बापू जयंती
आओ मिल जाएँ हम सुगंध और सुमन की तरह!
-बापू, मैंने सुना है कि तुम अपने गुरुजी को खूब गाली
देते थे l तुम्हारे पिता स्टेट के दीवान थे l खूब मौज
करते थे l
- सच है ये l शायद मैं मंदबुद्धि था l समझ नही थी l मैंने
"सच के प्रयोग" क़िताब मे इसके बारे मे लिखा है l
वही से तुम मुझे चिढ़ा रहे हो l
-पिता जी रिश्वत लेते थे क्या? देखो सच कह दो l किताब
मे तुमने बहुत कुछ गोल कर दिया है l
-रिश्वत लेते तो क्या मैं राजकोट की देहाती स्कूल मे पढ़ता!
बहुत ही बफादार थे l सत्यप्रेमी थे l हाँ, क्रोधी बहुत थे l
क्रोध सत्यप्रिय का मित्र है l
-तुम फँस जाओगे बापू l मैं कोई तुम्हारा पूजक नहीं और
ना ही कोई राजनीतिज्ञ हूं l पुस्तकों से प्रेम है, पढ़ता हूं l
तुमको भी पढ़ लिया l इसका कतई ये मतलब नही कि
तुमको छोड़ दूँगा l पूरी दुनिया एक तरफ रहे फिर भी
वही कहूँगा जो मैंने खुद तुम्हें पढ़कर तुमको समझा है l
तुम कहते हो दीवान भी थे और रिश्वत भी नही लेते थे?
ऊपर से तुम बिना स्कॉलरशिप के लंदन के इनर टेंपल
मे बैरिस्टरी भी कर बैठे l नेहरू भी वहीँ से बैरिस्टरी की l
तभी तो तू दोनों मे याराना थी l और तुम कहते हो क्रोध
सच बोलने वाले को ही आता है l तुम तो जीवनभर मोम
बने रहे l कभी क्रोधित नही हुए l क्या समझूँ इस व्यवहार
को बापू l
- तुमको मैं कैसे समझा सकूँगा यदि तुमने मन ही बना
लिया कि कैसे भी करके मुझे झूठा सिद्ध करना है l
-बापू, मैं जो कुछ भी पूछ रहा हूँ वे सभी आउट ऑफ
सिलेबस नहीं हैं ब्लकि तुम्हारे द्वारा लिखित तुम्हारे ही
सत्य के प्रयोग से लिए गए प्रश्न हैं l तुमने कोई साहित्य
थोड़े ना लिखी है जो एक वाक्य के लाखों मायने होंगे l
मेरा तुमसे कोई दुश्मनी तो नहीं l तुम हुए उस युग मे और
हम ठहरे इस युग मे l उस काल मे चरखा चलाकर तुमने
अपना रंग जमा लिया l इस युग में मशीन चलाकर भी
लोग रंग नहीं जमा पा रहे हैं l कोड सीखने का समय है l
अब तो न्यूज के ऊपर फैक्ट चेकर बैठे हैं l तुम इस चक्कर
मे मत पड़ो बापू l तुम तो बस वह कहो जो तुमने खुद से
प्रयोग किए हैं l ये वादा है कि एक भी प्रश्न ऐसा नहीं पूछूँगा
जो तुमने प्रयोग मे जिक्र नहीं किए! जैसे कि - - सुभाष बाबु
से तकरार, आई. सी. एस पास थे l अम्बेडकर तो समझो
तुमसे बहुत उपर की चीज थे l उनको भी कांट छांट दी l
ये सब नही पूछूँगा l अच्छा एक बात कहो l तुम अपने माता
जी से बहुत जुड़े थे l अभी हाल ही मे लॉकडाउन हुआ l लोग
अंतिम क्रिया मे नही पहुंच पाए l मजबूरी थी l चाहकर भी
विदेश से नहीं पहुंच सकते थे l एकांत मे जीभरकर जरूर
रोये होंगे l परंतु तुमको खबर भी दी गई कि माँ की तबीयत
ठीक नहीं है l फिर भी तुम नहीं आएl और जब तुम वापिस
आए तो तुम्हारी माताजी को गुजरे महीनों हो चुके थे l तुम
निर्दय लगे मुझे l एकदम चंट l
-मुझे आजीवन यह कष्ट रहा l मेरी माँ बहुत भावुक थी l
पूजा पाठ के बिना कभी भोजन किया हो मुझे याद नहीं l
कठिन से कठिन व्रत करती थी l मुझे लंदन नहीं भेजना
चाहती थी l यहाँ स्वीकार करूंगा कि मैं उस माता को
फिर कभी देख न सका l मैं श्रवण की तरह अपने माता
पिता की सेवा करना चाहता था लेकिन कर न सका l मैंने
बचपन मे श्रवण पितृ भक्ति नाटक पढ़ी थी l बहुत अधिक
प्रभावित हुआ था l मैंने किताब मे जिक्र किया भी है l
-तुम प्रभावित हुए, तुमने जिक्र किया l हा हा हा l तुम इसके
अलावा और कर भी क्या सकते थे बापू l जिस आदमी को
इतिहास मे अपना नाम अमर करने की लालसा हो जाये,
वह प्रभावित के अलावा और करता ही क्या है l वर्तमान मे
भी हैं ऐसे लोग l तुम तीस करोड़ लोगों को हांकने मे सफल
हुए थे और वर्तमान मे लोग अरबों को हांक रहे हैं वो भी तब
जब न्यूज बिजली से तेज फ्लैश होती है l मजा नहीं आ रहा
मुझे l तुम सही सही कुछ कह नहीं रहे हो l एक बात कहो?
जब इंग्लेंड से लौट कर बैरिस्टरी बंबई हाइकोर्ट मे सुरु की,
तो क्या हुआ जो तुम जम नहीं पाए l दो साल करिअर बनाने
की कोशिश की लेकिन तुम किसी को प्रभावित नहीं कर
पाए l गुलाम देश मे तुम तो अंग्रेजों के बीच मे बचपन से
रहे l कोई केश बताओ l दो साल कम नहीं होते l तुम इस
दो साल के बाद ही तो दक्षिण अफ्रीका गए l एक मुस्लिम
व्यापारी ने मौका दी और तुम लपक लिए l
-दो साल तक मैंने बंबई मे बैरिस्टरी की लेकिन एक भी
केश सम्भाल न सका l यहां सभी छाँटे हुए खिलाड़ी थे,
और मैं तर्क मे बिल्कुल ही तंग था l मुझे पढ़ना और
लिखना अच्छा लगता था l तुमने कहा ना कि सुभाष
और अम्बेडकर का नहीं पूछोगे l लेकिन मैं बताता हूं l
एक सभी विषयों का मास्टर था तो दूसरा इतने विषयों
का जानकार की वहाँ मैं कहीं टिक ही नहीं सकता था l
मुझे जाना पड़ा l
-और तभी तुमने अनपढ़ लोगों को फकीर बनकर अपना
शिकार बनाया जैसे वर्तमान मे लोग लाखों की संख्या मे
महात्माओं को सुनते हैं l ये बहुत आसान तरीका है l संख्या
के सामने भला कौन सिर उठा सकेगा l तुमने अपने स्वार्थ
के लिए देश को आग मे झोंक दी l तुम अपने समकालीन
टैगोर, सुभाष, अम्बेडकर, जिन्ना किसी की नहीं सुनी l वही
एक राग लेकर बैठते रहे - "सत्याग्रह" l और बेचारे कुछ भी
नहीं कर सके l आज भी किसी मे हिम्मत नहीं की तुम्हारे
विरुद्ध बात करके चुनाव जीत ले l निष्पक्ष ढंग से कोई यदि
अपनी बात भी रखे तो वे मारे जायेंगे l दो हजार साल पहले,
बुद्ध ने हिम्मत दिखाई और वेद को साफ़ साफ़ नाकार दिया l
चार्वाक ने उनसे पहले ही वेदों को नकार दिया l परंतु जो तुम
करके गए हों उसे कम से कम कोई नेता नाकार नहीं पा रहे l
और ऊपर से जयंती पर छुट्टी देकर तुमको अमर कर दिया
है l
-मैंने तो अपनी सत्यता लिख दी है l लोग निष्पक्ष होकर के
जान सकते हैं l मैंने वही वही किया जो मुझे सही लगा l
लोग भी स्वतन्त्र हैं l वे भी वही करें जो उनको सही लगे l
मैंने किसीकी परवाह नहीं की l जीवन को ठीक वैसे ही
जिया जैसे मैंने पाया l लोग अगर मेरे आगे झुकते हैं तो
ये उनकी स्वतंत्रता है और उनकी अपनी समझ है l अब
तु�� मेरे सामने नहीं झुक सके l गोडसे ने भी गोली मारने
से पहले मेरे पाँव को छूकर प्रणाम किया था l
-और गोली लगने बाद तुमने कहा था - हे राम l एक बात
बताओ बापू l एक नही दो l तुम ठहरे गुजराती l आदतन
गुजराती एक दूसरे को देखकर हरे कृष्णा बोलते हैं l राम
राम उतर भारत मे प्रचलित है l परंतु तुम मरते समय बोल
उठे - हे राम l ये चमत्कार कैसे हुआ l वर्तमान का भी सेन्ट
कृष्ण नहीं बल्कि राम राम ही करता है l
-ये मैं कैसे कह सकूँगा l यह तो मुझे भी याद नहीं l मेरी
हत्या हुई और मैं मर गया l ये अलग बात है कि मेरे विचार
सदैव जीवित रहेंगे l
-जानते हो बापू l तुम्हारी हत्या अगर न होती तो तुम वाकई
सदा अमर रह जाते l लेकिन हत्या ने एक प्रश्नचिह्न लगा
दी है l ये प्रश्न तबतक टंगे रहेंगे जबतक सभी सत्य उतार लेने
वाले देशवासी इस देश मे अवतरित नहीं हो जाते l ऐतिहासिक झूठ को पकडने के लिए हज़ारों साल लगते हैं l
अभी तो सौ बर्ष भी नही हुए तुम्हें गए l लाखों लोग अहिंसा
के पीछे पीछे दौड़ते दौड़ते विभाजन मे मारे गए l सभी प्रश्न
ज्यों के त्यों हैं l मजबूरी का नाम महात्मा गांधी मुहावरा तो
जग जाहिर है l वो प्रबुद्ध कौम आने वाले युग मे तुम्हें ठीक
ठीक पूर्णता मे उजागर कर देंगे l जन्मदिन की बधाई बापू!
- दिशव
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