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#स्थिर वस्तु चित्रण
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Clément Serveau (1886 -1972) Compotier et chandelle, 1949 Collection privée
 Une composition  intermédiaire flirtant avec le cubisme sans trop  vouloir se l'avouer ! Très beaux coloris éteints qui rappellent aux plus anciens d'autres nous ceux  l'on  pouvait trouver sur les billets de banque français à l'époque ou ceux-ci étaient des œuvres d'art !
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 17 Shirish ke Phool
NCERT Class 12 Hindi :: Chapter 17 Shirish ke Phool 
(शिरीष के फूल) 
(गद्य भाग)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत ( संन्यासी ) की तरह क्यों माना है? (CBSE-2010)अथवाशिरीष को ‘अद्भुत अवधूत’ क्यों कहा गया है? (CBSE-2014, 2017)उत्तर:लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा फलता-फूलता है। वह कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-रस बनाए रखता है। इसी तरह शिरीष का वृक्ष है। वह भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा रहता है। उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, तब भी शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है, वह काल व समय को जीतकर लहलहाता रहता है।
प्रश्न 2.हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है – प्रस्तुत पीठ के आधार पर स्पष्ट करें। (सैंपल पेपर-2013) (CBSE-2017)उत्तर:परवर्ती कवि ये समझते रहे कि शिरीष के फूलों में सब कुछ कोमल है अर्थात् वह तो कोमलता का आगार हैं लेकिन विवेदी जी कहते हैं कि शिरीष के फूलों में कोमलता तो होती है लेकिन उनका व्यवहार (फल) बहुत कठोर होता है। अर्थात् वह हृदय से तो कोमल है किंतु व्यवहार से कठोर है। इसलिए हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार का कठोर होना अनिवार्य हो जाता है।
प्रश्न 3.विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें। (CBSE-2008)उत्तर:द्रविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। शिरीष का वृक्ष भयंकर गरमी सहता है, फिर भी सरस रहता है। उमस व लू में भी वह फूलों से लदा रहता है। इसी तरह जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आएँ मनुष्य को सदैव संघर्ष करते रहना चाहिए। उसे हार नहीं माननी चाहिए। भ्रष्टाचार, अत्याचार, दंगे, लूटपाट के बावजूद उसे निराश नहीं होना चाहिए तथा प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाते रहना चाहिए।
प्रश्न 4.हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?उत्तर:लेखक कहता है कि आज शिरीष जैसे अवधूत नहीं रहे। जब-जब वह शिरीष को देखता है तब-तब उसके मन में ‘हूक-सी’ उठती है। वह कहता है कि प्रेरणादायी और आत्मविश्वास रखने वाले अब नहीं रहे। अब तो केवल देह को प्राथमिकता देने वाले लोग रह रहे हैं। उनमें आत्मविश्वास बिलकुल नहीं है। वे शरीर को महत्त्व देते हैं, मन को नहीं। इसीलिए लेखक ने शिरीष के माध्यम से वर्तमान सभ्यता का वर्णन किया है।
प्रश्न 5.कवि ( साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थित प्रज्ञता और विदग्ध प्रेम का हृदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाइए।उत्तर:विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य-कम के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया हैं/विस्तारपूर्वक समझाएँ/ उत्तर लेखक का मानना है कि कवि के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय का होना आवश्यक है। उनका कहना है कि महान कवि वही बन सकता है जो अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञ तथा विदग्ध प्रेमी की तरह सहृदय हो। केवल छंद बना लेने से कवि तो हो सकता है, किंतु महाकवि नहीं हो सकता। संस��र की अधिकतर सरस रचनाएँ अवधूतों के मुँह से ही निकलती हैं। लेखक कबीर व कालिदास को महान मानता है क्योंकि उनमें अनासक्ति का भाव है। जो व्यक्ति शिरीष के समान मस्त, बेपरवाह, फक्कड़, किंतु सरस व मादक है, वही महान कवि बन सकता है। सौंदर्य की परख एक सच्चा प्रेमी ही कर सकता है। वह केवल आनंद की अनुभूति के लिए सौंदर्य की उपासना करता है। कालिदास में यह गुण भी विद्यमान था।
प्रश्न 6.सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।उत्तर:परिवर्तन प्रकृति का नियम है। मनुष्य को समयानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए। एक ही लीक पर चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। शिरीष के फूल हमें यही सिखाते हैं। वह हर मौसम में अपने को और अपने स्वभाव को बदल लेता है। इसी कारण वह निर्लिप्त भाव से वसंत, आषाढ़ और भादों में खिला रहता है। प्रचंड लू और उमस को सहन करता है। लेकिन फिर भी खिला रहता है। फूलों के माध्यम से कोमल व्यवहार करता है तो फलों के माध्यम से कठोर व्यवहार। इसीलिए वह दीर्घजीवी बन जाता है। मनुष्य को भी ऐसा ही करना चाहिए।
प्रश्न 7.आशय स्पष्ट कीजिए
दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हैं। जमे कि मरे।
जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?…मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।
फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि संसार में जीवनी शक्ति और सब जगह समाई कालरूपी अग्नि में निरंतर संघर्ष चलता रहता है। बुद्धिमान निरंतर संघर्ष करते हुए जीवनयापन करते हैं। संसार में मूर्ख व्यक्ति यह समझते हैं कि वे जहाँ हैं, वहीं देर तक डटे रहेंगे तो कालदेवता की नजर से बच जाएँगे। वे भोले हैं। उन्हें यह नहीं पता कि एक जगह बैठे रहने से मनुष्य का विनाश हो जाता है। लेखक गतिशीलता को ही जीवन मानता है। जो व्यक्ति हिलते-डुलते रहते हैं, स्थान बदलते रहते हैं तथा प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं, वे ही मृत्यु से बच सकते हैं। लेखक जड़ता को मृत्यु के समान मानता है तथा गतिशीलता को जीवन।
लेखक कहता है कि कवि को सबसे पहले अनासक्त होना चाहिए अर्थात तटस्थ भाव से निरीक्षण करने वाला होना चाहिए। उसे फक्कड़ होना चाहिए अर्थात उसे सांसारिक आकर्षणों से दूर रहना चाहिए। जो अपने किए कार्यों का लेखा-जोखा करता है, वह कवि नहीं बन सकता। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे फक्कड़ बनना चाहिए।
लेखक कहता है कि फल व पेड़-दोनों का अपना अस्तित्व है। वे अपने-आप में समाप्त नहीं होते। जीवन अनंत है। फल व पेड़, वे किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई औगुली हैं। यह संकेत है कि जीवन में अभी बहुत कुछ है। सुंदरता व सृजन की सीमा नहीं है। हर युग में सौंदर्य व रचना का स्वरूप अलग हो जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.शिरीष के पुष्य को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?उत्तर:शिरीष का फूल प्रचंड गरमी में भी खिला रहता है। वह लू और उमस में भी जोर शोर से खिलता है अर्थात् विषम परिस्थितियों में भी वह समता का भाव रखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को शीतपुष्प का अर्थ है ठंडक देने वाला फूल और शिरीष का फूल भयंकर गरमी में भी ठंडक प्रदान करता है।
प्रश्न 2.कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए?उत्तर:गांधी जी सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि कोमल भावों से युक्त थे। वे दूसरे के कष्टों से द्रवित हो जाते थे। वे अंग्रेजों के प्रति भी कठोर न थे। दूसरी तरफ वे अनुशासन व नियमों के मामले में कठोर थे। वे अपने अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष करते थे तथा किसी भी दबाव के आगे झुकते नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने अपनी दृढ़ता से ढहाया था। इस तरह गांधी के व्यक्तित्व की विशेषता-कोमल व कठोर भाव बन गए थे।
प्रश्न 3.आजकल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्ज़ी व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।उत्तर:वाद-विश्व के सभी प्रमुख देशों में भारतीय फूलों की माँग सबसे ज्यादा है। टनों की मात्रा में भारतीय फूल अन्य देशों में निर्यात हो रहे, जिस कारण भारत सरकार के राजस्व में भी अतिशय वृद्धि हो रही है। भारतीय फूलों का स्तर बहुत ऊँचा है। इस क्वालिटी और इतने प्रकार के फूल अन्य स्थानों पर मिलना संभव-सा प्रतीत नहीं होता। इसकी खेती करके कुछ ही समय में अच्छा लाभ अर्जित किया जा सकता है। इसीलिए किसान लोग फूलों की खेती को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं। विवाद-चूँकि भारतीय फूल विदेश में निर्यात हो रहे हैं इसलिए लोगों को आकर्षण फूलों की खेती में ज्यादा हो गया है। इस कारण वे मूल फ़सलों का उत्पादन नहीं कर रहे जिससे अनिवार्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। अन्न उत्पादन लगातार कम होता जा रहा है। अपने थोड़े-से लाभ के लिए किसान लोग करोड़ों देशवासियों को महँगी वस्तुएँ खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं।
प्रश्न 4.हज़ारी प्रसाद विवेदी ने इस पाठ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व व्यंजक ललित निबंध और लिखें हैं- कुटज, आम फिर बौरा गए, अशोक के फूल, देवदारु आदि। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूंढ़िए और पढ़िए।उत्तर:विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5.विवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता है? आज साहित्यिक रचना फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही है। तब ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ गया है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण या उपेक्षामय है? इसका मूल्यांकन करें।उत्तर:विवेदी जी का जीवन प्रकृति के उन्मुक्त आँगन में ज्यादा रमा है। प्रकृति उनके लिए शक्ति और प्रेरणादायी रही है इसीलिए उन्होंने अपने साहित्य में प्रकृति का चित्रण किया है। वे वनस्पतियाँ हमारे जीवन का आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है। कवि क्योंकि कुछ ज्यादा ही भावुक या संवेदनशील होता है, इसीलिए वह प्रकृति के प्रति ज्यादा संजीदा हो जाता है। मैं स्वयं प्रकृति के प्रति रुचिपूर्ण रवैया रखता हूँ। प्रकृति को जीवन शक्ति के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। प्रकृति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए पंत जी कहते हैं –छोड़ दूमों की मृदुल छायाबदले! तेरे बाल जाल में कैसे उलझा हूँ लोचन?यदि हम प्रकृति को सहेजकर रखेंगे तो हमारा जीवन सुगम और तनाव रहित होगा। प्रकृति संजीवनी है। अतः इसकी उपेक्षा करना अपने अस्तित्व को खतरे में डालने जैसा है।
भाषा की बात
प्रश्न 1.दस दिन फूले फिर खंखड़-खंखड़ इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं, उन्हें छाँट कर लिखें।उत्तर:
ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले।
��ेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।
वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें।
किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते।
धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना।
न ऊधो का लेना न माधो का देना।
कालदेवता की आँख बचा जाएँ।
रह-रहकर उसका मन खीझ उठता था।
खून-खच्चर का बवंडर बह गया।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.निबंधकार ने किस तरह कोमल और कठोर दोनों भावों का सम्मिश्रण शिरीष के माध्यम से किया है?उत्तर:प्रत्येक वस्तु अथवा व्यक्ति में दो भाव एक साथ विद्यमान रहते हैं। उसमें कोमलता भी रहती है और कठोरता भी। संवेदनशील प्राणी कोमल भावों से युक्त होगा लेकिन समाज में अपने को बनाए रखने के लिए कठोर भावों का होना भी अनिवार्य है। ठीक यही बात शिरीष के फूल पर भी लागू होती है। यद्यपि संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूल को अत्यंत कोमल माना गया है तथापि लेखक का कहना है कि इसके फल बहुत कठोर (मजबूत) होते हैं। वे नए फूलों के आ जाने पर भी नहीं निकलते, वहीं डटे रहते हैं।
कोमलता और कठोरता के माध्यम से इस निबंध के लालित्य को इन शब्दों में निबंधकार ने प्रस्तुत किया है-”शिरीष का फूल संस्कृत साहित्य में बहुत कोमल माना गया है। मेरा अनुमान है कि कालिदास ने यह बात शुरू-शुरू में प्रचार की होगी। कह गए हैं, शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं। …. शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब कुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल, पत्ते मिलकर धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं।
प्रश्न 2.‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध किस श्रेणी का निबंध है? इस पर प्रकाश डालिए?उत्तर:हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कई विषयों पर निबंध लिखे हैं। उनके निबंधों को कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। उन्होंने ज्यादातर ललित निबंध लिखें हैं। अपनी निबंध कला से आचार्य द्विवेदी ने हिंदी ललित निबंध साहित्य को विकसित किया है। उनके साहित्यिक निबंध ही ललित निबंध हैं। अनेक विद्वान भी ऐसा ही मानते हैं। ललित निबंध क्या है इस बारे में डॉ. बैजनाथ सिंहल ने लिखा है-शोधार्थी ललित निबंध को सामान्यतः जिसे हम निबंध कहते हैं। ऊलगते हुए केवल एक ही आधार को अपनाते दिखाई देते हैं-यह आधार है लालित्य का। ललित शब्द को लेकर किसी विधा के अंतर्गत एक अलग विधा को बनाया जाना स्वीकार नहीं हो सकता। लालित्य साहित्य मात्र में रहता है तथा ललित कलाओं में साहित्य लालित्य के कारण ही सर्वोच्च कला है। इसलिए लालित्य तो साहित्य का अंतवर्ती तत्व है। डॉ० हजारी प्रसाद का ‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध भी एक ललित निबंध है।
प्रश्न 3.प्रकृति के माध्यम से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लालित्य दिखाने का सफल प्रयास किया है, सिद्ध करें।उत्तर:‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध की रचना का मूलाधार प्रकृति है। निबंधकार ने प्रकृति को आधार बनाकर इस निबंध की रचना की है। इसलिए इस निबंध में लेखक ने प्रकृति के माध्यम से लालित्य दिखाने का सफल प्रयास किया है। प्रकृति का इतना मनोरम और यथार्थ चित्रण निबंध को लालित्य से परिपूर्ण कर देता है। लेखक ने बड़े सुंदर शब्दों में प्रकृति को चित्रित किया है। शिरीष के फूल का वर्णन इस प्रकार किया है-
“वसंत के आगमन से लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रहता रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्यात फूलता रहता है। …एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष का एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पति शास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। ज़रूर खींचता होगा, नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल ततुंजाल और ऐसे सकुमार केसर को कैसे उगा सकता था?”
प्रश्न 4.यह निबंध भावों की गंभीरता को समुच्चय जान पड़ता है। प्रस्तुत पाठ के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए।उत्तर:विचारों के साथ ही भावों की प्रधानता भी इस निबंध में मिलती है। भाव तत्व निबंध का प्रमुख तत्व है। इसी तत्व के आधार पर निबंधकार मूल भावना या चेतना प्रस्तुत कर सकता है। वातावरण का पूर्ण ज्ञान उन्हें था। कवि न होने के बावजूद भी प्रकृति को चित्रण भावात्मक ढंग से करते थे। प्रकृति के प्रत्येक परिवर्तन का उन पर गहरा प्रभाव होता था। वे भावुक थे इसलिए प्रकृति में होने वाले नित प्रति परिवर्तनों से वे भावुक हो जाते थे। इस बात को स्वीकारते हुए वे लिखते हैं –
“यद्यपि कवियों की भाँति हर फूल पत्ते को देखकर मुग्ध होने लायक हृदय विधाता ने नहीं दिया है, पर नितांत ढूँठ भी नहीं हैं। शिरीष के पुष्प मेरे मानस में थोडा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।” निबंधकार का मानना है कि व्यक्तियों की तरह शिरीष का पेड़ भी भावुक होता है। उसमें भी संवेदनाएँ और भावनाएँ भरी होती हैं – “एक-एक बार मुझे मालूम होता है। कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत हैं। दुख हो या सुख वह हार नहीं मानता न ऊधो को लेना न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं।” अतः निबंधकार ने इस निबंध में भावात्मकता का गुण भरा है।
प्रश्न 5.जीवन शक्ति का संदेश इस पाठ में छिपा हुआ है? कैसे? स्पष्ट करें।उत्तर:द्विवेदी जी ने इस निबंध में फूलों के द्वारा जीवन शक्ति की ओर संकेत किया है। लेखक बताता है कि शिरीष का फूल हर हाल में स्वयं के अस्तित्व को बनाए रखता है। इस पर गरमी-लू आदि का कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि इसमें जीवन जीने की लालसा है। इसमें आशा का संचार होता रहता है। यह फूल तो समय को जीतने की क्षमता रखता है। विपरीत परिस्थितियों में जो जीना सीख ले उसी का जीवन सार्थक है। शिरीष के फूलों की जीवन शक्ति की ओर संकेत करते हुए निबंधकार ने लिखा है-
“फूल है शिरीष। वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गयो तो भरे भादों में भी निर्यात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है।” इस प्रकार निबंधकार ने शिरीष के फूल के माध्यम से जीवन को हर हाल में जीने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कई भावों को इस निबंध में प्रस्तुत किया है। यह निबंध संवेदनाओं से भरपूर है। इन संवेदनाओं और भावनाओं का विस्तारपूर्वक चित्रण आचार्य जी ने किया है। यह एक श्रेष्ठ निबंध है।
प्रश्न 6.निबंधकार का अधिकार लिप्सा से क्या आशय है?उत्तर:इस निबंध में एक प्रसंग में निबंधकार ने अधिकार लिप्सा की बात कही है। इस तथ्य ने भी प्रस्तुत निबंध के लालित्य को बढ़ाया है। निबंधकार कहता है कि प्रत्येक में अधिकार लिप्सा होनी चाहिए लेकिन अधिकार लिप्सा का अर्थ यह है। कि जीवनभर आप एक ही जगह जमे रहो। दूसरों को भी मौका देना चाहिए ताकि उनकी योग्यता को सिद्ध किया जा सके। “वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पुत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह लड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की याद आती है जो किसी प्रकार ज़माने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं। मैं सोचता हूँ पुराने की यह अधिकार लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती?” इस तरह निबंधकार ने अधिकार भावना को नए अर्थों में प्रस्तुत कर इस निबंध की लालित्य योजना को प्रभावी बना दिया है।
प्रश्न 7.व्यंग्यात्मकता इस निबंध की मूल चेतना है। प्रस्तुत पाठ के आलोक में इस पर प्रकाश डालिए।उत्तर:इस तत्व का प्रयोग करके निबंधकार ने अपने निबंध को बोझिल होने से बचा लिया है। डॉ. सक्सेना के शब्दों में आपकी रचना पद्धति में कहीं-कहीं व्यंग्य एवं विनोद भी विद्यमान है। आपको यह व्यंग्य अधिक कटु एवं तीखा नहीं होता किंतु मर्मस्पर्शी होता है और हृदय को सीधी चोट न पहुँचाकर स्थायी प्रभाव डालने वाला होता है। परंतु निबंध में व्यंग्य तत्व का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। द्विवेदी जी ने शिरीष के पेड़ की शाखाओं की कमजोरी और कवियों के मोटापे पर व्यंग्य करते हुए लिखा है-
यद्यपि पुराने कवि बहुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे पर शिरीष भी क्या बुरा है? डाल इसकी अपेक्षाकृत कमज़ोर ज़रूर होती हैं पर उसमें झूलने वालियों का वजन भी तो ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वज़न का एकदम ख्याल नहीं करते। मैं तुंदिल नरपतियों की बात नहीं कर रहा हूँ, वे चाहें तो लोहे का पेड़ लगवा लें। इस निबंध की एक और विशेषता है-स्पष्टता। विवेदी जी ने जो विचार अथवा भाव प्रकट किए हैं उनमें स्पष्टता का गुण विद्यमान है। उनके भावों में कोई उलझाव या बिखराव नहीं है।
प्रश्न 8.शिरीष, अवधूत और गांधी जी एक-दूसरे के समान कैसे हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2013)उत्तर:शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत की तरह, बाहय परिवर्तन धूप, वर्षा, आँधी, लू-सब में शांत बना रहता है तथा पुष्पित-पल्लवित होता रहता है। इनकी तरह ही महात्मा गांधी भी मारकाट, अग्निदाह, लूटपाट, खून खच्चर को बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक गांधी जी को याद करता है। जिस तरह शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल व कठोर हो सकता है, उसी तरह महात्मा गांधी भी कोमल-कठोर व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।
प्रश्न 9.‘हाय वह अवधूत आज कहाँ है!’ लेखक ने यहाँ किसे स्मरण किया है? क्यों? (CBSE-2016)अथवाहजारी प्रसाद विवेदी ने शिरीष के संदर्भ में महात्मा गांधी का स्मरण क्यों किया है? साम्य निरूपित कीजिए। (CBSE-2016)उत्तर:‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!’-लेखक ने यहाँ महात्मा गांधी का स्मरण किया है। शिरीष भयंकर गरमी व लू में भी सरस वे फूलदार बना रहता है। गांधी जी अपने चारों छाए अग्निकांड और खून-खच्चर के बीच स्नेही, अहिंसक व उदार दोनों एक समान कठिनाइयों में जीने वाले सरस व्यक्तित्व हैं।
इन्हें भी जानें
अशोक वृक्ष – भारतीय साहित्य में बहुचर्चित एक सदाबहार वृक्ष। इसके पत्ते आम के पत्तों से मिलते हैं। वसंत-ऋतु में इसके फूल लाल-लाल गुच्छों के रूप में आते हैं। इसे कामदेव के पाँच पुष्पवाणों में से एक माना गया है इसके फल सेम की तरह होते हैं। इसके सांस्कृतिक महत्त्व का अच्छा चित्रण हजारी प्रसाद विवेदी ने निबंध अशोक के फूल में किया है। भ्रमवश आज एक-दूसरे वृक्ष को अशोक कहा जाता रहा है और मूल पेड़ (जिसका वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है।) को लोग भूल गए हैं। इसकी एक जाति श्वेत फूलों वाली भी होती है।
अरिष्ठ वृक्ष – रीठा नामक वृक्ष। इसके पत्ते चमकीले हरे होते हैं। फल को सुखाकर उसके छिलके का चूर्ण बनाया जाता है, बाल धोने एवं कपड़े साफ़ करने के काम में आता है। पेड़ की डालियों व तने पर जगह-जगह काँटे उभरे होते हैं, जो बाल और कपड़े धोने के काम भी आता है।
आरग्वध वृक्ष – लोक में उसे अमलतास कहा जाता है। भीषण गरमी की दशा में जब इसका पेड़ पत्रहीन ढूँठ सा हो जाता है, पर इस पर पीले-पीले पुष्प गुच्छे लटके हुए मनोहर दृश्य उपस्थित करते हैं। इसके फल लगभग एक डेढ़ फुट के बेलनाकार होते हैं। जिसमें कठोर बीज होते हैं।
शिरीष वृक्ष – लोक में सिरिस नाम से मशहूर पर एक मैदानी इलाके का वृक्ष है। आकार में विशाल होता है पर पत्ते बहुत छोटे-छोटे होते हैं। इसके फूलों में पंखुड़ियों की जगह रेशे-रेशे होते हैं।
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Adriaen Coorte (1665–1707) Trois pêches et un papillon Collection privée
Que voit on ?  Une nature en tout point semblable à Trois nèfles et un papillon  déjà publiée dans ce blog voici quelques années.   Sur un entablement de pierres polies et jointées, trois pêches présentées sous différents angles de vues, deux montrant  la base du fruit, une (à droite) étant posée la tige en bas. Un papillon très coloré brise la noirceur du fond noir, mais signale cependant le pourrissement proche des fruits, symbole du passage de la vie à la mort....
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 17 Shirish ke Phool
NCERT Class 12 Hindi :: Chapter 17 Shirish ke Phool 
(शिरीष के फूल) 
(गद्य भाग)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत ( संन्यासी ) की तरह क्यों माना है? (CBSE-2010)अथवाशिरीष को ‘अद्भुत अवधूत’ क्यों कहा गया है? (CBSE-2014, 2017)उत्तर:लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा फलता-फूलता है। वह कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-रस बनाए रखता है। इसी तरह शिरीष का वृक्ष है। वह भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा रहता है। उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, तब भी शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है, वह काल व समय को जीतकर लहलहाता रहता है।
प्रश्न 2.हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है – प्रस्तुत पीठ के आधार पर स्पष्ट करें। (सैंपल पेपर-2013) (CBSE-2017)उत्तर:परवर्ती कवि ये समझते रहे कि शिरीष के फूलों में सब कुछ कोमल है अर्थात् वह तो कोमलता का आगार हैं लेकिन विवेदी जी कहते हैं कि शिरीष के फूलों में कोमलता तो होती है लेकिन उनका व्यवहार (फल) बहुत कठोर होता है। अर्थात् वह हृदय से तो कोमल है किंतु व्यवहार से कठोर है। इसलिए हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार का कठोर होना अनिवार्य हो जाता है।
प्रश्न 3.विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें। (CBSE-2008)उत्तर:द्रविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। शिरीष का वृक्ष भयंकर गरमी सहता है, फिर भी सरस रहता है। उमस व लू में भी वह फूलों से लदा रहता है। इसी तरह जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आएँ मनुष्य को सदैव संघर्ष करते रहना चाहिए। उसे हार नहीं माननी चाहिए। भ्रष्टाचार, अत्याचार, दंगे, लूटपाट के बावजूद उसे निराश नहीं होना चाहिए तथा प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाते रहना चाहिए।
प्रश्न 4.हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?उत्तर:लेखक कहता है कि आज शिरीष जैसे अवधूत नहीं रहे। जब-जब वह शिरीष को देखता है तब-तब उसके मन में ‘हूक-सी’ उठती है। वह कहता है कि प्रेरणादायी और आत्मविश्वास रखने वाले अब नहीं रहे। अब तो केवल देह को प्राथमिकता देने वाले लोग रह रहे हैं। उनमें आत्मविश्वास बिलकुल नहीं है। वे शरीर को महत्त्व देते हैं, मन को नहीं। इसीलिए लेखक ने शिरीष के माध्यम से वर्तमान सभ्यता का वर्णन किया है।
प्रश्न 5.कवि ( साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थित प्रज्ञता और विदग्ध प्रेम का हृदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाइए।उत्तर:विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य-कम के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया हैं/विस्तारपूर्वक समझाएँ/ उत्तर लेखक का मानना है कि कवि के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय का होना आवश्यक है। उनका कहना है कि महान कवि वही बन सकता है जो अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञ तथा विदग्ध प्रेमी की तरह सहृदय हो। केवल छंद बना लेने से कवि तो हो सकता है, किंतु महाकवि नहीं हो सकता। संसार की अधिकतर सरस रचनाएँ अवधूतों के मुँह से ही निकलती हैं। लेखक कबीर व कालिदास को महान मानता है क्योंकि उनमें अनासक्ति का भाव है। जो व्यक्ति शिरीष के समान मस्त, बेपरवाह, फक्कड़, किंतु सरस व मादक है, वही महान कवि बन सकता है। सौंदर्य की परख एक सच्चा प्रेमी ही कर सकता है। वह केवल आनंद की अनुभूति के लिए सौंदर्य की उपासना करता है। कालिदास में यह गुण भी विद्यमान था।
प्रश्न 6.सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।उत्तर:परिवर्तन प्रकृति का नियम है। मनुष्य को समयानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए। एक ही लीक पर चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। शिरीष के फूल हमें यही सिखाते हैं। वह हर मौसम में अपने को और अपने स्वभाव को बदल लेता है। इसी कारण वह निर्लिप्त भाव से वसंत, आषाढ़ और भादों में खिला रहता है। प्रचंड लू और उमस को सहन करता है। लेकिन फिर भी खिला रहता है। फूलों के माध्यम से कोमल व्यवहार करता है तो फलों के माध्यम से कठोर व्यवहार। इसीलिए वह दीर्घजीवी बन जाता है। मनुष्य को भी ऐसा ही करना चाहिए।
प्रश्न 7.आशय स्पष्ट कीजिए
दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हैं। जमे कि मरे।
जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?…मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।
फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि संसार में जीवनी शक्ति और सब जगह समाई कालरूपी अग्��ि में निरंतर संघर्ष चलता रहता है। बुद्धिमान निरंतर संघर्ष करते हुए जीवनयापन करते हैं। संसार में मूर्ख व्यक्ति यह समझते हैं कि वे जहाँ हैं, वहीं देर तक डटे रहेंगे तो कालदेवता की नजर से बच जाएँगे। वे भोले हैं। उन्हें यह नहीं पता कि एक जगह बैठे रहने से मनुष्य का विनाश हो जाता है। लेखक गतिशीलता को ही जीवन मानता है। जो व्यक्ति हिलते-डुलते रहते हैं, स्थान बदलते रहते हैं तथा प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं, वे ही मृत्यु से बच सकते हैं। लेखक जड़ता को मृत्यु के समान मानता है तथा गतिशीलता को जीवन।
लेखक कहता है कि कवि को सबसे पहले अनासक्त होना चाहिए अर्थात तटस्थ भाव से निरीक्षण करने वाला होना चाहिए। उसे फक्कड़ होना चाहिए अर्थात उसे सांसारिक आकर्षणों से दूर रहना चाहिए। जो अपने किए कार्यों का लेखा-जोखा करता है, वह कवि नहीं बन सकता। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे फक्कड़ बनना चाहिए।
लेखक कहता है कि फल व पेड़-दोनों का अपना अस्तित्व है। वे अपने-आप में समाप्त नहीं होते। जीवन अनंत है। फल व पेड़, वे किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई औगुली हैं। यह संकेत है कि जीवन में अभी बहुत कुछ है। सुंदरता व सृजन की सीमा नहीं है। हर युग में सौंदर्य व रचना का स्वरूप अलग हो जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.शिरीष के पुष्य को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?उत्तर:शिरीष का फूल प्रचंड गरमी में भी खिला रहता है। वह लू और उमस में भी जोर शोर से खिलता है अर्थात् विषम परिस्थितियों में भी वह समता का भाव रखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को शीतपुष्प का अर्थ है ठंडक देने वाला फूल और शिरीष का फूल भयंकर गरमी में भी ठंडक प्रदान करता है।
प्रश्न 2.कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए?उत्तर:गांधी जी सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि कोमल भावों से युक्त थे। वे दूसरे के कष्टों से द्रवित हो जाते थे। वे अंग्रेजों के प्रति भी कठोर न थे। दूसरी तरफ वे अनुशासन व नियमों के मामले में कठोर थे। वे अपने अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष करते थे तथा किसी भी दबाव के आगे झुकते नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने अपनी दृढ़ता से ढहाया था। इस तरह गांधी के व्यक्तित्व की विशेषता-कोमल व कठोर भाव बन गए थे।
प्रश्न 3.आजकल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्ज़ी व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।उत्तर:वाद-विश्व के सभी प्रमुख देशों में भारतीय फूलों की माँग सबसे ज्यादा है। टनों की मात्रा में भारतीय फूल अन्य देशों में निर्यात हो रहे, जिस कारण भारत सरकार के राजस्व में भी अतिशय वृद्धि हो रही है। भारतीय फूलों का स्तर बहुत ऊँचा है। इस क्वालिटी और इतने प्रकार के फूल अन्य स्थानों पर मिलना संभव-सा प्रतीत नहीं होता। इसकी खेती करके कुछ ही समय में अच्छा लाभ अर्जित किया जा सकता है। इसीलिए किसान लोग फूलों की खेती को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं। विवाद-चूँकि भारतीय फूल विदेश में निर्यात हो रहे हैं इसलिए लोगों को आकर्षण फूलों की खेती में ज्यादा हो गया है। इस कारण वे मूल फ़सलों का उत्पादन नहीं कर रहे जिससे अनिवार्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। अन्न उत्पादन लगातार कम होता जा रहा है। अपने थोड़े-से लाभ के लिए किसान लोग करोड़ों देशवासियों को महँगी वस्तुएँ खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं।
प्रश्न 4.हज़ारी प्रसाद विवेदी ने इस पाठ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व व्यंजक ललित निबंध और लिखें हैं- कुटज, आम फिर बौरा गए, अशोक के फूल, देवदारु आदि। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूंढ़िए और पढ़िए।उत्तर:विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5.विवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता है? आज साहित्यिक रचना फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही है। तब ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ गया है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण या उपेक्षामय है? इसका मूल्यांकन करें।उत्तर:विवेदी जी का जीवन प्रकृति के उन्मुक्त आँगन में ज्यादा रमा है। प्रकृति उनके लिए शक्ति और प्रेरणादायी रही है इसीलिए उन्होंने अपने साहित्य में प्रकृति का चित्रण किया है। वे वनस्पतियाँ हमारे जीवन का आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है। कवि क्योंकि कुछ ज्यादा ही भावुक या संवेदनशील होता है, इसीलिए वह प्रकृति के प्रति ज्यादा संजीदा हो जाता है। मैं स्वयं प्रकृति के प्रति रुचिपूर्ण रवैया रखता हूँ। प्रकृति को जीवन शक्ति के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। प्रकृति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए पंत जी कहते हैं –छोड़ दूमों की मृदुल छायाबदले! तेरे बाल जाल में कैसे उलझा हूँ लोचन?यदि हम प्रकृति को सहेजकर रखेंगे तो हमारा जीवन सुगम और तनाव रहित होगा। प्रकृति संजीवनी है। अतः इसकी उपेक्षा करना अपने अस्तित्व को खतरे में डालने जैसा है।
भाषा की बात
प्रश्न 1.दस दिन फूले फिर खंखड़-खंखड़ इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं, उन्हें छाँट कर लिखें।उत्तर:
ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले।
मेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।
वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें।
किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते।
धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना।
न ऊधो का लेना न माधो का देना।
कालदेवता की आँख बचा जाएँ।
रह-रहकर उसका मन खीझ उठता था।
खून-खच्चर का बवंडर बह गया।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.निबंधकार ने किस तरह कोमल और कठोर दोनों भावों का सम्मिश्रण शिरीष के माध्यम से किया है?उत्तर:प्रत्येक वस्तु अथवा व्यक्ति में दो भाव एक साथ विद्यमान रहते हैं। उसमें कोमलता भी रहती है और कठोरता भी। संवेदनशील प्राणी कोमल भावों से युक्त होगा लेकिन समाज में अपने को बनाए रखने के लिए कठोर भावों का होना भी अनिवार्य है। ठीक यही बात शिरीष के फूल पर भी लागू होती है। यद्यपि संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूल को अत्यंत कोमल माना गया है तथापि लेखक का कहना है कि इसके फल बहुत कठोर (मजबूत) होते हैं। वे नए फूलों के आ जाने पर भी नहीं निकलते, वहीं डटे रहते हैं।
कोमलता और कठोरता के माध्यम से इस निबंध के लालित्य को इन शब्दों में निबंधकार ने प्रस्तुत किया है-”शिरीष का फूल संस्कृत साहित्य में ��हुत कोमल माना गया है। मेरा अनुमान है कि कालिदास ने यह बात शुरू-शुरू में प्रचार की होगी। कह गए हैं, शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं। …. शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब कुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल, पत्ते मिलकर धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं।
प्रश्न 2.‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध किस श्रेणी का निबंध है? इस पर प्रकाश डालिए?उत्तर:हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कई विषयों पर निबंध लिखे हैं। उनके निबंधों को कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। उन्होंने ज्यादातर ललित निबंध लिखें हैं। अपनी निबंध कला से आचार्य द्विवेदी ने हिंदी ललित निबंध साहित्य को विकसित किया है। उनके साहित्यिक निबंध ही ललित निबंध हैं। अनेक विद्वान भी ऐसा ही मानते हैं। ललित निबंध क्या है इस बारे में डॉ. बैजनाथ सिंहल ने लिखा है-शोधार्थी ललित निबंध को सामान्यतः जिसे हम निबंध कहते हैं। ऊलगते हुए केवल एक ही आधार को अपनाते दिखाई देते हैं-यह आधार है लालित्य का। ललित शब्द को लेकर किसी विधा के अंतर्गत एक अलग विधा को बनाया जाना स्वीकार नहीं हो सकता। लालित्य साहित्य मात्र में रहता है तथा ललित कलाओं में साहित्य लालित्य के कारण ही सर्वोच्च कला है। इसलिए लालित्य तो साहित्य का अंतवर्ती तत्व है। डॉ० हजारी प्रसाद का ‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध भी एक ललित निबंध है।
प्रश्न 3.प्रकृति के माध्यम से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लालित्य दिखाने का सफल प्रयास किया है, सिद्ध करें।उत्तर:‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध की रचना का मूलाधार प्रकृति है। निबंधकार ने प्रकृति को आधार बनाकर इस निबंध की रचना की है। इसलिए इस निबंध में लेखक ने प्रकृति के माध्यम से लालित्य दिखाने का सफल प्रयास किया है। प्रकृति का इतना मनोरम और यथार्थ चित्रण निबंध को लालित्य से परिपूर्ण कर देता है। लेखक ने बड़े सुंदर शब्दों में प्रकृति को चित्रित किया है। शिरीष के फूल का वर्णन इस प्रकार किया है-
“वसंत के आगमन से लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रहता रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्यात फूलता रहता है। …एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष का एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पति शास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। ज़रूर खींचता होगा, नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल ततुंजाल और ऐसे सकुमार केसर को कैसे उगा सकता था?”
प्रश्न 4.यह निबंध भावों की गंभीरता को समुच्चय जान पड़ता है। प्रस्तुत पाठ के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए।उत्तर:विचारों के साथ ही भावों की प्रधानता भी इस निबंध में मिलती है। भाव तत्व निबंध का प्रमुख तत्व है। इसी तत्व के आधार पर निबंधकार मूल भावना या चेतना प्रस्तुत कर सकता है। वातावरण का पूर्ण ज्ञान उन्हें था। कवि न होने के बावजूद भी प्रकृति को चित्रण भावात्मक ढंग से करते थे। प्रकृति के प्रत्येक परिवर्तन का उन पर गहरा प्रभाव होता था। वे भावुक थे इसलिए प्रकृति में होने वाले नित प्रति परिवर्तनों से वे भावुक हो जाते थे। इस बात को स्वीकारते हुए वे लिखते हैं –
“यद्यपि कवियों की भाँति हर फूल पत्ते को देखकर मुग्ध होने लायक हृदय विधाता ने नहीं दिया है, पर नितांत ढूँठ भी नहीं हैं। शिरीष के पुष्प मेरे मानस में थोडा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।” निबंधकार का मानना है कि व्यक्तियों की तरह शिरीष का पेड़ भी भावुक होता है। उसमें भी संवेदनाएँ और भावनाएँ भरी होती हैं – “एक-एक बार मुझे मालूम होता है। कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत हैं। दुख हो या सुख वह हार नहीं मानता न ऊधो को लेना न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं।” अतः निबंधकार ने इस निबंध में भावात्मकता का गुण भरा है।
प्रश्न 5.जीवन शक्ति का संदेश इस पाठ में छिपा हुआ है? कैसे? स्पष्ट करें।उत्तर:द्विवेदी जी ने इस निबंध में फूलों के द्वारा जीवन शक्ति की ओर संकेत किया है। लेखक बताता है कि शिरीष का फूल हर हाल में स्वयं के अस्तित्व को बनाए रखता है। इस पर गरमी-लू आदि का कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि इसमें जीवन जीने की लालसा है। इसमें आशा का संचार होता रहता है। यह फूल तो समय को जीतने की क्षमता रखता है। विपरीत परिस्थितियों में जो जीना सीख ले उसी का जीवन सार्थक है। शिरीष के फूलों की जीवन शक्ति की ओर संकेत करते हुए निबंधकार ने लिखा है-
“फूल है शिरीष। वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गयो तो भरे भादों में भी निर्यात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है।” इस प्रकार निबंधकार ने शिरीष के फूल के माध्यम से जीवन को हर हाल में जीने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कई भावों को इस निबंध में प्रस्तुत किया है। यह निबंध संवेदनाओं से भरपूर है। इन संवेदनाओं और भावनाओं का विस्तारपूर्वक चित्रण आचार्य जी ने किया है। यह एक श्रेष्ठ निबंध है।
प्रश्न 6.निबंधकार का अधिकार लिप्सा से क्या आशय है?उत्तर:इस निबंध में एक प्रसंग में निबंधकार ने अधिकार लिप्सा की बात कही है। इस तथ्य ने भी प्रस्तुत निबंध के लालित्य को बढ़ाया है। निबंधकार कहता है कि प्रत्येक में अधिकार लिप्सा होनी चाहिए लेकिन अधिकार लिप्सा का अर्थ यह है। कि जीवनभर आप एक ही जगह जमे रहो। दूसरों को भी मौका देना चाहिए ताकि उनकी योग्यता को सिद्ध किया जा सके। “वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पुत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह लड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की याद आती है जो किसी प्रकार ज़माने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं। मैं सोचता हूँ पुराने की यह अधिकार लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती?” इस तरह निबंधकार ने अधिकार भावना को नए अर्थों में प्रस्तुत कर इस निबंध की लालित्य योजना को प्रभावी बना दिया है।
प्रश्न 7.व्यंग्यात्मकता इस निबंध की मूल चेतना है। प्रस्तुत पाठ के आलोक में इस पर प्रकाश डालिए।उत्तर:इस तत्व का प्रयोग करके निबंधकार ने अपने निबंध को बोझिल होने से बचा लिया है। डॉ. सक्सेना के शब्दों में आपकी रचना पद्धति में कहीं-कहीं व्यंग्य एवं विनोद भी विद्यमान है। आपको यह व्यंग्य अधिक कटु एवं तीखा नहीं होता किंतु मर्मस्पर्शी होता है और हृदय को सीधी चोट न पहुँचाकर स्थायी प्रभाव डालने वाला होता है। परंतु निबंध में व्यंग्य तत्व का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। द्विवेदी जी ने शिरीष के पेड़ की शाखाओं की कमजोरी और कवियों के मोटापे पर व्यंग्य करते हुए लिखा है-
यद्यपि पुराने कवि बहुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे पर शिरीष भी क्या बुरा है? डाल इसकी अपेक्षाकृत कमज़ोर ज़रूर होती हैं पर उसमें झूलने वालियों का वजन भी तो ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वज़न का एकदम ख्याल नहीं करते। मैं तुंदिल नरपतियों की बात नहीं कर रहा हूँ, वे चाहें तो लोहे का पेड़ लगवा लें। इस निबंध की एक और विशेषता है-स्पष्टता। विवेदी जी ने जो विचार अथवा भाव प्रकट किए हैं उनमें स्पष्टता का गुण विद्यमान है। उनके भावों में कोई उलझाव या बिखराव नहीं है।
प्रश्न 8.शिरीष, अवधूत और गांधी जी एक-दूसरे के समान कैसे हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2013)उत्तर:शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत की तरह, बाहय परिवर्तन धूप, वर्षा, आँधी, लू-सब में शांत बना रहता है तथा पुष्पित-पल्लवित होता रहता है। इनकी तरह ही महात्मा गांधी भी मारकाट, अग्निदाह, लूटपाट, खून खच्चर को बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक गांधी जी को याद करता है। जिस तरह शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल व कठोर हो सकता है, उसी तरह महात्मा गांधी भी कोमल-कठोर व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।
प्रश्न 9.‘हाय वह अवधूत आज कहाँ है!’ लेखक ने यहाँ किसे स्मरण किया है? क्यों? (CBSE-2016)अथवाहजारी प्रसाद विवेदी ने शिरीष के संदर्भ में महात्मा गांधी का स्मरण क्यों किया है? साम्य निरूपित कीजिए। (CBSE-2016)उत्तर:‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!’-लेखक ने यहाँ महात्मा गांधी का स्मरण किया है। शिरीष भयंकर गरमी व लू में भी सरस वे फूलदार बना रहता है। गांधी जी अपने चारों छाए अग्निकांड और खून-खच्चर के बीच स्नेही, अहिंसक व उदार दोनों एक समान कठिनाइयों में जीने वाले सरस व्यक्तित्व हैं।
इन्हें भी जानें
अशोक वृक्ष – भारतीय साहित्य में बहुचर्चित एक सदाबहार वृक्ष। इसके पत्ते आम के पत्तों से मिलते हैं। वसंत-ऋतु में इसके फूल लाल-लाल गुच्छों के रूप में आते हैं। इसे कामदेव के पाँच पुष्पवाणों में से एक माना गया है इसके फल सेम की तरह होते हैं। इसके सांस्कृतिक महत्त्व का अच्छा चित्रण हजारी प्रसाद विवेदी ने निबंध अशोक के फूल में किया है। भ्रमवश आज एक-दूसरे वृक्ष को अशोक कहा जाता रहा है और मूल पेड़ (जिसका वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है।) को लोग भूल गए हैं। इसकी एक जाति श्वेत फूलों वाली भी होती है।
अरिष्ठ वृक्ष – रीठा नामक वृक्ष। इसके पत्ते चमकीले हरे होते हैं। फल को सुखाकर उसके छिलके का चूर्ण बनाया जाता है, बाल धोने एवं कपड़े साफ़ करने के काम में आता है। पेड़ की डालियों व तने पर जगह-जगह काँटे उभरे होते हैं, जो बाल और कपड़े धोने के काम भी आता है।
आरग्वध वृक्ष – लोक में उसे अमलतास कहा जाता है। भीषण गरमी की दशा में जब इसका पेड़ पत्रहीन ढूँठ सा हो जाता है, पर इस पर पीले-पीले पुष्प गुच्छे लटके हुए मनोहर दृश्य उपस्थित करते हैं। इसके फल लगभग एक डेढ़ फुट के बेलनाकार होते हैं। जिसमें कठोर बीज होते हैं।
शिरीष वृक्ष – लोक में सिरिस नाम से मशहूर पर एक मैदानी इलाके का वृक्ष है। आकार में विशाल होता है पर पत्ते बहुत छोटे-छोटे होते हैं। इसके फूलों में पंखुड़ियों की जगह रेशे-रेशे होते हैं।
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margdarsanme · 4 years
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 17 Shirish ke Phool
NCERT Class 12 Hindi :: Chapter 17 Shirish ke Phool 
(शिरीष के फूल) 
(गद्य भाग)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत ( संन्यासी ) की तरह क्यों माना है? (CBSE-2010)अथवाशिरीष को ‘अद्भुत अवधूत’ क्यों कहा गया है? (CBSE-2014, 2017)उत्तर:लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा फलता-फूलता है। वह कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-रस बनाए रखता है। इसी तरह शिरीष का वृक्ष है। वह भयंकर गरमी, उमस, लू आदि के बीच सरस रहता है। वसंत में वह लहक उठता है तथा भादों मास तक फलता-फूलता रहता है। उसका पूरा शरीर फूलों से लदा रहता है। उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, तब भी शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है, वह काल व समय को जीतकर लहलहाता रहता है।
प्रश्न 2.हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी जरूरी हो जाती है – प्रस्तुत पीठ के आधार पर स्पष्ट करें। (सैंपल पेपर-2013) (CBSE-2017)उत्तर:परवर्ती कवि ये समझते रहे कि शिरीष के फूलों में सब कुछ कोमल है अर्थात् वह तो कोमलता का आगार हैं लेकिन विवेदी जी कहते हैं कि शिरीष के फूलों में कोमलता तो होती है लेकिन उनका व्यवहार (फल) बहुत कठोर होता है। अर्थात् वह हृदय से तो कोमल है किंतु व्यवहार से कठोर है। इसलिए हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार का कठोर होना अनिवार्य हो जाता है।
प्रश्न 3.विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें। (CBSE-2008)उत्तर:द्रविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। शिरीष का वृक्ष भयंकर गरमी सहता है, फिर भी सरस रहता है। उमस व लू में भी वह फूलों से लदा रहता है। इसी तरह जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आएँ मनुष्य को सदैव संघर्ष करते रहना चाहिए। उसे हार नहीं माननी चाहिए। भ्रष्टाचार, अत्याचार, दंगे, लूटपाट के बावजूद उसे निराश नहीं होना चाहिए तथा प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाते रहना चाहिए।
प्रश्न 4.हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?उत्तर:लेखक कहता है कि आज शिरीष जैसे अवधूत नहीं रहे। जब-जब वह शिरीष को देखता है तब-तब उसके मन में ‘हूक-सी’ उठती है। वह कहता है कि प्रेरणादायी और आत्मविश्वास रखने वाले अब नहीं रहे। अब तो केवल देह को प्राथमिकता देने वाले लोग रह रहे हैं। उनमें आत्मविश्वास बिलकुल नहीं है। वे शरीर को महत्त्व देते हैं, मन को नहीं। इसीलिए लेखक ने शिरीष के माध्यम से वर्तमान सभ्यता का वर्णन किया है।
प्रश्न 5.कवि ( साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी की स्थित प्रज्ञता और विदग्ध प्रेम का हृदय एक साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक समझाइए।उत्तर:विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य-कम के लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया हैं/विस्तारपूर्वक समझाएँ/ उत्तर लेखक का मानना है कि कवि के लिए अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय का होना आवश्यक है। उनका कहना है कि महान कवि वही बन सकता है जो अनासक्त योगी की तरह स्थिर-प्रज्ञ तथा विदग्ध प्रेमी की तरह सहृदय हो। केवल छंद बना लेने से कवि तो हो सकता है, किंतु महाकवि नहीं हो सकता। संसार की अधिकतर सरस रचनाएँ अवधूतों के मुँह से ही निकलती हैं। लेखक कबीर व कालिदास को महान मानता है क्योंकि उनमें अनासक्ति का भाव है। जो व्यक्ति शिरीष के समान मस���त, बेपरवाह, फक्कड़, किंतु सरस व मादक है, वही महान कवि बन सकता है। सौंदर्य की परख एक सच्चा प्रेमी ही कर सकता है। वह केवल आनंद की अनुभूति के लिए सौंदर्य की उपासना करता है। कालिदास में यह गुण भी विद्यमान था।
प्रश्न 6.सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।उत्तर:परिवर्तन प्रकृति का नियम है। मनुष्य को समयानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए। एक ही लीक पर चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। शिरीष के फूल हमें यही सिखाते हैं। वह हर मौसम में अपने को और अपने स्वभाव को बदल लेता है। इसी कारण वह निर्लिप्त भाव से वसंत, आषाढ़ और भादों में खिला रहता है। प्रचंड लू और उमस को सहन करता है। लेकिन फिर भी खिला रहता है। फूलों के माध्यम से कोमल व्यवहार करता है तो फलों के माध्यम से कठोर व्यवहार। इसीलिए वह दीर्घजीवी बन जाता है। मनुष्य को भी ऐसा ही करना चाहिए।
प्रश्न 7.आशय स्पष्ट कीजिए
दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं, वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा पाएँगे। भोले हैं वे। हिलते डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हैं। जमे कि मरे।
जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?…मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तों, तो फक्कड़ बनो।
फल हो या पेड़, वह अपने-आप में समाप्त नहीं है। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अंगुली है। वह इशारा है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि संसार में जीवनी शक्ति और सब जगह समाई कालरूपी अग्नि में निरंतर संघर्ष चलता रहता है। बुद्धिमान निरंतर संघर्ष करते हुए जीवनयापन करते हैं। संसार में मूर्ख व्यक्ति यह समझते हैं कि वे जहाँ हैं, वहीं देर तक डटे रहेंगे तो कालदेवता की नजर से बच जाएँगे। वे भोले हैं। उन्हें यह नहीं पता कि एक जगह बैठे रहने से मनुष्य का विनाश हो जाता है। लेखक गतिशीलता को ही जीवन मानता है। जो व्यक्ति हिलते-डुलते रहते हैं, स्थान बदलते रहते हैं तथा प्रगति की ओर बढ़ते रहते हैं, वे ही मृत्यु से बच सकते हैं। लेखक जड़ता को मृत्यु के समान मानता है तथा गतिशीलता को जीवन।
लेखक कहता है कि कवि को सबसे पहले अनासक्त होना चाहिए अर्थात तटस्थ भाव से निरीक्षण करने वाला होना चाहिए। उसे फक्कड़ होना चाहिए अर्थात उसे सांसारिक आकर्षणों से दूर रहना चाहिए। जो अपने किए कार्यों का लेखा-जोखा करता है, वह कवि नहीं बन सकता। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे फक्कड़ बनना चाहिए।
लेखक कहता है कि फल व पेड़-दोनों का अपना अस्तित्व है। वे अपने-आप में समाप्त नहीं होते। जीवन अनंत है। फल व पेड़, वे किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई औगुली हैं। यह संकेत है कि जीवन में अभी बहुत कुछ है। सुंदरता व सृजन की सीमा नहीं है। हर युग में सौंदर्य व रचना का स्वरूप अलग हो जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.शिरीष के पुष्य को शीतपुष्प भी कहा जाता है। ज्येष्ठ माह की प्रचंड गरमी में फूलने वाले फूल को शीतपुष्प संज्ञा किस आधार पर दी गई होगी?उत्तर:शिरीष का फूल प्रचंड गरमी में भी खिला रहता है। वह लू और उमस में भी जोर शोर से खिलता है अर्थात् विषम परिस्थितियों में भी वह समता का भाव रखता है। इसीलिए लेखक ने शिरीष को शीतपुष्प का अर्थ है ठंडक देने वाला फूल और शिरीष का फूल भयंकर गरमी में भी ठंडक प्रदान करता है।
प्रश्न 2.कोमल और कठोर दोनों भाव किस प्रकार गांधी जी के व्यक्तित्व की विशेषता बन गए?उत्तर:गांधी जी सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि कोमल भावों से युक्त थे। वे दूसरे के कष्टों से द्रवित हो जाते थे। वे अंग्रेजों के प्रति भी कठोर न थे। दूसरी तरफ वे अनुशासन व नियमों के मामले में कठोर थे। वे अपने अधिकारों के लिए डटकर संघर्ष करते थे तथा किसी भी दबाव के आगे झुकते नहीं थे। ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने अपनी दृढ़ता से ढहाया था। इस तरह गांधी के व्यक्तित्व की विशेषता-कोमल व कठोर भाव बन गए थे।
प्रश्न 3.आजकल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्ज़ी व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।उत्तर:वाद-विश्व के सभी प्रमुख देशों में भारतीय फूलों की माँग सबसे ज्यादा है। टनों की मात्रा में भारतीय फूल अन्य देशों में निर्यात हो रहे, जिस कारण भारत सरकार के राजस्व में भी अतिशय वृद्धि हो रही है। भारतीय फूलों का स्तर बहुत ऊँचा है। इस क्वालिटी और इतने प्रकार के फूल अन्य स्थानों पर मिलना संभव-सा प्रतीत नहीं होता। इसकी खेती करके कुछ ही समय में अच्छा लाभ अर्जित किया जा सकता है। इसीलिए किसान लोग फूलों की खेती को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं। विवाद-चूँकि भारतीय फूल विदेश में निर्यात हो रहे हैं इसलिए लोगों को आकर्षण फूलों की खेती में ज्यादा हो गया है। इस कारण वे मूल फ़सलों का उत्पादन नहीं कर रहे जिससे अनिवार्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। अन्न उत्पादन लगातार कम होता जा रहा है। अपने थोड़े-से लाभ के लिए किसान लोग करोड़ों देशवासियों को महँगी वस्तुएँ खरीदने पर मजबूर कर रहे हैं।
प्रश्न 4.हज़ारी प्रसाद विवेदी ने इस पाठ की तरह ही वनस्पतियों के संदर्भ में कई व्यक्तित्व व्यंजक ललित निबंध और लिखें हैं- कुटज, आम फिर बौरा गए, अशोक के फूल, देवदारु आदि। शिक्षक की सहायता से उन्हें ढूंढ़िए और पढ़िए।उत्तर:विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 5.विवेदी जी की वनस्पतियों में ऐसी रुचि का क्या कारण हो सकता है? आज साहित्यिक रचना फलक पर प्रकृति की उपस्थिति न्यून से न्यून होती जा रही है। तब ऐसी रचनाओं का महत्त्व बढ़ गया है। प्रकृति के प्रति आपका दृष्टिकोण रुचिपूर्ण या उपेक्षामय है? इसका मूल्यांकन करें।उत्तर:विवेदी जी का जीवन प्रकृति के उन्मुक्त आँगन में ज्यादा रमा है। प्रकृति उनके लिए शक्ति और प्रेरणादायी रही है इसीलिए उन्होंने अपने साहित्य में प्रकृति का चित्रण किया है। वे वनस्पतियाँ हमारे जीवन का आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है। कवि क्योंकि कुछ ज्यादा ही भावुक या संवेदनशील होता है, इसीलिए वह प्रकृति के प्रति ज्यादा संजीदा हो जाता है। मैं स्वयं प्रकृति के प्रति रुचिपूर्ण रवैया रखता हूँ। प्रकृति को जीवन शक्ति के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। प्रकृति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए पंत जी कहते हैं –छोड़ दूमों की मृदुल छायाबदले! तेरे बाल जाल में कैसे उलझा हूँ लोचन?यदि हम प्रकृति को सहेजकर रखेंगे तो हमारा जीवन सुगम और तनाव रहित होगा। प्रकृति संजीवनी है। अतः इसकी उपेक्षा करना अपने अस्तित्व को खतरे में डालने जैसा है।
भाषा की बात
प्रश्न 1.दस दिन फूले फिर खंखड़-खंखड़ इस लोकोक्ति से मिलते-जुलते कई वाक्यांश पाठ में हैं, उन्हें छाँट कर लिखें।उत्तर:
ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले।
मेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।
वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें।
किसी प्रकार जमाने का रुख नही��� पहचानते।
धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना।
न ऊधो का लेना न माधो का देना।
कालदेवता की आँख बचा जाएँ।
रह-रहकर उसका मन खीझ उठता था।
खून-खच्चर का बवंडर बह गया।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.निबंधकार ने किस तरह कोमल और कठोर दोनों भावों का सम्मिश्रण शिरीष के माध्यम से किया है?उत्तर:प्रत्येक वस्तु अथवा व्यक्ति में दो भाव एक साथ विद्यमान रहते हैं। उसमें कोमलता भी रहती है और कठोरता भी। संवेदनशील प्राणी कोमल भावों से युक्त होगा लेकिन समाज में अपने को बनाए रखने के लिए कठोर भावों का होना भी अनिवार्य है। ठीक यही बात शिरीष के फूल पर भी लागू होती है। यद्यपि संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूल को अत्यंत कोमल माना गया है तथापि लेखक का कहना है कि इसके फल बहुत कठोर (मजबूत) होते हैं। वे नए फूलों के आ जाने पर भी नहीं निकलते, वहीं डटे रहते हैं।
कोमलता और कठोरता के माध्यम से इस निबंध के लालित्य को इन शब्दों में निबंधकार ने प्रस्तुत किया है-”शिरीष का फूल संस्कृत साहित्य में बहुत कोमल माना गया है। मेरा अनुमान है कि कालिदास ने यह बात शुरू-शुरू में प्रचार की होगी। कह गए हैं, शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं। …. शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब कुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल, पत्ते मिलकर धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं।
प्रश्न 2.‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध किस श्रेणी का निबंध है? इस पर प्रकाश डालिए?उत्तर:हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कई विषयों पर निबंध लिखे हैं। उनके निबंधों को कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। उन्होंने ज्यादातर ललित निबंध लिखें हैं। अपनी निबंध कला से आचार्य द्विवेदी ने हिंदी ललित निबंध साहित्य को विकसित किया है। उनके साहित्यिक निबंध ही ललित निबंध हैं। अनेक विद्वान भी ऐसा ही मानते हैं। ललित निबंध क्या है इस बारे में डॉ. बैजनाथ सिंहल ने लिखा है-शोधार्थी ललित निबंध को सामान्यतः जिसे हम निबंध कहते हैं। ऊलगते हुए केवल एक ही आधार को अपनाते दिखाई देते हैं-यह आधार है लालित्य का। ललित शब्द को लेकर किसी विधा के अंतर्गत एक अलग विधा को बनाया जाना स्वीकार नहीं हो सकता। लालित्य साहित्य मात्र में रहता है तथा ललित कलाओं में साहित्य लालित्य के कारण ही सर्वोच्च कला है। इसलिए लालित्य तो साहित्य का अंतवर्ती तत्व है। डॉ० हजारी प्रसाद का ‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध भी एक ललित निबंध है।
प्रश्न 3.प्रकृति के माध्यम से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लालित्य दिखाने का सफल प्रयास किया है, सिद्ध करें।उत्तर:‘शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध की रचना का मूलाधार प्रकृति है। निबंधकार ने प्रकृति को आधार बनाकर इस निबंध की रचना की है। इसलिए इस निबंध में लेखक ने प्रकृति के माध्यम से लालित्य दिखाने का सफल प्रयास किया है। प्रकृति का इतना मनोरम और यथार्थ चित्रण निबंध को लालित्य से परिपूर्ण कर देता है। लेखक ने बड़े सुंदर शब्दों में प्रकृति को चित्रित किया है। शिरीष के फूल का वर्णन इस प्रकार किया है-
“वसंत के आगमन से लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रहता रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्यात फूलता रहता है। …एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष का एक अद्भुत अवधूत है। दुख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पति शास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। ज़रूर खींचता होगा, नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल ततुंजाल और ऐसे सकुमार केसर को कैसे उगा सकता था?”
प्रश्न 4.यह निबंध भावों की गंभीरता को समुच्चय जान पड़ता है। प्रस्तुत पाठ के आधार पर इस कथन की समीक्षा कीजिए।उत्तर:विचारों के साथ ही भावों की प्रधानता भी इस निबंध में मिलती है। भाव तत्व निबंध का प्रमुख तत्व है। इसी तत्व के आधार पर निबंधकार मूल भावना या चेतना प्रस्तुत कर सकता है। वातावरण का पूर्ण ज्ञान उन्हें था। कवि न होने के बावजूद भी प्रकृति को चित्रण भावात्मक ढंग से करते थे। प्रकृति के प्रत्येक परिवर्तन का उन पर गहरा प्रभाव होता था। वे भावुक थे इसलिए प्रकृति में होने वाले नित प्रति परिवर्तनों से वे भावुक हो जाते थे। इस बात को स्वीकारते हुए वे लिखते हैं –
“यद्यपि कवियों की भाँति हर फूल पत्ते को देखकर मुग्ध होने लायक हृदय विधाता ने नहीं दिया है, पर नितांत ढूँठ भी नहीं हैं। शिरीष के पुष्प मेरे मानस में थोडा हिल्लोल ज़रूर पैदा करते हैं।” निबंधकार का मानना है कि व्यक्तियों की तरह शिरीष का पेड़ भी भावुक होता है। उसमें भी संवेदनाएँ और भावनाएँ भरी होती हैं – “एक-एक बार मुझे मालूम होता है। कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत हैं। दुख हो या सुख वह हार नहीं मानता न ऊधो को लेना न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं तब भी यह हज़रत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं।” अतः निबंधकार ने इस निबंध में भावात्मकता का गुण भरा है।
प्रश्न 5.जीवन शक्ति का संदेश इस पाठ में छिपा हुआ है? कैसे? स्पष्ट करें।उत्तर:द्विवेदी जी ने इस निबंध में फूलों के द्वारा जीवन शक्ति की ओर संकेत किया है। लेखक बताता है कि शिरीष का फूल हर हाल में स्वयं के अस्तित्व को बनाए रखता है। इस पर गरमी-लू आदि का कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि इसमें जीवन जीने की लालसा है। इसमें आशा का संचार होता रहता है। यह फूल तो समय को जीतने की क्षमता रखता है। विपरीत परिस्थितियों में जो जीना सीख ले उसी का जीवन सार्थक है। शिरीष के फूलों की जीवन शक्ति की ओर संकेत करते हुए निबंधकार ने लिखा है-
“फूल है शिरीष। वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गयो तो भरे भादों में भी निर्यात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है।” इस प्रकार निबंधकार ने शिरीष के फूल के माध्यम से जीवन को हर हाल में जीने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कई भावों को इस निबंध में प्रस्तुत किया है। यह निबंध संवेदनाओं से भरपूर है। इन संवेदनाओं और भावनाओं का विस्तारपूर्वक चित्रण आचार्य जी ने किया है। यह एक श्रेष्ठ निबंध है।
प्रश्न 6.निबंधकार का अधिकार लिप्सा से क्या आशय है?उत्तर:इस निबंध में एक प्रसंग में निबंधकार ने अधिकार लिप्सा की बात कही है। इस तथ्य ने भी प्रस्तुत निबंध के लालित्य को बढ़ाया है। निबंधकार कहता है कि प्रत्येक में अधिकार लिप्सा होनी चाहिए लेकिन अधिकार लिप्सा का अर्थ यह है। कि जीवनभर आप एक ही जगह जमे रहो। दूसरों को भी मौका देना चाहिए ताकि उनकी योग्यता को सिद्ध किया जा सके। “वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पुत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह लड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की याद आती है जो किसी प्रकार ज़माने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं। मैं सोचता हूँ पुराने की यह अधिकार लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती?” इस तरह निबंधकार ने अधिकार भावना को नए अर्थों में प्रस्तुत कर इस निबंध की लालित्य योजना को प्रभावी बना दिया है।
प्रश्न 7.व्यंग्यात्मकता इस निबंध की मूल चेतना है। प्रस्तुत पाठ के आलोक में इस पर प्रकाश डालिए।उत्तर:इस तत्व का प्रयोग करके निबंधकार ने अपने निबंध को बोझिल होने से बचा लिया है। डॉ. सक्सेना के शब्दों में आपकी रचना पद्धति में कहीं-कहीं व्यंग्य एवं विनोद भी विद्यमान है। आपको यह व्यंग्य अधिक कटु एवं तीखा नहीं होता किंतु मर्मस्पर्शी होता है और हृदय को सीधी चोट न पहुँचाकर स्थायी प्रभाव डालने वाला होता है। परंतु निबंध में व्यंग्य तत्व का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। द्विवेदी जी ने शिरीष के पेड़ की शाखाओं की कमजोरी और कवियों के मोटापे पर व्यंग्य करते हुए लिखा है-
यद्यपि पुराने कवि बहुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे पर शिरीष भी क्या बुरा है? डाल इसकी अपेक्षाकृत कमज़ोर ज़रूर होती हैं पर उसमें झूलने वालियों का वजन भी तो ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वज़न का एकदम ख्याल नहीं करते। मैं तुंदिल नरपतियों की बात नहीं कर रहा हूँ, वे चाहें तो लोहे का पेड़ लगवा लें। इस निबंध की एक और विशेषता है-स्पष्टता। विवेदी जी ने जो विचार अथवा भाव प्रकट किए हैं उनमें स्पष्टता का गुण विद्यमान है। उनके भावों में कोई उलझाव या बिखराव नहीं है।
प्रश्न 8.शिरीष, अवधूत और गांधी जी एक-दूसरे के समान कैसे हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (CBSE-2013)उत्तर:शिरीष के अवधूत रूप के कारण लेखक को महात्मा गांधी की याद आती है। शिरीष तरु अवधूत की तरह, बाहय परिवर्तन धूप, वर्षा, आँधी, लू-सब में शांत बना रहता है तथा पुष्पित-पल्लवित होता रहता है। इनकी तरह ही महात्मा गांधी भी मारकाट, अग्निदाह, लूटपाट, खून खच्चर को बवंडर के बीच स्थिर रह सके थे। इस समानता के कारण लेखक गांधी जी को याद करता है। जिस तरह शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल व कठोर हो सकता है, उसी तरह महात्मा गांधी भी कोमल-कठोर व्यक्तित्व वाले थे। यह वृक्ष और मनुष्य दोनों ही अवधूत हैं।
प्रश्न 9.‘हाय वह अवधूत आज कहाँ है!’ लेखक ने यहाँ किसे स्मरण किया है? क्यों? (CBSE-2016)अथवाहजारी प्रसाद विवेदी ने शिरीष के संदर्भ में महात्मा गांधी का स्मरण क्यों किया है? साम्य निरूपित कीजिए। (CBSE-2016)उत्तर:‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!’-लेखक ने यहाँ महात्मा गांधी का स्मरण किया है। शिरीष भयंकर गरमी व लू में भी सरस वे फूलदार बना रहता है। गांधी जी अपने चारों छाए अग्निकांड और खून-खच्चर के बीच स्नेही, अहिंसक व उदार दोनों एक समान कठिनाइयों में जीने वाले सरस व्यक्तित्व हैं।
इन्हें भी जानें
अशोक वृक्ष – भारतीय साहित्य में बहुचर्चित एक सदाबहार वृक्ष। इसके पत्ते आम के पत्तों से मिलते हैं। वसंत-ऋतु में इसके फूल लाल-लाल गुच्छों के रूप में आते हैं। इसे कामदेव के पाँच पुष्पवाणों में से एक माना गया है इसके फल सेम की तरह होते हैं। इसके सांस्कृतिक महत्त्व का अच्छा चित्रण हजारी प्रसाद विवेदी ने निबंध अशोक के फूल में किया है। भ्रमवश आज एक-दूसरे वृक्ष को अशोक कहा जाता रहा है और मूल पेड़ (जिसका वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है।) को लोग भूल गए हैं। इसकी एक जाति श्वेत फूलों वाली भी होती है।
अरिष्ठ वृक्ष – रीठा नामक वृक्ष। इसके पत्ते चमकीले हरे होते हैं। फल को सुखाकर उसके छिलके का चूर्ण बनाया जाता है, बाल धोने एवं कपड़े साफ़ करने के काम में आता है। पेड़ की डालियों व तने पर जगह-जगह काँटे उभरे होते हैं, जो बाल और कपड़े धोने के काम भी आता है।
आरग्वध वृक्ष – लोक में उसे अमलतास कहा जाता है। भीषण गरमी की दशा में जब इसका पेड़ पत्रहीन ढूँठ सा हो जाता है, पर इस पर पीले-पीले पुष्प गुच्छे लटके हुए मनोहर दृश्य उपस्थित करते हैं। इसके फल लगभग एक डेढ़ फुट के बेलनाकार होते हैं। जिसमें कठोर बीज होते हैं।
शिरीष वृक्ष – लोक में सिरिस नाम से मशहूर पर एक मैदानी इलाके का वृक्ष है। आकार में विशाल होता है पर पत्ते बहुत छोटे-छोटे होते हैं। इसके फूलों में पंखुड़ियों की जगह रेशे-रेशे होते हैं।
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