 साठी 3) आणि मोहम्मद सिराज (36 धावांत 1 बाद). प्रत्युत्तरात…
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vaidicphysics · 3 months
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वेदों पर किये गये आक्षेपों का उत्तर
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भूमिका सभी वेदानुरागी महानुभावो! जैसा कि आपको विदित है कि मैंने विगत श्रावणी पर्व वि० सं० २०८० तदनुसार ३० जुलाई २०२३ को सभी वेदविरोधियों का आह्वान किया था कि वे वेदादि शास्त्रों पर जो भी आक्षेप करना चाहें, खुलकर ३१ दिसम्बर २०२३ तक कर सकते हैं। हमने इस घोषणा का पर्याप्त प्रचार किया और करवाया भी था। इस पर हमें कुल १३४ पृष्ठ के आक्षेप प्राप्त हुए हैं। इन आक्षेपों को हमने अपने एक पत्र के साथ देश के शंकराचार्यों के अतिरिक्त पौराणिक जगत् में महामण्डलेश्वर श्री स्वामी गोविन्द गिरि, श्री स्वामी रामभद्राचार्य, श्री स्वामी चिदानन्द सरस्वती आदि कई विद्वानों को भेजा था। आर्यसमाज में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, परोपकारिणी सभा, वानप्रस्थ साधक आश्रम (रोजड़), दर्शन योग महाविद्यालय (रोजड़), गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार तथा सभी प्रसिद्ध आर्य विद्वानों को भेजकर निवेदन किया था कि ऋषि दयानन्द के २०० वें जन्मोत्सव फाल्गुन कृष्ण पक्ष दशमी वि० सं० २०८० तदनुसार ५ मार्च २०२४ तक जिन आक्षेपों का उत्तर दिया जा सकता है, लिखकर हमें भेजने का कष्ट करें। उस उत्तर को हम अपने स्तर से प्रकाशित और प्रचारित करेंगे।
यद्यपि मुझे ही सब प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए, परन्तु मैंने विचार किया कि इन आक्षेपों का उत्तर देने का श्रेय मुझे ही क्यों मिले और वेदविरोधियों को यह भी न लगे कि आर्यसमाज में एक ही विद्वान् है। इसके साथ मैंने यह भी विचार किया कि मेरे उत्तर देने के पश्चात् कोई विद्वान् यह न कहे कि हमें उत्तर देने का अवसर नहीं मिला, यदि हमें अवसर मिलता, तो हम और भी अच्छा उत्तर देते। दुर्भाग्य की बात यह है कि निर्धारित समय के पूर्ण होने के पश्चात् तक कहीं से कोई भी उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। बड़े-बड़े शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर, महापण्डित, गुरु परम्परा से पढ़े महावैयाकरण, दार्शनिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता, योगी एवं वेद विज्ञान अन्वेषक कोई भी एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे पाये। तब यह तो निश्चित हो ही गया कि ये आक्षेप वा प्रश्न सामान्य नहीं हैं। आक्षेपकर्त्ताओं ने पौराणिक तथा आर्यसमाजी दोनों के ही भाष्यों को आधार बनाकर गम्भीर व घृणित आक्षेप किये हैं। उन्होंने गायत्री परिवार को भी अपना निशाना बनाया है, परन्तु सभी मौन बैठे हैं, लेकिन मैं मौन नहीं रह सकता। इस कारण इन आक्षेपों का धीरे-धीरे क्रमश: उत्तर देना प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं जो उत्तर दूँगा उसको कोई भी वैदिक विद्वान्, जो आज मौन बैठे हैं, गलत कहने के अधिकारी नहीं रह पायेंगे, न मेरे उत्तर और वेदमन्त्रों के भाष्यों पर नुक्ताचीनी करने के अधिकारी रहेंगे। आज धर्म और अधर्म का युद्ध हो रहा है, उसका मूक दर्शक सच्चा वेदभक्त नहीं कहला सकता। मैंने चुनौती स्वीकारी तो है, उनकी भाँति मौन तो नहीं बैठा। वेद पर किये गये आक्षेपों पर मौन रहना भी उन आक्षेपों का मौन समर्थन करना ही है। यद्यपि मैं बहुत व्यस्त हूँ, पुनरपि धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न का उत्तर देता रहूँगा। मैं सभी उत्तरदायी महानुभावों से दिनकर जी के शब्दों में यह अवश्य कहना चाहूँगा—
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। मनुष्य इस संसार का सबसे विचारशील प्राणी है। इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड में जहाँ भी कोई विचारशील प्राणी रहते हैं, वे भी सभी मनुष्य ही कहे जायेंगे। यूँ तो ज्ञान प्रत्येक जीवधारी का एक प्रमुख लक्षण है। ज्ञान से ही किसी की चेतना का प्रकाशन होता है, सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर हम मनुष्यों तक सभी प्राणी जीवनयापन के क्रियाकलापों में भी अपने ज्ञान और विचार का प्रयोग करते ही हैं। जीवन-मरण, भूख-प्यास, गमनागमन, सन्तति-जनन, भय, निद्रा और जागरण आदि सबके पीछे भी ज्ञान और विचार का सहयोग रहता ही है, तब महर्षि यास्क ने ‘मत्वा कर्माणि सीव्यतीति मनुष्य:’ कहकर मनुष्य को परिभाषित क्यों किया? इसके लिए ऋषि दयानन्द द्वारा प्रस्तुत आर्यसमाज के पाँचवें नियम ‘सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए’ पर विचार करना आवश्यक है। विचार करना और सत्य-असत्य पर विचार करना इन दोनों में बहुत भेद है, जो हमें पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों से पृथक् करता है। विचार वे भी करते हैं, परन्तु उनका विचार केवल जीवनयापन की क्रियाओं तक सीमित रहता है।
इधर सत्य और असत्य पर विचार जीवनयापन करने की सीमा से बाहर भी ले जाकर परोपकार में प्रवृत्त करके मोक्ष तक की यात्रा करा सकता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि जीवनयापन के विचार तक सीमित रहने वाले प्राणी जन्म से ही आवश्यक स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त किये हुए होते हैं, परन्तु मनुष्य जैसा सर्वाधिक बुद्धिमान् प्राणी पशु-पक्षियोंं की अपेक्षा न्यूनतर ज्ञान लेकर जन्म लेता है। वह अपने परिवेश और समाज से सीखता है। इस कारण केवल मनुष्य के लिए ही समाज तथा शिक्षण-संस्थानों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में मनुष्य पशु-पक्षियों को देखकर उन जैसा ही बन जाता है। हाँ, उनकी भाँति उड़ने जैसी क्रियाएँ नहींं कर सकता। समाज और शिक्षा के अभाव में वह मानवीय भाषा और ज्ञान दोनों ही दृष्टि से पूर्णत: वंचित रह जाता है। यदि उसे पशु-पक्षियों को भी न देखने दिया जाये, तब उसके  आहार-विहार में भी कठिनाई आ सकती है। इसके विपरीत करोड़ों वर्षों से हमारे साथ रह रहे गाय-भैंस, घोड़ा आदि प्राणी हमारा एक भी व्यवहार नहीं सीख पाते। हाँ, वे अपने स्वामी की भाषा और संकेतों को कुछ समझकर तदनुकूल खान-पान आदि व्यवहार अवश्य कर लेते हैं। इस कारण कुछ पशु यत्किंचित् प्रशिक्षित भी किये जा सकते हैं, परन्तु मनुष्य की भाँति उन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य एवं विद्वान् नहीं बनाया जा सकता। यही हममें और उनमें अन्तर है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो मनुष्य जन्म लेते समय पशु-पक्षियों की अपेक्षा मूर्ख होता है, जीवनयापन में भी सक्षम नहीं होता, वह सबसे अधिक विद्वान्, सभ्य व सुशिक्षित कैसे हो जाता है?
जब मनुष्य की प्रथम पीढ़ी इस पृथिवी पर जन्मी होगी, तब उसने अपने चारों ओर पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को ही देखा होगा, तब यदि वह पीढ़ी उनसे कुछ सीखती, तो उन्हीं के जैसा व्यवहार करती और उनकी सन्तान भी उनसे वैसे ही व्यवहार सीखती। आज तक भी हम पशुओं जैसे ही रहते, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। हमने विज्ञान की ऊँचाइयों को भी छूआ। वैदिक काल में हमारे पूर्वज नाना लोक-लोकान्तरोंं की यात्रा भी करते थे। कला, संगीत, साहित्य आदि के क्षेत्र में भी मनुष्य का चरमोत्कर्ष हुुआ, परन्तु पशु-पक्षी अपनी उछल-कूद से आगे बढ़कर कुछ भी नहीं सीख पाए। मनुष्य को ऐसा अवसर कैसे प्राप्त हो गया? उसने किसकी संगति से यह सब सीखा? इसके विषय में कोई भी नास्तिक कुछ भी विचार नहीं करता। वह इसके लिए विकासवाद की कल्पनाओं का आश्रय लेता देखा जाता है। यदि विकास से ही सब कुछ सम्भव हो जाता, तब तो पशु-पक्षी भी अब तक वैज्ञानिक बन गये होते, क्योंकि उनका जन्म तो हमसे भी पूर्व में हुआ था। इस कारण उनको विकसित होने के लिए हमारी अपेक्षा अधिक समय ही मिला है। इसके साथ ही यदि विकास से ही सब कुछ स्वत: सिद्ध हो जाता, तो मनुष्य के लिए भी किसी प्रकार के विद्यालय और समाज की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु ऐसा नहीं है। नास्तिकों को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि मनुष्य में भाषा और ज्ञान का विकास कहाँ से हुआ?
इस विषय में विस्तार से जानने के लिए मेरा ग्रन्थ ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ अवश्य पठनीय है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रथम पीढ़ी के चार सर्वाधिक समर्थ ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा ने ब्रह्माण्ड से उन ध्वनियों को अपने आत्मा और अन्त:करण से सुना, जो ब्रह्माण्ड में परा और पश्यन्ती रूप में विद्यमान थीं। उन ध्वनियों को ही वेदमन्त्र कहा गया। उन वेदमन्त्रों का अर्थ बताने वाला ईश्वर के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। दूसरे मनुष्य तो इन ध्वनियों को ब्रह्माण्ड से ग्रहण करने में भी समर्थ नहींं थे, भले ही उनका प्रातिभ ज्ञान एवं ऋतम्भरा ऋषि स्तर की थी। सृष्टि के आदि में सभी मनुष्य ऋषि कोटि के ब्राह्मण वर्ण के ही थे, अन्य कोई वर्ण भूमण्डल में नहीं था। उन चार ऋषियों को समाधि अवस्था में ईश्वर ने ही उन मन्त्रों के अर्थ का ज्ञान दिया। उन चारों ने मिलकर महर्षि ब्रह्मा को चारों वेदों का ज्ञान दिया और महर्षि ब्रह्मा से फिर ज्ञान की परम्परा सभी मनुष्यों तक पहुँचती चली गई। इस प्रकार ब्रह्माण्ड की इन ध्वनियों से ही मनुष्य ने भाषा और ज्ञान दोनों ही सीखे। इस कारण मनुष्य नामक प्राणी सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बन गया।
ध्यातव्य है कि प्रथम पीढ़ी में जन्मे सभी मनुष्य मोक्ष से पुनरावृत्त होकर आते हैं। इसी कारण ये सभी ऋषि कोटि के ही होते हैं। ज्ञान की परम्परा किस प्रकार आगे बढ़ती गयी और मनुष्य की ऋतम्भरा कैसे धीरे-धीरे क्षीण होती गयी और मनुष्यों को वेदार्थ समझाने के लिए कैसे-कैसे ग्रन्थों की रचना आवश्यक होती चली गई और कैसा-कैसा साहित्य रचा गया, इसकी जानकारी के लिए मेरा ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पठनीय है। वेद को वेद से समझने की प्रज्ञा मनुष्य में जब समाप्त वा न्यून हो जाती है, तभी उसके लिए किसी अन्य ग्रन्थ क�� आवश्यकता होती है। धीरे-धीरे वेदार्थ में सहायक आर्ष ग्रन्थ भी मनुष्य के लिए दुरूह हो गये और आज तो स्थिति यह है कि वेद एवं आर्ष ग्रन्थों के प्रवक्ता भी इनके यथार्थ से अति दूर चले गये हैं। इस कारण वेद तो क्या, आर्ष ग्रन्थ भी कथित बुद्धिमान् मानव के लिए अबूझ पहेली बन गये हैं। इस स्थिति से उबारने के लिए ऋषि दयानन्द सरस्वती और उनके महान् गुरु प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु समयाभाव आदि परिस्थितियों के कारण ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं अन्य ग्रन्थ वेद के रहस्यों को खोलने के लिए संकेतमात्र ही रह गये। वे वेद के यथार्थ को जानने के लिए सुमार्ग पर चलने वाले पथिक के रेत में बने हुुए पदचिह्न के समान थे। गन्तव्य की ओर गये हुए पदचिह्न किसी भी भ्रान्त पथिक के लिए महत्त्वपूर्ण सहायक होते हैं।
दुर्भाग्य से ऋषि दयानन्द के अनुयायियों ने ऋषि के बनाये हुए कुछ पदचिह्नों को ही गन्तव्य समझ लिया और वेदार्थ को समझने के लिए उन्होंने कोई ठोस प्रयत्न नहीं किया। उनका यह कर्म महापुरुषों की प्रतिमाओं को ही परमात्मा मानने की भूल करने जैसा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ऋषि दयानन्द के अनुयायी विद्वान् भी वेदादि शास्त्रों के भाष्य करने में आचार्य सायण आदि के सरल प्रतीत होने वाले परन्तु वास्तव में भ्रान्त पथ के पथिक बन गये। इसी कारण पौराणिक (कथित सनातनी) भाष्यकारों की भाँति आर्य विद्वानों के भाष्यों में भी अश्लीलता, पशुबलि, मांसाहार, नरबलि, छुआछूत आदि पाप विद्यमान हैं। यद्यपि उन्होंने शास्त्रों को इन पापों से मुक्त करने का पूर्ण प्रयास किया, परन्तु वे इसमें पूर्णत: सफल नहीं हो सके। इसी कारण इनके भाष्यों में सायण आदि आचार्यों के भाष्यों की अपेक्षा ये दोष कम मात्रा में विद्यमान हैं, परन्तु वेद और ऋषियों के ग्रन्थों में एक भी दोष का विद्यमान होना वेद के अपौरुषेयत्व और ऋषियों के ऋषित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त होता है। इसलिए ऋषि दयानन्द के भाष्य के अतिरिक्त सभी भाष्य दोषपूर्ण और मिथ्या हैं। हाँ, ऋषि दयानन्द के भाष्य भी सांकेतिक पदचिह्न मात्र होने के कारण सात्त्विक व तर्कसंगत व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं।
इसके लिए सब मनुष्यों को यह अति उचित है कि वे वेद के रहस्य को समझने के लिए ‘वैदिक रश्मि-विज्ञानम्’ ग्रन्थ का गहन अध्ययन करें। जो विद्वान् वेद और ऋषियों की प्रज्ञा की गहराइयों में और अधिक उतरना चाहते हैं, उन्हें ‘वेदविज्ञान-आलोक’ और ‘वेदार्थ-विज्ञानम्’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। जो आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रहे शिक्षक वा विद्यार्थी वेद का सामान्य परिचय चाहते हैं, उन्हें ऋषि दयानन्द कृत ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ एवं ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ और प्रिय विशाल आर्य कृत ‘परिचय वैदिक भौतिकी’ ग्रन्थ पढ़ने चाहिए। अब हम क्रमश: वेदादि शास्त्रों पर किये गये आक्षेपों का समाधान प्रस्तुत करेंगे—
क्रमशः... ✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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iskconchd · 21 days
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*अक्षय तृतीया* / *चंदन यात्रा* _10th May 2024, Friday_ महत्व और इस दिन की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ : *चंदन यात्रा* : अक्षय तृतीया से शुरू होकर 21 दिनों तक, गर्मी के कारण, भगवान पर चंदन का लेप किया जाता है। श्री माधवेंद्र पूरी को स्वयं भगवान से आदेश प्राप्त हुए और यह सेवा तब से *चंदन यात्रा* के नाम से जानी जाती है। 1) *भगवान परशुराम* का आविर्भाव हुआ था इसीलिए आज परशुराम जयंती भी है। 2) *माँ गंगा* का धरती अवतरण हुआ था। 3) *त्रेता युग* का प्रारंभ। 4) *सुदामा* का द्वारका में कृष्ण से मिलन। 5) सूर्य भगवान ने पांडवों को *अक्षय पात्र* दिया। 6) वेदव्यास जी ने *महाकाव्य महाभारत की रचना* गणेश जी के माध्यम से *प्रारम्भ की थी।* 7) प्रथम तीर्थंकर *आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान* के 13 महीने का कठिन उपवास का *पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया* था। 8) प्रसिद्ध धाम *श्री बद्री नारायण धाम* के कपाट खोले जाते है। 9) *जगन्नाथ भगवान* के सभी *रथों को बनाना प्रारम्भ* किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने *कनकधारा स्तोत्र* की रचना की थी। 10) *कुबेर* को खजाना मिला और देव खजांची बनें। 11) *माँ अन्नपूर्णा* का प्राकट्य। 🕉 *अक्षय* का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो!! अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है...! May this day of "AKSHAYA TRITIYA" bring you spiritual Success and Prosperity which never diminishes !! 🙏🏻 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। #krishna #iskcon #motivation #success #love #innovation #education #future #india #creativity #inspiration #life #quotes #Chandigarh #Devotion
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helpukiranagarwal · 3 months
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"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेव।"
भावपूर्ण गीतों के लिए प्रसिद्ध संगीतकार एवं आध्यात्मिक धारावाहिक "रामायण" में संगीत देने वाले पद्मश्री से सम्मानित रवीन्द्र जैन जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन ।
#Ramayan
#RavindraJain
#KiranAgarwal
#HelpUTrust
#HelpUEducationalandCharitableTrust
www.helputrust.org
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helputrust · 3 months
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"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेव।"
भावपूर्ण गीतों के लिए प्रसिद्ध संगीतकार एवं आध्यात्मिक धारावाहिक "रामायण" में संगीत देने वाले पद्मश्री से सम्मानित रवीन्द्र जैन जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन ।
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jayshriram2947 · 6 months
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*💐आज का विचार💐*
बुद्धि का काम है जानना मन का काम है मानना अगर मन नहीं माने तो जानने का कोई अर्थ नहीं है जो अपने गुणों से प्रसिद्ध होता है वही उत्तम होता है
*॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥*
*🌺🌷सुप्रभात🌷🌺*
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ombirdass · 5 months
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अथ हंस परमहंस की कथा | Ath Hans Paramhans Ki Katha | Vani of Garibdas Ji...
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#Kabir_Is_SupremeGod📚वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान 📚📖
#क्या_आप_जानते_हैं ...👇👇
1. ब्रम्हा,विष्णु ,महेश के माता-पिता कौन है ?
2. शेरावाली माता (दुर्गा अष्टांगी) का पति कौन है ?
3. हमको जन्म देने व मारने में क���स प्रभु का स्वार्थ ��ै ?
4. हम सभी इतनी देवी-देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं,फिर भी दु:खी क्यों हैं?
5. ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश किसकी भक्ति करते हैं?
6. पूर्ण संत की क्या पहचान है एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा ?
7. परमात्मा साकार है या निराकार ?
8. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव है या नहीं ? 9. तीर्थ, व्रत, तर्पण,श्राद्ध निकालने से लाभ संभव है या नहीं ? 10.श्री कृष्ण जी काल नहीं थे ! फिर गीता वाला काल कौन है ?
11.पूर्ण परमात्मा कौन तथा कैसा है ? कहाँ रहता है ?कैसे मिलता है ? किसने देखा है ?
12.समाधि अभ्यास (Meditation) राम,हरे कृष्ण ,हरिओम ,हंस,तीन व पांच नामों तथा वाहेगुरु आदि -आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं ? 13.वर्तमान समय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के अनुसार वह महान संत कौन है ?
🔉सुनिए सन्त रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन:
● साधना TV पर शाम 7:30 से 8:30 तक
● ईश्वर TV पर रात्रि 8:30 से 9:30 तक
● वृन्दा tv पर रात्रि 9:30 से 10:30 तक
● खबर फास्ट न्यूज tv पर रात्रि 09:30 से 10:30
● वाणी चैनल पर रात्रि 9:30 से 10:30 तक
● कात्यायनी TV पर रात्रि 8:00 से 9:00 तक
● Haryana News पर सुबह 6:00 से 7:00 तक
● श्रद्धा MH One पर दोपहर 2:00 से 3:00 तक
● नवग्रह चैनल पर रात्रि 9:00 से 10:00 तक
● TV Today Nepal पर दोपहर 1:30 से 2:30
● नेपाल वन पर सुबह 5:30 से 6:30 तक
● STV सगरमाथा चैनल पर सुबह 5:55 से 6:55
● अप्पन tv चैनल पर शाम 7:00 से 8:00 तक
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naveensarohasblog · 1 year
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ब्रह्म (काल) द्वारा अति उत्तम ज्ञान की जानकारी।।
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गीता अध्याय 14 श्लोक 1 का अनुवाद:- गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अब मैं तेरे को (ज्ञानानाम्) ज्ञानों में भी (उतमम्) अति उत्तम (परम्) अन्य विशेष (ज्ञानम्) ज्ञान को (भूयः) फिर (प्रवक्ष्यामि) कहूँगा (यत्) जिसको (ज्ञात्वा) जानकर (सर्वे) सब (मुनय) साधक जन (इतः) इस संसार से मुक्त होकर (पराम्) अन्य विशेष (सिद्धिम्) सिद्धि को (गताः) प्राप्त हो गये।
भावार्थ:- गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 9 श्लोक 1.3 में ब्रह्म स्तर का यानि अपने स्तर का उत्तम ज्ञान बताया है तथा सर्व को सब ज्ञानों का राजा कहा है। गीता के इस अध्याय 14 के श्लोक 1-2 में कहा है कि पहले जो सब उत्तम ज्ञान व ज्ञानों के राजा ज्ञान से भी अन्य विशेष उत्तम यानि सर्वश्रेष्ठ अन्य ज्ञान को कहूँगा जिस ज्ञान को जानकर मुनिजन यानि साधक इस काल ब्रह्म के लोक से अन्य विशेष सिद्धि को प्राप्त हो गए हैं।
गीता अध्याय 14 श्लोक 2 का अनुवाद:- (इदम्) इस (ज्ञानम्) ज्ञान को (उपाश्रित्य) आश्रय करके (मम) मेरे (साध्म्र्यम्) धर्म यानि गुण का (आगताः) प्राप्त हुए पुरूष यानि परमात्मा जैसे गुणों को भक्ति करके प्राप्त करके अविनाशी धर्म को प्राप्त हुए साधक (सर्गे) सृष्टि में पुनः (न उपजायन्ते) नहीं होते (च) और (प्रलय) प्रलय के समय भी (न व्यथन्ति) व्याकुल नहीं होते।
भावार्थ:- काल ब्रह्म ने कहा है कि इस अन्य विशेष ज्ञान को जानकर साधक परासिद्धि को प्राप्त होते हैं। सूक्ष्मवेद में भी कहा है कि ‘‘परासिद्धि पूर्ण पटरानी अमरलोक की कहूँ निशानी’’ यानि परासिद्धि सतलोक में है। उसे प्राप्त साधक उस अमर लोक में अमर शरीर प्राप्त करता है। वह परमात्मा जैसे अविनाशी धर्मयुक्त हो जाता है। जिस कारण से वह जन्म-मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। उस ज्ञान के आश्रित हुआ साधक पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
अध्याय 14 के श्लोक 1, 2 में भगवान (ब्रह्म) ने कहा कि हे अर्जुन! सर्व ज्ञानों में अति उत्तम (परम्) अन्य ज्ञान को फिर कहूंगा जिसको जान कर सर्व भक्त आत्मा (मुनिजन) अध्याय 13 के श्लोक 34 में कहे गीता ज्ञान दाता से अन्य अर्थात् दूसरे पूर्ण परमात्मा को प्राप्त हो गए। {क्योंकि जिनको पूर्ण ज्ञान हो जाता है वह पूर्ण परमात्मा का मार्ग अपना कर भक्ति करते हैं। ब्रह्म (काल), ब्रह्मा, विष्णु, शिव व देवी-देवताओं की साधना से ऊपर पूर्ण परमात्मा/सतपुरुष की भक्ति करते हैं। इसलिए परम धाम (सतलोक) में चले जाते हैं।} वह पूर्ण ब्रह्म का उपासक साधु गुणों से युक्त होकर प्रभु जैसी शक्ति (गुणों) वाला हो जाता है अर्थात् ब्रह्म के तुल्य हो जाता है तथा सत्य भक्ति पूर्णब्रह्म की करने वाले स्वभाव का हो जाता है, वह अन्य देवों की साधना नहीं करता।
गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मा हुए, अनन्त कोटि हुए ईश (ब्रह्म)।
साहिब तेरी बंदगी (भक्ति) से, जीव हो जावे जगदीश (ब्रह्म)।।
भावार्थ:- जो साधक तत्वदर्शी संत से दीक्षा लेकर भक्ति करते हैं। वे काल ब्रह्म के देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) जैसी शक्ति वाले हो जाते हैं। वे जीव यहाँ के जगदीश के तुल्य हो जाते हैं। यदि ये आशीर्वाद देकर अपनी भक्ति कमाई को नष्ट करना चाहें तो अपने प्रशंसक को बहुत लाभ दे सकते हैं और भगवान प्रसिद्ध हो सकते हैं।
पूर्ण परमात्मा के क्या धर्म- गुण होते हैं?
।। भगवान कृष्ण अर्थात् विष्णु जी भी प्रभु हैं परंतु समर्थ नहीं।।
जैसे भगवान कृष्ण तीन लोक के प्रभु (विष्णु अवतार) हैं। वे भगवान से मिलते गुणों वाले हैं। श्री कृष्ण जी ने राजा मोरध्वज के इकलौते पुत्र ताम्रध्वज को आरे से चिरवा कर मरवाया तथा फिर जीवित कर दिया। ये ईश्वरीय गुणों में से एक गुण (सिद्धि) है। इसके कारण (श्री कृष्ण) भी प्रभु हैं परंतु पूर्ण नहीं।
क्योंकि महाभारत के युद्ध में अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु मारा गया था जो श्री कृष्ण जी का भानजा था। श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का अर्जुन से विवाह हुआ था। अभिमन्यु कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र था। भगवान श्री कृष्ण जी उसे जीवित नहीं कर सके। चूंकि ये प्रभु तो हैं परंतु पूर्ण नहीं हैं। इसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण के सामने (दुर्वासा के शापवश) भगवान श्री कृष्ण का सर्व यादव कुल नष्ट हो गया। जिसमें भगवान के पुत्र प्रद्युमन, पौत्र अनिरूद्ध आदि आपस में लड़ कर मर गए। भगवान कृष्ण नहीं बचा पाए और एक शिकारी ने प्रभास क्षेत्र में भगवान को तीर मार कर हत्या की। इससे सिद्ध हुआ कि श्री कृष्ण जी भी प्रभु हैं, परंतु पूर्ण परमात्मा नहीं। ये केवल तीन लोक में परमात्मा (श्रेष्ठ आत्मा) हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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loksutra · 2 years
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IND vs ENG: आम्ही 2 घोड्यांच्या शर्यतीत तिसरे आलो, इंग्लिश कर्णधार जॉस बटलरने 10 विकेट्सच्या पराभवानंतर सांगितले
IND vs ENG: आम्ही 2 घोड्यांच्या शर्यतीत तिसरे आलो, इंग्लिश कर्णधार जॉस बटलरने 10 विकेट्सच्या पराभवानंतर सांगितले
भारत विरुद्ध इंग्लंड पहिला एकदिवसीय सामना: भारताविरुद्धच्या पहिल्या एकदिवसीय सामन्यात 10 गडी राखून पराभव झाल्यानंतर जोस बटलर खूपच निराश झाला होता. त्याने सामन्यानंतरच्या सादरीकरण समारंभात कबूल केले की 12 जुलै 2022 हा त्याच्या संघासाठी कठीण दिवस होता. तो त्याच्या संघाच्या कामगिरीने इतका निराश झाला होता की, दोन घोड्यांच्या शर्यतीत आम्ही तिसरे आलो असे म्हणण्यापर्यंत तो गेला. पहिल्या एकदिवसीय…
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sujit-kumar · 1 year
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कबीर बड़ा या कृष्ण Part 90
वेदों से जानते हैं परम अक्षर ब्रह्म कौन है? Part B
यहाँ पर वेदों के मंत्रों की कुछ फोटोकाॅपी लगाई हैं जिनका अनुवाद आर्य समाज के आचार्यों, शास्त्रियों ने किया है। कुछ ठीक, कुछ गलत है। परंतु सत्य फिर भी स्पष्ट है।
वेद मंत्रों में कहा है कि सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ यानि ‘‘सत्यपुरूष’’ आकाश में बने सनातन परम धाम यानि सत्यलोक में निवास करता है। एक सिंहासन पर विराजमान है। उसके सिर के ऊपर मुकट तथा छत्र लगे हैं। परमेश्वर देखने में राजा के समान है। परमेश्वर वहाँ से चलकर नीचे के लोक में पृथ्वी आदि पर चलकर (गति करके) आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है। अपने मुख से वाणी बोल-बोलकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है। साधना के सत्य नामों का आविष्कार करता है। प्रत्येक युग में एक बार ऐसी लीला करते हुए शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर निवास करता है। वहाँ से बाल परमेश्वर को निःसंतान दम्पति उठा ले जाते हैं। बाल भगवान की परवरिश कंवारी गायों द्वारा होती है। बड़ा होकर तत्त्वज्ञान का प्रचार करता है। अपने मुख से वाणी उच्चारण करता है। दोहों, चैपाईयों, शब्दों के माध्यम से अपनी जानकारी की वाणी उच्चारण करता है जिसको (कविर्गिर्भीः) कबीर वाणी कहा जाता है तथा इसी कारण से प्रसिद्ध कवि की भी पदवी प्राप्त करता है यानि उसको कवि कहा जाता है। जिस पर वेदों में कहे लक्षण खरे उतरते हैं। वही सृष्टि का उत्पत्ति कर्ता तथा सबका धारण-पोषण कर्ता है। अन्य नहीं हो सकता। ये लक्षण केवल कबीर जुलाहे (काशी वाले) पर खरे उतरते हैं। इसलिए परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी हैं। इन वेद मंत्रों के बाद चारों युगों में परमेश्वर कबीर जी का लीला करने आने का संक्षिप्त वर्णन है। उसे पढ़कर जान जाओगे कि वेदों में कबीर परमेश्वर जी का वर्णन है। कबीर परमेश्वर जी ने भी कहा है:-
बेद मेरा भेद है, मैं ना बेदन के मांही। जौन बेद से मैं मिलूं, बेद जानते नांही।।
अर्थात् कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि चारों वेद मेरी महिमा बताते हैं। परंतु इन वेदों में मेरी प्राप्ति की भक्ति विधि नहीं क्योंकि काल ब्रह्म ने वह यथार्थ भक्ति के मंत्र निकाल दिए थे। मेरी प्राप्ति का ज्ञान जिस सूक्ष्म वेद में है, उसका ज्ञान वेदों में अंकित नहीं है।
कृपया पढ़ें वेद मंत्र तथा दास (रामपाल दास) के द्वारा किया गया विश्लेषण, इनके बाद परमेश्वर कबीर जी का चारों युगों में सतलोक सिंहासन से गति करके आने का प्रकरण।
वेद मंत्र (प्रमाण सहित)
प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 86 मन्त्र 26-27
Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 26
ववेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26, जो आर्यसमाज के आचार्यों व महर्षि दयानन्द के चेलों द्वारा अनुवादित है जिसमें स्पष्ट है कि यज्ञ करने वाले अर्थात् धार्मिक अनुष्ठान करने वाले यजमानों अर्थात् भक्तों के लिए परमात्मा, सब रास्तों को सुगम करता हुआ अर्थात् जीवन रूपी सफर के मार्ग को दुखों रहित करके सुगम बनाता हुआ। उनके विघ्नों अर्थात् संकटों का मर्दन करता है अर्थात् समाप्त करता है। भक्तों को पवित्र अर्थात् पाप रहित, विकार रहित करता है। जैसा की अगले मन्त्र 27 में कहा है कि ’’जो परमात्मा द्यूलोक अर्थ���त् सत्यलोक के तीसरे पृष्ठ पर विराजमान है, वहाँ पर परमात्मा के शरीर का प्रकाश बहुत अधिक है।‘‘ उदाहरण के लिए परमात्मा के एक रोम (शरीर के बाल) का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा इतने ही चन्द्रमाओं के मिले-जुले प्रकाश से भी अधिक है। यदि वह परमात्मा उसी प्रकाश युक्त शरीर से पृथ्वी पर प्रकट हो जाए तो हमारी चर्म दृष्टि उन्हें देख नहीं सकती। जैसे उल्लु पक्षी दिन में सूर्य के प्रकाश के कारण कुछ भी नहीं देख पाता है। यही दशा मनुष्यों की हो जाए। इसलिए वह परमात्मा अपने रूप अर्थात् शरीर के प्रकाश को सरल करता हुआ उस स्थान से जहाँ परमात्मा ऊपर रहता है, वहाँ से गति करके बिजली के समान क्रीड़ा अर्थात् लीला करता हुआ चलकर आता है, श्रेष्ठ पुरूषों को मिलता है। यह भी स्पष्ट है कि आप कविः अर्थात् कविर्देव हैं। हम उन्हें कबीर साहेब कहते हैं।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 86 Mantra 27
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 के मन्त्र 27। इसमें स्पष्ट है कि ’’परमात्मा द्यूलोक अर्थात् अमर लोक के तीसरे पृष्ठ अर्थात् भाग पर विराजमान है। सत्यलोक अर्थात् शाश्वत् स्थान के तीन भाग हैं। एक भाग में वन-पहाड़-झरने, बाग-बगीचे आदि हैं। यह बाह्य भाग है अर्थात् बाहरी भाग है। (जैसे भारत की राजधानी दिल्ली भी तीन भागों में बँटी है। बाहरी दिल्ली जिसमें गाँव खेत-खलिहान और नहरें हैं, दूसरा बाजार बना है। तीसरा संसद भवन तथा कार्यालय हैं।)
इसके पश्चात् द्यूलोक में बस्तियाँ हैं। सपरिवार मोक्ष प्राप्त हंसात्माऐं रहती हैं। (पृथ्वी पर जैसे भक्त को भक्तात्मा कहते हैं, इसी प्रकार सत्यलोक में हंसात्मा कहलाते हैं।) (3) तीसरे भाग में सर्वोपरि परमात्मा का सिंहासन है। उसके आस-पास केवल नर आत्माऐं रहती हैं, वहाँ स्त्री-पुरूष का जोड़ा नहीं है। वे यदि अपना परिवार चाहते हैं तो शब्द (वचन) से केवल पुत्र उत्पन्न कर लेते हैं। इस प्रकार शाश्वत् स्थान अर्थात् सत्यलोक तीन भागों में परमात्मा ने बाँट रखा है। वहाँ यानि सत्यलोक में प्रत्येक स्थान पर रहने वालों में वृद्धावस्था नहीं है, वहाँ मृत्यु नहीं है। इसीलिए गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में कहा है कि जो जरा अर्थात् वृद्ध अवस्था तथा मरण अर्थात् मृत्यु से छूटने का प्रयत्न करते हैं, वे तत् ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म को जानते हैं। सत्यलोक में सत्यपुरूष रहता है, वहाँ पर जरा-मरण नहीं है, बच्चे युवा होकर सदा युवा रहते हैं।
प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 82 मन्त्र 1-2
Rig Veda Mandal 9 Sukt 82 Mantra 1
Rig Veda Mandal 9 Sukt 82 Mantra 2
विवेचन:- ऊपर ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 1-2 की फोटोकापी हैं, यह अनुवाद महर्षि दयानन्द जी के दिशा-निर्देश से उन्हीं के चेलों ने किया है और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली से प्रकाशित है।
इनमें स्पष्ट है कि:- मन्त्र 1 में कहा है ’’सर्व की उत्पत्ति करने वाला परमात्मा तेजोमय शरीर युक्त है, पापों को नाश करने वाला और सुखों की वर्षा करने वाला अर्थात् सुखों की झड़ी लगाने वाला है, वह ऊपर सत्यलोक में सिंहासन पर बैठा है जो देखने में राजा के समान है। यही प्रमाण सूक्ष्मवेद में है कि:-
अर्श कुर्श पर सफेद गुमट है, जहाँ परमेश्वर का डेरा।
श्वेत छत्र सिर मुकुट विराजे, देखत न उस चेहरे नूं।।
यही प्रमाण बाईबल ग्रन्थ तथा र्कुआन् शरीफ में है कि परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रची और सातवें दिन ऊपर आकाश में तख्त अर्थात् सिंहासन पर जा विराजा। (बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ 2:26-30 तथा र्कुआन् शरीफ की सुर्त ’’फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में है।)
वह परमात्मा अपने अमर धाम से चलकर पृथ्वी पर शब्द वाणी से ज्ञान सुनाता है। वह वर्णीय अर्थात् आदरणीय श्रेष्ठ व्यक्तियों को प्राप्त होता है, उनको मिलता है। {जैसे 1 सन्त धर्मदास जी बांधवगढ(मध्य प्रदेश वाले को मिले) 2 सन्त मलूक दास जी को मिले, 3 सन्त दादू दास जी को आमेर (राजस्थान) में मिले 4 सन्त नानक देव जी को मिले 5 सन्त गरीब दास जी गाँव छुड़ानी जिला झज्जर हरियाणा वाले को मिले 6 सन्त घीसा दास जी गाँव खेखड़ा जिला बागपत (उत्तर प्रदेश) वाले को मिले।}
वह परमात्मा अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। जो परमात्मा के दृढ़ भक्त होते हैं, उन पर परमात्मा का विशेष आकर्षण होता है। उदाहरण भी बताया है कि जैसे विद्युत अर्थात् आकाशीय बिजली स्नेह वाले स्थानों को आधार बनाकर गिरती है। जैसे कांसी धातु पर बिजली गिरती है, पहले कांसी धातु के कटोरे, गिलास-थाली, बेले आदि-आदि होते थे। वर्षा के समय तुरन्त उठाकर घर के अन्दर रखा करते थे। वृद्ध कहते थे कि कांसी के बर्तन पर बिजली अमूमन गिरती है, इसी प्रकार परमात्मा अपने प्रिय भक्तों पर आकर्षित होकर मिलते हैं।
मन्त्र नं. 2 में तो यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा उन अच्छी आत्माओं को उपदेश करने की इच्छा से स्वयं महापुरूषों को मिलते हैं। उपदेश का भावार्थ है कि परमात्मा तत्वज्ञान बताकर उनको दीक्षा भी देते हैं। उनके सतगुरू भी स्वयं परमात्मा होते हैं। यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा अत्यन्त गतिशील पदार्थ अर्थात् बिजली के समान तीव्रगामी होकर हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में आप पहुँचते हैं। आप जी ने पीछे पढ़ा कि सन्त धर्मदास को परमात्मा ने यही कहा था कि मैं वहाँ पर अवश्य जाता हूँ जहाँ धार्मिक अनुष्ठान होते हैं क्योंकि मेरी अनुपस्थिति में काल कुछ भी उपद्रव कर देता है। जिससे साधकों की आस्था परमात्मा से छूट जाती है। मेरे रहते वह ऐसी गड़बड़ नहीं कर सकता। इसीलिए गीता अध्याय 3 श्लोक 15 में कहा है कि वह अविनाशी परमात्मा जिसने ब्रह्म को भी उत्पन्न किया, सदा ही यज्ञों में प्रतिष्ठित है अर्थात् धार्मिक अनुष्ठानों में उसी को इष्ट रूप में मानकर आरती स्तुति करनी चाहिए।
इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 2 में यह भी स्पष्ट किया है कि आप (कविर्वेधस्य) कविर्देव है जो सर्व को उपदेश देने की इच्छा से आते हो, आप पवित्र परमात्मा हैं। हमारे पापों को छुड़वाकर अर्थात् नाश करके हे अमर परमात्मा! आप हम को सुःख दें और (द्युतम् वसानः निर्निजम् परियसि) हम आप की सन्तान हैं। हमारे प्रति वह वात्सल्य वाला प्रेम भाव उत्पन्न करते हुए उसी (निर्निजम्) सुन्दर रूप को (परियासि) उत्पन्न करें अर्थात् हमारे को अपने बच्चे जानकर जैसे पहले और जब चाहें तब आप अपनी प्यारी आत्माओं को प्रकट होकर मिलते हैं, उसी तरह हमें भी दर्शन दें।
प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 96 मन्त्र 16 से 20
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 16
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 17
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 के मंत्र 16 में कहा है कि हे परमात्मन्! आप अपने श्रेष्ठ गुप्त नाम का ज्ञान कराऐं। उस नाम को मंत्र 17 में बताया है कि वह कविः यानि कविर्देव है।
मंत्र 17 की केवल हिन्दी:- (शिशुम् जज्ञानम् हर्यन्तम्) परमेश्वर जान-बूझकर तत्वज्ञान बताने के उद्देश्य से शिशु रूप में प्रकट होता है, उनके ज्ञान को सुनकर (मरूतो गणेन) भक्तों का बहुत बड़ा समूह उस परमात्मा का अनुयाई बन जाता है। (मृजन्ति शुम्यन्ति वहिन्)
वह ज्ञान बुद्धिजीवी लोगों को समझ आता है, वे उस परमेश्वर की स्तुति भक्ति तत्वज्ञान के आधार से करते हैं, वह भक्ति (वहिन्) शीघ्र लाभ देने वाली होती है। वह परमात्मा अपने तत्वज्ञान को (काव्येना) कवित्व से अर्थात् कवियों की तरह दोहों, शब्दों, लोकोक्तियों, चैपाईयों द्वारा (कविर् गीर्भिः) कविर् वाणी द्वारा अर्थात् कबीर वाणी द्वारा (पवित्रम् अतिरेभन्) शुद्ध ज्ञान को उच्चे स्वर में गर्ज-गर्जकर बोलते हैं। वह (कविः) कवि की तरह आचरण करने वाला कविर्देव (सन्त्) सन्त रूप में प्रकट (सोम) अमर परमात्मा होता है। (ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17)
विशेष:- इस मन्त्र के मूल पाठ में दो बार ’’कविः’’ शब्द है, आर्य समाज के अनुवादकर्ताओं ने एक (कविः) का अर्थ ही नहीं किया है।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 18
विवेचन:- यह ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 की फोटोकापी है जिसका अनुवाद महर्षि दयानन्द जी के अनुयाईयों ने किया है। सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली द्वारा अनुवादित है। इस पर विवेचन करते हैं। इसके अनुवाद में भी बहुत-सी गलतियाँ हैं जो आर्यसमाज के आचार्यों ने की है। हम संस्कृत भी समझ सकते हैं, विवेचन करता हूँ तथा यथार्थ अनुवाद व भावार्थ स्पष्ट करता हूँ। मन्त्र 17 में कहा है कि ऋषि या सन्त रूप में प्रकट होकर परमात्मा अमृतवाणी अपने मुख कमल से बोलता है और उस ज्ञान को समझकर अनेकों अनुयाईयों का समूह बन जाता है। (य) जो वाणी परमात्मा तत्वज्ञान की सुनाता है, वे (ऋषिकृत्) ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा कृत (सहंस्रणीयः) हजारों वाणियाँ अर्थात् कबीर वाणियाँ (ऋषिमना) ऋषि स्वभाव वाले भक्तों के लिए (स्वर्षाः) आनन्ददायक होती हैं। (कविनाम पदवीः) कवित्व से दोहों, चैपाईयों में वाणी बोलने के कारण वह परमात्मा प्रसिद्ध कवियों में से एक कवि की भी पदवी प्राप्त करता है। वह (सोम) अमर परमात्मा (सिषासन्) सर्व की पालन की इच्छा करता हुआ प्रथम स्थिति में (महिषः) बड़ी पृथ्वी अर्थात् ऊपर के लोकों में (तृतीयम् धाम) तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक के तीसरे पृष्ठ पर (अनुराजति) तेजोमय शरीर युक्त (स्तुप) गुम्बज में (विराजम्) विराजमान है, वहाँ बैठा है। यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 में है कि परमात्मा सर्व लोकों के ऊपर के लोक में विराजमान है, (तिष्ठन्ति) बैठा है।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 19
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 19 का भी आर्य समाज के विद्वानों ने अनुवाद किया है। इसमें भी बहुत सारी गलतियाँ है। पुस्तक विस्तार के कारण केवल अपने मतलब की जानकारी प्राप्त करते हैं।
इस मन्त्र में चैथे धाम का वर्णन है जो आप जी सृष्टि रचना में पढेंगे, उससे पूर्ण जानकारी होगी पढे़ं इसी पुस्तक के पृष्ठ 208 पर।
परमात्मा ने ऊपर के चार लोक अजर-अमर रचे हैं।
अनामी लोक जो सबसे ऊपर है।
अगम लोक
अलख लोक
सत्यलोक
हम पृथ्वी लोक पर हैं, यहाँ से ऊपर के लोकों की गिनती करेंगे तो 1 सत्यलोक 2 अलख लोक 3 अगम लोक तथा 4 अनामी लोक गिना जाता है। उस चैथे धाम में बैठकर परमात्मा ने सर्व ब्रह्माण्डों व लोकों की रचना की। शेष रचना सत्यलोक में बैठकर की थी। आर्य समाज के अनुवादकों ने तुरिया परमात्मा अर्थात् चैथे परमात्मा का वर्णन किया है। यह चैथा धाम है। उसमें मूल पाठ मन्त्र 19 का भावार्थ है कि तत्वदर्शी सन्त चैथे धाम तथा चैथे परमात्मा का (विवक्ति) भिन्न-भिन्न वर्णन करता है। पाठक जन कृपया पढे़ं सृष्टि रचना इसी पुस्तक के पृष्ठ 208 पर जिससे आप जी को ज्ञान होगा कि लेखक (संत रामपाल दास) ही वह तत्वदर्शी संत है जो तत्वज्ञान से परिचित है।
Rig Veda Mandal 9 Sukt 96 Mantra 20
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 का यथार्थ ज्ञान जानते हैंः-
इस मन्त्र का अनुवाद महर्षि दयानन्द के चेलों द्वारा किया गया है, इनका दृष्टिकोण यह रहा है कि परमात्मा निराकार है क्योंकि महर्षि दयानन्द जी ने यह बात दृढ़ की है कि परमात्मा निराकार है। इसलिए अनुवादक ने सीधे मन्त्र का अनुवाद घुमा-फिराकर किया है। जैसे मूल पाठ में लिखा हैः-
मर्य न शुभ्रः तन्वा मृजानः अत्यः न सृत्वा सनये धनानाम्।
वृर्षेव यूथा परि कोशम अर्षन् कनिक्रदत् चम्वोः आविवेश।।
अनुवाद:- जैसे (मर्यः न) मनुष्य सुन्दर वस्त्रा धारण करता है, ऐसे परमात्मा मनुष्य के समान (शुभ्रः तन्व) सुन्दर शरीर (मृजानः) धारण करके (अत्यः) अत्यन्त गति से चलता हुआ (सनये धनानाम्) भक्ति धन के धनियों अर्थात् पुण्यात्माओं को (सनये) प्राप्ति के लिए आता है। (यूथा वृषेव) जैसे एक समुदाय को उसका सेनापति प्राप्त होता है, ऐसे वह परमात्मा संत व ऋषि रूप में प्रकट होता है तो उसके बहुत सँख्या में अनुयाई बन जाते हैं और परमात्मा उनका गुरू रूप में मुखिया होता है। वह परमात्मा (परि कोशम्) प्रथम ब्रह्माण्ड में (अर्षन्) प्राप्त होकर अर्थात् आकर (कनिक्रदत्) ऊँचे स्वर में सत्यज्ञान उच्चारण करता हुआ (चम्वोः) पृथ्वी खण्ड में (अविवेश) प्रविष्ट होता है।
भावार्थ:- जैसे पूर्व में वेद मन्त्रों में कहा है कि परमात्मा ऊपर के लोक में रहता है, वहाँ से गति करके अपने रूप को अर्थात् शरीर के तेज को सरल करके पृथ्वी पर आता है। इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 में उसी की पुष्टि की है। कहा है कि जैसे मनुष्य वस्त्र धारण करता है, ऐसे अन्य शरीर धारण करके परमात्मा मानव रूप में पृथ्वी पर आता है और (धनानाम्) दृढ़ भक्तों (अच्छी पुण्यात्माओं) को प्राप्त होता है, उनको वाणी उच्चारण करके तत्वज्ञान सुनाता है।
विवेचन:- ये ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 से 20 की फोटोकापियाँ हैं, जिनका हिन्दी अनुवाद महर्षि दयानन्द सरस्वती आर्यसमाज प्रवर्तक के दिशा-निर्देश से उनके आर्यसमाजी चेलों ने किया है। यह अनुवाद कुछ-कुछ ठीक है, अधिक गलत है। पहले अधिक ठीक या कुछ-कुछ गलत था जो मेरे द्वारा शुद्ध करके विवेचन में लिख दिया है। अब अधिक गलत को शुद्ध करके लिखता हूँ।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 ��ें कहा है कि:-
हे परमात्मा! आपका जो गुप्त वास्तविक (चारू) श्रेष्ठ (नाम) नाम है, उसका ज्ञान कराऐं। प्रिय पाठको! जैसे भारत के राजा को प्रधानमंत्री कहते हैं, यह उनकी पदवी का प्रतीक है। उनका वास्तविक नाम कोई अन्य ही होता है। जैसे पहले प्रधानमंत्री जी पंडित जवाहर लाल नेहरू जी थे। ’’जवाहरलाल’’ उनका वास्तविक नाम है। इस मंत्र 16 में कहा है कि हे परमात्मा! आपका जो वास्तविक नाम है वह (सोतृमिः) उपासना करने का (स्व आयुधः) स्वचालित शस्त्र के समान (पूयमानः) अज्ञान रूपी गन्द को नाश करके पापनाशक है। आप अपने उस सत्य मन्त्र का हमें ज्ञान कराऐं। (देव सोम) हे अमर परमेश्वर! आपका वह मन्त्र श्वांसों द्वारा नाक आदि (गाः) इन्द्रियों से (वासुम् अभि) श्वांस-उश्वांस से जपने से (सप्तिरिव = सप्तिः इव) विद्युत् जैसी गति से अर्थात् शीघ्रता से (अभिवाजं) भक्ति धन से परिपूर्ण करके (श्रवस्यामी) ऐश्वर्य को तथा मोक्ष को प्राप्त कराईये।
प्रिय पाठकों से निवेदन है कि इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 16 के अनुवाद में बहुत-सी गलतियाँ थी जो शुद्ध कर दी हैं। प्रमाण के लिए मूल पाठ मे ’’अभिवाजं’’ शब्द है इसका अनुवाद नहीं किया गया है। इसके स्थान पर ’’अभिगमय’’ शब्द का अर्थ जोड़ा है जो मूल पाठ में नहीं है।
विवेचन:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 के अनुवाद में भी बहुत गलतियाँ हैं जो आर्यसमाजियों द्वारा अनुवादित है। अब शुद्ध करके लिखता हूँः-
जैसा कि पूर्वोक्त ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 तथा 82 के मन्त्रों में प्रमाण है कि परमात्मा अपने शाश्वत् स्थान से जो द्यूलोक के तीसरे स्थान पर विराजमान है, वहाँ से चलकर पृथ्वी पर जान-बूझकर किसी खास उद्देश्य से प्रकट होता है। परमात्मा सर्व ब्रह्माण्डों में बसे प्राणियों की परवरिश तीन स्थिति में ���रते हैं।
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marathinewslive · 2 years
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"त्याच्या विकासासाठी पुढील १२ महिने मोठे आहेत": न्यूझीलंड ग्रेट ऑन इंडिया स्टार | क्रिकेट बातम्या
“त्याच्या विकासासाठी पुढील १२ महिने मोठे आहेत”: न्यूझीलंड ग्रेट ऑन इंडिया स्टार | क्रिकेट बातम्या
प्रसिध कृष्णा सध्या वेस्ट इंडिज वनडे मालिकेसाठी भारतीय संघाचा एक भाग आहे.© BCCI प्रसिद्ध कृष्ण हा एक वेगवान गोलंदाज आहे जो खरोखरच भारतीय चाहत्यांना उत्तेजित करतो कारण त्याच्याकडे चांगला वेग घडवून आणण्याची आणि विरोधी फलंदाजांना झोडपण्याची क्षमता आहे. त्याच्याकडे एक चांगला बाउन्सर आहे आणि हेच मुख्य कारण आहे की तो नियमित अंतराने विकेट घेण्यास व्यवस्थापित करतो. मात्र, न्यूझीलंडचा माजी अष्टपैलू…
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sampannamayapvt · 2 years
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संकष्टी चतुर्थी का पर्व अश्विना मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाएगा ।
इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विशेष पूजा अर्चना की जाती है । इस दिन चांद को देखकर अर्ध्य दिया जाता है ।
इस दिन हस्त नक्षत्र रहेगा और चंद्रमा कन्या राशि में विराजमान रहेगा।
संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश को अन्य सभी देवी-देवतों में प्रथम पूजनीय माना गया है। इन्हें बुद्धि, बल और विवेक का देवता का दर्जा प्राप्त है। भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियों और विघ्नों को हर लेते हैं इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है।
क्या है संकष्टी चतुर्थी?
संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’।
इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है।
कब होती है संकष्टी चतुर्थी?
पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, वहीं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी बहुत शुभ होती है। यह दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है।
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
#संपन्नमाया अगरबत्ती की तरफ से आप सभी को संकष्टी चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं!
#sankashtachatirti #Ganesh #Chaturthisampannamaya #sampannamayapvt #india #sampannamayaprivetlimited #bhakti #agarbatti #dhoop #dhoopbatti #incensesticks #fragrance #hindugod #bhagwan #iskcon #teemsampannamaya #shiva #dhoopsticks #eksachhiprarthana #dharma #premium #premiumdhoopbatti #msme #makeinindia
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1972renusingh · 2 years
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संकष्टी चतुर्थी का पर्व अश्विना मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाएगा ।
इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विशेष पूजा अर्चना की जाती है । इस दिन चांद को देखकर अर्ध्य दिया जाता है ।
इस दिन हस्त नक्षत्र रहेगा और चंद्रमा कन्या राशि में विराजमान रहेगा।
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संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश को अन्य सभी देवी-देवतों में प्रथम पूजनीय माना गया है। इन्हें बुद्धि, बल और विवेक का देवता का दर्जा प्राप्त है। भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियों और विघ्नों को हर लेते हैं इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है।
क्या है संकष्टी चतुर्थी?
संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’।
इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते ह���ं। संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है।
कब होती है संकष्टी चतुर्थी?
पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, वहीं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी बहुत शुभ होती है। यह दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है।
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
#संपन्नमाया अगरबत्ती की तरफ से आप सभी को संकष्टी चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं!
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उत्तर अवश्य दें
🙏🙏 *क्या आप जानते हैं?*🌏
1️⃣. ब्रह्मा, विष्णु, महेश के माता-पिता कौन हैं?
2️⃣. शेरांवाली माता (दुर्गा अष्टंगी) का पति कौन है?
3️⃣. हमको जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है?
4️⃣ हम सभी देवी-देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं, फिर भी दुःखी क्यों हैं?
5️⃣. ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसकी भक्ति करते हैं?
6️⃣. पूर्ण संत की क्या पहचान है एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा?
7️⃣. परमात्मा साकार है या निराकार?
8️⃣. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव है या नहीं?
9️⃣. तीर्थ, व्रत, तर्पण, श्राद्ध निकालने से लाभ संभव है या नहीं?
🔟. श्री कृष्ण जी काल नहीं थे। फिर गीता वाला काल कौन है?
1️⃣1️⃣. पूर्ण परमात्मा कौन तथा कैसा है? कहाँ रहता है? कैसे मिलता है? किसने देखा है?
1️⃣2️⃣. समाधि अभ्यास (Meditation) राम, हरे कृष्ण, हरिओम, हंस, तीन व पाँच नामों
तथा वाहेगुरू आदि-आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं?
1️⃣3️⃣. वर्तमान समय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के अनुसार वह महान संत कौन है?
👆👆👆👆
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