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#मानसून- कल सक्रिय होगा
newshindiplus · 4 years
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Rajasthan Weather Update: प्रदेश में कल से फिर सक्रिय होगा मानसून, आज रहेगी गर्मी, जानिये क्यों?
Rajasthan Weather Update: प्रदेश में कल से फिर सक्रिय होगा मानसून, आज रहेगी गर्मी, जानिये क्यों?
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मौसम विभाग ने मंगलवार से फिर से सक्रिय हो रहे मानसून के कारण उदयपुर और कोटा संभाग के कई इलाकों में भारी बारिश होने की संभावनाएं जताई है. (सांकेतिक तस्वीर) राजस्‍थान में प्रवेश के साथ ही सुस्त पड़े मानसून…
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khsnews · 3 years
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दो दिन बाद फिर सक्रिय होगा मानसून, 31 जुलाई को भारी बारिश की चेतावनी. मानसून ने 30-31 जुलाई को दो दिन भारी बारिश की चेतावनी दी है. समाचार18
दो दिन बाद फिर सक्रिय होगा मानसून, 31 जुलाई को भारी बारिश की चेतावनी. मानसून ने 30-31 जुलाई को दो दिन भारी बारिश की चेतावनी दी है. समाचार18
जयपुर राजस्थान में सक्रिय मानसून 2 दिन का ब्रेक लेने वाला है। मौसम विभाग के अनुसार राजस्थान में आज और कल मानसून रहेगा। लेकिन 30 जुलाई के 2 दिन बाद सोनहारा में फिर से मानसून शुरू हो जाएगा। इस बीच, 31 जुलाई को कई जिलों में भारी बारिश की संभावना है। इसे देखते हुए मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। पिछले कई दिनों से राज्य के विभिन्न हिस्सों में अच्छी बारिश हो रही है। मौसम विभाग ने 30 जुलाई को…
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vilaspatelvlogs · 4 years
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बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल तक दस्तक दे सकता है
बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल तक दस्तक दे सकता है
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शाम को कई इलाकों में हुई बारिश, 3.1 डिग्री गिरा पारा
बिलासपुर-रायगढ़ तक पहुंचा मानसून जल्द ही पूरे छत्तीसगढ़ में होगा सक्रिय
झारखंड में आज कुछ जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
दैनिक भास्कर
Jun 14, 2020, 04:00 AM IST
नई दिल्ली. मानसून पश्चिम बंगाल में गंगा के तटवर्ती इलाके और ओडिशा पर सक्रिय है। शनिवार को यह मध्य महाराष्ट्र के कुछ और हिस्सों, मराठवाड़ा और विदर्भ के अधिकतर हिस्सों,…
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newsedigital · 4 years
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बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल तक दस्तक दे सकता है
बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल तक दस्तक दे सकता है
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शाम को कई इलाकों में हुई बारिश, 3.1 डिग्री गिरा पारा
बिलासपुर-रायगढ़ तक पहुंचा मानसून जल्द ही पूरे छत्तीसगढ़ में होगा सक्रिय
झारखंड में आज कुछ जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
दैनिक भास्कर
Jun 14, 2020, 04:00 AM IST
नई दिल्ली. मानसून पश्चिम बंगाल में गंगा के तटवर्ती इलाके और ओडिशा पर सक्रिय है। शनिवार को यह मध्य महाराष्ट्र के कुछ और हिस्सों, मराठवाड़ा और विदर्भ के अधिकतर हिस्सों, छत्तीसगढ़,…
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kisansatta · 4 years
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अच्छे मानसून का संकेत और चुनौतियाॅ
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जय प्रकाषश पाण्डेय
जल, जीवनदायी प्रकृति के स्नेह का तरण रूप है, जिसका प्रसार धरातल के 70 प्रतिशत भाग पर है। इस अपार जल राशि के कारण ही पृथ्वी ’नीलाग्रह’ कहलाती है। लेकिन इस ग्रह पर मनुष्य के लिए उपयुक्त मीठा जल केवल 3 प्रतिशत है। इसमें भी सिर्फ एक प्रतिशत का प्रयोग हम कर सकते है। सभ्यता के भौतिक विकास का आधुनिक माडल प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन पर आधारित है। सभी राष्ट्रो में आधुनिक माडल के विकास की प्रबल आकांक्षा एवं विकास की रफ्तार के स्तर पर प्रतिस्पर्धा ने वैश्विक जल संकट पैदा कर दिया है। विश्व के 2.4 प्रतिशत क्षेत्रफल पर विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या का बोझ उठाने वाले भारत में जल-संकट अधिक चिन्ताजनक है। यूएनओ के अनुसार देश की साठ प्रतिशत जनसंख्या पानी की किल्लत का सामना कर रही है। दुनिया का हर दसवां प्यासा व्यक्ति भारतीय है। नगरीकरण, उद्योगीकरण, बदलती हुई जीवन पद्वति एवं नकदी फसल के दवाब में परिवर्तित होते फसल चक्र से जल की मांग में भारी वृद्वि हुई है। लेकिन वर्षा जल के भण्डारण की हमारी क्षमता केवल 15 प्रतिशत है। जल भण्डारण की इस अक्षमता के कारण आज सकल जलापूर्ति का सत्तर प्रतिशत भू-जल के दोहन पर निर्भर है। अब यह भूजल भण्डार भी सूखने के करीब (डार्कजोन) पहुॅच रहा है। ऐसे में मौसम विभाग द्वारा 2020 में अच्छे मानसून का संकेत सुखद है किन्तु जल प्रबन्धन के स्तर पर यह अवसर और चुनौती दोनो है। मानसून भारतीय जलवायु की विलक्षणता है। यहाॅ औसत वार्षिक वर्षा 4000 अरब क्यूबिक मीटर होती है। सकल वर्षा जल का 75 प्रतिशत दक्षिण-पश्चिम मानसून से केवल तीन माह (15 जून से 15 सितम्बर) में ही प्राप्त हो जाता है। वर्षा अवधि की इस विसंगति के साथ वर्षा के क्षेत्रीय वितरण में भी विसंगति है। भारत में वर्षा का राष्ट्रीय औसत 125 सेमी0 है, किन्तु मानसूनी पवनों की दिशा, समुद्र तट निकटता एवं पर्वतो की पवनभिमुख ढालों आदि विशिष्टता वाले क्षेत्रों में जैसे मालावार-कोंकण के तटीय क्षेत्र तथा पूर्वोत्तर हिमालय की दक्षिणी ढाल पर 200 सेमी0 से अधिक वर्षा होती है, वहीं वृष्टि छाया क्षेत्र एवं मध्य उपमहाद्वीप क्षेत्रों -बुन्देलखण्ड, विदर्भ एवं मैसूर में राष्ट्रीय औसत की आधी वर्षा (60 सेमी) होती है। दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान एवं लद्दाख में 25 सेमी से भी कम वर्षा होती है। इसलिए भारत को बाढ़ एवं अकाल दोनो दशाओं का सामना एक साथ करना पड़ता है। किन्तु यह सत्य है कि हमारे देश में कृषि कार्य, आद्यौगिक कार्य एवं पेयजल-गृहकार्य के लिए 800 अरब क्यूबिक घनमीटर प्रतिवर्ष जल की मांग होती है। मानूसन औसतन इस मांग का पाॅच गुना वर्षा जल प्रदान करता है। परन्तु आजादी के 70 वर्षो के बाद भी अच्छे मानूसन की मूसलाधार वर्षा का 85 प्रतिशत जल नदियों में उफनते हुए लगभग तेरह से अधिक राज्यों में बाढ़ की तबाही पैदा करते हुए समुद्र में चला जाता है। जल भण्डारण की सीमित क्षमता के कारण भारत में बढ़ते जल तनाव (वाटर स्ट्रेस्ड) क्षेत्र में बाढ़ प्रवण क्षेत्र भी गैर वर्षा ऋतु (7-8 माह) में शामिल रहते हैं। वर्ष 2019 में मानसून सत्र में औसत से 10 प्रतिशत अधिक वर्षा प्राप्त हुई थी, साथ ही मानसूनी पवनों की 40 दिन विलम्ब से वापसी के कारण वर्षा अवधि का भी विस्तार हुआ। किन्तु जल प्रबन्धन की बहुप्रसिद्व अक्षमता के कारण मझोले एवं बड़े बाॅधों (5200 संख्या) की सकल भण्डारण क्षमता 257 अरब घनमीटर को भी शत-प्रतिशत नहीं हासिल किया जा सका। ’केन्द्रीय जल आयोग’ के अनुसार मानूसन वापसी तक सकल भण्डारण क्षमता का केवल 66 प्रतिशत ही भण्डारित हो सका। निश्चित रूप से भारत का जल संकट वर्षा जल के संचय से जुड़ा है। अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार – प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष जल संचयन क्षमता 2000 घनमीटर होनी चाहिए। यह वार्षिक जल संचयन क्षमता आस्ट्रेलिया में 3223 घनमीटर/ व्यक्ति/वर्ष, अमेरिका में 2193 घनमीटर, ब्राजील में 2632 घनमीटर एवं चीन में भी 416 घनमीटर, वही भारत में प्रतिव्यक्ति 200 घनमीट प्रतिवर्ष जल संचयन क्षमता है। यही कारण है कि देश में प्रतिव्यक्ति जल उपलब्धता लगातार गिरती जा रही है। 1951 में प्रतिव्यक्ति जल उपलब्धता 5177 घनमीटर थी, जो 2011 में घटकर 1545 घनमीटर हो गयी वर्तमान में 1350 घनमीटर प्रतिव्यक्ति रह गयी है। ध्यातव्य है कि 1000 घनमीटर प्रतिव्यक्ति की स्थिति भारत में वाटर स्ट्रेस्ड की स्थिति मानी जाती है। जल संचय एवं संरक्षण हमारी सांस्कृतिक परम्परा का अभिन्न अंग है। वैदिक इन्द्र वर्षा के देवता के रूप में आज भी पूज्य है, जल की पवित्रता की इस चेतना के कारण ही हमारे देश में नदियों को माॅ कहा गया तथा विशेष अवसरो पर सरोवरो एवं नदियो में स्नान की परम्परा है। पुराणों में ’पूर्तधर्म’ के धार्मिक कृत्य की सूची में – सरोवर, तालाब के निर्माण एवं संरक्षण को प्रमुखता दी गई है। ’नारद पुराण’ में लिपिबद्व है- ’जो मनुष्य जल संग्रह एवं संरक्षण करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में 100 वर्ष निवास करता है’ इस पौराणिक आग्रह ने प्राचीन भारत में जल संरक्षण की प्रबल जनचेतना पैदा की। किसानों, खेतिहर मजदूरो ने श्रमदान से, समृद्व व्यापारियों ने धनदान तथा राजे-रजवाड़ो ने राजकोष से गावों, कस्बो एवं नगरों में लाखों जल स्रोतो- तालाबो, सरोवरो एवं कूपो का निर्माण एवं संरक्षण किया। भोपाल का भोजताल, जैसलमेर का गड़ीसर एवं महोबा में सात तालाबों की श्रंृखला इस परम्परा के मूक साक्ष्य है। सुदूर दक्षिण में महान चोल राजाओं के सक्रिय संरक्षण में जनता के नैतिक उत्साह ने जल संरक्षण की इस चेतना को संगठित रूप प्रदान किया। उत्तरमेरूर अभिलेख में ग्राम्य स्वशासन के स्तर पर एरिवरियम (तालाब समिति) के अधिकार एवं कर्तव्य का विस्तृत वर्णन है। परन्तु वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर हमने पुरखो की परम्परा से नाता तोड़ लिया। भूजल के दोहन की आधुनिक तकनीक – पंपिगसेट, ट्यूबेल – के ईजाद होने एवं भूजल के दोहन की असीमित स्वतंत्रता ने तालाब, जोहड़, सरोवर के निर्माण एवं संरक्षण का विकल्प उपलब्ध करा दिया। शासन स्तर पर बड़े-मझोले बांधों को ही जलसंरक्षण का मुख्य उपाय माना जाता है। भारत में मौजूदा 5200 बांधो की क्षमता केवल 257 अरब क्यूबिक जल भण्डारण की है जाहिर है अभी हमें पांच गुना अधिक बांधो की जरूरत होगी। अधिक धन व्यय, पर्यावरणविदो के विरोध एवं न्यायिक हस्तक्षेप से बांध की बड़ी परियोजनाएं विलिम्बत हो जाती है, ऐसे में परम्परागत जलसंरक्षण की प्रौद्योगिकी को अपनाना ही उचित जान पड़ता है। भूजल स्तर में सतत गिरावट एवं सूखते हुए- कुएं, तालाब तथा नदियां भारतीय जल प्रबन्धन के समक्ष सबसे जटिल चुनौती है। अमेरिका एवं चीन को पीछे छोड़कर भारत विश्व का सर्वाधिक भूजल दोहन (विश्व का 25 प्रतिशत) करने वाला देश है। वल्र्डबैंक के अनुसार दो दशकों में ही भारत के 60 प्रतिशत जलस्रोत खतरनाक स्थिति तक पहुंच गए है। 15 प्रतिशत जल स्रोत- 4500 नदियां, 20,000 झील एवं पोखरे सूख चुके है। एक ओर उच्चतम एवं उच्चन्यायालय – झील- तालाब- झरने एवं पोखरों को अतिक्रमण-मुक्त कराने का आदेश जारी करते है। दूसरी ओर देश के सभी प्रदेशों के सभी हिस्सो में भू-माफिया, बिल्डर एवं दबंगो ने तालाबों, झीलों पर कब्जा करना जारी रखा है। जल के प्रयोग में निर्मम बरबादी भी संकट बढ़ा रही है। नगरों में लोकप्रिय हो चुका ’आरओ’ पानी के शुद्दीकरण की प्रक्रिया में 70 प्रतिशत जल बर्बाद करता है। केन्द्रीय जलशक्ति मिशन के अनुसार अकेले दिल्ली में 1.1 बिलियन लीटर पानी सीवेज में डाल दिया जाता है। भारत में सर्वाधिक जल की खपत का 80 प्रतिशत कृषि कार्य में होता है। यहाॅ भी 60 प्रतिशत पानी सिंचाई की प्रक्रिया में बर्बाद होता है। अद्र्वशुष्क क्षेत्रों में चावल एवं गन्ना की फसलों पर अधिक आग्रह ने भूजल के दोहन को और तीव्र किया है। मौसम विभाग के 2020 के लिए अच्छे मानसून को घोषणा से बहुत अच्छा हासिल करने के लिए बहुत कुछ करना होगा। बड़ी बांध परियोजनाओं को ससमय पूर्ण कराने, के लिए तथा तालाबों, झीलों को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए युद्ध जैसे नैतिक उत्साह की आवश्यकता है। नीति आयोग द्वारा देश के 450 नदियों को जोड़ कर नदियों के राष्ट्रीय ग्रिड बनाने के प्रस्ताव का कारगर कार्यान्यवन करना होगा। यह महात्वाकांक्षी योजना है बाढ़ प्रवण क्षेत्र के अतिरिक्त जल को शुष्क क्षेत्र में प्रवाहित कर बाढ़ एवं अकाल दोनो दशाओं से निजात दिलायेगी। देश के शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में आद्रताग्राही फसलों (गन्ना, चावल) के लोभ में लाखों ट्यूबवेल भूजल का दोहन निर्मम दोहन कर रहे हैं। वहीं 6000 से अधिक रजिस्टर्ड कंपनियों में औसतन प्रति कंपनी प्रति घंटे 20000 हजार लीटर भूजल उलीच कर बोतलबंद पानी का नगरो/कस्बों में लाभदायी व्यापार कर रही हैं। समय रहते भूजल के दोहन पर उचित नियमन नियंत्रण करना होगा अन्यथा देश का 4/5 हिस्सा डार्कजोन बनकर वाटर स्ट्रेस्ड क्षेत्र में शामिल हो जायेगा। तमिलनाडु सरकार का प्रत्येक घर की संरचना में वर्षा जलसंचय की अनिवार्यता का कानून एक सराहनीय पहल है। सर्वाेच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ में अधिकार में स्वच्छ पानी को शामिल करते हुए इस नागरिकों का मूल अधिकार घोषित किया है। हर घर को ‘नल से जल’ को 2022 का लक्ष्य स्वागत योग्य है परंतु इस नल से सतत जलापूर्ति के लिए जल संचय एवं संरक्षण के प्रति सजगता आवश्यक है। जल को प्रकृति के बहुमूल्य उपहार मानने की चेतना विकसित करनी होगी। ‘जल है तो हम’ हैं और और सबसे बढ़कर ‘जल है तो कल’ है।
https://is.gd/6SSVnc #SignsAndChallengesOfAGoodMonsoon Signs and challenges of a good monsoon Farming, In Focus, TECHNOLOGY, Top #Farming, #InFocus, #TECHNOLOGY, #Top KISAN SATTA - सच का संकल्प
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sanmarglive · 4 years
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संक्रमण के कारण अर्थव्यवस्था कहां जा रही है! अभी हम यह नहीं जान पाए हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण हमारी अर्थव्यवस्था कहां जा रही है। संक्रमण से पहले अर्थशास्त्री थोड़े आशान्वित हुए थे। उनका कहना था कि वित्त वर्ष 2020-21 में हमारी अर्थव्यवस्था की विकास दर लगभग 6% हो जाएगी। अब कहा जाने लगा है कि कोरोना के बाद हमारी अर्थव्यवस्था 1% बढ़ जाए तो वही बहुत है। यह नई बात बीसी और एसी अर्थव्यवस्था के रूप में कही जाएगी। यहां बीसी का अर्थ बिफोर क्राइस्ट या ईसा पूर्व नहीं है यहां बीसी का अर्थ बिफोर कोरोना और एसी का अर्थ आफ्टर कोरोना है।भारतीय अर्थव्यवस्था में 55 से 57% लोग सेवा क्षेत्र में हैं। 29-30 योगदान देने वाली आबादी उद्योगों में है। लगभग 65 आबादी कृषि से जुड़ी है। परंतु कोरोना के कारण लॉकडाउन से उत्पादन थम गया। ऐसा केवल कारखानों के साथ नहीं हुआ बल्कि वायु सेवा, रेलगाड़ियां और अंतरराज्यीय परिवहन के साथ भी हुआ। मॉल्स, सिनेमा हॉल इत्यादि बंद हो गये। कई और सेवाएं बंद हो गई तथा इसके चलते भारी आर्थिक क्षति हुई। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि हमारी जीडीपी में लगभग 8-9% की हानि होगी जो इस समय लगभग 12 खरब के आसपास है। अब मजदूरों के पलायन पर बहस हो रही है। कल कारखाने बंद हो जाने से उसमें काम करने वाले मजदूर दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं और वे अपने गांव लौट जाना चाहते हैं। इनमें से लगभग 10% मजदूर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। इसका अर्थ है कि लगभग 40 करोड़ लोग भयानक गरीबी के शिकार होने वाले हैं या कहा जा सकता है कि 40 करोड़ लोग और गरीब हो जाएंगे। इन्हें जो हर महीने पैसा मिलता था, वह बंद हो जाएगा। कोरोना के बाद सेवा क्षेत्र का क्या होगा इसकी तस्वीर साफ नजर नहीं आ रही है। जरा सोचें जो लोग छोटे कारखाने या सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम चलाते हैं, सब बंद है। यहां एक उदाहरण है। दिल्ली उद्योग नगर है, सरकारी पहलों से छोटे-छोटे कारखाने विकसित हुए हैं। कोरोना के बाद सरकार ने इन उद्यमियों से कारखाने खोलने और असंगठित मजदूरों को परिसर में रखने के लिए कहा। लेकिन किसी भी उद्योग वाले ने यह सलाह नहीं मानी। उन्होंने कह दिया कि उनके कारखाने बहुत छोटी जगह में हैं और इतनी छोटी जगह में मजदूरों को कैसे रखा जा सकता है। दूसरी बात है कि मजदूर किसी एक इलाके से नहीं हैं कि बसें भेजकर उन्हें बुलवा लिया जाए। अब इन मजदूरों को लॉकडाउन में अस्थाई तौर पर छूट देकर कैसे क्वारंटाइन में रखा जाना संभव है।लेकिन इन सब बुरी खबरों के बीच एक अच्छी खबर यह भी है कि इस वर्ष मानसून अच्छा है। अब तक रबी की फसलों का उत्पादन लगभग 30 करोड़ टन पहुंच गया है। फसलें बाजार में जा रही हैं। खरीफ की फसल के बारे में जो पूर्व सूचना है वह भी बहुत अच्छी है। अगर हम फसल उत्पादन का आर्थिक संदर्भ में सही उपयोग करते हैं तो यह एक अच्छी खबर होगी। लेकिन इनमें भी समस्याएं हैं। पहली समस्या है कि देश में किसानों के पास जमीन बहुत कम है। लगभग 86% किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। 70% ऐसे किसान हैं जिनके पास 1 एकड़ भी जमीन नहीं है। बंगाल में हम इसे भूमि विखंडन कहते हैं। अब विखंडित भूमि से मुनाफा प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक तौर तरीके का उपयोग जरूरी है। पहला, सहभागी या कोआपरेटिव, दूसरा ठेका और तीसरा सामूहिक कृषि और किसानों को उत्पादन को बाजार में बेचकर मुनाफा कमाने की अनुमति देना। ठेका कृषि की सफलता सरकार और स्थाई प्रशासन पर निर्भर करती है। इसे लेकर कई तरह के विचार हैं। यदि अच्छे किस्म के धान का उत्पादन हुआ और तब उससे बने चावल को विदेशों को निर्यात किया जा सकता है। दूसरे देश को निर्यात से अच्छी आमदनी की उम्मीद है। अब हमें यह देखना होगा कि हमारे देश के लोगों की जरूरतें पूरी हो रही हैं या नहीं। अगर ऐसा होता है तभी हम दूसरे देश को कृषि उत्पादन के निर्यात के बारे में सोच सकते हैं। इसके अलावा दूसरे देशों की तुलना में हमारे देश का कृषि उत्पादन कितना बढ़िया है यह भी तय करना होगा। यही नहीं विदेशों में हमारे उत्पादों की क्या कीमत होगी और किन-किन बाजारों में हम इसे ले जा सकेंगे इसके बारे में भी सुनिश्चित करना होगा। हालांकि इस गंभीर परिस्थिति में सरकार ने जो मनरेगा की व्यवस्था की, वह एक तरह से छोटा सा वरदान है। जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो इस सामाजिक परियोजना का शुभारंभ हुआ। इसके अनुसार प्रत्येक मजदूर कम से कम 100 रुपये रोज प्राप्त करेगा। मोदी सरकार ने इसमें सुधार किया। इस परियोजना के अंतर्गत रोजगार के विस्तार की संभावना बढ़ाई। अब यह देखिए कि कोरोना के संकट में इसका कैसे उपयोग होता है। भारत में कब तक लॉकडाउन बढ़ेगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। लॉकडाउन के फलस्वरूप केवल कारखाने ही नहीं, एयरलाइंस को भी भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए इंडिगो के हर विमान में लगभग 186 यात्री चलते हैं और उदाहरण स्वरूप मानें कि किराया 3 से 4 हजार रुपयेे है। अब जोड़िए कि सिर्फ एक उड़ान से कितना हासिल होता है। अब यह सब बंद हो गया इसके बाद हवाई अड्डा किराया देना होता है जो अब भी दिया जा रहा है। इसके अलावा हवाई जहाज का इंजन सक्रिय रखने के लिए समय-समय पर इसे उड़ाया भी जाता है, ठीक वैसे ही जैसे हमें अपनी कार के इंजन को सक्रिय रखने के लिए करना होता है। इस पर भी काफी खर्च होता है। इसे पुश बैक इंजन एक्सपेंडिचर कहते हैं। विमान जहां जाते हैं उसके साथ 20-25 लोग और जाते हैं, इनमें विमान परिचारिका, चालक दल और ग्राउंड स्टाफ भी शामिल हैं। लॉकडाउन की अवधि में विमान खड़े हैं और उनका वेतन देना पड़ रहा है। हालांकि कई कंपनियों ने आर्थिक संकट के कारण वेतन में कटौती कर दी है। कर्मचारियों को वेतन सहित या बिना वेतन के लंबी छुट्टी पर जाने को कह दिया है। यह केवल विमान परिचालन की बात नहीं है, हवाई अड्डे के साथ ही कई चीजें जुड़ी रहती हैं। दुकानें, मॉल्स, कई होटल जो इसके चारों तरफ हैं इन्हें चेन ऑफ सर्विस कहते हैं। हवाई सेवा के बंद होने के बाद इससे जुड़ी कई और चीजें बंद हो जाती हैं। कारखानों के साथ उत्पादन क्षेत्र में कई और व्यापार जुड़े हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा में मानेसर को देखें। यहां मारुति कारें बनती हैं और उस कारखाने की दो इकाइयां हैं। एक कार बनाती है और दूसरी इंजन। कहा जा रहा है यह कंपनी कार बना सकती है, लेकिन इसकी इंजन बनाने वाली यूनिट रेड जोन में आती है, इसलिए इंजन का बनना बंद हो गया है और जब इंजन ही नहीं बनेगा तो मारुति कार कैसे बनायेगी?
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बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल दस्तक दे सकता है
बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल दस्तक दे सकता है
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बिलासपुर-रायगढ़ तक पहुंचा मानसून जल्द ही पूरे छत्तीसगढ़ में होगा सक्रिय
झारखंड में आज कुछ जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
दैनिक भास्कर
Jun 14, 2020, 05:15 PM IST
नई दिल्ली. मानसून पश्चिम बंगाल में गंगा के तटवर्ती इलाके और ओडिशा में सक्रिय है। शनिवार को यह मध्य महाराष्ट्र के कुछ और हिस्सों, मराठवाड़ा और विदर्भ के अधिकतर हिस्सों, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बाकी हिस्सों, झारखंड के…
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reviewsground · 4 years
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Monsoon reaches close to Bihar, Jharkhand and Madhya Pradesh; Can knock till today or tomorrow in Gujarat | बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल दस्तक दे सकता है
Monsoon reaches close to Bihar, Jharkhand and Madhya Pradesh; Can knock till today or tomorrow in Gujarat | बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल दस्तक दे सकता है
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बिलासपुर-रायगढ़ तक पहुंचा मानसून जल्द ही पूरे छत्तीसगढ़ में होगा सक्रिय
झारखंड में आज कुछ जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
दैनिक भास्कर
Jun 14, 2020, 05:46 AM IST
नई दिल्ली. मानसून पश्चिम बंगाल में गंगा के तटवर्ती इलाके और ओडिशा में सक्रिय है। शनिवार को यह मध्य महाराष्ट्र के कुछ और हिस्सों, मराठवाड़ा और विदर्भ के अधिकतर हिस्सों, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बाकी हिस्सों, झारखंड के…
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micvir · 4 years
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Monsoon reaches close to Bihar, Jharkhand and Madhya Pradesh; Can knock till today or tomorrow in Gujarat | बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल तक दस्तक दे सकता है
Monsoon reaches close to Bihar, Jharkhand and Madhya Pradesh; Can knock till today or tomorrow in Gujarat | बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के करीब पहुंचा मानसून; गुजरात में आज या कल तक दस्तक दे सकता है
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शाम को कई इलाकों में हुई बारिश, 3.1 डिग्री गिरा पारा
बिलासपुर-रायगढ़ तक पहुंचा मानसून जल्द ही पूरे छत्तीसगढ़ में होगा सक्रिय
झारखंड में आज कुछ जिलों में भारी बारिश की चेतावनी
दैनिक भास्कर
Jun 14, 2020, 04:00 AM IST
नई दिल्ली. मानसून पश्चिम बंगाल में गंगा के तटवर्ती इलाके और ओडिशा पर सक्रिय है। शनिवार को यह मध्य महाराष्ट्र के कुछ और हिस्सों, मराठवाड़ा और विदर्भ के अधिकतर हिस्सों,…
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