Home Remedies For Hair Fall:सरसों के तेल में मिलाकर लगाएं ये खास चीज, बालों पर होगा जादुई असर
Home Remedies For Hair Fall:सरसों के तेल में मिलाकर लगाएं ये खास चीज, बालों पर होगा जादुई असर
जादुई सरसों का हर्बल तेल पकाने की विधि:आपके बेहतर होने की स्थिति में अपडेट होने की स्थिति में अपडेट होने की स्थिति में अपडेट होने की स्थिति खराब होगी। लाइफ़ की अच्छी देखभाल के लिए आपकी अच्छी देखभाल के लिए आपकी अच्छी देखभाल के तरीके आपकी पोस्ट की गुणवत्ता अच्छी होगी। औषधीय गुणों से भरपूर है। आइए kask हैं क kthama इसे इसे kask thay rasak में kasak yana yasa सही सही
सौंदर्य प्रसाधनों के लिए…
View On WordPress
0 notes
mahadevi verma
7. देशगीत : अनुरागमयी वरदानमयी
अनुरागमयी वरदानमयी
भारत जननी भारत माता!
मस्तक पर शोभित शतदल सा
यह हिमगिरि है, शोभा पाता,
नीलम-मोती की माला सा
गंगा-यमुना जल लहराता,
वात्सल्यमयी तू स्नेहमयी
भारत जननी भारत माता।
धानी दुकूल यह फूलों की-
बूटी से सज्जित फहराता,
पोंछने स्वेद की बूँदे ही
यह मलय पवन फिर-फिर आता।
सौंदर्यमयी श्रृंगारमयी
भारत जननी भारत माता।
सूरज की झारी औ किरणों
की गूँथी लेकर मालायें,
तेरे पग पूजन को आतीं
सागर लहरों की बालाएँ।
तू तपोमयी तू सिद्धमयी
भारत जननी भारत माता!
कहाँ गया वह श्यामल बादल!
कहाँ गया वह श्यामल बादल।
जनक मिला था जिसको सागर,
सुधा सुधाकर मिले सहोदर,
चढा सोम के उच्चशिखर तक
वात सङ्ग चञ्चल। !
कहाँ गया वह श्यामल बादल।
इन्द्रधनुष परिधान श्याम तन,
किरणों के पहने आभूषण,
पलकों में अगणित सपने ले
विद्युत् के झलमल।
कहाँ गया वह श्यामल बादल।
तृषित धरा ने इसे पुकारा,
विकल दृष्ठि से इसे निहारा,
उतर पडा वह भू पर लेकर
उर में करुणा नयनों में जल।
कहाँ गया वह श्यामल बादल
बारहमासा
(१)
मां कहती अषाढ़ आया है
काले काले मेघ घिर रहे,
रिमझिम बून्दें बरस रही हैं
मोर नाचते हुए फिर रहे।
(२)
फिर यह तो सावन के दिन हैं
राखी भी आई चमकीली,
नन्हे को राखी बाँधी है
मां ने दी है चुन्नी नीली।
(३)
भादों ने बिजली चमका कर
गरज गरज कर हमें डराया,
क्या हमने चांई मांई कर
इसीलिए था इसे बुलाया ।
(४)
गन्ने चटका चटका कर मां
किन देवों को जगा रही है,
ये कुंवार तक सोते रहते
क्या इनको कुछ काम नहीं है ।
(५)
दिये तेल सब रामा लाया
हमने मिल बत्तियां बनाईं
कातिक में लक्ष्मी की पूजा
करके दीपावली जलाई
(६)
माँ कहती अगहन के दिन हैं
खेलो पर तुम दूर न जाना
हमको तो अपनी चिड़ियों की
खोज खबर है लेकर आना ।
(७)
पूस मास में सिली रजाई
निक्की रोजी बैठे छिप कर
रामा देख इन्हें पाएगा
कर देगा इन सबको बाहर ।
(८)
माघ मास सर्दी के दिन हैं
नहा नहा हम कांपे थर थर,
पर ठाकुर जी कभी न काँपे
उन्हें नहीं क्या सर्दी का डर ?
(९)
फागुन आया होली खेली
गुझियां खाईं जन्म मनाया,
क्या मैं पेट चीर कर निकली
या तारों से मुझे बुलाया ।
(१०)
चेत आ गया चैती गाओ
माँ कहती बसन्त आया है,
नये नये फूलों पत्तों से
बाग हमारा लहराया है ।
(११)
अब बैशाख आ गई गर्मी
खेलेंगे हम फव्वारों से,
बादल अब न आएँगे हमको
ठंडा करने बौछारों से।
(१२)
मां कहती अब जेठ तपेगा
निकलो मत घर बाहर दिन में,
हम कहते गौरइयां प्यासी
पानी तो रख दें आँगन में ।
बाबू जी कहते हैं इनको
नया बरस है पढ़ने भेजो,
माँ कहतीं ये तो छोटे हैं
इन्हें प्यार से यहीं सहेजो।
हम गुपचुप गुपचुप कहते हैं
हमने तो सब पढ़ डाला है,
और पढ़ाएगा क्या कोई
पंडित कहां कहां जाता है ?
0 notes
देश में 11 साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे खाद्य तेलों के दाम, बढ़ती महंगाई से परेशान जनता पर सरकार ने भी जताई चिंता
देश में 11 साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे खाद्य तेलों के दाम, बढ़ती महंगाई से परेशान जनता पर सरकार ने भी जताई चिंता
देश में 11 साल के स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले वित्तीय क्षेत्र के लिए, बढ़ने से किसान पर भी सरकार प्रभावित होगी।
Source link
View On WordPress
0 notes
रूस यूक्रेन युद्ध के अधिकारियों का कहना है कि भारत रियायती रूसी तेल और अन्य कमोडिटी खरीदने पर विचार कर रहा है:
रूस यूक्रेन युद्ध के अधिकारियों का कहना है कि भारत रियायती रूसी तेल और अन्य कमोडिटी खरीदने पर विचार कर रहा है:
दैत्य, अमर उजाला, नई दिल्ली
द्वारा प्रकाशित: दीप चतुर्वेदी
अपडेट किया गया सोम, 14 मार्च 2022 03:10 PM IST
सर
भारत रियायती रूसी तेल खरीदने पर विचार कर रहा है: है और टाइप करने के बीच में भी जारी और I अमेरिका के मौसम के मौसम में मौसम के मौसम में ऐसी चीजें होती हैं। इस बात पर विचार किया गया है कि इस तरह के विचार इस तरह के हैं। जो जैसा है वैसा ही है जैसे कि वे नए प्रकार की तरह हों।
खबर
खबर
वायुयान…
View On WordPress
0 notes
भविष्यपुराण, पद्म पुराण और महाभारत के मुताबिक अभ्यंग स्नान करने से उम्र बढ़ती है। अभ्यंग यानी तेल में औषधियों को मिलाकर मालिश करें और फिर नहाना चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मीजी सहित, यमराज और अन्य देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। विद्वानों का कहना है कि ऐसा करने से शरीर की गंदगी दूर होती है। आयुर्वेद का कहना है कि सरसों के तेल की मालिश करने से हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। महाभारत में कहा गया है कि सोम, मंगल, बुध और शनिवार को तेल मालिश करना फायदेमंद होता है।
इसके अलावा पूजा-पाठ और विशेष इच्छाएं पूरी करने के लिए भगवान भैरव, शनिदेव और हनुमानजी के मंदिर में तेल का दीपक लगाया जाता है। इसके साथ ही यमराज की प्रसन्नता के लिए घर की देहली पर भी सरसों के तेल का दीपक लगाया जाता है। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से घर में रहने वाले लोगों की उम्र बढ़ती है, साथ ही बीमारियां और परेशानियां भी दूर हो जाती है।
महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि
तैलाभ्यां गे रवौ ताप: सोमे शोभा कुजे मृति :।
बुधेधनं गुरौ हानि: शुझे दु:ख शनौ सुखम्॥
अर्थ - रविवार को तेल मालिश करने से ताप यानी गर्मी संबंधी रोग हो सकते हैं, सोमवार को शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि होती है, मंगलवार को तेल मालिश करने से मृत्यु भय दूर होता है, बुधवार को धन संबंधी कामों में लाभ मिल सकते हैं, गुरुवार तेल मालिश करने से हानि के योग बनते हैं, शुक्रवार को दु:ख और शनिवार को मालिश करने से सुख मिलता है।
व्यवस्थित होता है रक्त संचार
1 शरीर पर सरसों तेल से मालि श करने से रोम छिद्र खुले रहते हैं। तेल मालि श से हमारे शरीर का रक्त संचार भी व्यवस्थित चलता रहता है।
3 इसमें ओलिक एसिड और लीनोलिक एसिड पाया जाता है, जो बालों को बढ़ाने के लिए अच्छे होते हैं। यह बालों की जड़ों को पोषण देता है।
2 सरसों के तेल की मालिश करने से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। यह शरीर में गर्माहट पैदा करने में भी मददगार होता है।
4 इसमें विटामिन ई भी अच्छी मात्रा में होता है, जो त्वचा को अल्ट्रावाइलेट किरणों और प्रदूषण से बचाता है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
The importance of mustard oil has been told in Padma and Bhavishpurana, applying mustard oil on the body is also medicinal.
0 notes
भौम प्रदोष व्रत: मंगल दोष होता है शांत, पढ़ें व्रत कथा
भगवान शिव को समर्पित प्रदोष के व्रत का बहुत माहात्म्य है।ऐसा विश्वास है कि इस व्रत को रखने से महादेव प्रसन्न होते है। आज 5 मई दिन मंगलवार को भौम प्रदोष व्रत है। इसे मंगल प्रदोष भी कहा जाता है। मंगल दोष शांत होता है और दरिद्रता का नाश होता है। प्रदोष व्रत की कथा भी काफी पुण्य फल देने वाली मानी जाती है। जिस तरह हर महीने के दोनों पक्षों में एक-एक बार एकादशी का होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। यदि इन तिथियों को सोमवार हो तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगलवार हो तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार हो तो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। प्रदोष व्रत से शिव जी अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। जैसा की नाम से ही जाहिर है किसी भी तरह का दोष हो इस व्रत के करने से वह दोष खंडित हो जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की हर दिन की पूजा से अलग-अलग दोष खंडित होते हैं।इस दिन व्रत करने ���े सर्व कामना की सिद्धि प्राप्त होती है।आइए पढ़ते है भौम प्रदोष व्रत की कथा-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था। वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी। एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।
हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे।पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज।हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे। वृद्धा दुविधा में पड़ गई। अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज। लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया।वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई।इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ।लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी।हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया।
भौम प्रदोष का महत्व:-
दिनों के संयोग के कारण प्रदोष व्रत के नाम एवं उसके प्रभाव में अन्तर हो जाता है। भौम का अर्थ है मंगल और प्रदोष का अर्थ है त्रयोदशी तिथि। मंगलवार यानी को त्रयोदशी तिथि होने से इसको भौम प्रदोष कहा जाता है। इस दिन शिव जी और हनुमान जी दोनों की पूजा करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव जी की उपासना करने से हर दोष का नाश होता है वहीं हनुमान जी की पूजा करने से शत्रु बाधा शांत होती है और कर्ज से छुटकारा मिलता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन उपवास करने से गोदान के बराबर फल मिलता है और उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत करने वाले स्त्री-पुरुषों को व्रत के एक दिन पहले सायंकाल नियम पूर्वक व्रत ग्रहण करना चाहिए। व्रत के दिन प्रात: काल स्नान करके संकल्पपूर्वक दिन भर उपवास करना चाहिए। प्रदोष काल में मंदिर या घर में विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
शिव भक्तों में भौम प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इस व्रत से से हजारों यज्ञों को करने का फल प्राप्त होता है। इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है और दरिद्रता का नाश होता है। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का काफी महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इससे संतान की इच्छा रखने वालों के संतान की प्राप्ति होती है।
ऐसे करें पूजा:-
प्रदोष व्रत में प्रसाद, फूलमाला, फल, विल्वपत्र आदि लाकर यदि संभव हो तो पति-पत्नी एक साथ बैठकर शिव जी का पूजन करें। ईशान कोण में शिव जी की स्थापना करें। कुश के आसन पर बैठकर शिव जी के मन्त्रों का जाप करें। यदि मंत्र का ज्ञान ना हो तो ॐ नम: शिवाय का उच्चारण करते हुए पूजन करें। पूजन के उपरांत शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करें। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी दिन मंगल दोष की समस्या से मुक्ति के लिए शाम को हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाएं। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सुन्दरकाण्ड का पाठ करके उनसे मंगल दोष की समाप्ति की प्रार्थना करें। भौम प्रदोष पर प्रातःकाल लाल वस्त्र धारण करके हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए। उनको लाल फूलों की माला चढ़ाकर दीपक जलायें और गुड़ का भोग लगायें। इसके बाद संकटमोचन हनुमानाष्टक का 11 बार पाठ करें। अंत में हलवा पूरी का भोग लगाएं।
https://kisansatta.com/bhaum-pradosh-vrat-mangal-dosha-is-calm-read-fast-story34210-2/ #BhaumPradoshVratMangalDoshaIsCalm, #ReadFastStory, #ShouldFastThroughoutTheDay Bhaum Pradosh Vrat: Mangal dosha is calm, read fast story, Should fast throughout the day Religious, Trending #Religious, #Trending KISAN SATTA - सच का संकल्प
0 notes
विश्वचर्चित बनेका देश विशेष खानाका परिकारहरु
खानपानले मानिसलाई धेरै कुरामा असर पारिरहेको छ । कहिलेकाहीँ सही खानेकुरा छनोट गर्न नसक्दा विभिन्न स्वास्थ्य समस्याको सामना गर्नुपरेको उदाहरणहरु धेरैतिर देख्न सकिन्छ । अमेरिकी समाचार संस्था सीएनएनले विश्वका विभिन्न देशहरुको खानाको बारेमा रिपोर्ट तयार पारेको छ । कुन देशको खाना कस्तो हुन्छ त ?
१. इटाली
इटालीको खाना विश्वभर नै रुचाइन्छ । यहाँको खानामा गहुँको पिठो र गुलियो परिकार, टमाटरको सस पनि समावेश हुन्छन् । यस किसिमका खाना बनाउन पनि निकै सजिलो छ । केही चाउचाउ लिनुहोस्, त्यसमा तेल हाल्नुहोस्, लसुन लिनुहोस्, टमाटरको सस पनि लिनुहोस् र चाउचाउ बनाउनुहोस् । यसबाट एउटा पार्टी नै गर्न सकिन्छ । यहाँको खानामा मानिसहरुले सहज पनि अनुभूति गर्छन् । इटालीको पिजा, कफी, भैंसीको दुधबाट बनाइने ‘बफेलो मोजारेला’ निकै विशेष मानिन्छन् ।
२. चीन
खानेकुराको परिकारमा चीन निकै धनी मानिन्छ । चीनमा कुनै पनि खाना पकाउने र बिक्री गर्ने मात्र गर्दैनन् । उनीहरु यसलाई व्यावसायिक भावनाबाट हेर्छन् र आकर्षक बनाउँछन् । चीनमा स्थानीय खाना केही सस्तो पनि पाइन्छ । चीनमा सबै किसिमका मानिसलाई उचित हुने खाना पाइन्छ । चीनको सँुगुरको मासुको परिकार, मो:मो जस्तै परिकार डिम सम, रोस्ट गरिएको हाँस र सुँगुरको मासु तथा शार्कको सुप विशेष मानिन्छ ।
३. फ्रान्स
फ्रान्समा पेट भर्नका लागि मात्र नभएर वास्तविक स्वादका लागि बनाइन्छ । उनीहरु राम्रो खानामा विश्वास गर्छन् । फ्रान्समा वाइन र चीज निकै प्रख्यात छ । फ्रान्सको केकको एक प्रकारको माकारोन्स, पिठोको प्रयोग गरेर बनाइने बगेट, हाँसको मासुबाट बनाइने फोइग्रेसलगायत खाना विशेष मानिन्छ ।
४. स्पेन
खानेकुरालाई लिएर स्पेनको पनि छुट्टै परम्परा छ । यहाँ पनि छोटो छोटो समयमा खाइरहने संस्कृति छ । यहाँ मुख्य खानाको बीचबीचमा धेरैपटक स्न्याक्सको रुपमा विभिन्न परिकार खाने चलन छ । यहाँ फलफूलदेखि समुद्री खाना धेरै रुचाइन्छ । यहाँ सुँगुरको मासुबाट बनाइने जामोन एबेरिको, पिठोबाट बनाइने चुरोस र काँचो फलफूल तथा तरकारीबाट बनाइने एक प्रकारको सुप गाज्पाचो विशेष परिकार हुन् ।
५. जापान
जापानमा परिकारलाई कसरी विशेष बनाउने भन्ने ध्यान खाना पकाउनेलाई हुन्छ । त्यसैले जापानमा पाइने खानामा विशेष स्वाद र सन्तुष्टि पाइन्छ । जापानमा मौसमअनुसार उचित हुने गरी विभिन्न परिकारहरु बनाइन्छ । जापानमा मिसो सुप, माछाको नपकाइएको मासुकको परिकार सुशी र साशिमी, समुद्री खाना र तरकारीबाट बनाइएको परिकार टेम्पुरा र एक विशेष प्रजातिको माछा फुगुको मासु यहाँको विशेष परिकार हो ।
६. भारत
खानाको हिसाबमा भारतीय खानालाई पनि विश्वमा धेरै रुचाइन्छ । यहाँको खाना खाँदा यसको वास्तविक स्वाद र पाचन प्रणालीमा पनि सहयोग पुग्ने बताइन्छ । साकाहारी खानेकुरामा पनि भारत सबैभन्दा अगाडि छ । भारतको दाल, चामल र मासको मिश्रणबाट बनाइने डोसा, चिया विदेशीहरुले खुब रुचाउँछन् ।
७. ग्रीस
ग्रीसमा खाना खाँदै भ्रमणको गर्नुको छुट्टै आनन्द छ । जैतुनको तेल यहाँको सबैभन्दा धेरै निर्यात हुने कुरा हो । यहाँको इतिहाससँग जोडिएका अन्य खानाले पनि मानिसको मन जित्ने गरेको छ । यहाँको जैतुनको तेल प्रयोग गरिएको खाना, पीठो र चीज प्रयोग गरेर बनाइएको स्पानाकोपिटा, मासुबाट बनाइएको गायरोस र बन्दा, प्याज र चामलबाट बनाइएको लाचानोरिजो यहाँको विशेष खाना हुन् ।
८. थाइल्याण्ड
एकै खानाको धेरै किसिमको प्रकार हुनु थाइल्याण्डको विशेषता हो । चीन, मलेसिया, इन्डोनेसिया, म्यानमारजस्ता मुलुकको प्रभाव पनि केही मात्रामा परेको हुनाले यहाँको खानाको स्वाद पनि विशेष हुन्छ । स्थानीय थाई सुप टोम यम, स्थानीय तरकारी मसामान करी, मेवाको विशेष किसिमको सलाद सोम टाम र माछाको मासु प्ला सोम यहाँको विशेष खानेकुरा हुन् ।
९. मेक्सिको
खानेकुराको मामिलामा मेक्सिको पनि अगाडि छ । मेक्सिकोमा कुनै पनि मुलुकका परिकार पाइन्छ । यहाँ पुगेपछि तपाईंले आफ्नो रोजाइ अनुसारको खानेकुरा खान सक्नुहुन्छ । तर, पनि यहाँको खुर्सा, मसला, चकलेट प्रयोग गरेर बनाइएको मोल, सुँगुरको मासुबाट बनाइएको टाकोस अल पास्टर, पातमा बेरेर दिइने परिकार तमाले र तोस्तादाजस्ता खाने यहाँ विशेष मानिन्छ ।
0 notes
क्यों है 2019 का सावन खास ? बिल्वपत्र कैसे चढ़ायें?
मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़ : हर साल की तरह सावन का महीना , इस बार 17 जुलाई को आरंभ हो गया है और मानसून ने भी देश के विभिन्न भागों में अपना रंग दिखाया। श्रावण मास हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। संपूर्ण वातावरण शिवमय हो जाता है। प्रकृति भी अपने पूर्ण जोश में होती है।
परंतु ज्योतिषीय दृष्टि से इस साल श्रावण मास कुछ अलग है।
ऽ पहले तो यह कि इस बार सावन पूरे 30 दिन का है और इसमें 4 सोमवार पड़ेंगे।
ऽ 22 जुलाई को प्रथम सोमवार होगा तो 12 अगस्त को अंतिम।
ऽ पहले सोमवार, को ही श्रावण कृष्ण पंचमी है।
ऽ दूसरे सोमवार 29 जुलाई सोम प्रदोष व्रत होगा ।
ऽ तीसरे सोमवार, 5 अगस्त को नाग पंचमी पड़ेगी।
ऽ चौथा व अतिंम श्रावण का सोमवार 12 अगस्त को होगा।
ऽ इस मास में शुक्र अस्त रहने के कारण मांगलिक कार्य नहीं होंगे।
ऽ इसी श्रावण में सिद्धि योग, शुभ योग, पुष्यामृत योग, सर्वार्थ योग, अम्तसिद्धि योग आदि सब मिलेंगे जिनमें आराधना का विशेष फल मिलता है।
ऽ पहली अगस्त को हरियाली अमावस पर पंच महायोग लगभग सवा सौ साल बाद बन रहा है।
ऽ नागपंचमी भी भगवान शिव के प्रिय दिन सोमवार को मनाई जाएगी।
ऽ 15 अगस्त , इस साल रक्षाबंधन पर पड़ रहा है , श्रवण नक्षत्र के अधीन।
ऽ इस बार राखी के दिन ही पंचक आरंभ हो जाएंगे।
ऽ इसी दौरान 3 अगस्त को हरियाली तीज भी आ जाएगी।
सावन का महीना अपने पूरे जोर पर होगा. लोग शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना में खुद को रमाएंगे. इस महीने में सोमवार को व्रत रखने का प्रावधान है. सावन के मौसम में पड़ने वाले चार सोमवार पर शिवभक्त व्रत रखते हैं. सावन में सोमवार का व्रत रखने से जुड़ी बहुत सी मान्यताएं हैं, लोगों का मानना है कि श्रावण सोमवार के व्रत रखने से अच्छा और मनचाहा जीवनसाथी मिलता है. सावन के दौरान रखे जाने वाले इन व्रतों को सावन के चार सोमवार व्रत के तौर पर जाना जाता है.
इस पूरे महीने शिव भक्त उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. इसके अलावा लाखों की संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार कांवड़ ले जाते हैं जहां वे शिवलिंग पर जल चढाते हैं. सावन महीने के चारों सोमवार को शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. पौराणिक कथाओं के अऩुसार इस महीने में जो शिव भक्त पूरे मनोयोग से उनकी पूजा-अर्चना करता है उसकी मुराद भगवान शिव और पार्वती अवश्य पूरी करते हैं.
श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व माना गया है।
भोले नाथ अपने नाम के अनुरुप अत्यंत भोले ���ैं और सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं।शिवोपासना से जीवन की अनेकानेक कठिनाइयां दूर होती हैं। इस मास में महामृत्युंज्य मंत्र, रुद्राभिषेक,शिव पंचाक्षर स्तोत्र आदि के पाठ से लाभ मिलता है। शिवलिंग पर मात्र बिल्व पत्र चढाने से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, भांग, धतूरा, जल, कच्चा दूध, दही, बूरा, श्हद, दही, गंगा जल, सफेद वस्त्र, आक , कमल गटट्ा, पान , सुपारी, पंचगव्य , पंचमेवा आदि भी चढ़ाए जा सकते हैं।
ओम् नमः शिवाय का जाप या महामृत्यंुज्य का पाठ कर सकते हैं।
शिवलिंग पर चंपा, केतकी, नागकेश्र, केवड़ा या मालती के फूल न चढ़ाएं। अन्य कोई भी पुश्प जैसे हार सिंगार,सफेद आक आदि के अर्पित कर सकते हैं। बेल पत्र का चिकना भाग ही शिवलिंग पर रखना चाहिए तथा यह भी ध्यान रखें कि बेल पत्र खंडित न हों।
इस मास के प्रत्येक मंगलवार को श्री मंगला गौरी का व्रत , विधिवत पूजन करने से श्ीघ्र विवाह या वैवाहिक जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है और सौभाग्यादि में वृद्धि होती है।
बिल्वपत्र कैसे चढ़ायें?
1- बिल्वपत्र भोले नाथ पर सदैव उल्टा रखकर अर्पित करें।
2- बिल्वपत्र में चक्र एंव वज्र नहीं होने चाहिए। कीड़ो द्वारा बनायें हुये सफेद चिन्हों को चक्र कहते है और डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते है।
3- बिल्वपत्र कटे या फटे न हो। ये तीन से लेकर 11 दलों तक प्राप्त होते है। रूद्र के 11 अवतार है, इसलिए 11 दलों वाले बिल्वपत्र चढ़ायें जाये ंतो महादेव ज्यादा प्रसन्न होंगे।
4- बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों तक पाप नष्ट हो जाते है।
5- शिव के साथ पार्वती जी पूजा अवश्य करें तभी पूर्ण फल मिलेगा।
6- पूजन करते वक्त रूद्राक्ष की माला अवश्य धारण करें।
7- भस्म से तीन तिरछी लकीरों वाला तिलक लगायें।
8- शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं करना चाहिए।
9- शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करें।
10- शिव जी पर केंवड़ा व चम्पा के फूल कदापि न चढ़ायें।
व्रत और पूजन विधि
– सुबह-सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनें.
– पूजा स्थान की सफाई करें.
– आसपास कोई मंदिर है तो वहां जाकर भोलेनाथ के शिवलिंग पर जल व दूध अर्पित करें.
– भोलेनाथ के सामने आंख बंद शांति से बैठें और व्रत का संकल्प लें.
– दिन में दो बार सुबह और शाम को भगवान शंकर व मां पार्वती की अर्चना जरूर करें.
– भगवान शंकर के सामने तिल के तेल का दीया प्रज्वलित करें और फल व फूल अर्पित करें.
– ऊं नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान शंकर को सुपारी, पंच अमृत, नारियल व बेल की पत्तियां चढ़ाएं.
– सावन सोमवार व्रत कथा का पाठ करें और दूसरों को भी व्रत कथा सुनाएं.
– पूजा का प्रसाद वितरण करें और शाम को पूजा कर व्रत खोलें.
सोमवार शाम पढ़ें शिव चालीसा, भोलेनाथ प्रसन्न होकर देंगे यह वरदान
सावन के सोमवार को खरीदें इनमें से कोई भी एक चीज, होगा भाग्य उदय
भस्म: पहले सोमवार को या किसी भी सावन के सोमवार को शिव मूर्ति के साथ यदि भस्म रखते हैं तोशिव कृपा मिलेगी.रुद्राक्ष: ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी. इसलिए यदि आप इसेसावन के सोमवार को घर में लाते हैं और घर के मुखिया के कमरे में रखते हैं तो भगवान शिव ना केवलरुके हुए काम को पूरा करते हैं, बल्कि इससे आर्थिक लाभ भी होता है. इससे प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है.गंगा जल: भगवान शंकर ने गंगा मां को अपनी जटा में स्थान दिया था. इसलिए यदि आप सावन केसोमवार को गंगाजल लाकर घर की किचन में रखते हैं तो घर में सम्पन्नता बढ़ेगी और तरक्की वसफलता मिलती है.चांदी या तांबे का त्रिशूूल: घर के हॉल में चांदी या तांबे का त्रिशूूल स्थापित करके आप घर की सारीनेेगेटिव एनर्जी खत्म कर सकते हैं. इस बार सावन में इसे जरूर लाएं.चांदी या तांबे का नाग: नाग को भगवान शिव का अभिन्न अंग माना जाता है. घर के मेन गेट के नीचेनाग-नागिन के जोड़े को दबाने से रुके हुए काम पूरे होते हैं.डमरू: घर में डमरू रखने से नेगेटिव एनर्जी का असर नहीं होता. खासतौर से यदि आप इसे बच्चों केकमरे में रखें तो ज्यादा अच्छा होगा. बच्चे किसी भी नकारात्मक ऊर्जा से बचे रहेंगे और उन्हें हर काम मेंसफलता भी प्राप्त होती है.जल से भरा तांबे का लोटा: घर के जिस हिस्से में परिवार सबसे ज्यादा रहता है, वहां एक तांबे के लोटे मेंजल भरकर रख दें. इससे घर के लोगों के बीच प्रेम और विश्वास बना रहेगा. ध्यान रखें कि समय-समय पर उस पानी को बदलते रहें. उस पानी को ऐसे ही जाया ना करें, उसे किसी पेड़ या पौधे में डाल दें.चांदी के नंदी: जिस प्रकार घर में
Read the full article
0 notes
दस चमत्कारिक पत्तियां
New Post has been published on https://gyanyog.net/%e0%a4%a6%e0%a4%b8-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%82/
दस चमत्कारिक पत्तियां
वैदिक ऋषियों और आयुर्वेद के जानकारों ने जीवन की सुख और समृद्धि के कई उपाय ढूंढे थे। इसके लिए उन्होंने समुद्र, रेगिस्तान, हिमालय और जंगल के हर तरह के रहस्य को जाना और फिर उन्होंने ऐसी चीजें ढूंढी जिसके दम पर व्यक्ति अजर-अमर ही नहीं रह सकता है बल्कि सुख और समृद्धि भी पा सकता है।इंसान ने ईश्वर के बाद प्रकृति को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है, क्योंकि प्रकृति से वह सब कुछ पाया जा सकता है, जो हम पाना चाहते हैं। एक और मनुष्य प्रकृति का बेहिसाब और अनावश्यक दोहन कर रहा है, तो दूसरी ओर वह प्रकृति को नष्ट करने का कार्य भी कर रहा है। इसका परिणाम भी हमें देखने को मिल रहा है।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति अपने घर के आसपास एक पीपल, एक नीम, इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता। इसी तरह धर्मशास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्वों के महत्व की विवेचना की गई है। इन पत्तों का धर्मशास्त्रों में उल्लेख ही नहीं मिलता बल्कि इनके पौधों या वृक्षों की पूजा करने का विधान भी है।
आओ जानते हैं हम उन दस पौधों या वृक्षों के उन पत्तों के बारे में जिनका सेवन करने से हर तरह की बीमारी से ही बचा नहीं जा सकता बल्कि सुखी, शांतिपूर्ण और सकारात्मक मस्तिष्क भी हासिल किया जा सकता है। अंत में बताएंगे हम आपको एक ऐसे चमत्कारिक पत्ते के बारे में जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
तुलसी : तुलसी प्रत्येक हिन्दू के घर में होना जरूरी है। तुलसी के पौधे का भारत मे बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है। यह एक चमत्कारिक पौधा है। धर्मशास्त्रों में इसके गुणों और इसकी महानता का वर्णन मिलता है। दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है। तांबे के लोटे में एक तुलसी का पत्ता डालकर ही रखना चाहिए। तांबा और तुलसी दोनों ही पानी को शुद्ध करने की क्षमता रखते हैं।
तुलसी : असरकारी चमत्कारी घरेलू औषधि
इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है। रोजाना सुबह पानी के साथ तुलसी की 5 पत्तियां निगलने से कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों एवं दिमाग की कमजोरी से बचा जा सकता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी की मात्र 5 पत्तियां खाता है, वह कई बीमारियों से बच सकता है। हाल ही कि वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि तुलसी के सेवन से कैंसर से बचा जा सकता है।
नीम का पत्ता : नीम का पेड़ यदि आपके घर के आस-पास लगा है तो आप हर तरह के बुखार और संक्रमण से बचे रहेंगे। सभी तरह के चर्म रोग से नीम का रस बचाता है। नीम के पत्ते चबाने से मुंह, दांत और आंत के रोग तो दूर होते ही हैं, साथ ही इसके रस से रक्त भी साफ रहता है।
नीम से सेहत और सौन्दर्य
नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। नीम की पत्तियों को उबालकर और पानी ठंडा करके नहाया जाए तो उससे भी बहुत फायदा होता है। नीम का रोज एक पत्ता चबाते रहने से कभी भी कैंसर नहीं होता। मीठी नीम का पत्ता तो खाने में स्वाद बढ़ाने में ही लाभदायक नहीं होता बल्कि यह कई तरह के औषधीय गुणों से परिपूर्ण है।
कढ़ी पत्ता : कढ़ी पत्ता अक्सर कढ़ी में डलता है। इसके खाने में जायका बढ़ जाता है। अधिकतर महाराष्ट्रीयन घरों में इसका पेड़ मिल जाएगा। यह खुशबूदार पत्ता होता है। इसको खाने से बाल काले और मजबूत रहते हैं। इसके पत्ते कुछ-कुछ नीम की तरह होते है।
दक्षिण भारत व पश्चिमी-तट के राज्यों और श्रीलंका के व्यंजनों के छौंक में, खासकर रसेदार व्यंजनों में बिलकुल तेजपत्तों की तरह इसकी पत्तियों का उपयोग बहुत महत्व रखता है। इसे काला नीम भी कहते हैं। कढ़ी पत्ता लंबे और स्वस्थ बालों के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है। कढ़ी पत्ता पेट संबंधी रोगों में भी अत्यंत लाभदायक है। इसकी जड़ का इस्तेमाल आंखों और किडनी के रोग के लिए होता है। कई कारणों से हिन्दू धर्म में इसका पेड़ लगाने की हिदायत दी गई है।
कढ़ी पत्ते में मौजूद आयरन, जिंक और कॉपर जैसे मिनरल न सिर्फ अग्नाशय की बीटा-कोशिकाओं को सक्रिय करते हैं, बल्कि उन्हें नष्ट होने से भी बचाते हैं। इससे ये कोशिकाएं इंसुलिन का उत्पादन तेज कर देती हैं। डायबिटीज पीड़ितों के लिए रोज सुबह खाली पेट 8-10 कढ़ी पत्ते चबाना फायदेमंद है।
बिल्वपत्र : बिल्व अथवा बेल (बिल्ला) विश्व के कई हिस्सों में पाया जाने वाला वृक्ष है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम, पारिजात और पलाश आदि वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है।हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष भगवान शिव की आराधना का मुख्य अंग है।
बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शरबत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शरबत कुपचन, आंखों की रोशनी में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों में टैनिन, लौह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।
नीम और तुलसी के 5-5 पत्तों के साथ बेल की 5 पत्तियों को मिलाकर कूट लें और इसकी एक गोली बनाकर प्रतिदिन खाने से कैंसर में लाभ मिलता है। बेल के पत्तों को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है तथा नींद खूब आती है। बेल की पत्तियां 15 नग, बादाम की गिरियां 2 नग तथा मिश्री 250 ग्राम को मिलाकर, पीसकर आंच पर पका लें। जब शरबत की तरह बन जाए तो उतारकर ठंडा करके पीते रहने से एक माह के अंदर ही नपुंसकता दूर हो जाती है। मंद आंच पर बेल की पत्तियों को भूनकर बारीक पीसकर कपड़े से छान लें और शीशी में भरकर रख लें। 1 ग्राम की मात्रा में प्रातः-सायं शहद के साथ मिलाकर चाटते रहने से कुकर खांसी (हूपिंग कफ) में आराम मिलता है।
पान का पत्ता : पान का पेड़ पतली जड़ों द्वारा चढ़ाई गई एक बारहमासी लता होती है। पान के पेड़ की पत्तियां दिल के आकार की चिकनी, चमकीली और नुकीले सिरे के साथ लंबी डंठल वाली होती हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में ‘पान-सुपारी’ शिष्टाचार के रूप में मेहमानों को दी जाती है। पहले पान के साथ चूने, सुपारी या कत्थे का उपयोग नहीं होता था। मध्यकाल में पान खाने का प्रचलन बढ़ने लगा और अब इसे चूने, कत्थे के साथ ही लोग तंबाकू मिलाकर भी खाने लगे हैं, जो कि बहुत ही नुकसानदायक है।
पान का प्रयोग 2,000 वर्ष पहले से होता आ रहा है। पान के बारे में सबसे प्राचीन वर्णन श्रीलंका की ऐतिहासिक पुस्तक महावस्मा (जिसे दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक पाली में लिखा गया) मिलता है। प्राचीनकाल से पान की पत्तियों का उपयोग धार्मिक कार्यों में भी किया जाता रहा है। हनुमानजी को पान का बीड़ा बनाकर अर्पित किया जाता है।
पान के फायदे : प्राचीनकाल में पान का इस्तेमाल रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जाता था। इसे खाने से भीतर कहीं बह रहा खून भी रुक जाता है। अगर पान के कुछ पत्तों का रस चोट पर लगाएं और पान का पत्ता रखकर पट्टी बांध दें, तो चोट 2-3 दिन में ठीक हो जाती है। यह कामोत्तजना के लिए भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। दूध के साथ पान का रस लिया जाए, तो पेशाब की रुकावट दूर हो जाती है। सरसों के तेल में भीगे हुए और गरम किए हुए पान के पत्ते लगाने से खांसी और सांस लेने में कठिनाई से मदद मिलती है। कब्ज और मधुमेह में भी पान का रस लाभदायक है।
तेजपत्ता : आमतौर पर इसका प्रयोग भारतीय सब्जी में मसाले के रूप में किया जाता है, परंतु यह ए�� अत्यंत गुणकारी औषधि भी है। आजकल लोग तेजपान पत्ते अर्थात खड़ा मसाला छोड़कर पीसा हुआ गर्म मसाला प्रयोग करते हैं, जो कि हानिकारक है।
तेजपत्ता अत्यंत गर्म एवं उत्तेजक होता है इसीलिए यह यौन-शक्ति वृद्घि करने में लाभदायक है। यह गठिया रोग, उदर शूल एवं अपच संबंधी पेट के रोगों में भी लाभदायक है। इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है। मूत्र विकार में भी यह लाभदायक है। तेजपत्ते के चूर्ण का हर तीसरे या चौथे दिन मंजन करने से दांत चमकने लगते हैं एवं कीड़े लगने का भय नहीं रहता।
केले का पत्ता : केले का पत्ता हर धार्मिक कार्य में इस्तेमाल किया जाता रहा है। केले का पेड़ काफी पवित्र माना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है।
केला रोचक, मधुर, शक्तिशाली, वीर्य व मांस बढ़ाने वाला, नेत्रदोष में हितकारी है। पके केले के नियमित सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह कफ, रक्तपित, वात और प्रदर के उपद्रवों को नष्ट करता है। केले में मुख्यतः विटामिन ए, विटामिन सी, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन तथा अन्य खनिज तत्व होते हैं। इसमें जल का अंश 64.3 प्रतिशत, प्रोटीन 1.3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 24.7 प्रतिशत तथा चिकनाई 8.3 प्रतिशत है।
केले के पत्ते का ज्यूस भी एक बेहतरीन डिटॉक्सिफाइंग ज्यूस है। इसे केले पत्ते को पीसकर इसमें कुछ बूंद नींबू, एक चम्मच पीसा हुआ अदरक और थोड़े खीरे से तैयार किया जाता है। यह ज्यूस बहुत ही अच्छा डिटॉक्सिफाइंग एजेंट है और इसका सेवन सुबह में करना चाहिए।
आम के पत्ते : अक्सर मांगलिक कार्यों में आम के पत्तों का इस्तेमाल मंडप, कलश आदि सजाने के कार्यों में किया जाता है। इसके पत्तों से द्वार, दीवार, यज्ञ आदि स्थानों को भी सजाया जाता है। तोरण, बांस के खंभे आदि में भी आम की पत्तियां लगाने की परंपरा है। घर के मुख्य द्वार पर आम की पत्तियां लटकाने से घर में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति के प्रवेश करने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा घर में आती है।
आम के पेड़ की लकड़ियों का उपयोग समिधा के रूप में वैदिक काल से ही किया जा रहा है। माना जाता है कि आम की लकड़ी, घी, हवन सामग्री आदि के हवन में प्रयोग से वातावरण में सकारात्मकता बढ़ती है।
वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार आम के पत्तों में डायबिटीज को दूर करने की क्षमता है। कैंसर और पाचन से संबंधित रोग में भी आम का पत्ता गुणकारी होता है। आमतौर जब आप किसी उत्सव अथवा पूजा-पाठ का आयोजन करते हैं तब चिंता और तनाव बढ़ जाता है कि काम सफलतापूर्वक पूरा हो पाएगा या नहीं। आम के पत्तों में मौजूद विभिन्न तत्व चिंता और तनाव को दूर करने में सहायक होते हैं इसलिए भी मांगलिक कार्यों में आम के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इसमें भरपूर मात्रा में सकारात्मक एनर्जी होती है, जो हमारे मस्तिष्क को खुशियों से भर देती है।
विशेषज्ञ डायबिटीज के मरीजों को आम के सेवन से बचने की सलाह देते हैं, लेकिन इसकी पत्तियां बीमारी की रोकथाम में अहम भूमिका निभा सकती है। दरअसल, आम की पत्तियां ग्लूकोज सोखने की आंत की क्षमता घटाती है। इससे खून में शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। आम की पत्तियां सुखाकर पाउडर बना लें। खाने से 1 घंटे पहले पानी में आधा चम्मच घोलकर पीएं।
जामुन की पत्तियां : प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप को पहले जम्बूद्वीप कहा जाता था, क्योंकि यहां जामुन के पेड़ अधिक पाए जाते थे। जामुन का पेड़ पहले हर भारतीय के घर-आंगन में होता था। अब आंगन ही नहीं रहे। आजकल जामुन और बेर के पेड़ को देखना दुर्लभ है।
भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में हुए कई अध्ययनों में जामुन की पत्ती में मौजूद ‘माइरिलिन’ नाम के यौगिक को खून में शुगर का स्तर घटाने में कारगर पाया गया है। विशेषज्ञ ब्लड शुगर बढ़ने पर सुबह जामुन की 4 से 5 पत्तियां पीसकर पीने की सलाह देते हैं। शुगर काबू में आ जाए तो इसका सेवन बंद कर दें।
सोम की पत्तियां : सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियां। सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरि, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने के जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।
अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद यानी ईसा के काफी पहले ही इस वनस्पति की पहचान मुश्किल होती गई। ऐसा भी कहा जाता है कि सोम (होम) अनुष्ठान करने वाले लोगों ने इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं दी, उसे अपने तक ही सीमित रखा और कालांतर में ऐसे अनुष्ठानी लोगों की पीढ़ी/परंपरा के लुप्त होने के साथ ही सोम की पहचान भी मुश्किल होती गई।
‘संजीवनी बूटी‘ : कुछ विद्वान इसे ही ‘संजीवनी बूटी’ कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर ‘सोम’ की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।
‘सोमरस‘ : शराब या चमत्कारिक औषधि, जानिए
इफेड्रा : कुछ वर्ष पहले ईरान ��ें इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हालांकि लोग इसका इस्तेमाल यौनवर्धक दवाई के रूप में करते हैं।
वैदिक ऋषियों का चमत्कारी आविष्कार- सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है।
Advertisements
0 notes
सोना चांदी नवीनतम मूल्य अपडेट हिंदी में कच्चे तेल में गिरावट के बीच सोने की कीमतों में गिरावट चांदी में भी गिरावट - सोने की कीमत में आज की गिरावट: हवा में चांदी की कीमत, 70 हजार.
सोना चांदी नवीनतम मूल्य अपडेट हिंदी में कच्चे तेल में गिरावट के बीच सोने की कीमतों में गिरावट चांदी में भी गिरावट – सोने की कीमत में आज की गिरावट: हवा में चांदी की कीमत, 70 हजार.
दैत्य, अमर उजाला, नई दिल्ली
द्वारा प्रकाशित: दीप चतुर्वेदी
अपडेट किया गया सोम, 14 मार्च 2022 09:51 AM IST
सर
सोने की चांदी की नवीनतम दर अपडेट: तापमान में बदलाव के लिए कीमत में बदलाव होता है। पढ़ने के लिए. विक्रेता में 0.50 की तरह है और यह धातु 70, 015 डॉलर प्रति किलोग्राम है।
खबर
खबर
लाइफ़ और गतिशील के प्रकार में बदल गया है। दोबारा 55 हजार के स्तर तक फिर से भरने के बाद दोबारा फिर से भरना 52…
View On WordPress
0 notes
मेरठ: बीजेपी MLA संगीत सोम ने एक लाख लोगों में बांटा एक महीने का राशन
[ad_1]
बीजेपी विधायक संगीत सोम ने 25 हजार परिवार तक पहुंचाया राशन संगीत सोम ने एक राशन किट तैयार की. इस किट में आटा, तेल, चीनी, चावल और आलू से लेकर साबुन तक रखा गया. एक छोटे परिवार में यह सामान 1 महीने तक चलाया…
View On WordPress
0 notes
डिझेल पेट्रोलची किंमत आज 18 जानेवारी 2021 रोजी भारतात: आयओसीएलनुसार दर जाणून घ्या - पेट्रोल डिझेल किंमत: पेट्रोल-डिझेलच्या किंमतीत आज वाढ झाली, जाणून घ्या किंमत किती आहे
डिझेल पेट्रोलची किंमत आज 18 जानेवारी 2021 रोजी भारतात: आयओसीएलनुसार दर जाणून घ्या – पेट्रोल डिझेल किंमत: पेट्रोल-डिझेलच्या किंमतीत आज वाढ झाली, जाणून घ्या किंमत किती आहे
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नवी दिल्ली
सोम, 18 जाने 2021 06:43 AM IST वर अद्यतनित
पेट्रोल आणि डिझेलच्या किंमती
– फोटो: पीटीआय
अमर उजाला ई-पेपर वाचा कोठेही कधीही.
* फक्त ₹ 299 मर्यादित कालावधी ऑफरसाठी वार्षिक सदस्यता. लवकर कर!
बातमी ऐका
बातमी ऐका
आज राज्य तेल कंपन्यांकडून पेट्रोल आणि डिझेलच्या किंमती वाढल्या आहेत. सलग तीन दिवस किंमती स्थिर राहिल्यानंतर पेट्रोल आणि डिझेलच्या दरात बदल झाला आहे. आज…
View On WordPress
0 notes
नवरात्रों का वैज्ञानिक महत्त्व डॉ. ओमप्रकाश पांडेय : भारतीय अवधारणा में हिरण्यगर्भ जिसे पाश्चात्य विज्ञान बिग बैंग के रूप में देखता है, से अस्तित्व में आए इस दृष्यादृष्य जगत के सभी प्रपंच चाहे वह जड़ हों या चेतन, सभी निर्विवाद रूप से शक्ति के ही परिणाम हैं। हम सभी का श्वांस-प्रश्वांस प्रणाली, रक्त संचार, हृदय की धड़कन, नाड़ी गति, शरीर संचालन, सोचना समझना, सभी कुछ शक्ति के द्वारा ही संभव होता है। जो कुछ भी पदार्थ के रूप में हैं, उनके साथ-साथ हम सभी पंचतत्वों यानी क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा से बने हैं। उदाहरण के लिए जल में द्रव यानी गीला करने की शक्ति है, अग्नि में दाह यानी जलाने की शक्ति है, वायु में स्पर्श की शक्ति है, मिट्टी में गंध की शक्ति है और आकाश में शब्द की शक्ति है। प्रकाश और ध्वनि में तरंग की शक्ति है। सृष्टि में सृजन की शक्ति है और प्रलय में विसर्जन की शक्ति है। प्राण में जीवन शक्ति है। आईंस्टीन का इनर्जी-मैटर समीकरण ई = एमसी2 के अनुसार भी संसार के सभी द्रव्य ऊर्जा की संहति के ही परिणाम हैं। यहाँ तक कि पदार्थों का स्वरूप परिवर्तन भी ऊर्जा की विभिन्न गत्यात्मकता से ही संभव होता है। इन सभी क्रियाओं से ऊर्जा न तो खर्च होती है और न ही उसका ह्रास होता है, वह सदैव विद्यमान रहती है। यह सनातन है, यह अक्षत है। इसे न तो पैदा किया जा सकता है और न ही समाप्त किया जा सकता है। हमें जो जड़ प्रतीत होता है, वह भी ऊर्जा के प्रभाव से अपने नाभी की परिधि में विविध वेग से गतिमान है। इन अणुओं का स्वरूप भी प्लाज्मा, क्वाट्र्ज, पार्टिकल्स यानी कणों के गतिक्रम के अनुरूप ही अस्तित्व में आते हैं। यानी गत्यात्मकताओं के इन्हीं आधारों पर ही अणु-परमाणु आदि सूक्ष्म तत्व आपसी संयोजन करके सूर्य, चंद्र तथा पृथिवी जैसे विशाल पिंडों में परिवर्तित होकर आकाश में विचरण करने लगते हैं। ब्रह्मांड में सभी कुछ गतिमान है, स्थिर कुछ भी नहीं। अनंत ब्रह्मांडों वाली ये श्रृंखलाएं प्रकृति के प्रगट स्वरूप के चार प्रतिशत के क्षेत्र में हैं, 76 प्रतिशत क्षेत्र डार्क इनर्जी का है और 21 प्रतिशत क्षेत्र डार्क मैटर का है। इसे ऋग्वेद में कहा गया है आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्र्यण्च। हिरण्यय़ेन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन।। यह नक्षत्रों से परिपूर्ण ब्रह्मांड की ये अनंत श्रृंखलाएं किसी बल विशेष के प्रभाव से ही निरंतर गतिशील बनी हुई हैं। यह सर्वविदित है कि किसी भी प्रकार की गतिशीलता के लिए एक स्थिर आधार की आवश्यकता होती है। हम यदि चल पाते हैं तो इसलिए कि हमारी तुलना में पृथिवी स्थिर है। इसी प्रकार सृष्टि की गतिशीलता जिस आधार पर क्रियाशील है, उसे ही ऋषियों ने निष्कलंक, निष्क्रिय, शांत, निरंजन, निगूढ़ कहा है। इस अपरिमेय निरंजन निगूढ़ सत्ता में चेतना के प्रभाव से कामना का भाव जागृत होता है, तब उसे साकार करने के लिए मातृत्व गुणों से परिपूर्ण चिन्मयी शक्ति का प्राकट्य होता है। इस तरह आदि शक्ति के तीन स्वरूपों ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति के उपक्रमों से प्रकृति के सत्व, रज और तम तीन गुणों की उत्पत्ति होती है। इन्हें ही उनकी आभा के अनुसार श्वेत, रक्तिम और कृष्ण कहा गया है। अतिशय शुद्धता की स्थिति में कोई भी निर्माण नहीं हो सकता। जैसे कि 24 कैरेट शुद्ध सोने से आभूषण नहीं बनता, इसके लिए उसमें तांबा या चांदी का मिश्रण करना होता है। इसी प्रकार साम्यावस्था में प्रकृति से सृष्टि से संभव नहीं है। उसकी साम्यावस्था को भंग होकर आपसी मिश्रणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न विकृतियों से ही सृष्टि की आकृतियां बनने लगती हैं। इसको ही सांख्य में कहा है – रागविराग योग: सृष्टि। प्रकृति, विकृति और आकृति ये तीन का क्रम होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आदि शक्ति के तीनों रूपों, उनके तीनों गुणों और तीन क्रियात्मक वेगों के परस्पर संघात से समस्त सृष्टि होती है। तीन का तीन में संघात होने से नौ का यौगिक बन जाता है। यही सृष्टि का पहला गर्भ होता है। पदार्थों में निविष्ट इन गुणों को आज का विज्ञान न्यूट्रल, पॉजिटिव और निगेटिव गुणों के रूप में व्याख्यायित करता है। इन गुणों का आपसी गुणों के समिश्रण से उत्पन्न बल के कारण इषत्, स्पंदन तथा चलन नामक तीन प्रारंभिक स्वर उभरते हैं। ये गति के तीन रूप हैं। आधुनिक विज्ञान इन्हें ही, इक्वीलीबिरियम यानी संतुलन, पोटेंशियल यानी स्थिज और काइनेटिक यानी गतिज के नाम से गति या ऊर्जा के तीन मूल स्तरों के रूप में परिभाषित करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आदि शक्ति के तीन रूप, तीन गुण और उनकी तीन क्रियात्मक वेग, इन सभी का योग नौ होता है। जैसा कि हम देखते और जानते हैं कि जैविक सृष्टि का जन्म मादा के ही कोख से होता है। अत: मूल प्रकृति और उससे प्रसूत त्रिगुणात्मक आधारों जिसके कारण सृष्टि अस्तित्व में आती है, को हमारे मनीषियों ने नारी के रूप में ही स्वीकार किया। इसलिए पौराणिक आख्यानों में शक्ति के क्रियात्मक मूल स्वरूपों को ही सरस्वती, लक्ष्मी और दूर्गा के मानवीय रूपों के माध्यम से उनके गुणों और क्रिया सहित व्यक्त करने का प्रयास किया। हम तीन देवों की भी कल्पना करते हैं – ब्रह्मा विष्णु और महेश जोकि सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। लेकिन ये तीनों आधार हैं आधेय नहीं। ये शक्तिमान हैं। इनमें से वह शक्ति निकल जाए तो वे कभी विशिष्ट कामों के पालन में असमर्थ हो जाते हैं। शक्ति ही इनमें व्याप्त देवत्व का आधार है। इसलिए देवताओं की आरतियों के अंत में लिखा होता है – जो कोई नर गावे। कहीं भी नारी नहीं लिखा, क्योंकि नारी देवताओं की स्तुति कैसे करेगी, वह तो स्वयं वंदनीया है, देवताओं की भी स्तुत्य है। समाज के सभी जैवसंबंध स्त्रियों पर ही टिका है। रिश्तों का सारा फैलाव, घर-परिवार की सारी संकल्पना स्त्रियों के कारण ही अस्तित्व में आती है। लेकिन पश्चिम की मानसिकता के भ्रमजाल के कारण स्वयं को केवल आधी आबादी मानने लगी हैं और पुरुषों से प्रतिद्वन्द्विता के चक्कर में पड़ गई हैं। नारी की पुरुष से प्रतिद्वन्द्विता कैसे संभव है, वह तो पुरुष को जन्म देती हैं। वह आधी आबादी नहीं है, वह तो इस समस्त आबादी की जन्मदात्री है। इसलिए माता होना नारी की सार्थकता है और माँ कहलाना उसका सर्वोच्च संबोधन है। बंगाल में हम छोटी-छोटी बच्चियों को भी माँ कह कर बुलाते हैं। हरेक संबंध में माँ लगा कर संबोधित करते हैं, जैसे पीसीमाँ, मासीमाँ, बऊमाँ आदि। इसलिए ऋग्वेद में यह निर्देश पाया जाता है कि श्वसुर बहु को आशीर्वाद दे कि वह दस पुत्रों की माता बने और पति तुम्हारा ग्यारहवाँ पुत्र हो जाए। यह वास्तविकता भी है। विवाह नया हो तो बात अलग होती है, परंतु संतानों के जन्म के बाद स्त्री का ध्यान पति की बजाय संतानों की ओर अधिक होता है और जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, स्त्री संतान की भांति ही पति की भी वात्सल्यजनित चिंता करने लगती है। आदिशक्ति को जगज्जननी क्यों कहा गया, इसे हम ईशावास्योपनिषद के एक मंत्र से मिलता है। पहले मैं यह बता दूँ कि चूंकि वैदिक संकल्पना में ईश्वर अकल्पनीय, निराकार, निगूढ़ है, इसलिए उसकी कोई मूर्ति नहीं हो सकती, उसका आकार नहीं हो सकता। यदि कोई आकार होगा भी तो वह मनुष्य के समझ से परे होगा। हम मन, बुद्धि, कल्पना और ज्ञान के आधार पर सोचते हैं। परंतु ईश्वर तो इन सब से परे है। इसलिए हम उसकी आकृति नहीं गढ़ सकते। यजुर्वेद कहता है कि न तस्य प्रतिमा अस्ति। यह हमारी भारतीय परंपरा में बौद्धों के काल से पूर्व तक जीवंत रहा है। उससे पहले तक हम केवल शिवलिंग, शालीग्राम और पिंडी का पूजन करते थे। देवी के लिए पिंडी, क्योंकि वह गर्भ का स्वरूप है, विष्णु के लिए शालीग्राम, क्योंकि वह आकाशगंगा का स्वरूप है और शिव के लिंग, क्योंकि शिव अग्निसोमात्मक है तो दीपक के लौ के भांति लिंग। दीपक में लौ अग्नि है और तेल सोम। बुद्ध के बाद बौद्धों के तर्ज पर मूर्तियां गढ़ी गईं। ईशावास्योपनिषद में कहा है पूर्णमिद:…। इसका अर्थ है कि वह भी पूर्ण है और यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण से पूर्ण प्रकट होता है और फिर भी पूर्ण शेष बच जाता है। पूर्ण से पूर्ण निकल जाए, फिर भी पूर्ण शेष बचे, वही ईश्वर है। यदि नौ पूर्णांक में से नौ पूर्णांक निकल जाए तो शून्य बचना चाहिए, परंतु ऋषि कहता है कि उसमें शून्य नहीं, नौ ही बचेगा। यह एक विशेष घटना है। यह भौतिक स्तर पर संसार में कहीं नहीं घटती है, इसका केवल एक अपवाद है। एक स्त्री गर्भ धारण करती है, संतान को जन्म देती है। जन्म लेने वाली संतान पूर्ण होती है और माँ भी पूर्ण शेष रहती है। इसलिए माँ ईश्वर का ही रूप है। संसार की सभी मादाएं ईश्वर का ही स्वरूप हैं। इसलिए हमने प्रकृति की कारणस्वरूपा त्रयात्मक शक्ति और फिर उसके त्रिगुणात्मक प्रभाव से उत्पन्न प्राकृतिक शक्ति के नौ स्वरूपों को जगज्जननी के श्रद्धात्मक भावों में ही अंगीकार किया। फिर दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रकृति के त्रिगुणात्मक शक्ति को देखा। वे हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। ये नौ दुर्गाएं काल और समय के आयाम में नहीं हैं, उससे परे हैं। ये दिव्य शक्तियां हैं, काल और समय के परे हैं। इनका जो विकार निकलता है, वही काल और समय के आयाम में प्रवेश करता है और ऊर्जा का रूप ले लेता है। इस प्रकार ये नौ दूर्गा, उनके नौ प्रकार और उनके प्रकार की ही काल और समय में नौ ऊर्जाएं हैं। ऊर्जाएं भी नौ ही हैं क्योंकि यह उनका ही विकार है। यह तो भौतिक ऊर्जाओं की बात हुई, अब इन भौतिक ऊर्जाओं के आधार पर सृष्टि की जो आकृति बनती है, वह भी नौ प्रकार की ही है। पहला है, प्लाज्मा, दूसरा है क्वार्क, तीसरा है एंटीक्वार्क, चौथा है पार्टिकल, पाँचवां है एंटी पार्टिकल, छठा है एटम, सातवाँ है मालुक्यूल्स, आठवाँ है मास और उनसे नौवें प्रकार में नाना प्रकार के ग्रह-नक्षत्र। यदि हम जैविक सृष्टि की बात करें तो वहाँ भी नौ प्रकार ही हैं। छह प्रकार के उद्भिज हैं – औषधि, वनस्पति, लता, त्वक्सार, विरुद् और द्रमुक, सातवाँ स्वेदज, आठवाँ अंडज और नौवां जरायुज जिससे मानव पैदा होते हैं। ये नौ प्रकार की सृष्टि होती है। पृथिवी का स्वरूप भी नौ प्रकार का ही है। पहले यह जल रूप में थी, फिर फेन बनी, फिर कीचड़ (मृद) बना। और सूखने पर शुष्क बनी। फिर पयुष यानी ऊसर बनी। फिर सिक्ता यानी रेत बनी, फिर शर्करा यानी कंकड़ बनी, फिर अश्मा यानी पत्थर बनी और फिर लौह आदि धातु बने। फिर नौवें स्तर पर वनस्पति बनी। इसी प्रकार स्त्री की अवस्थाएं, उनके स्वभाव, नौ गुण, सभी कुछ नौ ही हैं। इसी प्रकार सभी महत्वपूर्ण संख्याएं भी नौ या उसके गुणक ही हैं। पूर्ण वृत्त 360 अंश और अर्धवृत्त 180 अंश का होता है। नक्षत्र 27 हैं, हरेक के चार चरण हैं, तो कुल चरण 108 होते हैं। कलियुग 432000 वर्ष, इसी क्रम में द्वापर, त्रेता और सत्युग हैं। ये सभी नौ के ही गुणक हैं। चतुर्युगी, कल्प और ब्रह्मा की आयु भी नौ का ही गुणक है। सृष्टि का पूरा काल भी नौ का ही गुणक है। मानव मन में भाव नौ हैं, रस नौ हैं, भक्ति भी नवधा है, रत्न भी नौ हैं, धान्य भी नौ हैं, रंग भी नौ हैं, निधियां भी नौ हैं। इसप्रकार नौ की संख्या का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है। ��सलिए नौ दिनों के नवरात्र मनाने की परंपरा हमारे पूर्वज ऋषियों ने बनायी। नवरात्र में नया धान्य आता है। सामान्यत: वर्ष में 40 नवरात्र होते हैं, परंतु मुख्य फसलें दो हैं रबी और खरीफ, इसलिए दो नवरात्र महत्वपूर्ण हैं – चैत्र नवर���त्र और शारदीय नवरात्र। एक में गेंहू कट कर आता है और एक में चावल कट कर आता है। नये धान्य में ऊष्मा काफी अधिक होती है क्योंकि उसमें धरती की गरमी होती है। इसलिए उस नवधान्य को खाने से पचाना कठिन होता है। इसलिए नौ दिन व्रत रह कर अपनी जठराग्नि अधिक तेज किया जाता है। तब उस धान्य को पचाना सरल हो जाता है। इसमें भी शारदीय नवरात्र अधिक महत्वपूर्ण है। शारदीय नवरात्र से पहले ही गुरू पूर्णिमा, रक्षा बंधन आदि सभी महत्वपूर्ण त्यौहार पड़ते हैं। वर्षा के चौमासे के बाद फिर से गतिविधियां प्रारंभ की जाती हैं, इसलिए शारदीय नवरात्र में शक्ति की आराधना की जाती है।
0 notes