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#लता मंगेशकर की मौत का कारण
mykrantisamay · 2 years
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मल्टी-ऑर्गन फेल्योर के कारण लता मंगेशकर का निधन; पीएम मोदी, शाहरुख खान, अन्य ने दी अंतिम श्रद्धांजलि
मल्टी-ऑर्गन फेल्योर के कारण लता मंगेशकर का निधन; पीएम मोदी, शाहरुख खान, अन्य ने दी अंतिम श्रद्धांजलि
रविवार को लता मंगेशकर के निधन की दिल दहला देने वाली खबर से देश जाग गया। महान गायक को पिछले महीने कोविड -19 के लिए सकारात्मक परीक्षण के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उसने पिछले हफ्ते ठीक होने के लक्षण दिखाए, वहीं शनिवार को उसकी हालत बिगड़ गई। उनका इलाज कर रहे डॉक्टर ने रविवार को मीडिया को बताया कि लता का निधन मल्टी ऑर्गन फेल्योर के कारण हुआ है. गायक के लिए देश भर से और पाकिस्तान से भी…
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biowikihindi · 2 years
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बप्पी लहरी का जीवन परिचय – Bappi Lahiri Biography in hindi
बप्पी लहरी का जीवन परिचय – Bappi Lahiri Biography in hindi
Bappi Lahiri Death Reason: बप्पी लहरी के मौत की वजह है ये अभी हाल ही में बॉलीवुड की स्वर कोकिला और भारत रत्न से सम्मानित गायिका लता मंगेशकर का निधन हो गया जिसके बाद पूरा बॉलीवुड अभी शोक में डूबा हुआ है। इसी बीच आई खबरों के मुताबिक 16 फरवरी की रात में बॉलीवुड के मशहूर संगीतकार बप्पी लहरी (Bappi Lahiri) का निधन हो गया है, बप्पी लहरी काफी समय से बीमार चल रहे थे जिसके कारण वह अक्सर अस्पताल में अपना…
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parichaytimes · 2 years
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ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के कारण गायक बप्पी लाहिड़ी की मौत; यहाँ स्वास्थ्य की स्थिति का क्या अर्थ है - टाइम्स ऑफ़ इंडिया
ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के कारण गायक बप्पी लाहिड़ी की मौत; यहाँ स्वास्थ्य की स्थिति का क्या अर्थ है – टाइम्स ऑफ़ इंडिया
भारत ने अपनी कोकिला लता मंगेशकर को खोने के ठीक 10 दिन बाद, अनुभवी गायक बप्पी लाहिरी, जिन्हें बप्पी दा के नाम से जाना जाता है, ने आज मुंबई में अंतिम सांस ली। रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी मौत ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया की वजह से हुई है। अस्पताल के निदेशक डॉक्टर दीपक नामजोशी ने पीटीआई को बताया, “लहिरी को फेफड़ों में संक्रमण के कारण एक महीने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जो ऑब्सट्रक्टिव स्लीप…
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liajayeger1 · 2 years
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बप्पी लाहिड़ी की मौत का कारण / कारण
बप्पी लाहिड़ी की मौत का कारण / कारण
भारत ने अपनी कोकिला लता मंगेशकर को खोने के ठीक 10 दिन बाद, अनुभवी गायक बप्पी लाहिरी, जिन्हें बप्पी दा के नाम से जाना जाता है, ने आज मुंबई में अंतिम सांस ली। रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी मौत ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया की वजह से हुई है। अस्पताल के निदेशक डॉक्टर दीपक नामजोशी ने पीटीआई को बताया, “लहिरी को फेफड़ों में संक्रमण के कारण एक महीने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जो ऑब्सट्रक्टिव स्लीप…
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abhay121996-blog · 3 years
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हिंदी फीचर फिल्म : किनारा Divya Sandesh
#Divyasandesh
हिंदी फीचर फिल्म : किनारा
शारा बॉलीवुड में यह बात मशहूर है कि गुलज़ार रद्दी से रद्दी बंदे से एक्टिंग करवा लेते हैं और फिर उन्होंने फिल्म ‘किनारा’ में जितेंद्र जैसे व्यक्ति से एक्टिंग करवा ली तो फिर किसी से भी एक्टिंग करवा सकते हैं। जितेंद्र यानी बॉलीवुड के जम्पिंग जैक पर सबसे पहले संजीदा रोल देने का जुआ खेला वी. शांताराम ने। उन्होंने ही जितेंद्र को एक बुततराश का रोल देकर अपनी बेटी राजश्री को फिल्म की नायिका बना दिया। पाठक समझ ही गये होंगे कि यहां किस फिल्म की बात हो रही है? जी हां, सही समझे ‘गीत गाया पत्थरों ने’ फिल्म के हीरो जितेंद्र ही थे जिन्होंने किस संजीदगी से कलाकार का रोल निभाया है। उसके बाद उन पर परिपक्व रोल देने का जुआ गुलज़ार ने खेला ‘परिचय’ फिल्म बनाकर। हालांकि इस फिल्म में संजीव कुमार भी थे। मगर फिल्म का चेहरा मोहरा जितेंद्र के किरदार के कारण सजीव हुआ। फिर गुलज़ार ने उन्हें ‘खुशबू’ फिल्म में रोल दिया। वहां भी उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया। ‘किनारा’ भी ऐसी ही फिल्म है जहां किरदार के साथ जरा ऊंच-नीच हो गयी तो फिल्म का कलेवर गुड़-गोबर बन सकता था लेकिन यहां भी जितेंद्र ने निर्देशक को निराश नहीं होने दिया। ‘किनारा’ दरअसल उदास लम्हों को रूमानियत देने की कहानी है। गुलज़ार की लगभग सारी फिल्में ऐसी ही होती हैं। इजाज़त फिल्म को ही ले लीजिए। उदासी को खुशी जीनेभर का प्रयास मात्र है जिसे किसी इबारत में कलमबद्ध करना आसान नहीं है। मगर गुलज़ार तो जाने ही इसीलिए जाते हैं और उनकी फिल्में चलती भी इसीलिए हैं क्योंकि वे संवादों में उलटवासियों का इस्तेमाल करते हैं। इस फिल्म के संगीत ने भी इसे लोकप्रिय बनाने का काम किया है। राहुल देव बर्मन गुलज़ार के दोस्त हैं तो जाहिर है इस फिल्म के गीतों को भी संगीत वही देंगे। फिर गुलज़ार के लिखे गीतों को राहुल देव बर्मन ही संगीत दे सकते हैं। ब्लैंक वर्स में लिखी उनकी कविताएं पद्य कम गद्य ज्यादा लगती हैं। और उस ब्लैंक वर्स में से अच्छी पोइट्री निकालकर उसे सुरबद्ध करना, सिर्फ राहुल देव बर्मन ही कर सकते हैं। चलते-चलते एक वाकया पाठकों से शेयर कर लूं कि ‘इजाज़त’ के गीतों को संगीत देने की गर्ज से जब गुलज़ार राहुल देव से मिले तो राहुल देव ने गीतों का पुलिंदा देखकर कहा था, ‘अमां यार यह गीत है या कहानी? गीत तो है ही नहीं।’ ‘इजाज़त’ के सभी गीत ब्लैंक वर्स में थे। ‘किनारा’ का मशहूर गाना तो सुना ही होगा ‘नाम गुम जायेगा’ खूब कर्णप्रिय है। इस फिल्म की हीरोइन हेमामालिनी हैं जो डांसर बनी हैं क्योंकि गुलज़ार अच्छी तरह जानते थे कि किसका टैलेंट कहां भुनाना है? इस फिल्म की शूटिंग मांडू (मध्यप्रदेश) में हुई है। य��� मांडू वही है जो स्वदेश दीपक की कहानी के शीर्षक में है। ‘मैंने मांडू नहीं देखा।’ वैसे भी जिसने मांडू नहीं देखा, वह यह फिल्म देख ले। मांडू के महल की शिलाएं हैं या पत्थरों पर शायर की उकेरी कविताएंmdash;यहां रानी रूपमती और बाज बहादुर की मुहब्बत सिसकती है। सचमुच अगर मांडू महल का शिल्प देख लें तो आगरा का ताज भी झूठा लगता है और जूठा भी। गुलजार ने जिस तरह से महल के सारे कोनों को अपने कैमरे में कैद किया है, उससे मांडू का स्थापत्य शिल्प पुनर्जीवित हो उठा है। उदास लम्हों का गीत कैसे गाया जाता है, कोई गुलज़ार से पूछे। यह उनकी आंख का ही कमाल था कि उन्होंने अपने कैमरे में हवा की सरसराहट को भी कैद कर लिया। महराबें, भीतें, खिड़कियां और महल की अंदरूनी गलियां तो उनकी आंख को धोखा ही नहीं दे सकतीं। फुल मार्क्स सिनेमैटोग्राफी को। हेमामालिनी (आरती) हो और धर्मेंद्र न हों, यह कैसे हो सकता है? सत्यकाम और अनुपमा फिल्मों से भी ज्यादा सुंदर दिखे हैं धर्मेंद्र इसमें। शायद हेमामालिनी की उपस्थिति जिम्मेदाार हो। लब्बोलुआब यह कि फिल्म देखने के काबिल है। अब चलते हैं कहानी की ओर। किनारा फिल्म उस व्यक्ति की कहानी है जो उस लड़की के जीवन में उजास भरना चाहता है, जिसका जीवन एक त्रासदी के कारण बुझ चुका है। और इसकी शुरुआत होती है जब इंद्र (जितेंद्र) मांडू की उन्नींदे, फोटो खिंचवाने के केंद्र बने खंडहरों में आता है। वह वास्तुविद है। तभी हवा की सरसराहट इंद्र के आगे अधखुले पन्ने बिखेर देती है। जैसे ही वह उन कागजों को उठाने को होता है, उसे लगता है कि आरती (हेमा) की उदास आंखें उसे घूर रही हैं। आरती जानी-मानी कथक डांसर हैं जो चंदन (धर्मेंद्र) से प्यार करती थी। धर्मेंद्र इतिहास का प्रोफेसर था और रानी रूपमती व बाज बहादुर के रोमांस पर एक किताब लिख रहा था। लेकिन इससे पहले कि किताब छपवाता, उसकी कार दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। आरती मांडू की तस्वीरें लेने आयी है ताकि किताब छपवा सके। आरती के निकट आने पर इंद्र को पता लगा कि इंद्र की कार, जिससे टकरायी, वह चंदन की ही कार थी, जिस हादसे में वह बाल-बाल बच गया। जब उसने इस बात का जिक्र आरती से किया तो वह उससे लड़ पड़ी। इस लड़ाई में वह सीढ़ियों से गिर पड़ी और उसकी आंखों की रोशनी जाती रही। अभी वह चंदन की मौत का जिम्मेदाार ही खुद को ठहरा रहा था और आरती के सामने सफाई देने की कोशिश भी बेकार गयी। अब वह प्रकाश बनकर डांस मास्टर बनकर आने लगा। आरती इस बात से अनभिज्ञ थी कि जिस प्रकाश को वह दोस्त समझती है, वह कोई और नहीं बल्कि इंद्र है। प्रकाश की बदौलत आरती दोबारा नृत्य सीख पाती है लेकिन जिस ग्रंथि का शिकार इंद्र था, वह ग्रंथि भावों के जरिये अभिनय में उतारनी मुश्किल थी, जिसे कर पाने में जितेंद्र खूब सफल रहे। ‘कमीने मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ हर फिल्म में संवाद अदायगी के लिए मशहूर धर्मेंद्र इस फिल्म में संजीदा किस्म के व्यक्ति लगे हैं। जैसे ही आरती ने कुछ होश संभाला तो एक दिन प्रकाश चंदन की पुण्यतिथि पर आरती को चंदन द्वारा लिखी वही किताब प्रकाशित करवा कर भेंट करता है तो आरती को पता चल जाता है कि वह प्रकाश न होकर इंद्र ही है क्योंकि उसके सिवाय चंदन की पुण्यतिथि के बारे में कोई नहीं जानता। आरती इंद्र को घर से बाहर निकाल देती है। वह इंद्र को कहती है कि उसने उससे चंदन समेत सब कुछ छीन लिया। यहां तक कि चंदन की किताब प्रकाशित करने का हक भी। कुछ दिन बाद आरती की इंद्र से मुलाकात एक चर्च में होती है, जहां वह अपने किये पर खेद प्रकट करती है और मानती है कि वह अतीत में जी रही थी और अब इंद्र के साथ वर्तमान में जीना चाहती है। दोनों के मन का मैल उतर जाता है। निर्माण टीम प्रोड्यूसर : प्राण लाल मेहता निर्देशक : गुलजार पटकथा व गीत : गुलजार संगीत : राहुल देव बर्मन सितारे : धर्मेंद्र, जितेंद्र, हेमामालिनी व श्रीराम लागू आदि गीत एक ही ख्वाब : भूपेंद्र, हेमामालिनी मीठे बोल बोले : लता मंगेशकर, भूपेंद्र जाने क्या सोचकर : किशोर कुमार कोई नहीं है कहीं : भूपेंद्र अबके न सावन बरसे : लता नाम गुम जाएगा : भूपेंद्र, लता
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mrigtrishnamagazine · 3 years
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लता मंगेशकर जी को बिना स्कूल गए मिलीं 6 डिग्रियां, परिवार की खातिर शादी नहीं करने का लिया था प्रण
सुर कोकिला लता मंगेशकर जी 91 बरस की हो गईं। वह पहली ऐसी गायिका हैं जो बिना स्कूल गए ही दुनिया के नामचीन विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल की है। लता मंगेशकर का जीवन और उनका संघर्ष किसी को भी हौसला देने के लिए काफी है। उन्होंने अपने परिवार के लिए कभी शादी नहीं करने का मन पक्का कर लिया था।
लता मंगेशकर को बिना स्कूल गए मिलीं 6 डिग्रियां, परिवार की खातिर शादी नहीं करने का लिया था प्रण
September 28, 2020
सुर कोकिला लता मंगेशकर 91 बरस की हो गईं। वह पहली ऐसी गायिका हैं जो बिना स्कूल गए ही दुनिया के नामचीन विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल की है। लता मंगेशकर का जीवन और उनका संघर्ष किसी को भी हौसला देने के लिए काफी है। उन्होंने अपने परिवार के लिए कभी शादी नहीं करने का मन पक्का कर लिया था।
असली नाम हेमा हरिदकर मध्यप्रदेश में इंदौर शहर के एक समान्य परिवार में 28 सितंबर 1929 को जन्मी हेमा हरिदकर बड़ी होकर लता मंगेशकर के ​नाम से दुनिया में शोहरत कमाएगी यह कभी किसी ने नहीं सोचा था। हेमा के पिता ने अपने गांव मंगेशी के नाम पर बाद में अपने बच्चों का सरनेम मंगेशकर कर दिया। हेमा संगीत की दुनिया में आई तो लता मंगेशकर नाम से जानी गईं। वह जब बहुत छोटी थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया और घर की जिम्मेदारी उन पर आ गई।
पिता की मौत से माली हालत बिगड़ी छोटी बहनों को पढ़ाने के लिए उन्होंने खुद की पढ़ाई नहीं की। उन दिनों में घर की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण उन्होंने स्कूल त्याग दिया और घर में ही पढ़ाई करने लगीं। लता मंगेशकर अपने पिता के साथ मराठी संगीत नाटक में पहले से ही काम करती थीं और 14 साल की उम्र में वह बड़े कार्यक्रमों और नाटकों में अभिनय करने लगीं।
प्रेमविवाह के चलते आशा और लत��� में हो गई अनबन 1942 में लता मंगेशकर के पिता का निधन हुआ था और इसके 7 साल बाद ही जब घर की माली हालत सुधरनी शुरु हुई तो आशा भोंसले ने प्रेम विवाह के लिए घर से बगावत कर दी। लता मंगेशकर अपनी छोटी बहन आशा के व्यवहार से काफी नाराज हुईं और दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं। आशा ने 1949 में गणपतराव भोंसले से शादी कर ली।
परिवार की देखभाल के लिए खुद शादी नहीं की आशा के शादी कर लेने के बाद फिर से घर की सारी जिम्मेदारी लता मंगेशकर के कंधों पर आ गई। हालांकि, उस वक्त तक लता मंगेशकर काफी प्रसिद्ध हो चुकी थीं, जबकि आशा भोंसले को लोग लता से कमतर आंकते थे। लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह परिवार की देखभाल के कारण कभी खुद की शादी के बारे में सोच ही नहीं पाईं।
36 भाषाओं में गाने वाली पहली महिला सिंगर बाद में लता मंगेशकर देश की सबसे बड़ी प्लेबैक सिंगर बन गईं जो टैग उनसे कभी कोई छीन नहीं सका। लता मंगेशकर ने 1 हजार से ज्यादा हिंदी फिल्मों में गाने गए, जबकि अन्य भाषाओं की फिल्मों की तो वह गिनती तक भूल गई हैं। लता मंगेशकर देशी विदेशी 36 भाषाओं में गाने वाली पहली भारतीय महिला सिंगर हैं।
भारत रत्न समेत दर्जनों अवॉर्ड बचपन में आर्थिक तंगी के कारण लता मंगेशकर स्कूल भले ही नहीं जा पाई हों, लेकिन उन्होंने अपने टैलेंट की बदौलत न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी समेत 6 विश्वविधालयों से मानक उपाधि जरूर हासिल कर ली। लता मंगेशकर को सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्मविभूषण, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड समेत दर्जनों देसी विदेशी अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है। लता मंगेशकर के नाम से भी कई राज्य संगीत के क्षेत्र में अवॉर्ड प्रदान करते हैं।
#MrigtrishnaMagazine #24Hours24Story
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shaileshg · 4 years
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'भारत रत्न' लता मंगेशकर ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गीत गाए हैं। बकौल लता जी, 'पिताजी जिंदा होते तो मैं शायद सिंगर नहीं होती'...ये मानने वाली महान गायिका लता मंगेशकर लंबे समय तक पिता के सामने गाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं। फिर परिवार को संभालने के लिए उन्होंने इतना गाया कि सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान 'गिनीज बक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं। 91वें जन्मदिन पर लताजी से जुड़े कुछ खास किस्से।
लता जब गातीं तो मां डांटकर भगा देती थीं
लता मानती हैं कि पिता की वजह से ही वे आज सिंगर हैं, क्योंकि संगीत उन्होंने ही सिखाया। जानकर आश्चर्य हो सकता है कि लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर को लंबे समय तक मालूम ही नहीं था कि बेटी गा भी सकती है। लता को उनके सामने गाने में डर लगता था। वो रसोई में मां के काम में हाथ बंटाने आई महिलाओं को कुछ गाकर सुनाया करती थीं। मां डांटकर भगा दिया करती थीं कि लता के कारण उन महिलाओं का वक्त जाया होता था, ध्यान बंटता था।
पिता के शिष्य को सिखाया था सही सुर
एक बार लता के पिता के शिष्य चंद्रकांत गोखले रियाज कर रहे थे। दीनानाथ किसी काम से बाहर निकल गए। पांच साल की लता वहीं खेल रही थीं। पिता के जाते ही लता अंदर गई और गोखले से कहने लगीं कि वो गलत गा रहे हैं। इसके बाद लता ने गोखले को सही तरीके से गाकर सुनाया। पिता जब लौटे तो उन्होंने लता से फिर गाने को कहा। लता ने गाया और वहां से भाग गईं। लता मानती हैं 'पिता का गायन सुन-सुनकर ही मैंने सीखा था, लेकिन मुझ में कभी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उनके साथ गा सकूं।'
सच हो गई पिता की भविष्यवाणी
इसके बाद लता और उनकी बहन मीना ने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया। छोटे भाई हृदयनाथ केवल चार साल के थे जब पिता की मौत हो गई। उनके पिता ने बेटी को भले ही गायिका बनते नहीं देखा हो, लेकिन लता की सफलता का उन्हें अंदाजा था, अच्छे ज्योतिष जो थे।
लता के मुताबिक उनके पिता ने कह दिया था कि वो इतनी सफल होंगी कि कोई उनकी ऊंचाइयों को छू भी नहीं पाएगा। साथ ही लता यह भी मानती हैं कि पिता जिंदा होते तो वे गायिका कभी नहीं बनती, क्योंकि इसकी उन्हें इजाजत नहीं मिलती।
13 की उम्र से संभाला परिवार
पिता की मौत के बाद लता ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ मुंबई आकर मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं। 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में 'पहिली मंगलागौर' फिल्म में एक्टिंग की। कुछ फिल्मों में उन्होंने हीरो-हीरोइन की बहन के रोल किए हैं, लेकिन एक्टिंग में उन्हें कभी मजा नहीं आया। पहली बार रिकॉर्डिंग की 'लव इज ब्लाइंड' के लिए, लेकिन यह फिल्म अटक गई।
ऐसे मिला पहला बड़ा ब्रेक
संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया। शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी'। फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को फिल्म 'मजबूर' के गीत 'अंग्रेजी छोरा चला गया' में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। बाद में शशधर ने अपनी गलती मानी और 'अनारकली', 'जिद्दी' जैसी फिल्मों में लता से कई गाने गवाए।
कभी अचार-मिर्च से नहीं किया परहेज
करियर के सुनहरे दिनों में वो गाना रिकॉर्ड करने से पहले आइसक्रीम खा लिया करती थीं और अचार, मिर्च जैसी चीजों से भी उन्होंने कभी परहेज नहीं किया। उनकी आवाज हमेशा अप्रभावित रही। 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्म करने वाली वे पहली भारतीय हैं।
अपने सफर को जब लता याद करती हैं तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों की रिकॉर्डिंग वाली रातें भुलाए नहीं भूलतीं। तब दिन में शूटिंग होती थी और रात की उमस में स्टूडियो फ्लोर पर ही गाने रिकॉर्ड होते थे। सुबह तक रिकॉर्डिंग जारी रहती थी और एसी की जगह आवाज करने वाले पंखे होते थे।
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लता जी सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान 'गिनीज बक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं।
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mykrantisamay · 2 years
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लता मंगेशकर का निधन: इन राज्यों ने की नाइटिंगेल की मौत पर शोक मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा
लता मंगेशकर का निधन: इन राज्यों ने की नाइटिंगेल की मौत पर शोक मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा
मशहूर गायिका और भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर का रविवार को मुंबई में 92 साल की उम्र में मल्टी-ऑर्गन फेल्योर के कारण निधन हो गया। वह कोविड के बाद की जटिलताओं से पीड़ित थीं और सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया। मंगेशकर के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए या ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ के रूप में लोकप्रिय, केंद्र ने फैसला किया है कि 6 फरवरी से दो दिवसीय राजकीय शोक मनाया जाएगा और इस अवधि में कोई आधिकारिक…
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gaanaliveent · 4 years
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भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रणब मुखर्जी, जो ब्रेन क्लॉट सर्जरी और COVID-19 के कारण अस्पताल में भर्ती होने के बाद मौत से जूझ रहे थे,कल 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया। दुखद समाचार की पुष्टि करते हुए, उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने अपने नवीनतम ट्वीट में लिखा, “साथ हेवी हार्ट, यह आपको सूचित करना है कि मेरे पिता श्री #PranabMukherjee अभी हाल ही में आरआर अस्पताल के डॉक्टरों के सर्वोत्तम प्रयासों और पूरे भारत में लोगों से प्रार्थना, दुआओं और प्रार्थनाओं के बावजूद निधन हो गए हैं! मैं आप सभी का धन्यवाद करता हूं। ”
इसके लिए, कई बॉलीवुड हस्तियों ने राष्ट्र के पूर्व राष्ट्रपति के नुकसान पर शोक व्यक्त करने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया। वरुण धवन , श्रद्धा कपूर , लता मंगेशकर और तापसी पन्नू कई अन्य लोगों ने परिवार और खोई हुई आत्मा के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की।
वरुण धवन ने ट्वीट किया, “RIP सर .2020 एक और सभी के लिए एक अत्यंत कठिन वर्ष रहा है। हमने आज एक महान नेता को खो दिया है। परिवार के लिए प्रार्थना और शक्ति। ”
लता मंगेशकर ने लिखा, “प्रणब दा मुखर्जी का निधन सुनकर गहरा दुख हुआ। हमारे पूर्व राष्ट्रपति, एक भारत रत्न और एक संपूर्ण सज्जन। हमने बहुत गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण संबंध साझा किए। परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना। ”
तापसे ने ट्वीट किया, "उनसे मिलने का सम्मान, उनकी उपस्थिति में # पिंक को देखने के बाद, पूरी टीम के लिए बहुत गर्मजोशी से आयोजित रात्रिभोज के बाद। अनुभव को कभी नहीं भूल सकता, उस दिन उसकी तरह के शब्द  इशारा। आपको याद किया जाएगा सर फोल्ड किए गए हाथ #PranabMukherjee। "
उर्वशी रौतेला ने ईटाइम्स को विशेष रूप से बताया, "पूर्व सुप्रीम कमांडर और भारत के राष्ट्रपति भारत रत्न श्री प्रणब मुखर्जी के निधन से गहरा दु: ख हुआ। राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी। वह एक उत्कृष्ट राजनेता, महान नेता, सभी से प्यार करते थे और उनकी प्रशंसा करते थे।" एक महान दूरदर्शी और एक अंतर के साथ एक नेता। उनका पूरा जीवन राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित था। उनके प्रियजनों के लिए मेरी ईमानदारी से प्रार्थना है। मैं उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं। ओम शांति। "
अनुष्का शर्मा ने इंस्टाग्राम पर लिखा, "हमारे पूर्व राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी के बारे में खबर सुनकर दुःख हुआ। हमारे परिवार और प्रियजनों के साथ हमारी संवेदना और प्रार्थना।"तारा सुतारिया ने लिखा, "शांति में आराम करो, सर।"
सोनाक्षी सिन्हा ने कहा, "एक और किंवदंती चली गई। हमारे पूर्व राष्ट्रपति के निधन से दुखी। प्रणब मुखर्जी। आरआईपी सर।
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trendingpark · 4 years
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बॉलीवुड के दिग्गज स्टार ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) के निधन ने पूरी इंडस्ट्री को हिलाकर रख दिया है. सोशल मीडिया से लेकर, टीवी, अखबार हर जगह बस उन्हीं की ही चर्चा हो रही है. लोग उन्हें सोशल मीडिया के जरिए श्रद्धांजलि दे रहे हैं. तो कुछ लोग उनके साथ अपनी तस्वीरें साझा कर उन लम्हों को याद कर रहे हैं, जो उनके साथ बिताए थे. इसी बीच एक्ट्रेस आलिया भट्ट को भी काफी इमोशनल होते हुए देखा गया है. आलिया कुछ समय से कपूर खानदान के काफी करीब रही, खासकर रणबीर कपूर और उनकी फैमिली के, यही कारण है कि उन्होंने जो पोस्ट ऋषि कपूर के लिए लिखा है, वो बेहद भावुक करने वाला है. आलिया का ये पोस्ट अब तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. ये भी पढ़ें:- जिंदगी मौत से जंग लड़ रहे ऋषि कपूर ने अस्पताल में रणबीर से पूछी थी ये आखिरी बात, जानें क्या थे वो सवाल इस पोस्ट के साथ ही आलिया भट्ट ने कुछ तस्वीरें भी शेयर की हैं. पोस्ट में आलिया ने लिखा है कि, 'मैं इस खूबसूरत इंसान के बारे में क्या कह सकती हूं. जो मेरी जिंदगी में ढेर सारा प्यार और भलाई लेकर आया. आज हर कोई ऋषि कपूर के बारे में बात कर रहा है. हालांकि, मैंने जीवनभर उन्हें इसी रूप में ही जाना. बीते दो सालों से मैंने उन्हें एक दोस्त, चाइनीज फूड लवर, सिनेमा प्रेमी, एक फाइटर, एक लीडर, एक सुंदर कहानीकार, एक बेहद भावुक व्यक्ति और एक पिता के रूप में जाना है! इन सालों में मुझे उनसे जो प्यार मिला, वह वार्म हग की तरह है, जिसे मैं हमेशा अपने साथ रखना चाहूंगी. ब्रह्माण्ड का शुक्रिया कि उसने मुझे उन्हें जानने का अवसर दिया. आज वाकई हम में से ज्यादातर लोग उन्हें परिवार की तरह कह सकते हैं. क्योंकि उन्होंने आपको ऐसा ही महसूस कराया है. लव यू ऋषि अंकल. आप हमेशा याद आएंगे.' https://ift.tt/3d6yT0d इस पोस्ट के अलावा आलिया भट्टी ने ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) के साथ उनकी पत्नी नीतू की भी एक तस्वीर अपने इंस्टाग्राम पर साझा की है. साथ ही इसके कैप्शन में उन्होंने लव यू लिखा है. इस फोटो में आप देख सकते हैं कि ये उस समय की है जब ऋषि कपूर और नीतू सिंह काफी यंग थे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रणबीर और आलिया एक-दूसरे के साथ काफी समय से रिलेशन में हैं. अक्सर दोनों अपनी शादी को लेकर भी चर्चाओं में बने रहे हैं. हाल ही में ये भी खबर आई थी जल्द ही रणबीर और आलिया सात फेरे लेने वाले हैं. लेकिन कुदरत को शायद कुछ और ही मंजूर था. https://ift.tt/35jKeHE https://ift.tt/35mEJYu अचानक से ऋषि हम सभी के बीच से चले गए. बता दें कि काफी समय से ऋषि कपूर कैंसर की बीमारी से जंग लड़ रहे थे. इस बीमारी का इलाज करवाने वो न्यूयॉर्क भी गए थे और पूरे 1 साल तक उनका वहां इलाज चला था. इस दौरान उनके साथ पत्नी नीतू सिंह थी. पिछले साल ही ऋषि कपूर अपना इलाज करवाकर वापस भारत लौटे थे. इस बीच उनकी कई बार तबीयत भी खराब हुई थी. लेकिन अस्पताल जाने के बाद वो ठीक हो जाते थे. लेकिन इस बार वो अपनी जिंदगी की जंग हार गए और दुनिया को अलविदा कह दिया. ये भी पढ़ें:- ऋषि कपूर को गोद में खिला चुकी हैं लता मंगेशकर, सोशल मीडिया पर दुख जताते हुए लिखा इमोशनल पोस्ट
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Suresh Kumar
संगीत लहरियों से फ़िल्मी दुनिया को सजाने, संवारने वाले महान् संगीतकार वसन्त देसाई ( 9 जून, 1912- 22 दिसम्बर, 1975) एक ऐसा नाम है, जिसके साथ विरोधाभास या अजब संयोग भरे पड़े हैं.वो गरीब घर से नहीं थे.लेकिन ऑफिस बॉय के तौर पर करियर शुरू किया.वो संगीतकार बने. लेकिन काफी कुछ और करने के बाद.वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे. लेकिन अपने करियर में कुछ ऐसे काम कर दिए,जिन्हें चमत्कार ही कहा जा सकता है.उनकी धुन को एमएस सुब्बलक्ष्मी ने आवाज दी,तो अशोक कुमार की आवाज भी उसी की बनाई संगीत पर सुनाई दी.उनका गीत प्रार्थना बनकर भारत के तमाम स्कूलों में गूंजता है, तो एक और गीत पाकिस्तान के स्कूल में गाया जाता है.गुलजार के शब्दों में यह नाम संगीत के दुर्लभ लोगों में है.लेकिन संगीत जगत के बड़े नामों को लेते हुए तमाम लोग वह नाम भूल जाते हैं. वसन्त देसाई का जन्म गोवा के कुदाल नामक स्थान पर हुआ था। उनको बचपन के दिनों से ही संगीत के प्रति रूचि थी। वर्ष 1929 में बसंत देसाई महाराष्ट्र से कोल्हापुर आ गए थे।अपने आरंभिक संघर्ष के दौर में वसंत देसाई ने कोल्हापुर में 'देवल-क्लब' में आना जाना बना रखा था, जिसके चलते संगीत के बड़े-बड़े दिग्गजों से बराबर मेल-मुलाक़ात का बहाना उन्हें मिल जाया करता था.उन दिनों उस्ताद अलाउद्दीन ख़ान, उस्ताद अब्दुल क़रीम ख़ान, उस्ताद मंझी ख़ान और वझे बुआ से उनकी मुलाक़ात भी 'देवल-क्लब' में ही हुई थी.इसी के चलते उन्होंने अपना शास्त्रीय संगीत का ज्ञान भी विस्तृत होता पाया, जो बचपन और किशोरावस्था के दौरान पैतृक गांव में मंदिरों के कीर्तन-गायन एवं दशावतारी नाटकों के पौराणिक आख्यानों के माध्यम से देखते-सुनते हुए उन्हें मिल सका था.स्वयं गोविंदराव टेम्बे ने भी वसंत देसाई को इसी क्लब में जाने के दौरान देखा था, जब वे अपना काम समाप्त करके हर रात उसी रास्ते घर जाया करते थे.वर्ष 1930 में उन्हें 'प्रभात फ़िल्म्स' की मूक फ़िल्म "खूनी खंजर" में अभिनय करने का मौका मिला। 1932 में वसन्त को "अयोध्या का राजा" में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इन सबके साथ ही उन्होंने इस फ़िल्म में एक गाना "जय जय राजाधिराज" भी गाया। इस बीच वसन्त फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फ़िल्म "अमृत मंथन" में गाया उनका यह गीत "बरसन लगी" श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।इस बीच वसन्त को यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाए संगीतकार के रूप में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वसन्त मराठी नाटकों में भी संगीत देते रहे। वर्ष 1942 में प्रदर्शित फ़िल्म "शोभा" के जरिए बतौर संगीतकार वसन्त देसाई ने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की, लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष 1943 में वी. शांताराम अपनी "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद वसन्त संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।शांताराम की मराठी फ़िल्मों के संगीतकार के रूप में वसंत देसाई के कृतित्व की उत्कृष्ट बानगियाँ- लोकशाहीर रामजोशी (1947), अमर भूपाली (1951) और इये मराठीचिये नगरी (1965) हैं. इसमें अमर भूपाली का निर्माण बांग्ला भाषा में भी हुआ था, जिसका संगीत वसंत देसाई ने ही रचा.वसंत देसाई ही उन शुरुआती संगीतकारों में थे, जिन्होंने गाने में इको का इस्तेमाल किया. जोहरा बाई की आवाज में परबत पे अपने डेरा हो या रफी का गाया बेमिसाल गीत कह दो कोई ना करे यहां प्यार... वसंत देसाई ने इको को बेहतरीन इस्तेमाल किया है. कई गीत ऐसे हैं, जहां उन्होंने कोरस को किसी इंस्ट्रुमेंट की तरह इस्तेमाल किया है. लता मंगेशकर के तमाम यादगार गीत वसंत देसाई की धुन से ही निकले हैं. वाणी जयराम की आवाज का उन्होंने बेहतरीन इस्तेमाल किया. गुड्डी फिल्म में बोले रे पपीहरा अब भी याद किया जाता है.
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तीन फ़िल्में 'गूँज उठी शहनाई', 'आशीर्वाद' एवं 'गुड्डी' ऐसी हैं, जिनकी सांगीतिक ऊंचाई को 'राजकमल कला-मन्दिर' की फ़िल्मों के सापेक्ष रखकर देखा जा सकता है.राजकमल कला मन्दिर की फ़िल्मों से अलग, कुछ दूसरे प्रोडक्शन हाऊस की सफल संगीतमय फ़िल्मों के साथ भी इस संगीतकार का नाम जुड़ा हुआ है, जिसमें प्रमुख रूप से याद रखने वाली फ़िल्में हैं- मास्टर विनायक की 'सुभद्रा' (1946), सोहराब मोदी की 'झांसी की रानी' (1953), ए. आर. कारदार की 'दो फूल' (1958), अजीत चक्रवर्ती की 'अर्द्धांगिनी' (1959), विजय भट्ट की 'गूँज उठी शहनाई' (1959), बाबूभाई मिस्त्री की 'सम्पूर्ण रामायण' (1961), विजय भट्ट की 'राम-राज्य' (1967), ऋषिकेश मुखर्जी की 'आशीर्वाद' (1968) एवं 'गुड्डी' (1971) और अरुणा-विकास की 'शक़' (1976).
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वसंत देसाई को वो पहचान नहीं मिली, जिसके वो हकदार थे. उनके प्रयोग सराहे गए. शास्त्रीय संगीत को लेकर उनकी समझ पर किसी को संदेह नहीं रहा. गाने सुपर-डुपर हिट रहे. उसके बावजूद वैसा नाम, काम नहीं मिला, जो शायद इतने हिट गाने देने के बाद किसी और को मिलता. महज 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. वो भी बड़े ही दुखद तरीके से.22 दिसंबर, 1975 को एच.एम.भी स्टूडियो से रिकॉर्डिंग पूरी करने के बाद वसन्त देसाई अपने घर पहुंचे। जैसे ही उन्होंने अपने अपार्टमेंट की लिफ्ट में कदम रखा, किसी तकनीकी खराबी के कारण लिफ्ट उन पर गिर पड़ी और उन्हें कुचल डाला, जिससे उनकी मौत हो गई।
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asksabhaniblog · 6 years
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फिल्म इंडस्ट्री में मनजी के नाम से मशहूर मनमोहन देसाई (26/02/1937-01/03/1994) के पिता किक्कू देसाई ने फिल्म 'सिंहल द्वीप की की सुंदरी' (1937), 'तारणहार'(1937),'शेखचिल्ली' (1941) का निर्देशन किया था।वह पैरामाउंट स्टूडियो  (जो बाद में फिल्मालय के नाम से परिवर्तित किया गया) के मालिक भी थे।उनके पिता की मृत्यु तब हुई जब वे करीब चार वर्ष के थे.जब उनके पिता का मौत हुई तब वे दो फिल्मों का निर्माण कर रहे थे.उनके अचानक निधन से उन फिल्मों का काम अटक गया और मां के सारे जेवर के साथ घर भी बेचना पड़ा था.घर में उनसे आठ साल बड़े भाई सुभाष देसाई थे.मनमोहन देसाई की बड़े भाई, सुभाष देसाई 1950 के दशक में एक निर्माता बने.मनमोहन देसाई ने जीवनप्रभा से लव मैरिज की थी और उनका एक बेटा केतन देसाई है. केतन देसाई का विवाह कंचन कपूर से हुआ है जो शम्मी कपूर और गीता बाली की बेटी है.
शुरुआत में फिल्मकार होमी वाडिया ने मनमोहन देसाई को अपने प्रोडक्शन हाऊस में नौकरी दी.वे वहां पर कुछ समय बाद प्रोडक्शन मैनेजर हो गए.मनमोहन देसाई पचास के दशक में बाबुभाई मिस्त्री के सहायक बन गये.इस दौरान उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियाँ सीखी.मनमोहन देसाई बाबू भाई मिस्त्री के साथ तीन फिल्मों में सहायक रहे. इसमें से एक सम्राट चंद्रगुप्त जिसका निर्माण उनके बड़े भाई सुभाष देसाई ने किया, वो तब तक स्टंट फिल्मों के निर्माता बन गए थे.सम्राट चंद्रगुप्त में मनमोहन ने मुख्य सहायक निर्देशक की हैसियत से काम किया था और इसी फिल्म से कल्याणजी भी स्वतंत्र संगीतकार बने.वर्ष 1960 में जब मनमोहन देसाई जब महज 24 वर्ष के थे तो उन्हें अपने भाई सुभाष देसाई द्वारा निर्मित फिल्म 'छलिया' को निर्देशित करने का मौका मिला। फिल्म में राजकूपर और नूतन जैसे दिग्गज कलाकारों के होने के बावजूद भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गयी।हांलाकि संगीतकार कल्याणजी-आंनद जी के संगीतबद्ध गीत 'छलिया मेरा नाम' और 'डम डम डिगा डिगा' अभी भी काफी लोकप्रिय हैं।उन्होंने शम्मी कपूर को लेकर एक फिल्म ब्लफ मास्टर’ बनाई.1963 में प्रदर्शित फिल्म ब्लफ मास्टर का स्क्रीनप्ले भी उन्होंने हीं लिखा था.इस फिल्म का एक गाना ‘गोविंदा आला रे’, पहला गाना था जिसे रियल लोकेशन पर शूट किया गया था. फिल्म  फ्लॉप हुई पर गाना बहुत बड़ा हिट हुआ.1964 में मनमोहन देसाई को फिल्म 'राजकुमार' को निर्देशित करने का मौका मिला। इस बार भी फिल्म में उनके चहेते अभिनेता और मित्र शम्मी कपूर थे। इस बार उनकी मेहनत रंग लाई और फिल्म के सफल होने के साथ ही वह फिल्म इंडस्ट्री में बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनानें में सफल हो गए।वर्ष 1970 में प्रदर्शित 'सच्चा झूठा' मनमोहन देसाई के सिने करियर की अहम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्हें उस जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना को निर्देशित करने का मौका मिला। फिल्म में राजेश खन्ना दोहरी भूमिका में थे। खोया और पाया फॉर्मूले पर आधारित इस फिल्म में उन्होंने अपनी निर्देशन प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। फिल्म 'सच्चा झूठा' बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। इस बीच मनमोहन देसाई ने 'भाई हो तो ऐसा', 'रामपुर का लक्ष्मण', 'आ गले लग जा', 'रोटी' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया जो दर्शकों को काफी पसंद आयी। वर्ष 1977 मनमोहन देसाई के सिने करियर का अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी 'परवरिश', 'धरमवीर', 'चाचा भतीजा', 'अमर अकबर एंथनी' जैसी सुपरहिट फिल्में प्रदर्शित हुई। इन सभी फिल्मों में मनमोहन देसाई ने अपने खोया-पाया फॉर्मूले का सफल प्रयोग किया। वह अकसर यह सपना देखा करते थे कि दर्शकों के लिए भव्य पैमाने पर मनोरंजक फिल्म का निर्माण करेंगे। अपने इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्म 'अमर अकबर एथनी' के जरिये फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और 'एमकेडी' बैनर की स्थापना की।   मनमोहन देसाई ने 'भाई हो तो ऐसा', 'रामपुर का लक्ष्मण', 'आ गले लग जा', 'रोटी' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया जो दर्शकों को काफी पसंद आयी। वर्ष 1977 मनमोहन देसाई के सिने करियर का अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी 'परवरिश', 'धरमवीर', 'चाचा भतीजा', 'अमर अकबर एंथनी' जैसी सुपरहिट फिल्में प्रदर्शित हुई।इन सभी फिल्मों में मनमोहन देसाई ने अपने खोया-पाया फॉर्मूले का सफल प्रयोग किया। वह अकसर यह सपना देखा करते थे कि दर्शकों के लिए भव्य पैमाने पर मनोरंजक फिल्म का निर्माण करेंगे। अपने इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्म 'अमर अकबर एथनी' के जरिये फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और 'एमकेडी' बैनर की स्थापना की। 'अमर अकबर एंथनी' मनमोहन देसाई के सिने करियर की सबसे सफल फिल्म साबित हुई। 'अमर अकबर एंथनी' में यूं तो सभी गाने सुपरहिट हुए लेकिन फिल्म का 'हमको तुमसे हो गया है प्यार' गीत संगीत जगत की अमूल्य धरोहर के रूप में आज भी याद किया जाता है। इस गीत में पहली और अंतिम बार लता मंगेशकर, मुकेश, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे नामचीन पाश्र्वगायकों ने अपनी आवाज दी थी। अमर-अकबर एंथनी की सफलता के बाद मनमोहन देसाई ने निश्चय किया कि आगे जब कभी वह फिल्म का निर्देशन करेगें तो उसमें अमिताभ बच्चन को काम करने का मौका अवश्य देंगे। हमेशा अपने दर्शकों को कुछ नया देने वाले मनमोहन देसाई ने वर्ष 1981 में फिल्म 'नसीब' का निर्माण किया। इस फिल्म के एक गाने 'जॉन जॉनी जर्नादन' में उन्होंने सितारों की पूरी फौज ही खड़ी कर दी।
यह फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में पहला मौका था जब एक गाने में फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गज कलाकारों की उपस्थिति था। इसी गाने से प्रेरित होकर शाहरुख खान अभिनीत फिल्म 'ओम शांति ओम' के एक गाने में कई सितारों को दिखाया गया।
वर्ष 1983 में मनमोहन देसाई की एक और फिल्म 'कुली' प्रदर्शित हुई जो हिंदी सिनेमा जगत के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा गयी। इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को पेट में गंभीर चोट लग गयी और वह लगभग मौत के मुंह में चले गए थे।फिल्म 'कुली' बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि फिल्म के निर्माण के पहले फिल्म के अंत में अमिताभ बच्चन को के किरदार को मरना था लेकिन बाद में फिल्म का अंत बदला गया।1985 में मनमोहन देसाई की फिल्म 'मर्द' प्रदर्शित हुई जो उनके सिने करियर की अंतिम हिट फिल्म थी। वर्ष 1988 में मनमोहन देसाई ने फिल्म 'गंगा जमुना सरस्वती' का निर्देशन किया लेकिन कमजोर पटकथा के कारण फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट गयी।इसके बाद मनमोहन देसाई ने अपने चहेते अभिनेता अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म 'तूफान' का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई तूफान नहीं ला सकी। इसके बाद उन्होंने भविष्य में किसी भी फिल्म का निर्माण और निर्देशन नहीं करने का निर्णय लिया। मनमोहन देसाई ने अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगभग बीस फिल्मों का निर्देशन किया जिसमें से ज्यादातर फिल्में हिट हुई। बॉलीवुड की सफल केमिस्ट्री का जब भी विश्लेषण किया जाता है तो मनमोहन देसाई  के महान पारिवारिक मनोरंजक मसाला की चर्चा अवश्य की जाती है | उनकी एक भी फिल्म में व्यावसायिक घाटा नही हुआ.खोया-पाया” की जिस आवधारणा का बीज एस.मुखर्जी ने 1943 में “किस्मत” फिल्म से किया था उसे व्यावसायिक तौर पर पल्लवित मनमोहन देसाई ने सत्तर और अस्सी के दशक में किया.| 01 मार्च 1994 को गिरगांव में मनमोहन देसाई बालकनी झुकते समय नीचे गिर गये , जिसकी वजह से उनका देहांत हो गया.
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jodhpurnews24 · 6 years
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मजाक में इस हॅालीवुड एक्ट्रेस ने पुलिस के सामने तानी खिलौने वाली बंदूक, पुलिस वालों ने ली जान…
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हॅालीवुड इंडस्ट्री की मशहूर एक्ट्रेस वनीसा मार्केज की हाल में मौत हो गई है। चौंकाने वाली बात तो ये है कि उनकी मौत किसी हादसे या साजिश के कारण नहीं बल्कि बिना सोचे समझे एक भद्दे मजाक को करते हुए हुई। दरअसल, एक्ट्रेस के खिलौना बंदूक दिखाए जाने के बाद दक्षिणी कैलिफोर्निया में पुलिस ने उनको गोली मार दी।
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  खबरों के मुताबिक पुलिस गुरुवार को पूछताछ के लिए वनीसा के साउथ पासाडेना स्थित घर पर पहुंची थी। जहां पुलिस और वनीसा के बीच तकरीबन 1.5 घंटे तक बातचीत चली। इसी दौरान वनीसा ने अपनी खिलौना बंदूक निकाल कर पुलिस पर तान दी जिसके कुछ देर बाद पुलिस ने वनीसा को शूट कर दिया। गोली मारे जाने के बाद पुलिस को इस बात का पता चला कि वनीसा के हाथ में मौजूद बंदूक दरअसल एक टॉय गन थी।
हॅाट अंदाज में कैमरे के सामने पोज देती नजर आईं करीना कपूर, तस्वीरें हुईं वायरल
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  गौरतलब है कि वनीसा साल 2005 से ही बीमार थीं। उन्हें डिप्रेशन की बीमारी थी और बाद में उन्हें ओसीडी और शॉपिंग एडिक्शन भी हो गया था। इस बात का जिक्र एक्ट्रेस ने खुद साल 2005 में आई एक टीवी सीरीज ‘इंटरवेंशन’ में किया था। उनके इलाज के बावजूद वह इस दिक्कत से निजाद नहीं पा सकी। सीबीएस लोकल की एक खबर के मुताबिक एक पड़ोसी ने ही पुलिस को यह खबर दी थी कि वनीसा की मानसिक हालत पहले से कहीं ज्यादा खराब हो गई है। बता दें वनीसा ने कई शोज में काम किया था। सबसे पहले वह साल 1988 में आई टीचर ड्रामा फिल्म ‘स्टैंड एंड डेलिवर’ में दिखीं। इसके अलाव वह साल 1994 से 1997 तक फेमस टीवी सीरीज ‘ईआर’ का हिस्सा रहीं।
सगा नहीं पर सगे से भी बढ़कर था लता मंगेशकर के लिए उनका ये मुंह बोला भाई, जानें पूरी कहानी..
श्रद्धा के साथ पिता शक्ति कपूर की अनदेखी तस्वीरें, तीसरी फोटो देख हैरान रह जाएंगे आप
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