वजन कम करने के लिए क्या खाएं सूजी या बेसन? जानिए इनके फायदे
वजन कम करने के लिए क्या खाएं सूजी या बेसन? जानिए इनके फायदे
वजन घटाने के लिए डाइटिंग: आप सभी ने सूजी और चने का सेवन जरूर किया होगा। ज्यादातर लोग इनका इस्तेमाल हलवा, ढोकला, चीला, उत्तपम, डोसा, लड्डू जैसे स्वादिष्ट व्यंजन बनाने में करते हैं। सूजी और बेसन दोनों ही काफी हेल्दी फूड माने जाते हैं। ये पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। सूजी और बेसन दोनों ही बहुत फायदेमंद होते हैं।
वैसे तो आप वजन घटाने के लिए बेसन और बेसन दोनों खा सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कन्फ्यूजन…
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परेश रावल स्टारर 'द स्टोरीटेलर' बुसान फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए तैयार
परेश रावल स्टारर ‘द स्टोरीटेलर’ बुसान फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए तैयार
छवि स्रोत: IANS परेश रावल
परेश रावल, आदिल हुसैन, तनिष्ठा चटर्जी और रेवती द्वारा अभिनीत ‘द स्टोरीटेलर’ दक्षिण कोरिया में जल्द ही आयोजित होने वाले बुसान फिल्म महोत्सव में अपने वर्ल्ड प्रीमियर के लिए तैयार है। इसके अलावा वह सम्मानित ‘किम जिससेक’ पुरस्कार के लिए भी दावेदारी पेश करेगी। इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए, फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने एक बयान में कहा, “मैं बुसान इंटरनेशनल फिल्म…
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रहा न नगर बसन घृत तेला || बाढ़ी पूछ कीन्ह कपि खेला | सुंदर कांड || Sund...
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( #Muktibodh_part200 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part201
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 382-383
◆ज्ञानप्रकाश◆
दोहा - निर्गुण सर्गुण आदिहौ, अविगति अगम अथाह॥
गुप्त भये जग महँ फिरो, को तुव पाये थाह॥
सोरठा - मोहि परचे तुम दीन्ह, ताते चीन्दउँ तोदि प्रभु॥
भये चरण लोलीन, दुचिताई सकलो गयी।।
◆चौपाई
कीट ते भङ्ग मोहि प्रभुकीन्हा। निश्चलरंग आपनो दीन्हा।।
जिमिनिलते जग होय फुलेला। तिमि मोहिं भयोसमर्थपदमेला॥
पारस परसि लोहा जिमिहेमा। तिमि मोहिं भयउनाथव्रतनेमा।।
अगर परसि जिमिभयोसुवासा। जल प्रसंग बसन मल नासा॥
सनपट शुद्ध सूत कहे न कोई। प्रभुगुण लखित शिरनावे लोई॥
हे प्रभु तिमिमाहिं भयउ अनंदा। जिमिचकोरहरहितलखिचंदा॥
जनम मरण भी संशय नाशी। तवपद सुखनिधान सुखराशी॥
हे प्रभु अस शिख दीजै मोही। एको पल न विसारौ तोही॥
◆ सतगुरू वचन
जस मनसा तस आगे आवे। कहै कबीर इजा नहिं पावै॥
धर्मनि गुरुहि दोष देइ प्रानी। आपु करहिनर आपनहानी॥
जो गुरु वचन कहे चित लाई। बयापै नाहिं ताहि दुचिताई।।
जो गुरुचरन शिष्य संयोगा। उपजे ज्ञान न नासै भ्रम रोगा।।
जिमि सौदागर साहु मिलाहीं। पूँजि जोग बहु लाभ बढ़ाहीं॥
सतगुरु साहु सन्त सौदागर। सजीशब्द गुरुयोगा बहुनागर।।
जो गुरु शब्द कहे विश्वासा। गुरु पूरा पुरवहिं आसा।।
बिनु विश्वासा पावे दुखचेला। गहे न निश्चय हृदय गुरुमेला॥
सुत नारी तन मन धन जाई। तन जोरहे न प्रीति हटाई॥
शूरा हंस सोई कहलावै। अग्नि रहे तो शोक न लावे॥
जो विचले तो यम धरि खायी। अड़ा रहे तो निज घर जायी।
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 60 की है(attach in post)
सत्यलोक तथा परमेश्वर को सत्यलोक में पहचानकर धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी का धन्यवाद किया। कहा है कि जैसे पारस पत्थर से स्पर्श होने के पश्चात् लोहा स्वर्ण बन जाता है। ऐसे मेरा जीवन सत्य भक्ति से बहुमूल्य हो गया है। मेरा जन्म-मरण समाप्त हो जाएगा। जैसे भृंग, कीट को अपने समान बना लेता है, ऐसे आप जी ने मेरे को अपना शिष्य बनाया है। गुरू का शब्द (मन्त्र) विश्वास के साथ गहे (ग्रहण) करे तो उस शिष्य की मनोकामना गुरू पूरी करता है। सतगुरू भक्ति धन का शाह (सेठ) यानि धनी होता है। सेठ से धन लेकर
जो अपना व्यापार बढ़ाता है तो धनी हो जाता है यानि शिष्य गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करता है तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘
के पृष्ठ 61 में गुरू की महिमा बताई है। पढ़ने से आसानी से समझ आती है। अधिक सरलार्थ की आवश्यकता नहीं है।
◆ ज्ञानप्रकाश ◆
सोइ हम सोइ तुम सोइ अनन्ता। कहैं कबीर गुरु पारस सन्ता॥
सन्त चेतु चित सतगुरु ध्याना। कहै कबीर सद्गुरु परमाना॥
सतगुरु शब्द ज्ञान गुरु पुजा। कहैं कबीर लखु मोहनकुंजा॥
कुंज मोहि मोहन ठहरावे। कहै कबीर सोइ सन्त कहावे॥
सन्त कहाय जो सोधे आपू। कहैं कबीर तेहि पुण्य न पापू॥
पुण्य पाप नहिं मान गुमाना। कहैं कबीर सो लोक समाना॥
जिन्दा मुरदा चीन्है जीवा। कहैं कबीर सतगुरु निज पीवा॥
मुरदा जग जिन्दा सतनामा। कहैं कबीर सतगुरु निजधामा।।
यक जग जीते यक जग हारे। कहे कबीर गुरु काज सँवारे॥
◆ धर्मदास वचन
कौन जग जीते कौन जग हारे । कहौ कौन विधि काज सवारे॥
◆ सतगुरू वचन
इन्द्रिन जीते साधुन सो हारे। कहैं कबीर सतगुरु निस्तारे॥
सतगुरु सो सत्यनाम लखावे। सतपुर ले हंसन पहुँचावे॥
सत्यनाम सतगुरु तत भाखा। शब्द ग्रन्थ कथि गुप्तहिं राखा॥
सत्य शब्द गुरु गम पहिचाना। विनु जिभ्या करु अमृत पाना॥
सत्य सुरति अम्मर सुख चीरा । अमी अंकका साजहु वीरा॥
सोहं ओमं जावन वीरू। धर्मदास सो कहे कबीरू॥
धरिहौ गोय कहिहौ जिन काहीं । नाद सुशील लखेडो ताहीं॥
प्रथमहि नाद विन्द तब कीन्हा। मुक्ति पन्थसो नाद गहिचीन्हा॥
नाद सो शब्द पुरुष मुख बानी। गुरुमुख शब्द सो नाद बखानी॥
पुरुष नाद सुत पोडश अहई । नाद पुत्र शिष्यशब्द जो लहई।।
शब्द प्रतीति गहै जो हंसा। शब्द चालु जेहिसे मम बशा॥
शब्द चाल नाद दृढ़ गहहै। यम शिर पगु देइ सो निस्तरई॥
सुमिरण दया सेवा चित धरई । सत्यनाम गहि हंसा तरई॥
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 62 की है। इसमें सत्यनाम भी लिखा है जो धर्मदास को परमेश्वर कबीर जी ने जाप के लिए दिया था।
यह अपभ्रंश किया है :-
सोहं ओहं जानव बीरू। धर्मदास से कहा कबीरू।।
सत्य शब्द (नाम) गुरू गम पहिचाना। बिन जिभ्या करू अमृत पाना।।
विवेचन :- आप जी ने कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ की फोटोकॉपी पढ़ी।
ये प्रमाण के लिए लगाई हैं। भले ही इनमें कुछ मिलावट है, परंतु कुछ सच्चाई भी बची है। इस पृष्ठ पर यह भी स्पष्ट किया है कि नाद पुत्र दो प्रकार के हैं। जैसे सतलोक में सतपुरूष ने सोलह वचनों से सोलह सुत उत्पन्न किए थे। वे नाद पुत्र हैं तथा धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली थी तो धर्मदास जी भी नाद पुत्र हुए। इसी प्रकार जो गुरू से दीक्षा
लेता है, वह नाद पुत्र होता है। उसे वचन पुत्र भी कहते हैं। अब आप जी को आत्मा (धर्मदास जी) तथा परमात्मा (कबीर बन्दी छोड़ जी) का यथार्थ संवाद अर्थात् धर्मदास जी को शरण में लेने का यथार्थ प्रकरण सुनाता हूँ।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#MuktiBodh_Part201
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 382-383
◆ज्ञानप्रकाश◆
दोहा - निर्गुण सर्गुण आदिहौ, अविगति अगम अथाह॥
गुप्त भये जग महँ फिरो, को तुव पाये थाह॥
सोरठा - मोहि परचे तुम दीन्ह, ताते चीन्दउँ तोदि प्रभु॥
भये चरण लोलीन, दुचिताई सकलो गयी।।
◆चौपाई
कीट ते भङ्ग मोहि प्रभुकीन्हा। निश्चलरंग आपनो दीन्हा।।
जिमिनिलते जग होय फुलेला। तिमि मोहिं भयोसमर्थपदमेला॥
पारस परसि लोहा जिमिहेमा। तिमि मोहिं भयउनाथव्रतनेमा।।
अगर परसि जिमिभयोसुवासा। जल प्रसंग बसन मल नासा॥
सनपट शुद्ध सूत कहे न कोई। प्रभुगुण लखित शिरनावे लोई॥
हे प्रभु तिमिमाहिं भयउ अनंदा। जिमिचकोरहरहितलखिचंदा॥
जनम मरण भी संशय नाशी। तवपद सुखनिधान सुखराशी॥
हे प्रभु अस शिख दीजै मोही। एको पल न विसारौ तोही॥
◆ सतगुरू वचन
जस मनसा तस आगे आवे। कहै कबीर इजा नहिं पावै॥
धर्मनि गुरुहि दोष देइ प्रानी। आपु करहिनर आपनहानी॥
जो गुरु वचन कहे चित लाई। बयापै नाहिं ताहि दुचिताई।।
जो गुरुचरन शिष्य संयोगा। उपजे ज्ञान न नासै भ्रम रोगा।।
जिमि सौदागर साहु मिलाहीं। पूँजि जोग बहु लाभ बढ़ाहीं॥
सतगुरु साहु सन्त सौदागर। सजीशब्द गुरुयोगा बहुनागर।।
जो गुरु शब्द कहे विश्वासा। गुरु पूरा पुरवहिं आसा।।
बिनु विश्वासा पावे दुखचेला। गहे न निश्चय हृदय गुरुमेला॥
सुत नारी तन मन धन जाई। तन जोरहे न प्रीति हटाई॥
शूरा हंस सोई कहलावै। अग्नि रहे तो शोक न लावे॥
जो विचले तो यम धरि खायी। अड़ा रहे तो निज घर जायी।
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 60 की है(attach in post)
सत्यलोक तथा परमेश्वर को सत्यलोक में पहचानकर धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी का धन्यवाद किया। कहा है कि जैसे पारस पत्थर से स्पर्श होने के पश्चात् लोहा स्वर्ण बन जाता है। ऐसे मेरा जीवन सत्य भक्ति से बहुमूल्य हो गया है। मेरा जन्म-मरण समाप्त हो जाएगा। जैसे भृंग, कीट को अपने समान बना लेता है, ऐसे आप जी ने मेरे को अपना शिष्य बनाया है। गुरू का शब्द (मन्त्र) विश्वास के साथ गहे (ग्रहण) करे तो उस शिष्य की मनोकामना गुरू पूरी करता है। सतगुरू भक्ति धन का शाह (सेठ) यानि धनी होता है। सेठ से धन लेकर
जो अपना व्यापार बढ़ाता है तो धनी हो जाता है यानि शिष्य गुरू से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहकर भक्ति करता है तो मोक्ष प्राप्त कर लेता है। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘
के पृष्ठ 61 में गुरू की महिमा बताई है। पढ़ने से आसानी से समझ आती है। अधिक सरलार्थ की आवश्यकता नहीं है।
◆ ज्ञानप्रकाश ◆
सोइ हम सोइ तुम सोइ अनन्ता। कहैं कबीर गुरु पारस सन्ता॥
सन्त चेतु चित सतगुरु ध्याना। कहै कबीर सद्गुरु परमाना॥
सतगुरु शब्द ज्ञान गुरु पुजा। कहैं कबीर लखु मोहनकुंजा॥
कुंज मोहि मोहन ठहरावे। कहै कबीर सोइ सन्त कहावे॥
सन्त कहाय जो सोधे आपू। कहैं कबीर तेहि पुण्य न पापू॥
पुण्य पाप नहिं मान गुमाना। कहैं कबीर सो लोक समाना॥
जिन्दा मुरदा चीन्है जीवा। कहैं कबीर सतगुरु निज पीवा॥
मुरदा जग जिन्दा सतनामा। कहैं कबीर सतगुरु निजधामा।।
यक जग जीते यक जग हारे। कहे कबीर गुरु काज सँवारे॥
◆ धर्मदास वचन
कौन जग जीते कौन जग हारे । कहौ कौन विधि काज सवारे॥
◆ सतगुरू वचन
इन्द्रिन जीते साधुन सो हारे। कहैं कबीर सतगुरु निस्तारे॥
सतगुरु सो सत्यनाम लखावे। सतपुर ले हंसन पहुँचावे॥
सत्यनाम सतगुरु तत भाखा। शब्द ग्रन्थ कथि गुप्तहिं राखा॥
सत्य शब्द गुरु गम पहिचाना। विनु जिभ्या करु अमृत पाना॥
सत्य सुरति अम्मर सुख चीरा । अमी अंकका साजहु वीरा॥
सोहं ओमं जावन वीरू। धर्मदास सो कहे कबीरू॥
धरिहौ गोय कहिहौ जिन काहीं । नाद सुशील लखेडो ताहीं॥
प्रथमहि नाद विन्द तब कीन्हा। मुक्ति पन्थसो नाद गहिचीन्हा॥
नाद सो शब्द पुरुष मुख बानी। गुरुमुख शब्द सो नाद बखानी॥
पुरुष नाद सुत पोडश अहई । नाद पुत्र शिष्यशब्द जो लहई।।
शब्द प्रतीति गहै जो हंसा। शब्द चालु जेहिसे मम बशा॥
शब्द चाल नाद दृढ़ गहहै। यम शिर पगु देइ सो निस्तरई॥
सुमिरण दया सेवा चित धरई । सत्यनाम गहि हंसा तरई॥
भावार्थ :- यह फोटोकॉपी कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 62 की है। इसमें सत्यनाम भी लिखा है जो धर्मदास को परमेश्वर कबीर जी ने जाप के लिए दिया था।
यह अपभ्रंश किया है :-
सोहं ओहं जानव बीरू। धर्मदास से कहा कबीरू।।
सत्य शब्द (नाम) गुरू गम पहिचाना। बिन जिभ्या करू अमृत पाना।।
विवेचन :- आप जी ने कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ की फोटोकॉपी पढ़ी।
ये प्रमाण के लिए ल���ाई हैं। भले ही इनमें कुछ मिलावट है, परंतु कुछ सच्चाई भी बची है। इस पृष्ठ पर यह भी स्पष्ट किया है कि नाद पुत्र दो प्रकार के हैं। जैसे सतलोक में सतपुरूष ने सोलह वचनों से सोलह सुत उत्पन्न किए थे। वे नाद पुत्र हैं तथा धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली थी तो धर्मदास जी भी नाद पुत्र हुए। इसी प्रकार जो गुरू से दीक्षा
लेता है, वह नाद पुत्र होता है। उसे वचन पुत्र भी कहते हैं। अब आप जी को आत्मा (धर्मदास जी) तथा परमात्मा (कबीर बन्दी छोड़ जी) का यथार्थ संवाद अर्थात् धर्मदास जी को शरण में लेने का यथार्थ प्रकरण सुनाता हूँ।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#GodMorningSaturday
#SpiritualKnowledgeOnNavratri
गरीब असन बसन सब तज गए, तज गए गाम अरू गेह । माहे संसासूल है, तजना येह ॥
♦️To know more must read sacred book "Gyan Ganga."
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#GodMorningWednesday
🌄🌄🌄
गरीब, असन बसन सब तज गए, तज गए गाम अरू गेह।
माहे संसा सूल है, दुर्लभ तजना येह।।
Watch sadhna TV from 7'30pm 🖥 daily
◆
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#FridayMotivation
गरीब असम बसन सब तज गए।
तज गए शाम अरु गेह।
माहे संसा सूल है, दुर्लभ तजना येह।
अधिक जानकारी के लिए देखें साधना चैनल शाम 7:30 बजे।
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#GodMorningThursday
#ThursdayMotivation
गरीब,
असन बसन सब तज गए,तज गए गामअरूगेह।
माहे संसा सूल है, दुर्लभ तजना येह ॥
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़िए आध्यात्मिक पुस्तक "ज्ञान गंगा"।
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Thakorjis in a bungalow of roses in a rose garden 💐
Inspired by the darshan, I wrote this paad about a week later
कुसुमल कुंज, भवन कुसुम के।
छिरकत परिमल, मधुप चहु ओरे।।
कुसुम सो पहेने, बसन बहु रंगे।
मोतियन माल, कुंद सो सोहे।।
रक्षा करे हरी, गिरिवर धर के।
विविध लीला करे, सुजल सु तीरे।।
रूप अद्भुत देखि श्याम सुंदिर के।
भावत गावत गुण नाम सहस रे।।
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Shree Ramcharitmans- Balkand 55- Baraat's arrival in Janakpur and welcome
Shree Ramcharitmans- Balkand 55- Baraat’s arrival in Janakpur and welcome
चौपाई:
*कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥1॥
भावार्थ:-(दूध, शर्बत, ठंडाई, जल आदि से) भरकर सोने के कलश तथा जिनका वर्णन नहीं हो सकता ऐसे अमृत के समान भाँति-भाँति के सब पकवानों से भरे हुए परात, थाल आदि अनेक प्रकार के सुंदर बर्तन,॥1॥
*फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं॥भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि…
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परेश रावल की 'द स्टोरी टेलर' बुसान फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए तैयार
परेश रावल की ‘द स्टोरी टेलर’ बुसान फिल्म फेस्टिवल में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए तैयार
नई दिल्ली: परेश रावल, आदिल हुसैन, तनिष्ठा चटर्जी और रेवती द्वारा निर्देशित द स्टोरी टेलर दक्षिण कोरिया में आगामी बुसान फिल्म महोत्सव में अपने विश्व प्रीमियर के लिए पूरी तरह तैयार है। इसके अलावा, यह प्रतिष्ठित ‘किम जिसोक’ पुरस्कार के लिए भी प्रतिस्पर्धा करेगी।
इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए, फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने एक बयान में कहा, “मैं बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘द स्टोरीटेलर’…
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Watch "Shraddha TV 11-11-2022 || Episode: 2013 || Sant Rampal Ji Maharaj Satsang" on YouTube👍
#SantRampalJiM🙇🏻♀️💓🙏
#गरीब ,
असन बसन सब तज गए, तज गए गाम अरु गेह।
माहे संसा सूल है, दुर्लभ तजना येह।।
-- शास्त्र विरुद्ध साधना को त्याग कर शास्त्र अनुकूल साधना को अपनाइये तभी मोक्ष सम्भव है वर्ना समय ,स्वांस और अनमोल मनुष्य जीवन की बर्बादी है।
#SantRampalJiMaharaj
#satbhaktisandesh
#TatvadarshiSant
#spirituality
#SatlokAshram
#sanewschennal
#TrueGuru
#MissionSatlok
#सत_साहेब _________💞
Visit SA True Story YouTube channel🙏
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P63
कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक। मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक॥
ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा। उभय बेष धरि की सोइ आवा॥
सहज बिरागरुप मनु मोरा। थकित होत जिमि चंद चकोरा॥
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ। कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ॥
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा। बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा॥
कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका। बचन तुम्हार न होइ अलीका॥
ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी। मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी॥
रघुकुल मनि दसरथ के जाए। मम हित लागि नरेस पठाए॥
दो0-रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम।
मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम॥216॥
मुनि तव चरन देखि कह राऊ। कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ॥
सुंदर स्याम गौर दोउ भ्राता। आनँदहू के आनँद दाता॥
इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि। कहि न जाइ मन भाव सुहावनि॥
सुनहु नाथ कह मुदित बिदेहू। ब्रह्म जीव इव सहज सनेहू॥
पुनि पुनि प्रभुहि चितव नरनाहू। पुलक गात उर अधिक उछाहू॥
म्रुनिहि प्रसंसि नाइ पद सीसू। चलेउ लवाइ नगर अवनीसू॥
सुंदर सदनु सुखद सब काला। तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला॥
करि पूजा सब बिधि सेवकाई। गयउ राउ गृह बिदा कराई॥
दो0-रिषय संग रघुबंस मनि करि भोजनु बिश्रामु।
बैठे प्रभु भ्राता सहित दिवसु रहा भरि जामु॥217॥
लखन हृदयँ लालसा बिसेषी। जाइ जनकपुर आइअ देखी॥
प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं। प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं॥
राम अनुज मन की गति जानी। भगत बछलता हिंयँ हुलसानी॥
परम बिनीत सकुचि मुसुकाई। बोले गुर अनुसासन पाई॥
नाथ लखनु पुरु देखन चहहीं। प्रभु सकोच डर प्रगट न कहहीं॥
जौं राउर आयसु मैं पावौं। नगर देखाइ तुरत लै आवौ॥
सुनि मुनीसु कह बचन सप्रीती। कस न राम तुम्ह राखहु नीती॥
धरम सेतु पालक तुम्ह ताता। प्रेम बिबस सेवक सुखदाता॥
दो0-जाइ देखी आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुंदर बदन देखाइ॥218॥
मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥
बालक बृंदि देखि अति सोभा। लगे संग लोचन मनु लोभा॥
पीत बसन परिकर कटि भाथा। चारु चाप सर सोहत हाथा॥
तन अनुहरत सुचंदन खोरी। स्यामल गौर मनोहर जोरी॥
केहरि कंधर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला॥
सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयंक तापत्रय मोचन॥
कानन्हि कनक फूल छबि देहीं। चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं॥
चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी। तिलक रेखा सोभा जनु चाँकी॥
दो0-रुचिर चौतनीं सुभग सिर मेचक कुंचित केस।
नख सिख सुंदर बंधु दोउ सोभा सकल सुदेस॥219॥
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Maa Parvati Chalisa | सुनने से ही सभी इच्छाओ की पूर्ति | माँ पार्वती चालीसा |
॥ दोहा ॥
जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।
गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि॥
॥ चौपाई ॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे।
षड���मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो।।
तेऊ पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हिय सजाता।
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे।।
ललित ललाट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर।
कनक बसन कंचुकि सजाए, कटी मेखला दिव्य लहराए।।
कंठ मंदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभा।
बालारुण अनंत छबि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी।।
नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजति हरि चतुरानन।
इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।।
गिर कैलास निवासिनी जय जय, कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय।
त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी।।
हैं महेश प्राणेश तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे।
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब।।
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी।
सदा श्मशान बिहारी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर।।
कण्ठ हलाहल को छबि छायी, नीलकण्ठ की पदवी पायी।
देव मगन के हित अस किन्हो, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो।।
ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।
देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।
भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा।
सौत समान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।।
तेहि कों कमल बदन मुरझायो, लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।
नित्यानंद करी बरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी।।
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी, माहेश्वरी, हिमालय नन्दिनी।
काशी पुरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री।
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।।
गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली।
सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती।।
तुमने कठिन तपस्या कीनी, नारद सों जब शिक्षा लीनी।
अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।।
पत्र घास को खाद्य न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ।
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे।।
तब तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ।
सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए।।
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।
एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए।।
करि विवाह शिव सों भामा, पुनः कहाई हर की बामा।
जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।
॥ दोहा ॥
कूटि चंद्रिका सुभग शिर, जयति जयति सुख खानि
पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि।
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#GodMorningWednesday
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गरीब, असन बसन सब तज गए, तज गए गाम अरू गेह।
माहे संसा सूल है, दुर्लभ तजना येह।।
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