भारत में देसी व्यंजन विदेशी नाम पर महंगे बिकते हैं!
यह विदेशी नाम का ही तो कमाल है कि ‘रस’ को ‘जूस’ कहकर महंगा बेचा जाता है.मगर, इसकी प्रेरणा भी तो हमसे ही मिलती है जब हम माली, शिक्षक और वैद्य के बजाय गार्डनर, टीचर और डॉक्टर कहलाना पसंद करते हैं.विदेशी कीड़ा हमारी रगों में समाया हुआ है.
देसी व्यंजन विदेशी नाम (स्रोत)
स्वादिष्ट पकवान या व्यंजन बनाना एक कला है.इसीलिए, भारतीय संस्कृति में इसे पाक कला या पाक शास्त्र कहा गया है.भारतीय भोजन सभी…
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गांधी फेमिली से कांग्रेस मुक्त हो
कांग्रेस को अंग्रेजियत से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रहे “जी२३” के नेता आजाद होना शुरू हो गये हैं, अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद गांधी जी कांग्रेस से भी आजादी चाहते थे जो सपना शेष रह गया था जिसे गुलाम नबी “आजाद” आगे बढ़ाने में लगे हैं। क्योंकि कांग्रेस अंग्रेजियत की संरक्षक के रूप में आजादी के बाद देश में कार्य करती रही है।
श्रेष्ठ भारत निर्माण में जी २३ के योगदान को भुलाया नहीं जा सकेगा,…
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ब्रेकिंग न्यूज के दौर में हिन्दी के चलन पर लगता ब्रेक
आप हिन्दी के हिमायती हों और हिन्दी को प्रतिष्ठापित करने के लिए हिन्दी को अलंकृत करते रहें, उसमें विशेषण लगाकर हिन्दी को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बताने की भरसक प्रयत्न करें लेकिन सच है कि नकली अंग्रेजियत में डूबे हिन्दी समाचार चैनलों ने हिन्दी को हाशिये पर ला खड़ा किया है. हिन्दी के समाचारों में अंग्रेजी शब्दों की भरमार ने दर्शकों को भरमा कर रख दिया है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि पत्रकारिता की राह से…
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*कान्वेंट शब्द पर गर्व न करें... सच समझें :-* ‘काँन्वेंट’ ! सब से पहले तो यह जानना आवश्यक है कि, ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं। ब्रिटेन में एक कानून था, *" लिव इन रिलेशनशिप "* बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो ��ाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था। अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने काँन्वेंट खोले *अर्थात् जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज हैं , उनके लिए ये काँन्वेंट बने।* उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयो में एक फादर एक मदर एक सिस्टर की नियुक्ति कर दी क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज। इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन् 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और *भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन् 1842 में खोला गया था।* परंतु तब हम गुलाम थे और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं। जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, *इसी कानून के तहत भारत में* कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं। *मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि :-* “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में भी कुछ पता नहीं होगा। *इनको अपने मुहावरे ही नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”* उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा। *अरे ! हम तो खुद में हीन हो गए हैं। जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म हो, दूसरों पर क्या असर पड़ेगा ?* *इस विषय पर लेख अभी पूरा नहीं हुआ आगे भी है > आगे पढ़ने के लिए comment करें पूछें... (मुरैना-Morena में) https://www.instagram.com/p/CKBKCmEF8jj/?igshid=1woiqgomfkaus
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हिंदी के विकास में समाचार पत्र व पत्रिकाएं निभा रहीे है महत्वपूर्ण भूमिका। पंचकूला।(मनीषा) अंग्रेजी के प्रभाव से रिश्तों की आत्मीयता भी सिमट रही है। समाज में ताऊ, चाचा, मामा, फूफा के लिए अंकल तो ताई, चाची, मामी, बुआ के लिए आंटी शब्द का प्रयोग होने लगा है। इसी तरह दादा-नाना के लिए ग्रांड फादर और दादी-नानी के लिए ग्रांड मदर का इस्तेमाल कर लोग अंग्रेजियत की दौड़ में हिंदी के साथ संबंधों में मधुरता के रस को भी नीरस कर रहे हैं। हालांकि कुछ युवा आज भी इस अंधी दौड़ से अलग हैं। 14 सितंबर प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन आज राष्ट्र भाषा अपने अस्तित्व पर आंसू बहा रही है।
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DNA ANALYSIS: 'अंग्रेजियत' की मिलावट से कब मिलेगी आजादी
DNA ANALYSIS: ‘अंग्रेजियत’ की मिलावट से कब मिलेगी आजादी
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नई दिल्ली: भारत में चुनावों के दौरान कुछ राजनीतिक पार्टियां वोटर्स को Smart Phones बांटती हैं. लोगों को लुभाने के लिए कंबल, कैश, शराब, ड्रग्स, और यहां तक कि मुफ्त जानवर भी बांटे जाते हैं. इसके अलावा आरक्षण, जाति, धर्म और तुष्टिकरण के जरिए भी चुनाव जीते जाते हैं. लेकिन चुनावों के नाम पर भ्रष्टाचार की ये कहानी नई नहीं है बल्कि इसकी शुरुआत आजादी के साथ ही हो गई थी. 1952 के पहले लोकसभा चुनाव…
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ये है हिन्दू सभ्यता, जब मुग़ल और फ्रेंच भारत को लूटने की जुगत में थे उसी दौरान गलती से अमेरिका की खोज हो गई, ये अमेरिका यूरोप जो ज्ञान पेल रहा है उन्हें शायद पता ना हो पर जो अंग्रेजियत के खेवनहार बनकर ज्ञान पेलते हैं उनको शायद हिन्दू समाज का इतिहास नहीं पता, जब विदेशी जानवर हुआ करते थे तब हमारे पास नालंदा तक्षशिला थे, बात करते हैं हुंह 😏 https://www.instagram.com/p/B6x_kAQJiiB/?igshid=13lvlxf5x7oer
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भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
भारत एक विकासशील राष्ट्र है और पिछले 70 वर्षों में यहाँ लोगों ने मिली हुई आज़ादी का सर्वाधिक दुरूपयोग किया है, क्यूंकि 1000 वर्षों की गुलामी ने, यहाँ के लोगों को इतना आत्महीन, पथभ्रष्ट और पंगु बना दिया की वो भूल ही गए की वो कभी विश्व में सिरमौर थे विश्व पटल पर, विश्व के सभी राष्ट्रों और संस्कृतियों के लिए आकर्षण और प्रेरणा का केंद्र भारत क्यूँ और कैसे अंतहीन समस्याओं का गढ़ बन गया है? आखिर भारत की समस्याएं और इसके समाधान क्या हैं?
भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है की यह देश अपनी 15000 वर्षों से अधिक प्राचीन और गौरवमयी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से पूरी तरह कट चूका है, यहाँ का जन मानस से चेतना और आत्म गौरव से रिक्त लोगों का देश बन चुका है, लोग आत्महीन, और दूषित प्रभावों के आधीन हो गए हैं पिछले 1000 साल की गुलामी ने इन्हें आत्मिक और आध्यात्मिक रूप से पंगु और दीन हीन बना दिया है।
इस देश के लोग अपने प्राचीन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक खोजों, ऋषियों, वैज्ञानिकों और उनकी विश्व को दी गयी देन के प्रति पूर्णतया अनभिज्ञ हैं, कांग्रेस और कम्युनिस्ट नेताओं, बुद्धिजीवियों, मुगलों और अंग्रेजों के गुलामों, चाटुकारों और सेवकों ने इस राष्ट्र के जन मानस के दिल दिमाग को अपने अतीत के महान वैभव, श्रेष्ठतम खोजों, अविष्कारों और महानतम जीवन मूल्यों के सृष्टा और उद्घोषकों के सम्बन्ध में पूर्णतया अनभिज्ञ और अँधा बनाये रखा है।
उन्हें गलत जानकारी, विद्रूपित इतिहास और तथ्य उपलब्ध कराये गयी है और उसे उनके दिल दिमाग पर थोप दिया गया है, उन्हें इतना बीमार और भ्रमित कर दिया है की वो अपने ही पूर्वजों और उनके गरिमामयी कार्यों को, अद्भुत उपलब्धियों को स्वीकार करने को राजी नहीं, उन्हें संदेह और घृणा की दृष्टि से देखते है, यह है गुलामी से हुए पतन और बेहद कुटिलतापूर्वक आयोजित सामूहिक ब्रेनवाश का भयानकतम परिणाम।
यहाँ के लोगों के अवचेतन में यह घर कर गया है की इस देश को जो कुछ मिला है विदेश हमलावरों और पाश्चात्य जगत से मिला है, यहाँ के लोग अपनी विराट सांस्कृतिक और एतिहासिक और आद्यात्मिक विरासत के प्रति बिलकुल भी जागरूक और संज्ञान में नहीं है, यही इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की वजह है।
जो राष्ट्र और उसके नागरिक अपनी संस्कृति और अतीत के गर्व के प्रति सम्मान और चेतना का भाव खो देते हैं वो हमारे राष्ट्र की तरह दुर्गति को प्राप्त होते हैं, वो अपने ऊपर हमला करने वालों उन्हें लूटने और पद दलित और भ्रष्ट करनेवालों को अपने से श्रेष्ट और श्रेयस मानने लगते हैं, यह उनके पतन और आत्महीनता की पराकाष्ठा होती है, और हमारा राष्ट्र इसी प्रोपेगंडा और षड़यंत्र का पिछले 1000 वर्षों से शिकार है और अपनी रुग्णता के चरम से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।
यहाँ लोगों ने संपत्ति, पद और सुविधाएँ तो प्राप्त कर ली हैं, लेकिन अपना आत्मगौरव और आत्मसम्मान गिरवी रख दिया है, देश के गद्दारों, शत्रुओं और दलालों के हाथों, और अपनी ही मातृभूमि को दूषित, कलंकित और अपमानित करने के घृणित षड़यंत्र में जी जान से भागीदारी कर रहे हैं, यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य और समस्या है।
यहाँ के लोगों से आज़ादी सम्हाली नहीं गयी, और जो भी नेता मिले वो बेहद अदूरदर्शी, अव्यवहारिक, अनुभव विहीन, आत्मकेंद्रित और सत्ता सुन्दरी पर मुग्ध अपने ही लाभ और गौरव की प्रतिष्ठा में लीन रहे, उन्हें 1000 वर्षों की गुलामी, उत्पीडन और सांस्कृतिक रूप से मृत, समस्याग्रस्त कुपोषित, त्रस्त और लुटे हुआ राष्ट्र, इसकी सुरक्षा की कोई भी फिक्र नहीं की, उनके लिए करोड़ों देशवासियों के जीवन, भविष्य और प्रगति उनका मुख्य लक्ष्य नहीं रहे।
परिणाम यह हुआ जैसा राजा और नेता वैसी ही जनता हो गयी, वो भी अपने ही राष्ट्र को लूटने, नोचने खसोटने और भ्रष्ट करने में जी जान से लग गयी और पिछले 70 सालों में यही भाव प्रधान रहा है। यह बेहद शर्मनाक है की लूट और भ्रष्टाचार इस देश में शिष्टाचार और लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, गुलामी और आत्महीनता से कितना पतन हो सकता है किसी देश के लोगों का इसकी मिसाल है हमारा देश।
भारत की सबसे बड़ी समस्या सत्ता में परिवारवाद और अंग्रेजियत की गुलामी, जिसके यह प्रणेता और पोषक हैं,इनसे मुक्ति देश के हित में है
इस देश में नेताओं ने भी और जनता ने भी, इस बात को अनदेखा करते हुए की वो अपने ही घर में आग लगाकर तमाशा देख रहे हैं और शत्रुओं और लूटेरों और षड्यंत्रकारियों के मंसूबों को पूरा करने का सामान बने हुए हैं, इतनी भीषण बर्बादी भी इन्हें नहीं जगा पाई, इससे बड़ा दुर्भाग्य और नपुंसकता किसी राष्ट्र के नागरिकों और नेताओं लिए क्या हो सकती है।
इस देश का विनाश इस देश के नेता और जनता दोनों ने मिलकर कर रखा है और वो आज भी नशे में है, उनकी मूर्छा और नींद बहुत गहरी है, इसे तोडना बेहद जरुरी है, वर्ना यह राष्ट्र अपन गौरव और अस्मिता खोकर नष्ट हो रहा है, यह हमारा देश है, इसकी रक्षा, गौरव और समृद्धि की जिम्मेदारी हमारी है, किसी सरकार और हमारी सेना की नहीं, यह हमारा देश है, यह हमारी जिम्मेदारी है सबसे पहले।
आज़ादी के पश्चात हमारे नेताओं और यहाँ की मूर्छित, लोभी लालची, पथभ्रष्ट जनता का मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक संपत्ति का अर्जन और अपने महिमामंडन में ही रहा है। इस देश के 3 प्रधानमंत्री जो एक ही परिवार से आये हैं, उन्होंने अपने जीते जी ही स्वयं को भारत रत्न प्रदान कर दिया, उनके नाम से हजारों संस्थान, सड़कें, स्मारक निर्मित हैं, आज़ादी के बाद सर्वाधिक समय तक देश की सत्ता इन्हीं ने सम्हाली है, और देश गंभीर रूप से बीमार और समस्या ग्रस्त और भ्रष्ट हुआ है, इनके शासनकाल में इस देश के सबसे बड़े घोटाले और लूट और आतंकवादी घटनाएँ और युद्ध हुए हैं।
इनका एक ही लक्ष्य रहा साम, दाम, दंड भेद से सत्ता में बने रहना और स्वयं को प्रतिष्ठित और लाभन्वित करना, उन्होंने अपने आसपास सिर्फ चाटुकारों, भ्रष्ट और घटिया लोगों को जिन पर वो आसानी से दवाब बनाकर शासन कर सके को एकत्रित होने दिया, इस राष्ट्र को जातिवाद, साम्प्रदायिकता के न भरनेवाला जख्म दिया, इस देश के 3 टुकड़े कर दिए (पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश), शत्रुओं को बढ़ावा और अनाधिकार लाभों को लूटने और हमारे अधिकार के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने दिया (तिब्बत, पाक अधिकृत काश्मीर)।
इन्होने राष्ट्र की सेना और संसाधनों को व्यवस्थित और सशक्त करने के लिए कोई कार्य नहीं किया, बल्कि सत्ता में बने रहने और अपने गौरव गान के लिए हर राष्ट्रीय संस्ठा, संविधान और संवैधानिक मूल्य की हत्या और विरूपण किया, इस देश में जाति और धर्म के आधार पर वोट बैंक की राजनीति की शुरुआत की, जो आज नासूर बनकर इस देश को खोखला कर रही है।
आज भी इस देश का बहुत बड़ा वर्ग, कुंठित और पथभ्रष्ट बिकाऊ, बुद्धिजीवी और मीडिया इनके तलवे चाटने और इनके महिमामंडन में लगा हुआ है। लोकतंत्र के स्तम्भ इसकी कब्र बनाने पर तुले हुए है चाहे वो संसद हो, न्यायपालिका हो, मीडिया हो या इस देश की जनता, सभी इस देश की और तथाकथित लोकतंत्र की अर्थी तैयार करने में लगे हुए हैं। अराजकता और बुद्धिहीनता और चारित्रिक दिवालियेपन की ऐसी पराकाष्ठ कभी देखने नहीं मिली, इस देश में, यह कहाँ आ गए हैं हम, हमे इसे बदलना होगा।
हमें इन सड़े गले संस्थानों और इनके सिरमौर बने लोगों को बहिष्कृत और विस्थापित करना होगा, नए स्वस्थ विधान, मूल्यों और इसकी प्रतिष्ठा करने वाली शक्तियों और व्यक्तियों को पुनः स्थापित करना होगा। हमारा राष्ट्र पुनर्निर्माण के एक बहुत बड़े दौर से गुजर रहा है , हमे जागरूकता पूर्वक अपना कर्त्तव्य और निष्ठां इसके प्रति निभानी होगी, वर्ना हम आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेहद अंधकारर पूर्ण भविष्य और विरासत निर्मित कर रहे हैं, हमे इस दुर्भाग्य से बचना होगा और जो सार्थक और जरुरी है हर हाल में करना होगा।
यह देश राजशाही और विदेशी दासता से मुक्त नहीं हो पाया, आज़ादी मिलने 75 वर्षों के पश्चात् भी, आज भी मुग़ल और अंग्रेजी गुलामी और हीनता यहाँ के लोगों के दिल और दिमाग से गयी नहीं है, वो आज भी उन्ही की गुलामी और उनके द्वारा इनके गलों में पहनाये गए गुलामी के पट्टे को अपनी विचारधारा, कर्म और अभिव्यक्ति से जी और ढो रहे हैं और इस देश को अंतहीन गुलामी की तरफ ले जाने की अंधी और विनाशकारी असफल कोशिश कर रहे है।
आज भी इस देश के बहुत सारे लोग, एक परिवार विशेष की अंध भक्ति और मूर्खों, अयोग्य और सर्वाधिक भ्रष्ट और अनिष्टकारी समूह और दल की चापलूसी और गुलामी में व्यस्त हैं, इस देश के लोगों ने सच देखना, सुनना और स्वीकारना बहुत समय पहले से बंद कर दिया है, इसलिए वो इन्सान होने के बावजूद भेड़ों की तरह व्यव्हार कर रहें है और पतन की और अग्रसर हो रहे हैं, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस देश के लोगों को अपने देश और इसकी संस्कृति की पहचान और मूल्य नहीं है। लम्बे समय की गुलामी, ब्रेनवाश और आत्महीनता और देशी और विदेशी दुश्मनों के षड्यंत्रों ने इस देश के जन मानस को कुंठित और विषाक्त कर दिया है, अपनी स्वयं की संस्कृति और महान मूल्यों के प्रति हीनता, अविश्वास और घृणा से भर दिया है।
हमारे देश के लोग यह भूल गए हैं की हमारे राष्ट्र की सभी खूबियां, ज्ञान, गुणवत्ता, आध्यात्मिक वैभव और अतुलनीय संपत्ति और समृद्धि दुनिया के तमाम लूटेरों, ठगों, लालची और विस्तार और वैभव के आकांक्षियों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी ने इन तमाम दुर्दांत ठगों, लूटेरों, उपनिवेशवादियों और हमलावरों को इस धरती पर आक्रमण करने और इसे अपना निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया था।
और ऐसा होने में हमारे ही देश के गद्दारों और नीच लोगों ने इस लूट और बर्बादी में सहयोग किया है और आज भी यही कर रहे हैं, क्यूंकि इस देश के लोगों को न तब समझ में आया ना आज समझ में आ रहा है।
मेरी नज़र में कुछ बेहद महत्वपूर्ण कारक है जो समस्या की तरह मौजूद हैं, यदि इन सभी कारकों पर जागरूकता पूर्ण तरीके से जरुरी कार्य किया जाये तो हमारा राष्ट्र कुछ ही समय में विश्व के सर्वाधिक प्रभावशील और समृद्ध राष्टों में से एक होगा।
सच तो यह है की हम उस दिशा की और अग्रसर हो चुके हैं, कई दशको के बेहद घटिया और नपुंसक शासन के बाद एक सार्थक और बेहद प्रभावी नेतृत्व में हमारा राष्ट्र एक नयी दिशा और ऊंचाई की और कदम बढ़ा रहा है, हमे इसमें अपना पूर्ण और जिम्मेदार योगदान देना होगा -
भारत की मुख्य समस्याएँ - (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में)
इस देश के लोगों में अपनी धरती के लिए प्रेम और निष्ठा का बेहद अभाव है, इतने गद्दार और देशद्रोही कहीं और नहीं होंगे जितने इस देश में हर काल में हुए और आज भी हैं, और देश को कमजोर और खोखला करने मै लगे हैं।
इस देश के लोगों को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति से ऊपर कोई भी चीज नहीं है, सब अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे हैं।
इस देश के लोग जाति, धर्म और वर्ग में बंटे हुए है, और इस आधार पर लाभ लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, राजनेता उनकी इस कमजोरी का पिछले 75 सालों से दोहन कर रहे हैं, और यह मुर्ख इसमें सहयोग कर रहे हैं।
यहां अयोग्य और अपराधी लोग हमारा प्र��िनिधित्व करते हैं, और लोग उन्हें स्वीकार और सहयोग प्रदान करते है।
यहां गुण की कीमत नहीं है, लोगों की गुणवान और श्रेष्ठ होने में कोई रुचि नहीं है, बिना किसी योग्यता और गुण के लोग हर किस्म का लाभ और सुख सुविधा चाहते है, गुणवान, प्रतिभावान इस देश से बहार जाने के लिए मजबूर हें।
लोगों में देश के लिए कुछ भी करने का जज्बा नहीं लेकिन उन्हें देश और सरकार से सब कुछ चाहिए, यहाँ सब बिना कोई तकलीफ उठाये हर सुविधा और आराम चाहते हैं।
यहां लोग, कायर, भ्रष्ट और कामचोर हैं, लेकिन फिर भी उन्हें घमंड है, अपनी नीचता और घटियापन के लिए कोई भी स्वीकार और शर्म नहीं है, लोगों का आत्मसम्मान और चेतना निम्नतम स्तर पर है।
लोग अपने कर्तव्यों के प्रति बिल्कुल भी जागरूक और जिम्मेदार नहीं है और उन्हें सभी अधिकार चाहिए।
राष्ट्र के संसाधनों और संपत्तियों का दुरुपयोग, और उन्हें बिना किसी वजह से नष्ट करना।
जनसंख्या नियंत्रण की ओर बिल्कुल भी जिम्मेदार रवैया नहीं, 75 वर्षों में 30 से 130 करोड़ हो गए, यही है इनकी उत्पादकता और रचनात्मकता, और कोई भी रचनात्मक कार्य इस देश के लोगों को नही आता।
देश में अशांति बढानेवाली और विघटनकारी ताकतों का समर्थन, राष्ट्र द्रोहियों की वकालत और महिमा मंडन।
पाश्चात्य सभ्यता और मूल्यों का अंधानुकरण और हमारी प्राचीन विरासत और मूल्यों का अवमूल्यन और अपमान।
गंदगी, अराजकता और अव्यवस्था को बढ़ावा, व्यावहारिक और संवेदनशील सोच और कर्म का अभाव।
विवेकपूर्ण जीवनशैली और जागरूकता का पूर्ण अभाव,भाग्य वादी और अंधविश्वासी लोग।
अनुशासनहीन जीवन और बेहद लापरवाह रवैया, जीवन की सभी महत्वपूर्ण बातों के संबंध में।
झूठ, पाखंड और भ्रष्टाचार में अव्वल नंबर, और फिर भी दूसरे श्रेष्ठ और कर्मठ लोगों के कार्य और नीयत में दोष निकालना, थोड़े से लाभ के लिए अपने राष्ट्र से गद्दारी और शत्रुओं के सहयोग के लिए तैयार।
बहुसंख्यक लोगों के हितों और भावनाओं की उपेक्षा और झूठे, मक्कार और राष्ट्र विरोधी समुदाय और शक्तियों की प्रतिष्ठा और चापलूसी, खुशामद की राजनीति।
भारत की मूल संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत का अपमान, अवमूल्यन और विद्रूपिकरण।
हमारे वास्तविक इतिहास का विद्रूपिकरण और हिंसक और नीच हमलावरो, आतताईयों और हत्यारों का महिमामंडन।
हमारे राष्ट्र के गौरव, वीर सपूतों, क्रांतिकारियों और श्रेष्ठ महामानवों की उपेक्षा और इतिहास से विलोपन।
राजनीति का अपराधीकरण, तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति, राष्ट्र हितों की और सुरक्षा की उपेक्षा और राष्ट्र द्रोहियों की प्रतिष्ठा और महिमामांडन।
फिल्मी भांडों और बिकाऊ और भ्रष्ट क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रति अंधी दीवानगी, जिन्होंने इस देश के दुश्मनों के आगे धन और शोहरत के लिए खुद को बेच दिया है।
शर्मनाक और घटिया बुद्धिजीवी और कम्युनिस्ट नेता जो इस देश की आत्मा और मूल प्रकृति को नष्ट करने का षडयंत्र पिछले 70 वर्षों से कर रहे हैं, का महिमा मंडन।
दुष्ट और भ्रष्ट कांग्रेसी इटालियन माफिया और उसके मंद बुद्धि परम अयोग्य मूर्ख संतान की गुलामी और चापलूसी और उनका मूर्खतापूर्ण अव्यवहारिक और शर्मनाक महिमामंडन।
अंग्रेजों द्वारा निर्मित शिक्षा और कानून व्यवस्था का आज तक हमारी छाती पर लदा हुआ होना जो सिर्फ हमारा सत्यानाश और शोषण करने के लिए बनाया गया था।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला स्तंभ मीडिया, पक्षपाती, बिकाऊ और हद से ज्यादा भ्रष्ट है, और इस देश में सभी बेहूदी बातों और लोगों के प्रचार प्रसार में लगा है और जनता और सरकार दोनों मूक दर्शक की तरह ऐसा होने दे रहे हैं।
हमारी पूर्ववर्ती और वर्तमान सरकार ने हमारी सेना को आतंकियों और दुश्मन राष्ट्र की गतिविधियों के खिलाफ सही कदम उठाने से रोक रखा है, वो कोई भी कदम हमारे सैनिकों के सम्मान और रक्षा के लिए नहीं उठा पाते है, जो किया जा रहा है वो काफी नहीं है।
यह सिर्फ कुछ बातें है, इसके अलावा, सामाजिक, पारिवारिक और अन्य पहलुओं में भी ढेर सारी विडम्बनाएं है, जो इस महान राष्ट्र को समस्याग्रस्त और पतित बना रही है।
समय की मांग है की इस देश में एक सशक्त और राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखने वाले नेतृत्व और कार्यकारी संस्थान अपनी पूरी क्षमता और रचनात्मकता के साथ कम से कम आगामी एक दशक तक कार्य करे, जिसकी नींव रखी जा चुकी है, वर्तमान नेतृत्व एक सक्षम और प्रभावी नेतृत्व है, जिसने इतने वर्षो की गलतियों और दुष्प्रभावों, कुशासन और भ्रष्टाचार की दलदल और बिमारियों से बाहर निकालने और उसे स्वच्�� करने की दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया है, हमें इसे और मज़बूत और जवाबदेह बना होगा, ताकि इतने लम्बे समय से रुके हुए विकास और पुनर्निर्माण और नवनिर्माण के कार्यों को बिना रुके जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।
आज भी हमारे सामने नयी नयी चुनौतिया और समस्याएं इस देश के भ्रष्ट राजनेता, सांप्रदायिक ताकतें और वोट बैंक की राजनीति करने वाले और राष्ट्र के दुश्मनों से सांठ गाँठ रखनेवाले और उनके नीच और कुत्सित इरादों और षड्यंत्रों को पूरा करने में सहयोगी हैं, और राष्ट्र की अखंडता और एकता को नष्ट करने वाली विचारधारा, प्रोपेगंडा और भ्रामक बातों का प्रचार, प्रसार और महिमा मंडन करने में लगे हुए हैं, हमें इन्हें समूल नष्ट करना होगा, इनकी जड़ों को पूरी तरह से काटना होगा।
वर्तमान नेतृत्व ने अपनी कर्मठता और कुशलता में नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं जो सराहनीय हैं, लेकिन यह सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत है हमें इसे बहुत बेहतर और सशक्त बनाए की जरुरत है, ताकि हमारा महान देश अपने पैरों पर पुनः खड़ा हो सके और अपने अतीत के गौरव और संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठित कर सके, इसके लिए कुछ बेहद जरुर बातों का संपन्न किया जाना बेहद जरुरी है जो इस प्रकार हैं -
भारत की समस्याओं के समाधान - (तात्कालिक)
इस राष्ट्र के सभी वैध और संवैधानिक रूप से स्वीकृत नागरिकों के लिए सिर्फ एक ही पहचान की वो भारतीय हैं, कोई भी जाति, धर्म, केटेगरी और अन्य लेबल मानी और स्वीकृत नहीं होगा, इस देश का प्रत्येक वैध नागरिक सिर्फ भारतीय होगा, न कोइ हिन्दू, न मुस्लमान, न अल्पसंख्यक न बहुसंख्यक, न अनुसूचित, सूचित और अन्य कोई भी लेबल, सिर्फ भारतीय और कुछ नहीं, किसी भी वजह से नही।
इस देश के सभी नागरिकों के लिए एक ही संविधान और एक ही कानून, कोई भी विशेषाधिकार किसी भी आधार पर किसी को नहीं दिया जायेगा, और न किसी भी प्रान्त और क्षेत्र के व्यक्तियों को कोई विशिष्ट सुविधा या अधिकार दिए जायेंगे, किसी भी कारण से।
एक से अधिक बच्चे को जन्म देना कानून अपराध होगा और इसका उल्लंघन करने वाले की को अधिकाधिक कर, दंड और अन्य व्यक्तिगत और सार्वजनिक सुविधाओं और लाभों से वंचित कर दिया जायेगा।
देश के खिलाफ बयानबाजी, प्रदर्शन और देश के शत्रुओं की पैरवी करने और उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग और समर्थन करने पर सिर्फ आजीवन कारावास या मृत्यु दंड का विधान।
अभिव्यक्ति की आज़ादी की उचित विवेचना और सीमा निर्धारण, अनर्गल और सांप्रदायिक और राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन और वक्तव्य देने वालों को तुरंत प्रभाव से बंदी बनाना और उन पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाकर आजीवन कारावास और अन्य कठोर दंड प्रदान करना, धर्म और संप्रदाय के आधार पर किसी भी किस्म की विशेष सुविधा और आज़ादी नहीं प्रदान की जानी चाहिए।
नागरिकों को मुफ्त की सुविधाएँ और बेहद कम मूल्य में राशन का वितरण बंद किया जाना चाहिए, क्यूंकि वो इन सभी सुविधाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं, व्यक्तिगत आधार पर ही निरिक्षण कर उचित सहयोग उर लाभ वितरित कर��ा।
किसानों और खेतिहरों के लिए विशेष प्रशिक्षण और प्रोत्साहन और किसान बाज़ार (Farmers Market)को प्रोत्साहन।
स्त्रियों के लिए शिक्षा और स्वास्थय और सुरक्षा की बेहतर व्यवस्थाएं, उनकी कुशलता और उधामिता को विकसित करने की योजनायें और कार्यशालों की ग्रामीण इलाकों में व्यवस्था।
सरकारी कर्मचारियों के कार्य मूल्याङ्कन और जन पारदर्शिता की व्यवस्था करना, भ्रष्टाचार और अनियमितता के खिलाफ त्वरित और ठोस कार्यवाही और कठोर दंड विधान।
करों की दरों को लोगों को इस तरह बनाना जिससे छोटे और बड़े सभी आय समूह के लोग कर भुगतान में रूचि लें, उन्हें कर भुगतान करने पर विशिष्ट लाभ और छूट प्रदान की जाये, और लोगों को और अधिक व्यवसाय और कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाये, अधिक धन कमाना, संपत्ति अर्जित करना एक अपराध नहीं होना चाइये, इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, इसके लिए बेहतर कराधान प्रणाली का निर्धारण और क्रियान्वयन होना चाहिए।
राजनैतिक दलों द्वारा प्राप्त की जाने वाली धनराशी के सम्बन्ध में पारदर्शिता और जवाबदेही की नीति, जाती, धर्म और वोट बैंक की राजीनीति करनेवाले दलों पर पूर्ण प्रतिबन्ध और उन्हें चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से बहिस्कृत किया जाना चाहिए, तुष्टिकरण की राजनीति और व्यवस्था को नष्ट करना।
राज्यों के अधिकारों की पुनः विवेचना होनी चाहिए ताकि कश्मीर और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के उग्रवादी, आतंकी और देशद्रोही नेताओं और असामाजिक, अराजक तत्वों की गतिविधियों और मनमानी व्यवस्था पर जरुरत पड़ने पर अंकुश लगाकर, निर्दोष जनता और संपत्ति की रक्षा की जा सके।
अवैध निवासियों, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान और उन्हें राष्ट्र से बाहर करने की समर्थ और शक्तिशाली व्यवस्था और उन्हें गैर कानूनी तरीके से देश में आने और निवास करने, पहचान पत्र प्राप्त करने में मदद करनेवाले लोगों और सरकारी मशीनरी पर लगाम और दोषियों को राष्ट्रद्रोह के जुर्म में दंड की व्यवस्था।
लोगों को कृषि आधारित और अन्य उद्योगों को लगाने और उनके लिए बाज़ार उपलब्ध करने की व्यवस्था पर एक सशक्त और व्यवहारिक योजना और क्रियान्वयन।
कृषि के विकास और वितरण की उचित व्यवस्था, हमारा देश विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के साथ गरीबी और भुखमरी में सबसे ऊपर है, हमारी 40% आबादी को आज भी दोनों वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस तरह की बहुत सारी बातों और कार्यों की आवश्यकता है, समस्याएं विकास प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग हैं, लेकिन हमे सार्थक और रचनात्मक समस्याएं को हल करने में ही अपनी उर्जा और शक्ति लगानी होगी ताकि देश अपने सर्वांगीण और समुचित विकास के लक्ष्य की और अग्रसर होता रहे। आज भारत विश्व की चौथी महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है।
हमें एक बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए की हम कितना भी विकास कर लें और कितना भी जीडीपी बढ़ा लें, यह तब तक कोई मूल्य नहीं रखता जब इतनी बड़ी तादाद में हमारे देश के लोग भूख और गरीबी से जूझ रहे हों, हमारी प्राथमिकता इसे ख़त्म करने की और होनी चाहिए। असली भारत इन्ही ग्रामों और कस्बों में निवास करता है, हमे इनके सशक्तिकरण और विकास के लिए सर्वाधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
आने वाले 10 वर्षों में भारत विश्व के प्रथम तीन सबसे शक्तिशाली और विकसित राष्ट्रों में से एक होगा, हम सभी भारतवासियों को इस दिशा में कार्य करने की जरुरत है, हमें अपने समस्त भेदों और मत विभिन्नता से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र के लिए सोचना और कार्य करना होगा, तभी हमारा राष्ट्र हमारे और पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा और शक्ति का स्रोत बनकर उभरेगा और अपने प्राचीन गौरव और प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सकेगा।
समय है, हे भारत के वासियों अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्वों का निर्वाह करो इसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजनैतिक और सांस्कृतिक गुलामी और दुष्प्रभावों, गद्दारों, लूटेरों और इसे बांटने और तोड़ने वालों से मुक्त करो।
🙏🌹🙏 जय भारत 🙏🌹🙏 जय माँ भारती 🙏🌹🙏 वन्दे मातरम
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DNA ANALYSIS: 'अंग्रेजियत' की मिलावट से कब मिलेगी आजादी
DNA ANALYSIS: ‘अंग्रेजियत’ की मिलावट से कब मिलेगी आजादी
भारत में चुनावों के दौरान कुछ राजनीतिक पार्टियां वोटर्स को Smart Phones बांटती हैं. लोगों को लुभाने के लिए कंबल, कैश, शराब, ड्रग्स, और यहां तक कि मुफ्त जानवर भी बांटे जाते हैं.
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स्वतंत्रता के 73 वर्ष : हम अंग्रेजियत और मुगलियत से आज़ाद कब होंगे?
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जेडीयू नेता की लंदन में पढ़ी-लिखी बेटी ने की बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी
पटना। बिहार के अखबारों में सोमवार को बेहद आसान तरीके से एक गंभीर बात छापी गई है। सभी अखबारों के पहले पेज पर प्रकाशित एक विज्ञापन में बिहार के सीएम पद की दावेदारी की गई है। अंग्रेजियत यानी पंख लगे सफेद घोड़े के साथ एक पार्टी ऐलान कर रही है कि मैं आ गई हूं। […]
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डॉ. जाकिर हुसैन: भारत के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति जो जामिया का VC रहते लेते थे 80 रुपए सैलरी
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डॉ. जाकिर हुसैन: भारत के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति जो जामिया का VC रहते लेते थे 80 रुपए सैलरी
डॉ. जाकिर हुसैन ने जर्मनी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की थी.
बर्लिन में इकॉनॉमिक्स में पीएच.डी कर रहे जाकिर हुसैन ने जामिया मिलिया को चलाने का दायित्व अपने कंधे पर लेना (1925) स्वीकार किया. तय हुआ कि 150 रुपए की तनख्वाह पर वे जामिया का काम संभालेंगे लेकिन 1928 यानी हकीम अजमल खां की मौत के बाद उन्होंने अपनी तनख्वाह घटाकर 80 रुपए महीना कर ली.
News18Hindi
Last Updated:
February 8, 2020, 11:57 AM IST
आज भारत के पहले अल्पसंख्यक राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन (Dr. Zakir Husaain) की जयंती है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) और सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvpalli Radhakrishnan) के बाद डॉ. जाकिर हुसैन भारत के तीसरे राष्ट्रपति बने थे. वो 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक राष्ट्रपति पद पर रहे. 3 मई 1969 को उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई थी. हैदराबाद में जन्मे मूल रूप से अफगानी पश्तून परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. जाकिर हुसैन ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा योगदान दिया. उनके जीवन से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं. इन्हीं किस्सों में से एक है जामिया में उनका वाइस चांसलर रहते महज 80 रुपए की सैलरी लेना.
कुछ ऐसा था माहौल
वह 1920 का वक्त था और महात्मा गांधी जानते थे कि आजादी के आंदोलन को एक व्यापक आधार देना जरूरी है. देश के मुस्लिम समुदाय के भीतर अंग्रेजों के विरुद्ध दो अलग-अलग रुझानों के लोग संघर्ष कर रहे थे. कुछ की सोच थी कि अंग्रेजी राज इस्लाम विरोधी है, सो उसका हरचंद विरोध होना चाहिए जबकि कुछ पश्चिमी शिक्षा प्राप्त नवयुवक थे और बिल्कुल लोकतांत्रिक मिजाज से सोचते थे कि अंग्रेजों ने भारत को नाहक ही उपनिवेश बना रखा है, एक राजनीतिक समुदाय के रूप में भारतीयों को अपने फैसले खुद करने का अख्तियार है.
मुस्लिम समुदाय के भीतर अंग्रेजों की मुखालफत करने वाला यह दोनों तबका गांधी की तरफ मुड़ा और गांधी ने इस मौके को अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन में तब्दील कर दिया. गांधी के आह्वान था कि लोग अंग्रेजी राज के बनाये स्कूल-कॉलेज को छोड़ें, अंग्रेजियत की सीख से अपने दिमाग को धो डालें.
गांधी का असर
उनके आह्वान के असर में जिन छात्रों और शिक्षकों ने नौकरी या पढ़ाई छोड़ी उनमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक छात्र जाकिर हुसैन भी थे. खिलाफत आंदोलन और अंग्रेजों से असहयोग की रणनीति से उभरे जन-ज्वार को स्थायी रूप देने के लिए जाकिर हुसैन जैसे कई छात्रों और विद्वानों के एक समूह ने नए तर्ज के तालीम का एक संस्थान बनाने का फैसला लिया. वही संस्थान आज जामिया मिलिया इस्लामिया कहलाता है लेकिन आज के रूप तक आने से पहले उसे अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़नी पड़ी.एक तरफ सियासी संकट थे तो दूसरी तरफ आर्थिक मजबूरी. एक तो इस शिक्षा संस्थान के छात्रों और शिक्षकों ने सारे देश में चल रहे सत्याग्रह में हिस्सेदारी की और अंग्रेजों की जेल में बंद किए गए. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की इस्लामी धारा इस विश्वविद्यालय को अपने वजूद के लिए खतरे की तरह देख रही थी.
तुर्की के मुस्तफा कमाल पाशा ने 1924 में खिलाफत का खात्मा कर दिया और इससे पहले 1922 में गांधीजी भी असहयोग-आंदोलन वापस ले चुके थे. संस्थान के आगे चुनौती यह थी कि वो अपने को चलाए-बनाए रखे तो किस आधार पर. आर्थिक संकट अलग से थे. खिलाफत के जरिए मिलने वाली आर्थिक मदद खत्म हो चुकी थी. लेकिन गांधी डटे रहे, कहा कि विश्वविद्यालय चलेगा चाहे उसके लिए लोगों से भीख ही क्यों ना मांगनी पड़े.
मुस्तफा कमाल पाशा
ऐसे ही संकल्प के साथ जामिया अलीगढ़ से दिल्ली के करोलबाग में आया, कुछ दिनों तक संस्थान को स्वदेशी शिक्षा के पैरोकार हकीम अजमल खां का सहारा रहा, वे संस्था के सह-संस्थापक और पहले वाइस चांसलर भी थे लेकिन उनकी मौत के बाद सवाल खड़ा हुआ कि आखिर ऐसा कौन है जो जामिया मिलिया को बचाने के लिए अपनी जिंदगी होम कर सके.
जामिया का संभाला जिम्मा
संकट के ऐसे ही वक्त में बर्लिन में इकॉनॉमिक्स में पीएच.डी कर रहे जाकिर हुसैन ने जामिया मिलिया को चलाने का दायित्व अपने कंधे पर लेना (1925) स्वीकार किया. तय हुआ कि 150 रुपए की तनख्वाह पर वे जामिया का काम संभालेंगे लेकिन 1928 यानी हकीम अजमल खां की मौत के बाद उन्होंने अपनी तनख्वाह घटाकर 80 रुपए महीना कर ली.
जामिया का ह्यूमैनिटीज ऐंड लैंगुएज डिपार्टमेंट
जामिया को दिए इन 21 सालों ने ही जाकिर हुसैन को एक महान शिक्षाप्रेमी की शख्सियत अता की बल्कि यह कहना ठीक होगा कि जिन बातों को वे अपने बचपन से महसूस करते आ रहे थे, उन्हें जिंदगी के अमल और उसूल के रूप में साकार करना उनके लिए संघर्ष के इन सालों में संभव हो सका.
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First published: February 8, 2020, 11:39 AM IST
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काँन्वेंट
सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ये शब्द आखिर आया कहाँ से है, तो आइये प्रकाश डालते हैं। ब्रिटेन में एक कानून था लिव इन रिलेशनशिप बिना किसी वैवाहिक संबंध के एक लड़का और एक लड़की का साथ में रहना। जब साथ में रहते थे तो शारीरिक संबंध भी बन जाते थे, तो इस प्रक्रिया के अनुसार संतान भी पैदा हो जाती थी तो उन संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया जाता था। अब ब्रिटेन की सरकार के सामने यह गम्भीर समस्या हुई कि इन बच्चों का क्या किया जाए तब वहाँ की सरकार ने काँन्वेंट खोले अर्थात जो बच्चे अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज हैं उनके लिए काँन्वेंट बने। उन अनाथ और नाजायज बच्चों को रिश्तों का एहसास कराने के लिए उन्होंने अनाथालयो में एक फादर एक मदर एक सिस्टर की नियुक्ति कर दी क्योंकि ना तो उन बच्चों का कोई जायज बाप है ना ही माँ है। तो काँन्वेन्ट बना नाजायज बच्चों के लिए जायज। इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन् 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था जिसके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं और भारत में पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्��ा में सन् 1842 में खोला गया था। परंतु तब हम गुलाम थे और आज तो लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं। जब कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने की यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं। मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है। उसमें वो लिखता है कि: “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपने मुहावरे नहीं मालुम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रुवाब पड़ेगा। अरे ! हम तो खुद में हीन हो गए हैं। जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा? लोगों का तर्क है कि “अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है”। दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में ही बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है? शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईसा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईसा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी। समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। भारत देश में अब भारतीयों की मूर्खता देखिए जिनके जायज माँ बाप भाई बहन सब हैं, वो काँन्वेन्ट में जाते है तो क्या हुआ एक बाप घर पर है और दूसरा काँन्वेन्ट में जिसे फादर कहते हैं। आज जिसे देखो काँन्वेंट खोल रहा है जैसे बजरंग बली काँन्वेन्ट स्कूल, माँ भगवती काँन्वेन्ट स्कूल। अब इन मूर्खो को कौन समझाए कि भईया माँ भगवती या बजरंग बली का काँन्वेन्ट से क्या लेना देना? दुर्भाग्य की बात यह है कि जिन चीजो का हमने त्याग किया अंग्रेजो ने वो सभी चीजो को पोषित और संचित किया। और हम सबने उनकी त्यागी हुई गुलाम सोच को आत्मसात कर गर्वित होने का दुस्साहस किया।
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भारतीयता को जीवित रखने के लिए पत्रकारों को वर्तमान हालातों से जूझना होगा।
भारतीयता को जीवित रखने के लिए पत्रकारों को वर्तमान हालातों से जूझना होगा।
जयपुर, 16 जून। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि वामपंथ ने हमारे भारतीय आत्मबोध को बहुत नुकसान पहुंचाया है, किंतु वामपंथ अब भारत में चुनौती नहीं रहा है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी तथा अंग्रेजियत भारतीयता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भारतीय भाषाओं के घटते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी भाषा बदलने के साथ-साथ चेतना भी बदल रही है। आने वाले समय में भारत आर्थिक रूप से निश्चित तौर पर…
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वैसे तो ये फिल्म ३० नवम्बर को ही Netflix पर रिलीज़ हुई, लेकिन आजकल ऋषि कपूर जी इतनी फिल्मे बना रहे हैं जितनी तो उनके सुपुत्र रणवीर कपूर (जी) भी नहीं बना रहे| इसलिए, ये फिल्म देखने का रोमांच नहीं था, कितनी ही बार ये फिल्म आँखों से सामने से आकर गुजर गयी और हम नकली अंग्रेजियत फील करने के चक्कर में अमेरिकी सीरियल ही देखते रहे|
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