Tumgik
#लैंसेट रिपोर्ट कोरोना मौत
krazyshoppy · 2 years
Text
कई स्तरों पर नाकामी के चलते लाखों लोगों की कोरोना से हुई मौत, लैंसेट की रिपोर्ट में दावा
कई स्तरों पर नाकामी के चलते लाखों लोगों की कोरोना से हुई मौत, लैंसेट की रिपोर्ट में दावा
Lancet Report On Covid-19: दुनियाभर में कोविड-19 (Covid-190 से निपटने में कई स्तरों पर भारी नाकामी के चलते ऐसे लाखों लोगों की मौत हुई, जिनकी जान बचाई जा सकती थी. साथ ही इससे कई देशों में संयुक्त राष्ट्र (United Nation) के सतत विकास लक्ष्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. लैंसेट (Lancet) के कोविड-19 आयोग की एक नयी रिपोर्ट में यह बात कही गई है. दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की…
View On WordPress
0 notes
ivxtimes · 3 years
Link
Tumblr media
कमजोर खानपान का असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पौष्टिक आहार न मिलने से बच्चों की औसत लंबाई पर 20 सेंटीमीटर (7.9 इंच) तक का असर पड़ सकता है।
लम्बाई बच्चों के खानपान के स्तर को बताती है
रिसर्च कहती है, किसी इलाके में खास उम्र के बच्चों की औसत लंबाई से यह पता लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक वहां खाने की क्वालिटी कैसी रही है। बच्चों की लंबाई और वजन में जेनेटिक्स की अहम भूमिका होती है। लेकिन, जब बात पूरी आबादी के बच्चों की लंबाई और वजन की हो तो इसमें पोषण और पर्यावरण का रोल अधिक होता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में 19 साल की उम्र के लड़कों में सबसे अधिक औसत लंबाई नीदरलैंड्स में थी। इस आयुवर्ग के लड़कों की औसत लंबाई 183.8 सेंटीमीटर (करीब 6 फीट) थी। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई तिमोर (160.1 सेंटीमीटर या 5 फीट, 3 इंच) में थी।
ऐसे हुई रिसर्च इस रिसर्च के लिए 5 से 19 साल तक के 6.5 करोड़ बच्चों के डेटा का विश्लेषण किया गया है। ये डेटा 1985 से लेकर साल 2019 तक हुई 2000 से ज्यादा स्टडी से लिए गए हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि सबसे अधिक औसत लंबाई उत्तर-पश्चिमी और सेंट्रल यूरोप के देशों में है। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका में है।
नीदरलैंड्स को उदाहरण बनाकर समझाया लाओस में रहने वाले 19 साल के लड़कों की औसत लंबाई नीदरलैंड में रहने वाले 13 साल के बच्चों की औसत लंबाई के आसपास यानी 5 फीट, 4 इंच है। ग्वाटेमाला, बांग्लादेश, नेपाल और तिमोर की 19 साल की लड़कियों की औसत लंबाई नीदरलैंड्स की 11 साल की लड़कियों की औसत लंबाई (5 फीट) के बराबर है।
लंबाई में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में रिपोर्ट के मुताबिक 1985 के बाद से यानी पिछले 35 सालों में बच्चों की औसत लंबाई के मामले में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में आया है। वहीं, कई सब-सहारा अफ्रीका के देशों की औसत लंबाई इन सालों में नहीं बदली है।
ये भी पढ़ें
मोबाइल फोन की स्क्रीन पर 28 दिन तक जिंदा रह सकता है कोरोना
प्लाज्मा थैरेपी कोरोना मरीजों की मौत को रोकने में कारगर नहीं
महामारी के बीच प्रेग्नेंट ���हिलाओं और बच्चों में इन्फ्लुएंजा के संक्रमण का खतरा अधिक
कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा बुजुर्गों को लेकिन सबसे ज्यादा इम्युनिटी रेस्पॉन्स इनमें ही देखा
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tumblr media
Deficiency of nutrients in baby can reduce body length by 8 inches
Thanks for reading. Please Share, Comment, Like the post And Follow, Subscribe IVX Times. fromSource
0 notes
raghav-shivang · 3 years
Link
Tumblr media
कमजोर खानपान का असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पौष्टिक आहार न मिलने से बच्चों की औसत लंबाई पर 20 सेंटीमीटर (7.9 इंच) तक का असर पड़ सकता है।
लम्बाई बच्चों के खानपान के स्तर को बताती है
रिसर्च कहती है, किसी इलाके में खास उम्र के बच्चों की औसत लंबाई से यह पता लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक वहां खाने की क्वालिटी कैसी रही है। बच्चों की लंबाई और वजन में जेनेटिक्स की अहम भूमिका होती है। लेकिन, जब बात पूरी आबादी के बच्चों की लंबाई और वजन की हो तो इसमें पोषण और पर्यावरण का रोल अधिक होता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में 19 साल की उम्र के लड़कों में सबसे अधिक औसत लंबाई नीदरलैंड्स में थी। इस आयुवर्ग के लड़कों की औसत लंबाई 183.8 सेंटीमीटर (करीब 6 फीट) थी। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई तिमोर (160.1 सेंटीमीटर या 5 फीट, 3 इंच) में थी।
ऐसे हुई रिसर्च इस रिसर्च के लिए 5 से 19 साल तक के 6.5 करोड़ बच्चों के डेटा का विश्लेषण किया गया है। ये डेटा 1985 से लेकर साल 2019 तक हुई 2000 से ज्यादा स्टडी से लिए गए हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि सबसे अधिक औसत लंबाई उत्तर-पश्चिमी और सेंट्रल यूरोप के देशों में है। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका में है।
नीदरलैंड्स को उदाहरण बनाकर समझाया लाओस में रहने वाले 19 साल के लड़कों की औसत लंबाई नीदरलैंड में रहने वाले 13 साल के बच्चों की औसत लंबाई के आसपास यानी 5 फीट, 4 इंच है। ग्वाटेमाला, बांग्लादेश, नेपाल और तिमोर की 19 साल की लड़कियों की औसत लंबाई नीदरलैंड्स की 11 साल की लड़कियों की औसत लंबाई (5 फीट) के बराबर है।
लंबाई में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में रिपोर्ट के मुताबिक 1985 के बाद से यानी पिछले 35 सालों में बच्चों की औसत लंबाई के मामले में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में आया है। वहीं, कई सब-सहारा अफ्रीका के देशों की औसत लंबाई इन सालों में नहीं बदली है।
ये भी पढ़ें
मोबाइल फोन की स्क्रीन पर 28 दिन तक जिंदा रह सकता है कोरोना
प्लाज्मा थैरेपी कोरोना मरीजों की मौत को रोकने में कारगर नहीं
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tumblr media
Deficiency of nutrients in baby can reduce body length by 8 inches
0 notes
thetimepress · 4 years
Text
कोरोना काल में सर्जरी करवाने से मौत का खतरा, 'द लैंसेट' की रिपोर्ट ने किया दावा
कोरोना काल में सर्जरी करवाने से मौत का खतरा, ‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट ने किया दावा
अगली खबर
मोदी सरकार के 6 साल पर बोले कौशल विकास मंत्री, भारत के इतिहास में यह सबसे शानदार सरकार
Source link
View On WordPress
0 notes
dmchandresh · 4 years
Text
कोरोना काल में सर्जरी करवाने से मौत का खतरा, 'द लैंसेट' की रिपोर्ट ने किया दावा
कोरोना काल में सर्जरी करवाने से मौत का खतरा, ‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट ने किया दावा
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द लैंसेट की ताजा रिपोर्ट मरीजों को सावधान कर रही है कि जब तक सर्जरी को टाला जा सकें, तब तक टाल दें. द लैसेंट की स्टडी में पाया गया है कि कोरोना इंफेक्शन के साथ सर्जरी करवाने वाले मरीजों का बचना मुश्किल हो रहा है.
View On WordPress
0 notes
newsaryavart · 4 years
Text
कोरोना काल में सर्जरी करवाने से मौत का खतरा, 'द लैंसेट' की रिपोर्ट ने किया दावा
कोरोना काल में सर्जरी करवाने से मौत का खतरा, ‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट ने किया दावा
[ad_1]
अगली खबर
मोदी सरकार के 6 साल पर बोले कौशल विकास मंत्री, भारत के इतिहास में यह सबसे शानदार सरकार
[ad_2] Source Zee News
View On WordPress
0 notes
vsplusonline · 4 years
Text
अगर चीन ने बर्बाद नहीं किए होते ये 6 दिन तो कोरोना वायरस से बच सकती थी दुनिया
New Post has been published on https://apzweb.com/%e0%a4%85%e0%a4%97%e0%a4%b0-%e0%a4%9a%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%ac%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a6-%e0%a4%a8%e0%a4%b9%e0%a5%80%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%8f/
अगर चीन ने बर्बाद नहीं किए होते ये 6 दिन तो कोरोना वायरस से बच सकती थी दुनिया
कोरोना वायरस (Coronavirus) इस समय पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है. संक्रमित मरीजों की संख्‍या में वृद्धि महीनों, हफ्तों या दिनों के नहीं घंटों के हिसाब से हो रही है. इसकी शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई थी. चीन की सरकार की इस समय तारीफ हो रही है कि उसने संक्रमण को वुहान (Wuhan) के अलावा अपने किसी दूसरे प्रांत में नहीं फैलने दिया. अब सवाल ये उठता है कि अगर संक्रमण को वुहान में रोका जा सकता था तो दुनिया में फैलने से रोकने के लिए राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) को किसने रोका था. आखिर क्‍यों वह संक्रमण को चीन से बाहर निकलने से नहीं रोक पाए.
तमाम रिपोर्ट्स में ये बात सामने आ चुकी है कि चीन के अधिकारियों को आधी जनवरी गुजरते-गुजरते ये समझ में आ चुका था कि वे नए कोरोना वायरस की वजह से बहुत ही भयंकर महामारी का सामना करने जा रहे हैं. फिर भी चीन की सरकार ने तुरंत लोगों को इस बारे में आगाह करना जरूरी नहीं समझा. यही नहीं, ये अधिकारी 14 जनवरी को इस बारे में पूरी तरह आश्‍वस्‍त हो गए थे कि कोरोना वायरस महामारी लाएगा. राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने 14 जनवरी को ही लोगों को खतरे के बारे में आगाह करने के बजाय 20 जनवरी को बताया कि वायरस एक से दूसरे व्‍यक्ति में फैल रहा है. लेकिन, तब तक शायद देर हो चुकी थी और दुनिया भर में बसे चीन के हजारों लोग चीनी नए साल (Rat New Year) का जश्‍न मनाने के लिए अपने घर आ चुके थे.
youtube
रेट न्‍यू ईयर के लिए घर आते हैं दुनिया भर में बसे चीनी नागरिक चीन में 25 जनवरी से रेट न्‍यू ईयर या लूनर न्‍यू ईयर (चीन का नया साल) का जश्‍न शुरू होने वाला था. हर साल दुनिया भर में बसे चीन के लोग नए साल का जश्‍न मनाने के लिए अपने घर लौटते हैं. ये जश्‍न करीब तीन हफ्ते चलता है. बता दें कि एक अनुमान के मुताबिक, चीन के नए साल से पहले और बाद में दुनियाभर में सबसे ज्‍यादा लोग एक से दूसरे देश की यात्रा करते हैं. जब तक जिनपिंग ने खतरे की घोषणा की, तब तक दुनियाभर में काम करने वाले सिर्फ वुहान के ही हजारों लोग घरवालों के साथ जश्‍न मनाने के लिए शहर में पहुंच चुके थे. बाद में इसी शहर को कोरोना वायरस का इपिसेंटर (Epicenter) माना गया. चीन के सरकारी दस्‍तावेज बताते हैं कि लोग खतरे से अनजान रहे और 20 जनवरी 2020 तक 3,000 से ज्‍यादा लोग कोरोना वायरस पॉजिटिव पाए जा चुके थे. खतरे के बारे में आगाह न करना चीन के अधिकारियों की पहली गलती नहीं थी. चीन ही नहीं, दुनिया के ज्‍यादातर देशों की सरकारें कोरोना वायरस के खतरों के बारे में हफ्तों और कुछ तो महीनों तक अनजान बनी रहीं.
राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन के लोगों को 20 जनवरी को कोरोना वायरस फैलने के बारे में जानकारी दी.
चीन की ऊहापोह के कारण 21 लाख लोग हो चुके हैं संक्रमित चीन की गलती बाकी देशों से ज्‍यादा इसलिए है क्‍योंकि उसने संक्रमण फैलने के शुरुआती दौर में लोगों को आगाह नहीं किया. वो भी तब देर की जब सबसे ज्‍यादा लोग चीन पहुंचते हैं. हो सकता था कि संक्रमण फैलने की जानकारी पहले ही सार्वजनिक होने पर कोरोना वायरस इतना न फैलता. लेकिन, चीन की सरकार शायद लोगों को आगाह करने और पैनिक नहीं फैलने देने की ऊहापोह में उलझी रही. इसी ऊहापोह के कारण आज दुनिया के ज्‍यादातर देशों क�� 21 लाख से ज्‍यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 1.36 लाख से ज्‍यादा लोगों की मौत हो चुकी है और चीन से शुरू हुई महामारी वैश्विक महामारी बन चुकी है. लॉस एंजिलेस में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में माहामारी विशेषज्ञ जू-फेंग झांग कहते हैं कि अगर चीन क��� सरकार ने सिर्फ 6 दिन पहले कार्रवाई की होती तो मरीजों की संख्‍या काफी कम होती और उपलब्‍ध मेडिकल सुविधाएं पर्याप्‍त होतीं. शायद वुहान का मेडिकल सिस्‍टम इतनी बुरी तरह से चरमराता नहीं.
पहले केस पर एकराय नहीं है चीन के अधिकारी-शोधकर्ता कोरोना वायरस का पहला केस सामने आने और शुरुआत की जगह को लेकर भी चीन की सरकार और विशेषज्ञ एकराय नहीं हैं. चीन ने बताया था कि संक्रमण का पहला मामला 31 दिसंबर, 2019 को सामने आया था. पहले मामलों में निमोनिया और बुखार जैसे लक्षण वाले कई लोग थे. हालांकि, चीन के ही शोधकर्ताओं का मानना है कि वहां संक्रमण का पहला मामला 1 दिसंबर को ही सामने आ गया था. वहीं, चीन की सरकार वुहान के मांस व मछली बाजार को संक्रमण का केंद्र मानती है. वहीं, लैंसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस का इस बाजार से कोई संबंध ही नहीं है. चीन के ही शोधकर्ताओं की ओर से प्रकाशित इस शोध के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमित पहले व्यक्ति का मामला 1 दिसंबर, 2019 को दर्ज हुआ. यह व्यक्ति वुहान के मछली थोक बाजार के संपर्क में आया ही नहीं था.
चीन के अधिकारी और शोधकर्ता संंक्रमण के पहलेे केस और फैलने की शुरुआत की जगह को लेकर एकराय नहीं हैं.
मछली बाजार से संक्रमण फैलने को लेकर भी राय अलग वुहान के जिनिनटान अस्पताल की एक वरिष्ठ डॉक्टर और लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट तैयार करने वाले शोधकर्ताओं में एक वू वेनजुआन ने बताया कि यह बुजुर्ग अल्‍जाइमर का मरीज था. मछली बाजार उसके घर से काफी दूर है. भूलने की बीमारी के कारण ये बुजुर्ग कभी बाहर गया ही नहीं था. ऐसे में उसके मछली बाजार से संक्रमित होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इस बुजुर्ग के बाद तीन अन्य लोगों में संक्रमण के लक्षण दिखाई दिए. उनमें से भी दो कभी मछली बाजार नहीं गए थे. शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण के शुरुआती चरण में अस्पताल में भर्ती हुए 41 में 14 मरीज कभी मछली बाजार नहीं गए थे. वहीं, चीन के डॉ. ली वेनलियांग ने भी दिसंबर के शुरुआत में ही कोरोना वायरस की चेतावनी दे दी थी. इसके बाद उन पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया. बाद में कोरोना वायरस के कारण ही अस्‍पताल में उनकी मौत हो गई.
सीडीसी ने शुरुआत में दर्ज ही नहीं किए पॉजिटिव केस कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की सरकार लोगों के बीच पैनिक नहीं फैलने देना चाहती थी. अधिकारी चुपचाप इस वायरस से निपटना चाहते थे. उन्‍होंने संक्रमण के पुष्‍ट होने और घोषणा करने के बीच के समय में चुपचाप काफी तेजी से काम किया. लेकिन, बीजिंग में चीन के नेताओं की ओर से की गई 6 दिन की देरी करीब दो हफ्तों में तब्‍दील हो गई क्‍योंकि तब तक नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने स्‍थानीय अधिकारियों से एक भी पॉजिटिव केस रजिस्‍टर नहीं कराया था. हालांकि, 5 जनवरी से 17 जनवरी के बीच सैकडों की संख्‍या में संक्रमित मरीज वुहान के साथ ही पूरे देश के अलग-अलग अस्‍पतालों में सामने आ चुके थे. चीन में आज तक यही तय नहीं हो पाया है कि नेशनल लेवल के अधिकारियों की गलती रही उनका रिकॉर्ड रखने में या स्‍थानीय अधिकारियों की गलती रही उन्‍हें रिपोर्ट करने में.
कोरोना वायरस के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने वाले 8 डॉक्‍टरों को अफवाह फैलाने के आरोप में सजा दी गई.
‘सूचना को दबाया और डॉक्‍टरों को सजा दी गई’ विशेषज्ञ कहते हैं, ‘एक बात एकदम साफ है कि अधिकारियों ने सूचना पर नियंत्रण रखा, ब्‍यूरोक्रेट्स की तरफ से हर तरह की मुश्‍किलें पैदा की गईं. उन्‍होंने बुरी खबरों को ऊपर तक भेजा ही नहीं था. यहां तक कि 8 डॉक्‍टरों को कोरोना वायरस के बारे में अफवाह फैलाने के आरोप में सजा दी गई थी.’ यहां तक कि इन डॉक्‍टरों को सजा देने की खबर 2 जनवरी को नेशनल टेलीविजन पर प्रसारित की गई. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में चाइनीज पॉलिटिक्‍स के प्रोफेसर दली यांग ने बताया कि इसके बाद वुहान के डॉक्‍टरों के मन में डर बैठ गया. उन 8 डॉक्‍टरों को दी गई सजा डॉक्‍टरी प्रोफेशन से जुडे हर आदमी के लिए सीधी धमकी का काम कर गई. इसके बाद चीन के बाहर कोरोना वायरस का पहला केस थाइलेंड में 13 जनवरी को सामने आ चुका था. इसके बाद चीन की सरकार ने देश भर में संक्रमित लोगों को खोजने की योजना पर काम करना शुरू किया. सीडीसी से मंजूरी प्राप्‍त कोरोना टेस्‍ट किट्स पूरे देश में बांटी गईं. डॉक्‍टरों को बोला गया कि लोगों को बिना बताए मरीजों का कोरोना टेस्‍ट किया जाए.
हमने शुरु में ही WHO को बता दिया था : चीन चीन की सरकार बार-बार यही कहती रही कि उन्‍होंने शुरुआती दौर में सूचनाओं को बिलकुल नहीं छुपाया. उनका कहना है कि उन्‍होंने विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) को संक्रमण फैलने की तुरंत जानकारी दी थी. चीन के विदेश मंत्री के प्रवक्‍ता जाओ लिजियान ने दलील दी थी कि हम पर सूचनाएं छुपाने और पारदर्शिता की कमी के आरोप आधारहीन हैं. दस्‍तावेजों के मुताबिक, चीन के नेशनल हेल्‍थ कमीशन (NHC) के प्रमुख मा शाओवेई ने 14 जनवरी को ही हालात के बारे में अपना आकलन प्रांतीय स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों को बता दिया था. एक मेमो में बताया गया है कि मा शाओवेई ने टेलीकांफ्रेंस के जरिये स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों को राष्‍ट्रपति, प्रधाानमंत्री ली कछ्यांग और उप-प्रधानमंत्री सुन चनलन की ओर से कोरोना वायरस को लेकर निर्देश दिए थे. लेकिन, ये साफ नहीं है कि ये निर्देश क्‍या थे.
चीन के नेशनल हेल्‍थ कमीशन ने 15 जनवरी को ही स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों से कहा था कि महामारी के हालात गंभीर और जटिल हैं.
मा ने अधिकारियों को महामारी के बारे में बताया मेमो के मुताबिक, मा ने स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों से कहा कि महामारी के हालात गंभीर और जटिल हैं. ये सार्स के बाद की सबसे गंभीर चुनौती होगी. ये बीमारी बहुत भयंकर जनस्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या बनने वाली है. चीन में नेशनल हेल्‍थ कमीशन देश की शीर्ष मेडिकल एजेंसी है. एनएचसी ने एक बयान में कहा था कि उसने थाइलैंड में एक पॉजिटिव केस मिलने के कारण प्रांतीय स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों के साथ टेलीकांफ्रेंस की थी. हमें लगा कि न्‍यू ईयर पर भारी संख्‍या में लोगों के यात्रा करने के कारण वायरस तेजी से फैल सकता है. साथ ही कहा था कि चीन ने संक्रमण फैलने की घोषणा खुले तौर पर पारदर्शी तरीके से समय रहते कर दी थी. साथ ही लोगों को राष्‍ट्रपति जिनपिंग की ओर से जारी अहम दिशानिर्देश भी बता दिए थे. हालांकि, एसोसिएटेड प्रेस की कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मेडिकल सेक्‍टर के लोगों को दिशानिर्देश अज्ञात स्रोत से मिले थे, जिन पर किसी का नाम तक नहीं था. इनमें कुछ दस्‍तावेजों को फरवरी में प्रकाशित किया गया.
स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों को तैयार रहने का था निर्देश मेमो में एक जगह साफ तौर पर कहा गया था कि कोरोना वायरस इंसान से इंसान में फैलने की पूरी संभावना है. इसमें थाइलैंड के केस का हवाला देते हुए कहा गया था कि हालात तेजी से बदल रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि इसका तेजी से फैलना शुरू हो चुका है. वसंत उत्‍सव के लिए हजारों लोग यात्राएं करेंगे और संक्रमण के फैलने का खतरा बढ जाएगा. सभ�� अधिकारी वैश्विक महामारी के लिए पूरी तरह तैयार रहें. बता दें कि ये मेमो 15 जनवरी का है. मा ने अधिकारियों से जिनपिंग के साथ कदम मिलकर काम करने की अपील की. हालांकि, दस्‍तावेजों से यह स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता है कि चीन के नेताओं ने आम लोगों को इस बारे में आगाह करने में 6 अतिरिक्‍त दिन क्‍यों लगाए. येल यूनिवर्सिटी में चीन की राजनीति के विद्वान डेनियल मैंटिंगली कहते हैं कि मार्च में चीन में शीर्ष नेताओं की एक बैठक की योजना पर काम चल रहा था. शायद चीन के नेता उससे पहले आम लोगों में डर पैदा नहीं होने देना चाहते थे. मेरा मानना है कि वे कुछ समय और रुककर संक्रमण के प्रसार की रफ्तार देखकर कोई फैसला लेना चाहते थे.
चीन के सीडीसी ने 15 जनवरी से ही चुपचाप संदिग्‍धों का डाटा इकट्ठा करना शुरू कर दिया.
सीडीसी ने 15 जनवरी को चुपचाप काम शुरू किया टेलीकांफ्रेंस के बाद 15 जनवरी को ही बीजिंग में सीडीसी ने आंतरिक तौर पर उच्‍चस्‍तरीय आपातकालीन कार्रवाई शुरू कर दी. सीडीसी के शीर्ष नेताओं को 14 वर्किंग ग्रुप देकर फंड जुटाने, स्‍वास्‍थ्‍यकर्मियों को प्रशिक्षण देने, डाटा जुटाने, फील्‍ड में जाकर जांच कररने और लैब्‍स सुपरवाइज करने का काम सौंपा गया. मेमो में हुबेई प्रांत को हवाई अड्डे, बस अड्डे और ट्रेन स्‍टेशनों पर लोगों का बुखार चेक करने का निर्देश दिया गया. इसके अलावा प्रांतीय स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों को 63 पेज का निर्देशों का एक सेट बांटा गया. इसमें स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारियों को संदिग्‍ध मामलों की पहचान करने, अस्‍पतालों में फीवर क्‍लीनिक खोलने और डॉक्‍टरों व नर्सों को प्रोटेक्टिव कपडे पहनने के निर्देश दिए गए थे. इस सेट पर इंटरनल मार्क किया गया था. इस पर साफ तौर पर लिखा गया था कि ये सेट सार्वजनिक करने के लिए नहीं है.
‘चेतावनी पहले देते तो बच जाती हजारों लोगों की जान’ अधिकारी खतरे को कम करके बताते रहे और महामारी दुनिया को चपेट में लेने की दिशा में फैलनी शुरू हो चुकी थी. संक्रमण फैलने के बीच 20 जनवरी को या यूं कहें कि काफी देर से शी जिनपिंग ने आखिरकार दुनिया को बताया कि लोगों को कोरोना वायरस को गंभीरता से लेना चाहिए. अगर यही काम पहले कर दिया गया होता तो हालात इतने बुरे नहीं होते. अगर पहले ही लोगों को सोेशल डिस्‍टेंसिंग, फेस मास्‍क पहले और यात्रा प्रतिबंध लगा दिए गए होते तो कोरोना वायरस के पॉजिटिव केस एक तिहाई होते.
लॉस एंजिलेस में डॉक्‍टर झांग का कहना है कि पहले दी गई चेतावनी हजारों लोगों की जिंदगी बचा सकती थी. हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग में महामारी विशेषज्ञ बेंजामिन कावले का कहना है कि अगर वे हर तरफ से आश्‍वस्‍त होने से पहले ही घोषणा कर देते तो उनकी योग्‍यता पर भी सवाल उठते. महज 6 दिन की देरी को बहुत देर नहीं माना जाना चाहिए. संक्रमण की घोषणा के करीब दो महीने बाद तक अमेरिका तो खतरे की तरफ से आंखें ही बंद किए रहा. उसके पास तो तैयारी का पूरा मौका था. फिर भी अमेरिका के हालात सबसे बुरे हैं.
youtube
ये भी देखें:
Coronavirus: चीन के वुहान शहर में लॉकडाउन हटने के बाद भी सख्‍ती से लागू की जा रही हैं कई पाबंदियां
Coronavirus: यूपी का वो आईएएस, जिसने कोरोना रोकने के लिए कर दिया एक बड़ा काम
Coronavirus: दिल्‍ली में प्‍लाज्‍मा थेरेपी से सुधरी संक्रमित की हालत, जानें कैसे होता है इलाज
जानें कोरोना वायरस के कारण खसरा समेत इन जानलेवा बीमारियों की रोकथाम पर पड़ रहा है असर
function serchclick() var seacrhbox = document.getElementById("search-box"); if (seacrhbox.style.display === "block") seacrhbox.style.display = "none"; else seacrhbox.style.display = "block";
document.addEventListener("DOMContentLoaded", function() document.getElementById("search-click").addEventListener("click", serchclick); /* footer brand slider start */ new Glide(document.querySelector('.ftrchnl-in-wrap'), type: 'carousel', perView: 8, ).mount(); ); ! function(f, b, e, v, n, t, s) if (f.fbq) return; n = f.fbq = function() n.callMethod ? n.callMethod.apply(n, arguments) : n.queue.push(arguments) ; if (!f._fbq) f._fbq = n; n.push = n; n.loaded = !0; n.version = '2.0'; n.queue = []; t = b.createElement(e); t.async = !0; t.src = v; s = b.getElementsByTagName(e)[0]; s.parentNode.insertBefore(t, s) (window, document, 'script', 'https://connect.facebook.net/en_US/fbevents.js'); fbq('init', '482038382136514'); fbq('track', 'PageView'); Source link
0 notes
raghav-shivang · 3 years
Link
Tumblr media
कमजोर खानपान का असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पौष्टिक आहार न मिलने से बच्चों की औसत लंबाई पर 20 सेंटीमीटर (7.9 इंच) तक का असर पड़ सकता है।
लम्बाई बच्चों के खानपान के स्तर को बताती है
रिसर्च कहती है, किसी इलाके में खास उम्र के बच्चों की औसत लंबाई से यह पता लगाया जा सकता है कि लम्बे समय तक वहां खाने की क्वालिटी कैसी रही है। बच्चों की लंबाई और वजन में जेनेटिक्स की अहम भूमिका होती है। लेकिन, जब बात पूरी आबादी के बच्चों की लंबाई और वजन की हो तो इसमें पोषण और पर्यावरण का रोल अधिक होता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में 19 साल की उम्र के लड़कों में सबसे अधिक औसत लंबाई नीदरलैंड्स में थी। इस आयुवर्ग के लड़कों की औसत लंबाई 183.8 सेंटीमीटर (करीब 6 फीट) थी। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई तिमोर (160.1 सेंटीमीटर या 5 फीट, 3 इंच) में थी।
ऐसे हुई रिसर्च इस रिसर्च के लिए 5 से 19 साल तक के 6.5 करोड़ बच्चों के डेटा का विश्लेषण किया गया है। ये डेटा 1985 से लेकर साल 2019 तक हुई 2000 से ज्यादा स्टडी से लिए गए हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि सबसे अधिक औसत लंबाई उत्तर-पश्चिमी और सेंट्रल यूरोप के देशों में है। वहीं, सबसे कम औसत लंबाई दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका में है।
नीदरलैंड्स को उदाहरण बनाकर समझाया लाओस में रहने वाले 19 साल के लड़कों की औसत लंबाई नीदरलैंड में रहने वाले 13 साल के बच्चों की औसत लंबाई के आसपास यानी 5 फीट, 4 इंच है। ग्वाटेमाला, बांग्लादेश, नेपाल और तिमोर की 19 साल की लड़कियों की औसत लंबाई नीदरलैंड्स की 11 साल की लड़कियों की औसत लंबाई (5 फीट) के बराबर है।
लंबाई में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में रिपोर्ट के मुताबिक 1985 के बाद से यानी पिछले 35 सालों में बच्चों की औसत लंबाई के मामले में सबसे ज्यादा सुधार चीन और दक्षिण कोरिया में आया है। वहीं, कई सब-सहारा अफ्रीका के देशों की औसत लंबाई इन सालों में नहीं बदली है।
ये भी पढ़ें
मोबाइल फोन की स्क्रीन पर 28 दिन तक जिंदा रह सकता है कोरोना
प्लाज्मा थैरेपी कोरोना मरीजों की मौत को रोकने में कारगर नहीं
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tumblr media
Deficiency of nutrients in baby can reduce body length by 8 inches
0 notes
ivxtimes · 4 years
Link
Tumblr media
परिस्थितियां कैसी भी हो, मां हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करती है। कोरोना काल में भी यह बात साबित हुई है। मां इस महामारी में भी बच्चों के लिए ढाल बन रही है। मां का दूध रक्षा कवच बना हुआ है। मां भले ही कोरोना पॉजिटिव रही हो, लेकिन उसका बच्चे को संक्रमण नहीं लगा। कोरोना काल के दौरान गुजरात में सूरत के दो सरकारी अस्पताल में 241 कोरोना पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी हुई। इनमें से मात्र 13 के नवजात ही कोरोना पॉजिटिव पैदा हुए।
नवजात में लक्षण नहीं मिले प्रोटोकाल के अनुसार अन्य नवजातों का टेस्ट हुआ। लेकिन कोरोना के कोई भी लक्षण उनमें नहीं मिले और न ही अब तक इन बच्चों को कोई समस्या हुई है। वहीं 228 बच्चे कोरोना निगेटिव मिले। इस दौरान कोरोना पॉजिटिव मां का इलाज होता रहा। बच्चे दूध पीते रहे, लेकिन किसी भी बच्चे को कोई समस्या नहीं हुई। कुछ दिन के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।
7 हजार डिलीवरी हुई, सभी बच्चे सुरक्षित कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं। अब तक जितने भी संक्रमित हुए, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई। स्मीमेर अस्पताल के गायनी विभाग के एचओडी डॉ. अश्विन वाछानी ने बताया कि मां भले भी कोरोना पॉजिटिव हो, पर उसके दूध में इतनी ताकत है कि बच्चे को मामूली समस्या भी नहीं होती। इस बात की पुष्टि कोरोना काल के आंकड़े भी कर रहे हैं।
रिसर्च में भी पुष्टि हुई, मां का दूध सेफ है
डिलीवरी के बाद कोरोना पीड़ित मां से उसके नवजात बच्चे को कोरोना का संक्रमण हो रहा है या नहीं, इसे समझने के लिए हाल ही में एक रिसर्च हुई। 120 नवजातों में पर हुई रिसर्च में सामने आया कि अगर जरूरी सावधानी बरती जाए तो संक्रमित मां से जन्मे बच्चे को कोविड-19 नहीं हो सकता। जन्म के दो हफ्ते बाद तक ब्रेस्टफीडिंग कराने और स्किन-टू-स्किन कॉन्टेक्ट करने पर भी संक्रमण नहीं फैलता।
ब्रेस्टफीडिंग सेफ है
महामारी की शुरुआत में विशेषज्ञों ने मां और नवजात बच्चे को अलग-अलग रखने की बात कही थी। लेकिन हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने कहा, अगर सावधानी बरती जाती है तो मां नवजात को ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है, यह सेफ है। लैंसेट जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, अच्छी सेहत के लिए मां और नवजात को एक-दूसरे का शारीरिक स्पर्श बेहद जरूरी है।
ऐसे हुई रिसर्च
न्यूयॉर्क के तीन अस्पतालों में 120 नवजातों पर 22 मार्च से 17 मई के बीच रिसर्च हुई। जन्म के 24 घंटे के अंदर इनका कोविड-19 टेस्ट हुआ। 79 नवजातों की 5 से 7 दिन में दोबारा कोविड-19 जांच हुई। इसमें 72 नवजातों का दो हफ्ते बाद एक बार फिर कोरोना टेस्ट हुआ। किसी भी नवजात की रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई और न ही कोई लक्षण दिखा।
इन बातों का ध्यान रखने की जरूरत
शोधकर्ताओं के मुताबिक, नवजात को उठाते वक्त और ब्रेस्टफीडिंग कराते समय कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है। जैसे- मां को सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए, ब्रेस्टफीडिंग कराने से पहले स्तन को वॉश करना जरूरी और हाथों को साबुन से धोएं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tumblr media
कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं।
Thanks for reading. Please Share, Comment, Like the post And Follow, Subscribe IVX Times. fromSource
0 notes
raghav-shivang · 4 years
Link
Tumblr media
परिस्थितियां कैसी भी हो, मां हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करती है। कोरोना काल में भी यह बात साबित हुई है। मां इस महामारी में भी बच्चों के लिए ढाल बन रही है। मां का दूध रक्षा कवच बना हुआ है। मां भले ही कोरोना पॉजिटिव रही हो, लेकिन उसका बच्चे को संक्रमण नहीं लगा। कोरोना काल के दौरान गुजरात में सूरत के दो सरकारी अस्पताल में 241 कोरोना पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी हुई। इनमें से मात्र 13 के नवजात ही कोरोना पॉजिटिव पैदा हुए।
नवजात में लक्षण नहीं मिले प्रोटोकाल के अनुसार अन्य नवजातों का टेस्ट हुआ। लेकिन कोरोना के कोई भी लक्षण उनमें नहीं मिले और न ही अब तक इन बच्चों को कोई समस्या हुई है। वहीं 228 बच्चे कोरोना निगेटिव मिले। इस दौरान कोरोना पॉजिटिव मां का इलाज होता रहा। बच्चे दूध पीते रहे, लेकिन किसी भी बच्चे को कोई समस्या नहीं हुई। कुछ दिन के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।
7 हजार डिलीवरी हुई, सभी बच्चे सुरक्षित कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं। अब तक जितने भी संक्रमित हुए, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई। स्मीमेर अस्पताल के गायनी विभाग के एचओडी डॉ. अश्विन वाछानी ने बताया कि मां भले भी कोरोना पॉजिटिव हो, पर उसके दूध में इतनी ताकत है कि बच्चे को मामूली समस्या भी नहीं होती। इस बात की पुष्टि कोरोना काल के आंकड़े भी कर रहे हैं।
रिसर्च में भी पुष्टि हुई, मां का दूध सेफ है
डिलीवरी के बाद कोरोना पीड़ित मां से उसके नवजात बच्चे को कोरोना का संक्रमण हो रहा है या नहीं, इसे समझने के लिए हाल ही में एक रिसर्च हुई। 120 नवजातों में पर हुई रिसर्च में सामने आया कि अगर जरूरी सावधानी बरती जाए तो संक्रमित मां से जन्मे बच्चे को कोविड-19 नहीं हो सकता। जन्म के दो हफ्ते बाद तक ब्रेस्टफीडिंग कराने और स्किन-टू-स्किन कॉन्टेक्ट करने पर भी संक्रमण नहीं फैलता।
ब्रेस्टफीडिंग सेफ है
महामारी की शुरुआत में विशेषज्ञों ने मां और नवजात बच्चे को अलग-अलग रखने की बात कही थी। लेकिन हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने कहा, अगर सावधानी बरती जाती है तो मां नवजात को ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है, यह सेफ है। लैंसेट जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, अच्छी सेहत के लिए मां और नवजात को एक-दूसरे का शारीरिक स्पर्श बेहद जरूरी है।
ऐसे हुई रिसर्च
न्यूयॉर्क के तीन अस्पतालों में 120 नवजातों पर 22 मार्च से 17 मई के बीच रिसर्च हुई। जन्म के 24 घंटे के अंदर इनका कोविड-19 टेस्ट हुआ। 79 नवजातों की 5 से 7 दिन में दोबारा कोविड-19 जांच हुई। इसमें 72 नवजातों का दो हफ्ते बाद एक बार फिर कोरोना टेस्ट हुआ। किसी भी नवजात की रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई और न ही कोई लक्षण दिखा।
इन बातों का ध्यान रखने की जरूरत
शोधकर्ताओं के मुताबिक, नवजात को उठाते वक्त और ब्रेस्टफीडिंग कराते समय कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है। जैसे- मां को सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए, ब्रेस्टफीडिंग कराने से पहले स्तन को वॉश करना जरूरी और हाथों को साबुन से धोएं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tumblr media
कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं।
0 notes
raghav-shivang · 4 years
Link
Tumblr media
परिस्थितियां कैसी भी हो, मां हमेशा अपने बच्चों की रक्षा करती है। कोरोना काल में भी यह बात साबित हुई है। मां इस महामारी में भी बच्चों के लिए ढाल बन रही है। मां का दूध रक्षा कवच बना हुआ है। मां भले ही कोरोना पॉजिटिव रही हो, लेकिन उसका बच्चे को संक्रमण नहीं लगा। कोरोना काल के दौरान गुजरात में सूरत के दो सरकारी अस्पताल में 241 कोरोना पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी हुई। इनमें से मात्र 13 के नवजात ही कोरोना पॉजिटिव पैदा हुए।
नवजात में लक्षण नहीं मिले प्रोटोकाल के अनुसार अन्य नवजातों का टेस्ट हुआ। लेकिन कोरोना के कोई भी लक्षण उनमें नहीं मिले और न ही अब तक इन बच्चों को कोई समस्या हुई है। वहीं 228 बच्चे कोरोना निगेटिव मिले। इस दौरान कोरोना पॉजिटिव मां का इलाज होता रहा। बच्चे दूध पीते रहे, लेकिन किसी भी बच्चे को कोई समस्या नहीं हुई। कुछ दिन के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।
7 हजार डिलीवरी हुई, सभी बच्चे सुरक्षित कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं। अब तक जितने भी संक्रमित हुए, उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई। स्मीमेर अस्पताल के गायनी विभाग के एचओडी डॉ. अश्विन वाछानी ने बताया कि मां भले भी कोरोना पॉजिटिव हो, पर उसके दूध में इतनी ताकत है कि बच्चे को मामूली समस्या भी नहीं होती। इस बात की पुष्टि कोरोना काल के आंकड़े भी कर रहे हैं।
रिसर्च में भी पुष्टि हुई, मां का दूध सेफ है
डिलीवरी के बाद कोरोना पीड़ित मां से उसके नवजात बच्चे को कोरोना का संक्रमण हो रहा है या नहीं, इसे समझने के लिए हाल ही में एक रिसर्च हुई। 120 नवजातों में पर हुई रिसर्च में सामने आया कि अगर जरूरी सावधानी बरती जाए तो संक्रमित मां से जन्मे बच्चे को कोविड-19 नहीं हो सकता। जन्म के दो हफ्ते बाद तक ब्रेस्टफीडिंग कराने और स्किन-टू-स्किन कॉन्टेक्ट करने पर भी संक्रमण नहीं फैलता।
ब्रेस्टफीडिंग सेफ है
महामारी की शुरुआत में विशेषज्ञों ने मां और नवजात बच्चे को अलग-अलग रखने की बात कही थी। लेकिन हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने कहा, अगर सावधानी बरती जाती है तो मां नवजात को ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है, यह सेफ है। लैंसेट जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, अच्छी सेहत के लिए मां और नवजात को एक-दूसरे का शारीरिक स्पर्श बेहद जरूरी है।
ऐसे हुई रिसर्च
न्यूयॉर्क के तीन अस्पतालों में 120 नवजातों पर 22 मार्च से 17 मई के बीच रिसर्च हुई। जन्म के 24 घंटे के अंदर इनका कोविड-19 टेस्ट हुआ। 79 नवजातों की 5 से 7 दिन में दोबारा कोविड-19 जांच हुई। इसमें 72 नवजातों का दो हफ्ते बाद एक बार फिर कोरोना टेस्ट हुआ। किसी भी नवजात की रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई और न ही कोई लक्षण दिखा।
इन बातों का ध्यान रखने की जरूरत
शोधकर्ताओं के मुताबिक, नवजात को उठाते वक्त और ब्रेस्टफीडिंग कराते समय कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है। जैसे- मां को सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए, ब्रेस्टफीडिंग कराने से पहले स्तन को वॉश करना जरूरी और हाथों को साबुन से धोएं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Tumblr media
कोरोना काल में सिविल और स्मीमेर अस्पताल में 7 हजार डिलीवरी हो चुकी हैं। ज्यादातर बच्चे निगेटिव हैं।
0 notes
ivxtimes · 4 years
Link
कैंसर के मरीज और इसकी पुरानी हिस्ट्री वाले पीड़ितों में कोविड-19 का संक्रमण होने पर मौत का खतरा 28 फीसदी तक है। अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन और कनाडा की रिपोर्ट में ऐसे ही मामले सामने आए हैं। इंग्लैंड में अलग-अलग कैंसर के ऐसे 800 मरीजों पर रिसर्च की गई जो कोरोना से जूझ रहे थे। इनमें मौत की दर 28 फीसदी तक देखी गई है। इनमें ऐसे बुजुर्ग मरीज थे जो हाई ब्लड प्रेशर और दूसरी समस्याओं से परेशान थे उनमें खतरा और भी ज्यादा देखा था।
दूसरी रिसर्च में भी ऐसे मामले सामने आए लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध के मुताबिक, 928 कैंसर के मरीजों में कोविड-19 का संक्रमण होने पर उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। इनमें से 13 फीसदी मरीजों की मौत हो गई। यह आंकड़ा कोरोना से हो रही सामान्य लोगों की मौत की दर से ज्यादा है।
ऐसे मरीजों को अधिक देखभाल की जरूरत अमेरिका की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी की डाटा साइंटिस्ट डॉ. जेरेम वार्नर का कहना है, रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि कई अस्पतालों ने कैंसर के मरीजों में जरूरी सावधानी बरतने में या तो देरी की या देखभाल में बदलाव किया है। ऐसे मरीज ज��नका पहले कैंसर ट्रीटमेंट हो चुका है उन्हें कोरोना के इस समय में अधिक देखभाल की जरूरत है।
ऐसे मरीजों को घर पर ही रहने की सलाह
साराह कैनन रिसर्च इंस्टीट्यूट के हेड डॉ. हॉवर्ड बुरिस के मुताबिक, हम कोशिश कर रहे हैं कि महामारी के बीच कैंसर के मरीजों को हॉस्पिटल तक न पहुंचना पड़े। खासतौर पर ऐसे मरीज जो पहले ही फेफड़ों की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे सभी मरीजों कोघर पर ही रहकर अधिक देखभाल रखने की सलाह दी जा रही है।
कैंसर के 50 फीसदी मरीज कोरोना से परेशान
डॉ. हॉवर्ड बुरिस के मुताबिक, हमारी रिसर्च में शामिल कैंसर का इलाज करा रहे 50 फीसदी मरीजों में कोरोना की पुष्टि हुई है। अन्य 50 फीसदी का या तो ट्रीटमेंट पूरा नहीं हुआ है या शुरू ही नहीं हुआ है। ऐसे मरीज जिनकी कैंसर की हिस्ट्री रही है, उनकी खास देखभाल की जा रही है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Coronavirus Cancer Research Latest Updates; Cancer Patients With Corona May Face Risk Of Death
Thanks for reading. Please Share, Comment, Like the post And Follow, Subscribe IVX Times. fromSource
0 notes
raghav-shivang · 4 years
Link
कैंसर के मरीज और इसकी पुरानी हिस्ट्री वाले पीड़ितों में कोविड-19 का संक्रमण होने पर मौत का खतरा 28 फीसदी तक है। अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन और कनाडा की रिपोर्ट में ऐसे ही मामले सामने आए हैं। इंग्लैंड में अलग-अलग कैंसर के ऐसे 800 मरीजों पर रिसर्च की गई जो कोरोना से जूझ रहे थे। इनमें मौत की दर 28 फीसदी तक देखी गई है। इनमें ऐसे बुजुर्ग मरीज थे जो हाई ब्लड प्रेशर और दूसरी समस्याओं से परेशान थे उनमें खतरा और भी ज्यादा देखा था।
दूसरी रिसर्च में भी ऐसे मामले सामने आए लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध के मुताबिक, 928 कैंसर के मरीजों में कोविड-19 का संक्रमण होने पर उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। इनमें से 13 फीसदी मरीजों की मौत हो गई। यह आंकड़ा कोरोना से हो रही सामान्य लोगों की मौत की दर से ज्यादा है।
ऐसे मरीजों को अधिक देखभाल की जरूरत अमेरिका की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी की डाटा साइंटिस्ट डॉ. जेरेम वार्नर का कहना है, रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि कई अस्पतालों ने कैंसर के मरीजों में जरूरी सावधानी बरतने में या तो देरी की या देखभाल में बदलाव किया है। ऐसे मरीज जिनका पहले कैंसर ट्रीटमेंट हो चुका है उन्हें कोरोना के इस समय में अधिक देखभाल की जरूरत है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Coronavirus Cancer Research Latest Updates; Cancer Patients With Corona May Face Risk Of Death
0 notes
raghav-shivang · 4 years
Link
कैंसर के मरीज और इसकी पुरानी हिस्ट्री वाले पीड़ितों में कोविड-19 का संक्रमण होने पर मौत का खतरा 28 फीसदी तक है। अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन और कनाडा की रिपोर्ट में ऐसे ही मामले सामने आए हैं। इंग्लैंड में अलग-अलग कैंसर के ऐसे 800 मरीजों पर रिसर्च की गई जो कोरोना से जूझ रहे थे। इनमें मौत की दर 28 फीसदी तक देखी गई है। इनमें ऐसे बुजुर्ग मरीज थे जो हाई ब्लड प्रेशर और दूसरी समस्याओं से परेशान थे उनमें खतरा और भी ज्यादा देखा था।
दूसरी रिसर्च में भी ऐसे मामले सामने आए लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध के मुताबिक, 928 कैंसर के मरीजों में कोविड-19 का संक्रमण होने पर उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। इनमें से 13 फीसदी मरीजों की मौत हो गई। यह आंकड़ा कोरोना से हो रही सामान्य लोगों की मौत की दर से ज्यादा है।
ऐसे मरीजों को अधिक देखभाल की जरूरत अमेरिका की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी की डाटा साइंटिस्ट डॉ. जेरेम वार्नर का कहना है, रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि कई अस्पतालों ने कैंसर के मरीजों में जरूरी सावधानी बरतने में या तो देरी की या देखभाल में बदलाव किया है। ऐसे मरीज जिनका पहले कैंसर ट्रीटमेंट हो चुका है उन्हें कोरोना के इस समय में अधिक देखभाल की जरूरत है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Coronavirus Cancer Research Latest Updates; Cancer Patients With Corona May Face Risk Of Death
0 notes