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#गति कम करो
trendingwatch · 2 years
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क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, यूपीआई के माध्यम से खर्च में वृद्धि खपत में वृद्धि का संकेत: फिनमिन
क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, यूपीआई के माध्यम से खर्च में वृद्धि खपत में वृद्धि का संकेत: फिनमिन
अप्रैल में क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के माध्यम से खर्च क्रमशः 77.8 प्रतिशत और 12.5 प्रतिशत बढ़कर 1.05 लाख करोड़ रुपये और 3.49 लाख करोड़ रुपये हो गया। बढ़ते यूपीआई-आधारित भुगतान के साथ-साथ खर्च में वृद्धि, खपत में वृद्धि का संकेत देती है क्योंकि महामारी से प्रेरित प्रतिबंध कम हो जाते हैं और अनिश्चितता कम हो जाती है, वित्त मंत्रालय सोमवार को कहा। “राष्ट्रीय भुगतान निगम के माध्यम से संसाधित किए…
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jyotishwithakshayg · 5 months
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🌞आज 15 जनवरी 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग और मकर संक्रांति🌞
👉दिन - सोमवार*
👉विक्रम संवत् - 2080*
👉अयन - उत्तरायण*
👉ऋतु - शिशिर*
👉मास - पौष*
👉पक्ष - शुक्ल*
👉तिथि - पंचमी मध्य रात्रि 02:16 तक तत्पश्चात षष्ठी*
👉नक्षत्र - शतभिषा सुबह 08:07 तक तत्पश्चात पूर्वभाद्रपद*
👉योग - वरियान् रात्रि 11 :11 तक तत्पश्चात परिघ*
👉राहु काल - सुबह 08:44 से 10:06 तक*
👉सूर्योदय - 07:23*
👉सूर्यास्त - 06:15*
👉दिशा शूल - पूर्व*
👉ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक*
👉निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:23 से 01:15 तक*
👉व्रत पर्व विवरण - मकर संक्रांति, पोंगल*
👉विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
*🌹मकर संक्रांति - 15 जनवरी 2024🌹*
*🌹पुण्यकालः सूर्योदय से सूर्यास्त तक*
*🌹मकर संक्रांति कैसे मनायें ?🌹*
*🌹इस दिन स्नान, दान, जप, तप का प्रभाव ज्यादा होता है । उत्तरायण के एक दिन पूर्व रात को भोजन थोड़ा कम लेना ।*
*🌹मकर संक्रांति का स्नान रोग, पाप और निर्धनता को हर लेता है ।
*🌹मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से १०,००० गौदान करने का फल शास्त्र में लिखा है ।*
*🌹उत्तरायण के दिन पंचगव्य का पान पापनाशक एवं विशेष पुण्यदायी माना गया है । त्वचा से लेकर अस्थि तक की बीमारियों की जड़ें पंचगव्य उखाड़ के फेंक देता है ।*
*🌹पंचगव्य आदि न बना सको तो कम-से-कम गाय का गोबर, गोझारण, थोड़े तिल, थोड़ी हल्दी और आँवले का चूर्ण इनका उबटन बनाकर उसे लगा के स्नान करो अथवा सप्तधान्य उबटन से स्नान करो (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, टिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) ।*
*🌹मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है ।*
*🌹ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।  इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना कर लेना, उनका चिंतन करके प्रणाम कर लेना । इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, निरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे ।*
*ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि । तन्नो भानु: प्रचोदयात् ।*
*🌹इस सुर्यगायत्री के द्वारा सूर्यनारायण को अर्घ्य देना विशेष लाभकारी माना गया है ।*
*🌹सूर्यगायत्री का जप करके ताँबे के लोटे से जल चढाते है और चढ़ा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहा की मिटटी का तिलक लगाते हैं तथा लोटे में ६ घूँट बचाकर रखा हुआ जल महामृत्युंजय मंत्र का जप करके पीते हैं तो आरोग्य की खूब रक्षा होती है । आचमन लेने से पहले उच��चारण करना होता है –*
*अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।*
*सूर्यपादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम् ।।*
*🌹अकालमृत्यु को हरनेवाले सूर्यनारायण के चरणों का जल मैं अपने जठर में धारण करता हूँ । जठर भीतर के सभी रोगों को और सूर्य की कृपा बाहर के शत्रुओं, विघ्नों, अकाल-मृत्यु आदि को हरे ।*
*🌹इस दिन जो ६ प्रकार से तिलों का उपयोग करता है वह इस लोक और परलोक में वांछित फल को पाता है :*
*१] पानी में तिल डाल के स्नान करना ।*
*२] तिलों का उबटन लगाना ।*
*३] तिल डालकर पितरों का तर्पण करना, जल देना ।*
*४] अग्नि में तिल डालकर यज्ञादि करना ।*
*५] तिलों का दान करना ।*
*६] तिल खाना ।*
*🌹तिलों की महिमा तो है लेकिन तिल की महिमा सुनकर तिल अति भी न खायें और रात्रि को तिल और तिलमिश्रित वस्तु खाना वर्जित है ।*
*🌹प्रार्थना, संकल्प करें कि 'प्रभो ! जैसे सूर्यनारायण उत्तर की ओर गति करते हैं और सूर्यप्रकाश बढ़ता जाता है ऐसे ही हमसे पहले जो कुछ हो गया अंधकार, अज्ञान के प्रभाव में आ के वह आप माफ कर दो, अब हम प्रकाश की ओर चलेंगे, समझदारी से चलेंगे ।'*
🚩जय श्री राम 🚩
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*पर्यावरण : एक विराट सहजीवन*
#पश्चिम में एक नया आंदोलन चलता है, इकॉलॉजी- कि प्रकृति को नष्ट मत करो, अब और नष्ट मत करो।
हालांकि हमने कोशिश की थी हल करने की। हमने डीडीटी छिड़का, मच्छर मर जाएँ। मच्छर ही नहीं मरते, मच्छरों के हटते ही वह जो जीवन की श्रृंखला ��ै उसमें कुछ टूट जाता है। मच्छर किसी श्रृंखला के हिस्से थे। वे कुछ काम कर रहे थे।
हमने जंगल काट डाले। सोचा कि जमीन चाहिए, मकान बनाने हैं। लेकिन जंगल काटने से जंगल ही नहीं कटते, वर्षा होनी बंद हो गई। क्योंकि वे वृक्ष बादलों को भी निमंत्रण देते थे, बुलाते थे। अब बादल नहीं आते, क्योंकि वृक्ष ही न रहे जो पुकारें। उन वृक्षों की मौजूदगी के कारण ही बादल बरसते थे; अब बरसते भी नहीं अब ऐसे ही गुजर जाते हैं।
हमने जंगल काट डाले, कभी हमने सोचा भी नहीं कि जंगल के वृक्षों से बादल का कुछ लेना-देना होगा। यह तो बाद में पता चला जब हमने जंगल साफ कर लिए। अब वृक्षारोपण करो। जिन्होंने वृक्ष कटवा दिए वही कहते हैं, अब वृक्षारोपण करो। अब वृक्ष लगाओ, अन्यथा बादल न आएँगे। हमने तो सोचा था अच्छा ही कर रहे हैं; जंगल कट जाएँ, बस्ती बस जाए।
हमने आदमी के जीवन की अवधि को बढ़ा लिया, मृत्यु-दर कम हो गई। अब हम कहते हैं, बर्थ-कंट्रोल करो। पहले हमने मृत्यु-दर कम कर ली, अब हम मुश्किल में पड़े हैं, क्योंकि संख्या बढ़ गई है। अब आदमी बढ़ते जाते हैं, पृथ्वी छोटी पड़ती जाती है। अब ऐसा लगता है अगर यह संख्या बढ़ती रही तो इस सदी के पूरे होते-होते आदमी अपने हाथ से खत्म हो जाएगा।
तो जिन्होंने दवाएँ ईजाद की हैं और जिन्होंने आदमी की उम्र बढ़ा दी है, पच्चीस-तीस साल की औसत उम्र को खींचकर अस्सी साल तक पहुंचा दिया- इन्होंने हित किया? अहित किया? बहुत कठिन है तय करना। क्योंकि अब बच्चे पैदा न हों, इसकी फिकर करनी पड़ रही है। लाख उपाय करोगे तो भी झंझट मिटने वाली नहीं है। अब अगर बच्चों को तुम रोक दोगे तो तुम्हें पता नहीं है कि इसका परिणाम क्या होगा।
मेरे देखे, अगर एक स्त्री को बच्चे पैदा न हों तो उस स्त्री में कुछ मर जाएगा। उसकी 'माँ' कभी पैदा न हो पाएगी। वह कठोर और क्रूर हो जाएगी। उसमें हिंसा भर जाएगी। बच्चे जुड़े हैं। जैसे वृक्ष बादल से जुडे हैं, ऐसे बच्चे माँँ से जुड़े हैं- और भी गहराई से जुड़े हैं। फिर क्या परिणाम होंगे, माँ को किस तरह की बीमारियाँ होंगी, कहना मुश्किल है।
इंग्लैंड में एकदवा ईजाद हुई, जिससे कि स्त्रियों को बच्चे बिना दर्द के पैदा हो सकते हैं। उसका खूब प्रयोग हुआ। लेकिन जितने बच्चे उस दवा को लेने से पैदा हुए- सब अपंग, कुरूप, टेढ़े-म़ेढे...। मुकदमा चला अदालत में। लेकिन तब तक तो भूल हो गई थी; अनेक स्त्रियाँ ले चुकी थीं। बिना दर्द के बच्चे पैदा हो गए, लेकिन बिना दर्द के बच्चे बिल्कुल बेकार पैदा हो गए, किसी काम के पैदा न हुए। तब कुछ खयाल में आया कि शायद स्त्री को जो प्रसव-पीड़ा होती है, वह भी बच्चे के जीवन के लिए जरूरी है। अगर एकदम आसानी से बच्चा पैदा हो जाए तो कुछ गड़बड़ हो जाती है। शायद वह संघर्षण, वह स्त्री के शरीर से बाहर आने की चेष्टा और पीडा, स्त्री को और बच्चे को- शुभ प्रारंभ है।
पीड़ा भी शुभ प्रारंभ हो सकती है। अगर फूल ही फूल रह जाएँ जगत में और काँटे बिल्कुल न बचें, तो लोग बिल्कुल दुर्बल हो जाएँगे; उनकी रीढ़ टूट जाएगी; बिना रीढ़ के हो जाएँगे। जीवन ऐसा जुड़ा है कि कहना मुश्किल है कि किस बात का क्या परिणाम होगा! कौन सी बात कहाँ ले जाएगी! मकड़ी का जाला, एक तरफ से हिलाओ, सारा जाला हिलने लगता है।
आदमी बुद्धि से कहीं पहुँचा नहीं। बुद्धि के नाम से जिसको हम प्रगति कहते हैं, वह हुई नहीं। वहम है। भ्रांति है। आदमी पहले से ज्यादा सुखी नहीं हुआ है, ज्यादा दुखी हो गया है। आज भी जंगल में बसा आदिवासी तुमसे ज्यादा सुखी है।
हालाँकि तुम उसे देखकर कहोगे- 'बेचारा! झोपड़े में रहता है या वृक्ष के नीचे रहता है। यह कोई रहने का ढंग है? भोजन भी दोनों जून ठीक से नहीं मिल पाता, यह भी कोई बात है? कपड़े-लत्ते भी नहीं हैं, नंगा बैठा है! दरिद्र, दीन, दया के योग्य। सेवा करो, इसको शिक्षित करो। मकान बनवाओ। कपड़े दो। इसकी नग्नता हटाओ। इसकी भूख मिटाओ।'
तुम्हारी नग्नता और भूख मिट गई, तुम्हारे पास कपड़े हैं, तुम्हारे पास मकान हैं- लेकिन सुख बढ़ा? आनंद बढ़ा? तुम ज्यादा शांत हुए? तुम ज्यादा प्रफुल्लित हुए? तुम्हारे जीवन में नृत्य आया? तुम गा सकते हो, नाच सकते हो? या कि कुम्हला गए और ��ड़ गए? तो कौन सी चीज गति दे रही है और कौन सी चीज सिर्फ गति का धोखा दे रही है, कहना मुश्किल है। लेकिन पूरब के मनीषियों का यह सारभूत निश्चय है, यह अत्यंत निश्चय किया हुआ दृष्टिकोण है, दर्शन है कि जब तक बुद्धि से तुम चलोगे तब तक तुम कहीं न कहीं उलझाव खड़ा करते रहोगे।
छोड़ो बुद्धि को! जो इस विराट को चलाता है, तुम उसके साथ सम्मिलित हो जाओ। तुम अलग-थलग न चलो। यह अलग-थलग चलने की तुम्हारी चेष्टा तुम्हें दुख में ले जा रही है। आदमी कुछ अलग नहीं है। जैसे पशु हैं, पक्षी हैं, पौधे हैं, चाँद-तारे हैं, ऐसा ही आदमी है- इस विराट का अंग। लेकिन आदमी अपने को अंग नहीं मानता।
आदमी कहता है- 'मेरे पास बुद्धि है। पशु-पक्षियों के पास तो बुद्धि नहीं। ये तो बेचारे विवश हैं। मेरे पास बुद्धि है। मैं बुद्धि का उपयोग करूँगा और मैं जीवन को ज्यादा आनंद की दिशा में ले चलूँगा।' लेकिन कहां आदमी ले जा पाया! जितना आदमी सभ्य होता है, उतना ही दुखी होता चला जाता है। जितनी शिक्षा बढ़ती, उतनी पीड़ा बढ़ती चली जाती है। जितनी जानकारी और बुद्धि का संग्रह होता है, उतना ही हम पाते हैं किभीतर कुछ खाली और रिक्त होता चला जाता है!
इस धारणा को ही छोड़ दो किहम अलग-थलग हैं। हम इकट्ठे हैं। सब जुड़ा है। हम संयुक्त हैं। इस संयुक्तता में लीन हो जाओ।
~PPG~
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jackblog22 · 1 year
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Motivational Quotes In Hindi For Students
 101  “Motivational Quotes For Students In Hindi” में विद्यार्थियों के लिए ज्ञान बहुत ही अच्छे मोटिवेशनल कोट्स हिंदी में लाए हैं यह आपके पढ़ने एवं शिक्षा के लिए मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी और स्टूडेंट्स बहुत ही आवश्यकता है क्योंकि बच्चे पढ़ते-पढ़ते या समाज में कुछ प्रभाव को देखते हुए मन में कुछ विचार आने लगते हैं जिससे पढ़ने एवं ज्ञान से मन विचलित होने लगता है एवं अन्य विचारों की तरफ जाने लगता है इसके लिए हमने Motivational Quotes In Hindi For Students आपके लिए लाए हैं मैं आशा करता हूं आप को बहुत ही पसंद आएंगे और यदि आपको पसंद आते हैं या नहीं भी आते तो आप हमें कमेंट पर अपनी राय जरूर दे सकते हैं जिससे हम आगे और भी अच्छे लाने का प्रयत्न कर सके।
Motivational quotes in hindi for students life
“शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे आप दुनिया को बदलने के लिए उपयोग कर सकते हैं।”
जिसने कभी गलती नहीं की
उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की…!!
लोगों को अपने सपने मत बताओ,
बस उन्हें पूरा करके दिखाओ…
क्योंकि लोग सुनना कम
और देखना ज्यादा पसंद करते हैं…!!
“ज्ञान आपके दिमाग का खोराक है।
इसलिए आपका कर्तव्य है कि
आप अपने दिमाग को अच्छे से अच्छा ज्ञान प्रतिदिन देते रहें।”
निंदा’ से घबराकर अपने “लक्ष्य” को ना छोड़े
क्योंकि ‘लक्ष्य’ मिलते ही “निंदा” करने वालों की
राय बदल जाती है.
motivational quotes in hindi for students
“जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है वह सिर्फ पांच मिनट के लिए मूर्ख रहता है,
लेकिन जो पूछता ही नहीं वह हमेशा के लिए मूर्ख रहता है।”
“विद्यार्थी जीवन की छोटी-छोटी आदतें,
हमारे जीवन में बड़ा फर्क पैदा कर देती हैं।”
मोटिवेशनल कोट्स हिंदी में
सलाह हारे हुए की, तजुर्बा जीते हुए का
और दिमाग खुद का,
इंसान को जिंदगी में कभी हारने नहीं देता…!!
“प्रश्न पूछना और उसका जवाब जानने की चेष्टा करना,
एक विद्यार्थी का खास लक्षण है।”
लोगों की सलाह से बेहतर
ज़िन्दगी में खाये हुए ठोकर हैं
जो जिंदगी को बहुत मजबूत बनाते हैं…!!
“शास्त्र ज्ञान शस्त्र ज्ञान से बहुत अधिक असरदार,
शक्तिशाली और प्रभावशाली होता है।”
“निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को ना छोड़े क्योंकि
लक्ष्य मिलते ही अक्सर निंदा करने वालों की राय बदल जाती हैं।”
अपने सपनों को जिन्दा रखिए,
अगर आपके सपनों की चिंगारी बुझ गई है,
तो इसका मतलब यह है कि
आपने जीते जी आत्महत्या कर ली है…!!
“सफलता पाने के लिए हमें पहले यह विश्वास करना होगा कि हम यह कर सकते है।”
“शिक्षा कभी भी व्यर्थ नहीं होती भले ही वो किसी भी तरह की ग्रहण की गई हो।”
Motivational quotes in hindi for students success
“खुश रहा करो उनके लिए जो अपनी खुशी से ज्यादा आपको खुश देखना चाहते है।”
“अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो सूरज की तरह जलना सीखो।”
तमाशा लोग नहीं हम खुद बनाते हैं
अपनी जिंदगी का…
हर किसी को अपनी कमजोरी बताकर…!!
“बाहर की चुनौतियों से नही हम अपने अंदर की कमजोरियों से हारते है।”
आपके पूरे रास्ते में अध्यापक केवल दरवाजा खोल सकते हैं, एंट्री तो आपको ही लेनी पड़ेगी.
तुम जहां हो वहीं शुरू करो,
जो तुम्हारे पास है, उसका उपयोग करो…
जो तुम कर सकतो हो वो करो…!!
“जिंदगी में पछतावा करना छोड़ दो, कुछ ऐसा करो कि तुम्हें छोड़ने वाले पछताए।”
“अपने आप को विकसित करें, याद रखें गति और विकास जिंदा इंसान की निशानी है।”
Struggle motivational quotes in hindi for students life
अगर आप सही हो तो कुछ भी साबित करने की कोशिश मत करो,
बस आप सही बने रहो, एक दिन वक्त खुद गवाही दे देगा !!
“यदि आप वही करते है जो आप हमेशा से करते आए है,
तो आपको उतना ही मिलेगा जितना हमेशा से मिलता आया है।”
अक्सर लोगों की एक समस्या होती हैं – “मन भर जाता हैं”
अरे! भरने के लिए मन कोई बर्तन थोड़े ही हैं.
अपने मन के अन्दर ऐसी अग्नि जलाओ जो कभी न बुझने वाली हो.
“खुद में वह बदलाव करो जो आप दुनिया में देखना चाहते है।”
इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है,
और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है…
इसलिये जीवन की परिस्थिति में,
धैर्य बनाए रखना ही श्रेष्ठता है…!!
“कभी ये मत सोचिए कि आप अकेले हो,
बल्कि ये सोचिए कि आप अकेले ही काफी हो।”
“कम शिकायतें, कम बहाने, कम टालमटोल;
अधिक सफलता पाने का यही मूल मंत्र है।”
स्टूडेंट मोटिवेशनल कोट्स इन हिंदी फॉर सक्सेस
“अच्छा दिखने के लिए नहीं, अच्छा बनने के लिए जियो।”
इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं, हम वो सब कर सकते है
जो हम सोच सकते है, और हम वो सब सोच सकते है
जो हमने आज तक नहीं सोचा…!!
हमें सिर्फ अपनी संघर्ष करने की क्षमता बढ़ानी है,
सफलता का मिलना तो तय है…!!
लोग सही कहते हैं तू पागल हैं
और पागलों ने ही इतिहास रचा है…!!
“लोग आपके बारे में क्या सोचते है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप,
लोगों के बारे में क्या सोचते है क्योंकि यही चीज आपका चरित्र निर्धारित करती है।”
“तीन चीजों को बदलो, बहानों को कोशिश में, आलस को निश्चय में और समस्याओं को मौक़ों में।”
Motivational line for students in hindi
संघर्ष इंसान को मजबूत बनाता है,
फिर चाहे वो कितना भी कमजोर क्यो न हो…!!
“जब सारी दुनिया कहने लग जाए की तुम ये नही कर सकते,
तब चुपके से अपने दिल से कहो, अब समय आ गया है
संघर्ष करने का और शुरू हो जाओ। तुम्हारी जीत पक्की है।”
“कामयाबी इरादे बदलने से नहीं, बल्कि तरीके बदलने से आती है।”
इस बात से मतलब नहीं है की तुम कितनी धीरे चलते हो
जब तक की तुम रुकते नहीं…!!
समय के पास इतना समय नहीं कि वो
आपको दोबारा समय दे सके…!!
“असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो।
कहां कमी रह गई, उसे ढूंढो और सुधार करो।”
अपने महान लक्ष्यों को तय कीजिये
और तब तक नहीं रूके तब तक पा न लें…!!
Hindi quotes for Students
मांगो तो अपने रब से मांगो,
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत,
लेकिन दुनिया से हरगिज मत मांगना,
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी
“हारने वाला विद्यार्थी जीतने वाले विद्यार्थी पर ध्यान देता है,
जबकि जीतने वाला विद्यार्थी सिर्फ जीतने पर ध्यान देता है।”
अपने भविष्य की भविष्यवाणी करने का सबसे अच्छा तरीका यह हैं इसे आप खुद ही बनाओ.
पागल लोग इतिहास रचते हैं और
समझदार लोग इतिहास पढ़ते हैं…!!
आने वाला ‘भविष्य’ उनका है जो स्वयं के सपनों की ‘सुंदरता’ में विश्वास करते हैं |
एक नया दिन,
नयी ताकत और नए विचार के साथ आता है…!!
“उन सभी रास्तों को छोड़ दो जो मंज़िल की तरफ नही जाते,
भले ही वो कितने ही खूबसूरत हो।”
“एक मूर्ख व्यक्ति योजना के जरिए, एक बुद्धिमान व्यक्ति को भी हरा सकता है।”
फेसबुक स्टेटस हिंदी
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cbnews · 2 years
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अमेरिका के फेडरल ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (#FDA) ने दुनिया की सबसे महंगी दवा को मान्यता दे दी है. आप इसकी कीमत जानकर हैरान हो जाएंगे. इस दवा की एक डोज़ 3.5 मिलियन यूएस डॉलर्स यानी 28.51 करोड़ रुपये की है. यह दवा बेहद दुर्लभ बीमारी हीमोफिलिया बी (Hemophilia B) के इलाज में इस्तेमाल होती है. यह एक जेनेटिक बीमारी है, जिसमें इंसान का खून कम जमता ( #ReducedBloodClotting) लगता है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिस तरह की बीमारी को यह दवा ठीक करती है, उसे देखते हुए और इस दवा को विकसित करने में की गई मेहनत और तकनीक की वजह से यह कीमत 'वाजिब' है. इस दवा का नाम है #हेमजेनिक्स ( #Hemgenix). जब किसी के शरीर में खून जमने की प्रक्रिया या गति धीमी हो जाती है, तब उसके शरीर से ब्लीडिंग रुकती नहीं है. यह एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है. इसे रोकना बेहद मुश्किल है. इसलिए यह दवा बनाई गई थी. हीमोफिलिया-बी बीमारी से पुरुष ज्यादा पीड़ित होते हैं. इसके कितने मरीज पूरी दुनिया में इसका सही अंदाजा लगाना मुश्किल है. लेकिन #America में करीब 8 हजार पुरुष इस बीमारी से जूझ रहे हैं. उन्हें जीवनभर इससे संघर्ष करना पड़ेगा. इस बीमारी का इलाज इतना महंगा है कि हर कोई इसका सही से इलाज नहीं करा पाता. गंभीर रूप से बीमार लोगों के साथ तो दिक्कत बढ़ जाती है. इसलिए ऐसी दवा की जरुरत काफी दिनों से थी. रिसर्चर्स ने स्टडी की है #HemophiliaB से पीड़ित इंसान अपने पूरे जीवन में 171 से 187 करोड़ रुपये खर्च कर देता है. या फिर उसकी सरकार इतना करती है. कम से कम अमेरिका में तो ऐसा होता ही है. हालांकि, यूरोपीय देशों में इस बीमारी का इलाज अमेरिका से सस्ता है. लेकिन इसके बाद भी करोड़ों रुपये लग ही जाते हैं. दूसरी तरफ हेमजेनिक्स ऐसी दवा है, जिसकी एक डोज़ इलाज कर देती है. यह पूरे खर्च की तुलना में सस्ता पड़ेगा. हेमजेनिक्स दवा एक इंजेक्शन है. जिसे नसों में डाला जाता है. दवा असल में एक वायरल बेस्ड वेक्टर है. जो लिवर के टारगेट सेल्स पर इंजीनियर्ड डीएनए भेजता है. इसके बाद दवा के जरिए भेजी गई जेनेटिक सूचना को कोशिकाएं रेप्लीकेट करती हैं. यानी उसे बांटती हैं. फिर यही सूचना जाकर #ClottingProtein को संदेश देती है कि तुम अपना काम सही से करो. इसे #FactorIX कहते हैं. #CBnews #Chandrakant_cb #TrendingNews #BaghelNews #ViralNews #BreakingNews #News #LatestNews #TodayNews #HindiNews #Status #Stories #ShareChatTrendingNews #Viral #Trending #HighestPrice You can follow on social media 👇🏻 SC https://sharechat.com/profile/chandrakant_cb?d=n (at America) https://www.instagram.com/p/ClY5dfDoZC6/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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jyotihandique · 4 years
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आईएमएफ का कहना है कि 2020 में एशिया में शून्य प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिलेगी
एशिया में 2020 तक शून्य प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है कोविड -19 अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि लगभग 60 वर्षों में महामारी, इसका सबसे खराब विकास प्रदर्शन है, लेकिन अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर किराया की संभावना है।
IMF, V COVID-19 महामारी और एशिया-प्रशांत क्षेत्र: सबसे कम विकास शीर्षक वाले एक ब्लॉग में 1960 के…
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choot-lund · 4 years
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" रूपा बैठो घबराओ नहीं ।"
"अब आपको अरुण घर जाना ��ाहिये । कृपया समझें कि हम पड़ोसियों हैं और हम जो भी सोच रहे हैं वह हम नहीं कर सकते "
रूपा उसकी दृढ़ता से चौंकी और सोफे पर अपने पैरों को एक साथ चिपका कर बैट गयी साथ ही हाथों से अपने स्तन की रक्षा के लिये लपेट ली। अरुण उसके करीब चले गए और उसके बालों केो अपने हाथ से सेहराने लगा ।  
"आप वास्तव में बहुत सेक्सी हैं। आदित्य भाग्यशाली है कि आपके जैसी बीवी मिली जिससे रोज प्यार कर सके। मुझे नहीं पता कि वह आपको बेडरूम मैं किस तरह से प्यार करता होगा ।"
"रूपा मैं समझ सकता हूं कि आज आपको एक आदमी के प्यार की ज़रूरत है। मैं आपकी महिला सुगंध को भांप सकता हूं और कह सकता हूं कि आप भी मुझे आज रात रहना चाहते हैं। "
यह कहते हुए अरुण ने रूपा के होंठों को चूमने के लिए आगे बढ़े । रूपा ने उसके चेहरे का अध्ययन किया क्योंकि उसका चेहरा अब एकदम सामने था। वहएक बुरे दिखने वाले आदमी नहीं थे। आदित्य की तुलना में वह निश्चित रूप से एक माचो आदमी से अधिक था । उनकी लंबी मुद्रा के कारण, रूपा को हमेशा आंखों उठा कर बात करनी पड़ती थी। वह झुका और उसे जुनून से चुंबन शुरू कर दिया। उसने अपना मुंह खोला और अपनी जीभ को उसके होंठों के बीच मजबूर कर दिया । रूपा अब अरुण के मुंह का स्वाद ले सकती थी।
अरुण नहीं जानता था कि वह कितने समय तक चूमा, लेकिन वास्तविकता के लिए रूपा ने उसे वापस बोला जब वह उसकी बाहों से अधिक उसके  नाइटगॉउन को नीचे उतार रहा था। उसके स्तन को उजागर करने की कोशिश कर रहा था। रूपा उससे दूर होगयी और अपने नाइटगॉउन को वापिस ऊपर खींच लिया। वह रूपा की तरफ गया और उसे फिर से चुंबन देना शुरू कर दिया। वह उसके स्तनों के साथ प्यार करने लगा था, लेकिन जब रूपा ने उसे रोकने की कोशिश की तब उसने अपनी समझ से मुक्त होकर खड़ा होगया।
" अरुण, मुझे सच में लगता है कि अब आपको जाना चाहिए।"
वह रूपा के पास गया, और उसके चारों ओर अपनी बाहों को लपेट लिया। उसकी नाइटगॉउन के माध्यम से उसे नीचे पथपाकर शुरू कर दिया। उसने मुझे फिर से चुंबन शुरू किया और एक महानचुंबक होने लगा, वह काम किया जा रहा था। वह अपने मुंह में चिल्लाती थी क्योंकि उसका हाथ उसके पैंटी में चला गया था , लेकिन उसने अपना सिर तंग रखा और उसे चुंबन दिया। रूपा दूरजाने के लिए कोशिश की और उसे धकेल दिया, और बहुत धीरे से उसके योनि के हुड मालिश शुरू कर दिया । वह उस समय अपने प्रतिरोध को लुप्तप्राय महसूस कर सकती थी जब उसकी उंगलियों ने फिर से निर्माण के लिए उसे पकड़ लिया। रूपा ने खुद पर अपना नियंत्रण खोना शुरू कर दिया था और उसकी इच्छा उसके ऊपर प्रभावी हो गई थी। एस वक्त अनिच्छुक रूपा अरुण के साथ लड़ना छोड़ दिया और अपनी जीत को महसूस करते हुए उन्होंने दबाव और गति को बढ़ाने शुरू कर दिया जो वह आवेदन कर रहा था।
"तुम बहुत हॉट और सुन्दर हो !" उसने रूपा के कान में फुसफुसाया । 
अरुण एकदम व्यग्र था, लेकिन रूपा को अरुण बहुत खुशी प्रदान कर रहा था। वह एक संभोग के कगार पर थी क्योंकि वह उसके साथ क्रूरता से खिलवाड़ कर रहा था। रूपा को ओर्गास्म आने ही वाला था की अरुण रुक गया और रूपा की उत्तेजना को चरम सीमा तक ले आया। वह एक पल क�� लिए पीछे वापस कदम रखा और रूपा के मुँह से हलकी चीख निकल गयी। वह अरुण की उंगलियों की उत्तेजना खोना नहीं चाहती थी। उसने अपनी इच्छा से आत्मसमर्पण कर दिया था। अरुण ने रूपा की नाइटगॉउन को उसके सिर पर खींच लिया।वह उसे अश्लीलतापूर्वक घूरने लगा और रूपा की नाइटगॉउन अब उसके नंगे पैरों के पास फर्श पर पड़ा था।
"अपनी चड्डि उतारो।"
" अरुण, कृपया। मैं यह नहीं कर सकती।" रूपा ने फुसफुसाए।
" रूपा, मुझे तुम्हारी चड्डी उतरने पर ज़बरदस्ती मत करवाओ।" अरुण ने एक कम, खतरनाक स्वर में कहा। रूपा के सिर को एक तरफ से हिलाकर रख दिया।
चूंकि रूपा एक घंटे पहले एक आदमी के स्पर्श के लिए बेताब थी, वह उसे अपनी सहमति दे दी और उसने अपनी सफेद सूती चड्डी को फर्श पर उतर कर उनमें से बाहर निकल गयी।
" ओह रूप, तुम एक खूबसूरत महिला हो ! उन बेहतरीन स्तनों मैं इतनी खूबसूरत औरत मैने आज तक नहीं देखा। "
उसके शब्दों को सुनकर रूपा को थोड़ा सा अचम्भा हुआ। लेकिन सच्चाई सुनकर रूपा ने उसके तारीफ का आनंद लिया। वह हमेशा अपने स्तनों पर बहुत गर्व करती रही है। वे किशोरावस्था के समय चिंतित थी कि छोटे स्तन से संपन्न महिलाओं उसके बारे में बहुत जलन हो रही होंगी। फिर भी, रूपा को शर्म आरही थी की वोह अब पूरी तरह से नग्न अरुण के सामने खड़ी थी और अरुण अभी भी पूरे कपड़ों मैं था। 
वह उसके करीब आगया और उसे फिर से प्रसन्न करना शुरू कर दिया । रूपा ने हलकी सी चीख दी और अरुण उसके एक स्तन पकड़ लिया और उसे अपने मुंह में
ले लिया। वह कड़ी मेहनत कर रहा था क्योंकि वह बलपूर्वक संवेदनशील निप्पल को झीभ से सेहला रहा था। यही कारण था कि रूपा की नसों से बिजली की एक लहर गुजर गयी जोकि सीधी उसकी योनि मैं उत्तेजना बना दी और उसे ओर्गास्म के किनारे पर धक्का दे दिया । जब वह एक तीव्र पर्वतारोहण पर पहुंची तो उसके घुटने जवाब दे दिये। रूपा को समझ में नहीं आया, जब अरुण ने उसे दीवार के खिलाफ दबाकर उसे पकड़ लिया । अब वह चरम सीमा पर चढ़ गई थी तो उसके ऊपर आनंद की लहर की बाढ़ बहने लगी । अरुण ने रूपा के निप्पल को एक पल के लिए लंबे समय तक चूस लिया और ठीक उसी समय जब रूपा इसका आनंद ले रही थी अरुण ने सामने के दांतों से निप्पल को हल्का सा काट लिया। वह इतनी कमजोर थी कि वह मुश्किल से दर्द से फुसफुसा सकती थी। उसने धीरे-धीरे उसे घुटनों तक कम कर दिया और एक पल के बाद , उसने अपनी आँखें खोली ताकि वह पूरी तरह से खड़ा लिंग अपने चेहरे पर रगड़ते उसके गाल को छू सके । वहएक हाथ से उसकी ठोड़ी उठाया और घुंघराले, बालों पर हाथ फेरने लगा। 
" रूपा तुम इतनी खूबसूरत महिला हो ।"  
एक त्वरित गति में उसने रूपा के बालों को ऊपर की तरफ खींच दिया और दूसरी तरफ उसके ठोड़ी को दबा दिया। रूपा को इससे पहले पता चलता कि क्या हुआ अरुण का लिंग उसके मुंह मैं था।
रूपा ने इससे पहले कभी किसी पुरुष का लिंग मुँह मैं नहीं लिया था। आदित्य को यह इतना पसंद नहीं था। रूप और आदित्य लगभग हर महीने प्यार करते थे और यह एक-दूसरे के लिए गहरे और अविनाशी प्यार की शारीरिक पुष्टि थी। वे एक बहुत सेरेब्रल रिश्ते के साथ आत्मा साथी हैं।आदित्य के पास रसायन विज्ञान में पीएचडी है और उसके पास गणित में परास्नातक हैं। वे नरक हो सकते हैं, लेकिन बहुत खुश और प्यार करने वाले नरक हैं।  
रूपा अरुण के तेजी से प्रभावशाली व्यवहार से अचंभित हो गयी थी ।
" मुझे आनंद दो मेरी भव्य पड़ोसी !"
रूपा कुछ घंटे पहले अपनी वासना मैं मगन थी। उसे एक पुरुष के प्यार की इंतजार थी। अरुण ने जब दरवाजा खटखटाया था तब वोह वासना मैं उसपर टूट जाती। पर रूपा अपनी संतुलन खोना नहीं चाहती थी। परन्तु अब अरुण की जबरदस्ती रूपा को अच्छी लगने लगी थी। उत्तेजना मैं अरुण का लिंग की शाफ्ट को पकड़ा लिया और उसे मुंह में रख दिया। वह यह पसंद करना शुरू कर रही थी कि वह उसे अपने हमले में भाग लेने के लिए मजबूर कर रही थी । वह उम्मीद कर रही थी कि उसके वासना पूरा होते ही अरुण निकल जाएगा।
"ओह, यह एक अच्छी महिला है । आपके पास कुछ प्रतिभा है रूपा। अरे हाँ, यह अच्छा लग रहा है। " 
अरुण ने एक शांत, निविदा, लगभग प्यार स्वर में कहा
और वह धीरे-धीरे रूपा के बालों मैं अपने हाथ घूमने लगा ।
यह उसे शांत कर रहा था । वह सोफे पर बैठ ग��ा। अब उसका विशाल डिक पूर्ण तरह से खड़ा था और सीधे चाट की ओर खड़ा था। अरुण ने रूपा को पैरों पर खींचा और उसके कमर पर हाथ रखा।
"कृपया ... मुझे प्यार करो।" रूपा विनम्रता से कहा । उसने अपनी शर्ट खोला और उसे नीचे पैर पर बिठा दिया। वह तुरंत उसके बगल में सोफे से नीचे बैठ गयी और उंगलियों से उसके विशाल शाफ्ट को स्ट्रोक देने लगी। अरुण थोड़ी देर के लिए एक पालतू बिल्ली की तरह मुस्कुराता रहा ! रूपा अपने दूसरे हाथ से उसकी विशाल गेंदों को पुचकारने लगी। वह पूरी तरह से नियंत्रण शुरू कर रही थी । उसके स्तन उसके सामने दो विशाल पानी की बूंदों की तरह लटक रहे थे । अरुण ने   धीरे उसके निपल्स से कहना शुरू किया जबकि रूपा उसके लिंग का आनंद ले रही थी । अब अरुण की बारी थी की वह अब रूपा इसी तरह से सम्भोग का आनंद दे। रूपा इस सम्भोग के लिये शाम से बेचैन थी।
अरुण ने पीछे से रूपा की योनि पाने की कोशिश की । वह अपनी योनि कोह थोड़ा घुमा दी ताकि अरुण उसे बेहतर पहुंच सकें। वह उसके योनि मैं ऊँगली दाल कर तेजी से हिलने लगा जबकि रूपा उसका लिंग को हिला रही थी। अरुण की उंगली उसकी गीली छेद में गायब हो गयी। रूपा के खुले मुंह और रॉकिंग कूल्हों को देखकर , यह स्पष्ट था कि वह बहोत आनंद मैं थी!
फिर उसने उसे थोड़ा पीछे कर दिया। वह बाहर कदम रखा और रूपा को नीचे कालीन पर लेटा  दिया। उसने रूपा को पीठ पर सुला दिया और 69 पदों में उसके ऊपर लेट गएा - उसका सिर उसके नग्न क्रॉच पर और रूपा के चेहरे पर लटका हुआ उसका विशाल ध्रुव। वह अपने पैरों को संपादित करता है और रूपा के योनि को झीभ से प्यार करना शुरू करता है। रूपा निरंतर कराह रही थी जिससे यह स्पष्ट था कि वह इसका आनंद ले रही थी। उसकी आँखें बंद होगयी और प्यार के रूप में वह अपनी जीभ नीचे से ऊपर तक उसकी योनी पर रोल कर रही थी। रूपा ने देखा की उसके चेहरे पर अरुण का विशाल लिंग मँडरा रहा है और सहज करीब लिंग के सिर को अपने मुँह मैं दाल लिया । अरुण भी काफी उत्तेजित हुआ और रूपा की योनि को और तेजी के साथ झीब से चाटने लगा। रूपा और अरुण दोनों और सम्भोग करने के चरम सीमा पर थे।  
रूपा के हाथ अरुण के नग्न नितंबों के आसपास जकड लिया और उसके कूल्हों तेजी से हिलने लगे, जो एक स्पष्ट संकेत है कि यह संभोग सुख है और रूपा को एक जोरदार ओर्गास्म आगया है। तब वह अपने शरीर के साथ अनियंत्रित रूप से हिलने लगी और एक शक्तिशाली संभोग में विस्फोट किया। अरुण ने  रूपा को  अपनी बाहों में पकड़ लिया और  उसे थोड़ा संभलने का मौका दिया।
धीरे धीरे वह रूपा के पैरों के बीच अपने पैरों के साथ उसके ऊपर सो गया । उन्होंने अपनी कमर आगे झुकाई और लिंग को योनि पर रख कर पुश करना शुरू किया।
"नहीं! रुको! मुझमें मत करो! मैं तुम्हें किसी ओर तरीके से प्यार कर देती हूँ!", रूपा ने वकालत किया।
परंतु अरुण के पास अन्य विचार था। वह उसके गीले योनि मैं घुसने की कोशिश करने लगा। जबकि रूपा उसे ऐसा करने से रोकने के प्रयास में पागल की तरह कोशिश कर रही थी ।
"कृपया मत करो! हम ऐसा नहीं कर सकते! आदित्य के बारे में सोचो ...... ? मैं उसके गैर मौजूदगी मैं ऐसा नहीं करना चाहती हूँ ..." 
परंतु अरुण एक मिशन पर था ! उन्होंने उसके घुटनों को उठाया और लिंग को योनि मे डाल  दिया। उसके डिक के सिर ने उसकी योनि का उद्घाटन किया और अंदर घुस गया । वह उसकी योनी के नरम गीला सिलवटों में अपने कूल्हों और अपने विशाल शाफ्ट ग्लाइड कर दिया। अरुण ने अपना लिंग उसकी योनी में विस्तारपूर्वक दफन कर दिया। रूपा ने अब संघर्ष करना बंद कर दिया । उसके सभी प्रतिरोध सूर्य के पहले धुंध की तरह गायब हो गए थे । वह अपना घुटना उठा ली और उसकी कमर के चारों ओर जकड लिया, उसके पीठ के आसपास अपनी  बाहों को डाल दिया। उसके होंठ अरुण के होंठों कोह ढूंढ रहे थे और मिलते ही उसे पूरे तेजी से चुम्बन करने लगे।
फिर वह रूपा से सम्भोग करन शुरू कर देता है। अरुण गहराई तक उसके अंदर अपने विशाल डिक खोदा दिया और फिर उसकी गीला योनी से लिंग बहार निकला गीला और लाउंज के प्रकाश में चमकदार। रूपा के कूल्हों के साथ ताल मेल में रॉक करना शुरू कर दिया। रूपा के नाखून उसकी पीठ के मांस में काट ने लगे। अरुण उसे पूरी भावना  से सम्भोग करने लगा और रूपा बेसब्री से उसके हर जोर से अपनी लय मिला रही थी। अचानक अरुण ने उससे सम्भोग करना बंद किया और उसे बिस्टेर पर रोल कर दिया। रूपा ने उसे एक हैरान, लगभग निराश नज़र दे दी। 
अरुण ने रूपा को अपने  घुटने और हाथ पर खड़ा कर दिया । वह तुरंत इस स्थिति में रूपा के पीछे जाकर लव-चैनल में अपने विशाल डिक को दाल दिया। रूपा उत्तेजना और आनंद के चरम सीमा पर पहोच गयी। वह पूरी तरह पल की उसकी खुशी में घिर गयी थी। अरुण खुद आगे झुका और उसके एक हाथ उसके पैरों के बीच योनि को सेहराने लगा जबकि दूसरा हाथ लहराते स्तन के साथ पुचकारने लगा। अरुण पीछे से अपनी हार्ड लिंग और गेंदों के हर स्ट्रोक के साथ उसके क्लीट के खिलाफ थप्पड़ मारने लगा। रूपा एक और पृथ्वी-टूटने संभोग के कगार पर थी। वह फिर से हिरन की तरह कराहना चालू की औरकालीन पर पतन, उसके शरीर अपने दूसरे संभोग के ओर्गास्म मैं सिहरने लगा।
वह फर्श पर ढेर होगयी, जबकि अरुण उठकर सोफे पर जा बैठा। रूपा ने उसे देखा और एक शब्द भी नहीं कहा। 
फिर वह उठकर उसके पास चली गयी। वह पैर फैलाकर  गोद में जा बैठी और अपनी गीली योनी में अरुण का विशाल लिंग स्लाइड कर ली जब तक उनकी गेंदों रूपा के नितम्ब के खिलाफ दब ने नहीं लगे। फिर उसने उसे सवारी करने शुरू किया! यह दृश्य कि एक विशाल लिंग कैसे सुंदर रूपा की योनी से बाहर निकलता है काफी आश्चर्य जनक था। किन्तु रूपा नियंत्रण में थी और इसके हर पल को प्यार कर रही थी!
फिर यह अरुण के लिए बहुत अधिक हो गया । उन्होंने रूपा के हड़पने कूल्हों को पकड़ा और उसकी योनी मैं जोर से स्ट्रोक लगाना शुरू कर दिया। उसके कूल्हों तालबद्ध रूपा के ताल से मिल गया और लिंग ने गरम सफ़ेद सह की धारा पूरी तरह से उसके योनि के अंदर खाली कर दी।
रूपा थक कर अरुण के कंधे पर सिर रखी। उसका नरम डिक अभी भी उसकी योनि में दफन था । तब उसने अपने नितम्ब को ऊपर उठाया और उसके मुलायम, गीले डिक को उसके बाहर निकल दिया। दोनों ने उठकर अपने कपड़े पहने। रूपा भी कपड़े पहनकर अरुण को दरवाजे तक छोड़ने गयी। अरुण शांत घर से बहार निकल गया और पलट कर देखा नहीं।
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lifeatexp · 4 years
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योग(Yoga) क्या है? What is Yoga?दोस्तों आज हम इस विषय(topic) पर बात (talk) करेंगे और जानेंगे योग क्या है उसी के साथ यह भी जानेंगे योग का इतिहास(History) क्या है? और दोस्तों (Friends) जीवन में योग का महत्व (Importance) भी पता करना चाहिए और साथी ही योग के लक्ष्य तथा योग की विशेषताएं(Features) और यह भी जानेंगे कि योग के प्रकार (type) कितने होते हैं और योग योगा करने से क्या लाभ (Benefit) होते हैं और हमारे शरीर (Body) में योग अंग (Part) कौन से हैं और दोस्तों योगा करने से आपको क्या फायदे हो सकते हैं और आप कैसे सफल (Successful) बन सकते हैं आशा करते है कि आपको हमारी यह पोस्ट जरूर पसंद (like) आएंगी और यह जानकारी भी आपके काम (work) आएंगे. What is yoga? Yuga benefit। how to yoga important life? योग क्या है?  योग एक गतिमान(Moving) मानसिक शरीर है।  इन प्रणाली में श्वास और एकाग्रता के प्रणाली (System )और नियंत्रण दोनों शामिल हैं।  योग के कई लाभ (Benefit )थाई ची या मार्शल आर्ट के समान हैं, और समय के साथ, शिक्षकों ने खेल को आकार दिया है।  हालांकि अधिकांश मदरसे व्यक्तिगत रूप से योग सिखाते हैं।  योग का अर्थ आपको पता होना चाहिए कि योग संस्कृत (Sanskrit)शब्द YUJ से लिया गया है जिसका अर्थ है एकता।  वास्तव में, शरीर और आत्मा, और यहां तक कि अस्तित्व(the existence) की सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों के बीच, मानव एक अविश्वसनीय संघ बनाता है।  एक खुशहाल, संतुलित(Balanced) और उपयोगी जीवन के लिए, एगरर योग स्कूल योग को "व्यक्ति के सभी पहलुओं - मन और मस्तिष्क के साथ शरीर" के रूप में परिभाषित(defined )करता है।  “वे यहां तक दावा करते हैं कि योग का अंतिम लक्ष्य  कल्याणी (परम मुक्ति या अंतिम स्वतंत्रता) (Ultimate liberation or ultimate freedom)प्राप्त करना है” योग एक गतिमान मानसिक शरीर है।  इन प्रक्रिया में श्वास और एकाग्रता के प्रक्रिया और नियंत्रण दोनों शामिल हैं।  योग के कई लाभ जिसे मार्शल आर्ट के समान हैं, और समय के साथ, शिक्षकों ने खेल को आकार दिया है।  हालांकि अधिकांश मदरसे व्यक्तिगत रूप से योग सिखाते हैं।  योग का इतिहास क्या है?What is the history of yoga? योग का इतिहास क्या है?What is the history of yoga?  योग एक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक(Psychologist) अभ्यास है जो भारतीय उप महाद्वीप और हिंदूओं के माध्यम से उत्पन्न हुआ है।  यह बताना असंभव (impossible)है कि यह अभ्यास व्यक्तिगत और सटीक दोनों तरह से कैसे हुआ।  क्योंकि योग का इतिहास इतने साल पीछे चला गया है। हज़ारों ने खुद हज़ारों को इस विषय पर पारित किया और इसे योग के कई अलग-अलग स्कूलों में फैलाया।  योग का पहला रिकॉर्ड काम और सबसे पहला ग्रंथ, जो संभवतः पतंजलि द्वारा लिखा गया था, भारत के मरियम भुजी द्वारा लिखा गया था जो लगभग 3 से 4 साल पहले रहते थे। पतंजलि का लेखन सूक्त योग (संस्कृत में "अर्थ" विषय ") के सिद्धांत, दर्शन और योग के तरीकों पर आधारित है जो अभी भी दरभंगा में प्रचलित हैं। योग की विशेषताएं योग के लाभ नीचे दिए गए हैं तनाव(Tension) और चिंता(anxiety) अवसाद के लक्षणों में कमी  बेहतर संतुलन और लचीलापन स्वप्न की स्थिति में सुधार  लसीला प्रणाली की गति के कारण सुरक्षा में वृद्धि  विषाक्त पदार्थों और भारी धातुओं के बीच  शक्ति और धीरज बढ़ाएँ  रक्त प���रवाह में सुधार  IBS के लक्षणों सहित बेहतर प्रदर्शन “ पहली बार संबंध बनाने के बारे में दोषी भावनाओं की शुरुआत, आगे चलकर जो भी पाटनर अफेयर होने की ऊर्जा छोड़ता है”  पुरानी दर्द, जिसमें बार-बार होने वाली मांसपेशियों(Muscles) की समस्याएं जैसे पीठ दर्द (back pain) या सिरदर्द (Headache) शामिल हैं। शारीरिक स्थिति में सुधार और व्यक्तित्व विकारों के लक्षण योग या अष्टांग योग के आठ चरण हैं: आसन क्या है? What is posture? 1) यम: का अर्थ है विनाशकारी कारकों से नियंत्रण और आत्म-नियंत्रण और संयम। 2) नियमन: इसका अर्थ है जीवन भर के रोजमर्रा के जीवन में अनुशासन।  3) आसन: का अर्थ है शरीर को योग की क्रियाओं द्वारा विशेष स्थिति में लाना और शरीर को एक विशेष स्थिति में स्थिर करना। 4) प्राणायाम (प्राणायम): प्राण शक्ति या मातृ नियंत्रण के अर्थ में और उस नियंत्रण से प्रेरित प्राण शक्ति योग का अभ्यास है। 5) प्रोसहित: (प्रत्याहार) का अर्थ है इंद्रियों को प्रशिक्षित करना और अनुशासित करना 6) धारणा: अर्थ नियंत्रण और विचार का अनुशासन। 7) ध्यान: जिसका अर्थ विचार या गहन ध्यान के प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करना है। 8) समाधि: का अर्थ है एकजुट होना या ब्रह्मांड के साथ होना, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चरण 1, 2, 3 और 4 अधिकतर नैतिक और स्व-विनियमन अभ्यास हैं।  चरण 1 से 5 व्यापक शारीरिक, श्वसन और मानसिक व्यायाम हैं जो कि सबसे अधिक ध्यान केंद्रित (Centered) करते हैं और अब सबसे अधिक विश्व योग केंद्रों द्वारा पुनर्निर्माण तकनीकों के लिए उपयोग किए जा रहे हैं।  इन 5 चरणों को योग के दो प्रकारों में विभाजित किया गया है: 1) हठ योग २) राजयोग (Raja Yoga)  हठ योग शारीरिक और श्वसन योग अभ्यासों को संवर्धित करता है और इसमें व्यायाम शामिल हैं: योग के अंग Parts of yoga  ▪ श्वास (Breath) ▪ तन (Body)  ▪ पुनर्निर्माण(Reconstruction)  राज योग मानसिक व्यायाम और केंद्रीय योग अभ्यास को संदर्भित करता है और इसमें शामिल हैं:  * व्यायाम भावनाओं को नियंत्रित करता है  प्रैक्टिस कंट्रोलिंग विचार  व्यायाम गहन ध्यान हैं। योग का इतिहास History of yoga आंदोलनों और शर्तों मुख्य योग अभ्यास, जिन्हें आसान भी कहा जाता है, गैर-आक्रामक, तनाव रहित व्यायाम हैं जो आपके शरीर से लचीलापन और एकाग्रता के बिना थकान को दूर करते हैं। सेनापति की स्थिति यह व्यायाम, जिसे तीरंदाजी व्यायाम भी कहा जाता है, हाथों और पैरो की गति को आंदोलन के लगभग सभी जोड़ों को कवर करने का कारण बनता है, जो इन जोड़ों में से अधिकांश के लचीले होने का कारण है।  व्यायाम करने से कमांडर को अपने शारीरिक संतुलन और शारीरिक आंदोलनों के समन्वय में सुधार करने में मदद मिलेगी।  इसे करने के लिए जमीन पर बैठें और पंजों को आगे की ओर खींचें।  फिर उसने अपनी बाहों को आराम दिया और अपने पैर मोड़ लिए।  इस बीच, गहरी सांस(Deep breath) लेना न भूलें।  जैसे ही आप अपने बाएं पैर को जमीन पर रखते हैं और इसे जमीन पर मजबूती से पकड़ते हैं, अपने दाहिने घुटने को मोड़ें और अपने दाहिने पैर को अपने दाहिने कान के पास लाएं।  मान लीजिए कि आप एक कमांडर हैं और पादरी का अंत एक धनुष है, जिसे आपने तय किया है और आप अपने दाहिने हाथ से थप्पड़ मारना चाहते हैं।  उसी (Time)समय, कोशिश करें (जब तक आप बहुत थके हुए न हों) और ध्यान केंद्रित करने और गहरी सांस लेने की कोशिश करें। फिर शांति से आराम करें और कुछ पल आराम करें।  इस इनकार को दो बार दोहराएं, लेकिन फिर दोहराएं। महत्व और योग के लाभ महत्व और योग के लाभ यह स्थिति आपकी पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करेगी।  यह व्यायाम आपके स्तंभों को भी लचीला बनाएगा।  अन्य लाभों में, छाती को झुकाने का अभ्यास छाती की जकड़न को दूर करने और सांस लेने में मदद कर सकता है। इस स्थिति का अभ्यास करने के लिए, पहले अपना चेहरा (अपने पेट पर) फैलाएं।  पैरो को हटा दें और दस्ताने को शरीर के दोनों ओर रखें।  एक गहरी सास लो।  अपने घुटनों को मोड़ें ताकि आपके पैर आपकी पीठ के करीब हों।  फिर अपने हाथों को नाक की रीड पर टिकाएं और प्राणायाम करें  फिर अपने हाथों से, अपने पैरो को पीछे खींचें और आराम से सांस लें।  उसी समय ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें और जल्दी मत करो।  आपको इस स्थिति में थकान महसूस नहीं करनी चाहिए।  कुछ क्षण आराम (rest)करें और फिर व्यायाम दोहराएं। योग शुरू करना पहले से आवश्यक नहीं है और हर कोई किसी भी उम्र में योग शुरू कर सकता है।  यदि आप ���ोग का अभ्यास नहीं करते हैं और एक दोस्त है, तो इसे आज़माएं, देरी न करें और इस अवसर को अपने दम पर न लें।  आप घर पर और सबसे कम लागत पर मोबाइल कार्यक्रमों और योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में अपने काम को आगे बढ़ाने(To increase) के लिए उन्नत स्तर पर योग का अभ्यास करने में सक्षम होंगे।  जब आप अपने सूट के बारे में अनिश्चित महसूस कर रहे हों, तब आप उन्हें अपने सवालों के जवाब देने के लिए भी उपलब्ध(available) हो सकते हैं।
http://www.lifeatexp.site/2020/05/what-is-yoga-yuga-benefit-how-to-yoga.html
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merisahelimagazine · 4 years
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कहानी- पारस (Short Story- Paras)
लोगों की नज़र में वो देवता थे, पर नेहा की नज़र में वो बेचारा भला आदमी, जिसका सब लाभ उठाया करते हैं. ‘शादी के बाद कुछ समय तक तो उस प्यार का स्वाद चखने को मिलता ही है, जो सागर के उस ज्वार की तरह होता है, जो तन-मन और आत्मा तक को भिगो देता है. जो उन्माद की तरह चढ़ता है, तो धरती अंतरिक्ष लगने लगती है…’ सखियों के कहे ये वाक्य सिम्मी के दिल में कील की तरह चुभते रहते.
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लंबा कद, स्वर्णाभा लिए गौर वर्ण और तराशे हुए नैन-नक्श, उस पर गीत-संगीत, पाक कला, सिंगार कला और अन्य घरेलू कार्यों में अद्भुत कौशल. लगता था, ईश्‍वर ने बड़ी फुर्सत से उसमें रूप-गुण भरे थे. सिम्मी बड़ी-बूढ़ी औरतों और सखियों से सुनते-सुनते ख़ुद भी यक़ीन करने लगी थी कि उसे तो कोई परियों का राजकुमार मांगकर ले जाएगा. ब्याहकर अपने घर आई, तो अविचल में अपने रूप के सम्मोहन में मंत्र-मुग्ध ख़ुद पर जान छिड़कनेवाले सपनों के राजकुमार जैसा कुछ भी न पाया. उसमें जितनी पिपासा थी, अविचल में उतनी ही निर्लिप्तता. वो अल्हड़ कैशोर्य की उन्मुक्त उमंगों की जीवंतता थी, तो अविचल अपने माता-पिता के देहांत के बाद छोटी आयु से ही परिवार की ज़िम्मेदारियां सम्हालते हुए एक धीर-गंभीर सांचे में ढली शालीनता और कर्त्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति. तीन बहनों की शादी करने और भाई को हॉस्टल में डालने के बाद उन्होंने शादी की थी. अविचल गणित की ट्यूशंस पढ़ाते थे. एक घंटा वे ग़रीब बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाने के लिए भी देते थे. बहुत-से रिश्तेदार शहर में रहते थे. किसी को कोई भी काम हो, अविचल कभी मना नहीं करते थे. और तो और, दूधवाले का बेटा बीमार हो या सब्ज़ीवाले के बेटे का स्कूल में प्रवेश कराना हो, अविचल हमेशा तत्पर रहते. लोगों की नज़र में वो देवता थे, पर नेहा की नज़र में वो बेचारा भला आदमी, जिसका सब लाभ उठाया करते हैं. ‘शादी के बाद कुछ समय तक तो उस प्यार का स्वाद चखने को मिलता ही है, जो सागर के उस ज्वार की तरह होता है, जो तन-मन और आत्मा तक को भिगो देता है. जो उन्माद की तरह चढ़ता है, तो धरती अंतरिक्ष लगने लगती है…’ सखियों के कहे ये वाक्य सिम्मी के दिल में कील की तरह चुभते रहते. उस प्यार की प्यास में वो ख़ूब मन लगाकर तैयार होती कि कभी तो उसका अद्वितीय रूप अविचल की ज़ुबान को प्रशंसा करने को विवश कर दे. अक्सर रात में कोई रोमांटिक गीत लगाकर उस पर थिरकने लगती या कोई गीत गुनगुनाने लगती कि कभी तो उन गुणों की तारीफ़ में चंद शब्द सुनने को मिल जाएं, जिनके कारण लोग उसकी तुलना अप्सराओं से किया करते थे, पर सब बेकार. अविचल मुस्कुराते हुए उसे देख-सुन तो लेते, पर कभी तारीफ़ के दो शब्द उनके मुंह से न निकले. पहली बार मायके गई, तो दीदियों ने सलाह दी लज़ीज़ व्यंजनों की चाभी से दिल का ताला खोलने की कोशिश कर. लौटकर आई, तो वो चाची गांव वापस जा चुकी थीं, जो पहले खाना बनाया करती थीं. उसका रसोई में प्रवेश कराया गया, तो अवसर भी मिल गया पेट के रास्ते दिल में घुसने का. फिर क्या था, लज़ीज़ व्यंजनों से मेज़ सजा डाली, पर खाना चखकर अविचल की आंखों में आंसू आ गए. यह भी पढ़ें:ये उम्मीदें, जो हर पत्नी अपने पति से रखती है (Things Wife Expect From Husband)
“मैं ये खाना खा नहीं सकूंगा. तुम्हें शायद चाची ने बताया नहीं कि मैं मिर्ची बिल्कुल नहीं खा पाता. तुम मेरे लिए दूध ला दो, मैं उसमें रोटी भिगोकर खा लूंगा.” दूध लेकर आई, तो अविचल उसकी प्लेट लगा चुके थे. उसे पकड़ाते हुए बोले, “तुम भी मेरे कारण इतने दिनों से ऐसा खाना क्यों खाती रहीं? अब से अपने लिए ढंग से अपनी पसंद का बना लिया करो.” सिम्मी को काटो तो ख़ून नहीं. उसके सामने उसके पति बड़ी निर्लिप्तता से दूध-रोटी खा रहे थे और उसकी थाली यूं सजाई थी कि खाना न निगलते बन रहा था, न उगलते. यही हाल पलकों में छलक आए आंसुओं का भी था. जीवन ऐसे गुज़रने लगा था, जैसे घड़ी की सुइयां एक परिधि के अंदर चक्कर काटती रहती हैं. अर्थहीन, रसहीन, नवीनताविहीन. शादी की वर्षगांठ आई, तो इसी बहाने सिम्मी ने दिल की बहुत-सी गांठें खोलने की ठान ली. उसने ख़ूब सुंदर क्रॉकरी में कैंडल लाइट डिनर अविचल के मनपसंद खाने से सजाया. एक स्वेटर तो बुनकर तैयार ही कर लिया था. बहुत सुंदर-सा कार्ड भी ले आई. बहुत ही रोमांटिक अंदाज़ में कार्ड पेश किया, तो अविचल ने चौंककर कार्ड हाथ में लेकर सीधी तरफ़ से देखने से पहले ही उलटकर उसका दाम देखा और बोले, “सौ रुपए का कार्ड! इतने रुपए कैसे बरबाद कर सकीं तुम इस फ़ालतू की चीज़ में? हां, स्वेटर बनाकर अच्छा किया. घर के बने स्वेटर में बहुत बचत होती है, पर मेरे पास तो अभी दो हैं. काम चल रहा है. इसे पंकज को दे देना. वैसे भी हॉस्टल में रहनेवाले बच्चों को सुंदर चीज़ें पहनने का बड़ा शौक़ होता है.” सिम्मी की पलकें छलक उठीं. उसने सोचा, ‘अब मैं सबके लिए बुनूंगी, पर इनके लिए कभी नहीं.’ इस आदमी के सीने में दिल की जगह एक पत्थर रखा हुआ है. इसमें जगह बनाने की कोशिश ही व्यर्थ है. वो सपनीला प्यार, अविचल के दिल में, उसकी ज़ुबां पर, उसकी आंखों में अपने लिए पिपासा, अपना महत्व या अपने बिना न जी सकने की लाचारगी देख��े-सुनने की चाह एक कसक थी. ये चाह पहले निराशा, फिर आक्रोश, फिर कटुक्तियों में बदलती जा रही थी. अंतस में कैद ऊर्जा खीझ और चिड़चिड़ेपन के रूप में बाहर आने लगी थी कि किसी नवागत के स्पंदन ने तन-मन को पुलक से भर दिया. डॉक्टर ने उसकी रिपोर्ट्स देखकर उसे एनीमिक बताते हुए खानपान की एक लंबी सूची पकड़ाई, तो अविचल ने ये ज़िम्मेदारी ख़ुद पर ले ली. वे नियम से फल, सब्ज़ी, दूध आदि लाते, दही जमाते और उसे हर चीज़ ज़बर्दस्ती खिलाते. रसोई में जाते ही सिम्मी को उबकाई आने लगती थी, तो अविचल ने कह दिया कि वो केवल इतनी मेहनत कर ले कि ख़ुद ठीक से खा सके, इसीलिए वो बस एक चटपटी सब्ज़ी और रोटियां किसी तरह बना लेती. अविचल के लिए अलग से सादी सब्ज़ियां बन ही नहीं पाती थीं. वे कुछ कहते भी नहीं थे. सलाद तो ख़ुद ही बना लेते थे. दूध-रोटी, दाल-रोटी या नमकीन चावल खा लेते, पर सिम्मी को पूरा खाना अपने सामने ऐसे सख़्ती से खिलाते, जैसे वो उनकी विद्यार्थी हो. अगर थोड़े प्यार से खाने के लिए कहते, तो यही लम्हे कितने रोमांटिक हो सकते थे. सोचकर सिम्मी अक्सर इस पाषाण हृदय के सपाट अंदाज़ पर कुढ़ जाती.
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समय के चक्र ने सिम्मी की गोद में बेटे का उपहार डाला. उसके आगमन और मुंडन के उत्सव बहुत सादगी के साथ सम्पन्न हुए. न कोई पार्टी, न धूम-धड़ाका. अविचल की सारी बहनें आतीं और मिलकर घर में ही खाना बनाकर रिश्तेदारों को दावत दे दी जाती. अपने लिए किसी मनोरंजन पर ख़र्च न करने की टीस तो सिम्मी बर्दाश्त कर जाती, पर बेटे के लिए पार्टी न होने की तिलमिलाहट अक्सर व्यंग्य बनकर ज़ुबां पर आ जाती. कुछ बच्चे की व्यस्तता और कुछ अविचल के स्थित प्रज्ञ साधुओं के से रवैये से पनपी खीझ ने सिम्मी को इतना आलसी बना दिया था कि उसने खानपान के रवैये को ऐसे ही चलने दिया. ननदें आती-जाती रहती थीं. उन्होंने भाई की ऐसी उपेक्षा देखी, तो ऐसी बहुत-सी सादी साग-सब्ज़ियों, सलाद और सूप आदि की विधियां बताईं, जो अविचल को बहुत पसंद थे, पर इतना समय लगाकर बननेवाले इतने स्वादहीन पकवानों को काटने-बनाने में सिम्मी की बिल्कुल दिलचस्पी न थी. वो सोचती ऐसे पत्थर दिल के लिए मेहनत करने का क्या फ़ायदा, जिसे कभी जीवन में न कुछ अच्छा लगा, न बुरा. कुछ अच्छा बना दो, तो तारीफ़ ही कब करते हैं और न बनाने पर शिकायत ही कब की है? जाने कोई एहसास है भी उनके भीतर या… सिम्मी के मायके में एक शादी का अवसर था. अविचल का कहना था कि बढ़ते बच्चों के लिए महंगे सामान ख़रीदना पैसों की बर्बादी है, इसलिए उसके बेटे के पास ननदों के लाए पुराने कपड़े और सामान ही थे. उन सामानों में बेटे को लेकर मायके जाना सिम्मी को गंवारा न था. वो जब भी मायके जाती थी, तो चलते समय मां बिदाई में जो रुपए दिया करती थीं, वो बड़े जतन से जमा किए थे उसने. पहली बार बिना अविचल से पूछे ख़ुद जाकर अपने मनपसंद सामान ले आई. अविचल ने देखा, तो परेशान हो गए, “अभी से इतने महंगे सामानों की आदत डालोगी, तो बेटे की फ़रमाइशें बढ़ती जाएंगी. बहनों की शादी में थोड़ा कर्ज़ लिया है, वो चुकाना होता है, फिर पंकज की फीस और बहनों के यहां लेन-देन भी बना रहता है. जब तक कर्ज़ चुकेगा, इसके स्कूल में दाख़िला दिलाने का समय आ जाएगा, उसके लिए भी तो जोड़ना है.” हालांकि अविचल ने समझाने के अंदाज़ में ये शब्द बड़ी कोमलता से बोले थे, पर आज बात उसके बच्चे की थी, इसलिए सिम्मी के मन में भरा ग़ुस्सा बांध तोड़कर बह निकला, “कब तक यूं ही घुट-घुटकर जीना होगा मुझे?… कितनी छोटी उम्र से मम्मी मुझे पॉकेटमनी देती थीं. शादी के बाद तो वो भी नसीब नहीं. मैं कभी आपसे कुछ मांगती नहीं, क्योंकि जानती हूं कि आपके पास है नहीं, पर मेरे कुछ देने से भी आपको चिढ़ है. मेरा हर ख़र्च इसीलिए ग़लत है न, क्योंकि मैं कमाती नहीं हूं? कमाना चाहती हूं मैं भी, लेकिन उसके लिए…” जाने कितनी देर वो गुबार निकलता रहा और अविचल हमेशा की तरह चुपचाप सुनते रहे. दूसरे दिन उसके हाथ में हज़ार रुपए देकर बोले, “मेरी कमाई पर तुम्हारा अधिकार मुझसे कम नहीं है, लेकिन क्या करूं बहुत से फर्ज़ हैं, जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन ये तुम्हारी समस्या का अच्छा समाधान है, जो तुमने कल सुझाया. मैं हर महीने तुम्हें पॉकेटमनी दिया करूंगा. ये रुपए स़िर्फ तुम्हारे होंगे. इनसे जो चाहो, ख़रीद लिया करना.” उसी दिन रात के दस बजे किसी ने दरवाज़ा खटखटाया. खोला तो एक विद्यार्थी था. सिम्मी को याद आया कि ये बच्चा पहले आया था, तब अविचल ने ये कहकर मना कर दिया था कि अब उनके पास समय नहीं है, तो क्या इस पॉकेटमनी के लिए… सिम्मी के मन में टीस उठी, पर जल्द ही उसने ये विचार ये सोचकर झटक दिया कि ऐसे भी इस पाषाण हृदय को कौन-सा मनोरंजन या आराम करना होता है.
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समय का पहिया अपनी गति से चल रहा था कि एक दिन कार्यालय से लौटते समय एक ट्रक ने अविचल के स्कूटर को टक्कर मार दी. अस्पताल में आईसीयू में अविचल की हालत देखकर सिम्मी स्तब्ध रह गई. उसके तो हाथ-पैर-दिमाग़ सबने काम करना बंद कर दिया था. रिश्तेदारों और देवर-ननदों की सांत्वना उसके आंसुओं की नदी में टिक ही नहीं पा रही थी. बेटा कहां है, अविचल के लिए डॉक्टर क्या कह रहे हैं, कौन-सी दवाइयां लानी हैं, उसे कुछ होश नहीं था. होश तो तब सम्हला, जब डॉक्टर ने उन्हें ख़तरे से बाहर बताया. तब ध्यान दिया कि क़रीब पिछले एक माह से बच्चा और अस्पताल की ज़िम्मेदारियां उसके ननद-देवर और रिश्तेदार मिलकर सम्हाल रहे हैं. अभी दो माह अविचल को फ्रैक्चर के कारण बिस्तर पर रहना था. ये सब बंदोबस्त कैसे हुआ, आगे कैसे क्या होना था, सिम्मी को कुछ पता नहीं था. घर पहुंचकर पहले दिन अकेले पड़ी, तो दिल को मज़बूत बनाकर अविचल को नित्यकर्म कराने के लिए ख़ुद को मज़बूत बना ही रही थी कि अविचल के विद्यार्थी आ गए, “मैम! हमारे होते आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. सर हमारे लिए देवता हैं और उनकी सेवा हमारा सौभाग्य.” उनके जाते ही फिर डोरबेल बजी. सब्ज़ीवाला, दूधवाला और राशनवाला खड़े थे. “साहब ने फोन करके कहा कि आपकी सामान लेने जाने की आदत नहीं है. हम उनके ठीक होने तक घर पर सामान दे जाया करेंगे, ताकि आपको द़िक्क़त न हो. आप बिल्कुल चिंता न करें. उनके ठीक होने तक सामान घर पर आ जाया करेगा.” अविचल को इतनी तकलीफ़ में भी उसका इतना ख़्याल है, सोचकर सिम्मी पुलक उठी. सामान लेकर रखा और अविचल के सिरहाने बैठकर उनके बालों में उंगलियां फेरते हुए उनके सही सलामत होने के सुखद एहसास को ठीक से जीने लगी. संतुष्टि की भावुकता में उसकी आंखों में आंसू छलछला आए थे, तभी वे बोले, “तुम मुझे फल और साग-सब्ज़ी धोकर दे दो. मैं बैठे-बैठे छील-काट देता हूं.” अबकी सिम्मी का दिल खीझने की बजाय कसक उठा. ऐसी तबीयत में भी अविचल को… उसका स्वर भीग गया, “नहीं, आप केवल आराम कीजिए, मैं…” मगर अविचल ने उसकी बात काट दी, “अरे! एक माह से आराम ही तो कर रहा हूं और तुमने इस एक माह में फल, सलाद, दूध, दही वगैरह तो कुछ खाया-पीया नहीं होगा. बच्चों की तरह खिलाना पड़ता है तुम्हें भी. मुझे डर है कि कहीं फिर से एनीमिक न हो जाओ.” मैंने कहा, “ना, मैं कर लूंगी, आप…” सिम्मी के स्वर में ग्लानि थी, पर अविचल ने बात फिर काट दी, “नहीं, तुम एक-दो दिन कर भी लो, फिर नहीं करोगी. मैं जानता हूं कि तुम्हारी इन चीज़ों में मेहनत करने की बिल्कुल आदत नहीं है.” “मेरी आदत ख़राब है, तो आप मुझ ���र ग़ुस्सा कीजिए, मेरी आदत बदलिए, ख़ुद को सज़ा क्यों देते हैं? मैं बहुत बुरी हूं न?…” आत्मग्लानि से उसका कंठ अवरुद्ध होने लगा था… मगर अविचल का स्वर अब भी सपाट था, “नहीं सिम्मी, शादी जिस उम्र में होती है, उस उम्र तक जो संस्कार बन जाते हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता, केवल अपनी मेहनत से अपने साथी की कमी को पूरा किया जा सकता है. और कौन कहता है कि तुम बुरी हो. तुममें अच्छी आदतों की भी कमी नहीं है. तुमने इतने ख़ूबसूरत स्वेटर बुने हैं सबके लिए. घर को इतना सजाकर रखती हो, परिवार के हर कार्यक्रम में तुम्हारे गीत-संगीत रौनक़ भर देते हैं, तुम हंसमुख हो… अब किसी भी इंसान में केवल अच्छाइयां तो नहीं हो सकतीं न? और हां, ये लो तुम्हारा दो महीनों का पॉकेटमनी.” कहते हुए अविचल ने दो हज़ार रुपए सिम्मी की ओर बढ़ाए, तो अपने आंसुओं को पलकों में रोकना उसके लिए असंभव हो गया, “आपने मेरी तारीफ़ की, यही बहुत है मेरे लिए, मुझे ये रुपए नहीं चाहिए. आप सलामत हैं, मुझे और कुछ नहीं चाहिए, आपके इलाज में कोई कमी न पड़े, भगवान से बस यही प्रार्थना है.” “उसकी चिंता तुम मत करो. मेरी कोई बंधी नौकरी तो है नहीं, इसीलिए मैंने अपना बीमा कराया हुआ है, ताकि यदि मैं मर जाऊं, तो भी तुम्हें जीवनयापन में कोई तकलीफ़ न हो. मेरे इलाज का ख़र्च भी बीमा राशि से निकलता रहेगा.” “अब बस भी कीजिए. ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं?” कहते-कहते वो अविचल से लिपटकर फूट-फूटकर रो पड़ी, “आप सचमुच महान हैं, मगर मैं भी इतनी बुरी नहीं. बहुत प्यार करती हूं आपसे. अगर आपको कुछ हो गया, तो मैं पैसों का क्या करूंगी? मैं आपके बिना नहीं जी सकती! मैं…” “नहीं सिम्मी, ऐसा नहीं होता. पंद्रह साल की उम्र में जब मैंने अपने माता-पिता को खोया, तो मैं भी यही सोचता था, पर जल्द ही पता चला कि मरनेवालों के साथ मरा नहीं जाता. मन हर हाल में जीना चाहता है. उनके प्यार की कमी के दुख से कहीं विकराल थीं जीवनयापन की व्यावहारिक समस्याएं. अगर रिश्तेदारों ने मेरी नौकरी लगने तक हमें सहारा न दिया होता, तो भीख मांगने की नौबत आ जाती. और यदि मैंने ख़ुद को एक सख़्त और अनुशासित कवच में बंद न किया होता, तो मेरे भाई-बहन एक अच्छे इंसान के सांचे में न ढलते. जिन गुरुजी ने हम सबको मुफ़्त में पढ़ाया, उन्होंने ही साधनहीन ज़रूरतमंदों को मुफ़्त में पढ़ाने का वचन लिया था. लोग जिसे मेरी महानता समझते हैं, वो तो बस मेरी इस समाज को कृतज्ञता ज्ञापित करने की कोशिश भर है.”
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अविचल का स्वर तो अभी भी उनकी आदत के मुताबिक़ सपाट ही था, पर सिम्मी को चुप कराने के लिए उन्होंने अपनी बांहों का घेरा उसके गिर्द कस दिया था और उसके बालों में उंगलियां फेरे जा रहे थे. सिम्मी को लग रहा था, उसके रोम-रोम में अमृत घुलता जा रहा हो. कितनी नासमझ थी वो, जो उस उन्माद या ज्वार को प्यार समझती थी, जो जितनी तेज़ी से चढ़ता है, उतनी ही तेज़ी से उतरकर अपने पीछे कुंठा की गंदगी छोड़ जाता है, जबकि प्यार तो वो पारस मणि है, जो अपने संपर्क में आनेवाले लोहे को भी कंचन बना देता है. अविचल के दिल में रखी प्यार की इस पारस मणि से उनके संपर्क में आनेवाला हर व्यक्ति कंचन हो चुका था. पिछले एक माह से ये कंचन ही तो सब कुछ कर रहे थे, लेकिन वो जो उनके सबसे नज़दीक थी, वही इतने सालों से उसे पत्थर समझती रही. कभी प्रशंसा और महत्व की पिपासा रूपी मैल के आवरण को उतारकर इसे छूने की कोशिश ही नहीं की. आज खीझ और आक्रोश के मैल का आवरण हटा, तो उसके मन का लोहा भी प्यार के इस पारस का स्पर्श पाकर कंचन बन गया था.
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amirulhaquekhan · 4 years
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मार्च तिमाही में भारत की जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 3.1% रह गई, जो वित्त वर्ष 2015 में 4.2% थी
मार्च तिमाही में भारत की जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 3.1% रह गई, जो वित्त वर्ष 2015 में 4.2% थी
भारतीय अर्थव्यवस्था 2020 के जनवरी-मार्च तिमाही (क्यू 4) में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, कम से कम दो वर्षों में इसकी सबसे धीमी गति, जैसा कि कोरोनावाइरस महामारी ने पहले से ही घट रही उपभोक्ता मांग और निजी निवेश को कमजोर कर दिया, शुक्रवार को जारी आधिकारिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े। पूरे वित्त वर्ष के लिए वित्त वर्ष 2018-19 में हेडलाइन संख्या घटकर 4.2 प्रतिशत रह गई, जो 6.1 प्रतिशत थी।
विका…
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kritivermas-blog · 2 years
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🌻 *कबीर बड़ा या कृष्ण* 🌻
*(Part 38)*
*‘‘श्राद्ध-पिण्डदान करें या न करें’’*
📜वाणी सँख्या 3:- जीवित बाप से लठ्ठम-लठ्ठा, मूवे गंग पहुँचईयाँ।
जब आवै आसौज का महीना, कऊवा बाप बणईयाँ।।3।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने लोकवेद (दंत कथा) के आधार से चल रही पितर तथा भूत पूजा पर शास्त्रोक्त तर्क दिया है। कहा है कि शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान के अभाव से बेटे अपने पिता से किसी न किसी बात पर विरोध करते हैं। पिता जी अपने अनुभव के आधार से बेटे से अपने व्यवसाय में टोका-टाकी कर देते हैं। पिता जी को पता होता है कि इस कार्य में पुत्र को हानि होगी।
परंतु पुत्र पिता की शिक्षा कम बाहर के व्यक्तियों की शिक्षा को अधिक महत्व देता है। उसे ज्ञान नहीं होता कि पिता जैसा पुत्रा का हमदर्द कोई नहीं हो सकता। पुत्र को जवानी और अज्ञानता के नशे के कारण शिष्टाचार का टोटा हो जाता है। पिता को पता होता है कि बेटा इस कार्य में हानि उठाएगा। परंतु पुत्र पिता की बात नहीं मानता है। उल्टा पिता को न भला-बुरा कहता है। पिता अपने पुत्र के नुकसान को नहीं देख सकता। वह फिर उसको आग्रह करता है कि पुत्रा! ऐसा ना कर। जिस कारण से जवानी के नशे से हुई सभ्यता की कमी के कारण इतने निर्लज्ज हो जाते हैं, कई पुत्रों को देखा है जो पिता को डण्डों से पीट देते हैं। वही होता है जो पिता को अंदेशा था। पिता फिर समझाता है कि आगे से ऐसा ना करना। यह हानि तो धीरे-धीरे पूरी हो जाएगी। पिता-पिता ही होता है। वह पुत्र-पुत्री को सुखी देखना चाहता है। आगे चलकर जो पिता भक्ति नहीं कर रहा था, उसे कोई न कोई रोग वृद्ध अवस्था में अवश्य घेर लेता है। संतान बहुत कम है जो पिता को वह प्रेम दे जो माता-पिता अपने पुत्र तथा पुत्रवधु से अपेक्षा किया करते हैं। वर्तमान में वृद्धों की बेअदबी किसी से छिपी नहीं है। माता-पिता वृद्धाश्रमों या अनाथालयों में जीवन के शेष दिन पूरे कर रहे हैं या घर पर पुत्र व पुत्रवधु के कटु वचन (कड़वे बोल) पीकर जीवन के दिन गिन रहे हैं।
कबीर जी ने कहा है कि:-
वृद्ध हुआ जब पड़ै खाट में, सुनै वचन खारे।
कुत्ते तावन का सुख भी कोन्या, छाती फूकन हारे।।
शब्दार्थ:- वृद्ध अवस्था में शरीर निर्बल हो जाता है। आँखों की रोशनी कम हो जाती है। जिस कारण से वृद्ध पिता-माता अधिक समय चारपाई पर व्यतीत करते हैं। एक स्त्राी अपनी सासू माँ से
यह कहकर कुऐं या नल से पानी लेने चली गई कि आप ध्यान रखना। कहीं कुत्ता घर में घुसकर नुकसान न कर दे। वृद्धा को दिखाई कम देता था। कुत्ता अंदर घर में घुस गया, एक लोटा दो किलो दूध से भरा रखा था। उसको पी गया और गिरा गया। वृद्धा को दिखाई नहीं दिया। पुत्रवधु आई और कुत्ते द्वारा किए नुकसान से क्रोधित होकर बोली कि तुम्हारा (सास-ससुर का) तो इतना भी सुख नहीं रहा कि कुत्तों से घर की रक्षा कर सको। तुमने मेरी छाती जला दी यानि व्यर्थ का अनाज का खर्च पुत्रवधु को लग रहा था। जिस कारण कटी-जली बातें कही थी। सास-ससुर को अपने ऊपर व्यर्थ का भार मान रही थी। कबीर जी ने बताया है कि यह दशा उन व्यक्तियों की होती है जो परमात्मा को कभी याद नहीं करते जो गुरू धारण करके सत्य भक्ति नहीं करते। अब वाणी सँख्या 3 का शब्दार्थ पूरा करता हूँ।
अंध श्रद्धा भक्ति वाले जब तक माता-पिता जीवित रहते हैं, तब तक तो उनको प्यार व सम्मान के साथ कपड़ा-रोटी भी नहीं देते। झींकते रहते हैं। (सब नहीं।) मृत्यु के उपरांत श्रद्धा दिखाते हैं।
उसके शरीर को चिता पर जला दिया जाता है। कुछ हड्डियाँ बिना जली छोटी-छोटी रह जाती हैं। शास्त्र नेत्रहीन गुरूओं से भ्रमित पुत्रा उन अस्थियों को उठाकर हरिद्वार में हर की पौड़ियों पर अपने कुल के पुरोहित के पास ले जाता है। उस पुरोहित द्वारा शास्त्रविरूद्ध साधना के आधार से मनमाना आचरण करके उन अस्थियों को पवित्र गंगा दरिया में प्रवाह किया जाता है। जो धनराशि पुरोहित माँगे, खुशी-खुशी दे देता है। कारण यह होता है कि कहीं पिता या माता मृत्यु के उपरांत प्रेत बनकर घर में न आ जाऐं। इसलिए उनकी गति करवाने के लिए कुलगुरू पंडित जी को मुँह माँगी धनराशि देते हैं कि पक्का काम कर देना। फिर पुरोहित के कहे अनुसार अपने घर की चोखट में लोहे की मेख (मोटी कील) गाड़ दी जाती है कि कहीं पिता जी-माता जी की गति होने में कुछ त्रूटि रह जाए और वे प्रेत बनकर हमारे घर में न घुस जाऐं।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जीवित पिता को तो समय पर टूक (रोटी) भी नहीं दिया जाता। उसका अपमान करता है। (सभी नहीं, अधिकतर) मृत्यु के पश्चात् उसको पवित्र दरिया में बहाकर आता है। कितना खर्च करता है। अपने माता-पिता की जीवित रहते प्यार से सेवा करो।
उनकी आत्मा को प्रसन्न करो। उनकी वास्तविक श्रद्धा सेवा तो यह है।
कबीर जी जो स्पष्ट करना चाहते हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान न होने के कारण अंध श्रद्धा भक्ति के आधार से सर्व हिन्दू समाज अपना अनमोल जीवन नष्ट कर रहा है। जैसे मृत्यु के उपरांत अपने पिता जी की अस्थियाँ गंगा दरिया में पुरोहित द्वारा क्रिया कराकर पिता जी की गति करवाई।
फिर तेरहवीं या सतरहवीं यानि मृत्यु के 13 दिन पश्चात् की जाने वाली क्रिया को तेरहवीं कहा जाता है। सतरह दिन बाद की जाने वाली लोकवेद धार्मिक क्रिया सतरहवीं कहलाती है। महीने बाद की जाने वाली महीना क्रिया तथा छः महीने बाद की जाने वाली छःमाही तथा वर्ष बाद की जाने वाली बर्षी क्रिया (बरसौदी) कही जाती है। लोकवेद (दंत कथा) बताने वाले गुरूजन उपरोक्त सब क्रियाऐं करने को कहते हैं। ये सभी क्रियाऐं मृतक की गति के उद्देश्य से करवाई जाती हैं।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।
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trendingwatch · 2 years
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अर्थव्यवस्था को धीमी वृद्धि देखने की उम्मीद है लेकिन अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अभी भी अधिक है: फिनमिन
अर्थव्यवस्था को धीमी वृद्धि देखने की उम्मीद है लेकिन अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अभी भी अधिक है: फिनमिन
जैसा कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने कमोडिटी की बढ़ती कीमतों, आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं और मौद्रिक आवास की अनुमानित वापसी की तुलना में तेजी से वैश्विक आर्थिक विकास को धीमा करने का अनुमान लगाया है, भारत की अर्थव्यवस्था धीमी गति से देखने की भी उम्मीद है वृद्धिहालांकि अभी भी अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है, सोमवार को जारी वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया…
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rawalbros · 3 years
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छोटे शहरों में स्‍टार्टअप संस्‍कृति का प्रसार उज्‍जवल भविष्‍य का संकेत। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा कि छोटे शहरों में स्‍टार्टअप संस्‍कृति का प्रसार उज्‍ज्‍वल भविष्‍य का संकेत है। आकाशवाणी से कल मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में युवाओं की धारणा में बदलाव आ चुका है और आज का युवा कुछ नया करना चाहता है। आज जहां भी देखो, किसी भी परिवार में जाओ, कितना ही संपन्न परिवार हो, पढ़े-लिखे परिवार हो, लेकिन अगर परिवार में नौजवान से बात करो तो वो क्या कहता है वो अपने पारिवारिक जो परम्पराओं से हटकर के कहता है मैं तो स्‍टार्टअप करूंगा, स्‍टार्टअप में चला जाऊँगा। यानी रिस्‍क लेने के लिए उसका मन उछल रहा है। आज छोटे-छोटे शहरों में भी स्‍टार्टअप कल्‍चर का विस्तार हो रहा है। अंतरिक्ष को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के सरकार के कदम का उल्‍लेख करते हुए श्री मोदी ने विश्‍वास व्‍यक्‍त किया कि आने वाले दिनों में अंतरिक्ष से जुडे स्‍टार्टअप अधिक संख्‍या में आएंगे और भारतीय युवा बड़ी संख्‍या में उपग्रह विकसित करेंगे। प्रधानमंत्री ने लोगों से कोविडरोधी टीके लगवाने का आग्रह करते हुए दवाई भी कडाई भी का मंत्र याद दिलाया। उन्होंने देशवास��यों से खेलों को प्रोत्‍साहन देने का आह्वान किया। उन्‍होंने कहा कि हाल में सम्‍पन्‍न ओलिम्पिक से देश में खेलों को जो गति मिली है उसे हर स्‍तर पर बढावा देने की आवश्‍यकता है। ओलंपिक ने बहुत बड़ा प्रभाव पैदा किया है। ओलंपिक के खेल पूरे हुए अभी पैरालंपिक चल रहा है। देश को हमारे इस खेल जगत में जो कुछ भी हुआ, विश्व की तुलना में भले कम होगा, लेकिन विश्वास भरने के लिए तो बहुत कुछ हुआ। आज युवा सिर्फ स्‍पोटर्स की तरफ देख ही रहा ऐसा नहीं है, लेकिन वह उससे जुड़ी संभावनाओं की भी ओर देख रहा है। अब वो कन्‍वेंन्‍शनल चीज़ों से आगे जाकर न्‍यू डिसीपिलीन को अपना रहा है। #startups #smalltowns #culture #brightfuture #pmmodi #olympic #peraOlympic (at PMO India) https://www.instagram.com/p/CTOY2nghAw5/?utm_medium=tumblr
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karanaram · 3 years
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करम प्रधान बिस्व करि रखा। जो जस करइ सो तस फलु चाखा । (श्रीरामचरित अयो. का. 218.2)
कर्म की अपनी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है क्योंकि वह जड़ है । कर्म को यह पता नहीं है कि ‘मैं कर्म हूँ ।’ फिर भी यह देखा गया है कि कर्म की गति बड़ी गहन होती है । इसलिए मनुष्य अगर सावधान होकर सत्वगुण नहीं बढ़ाता है, अपितु जो मन में आया सो खा लिया, जो मन में आया सो कर लिया- इस तरह विषय-विकारों में तथा पापों और बुराइयों में जिंदगी बिता देता है तो उसे भयंकर नरकों में जाकर कष्ट भोगने पड़ते हैं और खूब दुःखद, नीच योनियों में जन्म लेना पड़ता है । पापों
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अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः ।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ।
‘अज्ञान से मोहित रहनेवाले तथा अनेक प्रकार से भ्रमित चित्तवाले, मोहरूप जाल से समावृत और विषयभोगों में अत्यंत आसक्त आसुर लोग महान अपवित्र नरक में गिरते हैं ।’ (श्रीमद्भगवद्गीता १६.१६)
कौशाम्बी राज्य के राजा विजयप्रताप और उनकी महारानी सुनंदा की पहली कुछ संतानें तो ठीक-ठाक थीं, लेकिन इस बार महारानी ने एक ऐसे बालक को जन्म दिया जो एक अंगविहीन मांसपिंड था ।
रानी सुनंदा उसे देखकर घबरा गयी और उसने राजा को बुलवाकर बालक दिखाया ।
राजा ने कहा : “सुनंदा ! तेरी कोख से यह मांसपिंड जैसा बालक पैदा हुआ है, फिर भी कैसे भी करके हमें इसका पालन-पोषण तो करना ही होगा ।”
बालक का नाम मकराक्ष रखा गया और उसे तलघर में छुपा दिया गया तथा दाई से कहा गया : “खबरदार ! हम तीनों के सिवाय यह बात किसी को भी पता न चले कि हमारे यहाँ ऐसा बालक पैदा हुआ है ।”
सुनंदा अपने भाग्य को कोसती हुई उस बालक का पालन-पोषण करने लगी ।
कुछ समय बीतने पर कौशाम्बी नगर के राजोद्यान में तीर्थंकर महावीर स्वामी का आगमन हुआ । सारे नगर में यह खबर फैल गयी । बड़ी संख्या में लोग उनका सत्संग सुनने के लिए राजोद्यान की ओर आने लगे ।
खूब चहल-पहल महसूस कर एक वृद्ध सूरदास (अंध व्यक्ति) ने लोगों से पूछा : “क्या आज राजा का जन्मदिन है या फिर कोई त्यौहार या उत्सव है जिसके कारण नगर में इतनी चहल-पहल हो रही है ?”
उनमें से किसी युवक ने कहा : “न तो राजा का जन्मदिन है और न ही कोई त्यौहार या उत्सव हैं, बल्कि आज नगर में महावीर स्वामी आये हैं । लोग उनके दर्शन-सत्संग के लिए राजोद्यान की ओर जा रहे हैं ।”
वृद्ध सूरदास ने कहा : “मुझे भी संत के द्वार ले चलो ।”
युवक ने कहा : “आँखों से तो तुम्हें दिखायी नहीं देता और कानों से कम सुनायी पड़ता है, फिर वहाँ जाकर क्या करोगे ?”
“मैं संत को नहीं देख सकूँगा लेकिन उनकी दृष्टि तो मुझ पर पड़ेगी जिससे मेरे पाप मिटेंगे, कानों से उनका सत्संग भी नहीं सुन सकूँगा लेकिन वहाँ के सात्त्विक वातावरण का लाभ तो मुझे मिलेगा ।”
युवक के हृदय में सज्जनता का संचार हुआ और उसने उस अंधे वृद्ध को ले जाकर सत्संग स्थल पर एक ऐसी जगह बिठा दिया, जहाँ महावीर स्वामी की दृष्टि पड़ सके।
जब महावीर स्वामी सत्संग कर रहे थे तब उनके पट्टशिष्य गौतम स्वामी, जो हमेशा महावीर स्वामी को एकटक देखते हुए ध्यानपूर्वक उनका सत्संग सुना करते थे, बार-बार उस अंधे वृद्ध को ही देख रहे थे ।
महावीर स्वामी को आश्चर्य हुआ कि ‘मेरी तरफ एकटक देखने वाला गौतम आज बार-बार मुड़कर क्या देख रहा है ?”
जब सत्संग पूरा हुआ तब महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी से पूछा: “आज सत्संग के दौरान तुमने ऐसा क्या देखा जो तुम सत्संग से विमुख हो गये ?”
“भंते ! सत्संग में आये एक वृद्ध की ऐसी विचित्र स्थिति थी कि आँखों से तो वह अंधा था, उसके शरीर पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं और उससे भयंकर बदबू भी आ रही थी । बदबू के कारण कोई भी व्यक्ति उसके नजदीक नहीं बैठता था । वह कितना अभागा व दुःखी प्राणी है ! भंते ! उससे भी ज्यादा दुःखी कोई हो सकता है ?”
“हाँ, उस अंधे वृद्ध का तो कुछ पुण्य है । आँखों के सिवाय उसके शरीर के बाकी अंग ठीक हैं और वह चल फिर भी सकता है । लेकिन राजा विजयप्रताप का बालक मकराक्ष तो बि���ा हाथ-पैर के मांस के पिंड जैसा है और उसका पालन-पोषण तलघर में हो रहा है । इस बात को केवल राजा-रानी व एक दाई ही जानती है ।”
“भंते! अगर आपकी आज्ञा हो तो में राजमहल में जाकर उसे देख आऊँ ।”
महावीर स्वामी ने अनुमति दे दी ।
जब गौतम स्वामी राजमहल में पहुंचे तो राज विजयप्रताप व रानी सुनंदा चकित रह गये और सोचने लगे: ‘यह भिक्षा का समय नहीं है और भिक्षापात्र भी इनके हाथ में नहीं है, फिर भी महावीर स्वामी के ये पट्टशिष्य हमारे राजमहल आये हैं !’
राजा ने गौतम स्वामी का आदर-सत्कार किया और बोले : “आपके यहाँ पधारने से यह राजमहल पवित्र हो गया है । हम आपकी क्या सेवा करें ? हमें आज्ञा दीजिये ।”
गौतम स्वामी ने पूछा: “राजन् ! क्या आपके राजमहल में ऐसा भी कोई जीव है, जिसका पालन पोषण तलघर में ही हो रहा है और वह अंगविहीन मांसपिंड जैसा है ?”
गौतम स्वामी का प्रश्न सुनकर राजा-रानी चकित हो गये । राजा ने उनसे पूछा: “इस बात को हम दोनों व एक दाई के सिवाय कोई नहीं जानता, फिर आपको यह सब कैसे पता चला ?”
“राजन् ! मुझे यह सब महावीर स्वामी ने बताया है और मैं यहाँ मकराक्ष को देखने के लिए ही आया हूँ ।”
रानी ने कहा : “भोजन का समय हुआ है, मकराक्ष को भूख लगी होगी । मैं उसे भोजन कराने जाने ही वाली थी लेकिन आपके आने की सूचना पाकर रुक गयी । चलिये, मैं आपको उसके पास ले चलती हूँ ।”
वहाँ जाने से पहले रानी ने मुँह को वस्त्र से ढका और गौतम स्वामी को भी वैसा ही करने के लिए कहा, क्योंकि जिस तलघर में मकराक्ष को रखा हुआ था वहाँ ऐसी भयंकर बदबू आती थी कि खड़े रहना भी मुश्किल हो जाता था ।
वहाँ पहुँचकर गौतम स्वामी ने देखा कि भूख के कारण लार टपकाता हुआ कोई मांसपिंड हिल रहा है ।
जैसे ही रानी ने उसके मुँह में भोजन के कौर डालने शुरू किये, वह लपक लपककर खाने लगा । भोजन पूरा होते ही उस मांसपिंड में से रक्त, मवाद और विष्ठा निकलने लगी । गौतम स्वामी यह सब देखकर विस्मित हो गये ।
राजमहल से वापस आने के बाद वे नहा-धोकर ��हावीर स्वामी के पास गये और पूछा: “भंते ! उस अभाग��� जीव ने ऐसा कौन-सा कर्म किया होगा जो कौशाम्बी के राजमहल में जन्म लेकर भी ऐसी हालत में जी रहा है ?”
“गौतम! वह पूर्वजन्म में इसी भरतक्षेत्र के सुकर्णपुर नगर का स्वामी था और अन्य पाँच सौ ग्राम भी उसके अधीन थे । तब उसका नाम इक्काई था ।
वह अविद्यमान संसार को सत्य मानकर धन के लोभ में इतना नीचे गिर गया था कि लूटमार व अपहरण करके प्रजा का शोषण करता था । अपनी स्त्री होते हुए भी परायी स्त्रियों पर नजर रखता था । साधु-संतों का अपमान व सत्संग का अनादर करता था ।
पूर्वजन्म के अपने इन नीच कर्मों के फलस्वरूप ही वह अंगविहीन मांसपिंड के रूप में जन्मा है और राजघराने में जन्म लेने के बावजूद राजसी सुखों से वंचित हो भयंकर कष्टों का संताप सहन कर रहा है ।”
इसलिए कर्म करने में सावधान रहना चाहिए । मनुष्य जन्म एक चौराहे के समान है । यहीं से सारे रास्ते निकलते हैं । चाहे आप अपने जीवन में ऐसे घृणित कर्म करो कि ब्रह्मराक्षस बन जाओ… आपके हाथ की बात है या फिर जप, ध्यान, भजन, सत्कर्म, संतों का संग आदि करके ब्रह्मज्ञान पाकर मुक्त हो जाओ… यह भी आपके ही हाथ की बात है । ब्रह्मज्ञान पाने के बाद कोई कर्म आपको बाँध नहीं सकेगा।
– ऋषि प्रसाद, मार्च 2005
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imgarimapandey · 3 years
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बिगुल!
आजादी,,एक जरा से अंतर से आगे है गुलामी से ! जाने कितनी महान आत्माओ के बलिदान के बाद मिली। कैसी पीड़ा रही होगी उनकी । एक ही सपना आजाद हिंदुस्तान। एक विशाल भारत का साम्राज्य कब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ गया पता नहीं चला। पहले मुग़ल फिर ब्रिटिश हुकूमत की प्रचंड यातनाओ का युग रहा । हमारा युग तो स्वर्णिम था वो कब मलिन हो गया इसके लिए बहुत पीछे जाना पड़ेगा । भारत ने अपनी स्वतंत्रता कैसे खोई इस पर बात करने के लिए पहुंचते है उस युग में जब हम धन धान्य से परिपूर���ण थे ।
एक हिन्दू राजा की यहाँ बात करते है जी हाँ चंद्रगुप्त मौर्य, जिन्होंने मौर्य वंश की स्थापना की और लगभग पूरे भारत पर शासन किया, भारत के पहले हिंदू राजा थे। हालांकि,महाकाव्यों की माने तो प्राचीन संस्कृत महाकाव्य महाभारत के अनुसार, राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत भारत के पहले हिंदू राजा थे।
भारत के अंतिम हिन्दू राजा की बात करे तो बारहवीं शताब्दी के भारतीय शासक पृथ्वीराज चौहान उस समय के परिवर्तन की दहलीज पर खड़े थे उन्हें अक्सर "अंतिम हिंदू सम्राट" के रूप में जाना जाता रहा है  क्योंकि मध्य एशियाई या अफ़गान मूल के मुस्लिम राजवंश पृथ्वी राज चौहान की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठे ।
चन्द्रगुप्त मौर्य से पृथ्वीराज चौहान तक का सफर एक स्वतंत्र भारत का था । उसके बाद एक लंबा अध्याय लिखा जाना शेष था भारत की अस्मिता मुग़लों के पंजों से बच न सकी। कई बार भारत माँ की श्वेत सारी लाल रक्त से रंजित की गई। एक घायल पंछी की तरह भारत फड़फड़ा रहा था। मुग़लों के असीम अत्याचार आत्मा को छलनी करने वाले थे। गुलामी किसे कहते हैं ये हम धीरे धीरे समझ रहे थे।
२४ अगस्त १६०८ ये तारीख एक और दमनकारी इतिहास लिखने के लिए कलम को स्याही पिला रही थी। ये वही तारीख थी जब अंग्रेजों नें भारत में दस्तक दी और भारत के एक समृद्ध और दर्ज इतिहास को मिटाने के लिए खड़ी थी। अंग्रेज धीर-धीरे भारतवर्ष में अपनी स्थिति मजबूत कर रहे थे। वो समझ गए थे की कैसे मुग़लों की नीव को खदेड़ कर अपना सिक्का जमाना है। एक समृद्ध देश भारत पर अंग्रेजों की गिद्ध नज़र ने इसको कंगाल करने की योजना बना ली थी और सुनियोजित तरीके से व्यापार करने के इरादे से भारत का दरवाजा खटखटाया।
एक समय ऐसा भी आया जब मुग़लों की पकड़ भारत से छूटती दिखी। अंग्रेजों की फुट डालो और राज्य करो की मंशा बिल्कुल काम कर रही थी। इसका नतीजा ये हुआ की मुग़ल अपना सिंहासन बचा नहीं पाए और अंग्रेजी सल्तनत के आगे घुटने टेक दिए। अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह जफ़र तक अंग्रेजी हुकूमत अपना साम्राज्य स्थापित कर चुकी थी।
१८५७ ये वो तारीख है जो इतिहास के कहीं गुमनाम हुए पन्नों में दर्ज है। यही वो वर्ष था जब आजादी का बिगुल बजा मंगल पांडे एक ऐसा नायक था जिसके बलिदान ने करोड़ों भारतवासियों के रक्त में उबाल भर दिया। अब ये आजादी की ज्वाला  यहीं नहीं रुकने वाली थी। ये एक प्रचंड आरंभ था। हजारों नरमुंड रक्त में स्नान कर रहे थे। इस समर में कुछ ऐसी वीरांगनाए भी थी जिनकी वीरता की गाथा स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
यद्यपि इस विद्रोह नें भारत में ब्रिटिश उद्दम को हिला कर रख दिया था लेकिन इसने इसे पटरी से नहीं उतार था। युद्ध के बाद अंग्रेज अधिक चौकस हो गए और विद्रोह के कारणों पर विचार करने लगे। लेकिन तब तक भारत की चेतना जाग चुकी थी।
१८६९ ये वो साल था जिसका इंतजार भारत का भाग्य कर रहा था, जिसका इंतजार अंधेरी कालकोठरियों से आने वाली सिसकियाँ कर रही थी और जिसका इंतजार जुल्म की बेड़ियों में जकड़ी भारत माँ कर रही थी। ये वो वर्ष था जब एक ऐसे मानव ने जन्म लिया जो असाधारण था। जो आगे चलकर महात्मा कहलाया। जिसकी एक आवाज में हजारों प्राण चल देते थे। ‘मोहन दास करमचंद गांधी’ ये एक आशा की किरण थी जो आगे चलकर भारत के ललाट पर चमकने वाली थी।
स्वाधीनता एक ऐसा शब्द था जो अब हर भारतवासी के दिमाग में था और गरम दल नरम दल साथ मिल कर काम कर रहा था। अब बिगुल बज चुका था। आजादी से कम कुछ भी नहीं चाहिए था। हर घर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु बन रहे थे। उस समय की मताएं भी वंदनीय थी जो अपनी संतान को गोद से उतारकर शाखा में भेजती थीं। एक ही जुनून था बस आजादी। हम कर्जदार हैं उन माताओं के उन बहनों भाइयों के जो इस समर में उतरे। इस कर्ज को इस जीवन में कभी उतार सके और भारत के काम आ सके तो सौभाग्यशाली होंगे।
स्वतंत्रता आंदोलन गांधी की छत्रछाया में गति ले रहा था। विदेशी सामान का बहिष्कार किया जा रहा था। गांधी हमेशा अहिंसा की बात करते थे। गांधी जानते थे की ये भारत की आजादी का सूत्रधार बनेगा। एक हाड़ मास का आदमी जो एक लंगोटी में रहता है वो बहुत शक्तिशाली हो रहा था और अंग्रेजों की जड़े हिला रहा था। १९४२ ये वो साल था जब गांधी को ये समझ में आ गया था की अब केवल अहिंसा से ही काम नहीं चलेगा तो उन्होंने भारतवासियों को आहवाहन किया कि ‘ करो या मरो’ इस आंदोलन ने ब्रिटिश हुकूमत को ये सोचने पर मजबूर कर दिया की अब भारतवर्ष में उनके दिन कुछ सालों के ही बचे हैं। और अब समय आ गया है जब ये सोचा जाय भारत को किस स्थिति में छोड़कर जाना उनके लिए ठीक होगा
भारत की आजादी में हर कोई अपना अपना योगदान दे रहा था। जब जब हम भारत की आजादी की बात करेंगे तब तब सुभाष चंद्र बोस का नाम आएगा। सुभाष बहुत अलग सोंच के थे। गांधी से बिल्कुल अलग। भारत की आजादी के लिए उन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया। साल १९४२ ये एक ऐसा साल था जब सुभाष की लोकप्रियता गांधी से कहीं ज्यादा थी। लोग स्वतंत्रता आंदोलन को सुस्त रफ्तार नहीं देना चाहते थे। सुभाष के लिए उनका प्रेम उनकी आँखों से बहता था अश्रु के रूप में। अपना सब कुछ त्याग कर भारत की आजादी का सपना देखने वाले सुभाष आजाद भारत न देख सके। ऐसे कितने सर्वोच्च बलिदान है जिसने भारत की धरा को सींच कर एक ऐसा वृक्ष तैयार किया जिसकी जड़ को कोई हिला नहीं पाया।
भारत की आजादी में हर वर्ग ने अपना योगदान दिया जिससे जो कुछ हो सका उसने किया हर बच्चा, युवा, वृद्ध अपने अपने तरीके से आजादी की मशाल थामे था। हम अपने क्रांतिकारियों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते थे। हर घर से आवाज बुलंद हो रही थी आजादी की।  हर कवि, लेखक के साहित्य में स्वाधीनता की खुशबू आ रही थी।
ग़ुलाम भारत अब एक नई करवट ले रहा था। साथ ही एक ऐसा परिवर्तन उसका इंतजार कर रहा था जिसके लिए वो तैयार नहीं था। १४ अगस्त १९४७ की काली तारीख भारत के अञ्चल में एक  धब्बा बनकर आई। भारत जो आजादी का सूर्य देखने ही वाला था की देश दो भागों में बँट गया। विभाजन की विभीषिका इतनी गहरी थी कि लाखों लोग काल का ग्रास बन गए। दो सर्वोच्च नेता जो किसी भी कीमत पर हिंदुस्तान का मुस्तकबिल बनने से कम कुछ चाह नहीं रहे थे उन्होंने अपने निहित स्वार्थ के लिए देश को बांटना उचित समझा। धर्म के आधार पर देश दो भागों में बँटा। लाखों लोग इस विभीषिका के शिकार हुए।
१५ अगस्त १९४७ ये वो तारीख थी जब हमने आजादी के प्रकाश को स्पर्श किया। हम आजाद तो हुए लेकिन बहुत कुछ खोकर। इसकी कीमत उन लोगों से पूछिए जिन्होंने अपना सब कुछ खोया जिनका एक ही सपना था आजादी। आज की पीढ़ी को ये जानना होगा की ये आजादी हमें ऐसे ही नहीं मिल गई । रक्त की नदियाँ बही हैं इसके लिए। कितने घर के चिराग बुझ गए कितनी वेदना से गुजरा होगा वो कालखंड।
आज भारत जब अपना ७५वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है तो एक संकल्प लें कि इस आजादी की कीमत का हमेशा अहसास रहे अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए कुछ करें। कुछ नहीं भी कर सकते तो खुद के प्रति ईमानदार रहें। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। लाखों प्राणों का कर्ज है हमारे ऊपर जो स्वतंत्रता संग्राम में धरती की गोद में समा गए। अपने बच्चों को हमारे वीरों के बलिदानों की वीर गाथा सुनाएं। राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दें। सब जन शिक्षित हों। शिक्षा एक ऐसा हथियार है जो किसी भी राष्ट्र की प्रगति में अपनी बहुआयामी भूमिका निभाता है। एक दूसरे के धर्म का आदर हो। हम जब तक एक है तब तक कोई भी बाहरी आक्रमण हमको ��ेड़ियाँ नहीं पहना सकता।
हमेशा ये याद रहे कि आजादी एक जरा से अंतर से आगे है गुलामी से ।
गरिमा पाण्डेय
१४ अगस्त २०२१,६:३५  पी.एम.,शनिवार
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amirulhaquekhan · 4 years
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कंटेनर कॉर्पोरेशन के स्टॉक को दबाव में रखने के लिए वॉल्यूम की चिंता
कंटेनर कॉर्पोरेशन के स्टॉक को दबाव में रखने के लिए वॉल्यूम की चिंता
कंटेनर कारपोरेशन ऑफ इंडिया स्टॉक में बुधवार को व्यापार में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, कंपनी ने संकेत दिया कि यह वाणिज्यिक और व्यावसायिक व्यवहार्यता पर रेलवे के टर्मिनलों में से कुछ को आत्मसमर्पण कर रही है। रेलवे द्वारा लीज पर ली गई जमीन पर कंपनी द्वारा संचालित 15 टर्मिनलों ने वित्त वर्ष 2015 के कारोबार में लगभग 278 करोड़ रुपये का योगदान दिया। यह, खाली कंटेनरों के परिवहन पर रियायती दरों के साथ…
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