शकुन शास्त्र के 12 सूत्र
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घर में हर छोटी वस्तु का अपना महत्व होता है। कभी-कभी बेकार समझी जाने वाली वस्तु भी घर में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर देती है। गृहस्थी में रोजाना काम में आने वाली चीजों से भी शकुन-अपशकुन जुड़े होते हैं, जो जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ लाते हैं। शकुन शुभ फल देते हैं, वहीं अपशकुन इंसान को आने वाले संकटों से सावधान करते हैं। हम आपको घर से जुड़ी वस्तुओं के शकुनों के बारे में बता रहे हैं।
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1-दूध का शकुन
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सुबह-सुबह दूध को देखना शुभ कहा जाता है। दूध का उबलकर गिरना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति, संपत्ति, मान व वैभव की उन्नति होती है। दूध का बिखर जाना अपशकुन मानते हैं, जो किसी दुर्घटना का संकेत है। दूध को जान-बूझकर छलकाना अपशकुन माना जाता है , जो घर में कलह का कारण है।
2-दर्पण का शकुन
हर घर में दर्पण का बहुत महत्व है। दर्पण से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नव विवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। तात्पर्य यह है कि दर्पण का टूटना हर दृष्टिकोण से अशुभ ही होता है। इसके लिए यदि दर्पण टूट जाए तो इसके टूटे हुए टुकड़ों को इकटठा करके बहते जल में डाल देने से संकट टल जाते हैं।
3-पैसे का शकुन
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आज के इस युग में पैसे को भगवान माना जाता है। जेब को खाली रखना अपशकुन मानते हैं। कहा जाता है कि पैसे को अपने कपड़ों की हर जेब में रखना चाहिए। कभी भी पर्स खाली नहीं रखना चाहिए।
4-चाकू का शकुन
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चाकू एक ऐसी वस्तु है, जिसके बिना किसी भी घर में काम नहीं चल सकता। इसकी जरूरत हर छोटे-छोटे कार्य में पड़ती है। इससे जुड़े भी अनेक शकुन-अपशकुन होते हैं। डाइनिंग टेबल पर छुरी-कांटे का क्रास करके रखना अशुभ मानते हैं, इसके कारण घर के सदस्यों में झगड़ा हो जाता है। मेज से चाकू का नीचे गिरना भी अशुभ होता है। नवजात शिशु के तकिए के नीचे चाकू रखना शुभ होता है तथा छोटे बच्चे के गले में छोटा सा चाकू डालना भी अच्छा होता है। इससे बच्चों की बुरी आत्माओं से रक्षा होती है व नींद में बच्चे रोते भी नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति आपको चाकू भेंट करे तो इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए एक सिक्का अवश्य दें।
5-झाडू का शकुन
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घर के एक कोने में पड़े हुए झाडू को घर की लक्ष्मी मानते हैं, क्योंकि यह दरिद्रता को घर से बाहर निकालता है। इससे भी कई शकुन व अपशकुन जुड़े हैं। दीपावली के त्यौहार पर नया झाडू घर में लाना लक्ष्मी जी के आगमन का शुभ शकुन है। नए घर में गृह प्रवेश से पूर्व नए झाडू का घर में लाना शुभ होता है। झाडू के ऊपर पांव रखना गलत समझा जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रहा है। कोई छोटा बच्चा अचानक घर में झाडू लगाने लगे तो समझ लीजिए कि घर में कोई अवांछित मेहमान के आने का संकेत है। सूर्यास्त के बाद घर में झाडू लगाना अपशकुन होता है, क्योंकि यह व्यक्ति के दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
6-बाल्टी का शकुन
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सुबह के समय यदि पानी या दूध से भरी बाल्टी दिखाई दे तो शुभ होता है। इससे मन में सोचे कार्य पूरे होते हैं। खाली बाल्टी देखना अपशकुन समझा जाता है, जो बने-बनाए कार्यों को बिगाड़ देता है। रात को खाली बाल्टी को प्रायः उल्टा करके रखना चाहिए एवं घर में एक बाल्टी को अवश्य भरकर रखें, ताकि सुबह उठकर घर के सदस्य उसे देख सकें।
7-लोहे का शकुन
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घर में लोहे का होना शुभ कहा जाता है। लोहे में एक शक्ति होती है, जो बुरी आत्माओं को घर से भगा देती है। पुराने व जंग लगे लोहे को घर में रखना अशुभ है। घर में लोहे का सामान साफ करके रखें।
8-हेयरपिन का शकुन
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हेयरपिन एक बहुत ही मामूली सी चीज है, परंतु इसका प्रभाव बड़ा आश्चर्यजनक होता है। यदि किसी व्यक्ति को राह में कोई हेयरपिन पड़ा मिल जाये तो समझो कि उसे कोई नया मित्र मिलने वाला है। वहीं यदि हेयर पिन खो जाये तो व्यक्ति के नए दुश्मन पैदा होने वाले हैं। हेयरपिन को घर में कहीं लटका दिया जाए तो यह अच्छे भाग्य का प्रतीक है।
9-काले वस्त्र का शकुन
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काले वस्त्र बहुत अशुभ माने जाते हैं। किसी व्यक्ति के घर से बाहर जाते समय यदि कोई आदमी काले वस्त्र पहने हुए दिखाई दे तो अपशकुन माना जाता है, जिसके बुरे प्रभाव से जाने वाले व्यक्ति की दुर्घटना हो सकती है। अतः ऐसे व्यक्ति को अपना जाना कुछ मिनट के लिए स्थगित कर देना चाहिए।
10-रुई का शकुन
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रूई का कोई टुकड़ा किसी व्यक्ति के कपड़ों पर चिपका मिले तो यह शुभ शकुन है। यह किसी शुभ समाचार आने का संकेत है या किसी प्रिय व्यक्ति के आने का संकेत है। कहा जाता है कि रूई का यह टुकड़ा व्यक्ति को किसी एक अक्षर के रूप में नजर आता है व यह अक्षर उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर होता है, जहां से उस व्यक्ति के लिए शुभ संदेश या पत्र आ रहा है।
11-चाबियों का शकुन
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चाबियों का गुच्छा गृहिणी की संपूर्णता का प्रतीक है। यदि गृहिणी के पास चाबियों का कोई ऐसा गुच्छा है, जिस पर बार-बार साफ करने के बाद भी जंग चढ़ जाए तो यह एक अच्छा शकुन है। इसके फलस्वरूप घर का कोई रिश्तेदार अपनी जायदाद में से आपको कुछ देना चाहता है या आपके नाम से कुछ धन छोड़कर जाना चाहता है। चाबियों को बच्चे के तकिए के नीचे रखना भी अच्छा होता है, इससे बुरे स्वप्नों एवंबुंरी आत्माओं से बच्चे का बचाव होता है।
12-बटन का शकुन
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कभी-कभी कमीज़, कोट या अन्य कोई कपड़े का बटन गलत लग जाए तो अपशकुन होता है, जिसके अनुसार सीधे काम भी उल्टे पड़ जाएंगे। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए कपड़े को उतारकर सही बटन लगाने के बाद पहनें। यदि रास्ते चलते आपको कोई बटन पड़ा मिल जाए तो यह आपको किसी नए मित्र से मिलवाएगा।
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Dowry free marriage ❤️🥰
दहेज मुक्त विवाह हुआ सम्पन्न 💝💝💝
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अब सच होगा सबका सपना दहेज मुक्त होगा भारत अपना !!
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न हल्दी, न मेहंदी रस्म और न ही कोई पाखण्ड तथा आडम्बर, सिर्फ गुरुवाणी (रमैनी) के तहत 17 मिनिट में विवाह हो गई।
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आज के आधुनिक युग में जहाँ लोग बहुत ही ताम-झाम और लाखो रुपये खर्च कर विवाह करते है वही दूसरी तरफ संतरामपालजी महाराज के ज्ञान से प्रेरित होकर उनके करोड़ों अनुयायी अपने बच्चों का विवाह बहुत ही साधारण तरीके से मात्र 17 मिनट की गुरुवाणी ( रमैनी) से करते है ।
इस विवाह में ना कोई दहेज दिया गया और ना ही दहेज लिया गया मात्र 17 मिनट_में_शादी हुई।, जिसमे कोई भी फिजूलखर्ची नही, ना घोडा, ना बारात, न बैंड बाजा और ना ही कोई लेन देन । आज इस युग में नशा व दहेज रूपी कुरीतियों को जड़ से खत्म कर रहे है तथा नेक व सभ्य समाज तैयार कर रहे है संतरामपालजी महाराज व उनके करोड़ों अनुयायी!!
#दहेज_मुक्त_भारत अभियान के तहत आज #संत_रामपाल_जी_महाराज जी के नेतृत्व में एक अनोखी शादी सम्पन्न हुई जो समाज को एक नई दिशा दे रही है जिसमें ना तो कोई लेन-देन है और ना ही दहेज और ना कोई दूसरा आडंबर ।।
ऐसी शादियां समाज के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है
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Love story in Hindi
देसिकहानियाँ में हम हर दिन एक से बढ़कर एक अजब गजब प्यार की कहानी प्रकाशित करते हैं। इसी कड़ी में हम आज “love story in hindi ” प्रकाशित कर रहे हैं। आशा है ये आपको अच्छी लगेगी।
short stories in Hindi
लेखक – खुश्बू
श्रेया बहुत खुश थी. क्योंकि उसकी हाल ही में शादी होने वाली थी. लड़का पढ़ा लिखा पढ़ा लिखा और सुंदर सुशील था. और अमेरिका में नौकरी करता था. और वहां श्रेया से बहुत प्यार करता था. श्रेया की शादी उसके पिताजी ने बड़ी धूमधाम से की. क्योंकि वह उनके एकलौती संतान थी. श्रेया घर में सबकी लाडली थी. उसकी विदाई हो चुकी थी, श्रेया को विदाई का इतना रोना नहीं आ रहा था, जितनी खुशी उसे आशीष के साथ जाने में हो रही थी. ऐसे बता दें, कि आशीष और श्रेया बचपन के दोस्त है, साथी स्कूल पड़े, साथी कॉलेज गए. शादी पूरी तरीके से हो चुकी थी. और शादी के अगले दिन उन्हें हनीमून पर निकलना था. श्रेया और आशीष दोनों अपनी कार में बैठकर जा रहे थे. और श्रेया से बात करने के चक्कर में कार का ट्रक से भीषण एक्सीडेंट हो गया. और आशीष की वही मौके पर ही मौत हो गई. और श्रेया को मामूली खरोच आई. श्रेया के तो जैसे प्राणी निकल गए 1 दिन पहले ही शादी हुई और विधवा हो गई, श्रेया के लिए सब कुछ टूट चुका था. वह अंदर से ही मर चुकी थी. और ऊपर से रोज उसके साथ ससुर उसे ताने देते. फिर एक दिन स्वर्गीय आशीष की बुआ आई. और उसे मथुरा ले जाने की जिद करने लगी. और श्रेया और आशीष के मां बाप मान गए. और उसे वहां मथुरा विधवा आश्रम में भेज दिया. वहां जाते से ही उसके बाल कटवा दिए गए, सुंदर सी दिखने वाली श्रेया. जो कि अपने बालों से बहुत अत्यधिक प्यार करती थी. उसके भी बाल कटवा दिए गए. अब श्रेया का जीवन नर्क से कम नहीं था, श्रेया रोज आशीष को याद करते करते घुट-घुट कर मरते और सोचती कि मेरी ही गलती थी. ना में बात करती, ना आशीष की मौत होती. मैं ही जिम्मेदार हूं, और फिर एक दिन विधवा आश्रम में मुंबई का एक छात्र विक्रांत आया. विक्रांत दिखने में बहुत ही खूबसूरत था. और फोटोग्राफी का कोर्स कर रहा था. वह एक प्रोजेक्ट के तहत विधवा आश्रम आया था. वहां पर उसे विधवा आश्रम मैं जीवन के विषय का टॉपिक मिला था. उसने विधवा आश्रम के पंडित जी से बात कर ली थी. कि वह वही रहेगा, 1 महीने तक, पंडित जी मान चुके थे. विक्रांत बहुत ही खुशमिजाज इंसान था. जहां भी जाता, खुशियां फैला देता विधवा आश्रम में जाते से ही उसने दुखी विधवाओं के चेहरे पर मुस्कान सी ला दी. पंडित जी भी उसे बहुत खुश थे. वह बहुत शरारती था. तो सारी महिला उसके साथ हास-परिहास करती थी. फिर एक दिन उसने श्रेया को देखा और उसे भी हंसाने की कोशिश की पर वह नाकामयाब रहा. फिर एक महीने के अंदर उसे श्रेया से प्यार हो गया. उसने श्रेया से कहा, कि मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं.
और तुम्हें यहां से ले जाना चाहता हूं. श्रेया ने मानने से मना कर दिया, और कहां की वह कभी शादी नहीं करेगी. क्योंकि उसके कारण आशीष की जान गई थी. विक्रांत के लाख समझाने पर भी श्रेया नहीं मानी. पर श्रेया फिर भी विक्रांत ने जिद नहीं छोड़ी. फिर एक दिन विक्रांत ने इस विषय में पंडित जी से बात की पंडित जी उसकी बात सुनकर आग बबूला हो गए. और उसे बुरी तरीके से पीटा गया. फिर भी विक्रांत के हौसले और प्यार कम नहीं हुआ. फिर विक्रांत श्रेया को लेने के लिए आया. विक्रांत को उसे देखकर श्रेया को रोना आ गया.श्रेया ने कहा, मैं भी तुमसे प्यार करती हूं. पर तुम भी मर जाओगे. विक्रांत ने समझाया जीवन मरण, भगवान के हाथ में है. इंसान के हाथ में कुछ नहीं होता. पर फिर भी श्रेया संकोच में थी और फिर पंडित जी ने दोनों को बात करते हुए देख लिया. पंडित जी का क्रोध सातवें आसमान पर था उन्होंने बाहर से अखाड़े के आदमियों को बुलाया. और विक्रांत की पिटाई करना शुरु की इतना देख कर श्रेया से रहा नहीं गया, और श्रेया ने विक्रांत को बचा लिया. दोनों की अब शादी हो चुकी है, दोनों बहुत खुश है, और साल में तीन से चार बार विधवा आश्रम में जाकर सेवा देते हैं.
मैं आशा करता हूँ की आपको ये ” hindi stories for reading” कहानी आपको अच्छी लगी होगी। कृपया इसे अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ फेसबुक और व्हाट्स ऍप पर ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। धन्यवाद्। ऐसी ही और कहानियों के "Short story in Hindi with moral" लिए देसिकहानियाँ वेबसाइट पर घंटी का चिन्ह दबा कर सब्सक्राइब करें। इस कहानी का सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्छित है। इसे किसी भी प्रकार से कॉपी करना दंडनीय होगा।
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लखनऊ, 26.08.2022 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट एवं भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में महिला समानता दिवस-2022 के अवसर पर उद्बोधन कार्यक्रम विषयक: "महिला समानता: वास्तविक या काल्पनिक" का आयोजन भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ में किया में किया गया । कार्यक्रम में मुख्य वक्तागणों के रूप में डॉ० अलका निवेदन, प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ और डॉ० छवि निगम, प्रोग्राम ऑफिसर (NSS), भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ, ने समाज में महिला समानता के आधार पर प्रदान किये गए अधिकार वास्तविक है या काल्पनिक, के विषय में अवगत कराया ।
डॉ० अलका निवेदन, प्राचार्या तथा असिस्टेंट प्रोफेसर बॉटनी विभाग, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, ने अपने अनुभव साझा करते हुये बताया कि, "आज बहुत ही विशेष दिवस है महिला समानता दिवस पर यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि आज हमें इस दिन को सेलिब्रेट या आयोजन करके मनाना पड़ रहा है, दुर्भाग्यवश अभी भी बहुत स्त्री व पुरुष में असमानता है I वैश्विक स्तर पर विकसित देशों में तो फिर भी एक समानता है, भारत जैसे विकासशील देशों में अभी भी असमानता पाई जा रही है और यह जो खाई है, इसको भरने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी I आज से अगर 10-15 साल पीछे जाकर हम देखते हैं तो एक महिला को यह भी अधिकार नहीं था कि वह शादी के बाद अपना नाम जो चाहे रख सके उसे अपने पिता का नाम, पिता के यहां छोड़ कर आना होता था, और अपने पति का सरनेम लगाना पड़ता था, यह छोटा सी वास्तविकता है, 18 साल पुरानी बात है मुझे अपने सरनेम से बहुत प्यार था, शादी से पहले मैं अपना नाम अलका मिश्रा लिखती थी और मेरी शादी जहां हुई वह पाण्डेय लिखते थे, मेरी इच्छा नहीं थी कि मैं पाण्डेय सरनेम लगाऊं, मैंने इस बात का विरोध किया तब मेरी ससुराल में यह कहा गया कि, यह नहीं चलेगा, आप अपने पिता का नाम इस घर में नहीं लगा सकती I उस वक्त एक पुरुष ने, मेरे ससुर ने जो कि अब इस दुनिया में नहीं है, उन्होंने कहा कि, उनकी भी बात रह जाएगी और तुम्हारी भी बात रह जाएगी, तुम ना मिश्रा लगाओगी, तुम ना पाण्डेय लगाओगी, तुम्हारी जो इच्छा हो वह तुम लगाओ, तुम चाहो तो सिर्फ अलका लिख सकती हो I मैंने अपने पति का नाम पीछे लगाया, मुझे बड़ा अच्छा लगा I तो उस वक्त भी आज से लगभग 20 साल पुरानी बात है, पुरुष को आगे आना पड़ा था I तो आज भी अगर स्त्री पुरुष समानता की बात करते हैं तो महिलाएं ही महिलाओं को पीछे खींच रही हैं, क्योंकि वह अभी भी पुरानी परंपराओं से घिरी हुई हैं, जिसमें लड़कियों को बाहर अकेले नहीं जाने दिया जाता था I जब भी लड़कियों को बाहर जाना होता है, तो किसी ना किसी को साथ लेकर ही जाना पड़ता है, वजह है समाज में डर, छेड़छाड़ का डर, बलात्कार का डर, छोटे कपड़े नहीं पहनने दिए जाते, अगर एक पुरुष मॉर्निंग वॉक पर बरमूडा पहन कर जाता है, तो हम क्यों नहीं, हमें लोगों की बातों को इग्नोर करना चाहिए I ऐसा नहीं है कि कल से हम भी छोटे कपड़े पहनना शुरू कर दें, लेकिन हर एक को स्वतंत्रता होनी चाहिए, समानता की बात होनी चाहिए, तो सबसे पहले महिलाएं महिलाओं का साथ दें I
डॉ० छवि निगम ने कहा कि, "अगर हमारी बेटियों बहनों को समानता का अधिकार दिलाना है, तो कहीं ना कहीं पुरुषों को आगे आना होगा I अगर समाज में 2 लोग चलते हैं, स्त्री और पुरुष, तो दोनों को बराबर की भागीदारी होनी चाहिए I अगर पुरुषों से कहा जाता है कि सिलेंडर भरवाने जाओ, बैंक के काम के लिए जाओ, तो महिलाओं से क्यों नहीं कहा जाता, तुम बैंक जाओ या सिलेंडर की लाइन में लगो, लड़कियां गाड़ी चलाती हैं, उनसे क्यों नहीं कहा जाता कि गाड़ी बनाने, पहिया बदलने, बैंक के काम करें I यहां तक कि कई महिलाएं ऐसी हैं, जिनके एटीएम कार्ड बने हैं, और वह अपने कार्ड की पिन नंबर तक नहीं जानती I क्योंकि उनके एटीएम से उनका भाई, उनका बेटा, या कोई और पैसे निकालता है I लोगों को अपनी बच्चियों को मजबूत करना है I जिससे वह स्वयं बाहर के काम कर सकें, लोग लड़कियों को शिक्षित करने के साथ-साथ, अपने बेटों को सिखाएं, उनमें अच्छे संस्कार दें I पति पत्नी दोनों अगर सर्विस करते हैं, एक समय पर घर वापस आते हैं, तो घर आने के बाद चाय की जिम्मेदारी दोनों की होनी चाहिए, ना कि सिर्फ पत्नी की, आज का आयोजन हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से बहुत ही अच्छा है I यहां महिलाएं भी हैं, पुरुष भी हैं, इस समय हमारी सरकार भी महिलाओं के लिए कई योजनाएं, जैसे: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ इत्यादि चला रही है I सेंट्रल गवर्नमेंट भी कई योजनाएं महिलाओं के लिए चला रही है I समानता के लिए समय-समय पर कई योजनाएं आती रहती हैं I भ्रूण हत्या पर भी सख्त कानून बना है, और उससे असमानता कम हुई है, और इसी तरह इस समय हमारी सरकार इस पर बहुत काम कर रही है I
उद्बोधन कार्यक्रम में भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के शिक्षकों, छात्राओं व हेल्प यू एजुकेशनल एवं चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवको की उपस्थिति रही।
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Day☛1247✍️+91/CG10☛In Home☛26/03/24 (Tue) ☛ 21:44
अब तो होली भी मना लिया ,साल का पूरा त्यौहार मना लिया ,अब कोई त्यौहार नहीं बचा है ,अब शादी का सीजन आ गया | अपना तो शादी और होली दोनों पूरा हो गया है | अपुन को क्या .....😂🤣
आज ऑफिस बंद था ,होली के एक दो दिनों तक ऑफिस बंद ही रहता है ,होली एक ऐसा त्यौहार है जिसका रंग सप्ताह तक रहता है ,धीरे धीरे बेरंग होते है , आज पूरा दिन घर में डाटा सिलेक्शन का काम किया हूँ ,आज 4 सौ टीचर्स का मोबाइल नंबर छांट कर निकाला हूँ जिनका उपयोग telecalling में किया जायेगा ,अब अकेले काम नहीं करना है टीम वर्क के साथ अपने काम को अन्जाम देना है ,अकेले काम करके देख लिया ,रिजल्ट कम आता है ,अगर लाइफ में कुछ बड़ा करना है तो बड़ा सोचना पड़ेगा और बड़ा प्लान भी बनाना पड़ेगा |
बचपन का वह दिन जब हम छोटे छोटे थे ,दादा जी जिन्दा थे ,वे होली में होलिका दहन के जगह जाते थे ,घर से कंडा (उपले ) लेकर जाते थे ,उसे जलाकर राख बनाकर लाते थे ,उसे घर में संभालकर रखते थे ,हाथ पैरों में राख को लगाते थे ,यह सोचकर कि खसरा रोग न हो जाये ,ऐसी मान्यता थी कि होलिका वाली राख को शारीर में लगाने से खसरा खुजली वाली बीमारी नहीं होती है | मैंने तो वह राख लगाया है भाई ,दुनिया की बात नहीं जानता ,दादा जी ऐसा बोलते थे तो उनकी बातों को मानकर | एक बात आज तक प्रमाणित है कि मुझे खसरा खुजली की बीमारी सच में नहीं हुई है ,वही जो बच्चो को होती है,मुझे ही नहीं हम सभी भाई बहन को ऐसी बीमारी हुई नहीं है | मतलब दादा जी एकदम राईट थे .................👌👍💪
बेबी आज अपने बुआ के घर में है ,पहली बार अपने बुआ के घर गई है ,पहली बार हमारी मैडम भी गीता के घर गई है ,आज ही शाम की वे दोनों वहां पहुंचे है ,शायद कल वहां से घर आ जाए ,नए नए जगहों पर घुमने जाना चाहिए , जान पहचान बढती है ,रिश्ते नाते की खोज खबर होती है ,खैर ...............
सोचता हूँ कि youtube पर कुछ विडियो बनाकर अपलोड करू ,रील बनाऊ ,जैसे की बहुत सारे लोग आजकल करते है ,मगर विचार आता है कि कौन यह सब झंझट करे ,सीधा सा काम तो ढंग से हो नहीं रहा है ,फिर ये रील वील का झंझट अपने से नहीं होगा ,अच्छा है ब्लॉग तक सिमित रहे | अपना अपना स्टाइल है |
आज शेयर मार्केट तीन दिन बाद खुला ,बढ़िया moment देखने को मिला है ,शेयर मार्केट ही अब अपना उद्धारकर्ता है ,उसी को अपना अंतिम विकल्प मानकर आगे बढ़ना चाहता हूँ |.....
ओके गुड नाईट
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#MarriageIn17Minutes
🌸 संत रामपाल जी महाराज एक ऐसे स्वच्छ समाज का निर्माण कर रहे है जिसमें शादी पर कोई आडंबर नहीं, कोई खर्चा नहीं तथा बेटी बोझ नहीं।
Sant Rampal Ji Maharaj
#MarriageIn17Minutes
अज्ञानता तथा सामाजिक कुरीतियों के कारण कितनी मासूम कन्याओं की हत्या तथा आत्महत्या हुई है।हम चाहते हैं ऐसी गलती कोई ना दोहराए।इसलिए संत रामपालजी महाराज के सत्संग सुनकर उनसे निःशुल्क जुड़ें ताकि हमारी तरह आप भी सुखी हों।
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दहेज के लिए जहां नव विवाहिताओं को जिंदा जला दिया जाता है।
वहीं संत रामपाल जी महाराज के आशीर्वाद से हो रही है दहेज मुक्त शादी।
अब दहेज रूपी दानव की भेंट नहीं चढेगी बेटियां। संत रामपाल जी महाराज का सपना दहेज मुक्त हो भारत अपना। 🌱
#MarriageIn17Minutes
Sant Rampal Ji Maharaj
#MarriageIn17Minutes
विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपरा का त्याग :-
विवाह में व्यर्थ का खर्चा त्यागना पड़ेगा। जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारात का आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है।
-जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज।
डाउनलोड करे हमारी Official App "Sant Rampal Ji Maharaj"
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चोरी के जेवर by
Kumkum Singh
किताब के बारे में...
वो बेहद गरीब और अनपढ़ थी, फटे पुराने कपड़े पहनती थी और रूखा सूखा खाती थी। पर अपने ही स्पष्ट विचारों से उसने अपने जीवन को सरस और प्रफुल्लित बना रखा था। और इसी ‘बकरी बाई ‘ ने मुझे एक लेखिका बना दिया। ‘चोरी के जेवर‘ में जेवरों की चोरी ! किसके जेवर ? और क्यों हुई चोरी ? मामला इतना रुचिकर था कि मुझे लिखना ही पड़ा। एक मिसमैच ‘शर्तिया शादी‘ ने ऐसी समस्या पैदा कर दी कि जिसका हल शायद पाठकों के पास हो। सुन्दरता और धन से सब कुछ हासिल करने वालों को भी ऐसा दिन देखना पड़ा ! ये आपको ‘ फूलपुर की हसीना ‘ बतायेगी । ‘ स्काईलैब ‘ के गिरने की आशंका से उपजे निश्चित मौत के डर ने इन्सान को इतना निडर बना दिया कि बस पूछो ही मत । ‘ पान सिन्दूर , चावल ‘ का वो रहस्य क्या था ? कौन ऐसा कर रहा था और आखिर क्यों ?जानने के लिए आपको पढ़ना ही पड़ेगा । हमारा भारतीय समाज भी ऐसा रंगबिरंगा है कि जहाँ एक ओर स्नॉबिश , माडर्न ‘अमेरिकन बुआ‘ हमको हंसाती हैं, वहीं ‘सातवीं फेल‘ बालक हमे रुलाता है। आखिर ‘एक हीरो दो हिरोइन‘ का वो हैन्डसम, काबिल डाक्टर शहर छोड़ कर कहाँ भागा ? और उसके भागने की वजह ? और फिर उसके बाद ? हाँ, सब कुछ ऐसा ही तो हुआ था जैसा मैने लिखा है।
यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!
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क्या है यह DINK : DINK आजकल सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड कर रहा है। इस फ्रेज का मतलब है Dual Income No Kids यानी दोहरी आय, कोई संतान नहीं । आजकल कई जोड़े दोहरी आय और कोई बच्चा नहीं का विकल्प को चुन रहे हैं।
यह शादी के लिए एक ऐसी शर्त या समझौता है जिसमें यह जोड़े बच्चे मुक्त जीवन चाहते हैं, जिसमें यह बच्चों के लालन पालन की जिम्मेदारियां से मुक्त होकर अपना समय और पैसा अपनी खुद के लग्जरी लाइफ, घूमने फिरने और जीवन के हर ऐशो आराम को भोगने में लगाना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर अब DINK प्लेटफार्म भी उपलब्ध है जहां इस तरह की सोच रखने वाले ���ोग एक दूसरे को तलाश रहे हैं।
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इस विवाह में ना कोई दहेज दिया गया और ना ही दहेज लिया गया मात्र 17 मिनट_में_शादी हुई।, जिसमे कोई भी फिजूलखर्ची नही, ना घोडा, ना बारात, न बैंड बाजा और ना ही कोई लेन देन । आज इस युग में नशा व दहेज रूपी कुरीतियों को जड़ से खत्म कर रहे है तथा नेक व सभ्य समाज तैयार कर रहे है संतरामपालजी महाराज व उनके करोड़ों अनुयायी!!
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आत्मा चित्तम भाग 6
‘अविवेक माया है।’ अविवेक का अर्थ है: भेद न कर पाना, डिसक्रिमिनेशन का अभाव, यह तय न कर पाना कि क्या हीरा है और क्या पत्थर है। जीवन के जौहरी बनना होगा। जीवन के जौहरी बनने से ही विवेक पैदा होता है। तुम्हारे पास जीवन है। और तुम खोजो। और इसको मैं खोज की कसौटी कहता हूं कि जो अपने आप चल रहा है, उसे तुम व्यर्थ जानना; और जो तुम्हारे चलाने से भी नहीं चलता है, उसे तुम सार्थक जानना। यह कसौटी है। और जिस दिन तुम्हारे जीवन में वह चलने लगे, जिसे तुम चलाना चाहते थे और जिसका चलना मुश्किल था, उस दिन समझना कि फूल आएंगे। और जिस दिन उसका उगना बंद हो जाए, जो अपने आप उगता था, समझना माया समाप्त हुई। ‘मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता।’ और यह व्यर्थ इतना महत्वपूर्ण हो गया है जीवन में कि जब तुम सार्थक को भी साधने जाते हो, तब भी सार्थक नहीं सधता, व्यर्थ ही सधता है। लोग ध्यान करने आते हैं, तो भी उनकी आकांक्षा को समझने की कोशिश करो तो बड़ी हैरानी होती है। ध्यान से भी वे व्यर्थ को ही मांगते हैं। मेरे पास वे आते हैं, वे कहते हैं कि ध्यान करना चाहता हूं, क्योंकि शारीरिक बीमारियां हैं। क्या आप आश्वासन देते हैं कि ध्यान करने से वे दूर हो जाएंगी? अच्छा होता, वे चिकित्सक के पास गए होते। अच्छा होता कि उन्होंने आदमी खोजा होता, जो शरीर की चिकित्सा करता। वे आत्मा के वैद्य के पास भी आते हैं तो भी शरीर के इलाज के लिए ही। वे ध्यान भी करने को तैयार हैं, तो भी ध्यान उनके लिए औषधि से ज्यादा नहीं है; और वह औषधि भी शरीर के लिए। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि बड़ी कठिनाई में जीवन जा रहा है, धन की असुविधा है; क्या ध्यान करने से सब ठीक हो जाएगा? यह मोह का आवरण इतना घना है कि तुम अगर अमृत क�� भी खोजते हो तो जहर के लिए। बड़ी हैरानी ��ी बात है! तुम चाहते तो अमृत हो; लेकिन उससे आत्महत्या करना चाहते हो। और अमृत से कोई आत्महत्या नहीं होती। अमृत पीया कि त��म अमर हो जाओगे। लेकिन तुम अमृत की तलाश में आते हो तो भी तुम्हारा लक्ष्य आत्महत्या का है। धन या देह, संसार का कोई न कोई अंग, वही तुम धर्म से भी पूरा करना चाहते हो। सुनो लोगों की प्रार्थनाएं, मंदिरों में जाकर वे क्या मांग रहे हैं? और तुम पाओगे कि वे मंदिर में भी संसार मांग रहे हैं। किसी के बेटे की शादी नहीं हुई है; किसी के बेटे को नौकरी नहीं मिली है; किसी के घर में कलह है। मंदिर में भी तुम संसार को ही मांगने जाते हो? तुम्हारा मंदिर सुपर मार्केट होगा, बड़ी दुकान होगा, जहां ये चीजें भी बिकती हैं, जहां सभी कुछ बिकता है। लेकिन तुम्हें अभी मंदिर की कोई पहचान नहीं। इसलिए तुम्हारे मंदिरों में जो पुजारी बैठे हैं, वे दुकानदार हैं; क्योंकि वहां जो लोग आते हैं, वे संसार के ही ग्राहक हैं। असली मंदिर से तो तुम बचोगे। मेरे एक मित्र हैं, दांत के डॉक्टर हैं। उनके घर मैं मेहमान था। बैठा था उनके बैठकखाने में एक दिन सुबह, एक छोटा सा बच्चा डरा-डरा भीतर प्रविष्ट हुआ। चारों तरफ उसने चौंक कर देखा। फिर मुझसे पूछा कि क्या मैं पूछ सकता हूं--बड़े फुसफुसा कर--कि डॉक्टर साहब भीतर हैं या नहीं? तो मैंने कहा, वे अभी बाहर गए हैं। प्रसन्न हो गया वह बच्चा। उसने कहा, मेरी मां ने भेजा था दांत दिखाने। क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं कि वे फिर कब बाहर जाएंगे? बस, ऐसी तुम्हारी हालत है। अगर मंदिर तुम्हें मिल जाए तो तुम बचोगे। दांत का दर्द तुम सह सकते हो; लेकिन दांत का डॉक्टर तुम्हें जो दर्द देगा, वह तुम सहने को तैयार नहीं हो। तुम छोटे बच्चों की भांति हो। तुम संसार की पीड़ा सह सकते हो; लेकिन धर्म की पीड़ा सहने की तुम्हारी तैयारी नहीं है। और निश्चित ही धर्म भी पीड़ा देगा। वह धर्म पीड़ा नहीं देता; वह तुम्हारे संसार के दांत इतने सड़ गए हैं, उनको निकालने में पीड़ा होगी। धर्म पीड़ा नहीं देता; धर्म तो परम आनंद है। लेकिन तुम दुख में ही जीए हो और तुमने दुख ही अर्जित किया है। तुम्हारे सब दांत पीड़ा से भर गए हैं; उनको खींचने में कष्ट होगा। तुम इतने डरते हो उनको खींचे जाने से कि तुम राजी हो उनकी पीड़ा और जहर को झेलने को। उससे तुम विषाक्त हुए जा रहे हो; तुम्हारा सारा जीवन गलित हुआ जा रहा है। लेकिन तुम इस दुख से परिचित हो। आदमी परिचित दुख को झेलने को राजी होता है; अपरिचित सुख से भी भय लगता है! ये दांत भी तुम्हारे हैं। यह दर्द भी तुम्हारा है। इससे तुम जन्मों-जन्मों से परिचित हो। लेकिन तुम्हें पता नहीं कि अगर ये दांत निकल जाएं, यह पीड़ा खो जाए, तो तुम्हारे जीवन में पहली दफा आनंद का द्वार खुलेगा। तुम मंदिर भी जाते हो तो तुम पूछते हो पुजारी से, परमात्मा फिर कब बाहर होंगे, तब मैं आऊं। तुम जाते भी हो, तुम जाना भी नहीं चाहते हो। तुम कैसी चाल अपने साथ खेलते हो, इसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है। निरंतर तुम्हें देख कर, तुम्हारी समस्याओं को देख कर, मैं इस नतीजे
पर पहुंचा हूं कि तुम्हारी एक ही मात्र समस्या है कि तुम ठीक से यही नहीं समझ पा रहे हो कि तुम क्या करना चाहते हो। ध्यान करना चाहते हो? यह भी पक्का नहीं है। फिर ध्यान नहीं होता तो तुम परेशान होते हो। लेकिन जो करने का तुम्हारा पक्का ही नहीं है, वह तुम पूरे-पूरे भाव से करोगे नहीं, आधे-आधे भाव से करोगे। और आधे-आधे भाव से जीवन में कुछ भी नहीं होता। व्यर्थ तो बिना भाव के भी चलता है। उसमें तुम्हें कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं; उसकी अपनी ही गति है। लेकिन सार्थक में जीवन को डालना पड़ता है, दांव पर लगाना होता है। यह सूत्र कहता है: ‘मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता।’ मोह का आवरण इतना घना है कि अगर तुम धर्म की तरफ भी जाते हो तो तुम चमत्कार खोजते हो वहां भी। वहां भी अगर बुद्ध खड़े हों, तुम न पहचान सकोगे। तुम सत्य साईं बाबा को पहचानोगे। अगर बुद्ध और सत्य साईं बाबा दोनों खड़े हों, तो तुम सत्य साईं बाबा के पास जाओगे, बुद्ध के पास नहीं। क्योंकि बुद्ध ऐसी मूढ़ता न करेंगे कि तुम्हें ताबीज दें, हाथ से राख गिराएं; बुद्ध कोई मदारी नहीं हैं। लेकिन तुम मदारियों की तलाश में हो। तुम चमत्कार से प्रभावित होते हो। क्योंकि तुम्हारी गहरी आकांक्षा, वासना परमात्मा की नहीं है; तुम्हारी गहरी वासना संसार की है। जहां तुम चमत्कार देखते हो, वहां लगता है कि यहां कोई गुरु है। यहां आशा बंधती है कि वासना पूरी होगी। जो गुरु हाथ से ताबीज निकाल सकता है, वह चाहे तो कोहिनूर भी निकाल सकता है। बस गुरु के चरणों में, सेवा में लग जाने की जरूरत है, आज नहीं कल कोहिनूर भी निकलेगा। क्या फर्क पड़ता है गुरु को! ताबीज निकाला, कोहिनूर भी निकल सकता है। कोहिनूर की तुम्हारी आकांक्षा है। कोहिनूर के लिए छोटे-छोटे लोग ही नहीं, बड़े से बड़े लोग भी चोर होने को तैयार हैं। जिस आदमी के हाथ से राख गिर सकती है शून्य से, वह चाहे तो तुम्हें अमरत्व प्रदान कर सकता है; बस केवल गुरु-सेवा की जरूरत है! नहीं, बुद्ध से तुम वंचित रह जाओगे; क्योंकि वहां कोई चमत्कार घटित नहीं होता। जहां सारी वासना समाप्त हो गई है, वहां तुम्हारी किसी वासना को तृप्त करने का भी कोई सवाल नहीं है। बुद्ध के पास तो महानतम चमत्कार, आखिरी चमत्कार घटित होता है--निर्वासना का प्रकाश है वहां। लेकिन तुम्हारी वासना से भरी आंखें वह न देख पाएंगी। बुद्ध को तुम तभी देख पाओगे, तभी समझ पाओगे, उनके चरणों में तुम तभी झुक पाओगे, जब सच में ही संसार की व्यर्थता तुम्हें दिखाई पड़ गई हो, मोह का आवरण टूट गया हो। मोह एक नशा है। जैसे नशे में डूबा हुआ कोई आदमी चलता है, डगमगाता; पक्का पता भी नहीं कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है; चलता है बेहोशी में; ऐसे तुम चलते रहे हो। कितना ही तुम सम्हालो अपने पैरों को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी शराबी सम्हालने की कोशिश करते हैं। तुम अपने को भला धोखा दे लो, दूसरों को कोई धोखा नहीं हो पाता। सभी शराबी कोशिश करते हैं कि वे नशे में नहीं हैं; वे जितनी कोशिश करते हैं, उतना ही प्रकट होता है। और यह मोह नशा है। और जब मैं कहता हूं मोह नशा है, तो बिलकुल रासायनिक अर्थों में कहता हूं कि मोह नशा है। मोह की अवस्था में तुम्हारा पूरा शरीर नशीले द्रव्यों से भर जाता है--वैज्ञानिक अर्थों में भी। जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में गिरते हो, तो तुम्हारा पूरे शरीर का खून विशेष रासायनिक द्रव्यों से भर जाता है। वे द्रव्य वही हैं जो भांग में हैं, गांजे में हैं, एल एस डी में हैं। इसीलिए स्त्री अब, जिसके तुम प्रेम में पड़ गए हो, वह स्त्री अलौकिक दिखाई पड़ने लगती है। वह इस पृथ्वी की नहीं मालूम होती। जिस पुरुष के तुम प्रेम में पड़ जाओ, वह पुरुष इस लोक का नहीं मालूम पड़ता। नशा उतरेगा, तब वह दो कौड़ी का दिखाई पड़ेगा। जब तक नशा है! इसलिए तुम्हारा कोई भी प्रेम स्थायी नहीं हो सकता; क्योंकि नशे की अवस्था में किया गया है। वह मोह का एक रूप है। होश में नहीं हुआ है वह, बेहोशी में हुआ है। इसलिए हम प्रेम को अंधा कहते हैं। प्रेम अंधा नहीं है, मोह अंधा है। हम भूल से मोह को प्रेम समझते हैं। प्रेम तो आंख है; उससे बड़ी कोई आंख नहीं है। प्रेम की आंख से तो परमात्मा दिखाई पड़ जाता है--इस संसार में छिपा हुआ। मोह अंधा है; जहां कुछ भी नहीं है वहां सब-कुछ दिखाई पड़ता है। मोह एक सपना है। और जिनको हम योगी कहते हैं, वे भी इस मोह से ग्रस्त होते हैं। सिद्धियां तो हल हो जाती हैं। वे कुछ शक्तियां तो पा लेते हैं। शक्तियां पानी कठिन नहीं है। दूसरे के मन के विचार पढ़े जा सकते हैं--थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत है। दूसरे के विचार प्रभावित किए जा सकते हैं--थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत है। आदमी आए, तुम बता सकते हो कि तुम्हारे मन में क्या खयाल है--थोड़े ही उपाय करने की ��रूरत है। यह विज्ञान है; धर्म का इससे कुछ लेना-देना नहीं है। मन को पढ़ने का विज्ञान है, जैसे किताब
को पढ़ने का विज्ञान है। जो अपढ़ है, वह तुम्हें किताब को पढ़ते देख कर बहुत हैरान होता है--क्या चमत्कार हो रहा है! जहां कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता उसे, काले धब्बे हैं, वहां से तुम ऐसा आनंद ले रहे हो--कविता का, उपनिषद का, वेद का--मंत्रमुग्ध हो रहे हो! अपढ़ देख कर हैरान होता है। मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में वह अकेला ही पढ़ा-लिखा आदमी था। और जब अकेला ही कोई पढ़ा-लिखा आदमी हो तो पक्का नहीं कि वह पढ़ा-लिखा है भी कि नहीं। क्योंकि कौन पता लगाए? गांव में जिसको भी चिट्ठी वगैरह लिखवानी होती, वह नसरुद्दीन के पास आता। वह चिट्ठी लिख देता था। एक दिन एक बुढ़िया आई। उसने कहा कि चिट्ठी लिख दो नसरुद्दीन! नसरुद्दीन ने कहा, अभी न लिख सकूंगा, मेरे पैर में बहुत दर्द है। बुढ़िया ने कहा, हद हो गई! पैर के दर्द से और चिट्ठी लिखने का संबंध क्या? नसरुद्दीन ने कहा, अब उस विस्तार में मत जाओ। लेकिन मैं कहता हूं कि पैर में दर्द है, और मैं चिट्ठी न लिखूंगा। बुढ़िया भी जिद्दी थी। उसने कहा, मैं बिना जाने जाऊंगी नहीं। क्योंकि मैं बेपढ़ी-लिखी हूं, लेकिन यह मैंने कभी सुना नहीं कि पैर के दर्द से चिट्ठी लिखने का क्या संबंध है। नसरुद्दीन ने कहा, तू नहीं मानती तो मैं बता दूं। फिर पढ़ने दूसरे गांव तक कौन जाएगा? वह मुझ ही को जाना पड़ता है। मेरी लिखी चिट्ठी मैं ही पढ़ सकता हूं। अभी मेरे पैर में दर्द है, मैं लिखने वाला नहीं। गैर पढ़ा-लिखा आदमी किताब में खोए आदमी को देख कर चमत्कृत होता है। लेकिन पढ़ना सीखा जा सकता है; उसकी कला है। तुम्हारे मन में विचार चलते हैं। तुम देखते हो विचारों को, दूसरा भी उनको देख सकता है; उसकी कला है। लेकिन उस विचारों को देखने की कला का धर्म से कोई भी संबंध नहीं। न किताब को पढ़ने की कला से धर्म का कोई संबंध है; न दूसरे के मन को पढ़ने की कला से धर्म का कोई संबंध है। जादूगर सीख लेते हैं; वे कोई सिद्ध पुरुष नहीं हैं। लेकिन तुम बहुत चमत्कृत होओगे। तुम गए किसी साधु के पास और उसने कहा कि आओ! तुम्हारा नाम लिया, तुम्हारे गांव का पता बताया और कहा कि तुम्हारे घर के बगल में एक नीम का झाड़ है। तुम दीवाने हो गए! लेकिन साधु को नीम के झाड़ से क्या लेना, तुम्हारे गांव से क्या लेना, तुम्हारे नाम से क्या मतलब! साधु तो वह है जिसे पता चल गया है कि किसी का कोई नाम नहीं, रूप नहीं, किसी का कोई गांव नहीं। ये गांव, नाम, रूप, सब संसार के हिस्से हैं। तुम संसारी हो! वह साधु भी तुम्हें प्रभावित कर रहा है, क्योंकि वह तुमसे गहरे संसार में है। उसने और भी कला सीख ली है। तुम्हारे बिना बताए वह बोलता है। वह तुम्हें प्रभावित करना चाहता है। ध्यान रखो, जब तक तुम दूसरे को प्रभावित करना चाहते हो, तब तक तुम अहंकार से ग्रस्त हो। आत्मा किसी को प्रभावित करना नहीं चाहती। दूसरे को प्रभावित करने में सार भी क्या है? क्या अर्थ है? पानी पर बनाई हुई लकीरों जैसा है। क्या होगा मुझे? दस हजार लोग प्रभावित हों कि दस करोड़ लोग प्रभावित हों, इससे होगा क्या? उनको प्रभावित करके मैं क्या पा लूंगा? अज्ञानियों की भीड़ को प्रभावित करने की इतनी उत्सुकता अज्ञान की खबर देती है। तो राजनेता दूसरों को प्रभावित करने में उत्सुक होता है, समझ में आता है। लेकिन धार्मिक व्यक्ति क्यों दूसरों को प्रभावित करने में उत्सुक होगा? और जब भी तुम दूसरे को प्रभावित करना चाहते हो, तब एक बात याद रखना, तुम आत्मस्थ नहीं हो। दूसरे को प्रभावित करने का अर्थ है कि तुम अहंकार स्थित हो। अहंकार दूसरे के प्रभाव को भोजन की तरह उपलब्ध करता है; उसी पर जीता है। जितनी आंखें मुझे पहचान लें, उतना मेरा अहंकार बड़ा होता है। अगर सारी दुनिया मुझे पहचान ले, तो मेरा अहंकार सर्वोत्कृष्ट हो जाता है। कोई मुझे न पहचाने--गांव से निकलूं, सड़क से गुजरूं, कोई देखे न, कोई रिकग्नीशन नहीं, कोई प्रत्यभिज्ञा नहीं; किसी की आंख में झलक न आए, लोग ऐसा जैसे कि मैं हूं ही नहीं--बस वहां अहंकार को चोट है। अहंकार चाहता है दूसरे ध्यान दें। यह बड़े मजे की बात है। अहंकार ध्यान नहीं करना चाहता; दूसरे उस पर ध्यान करें, सारी दुनिया उसकी तरफ देखे, वह केंद्र हो जाए। धार्मिक व्यक्ति, दूसरा मेरी तरफ देखे, इसकी फिक्र नहीं करता; मैं अपनी तरफ देखूं! क्योंकि अंततः वही मेरे साथ जाएगा। यह तो बच्चों की बात हुई। बच्चे खुश होते हैं कि दूसरे उनकी प्रशंसा करें। सर्टिफिकेट घर लेकर आते हैं तो नाचते-कूदते आते हैं। लेकिन बुढ़ापे में भी तुम सर्टिफिकेट मांग रहे हो? तब तुमने जिंदगी गंवा दी! सिद्धि की आकांक्षा दूसरों को प्रभावित करने में है। धार्मिक व्यक्ति की वह आकांक्षा नहीं है। वही तो सांसारिक का स्वभाव है। यह सूत्र कहता है: ‘मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता।’ वह कितनी ही बड़ी सिद्धियों को पा ले--उसके छूने से मुर्दा जिंदा हो जाए, उसके स्पर्श से बीमारियां खो जाएं, वह पानी को छू दे और
औषधि हो जाए--लेकिन उससे आत्मज्ञान का कोई भी संबंध नहीं है। सच तो स्थिति उलटी है कि जितना ही वह व्यक्ति सिद्धियों से भरता जाता है, उतना ही आत्मज्ञान से दूर होता जाता है। क्योंकि जैसे-जैसे अहंकार भरता है, वैसे-वैसे आत्मा खाली होती है; और जैसे-जैसे अहंकार खाली होता है, वैसे-वैसे आत्मा भरती है। तुम दोनों को साथ ही साथ न भर पाओगे। दूसरे को प्रभावित करने की आकांक्षा छोड़ दो, अन्यथा योग भी भ्रष्ट हो जाएगा। तब तुम योग भी साधोगे, वह भी राजनीति होगी, धर्म नहीं। और राजनीति एक जाल है। फिर येन केन प्रकारेण आदमी दूसरे को प्रभावित करना चाहता है। फिर सीधे और गलत रास्ते से भी प्रभावित करना चाहता है। लेकिन प्रभावित तुम करना ही इसलिए चाहते हो कि तुम दूसरे का शोषण करना चाहते हो। मैंने सुना है, चुनाव हो रहे थे; और एक संध्या तीन आदमी हवालात में बंद किए गए। अंधेरा था, तीनों ने अंधेरे में एक-दूसरे को परिचय दिया। पहले व्यक्ति ने कहा, मैं हूं सरदार संतसिंह। मैं सरदार सिरफोड़सिंह के लिए काम कर रहा था। दूसरे ने कहा, गजब हो गया! मैं हूं सरदार शैतानसिंह। मैं सरदार सिरफोड़सिंह के विरोध में काम कर रहा था। तीसरे ने कहा, वाहे गुरुजी की फतह! वाहे गुरुजी का खालसा! हद हो गई! मैं खुद सरदार सिरफोड़सिंह हूं। नेता, अनुयायी, पक्ष के, विपक्ष के--सभी कारागृहों के योग्य हैं। वही उनकी ठीक जगह है, जहां उन्हें होना चाहिए। क्योंकि पाप की शुरुआत वहां से होती है, जहां मैं दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने चलता हूं। क्योंकि अहंकार न शुभ जानता, न अशुभ; अहंकार सिर्फ अपने को भरना जानता है। कैसे अपने को भरता है, यह बात गौण है। अहंकार की एक ही आकांक्षा है कि मैं अपने को भरूं और परिपुष्ट हो जाऊं। और चूंकि अहंकार एक सूनापन है, सब उपाय करके भी भर नहीं पाता, खाली ही रह जाता है। तो जैसे-जैसे उम्र हाथ से खोती है, वैसे-वैसे अहंकार पागल होने लगता है; क्योंकि अभी तक भर नहीं पाया, अभी तक यात्रा अधूरी है और समय बीता जा रहा है। इसलिए बूढ़े आदमी चिड़चिड़े हो जाते हैं। वह चिड़चिड़ापन किसी और के लिए नहीं है; वह चिड़चिड़ापन अपने जीवन की असफलता के लिए है। जो भरना चाहते थे, वे भर नहीं पाए। और बूढ़े आदमी की चिड़चिड़ाहट और घनी हो जाती है; क्योंकि उसे लगता है कि जैसे-जैसे वह बूढ़ा हुआ है, वैसे-वैसे लोगों ने ध्यान देना बंद कर दिया है; बल्कि लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वह कब समाप्त हो जाए। मुल्ला नसरुद्दीन सौ साल का हो गया था। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम कुछ कारण बता सकते हो नसरुद्दीन कि परमात्मा ने तुम्हें इतनी लंबी उम्र क्यों दी? उसने बिना कुछ झिझक कर कहा, संबंधियों के धैर्य की परीक्षा के लिए। सभी बूढ़े संबंधियों के धैर्य की परीक्षा कर रहे हैं। चौबीस घंटे देख रहे हैं कि ध्यान उनकी तरफ से हटता जा रहा है। मौत तो उन्हें बाद में मिटाएगी, लोगों की पीठ उन्हें पहले ही मिटा देती है। उससे चिड़चिड़ापन पैदा होता है। तुम सोच भी नहीं सकते कि निक्सन का चिड़चिड़ापन अभी कैसा होगा। सब की पीठ हो गई, जिनके चेहरे थे। जो अपने थे, वे पराए हो गए। जो मित्र थे, वे शत्रु हो गए। जिन्होंने सहारे दिए थे, उन्होंने सहारे छीन लिए। सब ध्यान हट गया। निक्सन अस्वस्थ हैं, बेचैन हैं, परेशान हैं। जो भी आदमी जाता है निक्सन के पास, उससे वे पहली बात यही पूछते हैं कि मैंने जो किया वह ठीक किया? लोग मेरे संबंध में क्या कह रहे हैं? अभी यह आदमी शिखर पर था, अब यह आदमी खाई में पड़ा है! यह शिखर और खाई किस बात की थी? यह आदमी तो वही है जो कल था, पद पर था; वही आदमी अभी भी है। सिर्फ अहंकार शिखर पर था, अब खाई में है; आत्मा तो जहां की तहां है। काश! इस आदमी को उसकी याद आ जाए, जिसका न कोई शिखर होता, न कोई खाई होती; न कोई हार होती, न जीत होती; जिसको लोग देखें तो ठीक, न देखें तो ठीक; जिसमें कोई फर्क नहीं पड़ता, जो एकरस है। उस एकरसता का अनुभव तुम्हें तभी होगा, जब तुम लोगों का ध्यान मांगना बंद कर दोगे। भिखमंगापन बंद करो। सिद्धियों से क्या होगा? लोग तुम्हें चमत्कारी कहेंगे; लाखों की भीड़ इकट्ठी होगी। लेकिन लाखों मूढ़ों को इकट्ठा करके क्या सिद्ध होता है--कि तुम इन लाखों मूढ़ों के ध्यान के केंद्र हो! तुम महामूढ़ हो! अज्ञानी से प्रशंसा पाकर भी क्या मिलेगा? जिसे खुद ज्ञान नहीं मिल सका, उसकी प्रशंसा मांग कर तुम क्या करोगे? जो खुद भटक रहा है, उसके तुम नेता हो जाओगे? उसके सम्मान का कितना मूल्य है? सुना है मैंने, सूफी फकीर हुआ, फरीद। वह जब बोलता था, तो कभी लोग ताली बजाते तो वह रोने लगता। एक दिन उसके शिष्यों ने पूछा, हद्द हो गई! लोग ताली बजाते हैं, तुम रोते किसलिए हो? तो फरीद ने कहा कि वे ताली बजाते हैं, तब मैं समझता हूं कि मुझसे कोई गलती हो गई होगी। अन्यथा वे ताली कभी न बजाते। ये गलत लोग! जब वे न ताली बजाते, न उनकी समझ में आता, तभी मैं समझता हूं कि कुछ ठीक बात कह रहा हूं। आखिर गलत आदमी की ताली
का मूल्य क्या है? तुम किसके सामने अपने को ‘सिद्ध’ सिद्ध करना चाह रहे हो? अगर तुम इस संसार के सामने अपने को ‘सिद्ध’ सिद्ध करना चाह रहे हो, तो तुम नासमझों की प्रशंसा के लिए आतुर हो। तुम अभी नासमझ हो। और अगर तुम सोचते हो कि परमात्मा के सामने तुम अपने को सिद्ध करना चाह रहे हो कि मैं सिद्ध हूं, तो तुम और महा नासमझ हो। क्योंकि उसके सामने तो विनम्रता चाहिए। वहां तो अहंकार काम न करेगा। वहां तो तुम मिट कर जाओगे तो ही स्वीकार पाओगे। वहां तुम अकड़ लेकर गए तो तुम्हारी अकड़ ही बाधा हो जाएगी। इसलिए तथाकथित सिद्ध परमात्मा तक नहीं पहुंच पाते। परम सिद्धियां उनकी हो जाती हैं, लेकिन असली सिद्धि चूक जाती है। वह असली सिद्धि है आत्मज्ञान। क्यों आत्मज्ञान चूक जाता है? क्योंकि सिद्धि भी दूसरे की तरफ देख रही है, अपनी तरफ नहीं। अगर कोई भी न हो दुनिया में, तुम अकेले होओ, तो तुम सिद्धियां चाहोगे? तुम चाहोगे कि पानी को छुऊं, औषधि हो जाए? मरीज को छुऊं, स्वस्थ हो जाए? मुर्दे को छुऊं, जिंदा हो जाए? कोई भी न हो पृथ्वी पर, तुम अकेले होओ, तो तुम ये सिद्धियां चाहोगे? तुम कहोगे, क्या करेंगे! देखने वाले ही न रहे। देखने वाले के लिए सिद्धियां हैं। दूसरे पर तुम्हारा ध्यान है, तब तक तुम्हारा अपने पर ध्यान नहीं आ सकता। और आत्मज्ञान तो उसे फलित होता है, जो दूसरे की तरफ से आंखें अपनी तरफ मोड़ लेता है।
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#Dowry_free_marriage ❤️🥰
#GodMorningThursday🙏
दहेज मुक्त विवाह सम्पन्न 💝💝💝
😍😍❣️🙏
अब सच होगा सबका सपना दहेज मुक्त होगा भारत अपना !!
❣️❣️
न हल्दी, न मेहंदी रस्म और न ही कोई पाखण्ड तथा आडम्बर, सिर्फ गुरुवाणी (रमैनी) के तहत 17 मिनिट में विवाह हो गई।
❣️❣️
#SantRampalJiM🙇💗🙏
आज के आधुनिक युग में जहाँ लोग बहुत ही ताम-झाम और लाखो रुपये खर्च कर विवाह करते है वही दूसरी तरफ संतरामपालजी महाराज के ज्ञान से प्रेरित होकर उनके करोड़ों अनुयायी अपने बच्चों का विवाह बहुत ही साधारण तरीके से मात्र 17 मिनट की गुरुवाणी ( रमैनी) से करते है ।
इस विवाह में ना कोई दहेज दिया गया और ना ही दहेज लिया गया मात्र 17 मिनट_में_शादी हुई।, जिसमे कोई भी फिजूलखर्ची नही, ना घोडा, ना बारात, न बैंड बाजा और ना ही कोई लेन देन । आज इस युग में नशा व दहेज रूपी कुरीतियों को जड़ से खत्म कर रहे है तथा नेक व सभ्य समाज तैयार कर रहे है संतरामपालजी महाराज व उनके करोड़ों अनुयायी!!
#दहेज_मुक्त_भारत अभियान के तहत आज #संत_रामपाल_जी_महाराज जी के नेतृत्व में एक अनोखी शादी सम्पन्न हुई जो समाज को एक नई दिशा दे रही है जिसमें ना तो कोई लेन-देन है और ना ही दहेज और ना कोई दूसरा आडंबर ।।
ऐसी शादियां समाज के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है ।
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Top 5 Winter Honeymoon Destinations in India- सर्दियों में हनीमून का अनुभव ही अलग होता है. ठंडी हवा, बर्फ से ढके पहाड़ और रोमांटिक माहौल, सब मिलकर एक जादुई एहसास देते हैं बर्फीली चोटियों के बीच झीलों की खूबसूरती और शांत वातावरण, हनीमून को और भी यादगार बना देते हैं तो चलिए, आज आपको ऐसी ही कुछ खूबसूरत जगहों के बारे में बताते हैं, जो सर्दियों में हनीमून के लिए परफेक्ट हैं! बर्फीले पहाड़ों, रोमांटिक हवाओं और दिल को छू लेने वाले नज़ारों के संग।
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💰दहेज मुक्त विवाह।🥰🙏 💝#शादी नाम तो छोटा सा है पर बखेड़ा इतना बड़ा करते हैं।💝 🙇 शादी का मतलब होता है दो आत्माओ का मिलन।🙇 💞⚡️जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने इस शादी नाम के बखेड़े को एक छोटे से तरीके से सादगी से केवल 17 मिनट में ढाल दिया है इसमें ना कोई बैंड बाजा है ना ही कोई घोड़ी है ना बारात है ना दहेज लेना है ना देना है बस 17 मिनट में सभी देवी देवताओं को साक्षी मानकर दो बच्चों को एक पवित्र रिश्ते में बांध देते है, इसे कहते है रमैनी।⚡️💞 जब गरीब पिता की बेटी बखेड़ा को देखकर दुखी होती है कि मेरी शादी में भी यह सब होगा कि नहीं होगा लेकिन एक पिता अपनी बेटी के लिए कैसे भी करके वह सब कुछ देना चाहता है जो एक अमीर बाप की ओलाद करती है, और इस बीच एक गरीब पिता कर्ज के तले दब जाता है ये समाज में बहुत बड़ा मतभेद बनता जा रहा है और ना जाने कितनी बेटियां इस दहेज की खातिर फांसी पर लटक गई है। आज के आधुनिक युग में जहाँ लोग बहुत ही ताम-झाम और लाखो रुपये खर्च कर विवाह करते है वही दूसरी तरफ संतरामपालजी महाराज के ज्ञान से प्रेरित होकर उनके करोड़ों अनुयायी अपने बच्चों का विवाह बहुत ही साधारण तरीके से मात्र 17 मिनट की गुरुवाणी ( रमैनी) से करते है । इस विवाह में ना कोई दहेज दिया गया और ना ही दहेज लिया गया मात्र 17 मिनट में शादी हुई।, जिसमे कोई भी फिजूलखर्ची नही, ना घोडा, ना बारात, न बैंड बाजा और ना ही कोई लेन देन । आज इस युग में नशा व दहेज रूपी कुरीतियों को जड़ से खत्म कर रहे है तथा नेक व सभ्य समाज तैयार कर रहे है संतरामपालजी महाराज व उनके करोड़ों अनुयायी!! #दहेज_मुक्त_भारत_नशा_मुक्त अभियान के तहत आज #संत_रामपाल_जी_महाराज जी के नेतृत्व में एक अनोखी शादी सम्पन्न हुई जो समाज को एक नई दिशा दे रही है जिसमें ना तो कोई लेन-देन है और ना ही दहेज और ना कोई दूसरा आडंबर ।। ऐसी शादियां समाज के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इसमें सादगी की मिशाल पेश की है इस शादी में ना घोड़ा,ना बाराती,ना बेंड ना बाजे सिर्फ 17 मिनट में रमैणी {शादी} गुरुवाणी के द्वारा हो जाती है। #dowryfreeindia #dowrysystem #dowryfreemarriages #dowryfreeindia_by_saintrampalji View all 24 comments
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सहेली की जान ली, प्रेमी से बोला झूठ, पति को धोखा...खतरनाक अफसाना
मेरठ: वेस्टर्न यूपी का शहर मेरठ में तीन साल पहले इश्क, मर्डर और धोखे की ऐसी वारदात सामने आई थी, जो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी। एक शादीशुदा मुस्लिम युवती ने नाम बदलकर हिंदू लड़के से प्रेम किया। मामला दो धर्मों का था, बात बिगड़ सकती थी। युवती ने खुद की झूठी हत्या की साजिश रची। लोगों को भ्रम में रखने के लिए अपनी एक सहेली को घर में बुलाकर जला दिया। पुलिस भी उसे मृत मान बैठी और युवती अपने प्रेमी के साथ रहने लगी। युवती प्रेग्नेंट हुई तो प्रेमी पर शादी करने का प्रेशर बनाया। प्रेमी ने शादी करने से इनकार कर दिया क्योंकि युवती ने प्रेमी से भी झूठ बोला था कि वह हिंदू है। प्रेग्नेंट युवती फरियाद लेकर थाने गई तो उसकी पोल खुल गई। जिस सहेली की उसने धोखे से हत्या की थी, उसका राजफाश भी हो गया। सरकारी वकील मुकेश कुमार मित्तल ने बताया कि मेरठ की अदालत ने धोखेबाज हत्यारिन युवती को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
प्रेमी से निशा बनकर मिलती रही दोस्त की कातिल अफसाना
मेरठ के लिसाड़ीगेट थाना क्षेत्र में रशीदनगर है। यहां किराये के मकान में रहने वाले अबरार अपनी बीवी अफसाना के साथ रहता था। उसके घर में दो अप्रैल 2019 को संदिग्ध हालत में आग लग गई। आग बुझाई गई तो घर के अंदर से एक महिला की जली हुई लाश मिली। तब हर एक शख्स ने मान लिया कि अबरार की बीवी अफसाना अग्निकांड में जल गई है। घरवालों ने भी बुरी तरह से झुलसी लाश की पहचान अफसाना के तौर पर की। किसी को कानोकान खबर नहीं हुई कि मरने वाली अफसाना नहीं, बल्कि दूसरी महिला जीनत है। रशीदनगर में रहने वाली जीनत से अफसाना की दोस्ती थी। उसने लंबी साजिश के तहत घर बुलाकर जीनत की जान ली थी। अफसाना ने जीनत को नशीला पदार्थ खिलाकर बेहोश किया था, फिर मिनी सिलिंडर से घर में आग लगा दी थी। मगर यह राज सिर्फ 22 दिन तक ही राज बना रहा। पुलिस ने इस केस में एक सतर्कता बरती थी कि शव का डीएनए सैंपल सुरक्षित रख लिया गया था। इस वारदात के बाद अफसाना प्रेमी प्रवीण के घर गोकुलपुरी में रहने लगी। प्रवीण मेरठ में ही टैंपो चलाता था। दोनों के बीच काफी दिनों से नाजायज ताल्लुकात थे। अब अफसाना अपने प्रेमी प्रवीण के साथ घर बसाना चाहती थी। उसने प्रवीण को अपना नाम निशा और धर्म हिंदू बताया था। यह गलती उसे बाद में भारी पड़ गई।
हिंदू प्रेमी ने किया शादी से इनकार तब पहुंची महिला थाना
उधर, जीनत की अचानक गुमशुदगी से उसके घरवाले परेशान थे। जीनत के मायकेवालों को शक था कि उसके पति अशरफ ने गड़बड़ी की है। उन्होंने अशरफ के खिलाफ थाना लिसाड़ी गेट में अशरफ और उसके परिवार वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करा दिया। पुलिस भी दहेज का मामला समझकर जीनत की तलाश करती रही। प्रेमी प्रवीण को निशा उर्फ अफसाना ने बताया कि वह प्रेग्नेंट है, इसलिए अब शादी कर लेनी चाहिए। प्रवीण को पता चला कि निशा का असली नाम अफसाना है और वह मुस्लिम है। इस केस ने 24 अप्रैल 2019 को उस समय अचानक बड़ी करवट ली, जब प्रवीण ने शादी से इनकार कर दिया। गुस्से में के महिला थाने में प्रवीण के खिलाफ प्रेम में धोखा और बहला-फुसलाकर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए शिकायत की। अपनी शिकायत में भी उसने अपना नाम निशा ही बताया। थाने में पुलिस को शक हुआ। पुलिस ने निशा के चेहरे का मिलान अफसाना की तस्वीर से किया तो शक गहरा गया। चार दिन तक वह पुलिस को भी बरगलाती रही। पुलिस ने अफसाना की मां को थाने में बुलाकर पहचान कराई तो सच सामने आ गया।
चार साल बाद मिला जीनत को इंसाफ
28 अप्रैल को पुलिस ने निशा उर्फ अफसाना और उसके प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की पूछताछ में अफसाना ने अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसने बताया कि जीनत की हत्या के बाद उसने मिनी सिलिंडर से घर में आग लगा दी थी। इसके बाद चुपके से गोकुलपुरी पहुंच गई थी। फिर पुलिस ने जीनत की हत्या के साक्ष्य जुटाना शुरू किया। जीनत के बेटी सोफिया का बयान भी काफी अहम रहा। सोफिया ने भी पुष्टि की थी कि दो अप्रैल को उसकी मां जीनत आखिरी बार अफसाना के साथ ही देखी गई थी। इसके बाद करीब चार साल तक केस चला और जनवरी 2024 की शुरुआत में अदालत ने इंसाफ कर दिया। अब निशा उर्फ अफसाना की जिंदगी सलाखों के पीछे गुजरेगी। http://dlvr.it/T0sMgW
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