शिशु विकास को बढ़ावा देने के लिए माताओं ने बच्चों को लोरी और मधुर गीत गाए, अध्ययन कहता है
शिशु विकास को बढ़ावा देने के लिए माताओं ने बच्चों को लोरी और मधुर गीत गाए, अध्ययन कहता है
कोरल पाख [Florida]4 अगस्त : एक नए अध्ययन से पता चला है कि लोरी गाने वाली माताएं शिशु के विकास को बढ़ावा दे सकती हैं। डे ल’एटोइल के अनुसार, शिशु-निर्देशित गायन से बच्चों को उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, जो उन्हें बाद में समाजीकरण, स्कूल और पेशेवर दुनिया में नेविगेट करने की अनुमति देता है, जिन्होंने अपना करियर इस आदत का अध्ययन करने में बिताया है।
बोर्ड-प्रमाणित संगीत चिकित्सक और…
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सपना चौधरी के नए हरियाणवी सॉन्ग 'लोरी' ने मचाई धूम, देसी क्वीन ने नए अंदाज से किया हैरान
सपना चौधरी के नए हरियाणवी सॉन्ग ‘लोरी’ ने मचाई धूम, देसी क्वीन ने नए अंदाज से किया हैरान
सपना चौधरी (सपना चौधरी) का ढाका
नई दिल्ली:
सपना चौधरी (सपना चौधरी) ने अपने जोरदार डांस से पूरे देश में लोकप्रियता हासिल कर ली है। उनके वीडियो सोशल मीडिया पर खूब देखे जाते हैं। सपना चौधरी स्टेज शो के अलावा नई हरियाणवी सॉन्ग और फिल्मों के जरिए दर्शकों का खूब मनोरंजन करती हैं। सपना चौधरी (सपना चौधरी) का हाल ही में नया हरियाणवी सॉन्ग (न्यू हरियाणवी सॉन्ग) ‘लोरी’ (लोरी) रिलीज हुआ है। गाने में डांस से…
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_ _ _ 1 (23/03/2019)
आज शाम की चाय पीते हुए मुझे अपने बचपन की यादों का साथ मिल गया। और मैं उन���ी उंगली थामे निकल पड़ा उस बेफिक्री, बेपरवाह दुनिया में जहां न किसी बात का डर हुआ करता था न किसी की परवाह। शाम को स्कूल से लौटकर खाना खत्म करने की जल्दी थी ताकि खेलने के लिए ज्यादा समय मिल सके। घर से निकलते ही वो अल्हड़पन बाहर आ जाता था। ज़रा गलियों में नज़र दौड़ाई तो खुद को गलियों में कंचे लिए भैया के पीछे भागता हुआ पाया। थोड़ी देर बाद पतंग लिए हुड़दंग मचाते बच्चों के झुण्ड में तो एक बार के लिए खुद को पहचान ही नही पाया। अब शाम हो चली थी। खुद को और भैया को अपने कपड़े ठीक करते और बाल पर हाथ फेरते देख मैं हंसी रोक ही नही पाया। जब हमारी धूल मे सने कपड़े और हाथ पैर में लगी मिट्टी देखकर आई (मम्मी) को बिगड़ना ही था तो हम क्यों इतनी तकलीफ़ उठा रहे थे।
ये सब सोचते-सोचते मैं कब अपनी दादी के पास पहुंच गया पता ही नही चला। अब विचारों और यादों को राह थोड़ी ही न होती है। मेरी दादी अक्सर मेरे बालों पे हाथ फेरा करती थी और कुछ गुनगुनाती रहती थीं। मुझे उनका ऐसे मेरे सर पर हाथ फेरना अच्छा लगता था। मैं भी अपनी आँखें बन्द करके यूँ ही उनकी गोद में सर रखकर लेटा रहता था। वैसे तो वो हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती थीं लेकिन एक गीत मैंने अक्सर उन्हें गुनगुनाते हुए सुना था। वो गीत शायद उनके दिल के बेहद करीब था। तब तो मैं उस गीत को लोरी की तरह सुनकर उसका आनन्द लेता था। लेकिन जब थोड़ी समझ बढ़ी और फिर वो गीत सुना तो लगा कि ज़िन्दगी का फ़लसफा इससे बेहतर और इतनी सादगी से तो कहा या समझाया ही नही जा सकता। उस गीत की कुछ पंक्तियाँ मैं यहाँ लिख रहा हूँ :
अरे! संसार संसार, जसा तवा चुल्ह्यावर
आधी हाताला चटके तेव्हां मिळते भाकर !
ज़िन्दगी को बारीकी से परखती और इसकी तमाम पेचिदिगीयों को सरलता से व्यक्त करने मे सक्षम ये पंक्तियां खुद में सम्पूर्ण मानव जीवन का सार लिए हुए है।
इसका अर्थ है :
ये संसार किसी चूल्हे के ऊपर रखे तवे की भांति है। जिस प्रकार बिना हाथ जलाये तवे से रोटी निकालना कठिन है ठीक उसी प्रकार ज़िन्दगी की किसी भी परेशानी का सामना उससे डटकर ही किया जा सकता है। बिना उनसे लड़े कोई भी सफलता नहीं मिल सकती। यदि हमें सफल होना है तो कठिनाइयों से लड़ना ही पड़ेगा। और तभी असली मायने में हमें सफलता का आनन्द मिलेगा।
हम अक्सर चीज़ों को टालना चाहते हैं। अपनी परेशानियों और कठिनाइयों से बचना चाहते हैं। और हम ऐसा सोचते हैं कि ऐसा करने से हमारी कठिनाइयां हमसे दूर हो जाएंगी। लेकिन खुद सोचें क्या कभी ऐसा हुआ है। नहीं न? बिना कठिनाइयों का सामना किये उनसे पार नही पाया जा सकता।
टालने से या नज़रअंदाज़ करने से वो कुछ समय के लिए हमारी आँखों से ओझल जरूर हो जाती हैं लेकिन कभी न कभी ये वापस जरूर आती हैं और हो सकता है तब ये और भी बड़ी हों।
इसलिए परेशानियों से दूर भागने के बजाय हमें चाहिए कि हम उनका डटकर सामना करें। ज़िन्दगी हमें कई चुनौतियां देती है। हमें हर मोड़ पर परखती है। अगर हम अपनी छोटी छोटी मुश्किलों को हराते चलें तो आगे आने वाली बड़ी से बड़ी चुनौतियां भी हमारे आगे घुटने टेक देंगी। इतनी बड़ी बात इन दो पंक्तियों में क्या खूब कही है।
शायद ज़िन्दगी के इसी मायने को मुझे समझाने के लिए दादी अक्सर इसे गुनगुनाया करती थीं।
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दिल्ली पुलिस ने आयोजित की रंगोली, लोरी और देशभक्ति गीत लेखन प्रतियोगिता
दिल्ली पुलिस ने आयोजित की रंगोली, लोरी और देशभक्ति गीत लेखन प्रतियोगिता
नई दिल्ली, 5 फरवरी: ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ और आजादी के 75 साल मनाने के लिए, पुलिस परिवार कल्याण सोसायटी (पीएफडब्ल्यूएस) और दिल्ली पुलिस ने संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से ‘रंगोली बनाना, लोरी और देशभक्ति गीत’ का आयोजन किया। पुलिस कर्मियों और उनके परिवारों के लिए लेखन प्रतियोगिता’, अधिकारियों ने शनिवार को कहा। आयोजनों के लिए 15,000 से अधिक प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है…
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बाल नाटक:पिराना गीत-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल नाटक:पिराना गीत-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल साहित्य (नाटक )
पिराना गीत
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
बाल नाटक:पिराना गीत
बाल नाटक:पिराना गीत-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
पात्र
बुन्नू : एक छोटी लड़कीमाँ : बुन्नू की माँपापा : बुन्नू के पिता
दृश्य : एक
बुन्नू का बेडरूम
समय : रात लगभग 10.15 बजे
(बुन्नू की माँ बुन्नू को सुलाना चाहती हैं। वह सो नहीं रही है )
माँ :(लोरी की तरह )रात अँधेरी घिर आयी हैकुहरा देखो चढ़ आया हैठंढ अचानक हो बैठी…
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सपना चौधरी नई हरियाणवी गीत लोरी वीडियो सांग इंटरनेट
सपना चौधरी नई हरियाणवी गीत लोरी वीडियो सांग इंटरनेट
सपना चौधरी का धमाका
नयी दिल्ली:
सपना चौधरी ने अपने जोरदार नृत्य से पूरे देश में लोकप्रियता हासिल की है। उनके वीडियो सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर देखे जाते हैं। स्टेज शो के अलावा सपना चौधरी नए हरियाणवी गीतों और फिल्मों के जरिए दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती हैं। सपना चौधरी का नया हरियाणवी गाना ‘लोरी’ हाल ही में रिलीज़ हुआ है। गाने में सपना चौधरी वीडियो के हाउसवाइफ लुक में डांस करते हुए नजर आ रही…
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गोपी प्रेम
या दोहनेऽवहनने मथनोपलेप प्रेंखेंखनार्भरुदितो़क्षणमार्जनादौ। गायन्ति चैनमनुरक्तधियोऽश्रुकण्ठ्योधन्या व्रजस्त्रिय उरुक्रमचित्तयाना:।।{ श्रीमद्भागवत १०.४४.१५ }
धन्य हैं, वे व्रज की गोपियाँ जो गायों को दुहते समय , दही मथते समय, धान कूटते समय, आँगन लीपते समय,बालकों को झुलाते समय,रोते हुये बालकों को लोरी गीत गाकर सुनाते समय,घरों में झाड़ू लगाते समय प्रेमपूर्ण चित्त से आँखों में आँसू भरकर गद्गद वाणी से…
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जाने क्यूं ज़िन्दगी मौत का डर दिखाती हैं
मौत ज़िन्दगी में एक ही बार आती हैं
पर ज़िन्दगी बार बार जिंदा मारती हैं
जाने क्यूं ज़िन्दगी हर दम डराती हैं
मौत शांत निंद्रा के आगोश में ले जाती हैं
ज़िन्दगी खामोश रातों में भी जगाती हैं.
मौत मीठी लोरी सुना कर सुलाती हैं
ज़िन्दगी गम के गीत गाकर रुलाती हैं
जाने क्यूं ज़िन्दगी हर दम रुलाती हैं
मौत अनंत की लम्बी यात्रा पर ले जाती हैं
ज़िन्दगी बार बार उसी मोड़ पर ले आती हैं
मौत जीवन जीने का एक बहाना होती हैं
पर ज़िन्दगी जीवन जीना छीन लेती हैं
जाने क्यूं ज़िन्दगी हर दम सताती हैं
मौत ज़िन्दगी के दिए दर्दों की दवा होती हैं
ज़िन्दगी नए ज़ख्मों की निशानी होती हैं
मौत सिर्फ एक बार ही चिता जलाती हैं
ज़िन्दगी हर बार अग्नि परीक्षा में जलाती हैं
पर ये मौत ज़िन्दगी बिताने के बाद ही आती हैं
जाने क्यूं ये कमबख्त मौत ज़िन्दगी के बाद ही आती हैं
Dr. Manish Shrivastava
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माँ माँ संवेदना है, भावना है, अहसास है माँ माँ जीवन के फूलों में खाुशबू का वास है माँ माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है माँ माँ मरुथल में नदी या मीठा सा झरना है माँ माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है माँ माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है माँ माँ आखों का सिसकता हुआ किनारा है माँ माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है माँ माँ झुलसते दिनों में कोयल की बोली है माँ माँ मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर की रोली है माँ माँ कलम है, दवात है, स्याही है माँ माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है माँ माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है माँ माँ फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है माँ माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है माँ माँ जिंदगी है, मुहल्ले में आत्मा का भवन है माँ माँ चूड़ी वाले हााथों पे मजबूत कंधों का नाम है माँ माँ काशी है, काबा है, चारो धाम है माँ माँ चिंता है, याद है, हिचकी है माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है माँ चूल्हा, धुआँ, रोटी और हाथों का छाला है माँ माँ जिंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है माँ माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है मां बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है तो माँ की यह कथा अनादि है, अध्याय नहीं है और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है तो माँ का महत्व दुनियाँ में कम हो नहीं सकता औ माँ जैसा दुनियाँ में कुछ हो नहीं सकता तो मैं कला की पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ मैं दुनियाँ की सब माताओं को प्रणाम करता हूँ। 🙏 मेरी मां🙏 (at Atulya It Park, Indore, Madhya Pradesh) https://www.instagram.com/p/CAA057WFWB9/?igshid=dr429xwcbs9m
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लोरी : आमाको हृदयबाट गुञ्जने मधुर ध्वनी
‘ए है, लै..लै.’ आमाले जब शिशुलाई काखमा लिन्छन्, तब उनको मुखबाट लयबद्ध ध्वनी गुञ्जन्छ । त्यही लयबद्ध ध्वनीमा मुग्ध भएर शिशु आनन्दित हुन्छन् । र, गहिरो निद्रामा पुग्छन् । लोरी गाउँदा आवाजमा एक किसिमको सन्तुलन हुन्छ । त्यो लयबद्ध र मधुर हुन्छ । यस किसिमको संगीतले शिशुको मस्तिष्कमा राम्रो प्रभाव पार्ने बताइन्छ । आमाको हृदयबाट स्वतस्फूर्त आउने भावनात्मक अभिव्यक्ति हो ।
तपाईं-हामी सबैले आमाको न्यानो काम वा छातीमा लपक्क टाँसिएर लोरी सुन्यौं । संभवत हामीले सुनेका जीवनकालकै पहिलो संगीत थियो त्यो । हुन त त्यसबेलाको अनुभूति अहिले हाम्रो स्मृतिमा छैन । यद्यपि अहिले पनि शिशुलाई काखमा लिएर लोरी गाइरहँदा हामी विछट्टै आन्दानुभूत गर्न पुग्छौं ।
लोरी आमाको दुधपछि ममताको सबैभन्दा मीठो भाव हो । लोरी स्वतस्फूर्त प्रकट हुन्छ । यो कसैले सिकेको वा सिकाइएको होइन । शिशुलाई काखमा लिएपछि आमाको मुखबाट स्वत गुञ्जने ध्वनी हो यो ।
शान्त रातमा जब बच्चालाई काखमा लिन्छन्, तब हृदयको स्पन्दनबाट निस्कन्छ मधुर लोरी । कतै धुन हुँदैन त कतै शब्द । न अर्थ हुन्छ । वस् ध्वनी हुन्छ र त्यसमा भावना मिसिएको हुन्छ ।
केही अध्ययनबाट थाहा भएको छ कि, शिशुमा ताल एवं लय स्मरण गर्ने अद्भूत क्षमता हुन्छ । भनिन्छ, आमाको लोरीले शिशुसँगको भावनात्मक सम्बन्ध अरु प्रगाढ बनाउन मद्दत गर्छ । हरेक बच्चाले लोरीकै माध्यामबाट आफ्नी आमाको आवाज पहिचान गर्न थाल्छन् । लोरीमा स्नेह, करुणा र संरक्षणको भाव हुन्छ । लोरी सुनाइरहँदा आमाको हृदय पनि प्रेमले भरिन्छ ।
लोरीको अर्थ शिशुले बुझ्न सक्दैनन् । तर, त्यो मधुर स्वरलहरीले उनलाई गहिरो निद्रामा पु¥याउँछ ।
लोरीको महिमा
शिशु र आमाबीच भावनात्मक सम्बन्ध अरु प्रगाढ बनाउने माध्याम हो लोरी । लोरी एक लयबद्ध एवं संगीतिक हुने भएकाले शिशुको मानसिक विकासमा त्यसको राम्रो प्रभाव पर्ने बताइन्छ । शिशुको मस्तिष्क विकासमा लोरीको योगदान रहन्छ । लोरीमा आमाले गाउने स्वैरकाल्पनिक कथा वा प्रसंगहरुले बच्चाको कल्पनाशिलता बढ्ने पनि विश्वास गरिन्छ ।
यसले शिशुलाई आनन्दित र सुरक्षित महसुष गराउँछ । आमाको साथमा भएको अनुभूत गराउँछ ।
हराउदै लोरीको चलन
केही समयअघि बलिउड अभिनेत्री सामाजिक सञ्जालमार्फत आफुले लोरी र लोक धुन सिक्दै गरेको बताएकी थिइन् । आफु गर्भवती भएको कारण लोरी सिक्न उत्सुक रहेको उनको भनाई थियो ।
अहिलेको पुस्तामा लोरी सुनाउने प्रचलन भने हराउँदै गएको छ । शिशुलाई सुताउनका लागि अरु नै विधीहरु अपनाउने गरिएको छ । मोबाइलमा गीत वा मीठो धुन सुनाएर शिशुलाई फुल्याउने वा सुताउने गरेका छन् । त्यसो त अहिले कतिपय शिशुहरु धाई आमाको काखमा हुर्किरहेका छन् । यसरी उनीहरु लोरीबाट बिमुख हुँदैछन् ।
लोरीको रोचक इतिहास
मार्कण्डेय पुराणमा मदालसाको एक प्रशिद्ध प्रसंग छ, जसमा मदालसा आफ्ना बच्चा सुताउनका लागि मधुर लोरी गाउँछिन् । मदालसालाई नै लोरीको जननी भनिएको छ । के भनिन्छ भने, सर्वप्रथम मदालसाले आफ्ना पुत्र अलर्कलाई सुताउनका लागि लोरी गाएकी थिइन् । यो विवरण मार्कण्डेय पुराणको १८–१४ औं अध्यायमा पाइन्छ ।
मदालसा विश्ववसु गन्धर्वराजकी छोरी थिइन् । साथै ऋतुध्वजकी पटरानी थिइन् ।
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मां पर लिखी 4 कविताएं, जो बंधनाें से परे हैं; जिसका हर लफ्ज मन को गहराई से छू जाता है https://ift.tt/2WfKmox
इस बार मदर्स डे पर मशहूररचनाकारगुलज़ार, मुनव्वर राणा, निदा फ़ाज़लीऔर कवि ओम व्यास की मां पर लिखी 4 चुनिंदा नज़्में। ये वहरचनाएं हैं जो देश-काल और तमाम बंधनों सेपरे हैं...इनका हर एक शब्द मन कोगहराई तक छू जाता है। आप भी महसूस कीजिए...
देश के 4 मशहूर रचनाकारों की नजर में मां
बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां।
बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे,
आधी सोई, आधी जागी, थकी दुपहरी जैसी मां।
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-अली,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी मां।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,
दिनभर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां।
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गईं ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां।
- निदा फ़ाज़ली
कितना कूड़ा करता है पीपल आंगन में,
मां को दिन में दो बार बोहारी करनी पड़ती है।
कैसे-कैसे दोस्त-यार आते हैं इसके
खाने को ये पीपलियां देता है।
सारा दिन शाखों पर बैठे तोते-घुग्घू,
आधा खाते, आधा वहीं जाया करते हैं।
गिटक-गिटक सब आंगन में ही फेंक के जाते हैं।
एक डाल पर चिड़ियों ने भी घर बांधे हैं,
तिनके उड़ते रहते हैं आंगन में दिनभर।
एक गिलहरी भोर से लेकर सांझ तलक
जाने क्या उजलत रहती है।
दौड़-दौड़ कर दसियों बार ही सारी शाखें घूम आती है।
चील कभी ऊपर की डाली पर बैठी, बौराई-सी,
अपने-आप से बातें करती रहती है।
आस-पड़ोस से झपटी-लूटी हड्डी-मांस की बोटी भी कमबख़्त ये कव्वे,
पीपल ही की डाल पे बैठ के खाते हैं।
ऊपर से कहते हैं पीपल, पक्का ब्राह्मण है।
हुश-हुश करती है मां, तो ये मांसखोर सब,
काएं-काएं उस पर ही फेंक के उड़ जाते हैं,
फिर भी जाने क्यों! मां कहती है-आ कागा
मेरे श्राद्ध पे अइयो, तू अवश्य अइयो !
- गुलज़ार
मां…मां-मां संवेदना है, भावना है अहसास है
मां…मां जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
मां…मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है
मां…मां मरूस्थल में नदी या मीठा सा झरना है,
मां…मां लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
मां…मां पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
मां…मां आंखों का सिसकता हुआ किनारा है,
मां…मां गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
मां…मां झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
मां…मां मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
मां…मां कलम है, दवात है, स्याही है,
मां…मां परमात्मा की स्वयं एक गवाही है,
मां…मां त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
मां…मां फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है,
मां…मां अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
मां…मां जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
मां…मां चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
मां…मां काशी है, काबा है और चारों धाम है,
मां…मां चिंता है, याद है, हिचकी है,
मां…मां बच्चे की चोट पर सिसकी है,
मां…मां चूल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
मां…मां ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है,
मां…मां पृथ्वी है, जगत है, धुरी है,
मां बिना इस सृष्टी की कल्पना अधूरी है,
तो मां की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नहीं है…
…और मां का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो मां का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और मां जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
- स्व. ओम व्यास
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mothers day 2020 special potery of gulzar nida fazli om vyas munavvar rana
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इस बार मदर्स डे पर मशहूररचनाकारगुलज़ार, मुनव्वर राणा, निदा फ़ाज़लीऔर कवि ओम व्यास की मां पर लिखी 4 चुनिंदा नज़्में। ये वहरचनाएं हैं जो देश-काल और तमाम बंधनों सेपरे हैं...इनका हर एक शब्द मन कोगहराई तक छू जाता है। आप भी महसूस कीजिए...
देश के 4 मशहूर रचनाकारों की नजर में मां
बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां।
बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे,
आधी सोई, आधी जागी, थकी दुपहरी जैसी मां।
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-अली,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी मां।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में,
दिनभर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां।
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गईं ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां।
- निदा फ़ाज़ली
कितना कूड़ा करता है पीपल आंगन में,
मां को दिन में दो बार बोहारी करनी पड़ती है।
कैसे-कैसे दोस्त-यार आते हैं इसके
खाने को ये पीपलियां देता है।
सारा दिन शाखों पर बैठे तोते-घुग्घू,
आधा खाते, आधा वहीं जाया करते हैं।
गिटक-गिटक सब आंगन में ही फेंक के जाते हैं।
एक डाल पर चिड़ियों ने भी घर बांधे हैं,
तिनके उड़ते रहते हैं आंगन में दिनभर।
एक गिलहरी भोर से लेकर सांझ तलक
जाने क्या उजलत रहती है।
दौड़-दौड़ कर दसियों बार ही सारी शाखें घूम आती है।
चील कभी ऊपर की डाली पर बैठी, बौराई-सी,
अपने-आप से बातें करती रहती है।
आस-पड़ोस से झपटी-लूटी हड्डी-मांस की बोटी भी कमबख़्त ये कव्वे,
पीपल ही की डाल पे बैठ के खाते हैं।
ऊपर से कहते हैं पीपल, पक्का ब्राह्मण है।
हुश-हुश करती है मां, तो ये मांसखोर सब,
काएं-काएं उस पर ही फेंक के उड़ जाते हैं,
फिर भी जाने क्यों! मां कहती है-आ कागा
मेरे श्राद्ध पे अइयो, तू अवश्य अइयो !
- गुलज़ार
चलती फिरती आंखों से अज़ां देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
-मुनव्वर राणा
मां…मां-मां संवेदना है, भावना है अहसास है
मां…मां जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
मां…मां रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है
मां…मां मरूस्थल में नदी या मीठा सा झरना है,
मां…मां लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
मां…मां पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
मां…मां आंखों का सिसकता हुआ किनारा है,
मां…मां गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
मां…मां झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
मां…मां मेहंदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
मां…मां कलम है, दवात है, स्याही है,
मां…मां परमात्मा की स्वयं एक गवाही है,
मां…मां त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
मां…मां फूंक से ठंडा किया हुआ कलेवा है,
मां…मां अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,
मां…मां जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
मां…मां चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
मां…मां काशी है, काबा है और चारों धाम है,
मां…मां चिंता है, याद है, हिचकी है,
मां…मां बच्चे की चोट पर सिसकी है,
मां…मां चूल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
मां…मां ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है,
मां…मां पृथ्वी है, जगत है, धुरी है,
मां बिना इस सृष्टी की कल्पना अधूरी है,
तो मां की ये कथा अनादि है,
ये अध्याय नहीं है…
…और मां का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो मां का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और मां जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
- स्व. ओम व्यास
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जेना दीवान की बेटी एक बड़ी बहन होने के नाते प्यार करती है: 'वह पूछती रहती है' जब वे 'एक कमरे को साझा कर सकते हैं'
नवजात बेटे कैलम माइकल रेबेल , जेना दीवान और स्टीव काज़ी के साथ जो खुशी का अनुभव कर रहे हैं उसके अलावा, खुशी है कि पूर्व पति चैनिंग टैटम के साथ 6 वर्षीय दीवान की बेटी अब तक बड़ी बहन होने के नाते सब कुछ प्यार कर रही है।
"मैं उसके छोटे भाई से मिलने के लिए बहुत उत्साहित था," दीवान एवरली मीटिंग कैलम के बारे में लोगों को बताता है। “वह अस्पताल आई थी और यह मनमोहक था। उसने उसे झकझोरा, उसने उसके साथ चुदवाया। वह एक छोटे बच्चे की आवाज़ में बात करती रही और वह उसे तस्वीरें दिखा रहा था। ”
39 वर्षीय अभिनेत्री का कहना है कि एवरली विशेष रूप से मामा के "छोटे सहायक" होने से बहुत प्यार करती हैं।
"वह हमेशा कैलम को पकड़ना चाहती है," दीवान कहते हैं। "मैं उसे उस पर नहीं धकेलता, लेकिन वह बहुत उत्साहित है और उसके प्रति बहुत प्यार करती है और खुली और चुदती है।"
"वह मुझसे पूछती रहती है कि जब वह उसके साथ एक कमरा साझा कर सकती है," दीवान एक हंसी के साथ जोड़ता है।
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एवरली की बड़ी बहन के कौशल में कैलम के डायपर और आउटफिट में बदलाव के साथ मॉम की सहायता करना शामिल है।
“वह पोंछना जानती है। मैं दीवान की मदद करने के लिए उसे प्रोत्साहित करता हूं। "मैं उसे दिन के दौरान पहनने के लिए और सोने के लिए उसके आउटफिट लेने देता हूं। उसके पास एक लोरी भी है जिसे वह उसे गाना पसंद करती है। ”
44 साल के दीवान और काज़ी, अपने बेटे कैलम की कई एक्सक्लूसिव तस्वीरें शेयर कर रहे हैं, जिन्हें फोटोग्राफर एलिजाबेथ मेसिना ने लिया है।
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कैलम का जन्म 6 मार्च को लॉस एंजिल्स में सिजेरियन सेक्शन के माध्यम से हुआ था। दीवान का कहना है कि जन्म परिवार के लिए एक "सुंदर" अनुभव था और कैलम का आगमन हुआ, जबकि उनकी एक पसंदीदा सुखदायक गीत पृष्ठभूमि में चल रहा था - "देवी प्रार्थना," 20 मिनट की संस्कृत प्रार्थना आराम और ध्यान के लिए अनुकूल है। ।
"यह एक बहुत ही शांतिपूर्ण गीत है," दीवान कहते हैं। “यह मुझे हमेशा आराम देता है। मैंने अपनी प्लेलिस्ट में डाल दिया और मैंने स्टीव से कहा, 'अगर मुझे कभी ऐसा लगने लगे कि मैं परेशान हो रहा हूं या अगर मैं किसी से रूबरू हो रहा हूं, तो कृपया उसे निभाएं।' वह वास्तव में उस गाने के लिए पैदा हुआ था। ”
दीवान ने यह भी कहा कि वह कैलम के जन्म के लिए तैयार और मौजूद महसूस करती हैं।
"मैं बहुत से लोगों से यह सुनती हूं, कि कुछ ऐसा है जो दूसरे बच्चे के साथ होता है, कि जो हो रहा है उसे जानने में थोड़ा और शांत और शांति है," वह कहती हैं। "यह जानते हुए कि लाइन में क्या आ रहा है, आप थोड़ा अधिक उपस्थित हो सकते हैं और इसका सभी आनंद ले सकते हैं और यह इतना सच है।"
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लोरी - सुतू सुतू बौआ - मैथिली लोरी गीत - Maithili Song 2017 - Pooja
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