पीएम नरेंद्र मोदी ने IISC बेंगलुरु में सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च का किया उद्घाटन
पीएम नरेंद्र मोदी ने IISC बेंगलुरु में सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च का किया उद्घाटन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IIsc) बेंगलुरु के कैंपस में 280 करोड़ रुपये की लागत से सेंटर ऑफ ब्रेन रिसर्च (CBR) का उद्घाटन किया। इसी के साथ उन्होंने 832 बिस्तर वाले ‘बागची पार्थसारथी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल’ (Bagchi Parthasarathy Multispeciality Hospital) की नींव रखी।
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PM मोदी ने दी 27 हज़ार करोड़ की सौगात
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अखरोट को ब्रेन फूड कहा जाता है क्योंकि इसमें विटामिन-ई समेत कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं जो दिमाग को दुरुस्त रखते हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है, अखरोट खाने से याद्दाश्त और एकाग्रता बढ़ती है। यह 26 फीसदी तक डिप्रेशन भी घटाता है। इसमें फायबर होने के कारण पेट से जुड़े रोग जैसे कब्ज से भी राहत देता है।
आज वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे है, इस मौके पर जानिए दिमाग को सेहतमंद रखने वाला अखरोट कितनी तरह से फायदा पहुंचाता है-
1. ब्रेन : मेमोरी को बढ़ाने के साथ नर्वस सिस्टम के लिए फायदेमंद
अखरोट में ओमेगा-3 फैट मौजूद होता है। यह गुड फैट है जो हृदय के साथ दिमाग के लिए भी फायदेमंद है। ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर चीजें खाने से याद्दाश्त में सुधार होता है और नर्वस सिस्टम बेहतर काम करता है।
2. बाल : लम्बे और मजबूत बाल चाहिए तो अखरोट खाएं
अखरोट में पोटैशियम, ओमेगा-3, ओमेगा-6 और ओमेगा-9 होता है। ये सभी पोषक तत्व बालों के लिए काफी जरूरी होते हैं। रेग्युलर अखरोट खाते हैं तो बाल लंबे और मजबूत होते हैं। बालों की चमक में भी इजाफा होता है।
3. स्किन : त्वचा की चमक बढ़ाता है
अखरोट में एंटीऑक्सीडेंट के साथ ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो स्किन को चमकदार बनाते हैं। अखरोट में प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फॉस्फोरस, कॉपर, सेलेनियम, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं।
4. हडि्डयों : बोन्स को स्ट्रॉन्ग बनाकर ऑस्टियोपोरोसिस से रोकता है
इसमें अल्फा-लिनोलेनिक एसिड, फॉस्फोरस और कैल्शियम पाया जाता है जो हडि्डयों को मजबूत बनाता है। इसके अलावा यह हड्डियों में ऑस्टियोपोरोसिस होने से रोकता है, साथ ही कॉपर बोन मिनरल डेन्सिटी को बनाए रखता है। अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 फैटी ऐसिड शरीर में सूजन को भी दूर करता है।
5. वेटलॉस : यह वजन घटाने में मदद करता है
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के मुताबिक, बादाम वजन को कंट्रोल करने में भी मदद करता है। अधिक कैलोरी होने के बावजूद यह भूख को कंट्रोल करता है। फायबर होने के कारण यह वेटलॉस करने वालों के लिए फायदेमंद है।
6. डायबिटीज : यह ब्लड शुगर कंट्रोल करता है
बीजिंग में हुई रिसर्च कहती है, अखरोट में एंटी-डायबिटिक खूबी भी है, रक्त में ब्लड शुगर की मात्रा को कम करता है। इससे डायबिटीज के रोगियों को राहत मिल सकती है।
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Akhrot Health Benefits, Walnuts (Akhrot) ke Fayde; Know What are benefits of eating Walnut? All You Need To Know About California University Research
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अखरोट को ब्रेन फूड कहा जाता है क्योंकि इसमें विटामिन-ई समेत कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं जो दिमाग को दुरुस्त रखते हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है, अखरोट खाने से याद्दाश्त और एकाग्रता बढ़ती है। यह 26 फीसदी तक डिप्रेशन भी घटाता है। इसमें फायबर होने के कारण पेट से जुड़े रोग जैसे कब्ज से भी राहत देता है।
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2. बाल : लम्बे और मजबूत बाल चाहिए तो अखरोट खाएं
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4. हडि्डयों : बोन्स को स्ट्रॉन्ग बनाकर ऑस्टियोपोरोसिस से रोकता है
इसमें अल्फा-लिनोलेनिक एसिड, फॉस्फोरस और कैल्शियम पाया जाता है जो हडि्डयों को मजबूत बनाता है। इसके अलावा यह हड्डियों में ऑस्टियोपोरोसिस होने से रोकता है, साथ ही कॉपर बोन मिनरल डेन्सिटी को बनाए रखता है। अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 फैटी ऐसिड शरीर में सूजन को भी दूर करता है।
5. वेटलॉस : यह वजन घटाने में मदद करता है
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के मुताबिक, बादाम वजन को कंट्रोल करने में भी मदद करता है। अधिक कैलोरी होने के बावजूद यह भूख को कंट्रोल करता है। फायबर होने के कारण यह वेटलॉस करने वालों के लिए फायदेमंद है।
6. डायबिटीज : यह ब्लड शुगर कंट्रोल करता है
बीजिंग में हुई रिसर्च कहती है, अखरोट में एंटी-डायबिटिक खूबी भी है, रक्त में ब्लड शुगर की मात्रा को कम करता है। इससे डायबिटीज के रोगियों को राहत मिल सकती है।
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भारत की 5 महिला डॉक्टर की कहानी जिन्होंने जमीनी स्तर पर हेल्थ केयर सेक्टर को नई ऊंचाइयां दी, मेडिकल सेवाओं के लिए अब तक मिल चुके हैं कई सम्मान https://ift.tt/3dIeChq
पिछले कुछ महीनों के दौरान कोरोना से जंग जीतने में देश के डॉक्टर्स द्वारा दिए गए योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। सालों से कई महिला डॉक्टर अपने काम से महिलाओं की दशा सुधार रही हैं। इनके खास योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें कई पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया है। डॉक्टर्स डे पर हम बात कर कर रहे हैं भारत की पांच डॉक्टर्स के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत से मेडिकल क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया।
डॉ. तरू जिंदल
पिता भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेण्टर में वैज्ञानिक थे. 2013 में उन्होंने मुंबई में जाने माने लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज और सायन हॉस्पिटल से ऑब्सटेरिक्स और गाइनेयोकोलोजी में MD की डिग्री ली. MD के बाद इनके पास बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में नौकरी के विकल्प थे लेकिन डॉ. तरु जिंदल ने “केयर इंडिया” और “डॉक्टर्स फॉर यू” के जरिये बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधारे लाने के लिए मोतिहारी, चम्पारण आने का निर्णय लिया. 2017 में मोतिहारी जिला अस्पताल को भारत सरकार द्वारा ‘कायाकल्प अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया। तरू ने बिहार के मसारी में भी हेल्थ केयर सेंटर की शुरूआत की लेकिन ब्रेन ट्यूमर होने की वजह से वे इस अस्पताल में अपना अधिक समय नहीं दे सकीं। उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसका नाम ए डॉक्टर्स एक्सपेरिमेंट इन बिहार है।
डॉ. लीला जोशी
डॉक्टर लीला जोशी ने अपने करियर के शुरूआती दिनों में असम में काम किया था। वहीं उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। मदर टेरेसा से प्रभावित होकर रिटायरमेंट के बाद लीला ने मध्यप्रदेश की आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम किया। डॉक्टर लीला आदिवासी अंचलों में जाकर वहां की महिलाओं का निशुल्क इलाज करती हैं। डॉ. जोशी पिछले 22 सालों से इस कार्य में लगी हुईं है और 82 साल की उम्र में भी उनके जोश में कोई कमी नहीं आई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ लीला जोशी ने आयरन की कमी से जूझती आदिवासी महिलाओं को सेहतमंद बनाने के लिए कैंप लगाए और मुफ्त इलाज किया। इसी उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने 82 वर्षीय लीला जोशी पद्मश्री देने की घोषणा की है।
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस समय सेना की डगर पर पांव रखा, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा ��िया।उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमेन ऑफ द ईयर चुना है। पद्यमावती और उनके पति, दुनिया के पहले ऐसे दंपती हैं, जिन्हें विशिष्ट सेवा पदक एक ही दिन एक साथ मिला था।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
इससे पहले उन्होंने 6 अगस्त 1986 को केईएम अस्पताल में भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया था। डॉ. इंदिरा हिंदुजा का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के शिकारपुर का रहने वाला था। उनका जन्म स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले हुआ था और विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गयी थीं। उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने बॉम्बे युनिवर्सिटी से ह्युमन इन वर्टियो फर्टिलाइजेशन व एंब्रियो ट्रांसफर में पीएचडी की डिग्री हासिल की। 15 जुलाई, 1991 को उन्हें मुंबई के सार्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाने वाले जसलोक अस्पताल में ऑनरेरी ऑब्सटेट्रीशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट बनाया गया और वे अब तक वहां से जुड़ी हैं। कुछ ही वर्षों में बेहद सम्मानित ब्रीच कैंडी अस्पताल और हिंदुजा अस्पताल में भी उन्हें मानद प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओहदा मिल गया। वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वार दिये जाने वाले तीसरे सबसे बड़े पद्म अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2000 में धनवंतरी अवॉर्ड, इंटरनैशनल वूमेन्स डे अवॉर्ड , वर्ष 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, वर्ष 1987 में आउटस्टैंडिंग लेडी ऑफ महाराष्ट्र स्टेट जेसी अवॉर्ड और यंग इंडियन अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
डॉ. शांति रॉय
बिहार के सीवन गांव तक चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में डॉ. शांति रॉय का खास योगदान हैं। गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटट्रिशियन शांति को पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। उन्होंने महिलाओं को दी जाने वाली मेडिकल सेवाओं को विकसित किया। रिटायर होने के बाद वे पटना मेडिकल कॉलेज में गायनेकोलॉजी विभाग की हेड ऑफ द डिपार्���मेंट हैं। काफी व्यस्त होने के बाद वे आज भी महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करती हैं। डॉ. शांति रॉय कहती हैं कि भारत की महिलाएं पति और बच्चों की देखभाल में दिन रात लगी रहती हैं। वे अपने परिवार के लिए रोज अच्छे से अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन जब उनके स्वास्थ्य की बात आती है तो खुद की देखभाल करने में वे सबसे पीछे हैं।
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Story of 5 women doctors of India who gave new heights to the health care sector at the grassroots level, so far, many honors have been received for medical services
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Lifestyle News In Hindi : Story of 5 women doctors of India who gave new heights to the health care sector at the grassroots level, so far, many honors have been received for medical services | 5 महिला डॉक्टर्स की कहानी, डॉ लीला जोशी ने एनीमिक आदिवासी महिलाओं का मुफ्त इलाज किया, डॉ. इंदिरा हिंदुजा ने देश के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया
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Lifestyle News In Hindi : Story of 5 women doctors of India who gave new heights to the health care sector at the grassroots level, so far, many honors have been received for medical services | 5 महिला डॉक्टर्स की कहानी, डॉ लीला जोशी ने एनीमिक आदिवासी महिलाओं का मुफ्त इलाज किया, डॉ. इंदिरा हिंदुजा ने देश के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया
दैनिक भास्कर
Jul 01, 2020, 01:46 PM IST
हमारे देश की महिला डॉक्टर्स द्वारा मेडिकल क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया है। डॉक्टर्स डे पर आज हम बात कर कर रहे हैं भारत की पांच डॉक्टर्स के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत से मेडिकल क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया है।
डॉ. तरु जिंदल
इनके पिता भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिक थे। 2013 में तरु ने मुंबई में मेडिकल कॉलेज और सायन हॉस्पिटल से ऑब्सटेरिक्स और गाइनेयोकोलॉजी में एमडी किया। इसके बाद इनके पास बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में नौकरी के विकल्प थे लेकिन डॉ. तरु ने केयर इंडिया और डॉक्टर्स फॉर यू के जरिये बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधारे लाने के लिए मोतिहारी, चम्पारण आने का निर्णय लिया।
तरु ने इस अस्पताल की दयनीय स्थिति को सुधारने में दिन-रात एक कर दिया। उनके अथक प्रयासों से 2017 में मोतिहारी जिला अस्पताल को भारत सरकार द्वारा ‘कायाकल्प अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया। तरु ने बिहार के मसारी में भी हेल्थ केयर सेंटर की शुरूआत की लेकिन ब्रेन ट्यूमर होने की वजह से वे इस अस्पताल में अपना अधिक समय नहीं दे सकीं।
उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसका नाम ”ए डॉक्टर्स एक्सपेरिमेंट इन बिहार” है।
डॉ. लीला जोशी
डॉक्टर लीला जोशी ने अपने कॅरिअर के शुरूआती दिनों में असम में काम किया था। वहीं उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। मदर टेरेसा से प्रभावित होकर रिटायरमेंट के बाद लीला ने मध्यप्रदेश की आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम किया।
डॉक्टर लीला आदिवासी अंचलों में जाकर वहां की महिलाओं का निशुल्क इलाज करती हैं। डॉ. जोशी पिछले 22 सालों से इस कार्य में लगी हुईं है। 82 साल की उम्र में भी उनके जोश में कोई कमी नहीं आई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लीला जोशी ने आयरन की कमी से जूझती आदिवासी महिलाओं को सेहतमंद बनाने के लिए कैंप लगाए और मुफ्त इलाज किया।
उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने 82 वर्षीय लीला जोशी को पद्मश्री से सम्मानित किया।
डॉ. पद्मावती बंदोपाध्याय
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस जमाने में सेना में जाने का फैसला किया, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया।
सहारानीय कार्यों को देखते हुए उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश-दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं।
उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमन ऑफ द ईयर चुना। पद्मावती और उनके पति दुनिया के पहले ऐसे कपल हैं, जिन्हें विशिष्ट सेवा पदक एक ही दिन एक साथ मिला था।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
6 अगस्त 1986 को केईएम अस्पताल में भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रचने वाली डॉ. इंदिरा हिंदुजा का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के शिकारपुर का रहने वाला था। विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गईं। उन्होंने अपनी शिक���षा-दीक्षा मुंबई में ही क��।
बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ह्युमन इन वर्टियो फर्टिलाइजेशन व एंब्रियो ट्रांसफर में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
15 जुलाई, 1991 को उन्हें मुंबई के सार्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाने वाले जसलोक अस्पताल में ऑनरेरी ऑब्सटेट्रीशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट बनाया गया और वे अब तक वहां से जुड़ी हैं। वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वार दिये जाने वाले तीसरे सबसे बड़े पद्म पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
इसके अलावा उन्हें धनवंतरी अवॉर्ड, इंटरनेशनल वुमनंस डे अवॉर्ड, लाइफटाइम अचीवमेंट और आउटस्टैंडिंग लेडी ऑफ महाराष्ट्र स्टेट जैसे अवार्ड भी मिल चुके हैं।
डॉ. शांति रॉय
बिहार के सीवन गांव तक चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में डॉ. शांति रॉय का खास योगदान हैं। गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटट्रिशियन शांति को पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। उन्होंने महिलाओं को दी जाने वाली मेडिकल सेवाओं को विकसित किया।
रिटायर होने के बाद वे पटना मेडिकल कॉलेज में गायनेकोलॉजी विभाग की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं। काफी व्यस्त होने के बाद आज भी वे महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करने की हर संभव कोशिश करती हैं।
डॉ. शांति रॉय कहती हैं कि भारत की महिलाएं पति और बच्चों की देखभाल में दिन-रात लगी रहती हैं। वे अपने परिवार के लिए रोज अच्छे से अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन जब उनके स्वास्थ्य की बात आती है तो खुद की देखभाल करने में वे सबसे पीछे हैं।
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साइज में छोटा होता है भारतीयों का दिमाग हाल ही हैदराबाद में हुई एक रिसर्च में दिलचस्प बात बात सामने आई है कि भारतीयों के दिमाग का साइज वेस्टर्न और ईस्टर्न देशों के लोगों की तुलना में छोटा होता है। भारतीयों का मस्तिष्क लंबाई, चौड़ाई और घनत्व तीनों में ही पूर्व और पश्चिम के देशों के लोगों की तुलना में कुछ छोटा होता है। रिसर्च के दौरान हैदराबाद आईआईआईटी द्वारा पहली बार इंडियन ब्रेन एटलस तैयार किया गया। यह रिसर्च अल्जाइमर और ब्रेन से जुड़ी अन्य बीमारियों को ध्यान में रखकर की गई। उम्मीद की जा रही है कि इस स्टडी के बाद ब्रेन से जुड़ी परेशानियों को समझने में काफी मदद मिलेगी। यह रिसर्च न्यूरॉलजी इंडिया नामक मेडिकल जरनल में पब्लिश हुई है। यह स्टडी इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हैदराबाद (आईआईआईटी-एच) के शोधकर्ताओं द्वारा की गई। इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाली सेंटर फॉर विजुअल इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के जयंती सिवास्वामी के अनुसार, दिमाग से जुड़ी बीमारियों को मॉनिटर करने के लिए मॉन्ट्रियल न्यूरॉलजिकल इंस्टीट्यूट (एमएनआई) टेंपलेट का उपयोग मानक के रूप में उपयोग किया जाता है।
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Govt Jobs: TMC सहित इन विभागों में निकली बंपर भर्ती, जल्दी करें आवेदन
Govt Jobs: टाटा मेमोरियल सेंटर (TMC) के होमी भाभा कैंसर हॉस्पिटल ने हाल ही साइंटिफिक ऑफिसर, मेडिकल फिजिसिस्ट, ऑफिसर इन चार्ज, इंजीनियर, फोरमैन, सब ऑफिसर, फार्मासिस्ट, टेक्नीशियन आदि समेत कई पदों पर भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी कर आवेदन आमंत्रित किए हैं। कुल 118 पदों पर ये भर्तियां की जाएंगी। विभिन्न पदों के अनुसार आवेदक की उम्र अलग-अलग तय की गई है। आयु सीमा की गणना 16 अगस्त, 2019 के अनुसार की जाएगी। आरक्षित वर्गों को आयु सीमा में छूट का प्रावधान दिया जाएगा।
आवेदन की अंतिम तिथि: 16 अगस्त, 2019
चयन : सेलेक्शन टेस्ट के अलावा साक्षात्कार में बेहतरीन प्रदर्शन के आधार पर अभ्यर्थी को चुना जाएगा।
योग्यता : मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या संस्थान से संबंधित विषय में बीएससी व एमएससी डिग्री प्राप्त हो। इसके अलावा एमबीबीएस, पीजी डिप्लोमा किया हो। आइटीआइ और एनसीटीवीटी कैंडिडेट को संबंधित ट्रेड में तीन वर्षीय कार्यानुभव होना चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए यहां जाएं : https://tmc.gov.in/m_events/Events/getJobHtml/4574
टाटा मेमोरियल सेंटर (TMC) सहित कई सरकारी विभागों में सरकारी नौकरियों हेतु आवेदन करने हेतु नोटिफिकेशन जारी किए गए हैं। आप भी इन नौकरियों के लिए अप्लाई कर सकते हैं। जानिए ऐसी ही कुछ भर्तियों की डिटेल्स के बारे में...
नेहरू युवा केन्द्र संगठन, नई दिल्ली
पद : असिस्टेंट डायरेक्टर, जूनियर कम्प्यूटर प्रोग्रामर, लाइब्रेरियन, सीनियर हिन्दी ट्रांसलेटर, एलडीसी व अन्य पद (337 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि : 07 अगस्त, 2019
सीएसआइआर- नॉर्थ ईस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, असम
पद : साइंटिस्ट और प्रिंसिपल साइंटिस्ट (16 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि : 07 अगस्त, 2019
सेंटर फॉर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम, नई दिल्ली
पद : असिस्टेंट सॉफ्टवेयर इंजीनियर (50 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि: 07 अगस्त, 2019
बिहार स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, पटना
पद : जूनियर लैबोरेट्री असिस्टेंट, मल्टी टास्किंग स्टाफ, फील्ड अटेंडेंट, डाटा एंट्री ऑपरेटर और पैरा टॉक्सोनिस्ट (28 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि: 14 अगस्त, 2019
जामिया मीलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
पद : डिप्टी रजिस्ट्रार, सेक्शन ऑफिसर व अन्य विभिन्न पद (75 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि: 16 अगस्त, 2019
एनएचडीसी लिमिटेड, मध्यप्रदेश
पद : ग्रेजुएट अप्रेंटिस, डिप्लोमा/टेक्नीकल अपे्रंटिस और टेक्नीशियन (वोकेशनल)/आइटीआइ अप्रेंटिस (21 पद)
अंतिम तिथि : 21 अगस्त, 2019
बेसिल, नई दिल्ली
पद : मॉनीटर (25 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि : 14 अगस्त, 2019
आइसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन ट्यूबरक्लोसिस
पद : प्रोजेक्ट टेक्नीकल ऑफिसर, कंसल्टेंट, साइंटिस्ट डी, डेटा एंट्री ऑपरेटर व अन्य (05 पद)
वॉक इन इंटरव्यू व लिखित परीक्षा की तिथि : 09 अगस्त, 2019
नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर, एम्स, नई दिल्ली
पद : कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर, नर्सिंग ऑडर्ली, टेक्नीशियन, लैब अटेंडेंट, टेक्नोलॉजिस्ट व अन्य पद (07 पद)
वॉक इन इंटरव्यू की तिथि : 13 अगस्त, 2019
कैबिनेट सेक्रिटेरियट
पद : इंटरप्रेटर (11 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि: 09 सितम्बर, 2019
नेहरू युवा केन्द्र संगठन, नई दिल्ली
पद : असिस्टेंट डायरेक्टर, जूनियर कम्प्यूटर प्रोग्रामर, लाइब्रेरियन, सीनियर हिन्दी ट्रांसलेटर, एलडीसी व अन्य पद (337 पद)
आवेदन की अंतिम तिथि : 07 अगस्त, 2019
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हर साल 15 लाख युवा इस बीमारी से ग्रस्त, 3 मिनट में हो रही है एक मौत नई दिल्ली: आजकल की लाइफस्टाइल में बेवक्त खाना और काम यूथ में मोटापा और स्ट्रेस बहुत आम है. इसी वजह से उनकी सेहत वक्त से पहले खराब होती जा रही है. हाल ही में आई एक रिसर्च से पता चला है कि इसी लाइफस्टाइल की वजह से युवाओं में ब्रेन स्ट्रोक के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिसके चलते उनके शरीर जिंदगी भर के लिए विकलांग बन सकता है. आयरन और विटामिन B12 की कमी से बच्चे बन सकते हैं आक्रामक फोर्टिस अस्पताल (नोएडा) में न्यूरोसर्जरी विभाग के अतिरिक्त निदेशक एवं वरिष्ठ न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन डॉ. राहुल गुप्ता ने अस्पताल द्वारा आयोजित एक विशेष सत्र में कहा, "कुछ समय पहले तक ��ुवाओं में स्ट्रोक के मामले सुनने में नहीं आते थे, लेकिन अब युवाओं में भी ब्रेन स्ट्रोक आम है. युवाओं में स्ट्रोक के बढ़ते मामलों का मुख्य कारण हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, ब्लड शुगर, हाई कोलेस्ट्रॉल, शराब, धूम्रपान और मादक पदार्थों की लत के अलावा आरामतलब जीवन शैली, मोटापा, जंक फूड का सेवन और तनाव है. युवा रोगियों में यह अधिक घातक साबित होता है, क्योंकि यह उन्हें जीवन भर के लिए विकलांग बना सकता है." जिम जाने से सिर्फ बॉडी ही नहीं बनती, दिमाग भी होता है तेज वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. ज्योति बाला शर्मा ने कहा, "देश में हर साल ब्रेन स्ट्रोक के लगभग 15 लाख नए मामले दर्ज किए जाते हैं. स्ट्रोक भारत में समय से पहले मृत्यु और विकलांगता का एक महत्वपूर्ण कारण बनता जा रहा है. दुनिया भर में हर साल स्ट्रोक से 2 करोड़ लोग पीड़ित होते हैं, जिनमें से 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है और अन्य 50 लाख लोग अपाहिज हो जाते हैं." दिमाग से जुड़ी इस बीमारी के लिए बेहद फायदेमंद है चुकंदर, इस तरह देता है बेनेफिट्स नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन (एनसीबीआई) के अनुसार, कोरोनरी धमनी रोग के बाद स्ट्रोक मौत का सबसे आम कारण है. इसके अलावा यह 'क्रोनिक एडल्ट डिसएबिलिटी' का एक आम कारण है. 55 वर्ष की आयु के बाद 5 में से एक महिला को और 6 में से एक पुरुष को स्ट्रोक का खतरा रहता है. रोज ध्यान लगाने से ढलती उम्र में भी दिमाग रहेगा चुस्त, याद रहेगी हर बात भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान परिषद (आई.सी.एम.आर) के एक अध्ययन के अनुसार, हमारे देश में हर तीन सेकेंड में किसी न किसी व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक होता है और हर तीन मिनट में ब्रेन स्ट्रोक के कारण किसी न किसी व्यक्ति की मौत होती है. डॉ. राहुल गुप्ता ने कहा, "ब्रेन अटैक के नाम से भी जाना जाने वाला ब्रेन स्ट्रोक भारत में कैंसर के बाद मौत का दूसरा प्रमुख कारण है. मस्तिष्क के किसी हिस्से में रक्त की आपूर्ति बाधित होने या गंभीर रूप से कम होने के कारण स्ट्रोक होता है. मस्तिष्क के ऊतकों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी होने पर कुछ ही मिनटों में मस्तिष्क की कोशिकाएं मृत होने लगती हैं जिसके कारण मृत्यु या स्थायी विकलांगता हो सकती है." डॉ. ज्योति बाला शर्मा ने कहा, "इलाज में देरी होने पर लाखों न्यूरॉन्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और मस्तिष्क के अधिकतर कार्य प्रभावित होते हैं. इसलिए रोगी को समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान करना महत्वपूर्ण है क्योंकि स्ट्रोक होने पर शीघ्र बहुआयामी उपचार की आवश्यकता होती है." टिप्पणियां
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मिसाल: रिसर्च के लिए IAS ने डोनेट किया फ्लैट
शारवरी गोखले 1974 बैच की आईएएस अधिकारी थीं। उन्होंने अंधेरी स्थित आशीर्वाद कॉपरेटिव हाउसिंग स्थित अपना अपार्टमेंट ब्रेन रिसर्च के लिए दे दिया। उनकी वसीयत के मुताबिक फ्लैट सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस की स्वायत्त संस्था) को सौंप दिया जाए। http://dlvr.it/NTt5nq
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Financetime.in आईआईएससी को ब्रेन रिसर्च, हेल्थ न्यूज, ईटी हेल्थवर्ल्ड के लिए कृष प्रतीक्षा ट्रस्ट से 450 करोड़ रुपये मिले
बेंगलुरु: भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) ने इंफोसिस के सह-संस्थापक और परोपकारी कृष गोपालकृष्णन और उनकी पत्नी सुधा गोपालकृष्णन द्वारा स्थापित प्रतीक्षा ट्रस्ट के साथ अगले 10 वर्षों में 450.3 करोड़ रुपये (लगभग $55 मिलियन) प्राप्त करने के लिए एक नए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। मस्तिष्क अनुसंधान के लिए।
आईआईएससी और इसके सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च (सीबीआर) के साथ प्रतीक्षा ट्रस्ट के 15 फरवरी के…
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अखरोट को ब्रेन फूड कहा जाता है क्योंकि इसमें विटामिन-ई समेत कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं जो दिमाग को दुरुस्त रखते हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च कहती है, अखरोट खाने से याद्दाश्त और एकाग्रता बढ़ती है। यह 26 फीसदी तक डिप्रेशन भी घटाता है। इसमें फायबर होने के कारण पेट से जुड़े रोग जैसे कब्ज से भी राहत देता है।
आज वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे है, इस मौके पर जानिए दिमाग को सेहतमंद रखने वाला अखरोट कितनी तरह से फायदा पहुंचाता है-
1. ब्रेन : मेमोरी को बढ़ाने के साथ नर्वस सिस्टम के लिए फायदेमंद
अखरोट में ओमेगा-3 फैट मौजूद होता है। यह गुड फैट है जो हृदय के साथ ��िमाग के लिए भी फायदेमंद है। ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर चीजें खाने से याद्दाश्त में सुधार होता है और नर्वस सिस्टम बेहतर काम करता है।
2. बाल : लम्बे और मजबूत बाल चाहिए तो अखरोट खाएं
अखरोट में पोटैशियम, ओमेगा-3, ओमेगा-6 और ओमेगा-9 होता है। ये सभी पोषक तत्व बालों के लिए काफी जरूरी होते हैं। रेग्युलर अखरोट खाते हैं तो बाल लंबे और मजबूत होते हैं। बालों की चमक में भी इजाफा होता है।
3. स्किन : त्वचा की चमक बढ़ाता है
अखरोट में एंटीऑक्सीडेंट के साथ ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो स्किन को चमकदार बनाते हैं। अखरोट में प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फॉस्फोरस, कॉपर, सेलेनियम, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं।
4. हडि्डयों : बोन्स को स्ट्रॉन्ग बनाकर ऑस्टियोपोरोसिस से रोकता है
इसमें अल्फा-लिनोलेनिक एसिड, फॉस्फोरस और कैल्शियम पाया जाता है जो हडि्डयों को मजबूत बनाता है। इसके अलावा यह हड्डियों में ऑस्टियोपोरोसिस होने से रोकता है, साथ ही कॉपर बोन मिनरल डेन्सिटी को बनाए रखता है। अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 फैटी ऐसिड शरीर में सूजन को भी दूर करता है।
5. वेटलॉस : यह वजन घटाने में मदद करता है
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के मुताबिक, बादाम वजन को कंट्रोल करने में भी मदद करता है। अधिक कैलोरी होने के बावजूद यह भूख को कंट्रोल करता है। फायबर होने के कारण यह वेटलॉस करने वालों के लिए फायदेमंद है।
6. डायबिटीज : यह ब्लड शुगर कंट्रोल करता है
बीजिंग में हुई रिसर्च कहती है, अखरोट में एंटी-डायबिटिक खूबी भी है, रक्त में ब्लड शुगर की मात्रा को कम करता है। इससे डायबिटीज के रोगियों को राहत मिल सकती है।
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Akhrot Health Benefits, Walnuts (Akhrot) ke Fayde; Know What are benefits of eating Walnut? All You Need To Know About California University Research
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भारत की 5 महिला डॉक्टर की कहानी जिन्होंने जमीनी स्तर पर हेल्थ केयर सेक्टर को नई ऊंचाइयां दी, मेडिकल सेवाओं के लिए अब तक मिल चुके हैं कई सम्मान
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पिछले कुछ महीनों के दौरान कोरोना से जंग जीतने में देश के डॉक्टर्स द्वारा दिए गए योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। सालों से कई महिला डॉक्टर अपने काम से महिलाओं की दशा सुधार रही हैं। इनके खास योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें कई पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया है। डॉक्टर्स डे पर हम बात कर कर रहे हैं भारत की पांच डॉक्टर्स के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत से मेडिकल क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया।
डॉ. तरू जिंदल
पिता भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेण्टर में वैज्ञानिक थे. 2013 में उन्होंने मुंबई में जाने माने लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज और सायन हॉस्पिटल से ऑब्सटेरिक्स और गाइनेयोकोलोजी में MD की डिग्री ली. MD के बाद इनके पास बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में नौकरी के विकल्प थे लेकिन डॉ. तरु जिंदल ने “केयर इंडिया” और “डॉक्टर्स फॉर यू” के जरिये बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधारे लाने के लिए मोतिहारी, चम्पारण आने का निर्णय लिया. 2017 में मोतिहारी जिला अस्पताल को भारत सरकार द्वारा ‘कायाकल्प अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया। तरू ने बिहार के मसारी में भी हेल्थ केयर सेंटर की शुरूआत की लेकिन ब्रेन ट्यूमर होने की वजह से वे इस अस्पताल में अपना अधिक समय नहीं दे सकीं। उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसका नाम ए डॉक्टर्स एक्सपेरिमेंट इन बिहार है।
डॉ. लीला जोशी
डॉक्टर लीला जोशी ने अपने करियर के शुरूआती दिनों में असम में काम किया था। वहीं उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। मदर टेरेसा से प्रभावित होकर रिटायरमेंट के बाद लीला ने मध्यप्रदेश की आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम किया। डॉक्टर लीला आदिवासी अंचलों में जाकर वहां की महिलाओं का निशुल्क इलाज करती हैं। डॉ. जोशी पिछले 22 सालों से इस कार्य में लगी हुईं है और 82 साल की उम्र में भी उनके जोश में कोई कमी नहीं आई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ लीला जोशी ने आयरन की कमी से जूझती आदिवासी महिलाओं को सेहतमंद बनाने के लिए कैंप लगाए और मुफ्त इलाज किया। इसी उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने 82 वर्षीय लीला जोशी पद्मश्री देने की घोषणा की है।
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस समय सेना की डगर पर पांव रखा, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया।उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमेन ऑफ द ईयर चुना है। पद्यमावती और उनके पति, दुनिया के पहले ऐसे दंपती हैं, जिन्हें विशिष्ट सेवा पदक एक ही दिन एक साथ मिला था।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
इससे पहले उन्होंने 6 अगस्त 1986 को केईएम अस्पताल में भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया था। डॉ. इंदिरा हिंदुजा का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के शिकारपुर का रहने वाला था। उनका जन्म स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले हुआ था और विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गयी थीं। उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने बॉम्बे युनिवर्सिटी से ह्युमन इन वर्टियो फर्टिलाइजेशन व एंब्रियो ट्रांसफर में पीएचडी की डिग्री हासिल की। 15 जुलाई, 1991 को उन्हें मुंबई के सार्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाने वाले जसलोक अस्पताल में ऑनरेरी ऑब्सटेट्रीशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट बनाया गया और वे अब तक वहां से जुड़ी हैं। कुछ ही वर्षों में बेहद सम्मानित ब्रीच कैंडी अस्पताल और हिंदुजा अस्पताल में भी उन्हें मानद प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओहदा मिल गया। वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वार दिये जाने वाले तीसरे सबसे बड़े पद्म अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2000 में धनवंतरी अवॉर्ड, इंटरनैशनल वूमेन्स डे अवॉर्ड , वर्ष 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, वर्ष 1987 में आउटस्टैंडिंग लेडी ऑफ महाराष्ट्र स्टेट जेसी अवॉर्ड और यंग इंडियन अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
डॉ. शांति रॉय
बिहार के सीवन गांव तक चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में डॉ. शांति रॉय का खास योगदान हैं। गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटट्रिशियन शांति को पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। उन्होंने महिलाओं को दी जाने वाली मेडिकल सेवाओं को विकसित किया। रिटायर होने के बाद वे पटना मेडिकल कॉलेज में गायनेकोलॉजी विभाग की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं। काफी व्यस्त होने के बाद वे आज भी महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करती हैं। डॉ. शांति रॉय कहती हैं कि भारत की महिलाएं पति और बच्चों की देखभाल में दिन रात लगी रहती हैं। वे अपने परिवार के लिए रोज अच्छे से अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन जब उनके स्वास्थ्य की बात आती है तो खुद की देखभाल करने में वे सबसे पीछे हैं।
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Story of 5 women doctors of India who gave new heights to the health care sector at the grassroots level, so far, many honors have been received for medical services
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पिछले कुछ महीनों के दौरान कोरोना से जंग जीतने में देश के डॉक्टर्स द्वारा दिए गए योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। सालों से कई महिला डॉक्टर अपने काम से महिलाओं की दशा सुधार रही हैं। इनके खास योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें कई पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया है। डॉक्टर्स डे पर हम बात कर कर रहे हैं भारत की पांच डॉक्टर्स के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत से मेडिकल क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया।
डॉ. तरू जिंदल
पिता भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेण्टर में वैज्ञानिक थे. 2013 में उन्होंने मुंबई में जाने माने लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज और सायन हॉस्पिटल से ऑब्सटेरिक्स और गाइनेयोकोलोजी में MD की डिग्री ली. MD के बाद इनके पास बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में नौकरी के विकल्प थे लेकिन डॉ. तरु जिंदल ने “केयर इंडिया” और “डॉक्टर्स फॉर यू” के जरिये बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधारे लाने के लिए मोतिहारी, चम्पारण आने का निर्णय लिया. 2017 में मोतिहारी जिला अस्पताल को भारत सरकार द्वारा ‘कायाकल्प अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया। तरू ने बिहार के मसारी में भी हेल्थ केयर सेंटर की शुरूआत की लेकिन ब्रेन ट्यूमर होने की वजह से वे इस अस्पताल में अपना अधिक समय नहीं दे सकीं। उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसका नाम ए डॉक्टर्स एक्सपेरिमेंट इन बिहार है।
डॉ. लीला जोशी
डॉक्टर लीला जोशी ने अपने करियर के शुरूआती दिनों में असम में काम किया था। वहीं उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। मदर टेरेसा से प्रभावित होकर रिटायरमेंट के बाद लीला ने मध्यप्रदेश की आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम किया। डॉक्टर लीला आदिवासी अंचलों में जाकर वहां की महिलाओं का निशुल्क इलाज करती हैं। डॉ. जोशी पिछले 22 सालों से इस कार्य में लगी हुईं है और 82 साल की उम्र में भी उनके जोश में कोई कमी नहीं आई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ लीला जोशी ने आयरन की कमी से जूझती आदिवासी महिलाओं को सेहतमंद बनाने के लिए कैंप लगाए और मुफ्त इलाज किया। इसी उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने 82 वर्षीय लीला जोशी पद्मश्री देने की घोषणा की है।
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस समय सेना की डगर पर पांव रखा, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया।उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमेन ऑफ द ईयर चुना है। पद्यमावती और उनके पति, दुनिया के पहले ऐसे दंपती हैं, जिन्हें विशिष्ट सेवा पदक एक ही दिन एक साथ मिला था।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
इससे पहले उन्होंने 6 अगस्त 1986 को केईएम अस्पताल में भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया था। डॉ. इंदिरा हिंदुजा का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के शिकारपुर का रहने वाला था। उनका जन्म स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले हुआ था और विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गयी थीं। उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने बॉम्बे युनिवर्सिटी से ह्युमन इन वर्टियो फर्टिलाइजेशन व एंब्रियो ट्रांसफर में पीएचडी की डिग्री हासिल की। 15 जुलाई, 1991 को उन्हें मुंबई के सार्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाने वाले जसलोक अस्पताल में ऑनरेरी ऑब्सटेट्रीशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट बनाया गया और वे अब तक वहां से जुड़ी हैं। कुछ ही वर्षों में बेहद सम्मानित ब्रीच कैंडी अस्पताल और हिंदुजा अस्पताल में भी उन्हें मानद प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओहदा मिल गया। वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वार दिये जाने वाले तीसरे सबसे बड़े पद्म अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2000 में धनवंतरी अवॉर्ड, इंटरनैशनल वूमेन्स डे अवॉर्ड , वर्ष 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, वर्ष 1987 में आउटस्टैंडिंग लेडी ऑफ महाराष्ट्र स्टेट जेसी अवॉर्ड और यंग इंडियन अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
डॉ. शांति रॉय
बिहार के सीवन गांव तक चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में डॉ. शांति रॉय का खास योगदान हैं। गायन��कोलॉजिस्ट और ऑब्सटट्रिशियन शांति को पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। उन्होंने महिलाओं को दी जाने वाली मेडिकल सेवाओं को विकसित किया। रिटायर होने के बाद वे पटना मेडिकल कॉलेज में गायनेकोलॉजी विभाग की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं। काफी व्यस्त होने के बाद वे आज भी महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करती हैं। डॉ. शांति रॉय कहती हैं कि भारत की महिलाएं पति और बच्चों की देखभाल में दिन रात लगी रहती हैं। वे अपने परिवार के लिए रोज अच्छे से अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन जब उनके स्वास्थ्य की बात आती है तो खुद की देखभाल करने में वे सबसे पीछे हैं।
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पिछले कुछ महीनों के दौरान कोरोना से जंग जीतने में देश के डॉक्टर्स द्वारा दिए गए योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। सालों से कई महिला डॉक्टर अपने काम से महिलाओं की दशा सुधार रही हैं। इनके खास योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें कई पुरुस्कारों से सम्मानित भी किया है। डॉक्टर्स डे पर हम बात कर कर रहे हैं भारत की पांच डॉक्टर्स के बारे में जिन्होंने अपनी मेहनत से मेडिकल क्षेत्र में खास मुकाम हासिल किया।
डॉ. तरू जिंदल
पिता भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेण्टर में वैज्ञानिक थे. 2013 में उन्होंने मुंबई में जाने माने लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज और सायन हॉस्पिटल से ऑब्सटेरिक्स और गाइनेयोकोलोजी में MD की डिग्री ली. MD के बाद इनके पास बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों में नौकरी के विकल्प थे लेकिन डॉ. तरु जिंदल ने “केयर इंडिया” और “डॉक्टर्स फॉर यू” के जरिये बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधारे लाने के लिए मोतिहारी, चम्पारण आने का निर्णय लिया. 2017 में मोतिहारी जिला अस्पताल को भारत सरकार द्वारा ‘कायाकल्प अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया। तरू ने बिहार के मसारी में भी हेल्थ केयर सेंटर की शुरूआत की लेकिन ब्रेन ट्यूमर होने की वजह से वे इस अस्पताल में अपना अधिक समय नहीं दे सकीं। उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसका नाम ए डॉक्टर्स एक्सपेरिमेंट इन बिहार है।
डॉ. लीला जोशी
डॉक्टर लीला जोशी ने अपने करियर के शुरूआती दिनों में असम में काम किया था। वहीं उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। मदर टेरेसा से प्रभावित होकर रिटायरमेंट के बाद लीला ने मध्यप्रदेश की आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काम किया। डॉक्टर लीला आदिवासी अंचलों में जाकर वहां की महिलाओं का निशुल्क इलाज करती हैं। डॉ. जोशी पिछले 22 सालों से इस कार्य में लगी हुईं है और 82 साल की उम्र में भी उनके जोश में कोई कमी नहीं आई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ लीला जोशी ने आयरन की कमी से जूझती आदिवासी महिलाओं को सेहतमंद बनाने के लिए कैंप लगाए और मुफ्त इलाज किया। इसी उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने 82 वर्षीय लीला जोशी पद्मश्री देने की घोषणा की है।
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय
डॉ.पद्मावती बंदोपाध्याय ने उस समय सेना की डगर पर पांव रखा, जब लड़कियों को घर से निकलने की भी आजादी नहीं थी। उन्होंने वायु सेना में तैनाती के दौरान भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया।उन्हें विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और राष्ट्रपति से सम्मान पदक सहित देश दुनिया में करीब एक दर्जन से ज्यादा सम्मान मिल चुके हैं। हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड ने वर्ष 2014 के लिए वुमेन ऑफ द ईयर चुना है। पद्यमावती और उनके पति, दुनिया के पहले ऐसे दंपती हैं, जिन्हें विशिष्ट सेवा पदक एक ही दिन एक साथ मिला था।
डॉ. इंदिरा हिंदुजा
इससे पहले उन्होंने 6 अगस्त 1986 को केईएम अस्पताल में भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म करा कर इतिहास रच दिया था। डॉ. इंदिरा हिंदुजा का परिवार मूल रूप से पाकिस्तान के शिकारपुर का रहने वाला था। उनका जन्म स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले हुआ था और विभाजन के बाद वह परिवार के साथ भारत आ गयी थीं। उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में ही की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से स्त्री रोग विज्ञान में एमडी की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने बॉम्बे युनिवर्सिटी से ह्युमन इन वर्टियो फर्टिलाइजेशन व एंब्रियो ट्रांसफर में पीएचडी की डिग्री हासिल की। 15 जुलाई, 1991 को उन्हें मुंबई के सार्वाधिक प्रतिष्ठित माने जाने वाले जसलोक अस्पताल में ऑनरेरी ऑब्सटेट्रीशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट बनाया गया और वे अब तक वहां से जुड़ी हैं। कुछ ही वर्षों में बेहद सम्मानित ब्रीच कैंडी अस्पताल और हिंदुजा अस्पताल में भी उन्हें मानद प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओहदा मिल गया। वर्ष 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वार दिये जाने वाले तीसरे सबसे बड़े पद्म अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2000 में धनवंतरी अवॉर्ड, इंटरनैशनल वूमेन्स डे अवॉर्ड , वर्ष 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, वर्ष 1987 में आउटस्टैंडिंग लेडी ऑफ महाराष्ट्र स्टेट जेसी अवॉर्ड और यंग इंडियन अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
डॉ. शांति रॉय
बिहार के सीवन गांव तक चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में डॉ. शांति रॉय का खास योगदान हैं। गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटट्रिशियन शांति को पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। उन्होंने महिलाओं को दी जाने वाली मेडिकल सेवाओं को विकसित किया। रिटायर होने के बाद वे पटना मेडिकल कॉलेज में गायनेकोलॉजी विभाग की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं। काफी व्यस्त होने के बाद वे आज भी महिलाओं को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करती हैं। डॉ. शांति रॉय ���हती हैं कि भारत की महिलाएं पति और बच्चों की देखभाल में दिन रात लगी रहती हैं। वे अपने परिवार के लिए रोज अच्छे से अच्छा खाना बनाती हैं। लेकिन जब उनके स्वास्थ्य की बात आती है तो खुद की देखभाल करने में वे सबसे पीछे हैं।
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