चेल्सी ने लीसेस्टर सिटी के डिफेंडर वेस्ली फोफाना को £70 मिलियन में साइन किया
चेल्सी ने लीसेस्टर सिटी के डिफेंडर वेस्ली फोफाना को £70 मिलियन में साइन किया
फ्रांस के डिफेंडर वेस्ली फोफाना दो साल के बाद लीसेस्टर सिटी में 7 साल के अनुबंध पर चेल्सी में शामिल हुए हैं
फ्रांस के डिफेंडर वेस्ली फोफाना दो साल के बाद लीसेस्टर सिटी में 7 साल के अनुबंध पर चेल्सी में शामिल हुए हैं
चेल्सी ने लीसेस्टर सिटी से डिफेंडर वेस्ले फोफाना का स्थानांतरण पूरा कर लिया है, दोनों प्रीमियर लीग पक्षों ने बुधवार को कहा, फ्रेंचमैन ने वेस्ट लंदन क्लब के साथ सात साल के अनुबंध पर…
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नेतृत्व का आधार योग्यता या परम्परा ........भाग १
प्राचीन काल में वार्णावृत राज्य में सामव्रत नाम के राजा राज्य किया करते थे वह बहुत ही पराक्रमी और प्रतापी होने के साथ दयालु और प्रजा के प्रिय थे अपितु उनका राज्य अत्यधिक विशाल था परंतु प्रजा हर प्रकार से सुखी थे एक लम्बे समय तक राजकाज संभालने के साथ साथ ही वह अब वृद्ध हो चले थे और चाहते थे कि राज्य की बागडोर किसी योग्य के हाथों में सौंपकर वह तीर्थयात्रा पर चले जायें और अंत समय प्रभु की स्तुति में अर्पण कर दें। राजा सामव्रत के दो पुत्र थे अग्रवत और अणुव्रत राज्य के उत्तराधिकारी का चुनाव करने में राजा को कोई विकट समस्या नहीं थी क्योंकि उनके कुल की परम्परा के अनुसार सदैव ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी होता है किन्तु वह इस पर एक बार राजगुरू विष्णुदत्त से विचार-विमर्श करना चाहते थे राजगुरू विष्णुदत्त वैसे तो राज्य के ही वन में एक आश्रम में रहा करते थे किंतु राज्य के सम्बन्ध में किसी भी महत्वपूर्ण फैसले में उनका परामर्श बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता था एक प्रकार से राज्य की नीति निर्माण में उनका प्रमुख योगदान था राजा सामव्रत कभी भी किसी कठिन परिस्थिति में आते थे राजगुरू ही उनका मार्गदर्शन किया करते थे इसलिये राज्य के उत्तराधिकारी की घोषणा से पूर्व राजगुरू का मत अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता था अतः इस निर्णय के सम्बन्ध में भी वह एक बार राजगुरू से विचार-विमर्श अवश्य करना चाहते थे जिसके लिये वह एक दूत को भेजकर उन्हें राजमहल में पधारने का निमंत्रण भेज देते हैं और उनके निमंत्रण पर राजगुरू का राजमहल में आगमन होता है राजा सामव्रत राजगुरू का आदर सत्कार करते हुए उन्हें आसन ग्रहण करने के लिये कहते हैं और उनसे राज्य के उत्तराधिकारी के संदर्भ में उनका मत जानने का अनुग्रह करते हैं राजगुरू:- हे राजन सर्वप्रथम आप मुझे अपने राजकुमारो के चरित्र एवं रूचि के बारे में कुछ बतायें सामव्रत:- राजगुरू मेरे ज्येष्ठ पुत्र का नाम अग्रव्रत और मेरे कनिष्ठ पुत्र का नाम अणुव्रत है जहाँ अग्रव्रत का अधिकांश समय अपने सगे सम्बन्धी और मित्रों के मध्य व्यतीत होता है वहीं अणुव्रत अपने आप को नित नई विद्याओं को सीखने में व्यस्त रखता है उसके मित्र भी उसके सहपाठी ही होते हैं वह अपने कुछ गिने चुने सम्बन्धियों से सम्पर्क रखता है वह किसी के कहने से भर से ही कोई निर्णय नहीं लेता बल्कि पूर्णतः जाँच परख कर ही किसी संदर्भ में कोई निर्णय लेता है जबकि अग्रव्रत अपने सम्बन्धियों और मित्रों की बात का विश्वास करके भी अपने निर्णय ले लेता है उसके अधिकांश कार्य भी कुछ इस प्रकार ही सम्पूर्ण होते हैं वह मनोरंजन के लिये जहाँ नृत्य का आनंद लेता है वहीं अणुव्रत आखेट करना पसंद करता है इस कारण से वह राज्य की सीमा से भी अधिक परिचित है राजगुरू:- ठीक है राजन अब आप मुझे यह बतायें कि आप की दुविधा क्या है सामव्रत:-राजगुरू मेरे कुल की परम्परा के अनुसार सदैव ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी होता है वहीं एक ओर मैंने अपने राज्य का काफी विस्तार किया है अब मैं अपने राज्य को किसी योग्य के हाथों में सौंपकर तीर्थयात्रा के लिये जाना चाहता हूँ जिस कारण से मैं नये राजा की किसी भी विकट परिस्थिति में मैं न तो राजा और न ही अपने राज्य की किसी भी प्रकार कोई साहयता कर पाऊँगा परन्तु मुझे इसका पूर्ण विश्वास है कि जिस प्रकार मुझे आपका मार्गदर्शन मिलता रहा है उसी प्रकार आप मेरे पुत्रों का भी मार्गदर्शन करते रहेंगे राजगुरू:- नहीं राजन.... कुछ बर्षों के लिये मुझे भी तपस्या करने के लिए हिमालय की ओर जाना है और उसके लिए मैंने जो समय निर्धारित किया है वह अब निकट ही है अर्थात् आप ही की तरह में भी राज्य में उपस्थित नहीं रहूँगा सामव्रत:- हे राजगुरू फिर तो बहुत विकट समस्या उत्पन्न हो जायेगी कृपया मेरे दोनों पुत्रों में से किसी योग्य का चयन कर मुझे इस दुविधा से बाहर निकालें राजगुरू:- उचित है राजन अब आप ऐसा करें कि अपने राजकोष से दो हीरे ♦ मुझे मंगाकर दें किन्तु ध्यान रहे दोनों हीरे देखने में काँच के समान प्रतीत होते हों उसके बाद आप अपने दोनों पुत्रों को यहाँ आने के लिये कहें। सामव्रत राजगुरू को राजकोष से वैसे ही दो हीरे मंगवाकर देते हैं जैसा उन्होंने कहा था कुछ देर पश्चात दोनों राजपुत्र भी वहाँ आ जाते हैं वह राजगुरू को प्रणाम कर आसन ग्रहण करते हैं राजगुरू:- अग्रव्रत और अणुव्रत मैं तुम्हें यह एक एक काँच का टुकड़ा दे रहा हूँ और यह मेरी इच्छा कि तुम दोनों इसे अपने शरीर पर पहने जाने वाली किसी वस्तु में धारण करो...दो दिन के बाद मेरे आश्रम में अपने पिता के साथ आकर मुझसे मिलो इतना कहकर राजगुरू सामव्रत से विदा लेकर अपने आश्रम में लौट आते हैं और दो दिनों के पश्चात् दोनों कुमार अपने पिता के साथ आश्रम में आकर राजगुरू के सम्मुख प्रस्तुत हो जाते हैं राजगुरू दोनों कुमारों को सर से पाँव तक देखकर कहते हैं कि आप दोनों कुमार कुछ समय के लिये आश्रम में भ्रमण कर आयें तब तक में आपके पिता श्री से कुछ महत्वपूर्ण वार्तालाप करना चाहूँगा और दोनों राजकुमार आश्रम में भ्रमण के लिये चले जाते हैं सामव्रत:- ये क्या राजगुरू आपने दोनों पुत्रों को आश्रम में बुलाया और बिना कोई वार्तालाप किये ही उन दोनों को आश्रम भ्रमण के लिये भेज दिया क्या आप उत्तराधिकारी के संदर्भ में कोई निर्णय लेना नहीं चाहते राजगुरू:- हे राजन आपके पुत्रों से प्रश्न कोई अर्थ ही नहीं था जबकि उत्तराधिकारी का निर्णय मैंने उनकी भेष-भूषा को देखकर ही ले लिया था सामव्रत:-आश्चर्य से) भेष-भूषा को देखकर वह कैसे...? बहुत ही विचित्र है राजगुरू:- राजन पहले आप मेरे निर्णय के अनुसार अपना उत्तराधिकारी घोषित करें फिर उसके राज्याभिषेक के दिन मैं आपको यह बताऊँगा कि मेरे इस निर्णय का कारण क्या है सामव्रत:- जैसी आपकी आज्ञा राजगुरू अब आप यह बतायें कौन होगा राज्य का अगला राजा ....? राजगुरू:- आप अणुव्रत को अपना उत्तराधिकारी घोषित कीजिए सामव्रत:-राजगुरू अब एक बार मुझे राज्य की प्रजा को और अपने राज्य के मंत्रियो�� इस निर्णय अवगत कर राज्य के उत्तराधिकारी की घोषणा करता हूँ और शीघ्र ही राज्याभिषेक के लिये आपको आमंत्रण भेजता हूँ इस प्रकार विदा लेकर सामव्रत अपने राज्य में लौट आते हैं लेकिन कुछ दिनों पश्चात पुनः राजगुरू से मिलने उनके आश्रम में पहुँच जाते हैं और उन्हें प्रणाम कर अपनी बात प्रारंभ करते हैं सामव्रत:- हे राजगुरू मेरे आधे से अधिक राज्य की प्रजा और मंत्रीगण चाहते कि मुझे अपने कुल की परम्परा का निर्वहन करना चाहिए और कुल की परम्परा का अनुसरण करना मेरा परम कर्तव्य भी है अब मैं इसी दुविधा में हूँ कि अगर मैं अपने कनिष्ठ पुत्र को अपना उत्तराधिकारी घोषित करता हूँ तो कहीं राज्य में विद्रोह न हो जाये राजगुरू:-राजन आपके के राज्य की प्रजा वह नहीं देख सकती जो मैं देख पा रहा हूँ और हो सकता है कि आपके कुछ मंत्रीगण वास्तविक रूप से चाहते हों कि आपके कुल की परम्परा का पालन हो परन्तु यह भी हो सकता है कुछ मंत्रीगण स्वार्थ वश इसके पक्ष में हों और राजन राजा का परम कर्तव्य राज्य के हित में निर्णय लेना है अब उसके लिये राज्य को विद्रोह का ही सामना क्यों न करना पड़े क्योंकि सम्पूर्ण विनाश से विद्रोह उचित है अगर वह राज्य को एक नई दिशा प्रदान करता है तो सामव्रत:- राजगुरू जैसा कि मैंने आपको पूर्व में बताया कि राज्याभिषेक के बाद मैं राज्य में उपस्थित नहीं रहूँगा और मैं यह नहीं चाहता कि राज्य में विद्रोह का डर लेकर मैं तीर्थयात्रा पर जाऊँ राजगुरू:- राजन आपकी दुविधा मैं समझ सकता हूँ परन्तु मैंने अपनी दूरदर्शिता के आधार पर जो निर्णय उचित समझा आपको बता दिया आगे आप स्वयं जो भी उचित समझते हैं वही कीजिए सामव्रत:- नहीं राजगुरू आपने सदैव मेरा मार्गदर्शन किया है और इस संकट की स्थिति में भी आप ही मुझे इस कठिन परिस्थिति से बाहर निकालें आप इस तरह मुझे बिना किसी समाधान के नहीं छोड़ सकते राजगुरू:- ठीक है राजन अब जो मैं कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनिये और कदाचित मेरा यह निर्णय आपके और आपकी प्रजा के लिये एक उदाहरण प्रस्तुत करेगा कि मैंने क्यूँ अणुव्रत को राजा बनाने का निर्णय लिया था ...आपको अपने राज्य का विभाजन कर और अपने दोनों पुत्रों को राजा घोषित करना होगा अपने राज्य का विभाजन आपको अपनी प्रजा की सहमति से करना होगा मेरे कहने का तात्पर्य है कि प्रजा के प्रतिशत के अनुसार आप अपनी सम्पत्ति और राज्य का विभाजन करना होगा और आपको यह भी स्मरण रखना होगा कौन सा क्षेत्र हैं जहाँ की प्रजा अग्रव्रत को और किस क्षेत्र की प्रजा अणुव्रत को राजा स्वीकार करना चाहती है भौगोलिक रूप से विभाजन पर प्रजा का स्थानांतरण भी स्वाभाविक है आपको दोनों राज्यों से स्थानांतरित हुए जनों के पुनर्वास का भी ध्यान रखना होगा सामव्रत:- विभाजन राजगुरू अर्थात् मैं अपने दोनों पुत्रों में राज्य को आधा आधा बाँट दूँ परन्तु इस निर्णय पर मेरी प्रजा को अत्यंत दुख पहुँचेगा वह कदापि यह नहीं चाहेगी राजगुरू:- आप राज्य की जनता से यह कहियेगा आप अपने दोनों पुत्रों को राजा बनाना चाहते हैं जिसके लिये उनके अधिकार क्षेत्र अलग अलग होंगे राज्य के अत्यधिक विशाल होने के कारण दोनों राजा अपने अपने क्षेत्रों की उचित देख-रेख कर सकेंगे किन्तु मेरे जीवित रहने तक राज्य एक ही रहेगा और आप अपनी इच्छा और राजा की अनुमति से किसी के भी अधिकार क्षेत्र में शरण ले सकते हैं इस प्रकार आपकी प्रजा के लिये विभाजन का कोई महत्व ही नहीं रहेगा लेकिन आपके पुत्रों को इस विभाजन का पूर्ण निष्ठा से पालन करना होगा सामव्रत:- राजगुरू आपने वास्तव में मुझे एक बहुत बड़ी दुविधा से निकाल लिया अब मैं बिना किसी शंका के तीर्थयात्रा पर जा सकता हूँ मेरी अनुपस्थिति में अब मेरे राज्य के एक नहीं दो संरक्षक होंगे वहीं प्रजा को यह अधिकार होगा कि वह किसी के भी संरक्षण में रह सकती है अब आप मुझे आज्ञा दीजिये जिससे मैं जल्दी से जल्दी अपने राज्य लौटकर दोनों पुत्रों के राज्याभिषेक की तैयारी कर आपको निमंत्रण भेज सकूँ इस प्रकार राजा सामव्रत आश्रम से लौट आते हैं और अपनी प्रजा, मंत्रीगण और पुत्रों को अपने राज्य का अधिकार क्षेत्र के अनुसार विभाजन के निर्णय से अवगत कराते हैं और इस प्रकार राज्य के विभाजन की तिथि का निर्धारण कर राजगुरू को आमंत्रित किया जाता है ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण राज्य की अधिकांश प्रजा और मंत्रीगण अग्रव्रत के पक्ष में होने से ६० प्रतिशत भूभाग एवं राजकोष अग्रव्रत को और ४० प्रतिशत अणुव्रत को मिलता है अणुव्रत को जो भूभाग मिलता है वह अत्यधिक पथरीला और कटीली झाड़ियां वाला वन क्षेत्र है वहाँ रहने वाले अणुव्रत के व्यवहार से और उसकी कुशलता से भली भांति परिचित थे क्योंकि अपने जीवन का अधिकांश समय उन्होंने गुरूकुल एवं आखेट पर व्यतीत किया था जो कि सारा का सारा वन क्षेत्र था अब राज्याभिषेक का दिन आ चुका था दोनों राजपुत्रों का राज्याभिषेक किया जाता है उसके पश्चात राजा सामव्रत और राजगुरू दोनों अणुव्रत के साथ उनके अधिकार क्षेत्र को देखने के लिये जाते हैं अणुव्रत के सम्पूर्ण क्षेत्र को भ्रमण करने के पश्चात सामव्रत राजगुरू से कहते हैं। सामव्रत:- राजगुरू मुझे कुछ सही नहीं लग रहा है जो भूभाग अणुव्रत को मिला है वह अत्यधिक कटीला और पथरीला है क्या वह इस भूभाग से कुछ अर्जित कर पायेगा क्या वह स्वयं खुश रह पायेगा और अपनी प्रजा को खुश और समृद्ध बना पायेगा जबकि अग्रव्रत के पास जो भूभाग है वह अत्यधिक उपजाऊ और हरा-भरा है वह हर प्रकार से सुखी और सम्पन्न है और निश्चित ही उसकी प्रजा भी हर प्रकार से सुखी और सम्पन्न रहेगी राजगुरू:-राजन मैं जो आपको अणुव्रत के विषय मे समझाना चाहता हूँ उसके अनुसार यह भूभाग सर्वथा उचित है और वर्तमान में केवल आर्थिक समृद्धि ही भविष्य की संभावनाओं का आकलन नहीं कर सकती किसी भी राज्य का कुशल नेतृत्व भी इस के लिये उत्तरदायी होता है और यही आपके दोनों पुत्रों को सिद्ध करना है सामव्रत:- आप अपने स्थान पर उचित हों राजगुरू किन्तु मेरा मन अब भी व्याकुल और चिंतित है राजगुरू:- आप व्यर्थ ही चिंतित हो रहे हैं राजन अब आप अणुव्रत के साथ राजमहल में जायें और तीर्थयात्रा की तैयारी करें और अब मुझे भी तपस्या के लिये हिमालय की ओर प्रस्थान करना होगा अणुव्रत:- क्षमा कीजिएगा राजगुरू अब जैसा कि विभाजन हो चुका है और मैं राजा भी बना दिया गया हूँ तो अब मुझे अपनी प्रजा के बीच ही रहना होगा अत: अब मैं अपने अधिकार क्षेत्र में ही निवास करूँगा अणुव्रत के मुख से इस प्रकार के वचनों को सुनकर राजगुरू अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और सामव्रत थोड़े से चिंतित किन्तु राजगुरू के यह समझाने पर कि आप पिता धर्म के कारण चिंतित हैं जबकि आप एक राजा की तरह सोचेंगे तो आपको अणुव्रत पर गर्व होगा ....और इसके पश्चात राजगुरू आश्रम को राजा राजमहल को लौट जाते हैं और अणुव्रत वन में ही रह जाते हैं कुछ दिनों के बाद सामव्रत तीर्थयात्रा पर और राजगुरू तपस्या करने हिमालय पर चले जाते हैं ... आगे की कहानी अगले भाग में ..........
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महत्वपूर्ण सुझाव मल्टी-लेवल मार्केटिंग बिज़नेस को बढ़ावा देने के लिए!
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1. उपयोगी लागत
आरंभ करने के लिए, यह पूरी तरह से मुफ्त है अपने व्यवसाय के बारे में शब्द निकालने के लिए आपको किसी भी नकदी का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। आप कुछ भी व्यय किए बिना व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या के साथ जुड़ सकते हैं। यह विशेष रूप से उपयोगी है, जब आप हाल ही में शुरुआत कर रहे हैं और खर्च में कटौती करने के तरीकों की खोज कर रहे हैं।
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3. समय को बचाना
एक मुफ़्त विज्ञापन पोस्ट करने में बहुत समय लगता है। आपके व्यवसाय में शामिल होने और प्रचार करने में केवल दो या तीन मिनट लगते हैं। अपनी पोस्ट पेश करने के कुछ ही मिनटों के भीतर, यह लाइव हो जाता है और किसी के पास से गुजरने वाले देखने की खुशी के लिए यह आसान है। यह पोस्ट साइट पर लंबे समय तक बना रहता है और आपके व्यावसायिक दिन को और दिन में आगे बढ़ाता है, जबकि आप अपने व्यवसाय के वैकल्पिक हिस्सों में व्यस्त रहते हैं।
4. ग्राहकों की विशाल संख्या
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5. एक बार फिर स्थानांतरण और संपादित करें
एक वर्गीकृत साइटों पर आपकी पहली पोस्ट के बाद से कुछ दिन बाद चले गए हैं, आप अपने विज्ञापन को बदल सकते हैं और एक बार फिर पोस्ट कर सकते हैं। इन पंक्तियों के साथ आपकी पदोन्नति पुन: साझा किए गए बदलावों के माध्यम से रहती है। उस बिंदु पर जब नजर रखने वालों को एक पदोन्नति मिलती है, तो वे संभवत: आपकी दिलचस्पी रखने और इंटरफ़ेस के बारे में अधिक जानने के लिए जा रहे हैं। कुछ अपरिभाषित समय सीमा पर विज्ञापनों को फिर से प्रसारित करना वैसे ही आश्वस्त करना है कि संगठन विश्वसनीय है।
हालांकि, MLM मुक्त प्रमोशन के उपयोग के कुछ फायदे हैं, लेकिन गारंटी देने के लिए याद रखने के लिए कुछ चीजें हैं कि आपके विज्ञापनों को उनकी योग्यता के बारे में जानकारी मिलती है।
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मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने सुना जनता का दर्द तीन घंटे से भी अधिक समय तक सुनी फरियादियों की समस्या राजेन्द्र जोशी जनता दर्शन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत सोमवार को कड़क मिज़ाज़ के साथ कई बार फरियादियों के सामने बहुत ही सरल नज़र आये इतना ही कई मायनों में सरकार का यह जनता दर्शन कार्यक्रम अलग सा ही दिखाई दिया। प्रदेश की जहाँ समूची ब्यूरोक्रेसी यहाँ तालाब की गयी थी तो जिला देहरादून के तमाम आला अधिकारियों तक को भी तलब किया गया था , हालाँकि जनता से जुडी अधिकाँश समस्याएं कानून व्यवस्था, राजस्व, आपदा मुआवजा, आर्थिक सहायता से जुड़ी समस्याएं जो जिले स्तर के अधिकारियों के स्तर पर ही हल करने लायक थी जिन्हे बेवजह अधिकारियों ने लम्बे समय से लटका रखा था और इन समस्याओं को डीएम की जगह सीएम को सुननी पड़ी। इस जनता दर्शन कार्यक्रम से यहाँ भी साफ़ हो गया सूबे की ब्यूरोक्रेसी किस कदर जनता के सवालों को सुलझाने की कोशिश करती है और यह भी बात सामने आयी कि यदि प्रदेश की जनता अपनी इन समस्यायों को लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार में लेकर न जाए तो आखिर कहाँ जाये। वहीँ जनता की समस्याओं के देखते हुए मुख्यमंत्री रावत ने जनता दर्शन के लिए निर्धारित समय सीमा को लांघते हुए लगभग तीन घंटे से भी ज्यादा समय तक सबकी समस्याओं के निराकरण की कोशिश की इस दौरान मुख्यमंत्री कभी कड़क तो कभी नरम नज़र आये। देहरादून : सोमवार सुबह से ही आम जन अपनी शिकायतों को लेकर मुख्यमंत्री आवास कार्यालय पहुंचना शुरू हो गए। सभी लोगों की शिकायतों को बाकायदा रजिस्टर्ड किया गया। फिर एक-एक कर शिकायतकर्ताओं का नाम पुकारा गया। बारी-बारी से लोगों ने मुख्यमंत्री के रूबरू होकर अपनी बात रखी। मुख्यमंत्री ने भी लोगों की बातों को पूरे गौर से सुना और आवश्यक निर्देश दिए। श्री गंगा सिंह द्वारा कहा गया कि वे राज्य आंदोलनकारी रहे हैं और उनके पास आंदोलन के समय पास घायल होने की मेडिकल रिपोर्ट भी है। इस पर मुख्यमंत्री ने अपर मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि श्री गंगा सिंह की शिकायत को डीएम चमोली को भेजते हुए निस्तारण एक सप्ताह कर दिया जाए। श्री मनमोहन सिंह बिष्ट के जमीन संबंधी विवाद का मामला काफी समय से लम्बित रहने की बात कहे जाने पर मुख्यमंत्री ने जिलाधिकारी देहरादून को निर्देश दिए कि जमीन संबंधी मामलों को तेजी से हल किया जाए। जनता दर्शन कार्यक्रम में पेट्रोल में हेराफेरी की शिकायत आने पर मुख्यमंत्री ने पैट्रोल पम्पों में घटतौली की जांच के लिए अभियान चलाए जाने के निर्देश दिए। एक शिकायतकर्ता द्वारा प्राईवेट जमीन पर भूमाफिया द्वारा सड़क बना दिए जाने व कुछ अन्य शिकायतकर्ताओं द्वारा भी भू माफिया संबंधी शिकायत किए जाने पर मुख्यमंत्री श्री रावत ने शिकायतें सही पाए जाने पर संबंधित भूमाफिया के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के निर्देश दिए। एक व्यक्ति द्वारा यह कहे जाने पर कि 50 गज के प्लाॅट में मकान बनाने में भी अड़चनें पैदा की जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने एमडीडीए के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि आम जन को बिना वजह मकान बनाने में तंग न किया जाए। एक निर्धन बालक विशाल रस्तोगी के ईलाज के लिए मुख्यमंत्री ने 50 हजार रूपए की राशि स्वीकृत की। सेवानिवृत्ति संबंधी लाभ समय पर न मिलने की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे मामलों में हीलाहवाली बरदाश्त नहीं की जाएगी। एक शिकायत यह आने पर कि पद न होने पर भी स्थानांतरण कर दिया गया, मुख्यमंत्री ने नाराजगी व्यक्त करते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश दिए। वर्ष 2013 की आपदा में ब्याज माफी की घोषणा के बावजूद कुछ लोगों को लाभ न मिलने की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने कहा कि शिकायत सही पाए जाने पर राज्य सरकार स्वयं ब्याज वहन करेगी। वहीँ वन गुज्र्जरों की समस्याओं पर मुख्यमंत्री श्री रावत ने जल्द ही एक बैठक अलग से बुलाए जाने के निर्देश दिए। पेंशन संबंधी मामलों पर अगले 15 दिन में पेंशन अदालत लगाई जाएगी।
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