Daani Tv एक हिन्दी कहानियों से सम्बन्धित Website है और यहाँ एनिमेटेड और लिखित हिन्दी कहानियों का संग्रह है कहानियों के कई रूप हैं – प्रेम, नफ़रत, देश भक्ति, शौर्य, दुःख, ख़ुशी, भुत पिशाच, जासूसी आदि ऐसे कई भाव। आमतौर पर शिक्षाप्रद छोटी- छोटी कहानियाँ, प्रेरणादायक कहानियाँ, जासूसी कहानियाँ पाठको को लुभाती हैं. यह एक दर्पण की तरह उनका मार्गदर्शन करती हैं और वही कहानियाँ छोटे- छोटे बच्चों को सही गलत की पहचान कराती हैं। मेरे इस वेबसाइट का मुख्य लक्ष्य है लोगो तक हिंदी कहानियाँ का एक बड़ा संग्रह उप्लब्ध कराना।
कहानियां क्यों महत्वपूर्ण हैं?
कहानियां मस्तिक्ष की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे जो किताबें पढ़ते हैं और जिन पात्रों को वे जानते हैं, वे दोस्तों की तरह बन सकते हैं। हमारे लिए यह समझना भी अच्छा है कि पुस्तकें सूचना का एक उपयोगी स्रोत हैं और यह अच्छा पठन कौशल उनके भविष्य के जीवन में सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। पढ़ना बच्चों को उनके आत्मविश्वास के स्तर, भावनाओं और भाषा और सीखने के साथ तालमेल रखने में मदद करता है।
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संस्कृत शिक्षा के विकास के लिए क्या किया जाय ❓
* शिक्षण संस्थानों में संस्कृत की पढाई का माध्यम ���ंस्कृत होना चाहिए | * प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, तथा उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में संस्कृत अनिवार्य होनी चाहिए | * संस्कृत में व्यवसाय परक पाठ्यक्रमों का नितान्त अभाव है, संस्कृत शिक्षा में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का सृजन कर इस अभाव को दूर किया जाना चाहिए | * संस्कृत शिक्षा में ऐसे पाठ्यक्रम सम्मिलित किए जाएँ जो त्वरित फलदायी हों, यह आधुनिक छात्रों का संस्कृत के प्रति उत्कट रुचि का कारण बन सकता है | * आयुर्वेद शिक्षा का माध्यम पूर्ण रूप से संस्कृत हो | * कम्प्यूटर और संस्कृत के मध्य एक साहचर्य सम्बन्ध स्थापित करने वाला पाठ्यक्रम तैयार किया जाय | * संस्कृत में कुछ ऐसे नये पाठ्यक्रम तैयार किए जाएँ जो संस्कृतनिष्ठ व्यवसायों को प्रदान करने में सक्षम हों | * व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को संस्कृतमय बनाया जाय अथवा उनमें संस्कृत की स्थिति को सुनिश्चित किया जाय | * संस्कृत के कुछ ऐसे डिप्लोमा पाठ्यक्रम तैयार किये जाएँ, जिनसे अल्पावधि में ही छोटे मोटे रोजगार प्राप्त हों सकें | * संस्कृत छात्रों में प्रायः आत्मविश्वास की कमी का भाव देखा जाता है, उसे दूर करने के लिए राष्ट्रिय स्तर पर किन्ही प्रोत्साहन कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए | * "सा विद्या या नियुक्तये" जैसे सिद्धान्तों के इस दौर में संस्कृत शिक्षा के साथ Placements का होना अनिवार्य हो चला है, एतदर्थ प्रयास किया जाना चाहिए | * कम से कम संस्कृत शिक्षण संस्थानों में संस्कृत वार्त्तालाप, संस्कृत माध्यम से अध्ययनाध्यापन तथा संस्कृतमय वातावरण की अनिवार्यता होनी चाहिए | * संस्कृत में ऐसे दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित हों जो रोजमर्रा के समाचार प्रकाशित करते हों, जिनमें मनोरञ्जकता समसामयिकी तथा सूचनाएँ व्याप्त रूप में हो, वे अखबार के पन्नों के रूप में केवल संस्कृतनिष्ठ ज्ञान से लदे हुए न हों | * संस्कृत सम्भाषण शिविरों को और अधिक प्रोत्साहित किया जाय तथा उनमें जनभागीदारी को सुनिश्चित करते हुए प्रतिभागियों की श्रृंखला को सतत् बढाया जाय | * संस्कृत संस्थानों में B.Ed, M.Ed, TGT, PGT, Ph.D, NET, UPSC, State PSC, धर्मगुरू इत्यादि प्रतियोगितापरक तैयारीयाँ निःशुल्क करायी जानी चाहिए | * प्रत्येक संस्कृत शिक्षण संस्थान में करियर काउँसिलिंग प्रकोष्ठ की स्थापना हो, और साथ ही गैर संस्कृत संस्थानों में संस्कृत में रोजगार की सम्भावनाओं का प्रचार किया जाय | * संस्कृत में विज्ञान के तथा विज्ञान में संस्कृत के पाठ्यक्रम स्थापित कर परस्पर तुल्य-पाठ्यचर्या का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए | * किसी एक संस्कृत चैनल का प्रसारण किया जाय तथा साथ ही अन्य चैनलों पर संस्कृत के जनसामान्य को लुभाने वाले शिक्षण से व्यतिरिक्त कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाय | * सरल संस्कृत में एड फिल्में बनाई जाएँ तथा प्रचलित एड फिल्मों का अन्य भाषा की तरह संस्कृत संस्करण भी रिलीज किया जाय | * कस्टमर केयर केन्द्र, रेल्वे सूचना केन्द्र आदि से संस्कृत में अनाउन्समेन्ट की जानी चाहिए | * आधुनिक संगीत से संस्कृत को जोडने हेतु हिन्दी गीतों का संस्कृत अनुवाद कर गाया जाए | * साथ ही 'इण्डियन आयडल' 'सारेगामापा' आदि संगीत कार्यक्रमों में किसी ऐसे एपिसोड के लिए अनुरोध किया जाय जिसमें सारे प्रतिभागी संस्कृत गाने गायें | * सामान्य ज्ञान आदि प्रतियोगिता सम्बन्धी पुस्तकें संस्कृत में उपलब्ध हों | * संस्कृत संस्थानों में प्रति सप्ताह शैक्षिक प्रतियोगिताओं जैसे वादविवाद, भाषण, निबन्धलेखन, अन्त्याक्षरी, शास्त्रार्थस्पर्धा आदि का आयोजन किया जाना चाहिए | * संस्कृत वाङ्मय में आधुनिक विज्ञान कहाँ और कैसे है तथा संस्कृत वाङ्मय में कौन कौन से विषय वर्णित हैं कम से कम इसका संक्षिप्त ज्ञान हर संस्कृताध्यायी को हो जाए एतदर्थ महाविद्यालय स्तर पर एक 'सामान्य वाङ्मय परिचय' नाम से पाठ्यक्रम होना चाहिए | * एतदर्थ "संस्कृत में विज्ञान" "Scince in Sanskrit" नामक समग्र विषयवस्तु तथा वैदिक वाङ्मय के अनुक्रम से युक्त पुस्तक का निर्माण किया जाना चाहिए | * संस्कृत शिक्षा को Flexible बनाने हेतु प्रदान की जाने वाली मध्यमा/ शास्त्री/ आचार्य आदि उपाधि में विज्ञान के विषय सम्मिलित कर बैकिंग/ रेल्वे हेतु भी अवसर खुला रख कर छात्रों को रोजगारोन्मुख बनाया जाय | * किसी एक एसोसिएशन की स्थापना की जानी चाहिए जिसके पास देश के समस्त शासकीय/ अशासकीय विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, विद्यालय, संस्थान, एकेडमी आदि संस्कृत संस्थाओं के क्रियान्वयन, तात्कालिक स्थिति तथा उसके वि��ास की समसामयिक स्थिति का ज्ञान हो एवं जो उन्हें संस्कृत सम्भावनाओं के प्रति सूचित करती रहे | * संस्कृत की उपाधियों अथवा उसके पाठ्यक्रम को इस तरह तैयार किया जाय की वह प्रत्येक प्रदेश के तत्तुल्य उपाधियों की समकक्षता प्राप्त कर सके | * देश में संस्कृत शिक्षक/ प्राध्यापक/ आचार्य के जो पद रिक्त हों उन्हें यथाशीघ्र भरा जाय तथा संस्कृत शिक्षक के पद को अन्य विषयाध्यापक से न भरा जाय और न ही संस्कृत भाषा को अन्य विषयाध्यापक से पढवाया जाय | * संस्कृत भाषा में भी दैनिक धारावाहिक (Daily Shop)/ सीरियल तैयार किया जाय अथवा "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" इत्यादि में संस्कृत परिवार की संकल्पना कर सीरियल्स में संस्कृत का प्रवेश कराया जाना चाहिए | * विश्व प्रसिद्ध खेल "क्रिकेट" की कमेन्ट्री संस्कृत में भी की जानी चाहिए | * प्रसिद्ध पुस्तकों का संस्कृत में अनुवाद करके संस्कृत को जनसामान्य तक पहुँचाया जा सकता है | * संस्कृत नुक्कड-नाटकों के द्वारा लोको तक संस्कृत पहुचायी जानी चाहिए | * संस्कृत फीचर फिल्मों का निर्माण किया जाना चाहिए, जिसमें मनोरञ्जक कहानियाँ वर्णित हो एवं जिसकी भाषा सरल सरस और सुबोध हो तथा जो संस्कृत के मधुर और ललित गानों से भरी हो | * प्रत्येक संस्कृत प्रतिष्ठान में संस्कृत सप्ताह के आयोजन की अनिवार्यता की जानी चाहिए | * रेल्वे स्टेशन, बस स्टेण्ड, विमानपत्तन, शासकीय तथा अशासकीय संस्थानों के साईन बोर्ड / होर्डिन्ग्स संस्कृत में भी होने चाहिए | * सार्वजनिक स्थानों पर परस्पर वार्त्तालाप के द्वारा संस्कृतमय वातावरण निर्मित करके लोगों को स्वतः अभिप्रेरित किया जा सकता है | * प्रसिद्धि अर्थात् प्रसिद्ध व्यक्ति/ प्रसिद्ध वस्तु आदि के साथ संस्कृत का समन्वयन कर उसे जनसामान्य में प्रसिद्ध करने का प्रयास किया जाना चाहिए | * शिशु किसी भी भाषा को जल्दी सीख लेते हैं, अतः उनके रुचिकर कार्टून जैसे छोटा भीम, टोम एण्ड जेरी आदि का संस्कृत संस्करण भी तैयार कर प्रसारित किया जाना चाहिए | * आज सोशल मीडिया प्रचार का सर्वोत्कृष्ट साधन बना हुआ है अतः संस्कृत प्रचार के लिए फेसबुक, वाट्सअप, ट्वीटर, मेसेन्जर, इन्स्ताग्राम आदि का भरपूर उपयोग किया जाना चाहिए | * शिक्षण संस्थानों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन संस्कृत में किया जाना चाहिए, क्योंकि आनन्दित करती हुई दृश्य श्रव्य सामग्रियाँ जल्दी अभिप्रेरित करती हैं | * बच्चों को त्वरित अभिप्रेरित करने वाले कामिक्स जैसे चाचा चौधरी, सुपरमेन आदि संस्कृत में भी उपलब्ध होने चाहिए | * संस्कृत की सूक्तिओं/ आख्यानों आदि का आश्रय लेकर प्रत्येक शिक्षण संस्थान में पर्सनालिटी डेवेलपमेन्ट की शिक्षा दी जानी चाहिए | * प्रायः देखा जाता है कि संस्कृत संस्थाएँ अपना प्रचार / अपनी मार्केटिंग नहीं कर पाते, एतदर्थ संस्था के कर्मिओं को सोशल मीडिया तथा परस्पर सम्पर्क के द्वारा संस्कृत संस्था का प्रचार किया जाना चाहिए | * आनलाईन संस्कृत शिक्षण के द्वारा संस्कृत प्रचार के साथ ही साथ धनार्जन भी किया जा सकता है | * एण्ड्राएड फोन के इस युग मे��� विभिन्न प्रकार के संस्कृत एप्लीकेशन्स का निर्माण कर गूगल प्ले पर स्थापित किया जाना चाहिए | * आजकल कामेडी का दौर चल रहा है अतः ऐसे संस्कृत हास्य कविसम्मेलनों का आयोजन किया जाना चाहिए जो संस्कृत की सरलता का प्रचार कर सकें क्योंकि भाषा की सरलता/ सुगमता ही कामेडी की जान होती है | * प्रसिद्ध फिल्म स्टार से संस्कृत के प्रमोशन हेतु प्रयत्न किया जाना चाहिए अथवा अमिताभ बच्चन जी आदि के द्वारा फेसबुक आदि पर किए गए संस्कृत सम्बन्धी पोस्ट का हमारे द्वारा शेयर/ लाईक/ कमेन्ट्स से प्रमोशन किया जाना चाहिए | * प्रसिद्ध हिन्दी फिल्मों की डबिंग संस्कृत में की जानी चाहिए क्योंकि आज का युवा वर्ग संस्कृत को भी टिप-टोप देखना चाहता है, और समय के साथ परिवर्त्तन अनिवार्य हो जाता है |
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महाराष्ट्रीयन परिवार में जन्म हुआ, इसलिए मातृभाषा मराठी है; पर शिक्षा-दीक्षा हिन्दी में हुई। लेखन का श्रीगणेश भी हिन्दी में ही हुआ अब तो खैर मराठी में भी लिखती हैं। साहित्यिक जीवन की शुरुआत गीतों से हुई, फिर बच्चों के लिए कहानियाँ लिखीं, कुछ ललित निबंध लिखे। फिर कहानियों का जो दौर शुरू हुआ तो अब तक जारी है। इन्होंने कई कहानियों के रेडियो नाट्य रूपांतर किए। कुछ कहानियों को दूरदर्शन ने भी मंचित किया।
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लव का गेम Love Ka Game
शारदा विद्या मंदिर के पास ही लवली पब्लिक स्कूल था। स्कूल अच्छा चलता था। कुछ ही दिनों पहले दिलीप सिंह ने अपने बेटे जय सिंह उर्फ लालू के लिए यह स्कूल खोला था। दिलीप सिंह का एक ही बेटा था। जय सिंह बी.ए. करने के बाद और नहीं पढ़ सका, अतः बाप ने उसकी इच्छा व पसंद के मुताबिक स्कूल खोलकर उसे चलाने के लिए दे दिया था।
लवली पब्लिक स्कूल का प्रबंधक व सर्वेसर्वा जय सिंह उर्फ लालू ही था। लालू ने स्कूल में शिक्षक-शिक्षिकाओं की नियुक्ति कर ली थी और अब स्कूल मंे शिक्षक स्टा पूरा था। मगर उस रोज प्रीति नामक एक खूबसूरत व स्मार्ट युवती जय सिंह से मिली और उसके स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की ख्वाहिश जाहिर की, तो जय सिंह उसे टाल नहीं सका और एक और स्टाफ की नियुक्ति कर ली। प्रीति स्कूल में पढ़ाने लगी।
प्रीति बेहद खूबसूरत व फैशन परस्त थी। सज-धज कर रहना तथा आधुनिक फैशन के वस्त्रा पहनना उसका शौक था। खूबसूरत प्रीति को देखकर स्कूल प्रबंधक जय सिंह उर्फ लालू उस पर डोरे डालने लगा। फैशन परस्त प्रीति भी जय सिंह की ओर आकर्षित होने लगी।
फिर क्या था, जल्द ही दोनों में प्रगाढ़ संबंध बन गए। स्कूल में दोनों के संबंधों को लेकर बातें होने लगी। तब जय सिंह के पिता दिलीप सिंह ने प्रीति को नौकरी से निकाल दिया। कारण बताया, कि स्टाफ अधिक है।
नौकरी से निकाले जाने के बाद प्रीति एक काॅल सेंटर में ट्रेनिंग करने लगी। परन्तु इस काम में उसका मन नहीं लगता था। वह अब भी जय सिंह के स्कूल में शिक्षिका की नौकरी पाना चाहती थी। इसके लिए वह जय सिंह के सम्पर्क में बनी रहती थी। नौकरी देने के लालच में वह प्रीति के साथ मनमानी भी करता रहता था।
जय सिंह उर्फ लालू अय्याश व्यक्ति था। वह भोली-भाली लड़कियों को नौकरी के नाम पर अपने जाल में फंसाता था और फिर उनका यौन शोषण करता था। जय सिंह का एक दोस्त हरिओम था। हंसपुरम में वह राजीव स्मारक विद्यालय चलाता था। जय सिंह की तरह हरिओम भी अय्याश था, इसलिए दोनों में खूब पटती थी।
एक रोज प्रीति स्कूल प्रबंधक जय सिंह उर्फ लालू से मिली और स्कूल में टीचर की नौकरी देने की बात कही। इस पर जय सिंह मुस्कराया और बोला, ‘‘प्रीति, तुम्हें मैं नौकरी पर रख सकता हूं, किन्तु तुम्हें मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी।’’
‘‘कैसी शर्त?’’ प्रीति ने पूछा।
हरिओम ने पहली मंजिल पर स्थित स्कूल का एक कमरा खोला और उसी में बैठकर सभी बातें करने लगे। प्रीति ने अपनी सहेली का परिचय हरिओम से करवाया और उसके स्कूल में शिक्षिका की नौकरी देने को अनुरोध किया। हरिओम ने अलका के शैक्षिक प्रमाण पत्रा देखे तथा कुछ सवाल जवाब किए। इसके बाद हरिओम ने अलका से कहा, ‘‘आप कल से ही स्कूल ज्वाइन कर लें, आपकी नौकरी पक्की है।’’
इसी बीच जय सिंह उर्फ लालू कोल्ड ड्रिंक ले आया। बड़ी चालाकी से उसे अलका की कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिला दिया, जिसे पीते ही उसकस सिर चकराने लगा। योजना के तहत उस समय प्रीति कमरे के बाहर चली गयी।
प्रीति के जाते ही जय सिंह ने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। फिर दोनों ने शराब पी। इसके बाद वह दोनों अलका के शरीर से छेड़छाड़ करने लगे। अलका चीखी तो हरिओम बोला, ‘‘तुम्हारी चीख यहां सुनने वाला कोई नहीं है। जिस सहेली के साथ तुम आयी हो, उसी ने नौकरी के नाम पर तुम्हारी इज्जत का सौदा किया है।’’
‘‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता।’’ अलका तल्ख स्वर में बोली, ‘‘प्रीति ऐसा नहीं कर सकती। वो तो मेरी बहुत अच्छी सहेली है।’’
‘‘अरे काहे की सहेली।’’ जय सिंह अलका के गोरे जिस्म को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘वो तो अपनी नौकरी की सहेली है और इसी लालच में उसने तुम्हारा सौदा हमसे कर डाला।’’ फिर होंठों पर जीभ फिराता हुआ बोला जय सिंह, ‘‘अब नखरे मत कर, तू भी अपनी सहेली प्रीति की तरह होशियार बन और कर दे हम दोनों की मुराद पूरी।’’
‘‘हरगिज नहीं।’’ जय सिंह की बांहों में छटपटाती हुई बोली अलका, ‘‘मैं उन लड़कियों में से नहीं हूं, जो लालच व भावनाओं में बहकर अपने घर की मान-मयार्दा व इज्जत का सौदा कर डालती हैं।’’
‘‘ये बहुत बोलती है यार!’’ तभी हरिओम बेचैन होकर जय सिंह से बोला, ‘‘मैं कबसे कामाग्नि में जल रहा हूं और ये है कि हमें लैक्चर देने पर लगी हुई है।’’ वह मादक सीत्कार भरते हुए बोला, ‘‘साली की गदराई जवानी देखकर मेरे जिस्म में हलचल हो रही है।’’
‘‘सही कह रहा है यार।’’ जय सिंह भी आंहें भरते हुए बोला, ‘‘इसके गुलाब होंठ तो देख, मन करता है इन्हें खा ही जांऊ।’’
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