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#देवशयनी एकादशी व्रत तिथि और समय
ckpcity · 4 years
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देवशयनी एकादशी व्रत 2020: हरिशयनी एकादशी की तिथि, समय और महत्व के बारे में जानें
देवशयनी एकादशी व्रत 2020: हरिशयनी एकादशी की तिथि, समय और महत्व के बारे में जानें
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प्रतिनिधि छवि (फोटो सौजन्य: रॉयटर्स)
देवशयनी एकादशी हिंदू कैलेंडर में चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, इसे पद्मा एकादशी, महा एकादशी, देवपदी एकादशी या आषाढ़ी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।
ट्रेंडिंग डेस्क
आखरी अपडेट: 29 जून, 2020, 10:19 AM IST
प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा के कुछ ही दिनों बाद, हिंदू लोग आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष (चंद्रमा के एपिलेशन चरण) के…
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bhaktigroupofficial · 3 years
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🕉ॐ श्री हनुमते नमः🕉
🌄#सुप्रभातम🌄
🗓#आज_का_पञ्चाङ्ग🗓
🌻#मंगलवार, २० #जुलाई २०२१🌻
सूर्योदय: 🌄 ०५:४०
सूर्यास्त: 🌅 ०७:११
चन्द्रोदय: 🌝 १५:४०
चन्द्रास्त: 🌜२६:१६
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: 🌦️ वर्षा
शक सम्वत: 👉 १९४३ (प्लव)
विक्रम सम्वत: 👉 २०७८ (आनन्द)
मास 👉 आषाढ़
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि 👉 एकादशी (१९:१७ तक)
नक्षत्र 👉 अनुराधा (२०:३३ तक)
योग 👉 शुक्ल (१९:३५ तक)
प्रथम करण 👉 वणिज (०८:४० तक)
द्वितीय करण 👉 विष्टि (१९:१७ तक)
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॥ गोचर ग्रहा: ॥
🌖🌗🌖🌗
सूर्य 🌟 कर्क
चंद्र 🌟 वृश्चिक
मंगल 🌟 सिंह (उदित, पूर्व, मार्गी)
बुध 🌟 मिथुन (उदय, पूर्व, मार्गी)
गुरु 🌟 कुम्भ (उदय, पूर्व, वक्री)
शुक्र 🌟 सिंह (उदय, पश्चिम, मार्गी)
शनि 🌟 मकर (उदय, पूर्व, वक्री)
राहु 🌟 वृष
केतु 🌟 वृश्चिक
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शुभाशुभ मुहूर्त विचार
⏳⏲⏳⏲⏳⏲⏳
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अभिजित मुहूर्त 👉 ११:५५ से १२:५१
अमृत काल 👉 १०:५८ से १२:२७
रवियोग 👉 ०५:२८ से २०:३३
विजय मुहूर्त 👉 १४:४१ से १५:३७
गोधूलि मुहूर्त 👉 १९:०४ से १९:२८
निशिता मुहूर्त 👉 २४:०३ से २४:४४
राहुकाल 👉 १५:५० से १७:३४
राहुवास 👉 पश्चिम
यमगण्ड 👉 ०८:५६ से १०:३९
होमाहुति 👉 शनि
दिशाशूल 👉 उत्तर
नक्षत्र शूल 👉 पूर्व (२०:३३ से)
अग्निवास 👉 पृथ्वी
भद्रावास 👉 स्वर्ग (०८:४० से १९:१७)
चन्द्रवास 👉 उत्तर
शिववास 👉 क्रीड़ा में (१९:१७ कैलाश पर)
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ - रोग २ - उद्वेग
३ - चर ४ - लाभ
५ - अमृत ६ - काल
७ - शुभ ८ - रोग
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ - काल २ - लाभ
३ - उद्वेग ४ - शुभ
५ - अमृत ६ - चर
७ - रोग ८ - काल
नोट-- दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
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शुभ यात्रा दिशा
🚌🚈🚗⛵🛫
उत्तर-पश्चिम (धनिया अथवा दलिये का सेवन कर यात्रा करें)
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तिथि विशेष
🗓📆🗓📆
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देवशयनी एकादशी व्रत (सभी के लिये), चातुर्मास व्रत आरम्भ, विष्णु शयनोत्सव, मंगल सिंह में १७:५४ से आदि।
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आज जन्मे शिशुओं का नामकरण
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आज २०:३३ तक जन्मे शिशुओ का नाम
अनुराधा नक्षत्र के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ चरण अनुसार क्रमशः (नी, नू, ने) नामाक्षर से तथा इसके बाद जन्मे शिशुओ का नाम ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम एवं द्वितीय चरण अनुसार क्रमश (नो, या) नामाक्षर से रखना शास्त्रसम्मत है।
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उदय-लग्न मुहूर्त
कर्क - २९:१६ से ०७:३८
सिंह - ०७:३८ से ०९:५६
कन्या - ०९:५६ से १२:१४
तुला - १२:१४ से १४:३५
वृश्चिक - १४:३५ से १६:५५
धनु - १६:५५ से १८:५८
मकर - १८:५८ से २०:३९
कुम्भ - २०:३९ से २२:०५
मीन - २२:०५ से २३:२९
मेष - २३:२९ से २५:०२
वृषभ - २५:०२ से २६:५७
मिथुन - २६:५७ से २९:१२
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पञ्चक रहित मुहूर्त
रोग पञ्चक - ०५:२८ से ०७:३८
शुभ मुहूर्त - ०७:३८ से ०९:५६
मृत्यु पञ्चक - ०९:५६ से १२:१४
अग्नि पञ्चक - १२:१४ से १४:३५
शुभ मुहूर्त - १४:३५ से १६:५५
रज पञ्चक - १६:५५ से १८:५८
शुभ मुहूर्त - १८:५८ से १९:१७
चोर पञ्चक - १९:१७ से २०:३३
शुभ मुहूर्त - २०:३३ से २०:३९
रोग पञ्चक - २०:३९ से २२:०५
शुभ मुहूर्त - २२:०५ से २३:२९
शुभ मुहूर्त - २३:२९ से २५:०२
रोग पञ्चक - २५:०२ से २६:५७
शुभ मुहूर्त - २६:५७ से २९:१२
मृत्यु पञ्चक - २९:१२ से २९:२९
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आज का राशिफल
🐐🐂💏💮🐅👩
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज के दिन आपका स्वभाव शारीरिक दुर्बलता के कारण उदासीन बना रहेगा। अधिक मेहनत वाले कार्य करने में समर्थ नही रहेंगे फिर भी छोटे मोटे कार्य मे लगे रहेंगे। दिन के आरंभ से मध्यान तक कि दिनचर्या खराब रहेगी कार्य करने की हिम्मत जुटाएंगे लेकिन परिस्थिति कोई न कोई बाधा डालेगी मन मे उटपटांग विचार आएंगे। नौकरी वाले लोग भी मध्यान तक जबरदस्ती कार्य करेंगे लेकिन दोपहर के बाद सेहत में थोड़ी चुस्ती आने लगेगी फिर भी यात्रा अथवा अन्य जोखिम वाले कार्यो से बच कर ही रहे दुर्घटना हो सकती है। कार्य व्यवसाय में आज सफलता कम ही मिलेगी जोड़ तोड़ कर थोड़ा बहुत धन मिलेगा परन्तु तुरंत खर्च हो जाएगा। घर मे शांति रहने के बाद भी मन मे उच्चाटन बनेगा। सामाजिक सम्मान में कमी आएगी।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन भी आपके अनुकूल बना रहेगा लेकिन आज स्वभाव में थोड़ी तल्खी रहने से आपसी व्यवहारिकता में कमी आएगी। लोग आपसे अपेक्षाये लेकर आएंगे परन्तु निराश होना पड़ेगा। दैनिक कार्य के अतिरिक्त कार्य आने से कुछ समय के लिए असहजता बनेगी। व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण सामाजिक कार्यो में बेमन से भाग लेना पड़ेगा फिर भी सम्मान पाने के अधिकारी बनेंगे। काम-धंधे में सुधार आयेगा लेकिन रुके कार्य आज भी पूर्ण होने में संदेह रहेगा। नौकरी पेशाओ एवं महिलाओ का आस-पड़ोसियों से झगड़ा होने की संभावना है। परिवार में किसी से बीमार होने पर चिंता होगी धन खर्च के साथ अतिरिक्त भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। अपनी सेहत का भी ख्याल रखें।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन भी आपके धन कोष अथवा अन्य सुख के साधनों में वृद्धि करेगा। कार्य व्यवसाय में पहले से चल रही योजना फलीभूत होने से धन की आमद होगी। भविष्य के लिये भी लाभ के सौदे हाथ लगेंगे। सहकर्मियों का साथ मिलने से निश्चित कार्य समय से पूर्ण कर सकेंगे। महिलाये को शारीरिक कमजोरी के कारण दैनिक कार्यो के अतिरिक्त घर की व्यवस्था सुधारने में परेशानी होगी। कंजूस प्रवृति के कारण घर के किसी सदस्य से मतभेद की संभावना है। आज आप अपनी गलती जानते हुए भी अपनी बात पर अडिग रहेंगे जिससे आस-पास का वातावरण कुछ समय के लिये खराब होगा। व्यवसायिक यात्रा से लाभ हो सकता है। छोटी-मोटी व्याधि को छोड़ सेहत सामान्य रहेगी।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज ��पको अपनी बुद्धि चातुर्य पर गर्व रहेगा। अतिआत्मविश्वास से भरे रहेंगे प्रत्येक कार्य को मामूली समझ कर बाद के लिये टालेंगे परन्तु अंत समय मे पूर्ण करने में पसीने छूटेंगे। सरकारी कार्य को लेकर भाग-दौड़ करनी पड़ेगी। काम-धंधा पहले से कुछ कम रहेगा जोड़ तोड़ कर ही धन की प्राप्ति हो सकेगी। आज कम समय और परिश्रम से अधिक लाभ कमाने की योजना मन मे रहेगी लेकिन अवसर ना मिलने के कारण लाभ नही उठा सकेंगे। महिलाये जितना कार्य करेंगी उससे ज्यादा सुनाएंगी। घर के सभी सदस्य स्वय को दूसरे से बेहतर प्रदर्शित करेंगे। छोटी-छोटी बातों पर नोकझोंक होगी। दिनचार्य संयमित ना रहने से सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज के दिन आपके स्वभाव में दिखावा एवं ईर्ष्या अधिक रहेगी। जिस भी कार्य को करने की तैयारी करेंगे उसमे कोई न कोई टांग अढ़ायेगा लेकिन फिर भी प्रयास करना ना छोड़े आरम्भ में ही थोड़ी समस्या बनेगी लेकिन बाद में जो लोग आपके कार्यो में विघ्न डाल रहे थे वही सहयोग करने लगेंगे। पूर्व में किया परोपकार और भाग्य का साथ धन लाभ में सहायक बनेगा पर आज कार्य व्यवसाय से जितना धन मिलेगा खर्च के रास्ते पहले बना लेगा। आज परिजनों विशेषकर पिता से संबंध मधुर बनाये रखे इनसे कुछ ना कुछ फायदा हो सकता है। पैतृक कार्यो में भी रुचि रहेगी लेकिन भागदौड़ करना अखरेगा। घरेलू सुख सुविधा में कुछ कमी अनुभव होगी। सेहत में भी छोटी मोटी संमस्या लगी रहेगी फिर भी कार्य बाधक नही बनेगी।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज आप अपनी व्यवहार कुशलता से बिगड़े कार्यो को भी बनाने की क्षमता रखेंगे। मित्र परिजन विषम परिस्थितियों से बाहर निकालने के लिये आपका सहयोग मांगेंगे अपना महत्त्व बढ़ता देख थोड़ी बहुत अहम की भावना भी आएगी जरूरत मंदों को व्यर्थ के चक्कर लगवाएंगे। कार्य क्षेत्र पर जिस काम को हाथ मे लेंगे उसमे निश्चित सफलता मिलेगी। प्रतियोगी परीक्षा में भी सफल होने की संभावना अधिक है। बेरोजगार लोग आज प्रयास करें अवश्य अनुकूल रोजगार से जुड़ सकते है। व्यवसाय में मंदी के बाद भी धन का प्रबंध आवश्यकता के समय कही ना कही से हो ही जायेगा। खान-पान संयमित रखें सेहत खराब हो सकती है।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आपके लिये आज का दिन आशा से कम लाभदायक लेकिन फिर भी संतोषजनक रहेगा। संतोषी प्रवृति रहने के कारण व्यर्थ की उलझनों से बचे रहेंगे। आज आपको आर्थिक विषमताओं का सामना करना पड़ेगा कार्य क्षेत्र अथवा घर मे कोई ना कोई आपके व्यवहार से असंतोष जतायेगा लेकिन आप जानकर भी अनजान बनेंगे। धार्मिक पूजा पाठ में सम्मिलित होने के अवसर मिलेंगे परन्तु ध्यान एकाग्र नही रहने के कारण आध्यात्म लाभ नही मिल पायेगा। नौकरी वाले लोग आज कार्य भार कम रहने से शांति अनुभव करेंगे फिर भी अधिकारी वर्ग से आज कम ही बनेगी। बुजुर्गो का आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलेगा।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज के दिन आपका स्वभाव अटपटा रहेगा शुभ कर्मों को छोड़ वर्जित कार्यो में अधिक रुचि दिखाएंगे। काम धंधा मंदा रहेगा लेकिन आज अकस्मात लाभ होने की भी संभावना है लापरवाही से बचे अन्यथा वंचित रह जाएंगे। आज आप अपना काम निकालने के लिये जिद का सहारा लेंगे अन्य लोगो को इससे काफी परेशानी होगी क्रोध दिमाग पर रहेगा मांगे पूरी ना होने पर कलह पर उतारू हो जाएंगे विशेष कर माता से अपना काम निकल कर ही चैन आएगा। घर का वातावरण उथल पुथल रहेगा पति पत्नी अथवा अन्य परिजनों में शंकालु वृति के कारण झगड़ा हो सकता है। कामोतेजना आज अधिक रहेगी संयम रखें अन्यथा अपमानित हो सकते है। आँख एवं मस्तिष्क संबंधित संमस्या को छोड़ आरोग्य सामान्य रहेगा।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज दिन के आरम्भ में स्वभाव में नरमी रखने की आवश्यकता है। बेतुकी बाते कर के परिवार का वातावरण खराब करेंगे परिजन भी उकसाने वाला व्यवहार करेंगे लेकिन मौन रहकर दोपहर तक का समय बिताये इसके बाद स्थिति अपने आप शांत बनने लगेगी। कार्य क्षेत्र पर भी मध्यान तक नरम व्यवहार रखें इसके बाद स्वतः ही अपनी गलतियों का आभास होगा जिससे विवेक जाग्रत होने पर दिन का बाकी भाग शान्ति से बीतेगा। धन लाभ की कामना पूर्ति के लिये आज परिश्रम अधिक करना पड़ेगा इसकी तुलना में सहयोग की कमी रहेगी। उधारी के व्यवहार स्वयं ही बढ़ाएंगे समय पर उगाही ना होने पर गुस्सा आयेगा। घर और सेहत की स्थिति आज सामान्य रहेगी।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन सामाजिक कार्यो में योगदान देने से सम्मान बढ़ायेगा। आज आप कार्यो में जल्दबाजी दिखाएंगे जिससे कोई भी कार्य पूर्ण तो जल्दी हो जाएगा लेकिन इससे संबंधित लाभ के लिये प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। सार्वजिक क्षेत्र पर दान पुण्य के अवसर मिलेंगे लेकिन इससे स्वभाव में अहंकार भी आएगा। कार्य व्यवसाय में आज उन्नति होगी भविष्य के लिये बचत के साथ नई योजनाओं पर भी काम कर सकेंगे। आज आपको कोई लालच देकर ठग सकता है प्रलोभन से बचे अन्यथा आज होने वाला लाभ आते ही व्यर्थ में खर्च हो जाएगा। गृहस्थी चलाने में थोड़ी कठिनाई आएगी फिर भी आपसी तालमेल से विजय पा लेंगे। स्वास्थ्य में छोटे मोटे कष्ट लगे रहेंगे।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज के दिन आपका मुख्य लक्ष्य अपने व्यावसायिक क्षेत्र में वृद्धि कर लाभ उठाने का रहेगा इसके लिये सार्वजनिक क्षेत्र पर नए लोगो से जान पहचान बनाएंगे छोटी बड़ी यात्रा एवं परिश्रम आज अधिक करना पड़ेगा लेकिन धन संबंधित कामनाये पूरी होने में फिर भी संशय बना रहेगा। नौकरी पेशाओ को भी कार्य के सिलसिले से यात्रा करनी पड़ सकती है यात्रा शुभ ही रहेगी नए मित्रो से संपर्क, मेल मिलाप बढ़ेगा मशीनरी अथवा अन्य संसाधनों का लाभ होगा लेकिन यात्रा को सीधे धन लाभ से ना जोड़े अन्यथा उदासी ही मिलेगी। लाटरी सट्टे में निवेश का मन बनेगा लेकिन ज्यादा लाभ नही मिलेगा। घर के सदस्य आज एकमत रहने से शांति रहेगी।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज दिन के आरंभिक भाग में आप किसी महात्त्वपूर्ण कार्य को लेकर उत्साहित रहेंगे लेकिन सेहत में धीरे धीरे नरमी आने से मन का उत्साह भी उदासीनता में बदल जायेगा। काम-धंधा अपेक्षा के अनुसार नही चलने से अतिरिक्त मानसिक बेचैनी रहेगी। अक्समात यात्रा के योग भी बनेंगे यथा सम्भव टालने का प्रयास करें। व्यवसायी वर्ग तुरंत लाभ पाने की कामना से निवेश ना करें अन्यथा निराश होना पड़ेगा धन की आमद आज निश्चित नही रहेगी फिर भी काम चलाने लायक हो ही जाएगी। परिवार में मौसमी बीमारियों का प्रकोप रहने से अव्यवस्था रहेगीं दवाओं पर खर्च करना पड़ेगा।---------------------------------🙏
🦚🌈 श्री भक्ति ग्रुप मंदिर 🦚🌈
🙏🌹🙏 जय बजरंग बली 🙏🌹🙏
●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●
☎️🪀 +91-7509730537 🪀☎️
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ecoamerica · 2 months
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Watch the American Climate Leadership Awards 2024 now: https://youtu.be/bWiW4Rp8vF0?feature=shared
The American Climate Leadership Awards 2024 broadcast recording is now available on ecoAmerica's YouTube channel for viewers to be inspired by active climate leaders. Watch to find out which finalist received the $50,000 grand prize! Hosted by Vanessa Hauc and featuring Bill McKibben and Katharine Hayhoe!
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vedicpanditji · 4 years
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#परिवर्तिनी_एकादशी एकादशी का व्रत कल 29 अगस्त दिन शनिवार को रखा जाएगा. यह व्रत भगवान विष्णु के भक्त यानी वैष्णव रखते हैं. भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन 4 महीनों के लिए सो जाते हैं. देवउठनी एकादशी पर उठते हैं. माना जाता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सोते हुए करवट बदलते हैं. स्थान में परिवर्तन होने के कारण ही इस एकादशी को परिवर्तिनी नाम दिया गया है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है, इसलिए ही उनके भक्त इस दिन व्रत कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. #शुभ_मुहूर्त एकादशी तिथि आरंभ 28 अगस्त दिन शुक्रवार की सुबह 08 बजकर 38 मिनट पर एकादशी तिथि समाप्त 29 अगस्त दिन शनिवार की सुबह 08 बजकर 17 मिनट पर पारण का समय 30 अगस्त दिन रविवार की सुबह 05 बजकर 58 मिनट से 08 बजकर 21 मिनट तक #पूजा_विधि इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, इसके बाद साफ कपड़े पहनें. जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान की सफाई करें. फिर गंगाजल डालकर पूजन स्थल को पवित्र करें. इसके बाद एक चौकी लें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं. भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा उस पर विराजित करें. दीपक जलाएं और प्रतिमा पर कुमकुम या चंदन का तिलक लगाएं. हाथ जोड़कर भगवान विष्णु का ध्यान करें. प्रतिमा पर तुलसी के पत्ते और पीले फूल अर्पित करें. फिर विष्णु चालीसा, विष्णु स्तोत्र और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. इस दिन भगवान विष्णु के मंत्रों या नाम का जाप अवश्य करें. इसके बाद विष्णु जी की आरती करें. उनसे पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें. किसी पीले फल या मिठाई का भोग लगाएं. (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/CEaucwDgZJh/?igshid=poxj9feqyof9
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rajkumardeshmukh · 4 years
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💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹🕉️ *योगिनी एकादशी २०२०* 🕉️🌹 💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐🌹💐 ✳️ योगिनी एकादशी , दिन :- बुधवार, दिनांक:– १७ जून २०२० ✳️ 🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼 ⚠️ १८ जून २०२० को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - सुबह ०५:३१ ए. एम. बजे से सुबह ०८:१३ ए. एम. बजे तक ⚠️ 🔴 पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - ०९: ३९ ए. एम. बजे 🔵 ❇️ एकादशी तिथि प्रारम्भ - १६ जून २०२० को ०५:४० ए. एम. बजे ❇️ ⚠️ एकादशी तिथि समाप्त - १७ जून २०२० को ०७:५० ए. एम. बजे ⚠️ 🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺 🚫⚠️ टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में छिन्दवाड़ा, भारत के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं। आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है। ⚠️🚫 💐🌷💐🌷💐🌷💐🌷💐🌷 🕉️ _योगिनी एकादशी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी_ 🕉️ ⚜️ वह #एकादशी जो #निर्जला एकादशी के बाद और #देवशयनी एकादशी से पहले आती है उसे योगिनी एकादशी कहते हैं। उत्तर भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार #आषाढ़ माह में #कृष्ण पक्ष के दौरान और दक्षिण भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष के दौरान योगिनी एकादशी पड़ती है। अंग्रेजी #कैलेण्डर के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में होता है। लाभ - योगिनी एकादशी का व्रत करने से सारे पाप मिट जाते हैं और जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। #योगिनी एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। यह माना जाता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करना अठ्यासी हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण #द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि #सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। #एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहल�� एक चौथाई अवधि है। ��्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। (at Satnoor) https://www.instagram.com/p/CBfxxSIFWf-/?igshid=1tdvvka3kbz5k
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astropatrika · 5 years
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👉 देवशयनी एकादशी स्वर्ग और मोक्ष देने वाली होती है यह एकादशी, जानिए क्या है इसका महत्व- शास्त्रों में ‘तप’ के अंतर्गत व्रतों की महिमा वर्णित है। जैसे नदियों में गंगा, प्रकाश तत्वों में सूर्य और देवताओं में भगवान विष्णु की प्रधानता है, वैसे ही व्रतों में ‘एकादशी’ व्रत प्रधान है। यह भगवान विष्णु का पर्व माना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार, वर्ष भर में पड़ने वाली 24 (मलमास वर्ष में 26) एकादशियों में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है। इसे ‘देवशयनी एकादशी’, ‘हरिशयनी एकादशी’ और ‘पद्मा एकादशी’ के नाम से जाना जाता है।
यह महान पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली, सब पापों को हरने वाली है। इस बार यह 12 जुलाई को है। इस दिन से चातुर्मास्य (चौमासा) का प्रारम्भ होता है, जो कार्तिक मास की एकादशी (देव उठनी) तक रहता है। चातुर्मास्य में प्रतिदिन भगवान विष्णु के समक्ष ‘पुरुष सूक्त’ का जप करने का भी महात्म्य है।
इस दिन से भगवान विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते हैं और क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते हैं, इसलिए इस तिथि को ‘हरिशयनी’ एकादशी भी कहा जाता है। चूंकि यह चारमास की अवधि भगवान विष्णु की निद्राकाल की अवधि मानी जाती है, इसलिए कृषि को छोड़कर धार्मिक दृष्टि से किए जाने वाले सभी शुभ कार्यों, जैसे- विवाह, उपनयन, गृह-प्रवेश मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है और साधु-संत एक स्थान पर रह कर विशेष साधना करते हैं।
देवशयन के संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। भविष्यपुराण में उल्लेख है कि एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘महाराज यह देवशयन क्या है? जब देवता ही सो जाते हैं, तब संसार कैसे चलता है? देव क्यों सोते हैं?’ श्रीकृष्ण ने कहा, ‘राजन्! एक समय योगनिद्रा ने प्रार्थना की- ‘भगवन् आप मुझे भी अपने अंगों में स्थान दीजिए।’ तब भगवान ने योगनिद्रा को नेत्रों में स्थान देते हुए कहा-‘तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी।’ ऐसा सुनकर योगनिद्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया।’
भागवत महापुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने एकादशी के दिन विकट आततायी शंखासुर का वध किया, अत: युद्ध में परिश्रम से थक कर वे क्षीर सागर में सो गए। उनके सोने पर सभी देवता भी सो गए, इसलिए यह तिथि देवशयनी एकादशी कहलाई।
भगवान सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान मधुसूदन की मूर्ति को शयन कराएं और व्रत-नियम धारण करें। फिर तुला राशि में सूर्य के जाने पर (कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी) पुन: भगवान जनार्दन को शयन से उठाएं और 👉 इस मंत्र से प्रार्थना करें- ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुध्यते जगत् सर्वं चराचरम्॥’
जो मनुष्य इस चातुर्मास्य के समय अनेक व्रत नियमपूर्वक रखता है, वह कल्पपर्यंत विष्णु लोक में निवास करता है, ऐसी शास्त्रों की मान्यता है। भगवान जगन्नाथ के शयन करने पर विवाह, यज्ञादि क्रियाएं संपादित नहीं होतीं और देवउठनी एकादशी के दिन उनके जागने पर सभी धार्मिक क्रियाएं पुन: प्रारम्भ हो जाती हैं।
👉 देवशयनी एकादशी तिथि, समय, पारण- एकादशी तिथि प्रारम्भ : 12 जुलाई 2019 को 01:02 बजे एकादशी तिथि समाप्त : 13 जुलाई 2019 को 00:31 बजे पारण: 13 जुलाई (व्रत तोडऩे का) समय : 06:30 से 08:19 पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय : 06:30
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spgcimap-blog · 4 years
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पुराण- कथा, धर्म- संहिता, ज्योतिष में  देवशयनी (हरिशयनी) एकादशी (पद्मा एकादशी) तथ्य व महात्म्य ----------------------------------------------------        【इस वर्ष दिनांक 01, जुलाई, 2020 आषाढ़ शुक्ल एकादशी बुधवार को जगन्नाथ- पुरी में जगत प्रसिद्ध "बाहूडा रथयात्रा" तथा समग्र भारत में "देवशयनी (पद्मा) एकादशी" मनाया जाता है। इस देवशयनी/ हरिशयनी- पद्मा एकादशी- तिथि से अगले 148 दिन अर्थात दिनांक 25 नवंबर 2020 बुधवार कार्त्तिक शुक्ल "देवोत्थापनी/ देवोप्रबोधिनी एकादशी" तक श्रीहरि भगवान चतुर्मासी- योगनिद्रा में रहेंगे और स्वाभाविक रूप में इस अवधि के अंदर समस्त प्रकार शुभ कार्यों पर निषेध/ पाबन्दी लागू होंगे।।】    देवशयनी- पद्मा एकादशी    --------------------------------        प्रसंग क्रम में धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रश्न पूछा था - "हे केशव ! आषाढ़ी शुक्ल एकादशी का क्या नाम है ? इस व्रत के करने की विधि क्या है और इस अवसर में किस देवता का पूजन किया जाता है ?"       श्रीकृष्ण कहने लगे कि- "हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा था, वही मैं तुमसे सुनाता हूं :--        "ब्रह्मा जी ने नारद जी को कहा था कि-- कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए, समस्त पाप नष्ट करने में सक्षम तथा सब व्रतों में अधिक उत्तम आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही 'देवशयनी (पद्मा) एकादशी व्रत' के नाम में प्रख्यात।।"         फिर धर्मराज के आग्रह से श्रीकृष्ण जी ने ब्रह्म जी तथा नारद जी के विच के इस बारे में कथोपकथन को विस्��ार से जब सुनाई तो बातावरण में भगवत- आनन्दकन्द- मकरन्द की स्रोत प्रवाहित हुई थी।। देवशयनी- पद्मा एकादशी व्रत- तत्व--------------------------------------         आषाढ़ शुक्ल एकादशी ही देवशयनी- पद्मा एकादशी नाम में प्रसिद्ध। इसी दिन से जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी 'पाताल लोक' (भिन्न कथन में 'क्षीर सागर') में योगनिद्रा के लिए चले जाते हैं।इस वर्षा ऋतू के बाद धरती पर किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। माना जाता है कि इस 'हरिशयनी' के दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव- जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए साधु- संत, तपस्वी, मठाधीश इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं।।         देवशयनी एकादशी की साधारण पूजा विधि ये है की--       जो लोग देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए। पूजा स्थल को साफ करने के बाद शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर यथाविधि बैठाएं और उनकी पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें।भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। एकादशी की रात्र में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को भी शयन कराना चाहिए।।      देवशयनी एकादशी कथा      -------------------------------          पुराणों में इस देवशयनी एकादशी के बारे में एकाधिक कथा उपलब्ध। उससे एक रोचक कहानी ये है कि-- शंखचूर (शंखचूड़) नामक असुर से भगवान विष्णु का लंबे समय तक युद्ध चला। आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान ने शंखचूड़ का वध कर दिया और क्षीर सागर में सोने चले गये। शंखचूड़ जैसे दुरात्मा से मुक्ति दिलाने के कारण देवताओं ने भगवान विष्णु की विशेष पूजा- अर्चना की। 'देवशयनी' और 'देवउत्थापनी'-- ये दोनों 'एकादशी' इसकी विशेष स्मारकी मान्यता प्राप्त।।         एक अन्य कथा के अनुसार वामन अवतार में भगवान विष्णु ने दानवेन्द्र राजा बलि से तीन पग में तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इसलिए राजा बलि को पाताललोक वापस जाना पड़ा। लेकिन महादानी बलि की भक्ति और उदारता से भगवान वामन मुग्ध थे। भगवान ने बलि से जब वरदान मांगने के लिए कहा, तो बलि ने भगवान से कहा कि-- "आप सदैव पाताल में ही मेरे पास निवास करें।।"         भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान पाताल में रहने लगे। इससे बैकुंठवासिनी लक्ष्मी माँ दुःखी हो गयी। भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ लाने के लिए गरीब स्त्री का वेष बनाकर पाताल लोक पहुंची। लक्ष्मी माँ की दीन- हीन अवस्था को देखकर बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया।।       बहन बनने के बाद लक्ष्मी जी भाई बलि को अपनी दुःख कहकर जब विष्णु की मांग की, तो महादानी बलि ने भाई की कर्त्तव्य निभाने के लिए वचन दिया। किन्तु विष्णु जी तो बलि के साथ रहने के लिए 'वचन' दे चुके थे, तो लक्ष्मी जी को प्रदत्त बलि के इस 'वचन' कैसे फलित होगा ! देवकूट सफल हुई। और दो तरफ वचन को फलित कर, उस समय से सिर्फ वर्षाऋतु की चतुर्मासी अवधि काल ही (आषाढ़ी देवशयनी एकादशी से कर्त्तिकी देवउत्थापनी एकादशी तक) विष्णु भगवान ने पाताली होकर विष्णु भक्त राजा बलि के साथ रहने लगे।।   (संग्राहक, संकलक, सम्पादक, विनीत परिभाषक : महाप्रभुआश्रित प्रफुल्ल कुमार दाश।।)     जय जगन्नाथ।। ॐ शांतिः।।
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ecoamerica · 2 months
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The recording is now available on ecoAmerica's YouTube channel for viewers to be inspired by student climate leaders! Join Aishah-Nyeta Brown & Jerome Foster II and be inspired by student climate leaders as we recognize the High School Student finalists. Watch now to find out which student received the $25,000 grand prize and top recognition!
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ivxtimes · 4 years
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राशिफल 1 जुलाई 2020 Image Source : INDIA TV
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और बुधवार का दिन है। एकादशी तिथि शाम 5 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। आज हरिशयनी एकादशी है। आज से भगवान श्री विष्णु विश्राम के लिये क्षीर सागर में चले जायेंगे और पूरे चार महीनों तक वहीं पर रहेंगे।  बुधवार के दिन भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है तथा श्रीहरि का आशीर्वाद सदैव मिलता रहता है। साथ ही दोपहर पहले 11 बजकर 17 मिनट तक सिद्ध योग रहेगा। इसके अलावा देर रात 2 बजकर 34 मिनट तक विशाखा नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा सुबह 6 बजकर 40 से शुरू होकर शाम 5 बजकर 30 मिनट तक पाताल लोक भद्रा रहेगी। जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से राशिनुसार कैसा रहेगा आपका दिन। 
मेष राशि
आज आपका दिन बढ़िया रहेगा। आज सभी कार्यों में आपको सफलता हासिल होगी। आपके मान-सम्मान में बढ़ोतरी होगी। जीवनसाथी आपकी ईमानदारी से प्रभावित होंगे। साथ ही दाम्पत्य जीवन में एक दुसरे पर विश्वास में और मजबूती आएगी। कुछ नए अनुभवों के लिए आपको तैयार रहना चाहिए। इस राशि के छात्रों के लिए आज का दिन अन्य दिनों की अपेक्षा अच्छा रहेगा। साथ ही उनका ध्यान पढ़ाई-लिखाई पर केन्द्रित रहेगा। माता-पिता की सलाह आपके लिए लाभदायक होगी। 
 वृष राशि आज समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा। ऑफिस में कुछ दोस्तों के सहयोग से आपका प्रोजेक्ट पूरा होगा। जो विद्यार्थी विदेश में शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे, कोरोना की वजह से उनको अब थोडा इंतेजार करना पड़ेगा। आपको शिक्षकों से पढ़ाई में मदद मिलेगी। पूरे दिन आप खुद को तरोताजा महसूस करेंगे। घर पर ही परिवार वालों के साथ किसी धार्मिक कार्य का अनुष्ठान करेंगे। जीवनसाथी के साथ रिश्ते बेहतर होंगे। लवमेटस के लिए दिन अच्छा रहने वाला है। 
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा, चातुर्मास में पाताल में निवास करेंगे भगवान विष्णु
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राशिफल 1 जुलाई 2020
मिथुन राशि आज शाम को परिवार वालों के साथ ही समय बितायेंगे। इससे आपके पारिवारिक रिश्ते और बेहतर होंगे। आज आपको किसी अजनबी से अपनी बातों को शेयर करने से बचना चाहिए। ऑफिस में सहकर्मियों की मदद से आप अपना काम समय से पूरा कर लेंगे। आज आप कुछ घरेलू सामान की खरीदारी करने का मन बनायेंगे। लवमेटस को आज कोई सरप्राईज मिलेगा। करीबी लोगों को आपसे कुछ अपेक्षाएं होगी। जीवनसाथी की तरफ से खुशखबरी मिलेगी। जिससे परिवार में सबके मन प्रसन्न होगा। 
कर्क राशि आज आपका दिन सामान्य रहेगा। सोचे हुए ज्���ादातर काम धीरे-धीरे करके पूरे होंगे। आप दोस्तों के साथ किसी खास मामले पर चर्चा करेंगे। आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। किसी अजनबी व्यक्ति की वजह से आपका मूड थोड़ा खराब हो सकता है, लेकिन शाम तक मूड अपने आप ठीक हो जाएगा। जीवनसाथी के साथ रिश्तें और मजबूत होंगे। कोई पुरानी बातों को याद करके आप थोड़े भावुक हो सकते हैं। विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में लगेगा। 
मंगलवार को इस तरह से करें हनुमान जी की पूजा, दूर हो जाएंगे सारे कष्ट, जानें पूजा का सही तरीका
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राशिफल 1 जुलाई 2020
 सिंह राशि आज आपका दिन अच्छा रहने वाला है। किसी खास व्यक्ति से आपको कोई बड़ा फायदा होगा। ऑफिस में आपके कार्यों की प्रशंसा होगी। आज आपका स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा। आज आपको किसी नये प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी मिलेगी। करियर से संबंधित नए अवसर आपको प्राप्त होंगे।आपको नये लोगों से जुड़ने का मौका मिलेगा। आज किसी पुराने दोस्त फ़ोन आयेगा। दाम्पत्य जीवन में चल रही अनबन आज समाप्त हो जाएगी। परिवार में सौहार्द बना रहेगा। 
कन्या राशि आज आपका दिन उत्तम रहेगा। ऑफिस में आपका कॉन्फिडेन्स देखकर बॉस आपसे खुश होंगे। अगर किसी नये काम की शरूआत करने की सोच रहे हैं, तो आगे चलकर आपको काफी फायदा होगा। आपको अचानक धन लाभ होने के योग बन रहे है। कोरोना की परिस्थितियाँ पूरी तरह से ठीक हो जाने पर ट्रिप पर जाने का प्लान बनायेंगे। इस राशि वाले छात्रों को आज पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत है। दाम्पत्य जीवन में खुशियाँ बनी रहेंगी। 
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राशिफल 1 जुलाई 2020
 तुला राशि आज का मिलाजुला रहने वाला है।परिवार में सौहार्द बना रहेगा। किसी सब्जेक्ट को समझने में आ रही परेशानी को आप आप अपने सहपाठियों से फ़ोन पर डिस्कस करेंगे। किसी अनजान व्यक्ति पर जरुरत से ज्यादा भरोसा करने से बचे। बहुत जरुरी हो तभी वाहन का प्रयोग करें। साथ ही वाहन चलाते समय सावधानी वरतें। लवमेट के लिए आज का दिन सामान्य बना रहेगा। आज आपको किसी वाद-विवाद में पड़ने से बचना चाहिए। कार्यों में जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। 
वृश्चिक राशि आज आप अपनी ऊर्जा अच्छे कार्यों में लगायेंगे। शैक्षणिक कार्यों में आपकी रूचि बढ़ेगी। आपको जीवनसाथी का सहयोग मिलेगा। आज आज कोई मांगलिक कार्य करने का प्लान बनायेंगे। ऑफिस में काम समय पर खत्म करने पर सभी की वाहवाही का पात्र बनेंगे। सही योजना के तहत आप अपने करियर में बदलाव लायेंगे। परिवार वालों के साथ कुछ महत्वपूर्ण मामलों पर बातचीत होगी। मार्केटिंग का काम कर रहे लोगों के लिए आज का दिन फायदेमंद रहेगा। 
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राशिफल 1 जुलाई 2020
धनु राशि आज आपका दिन शानदार रहेगा। रूके हुए कामों में आपको किसी मित्र की मदद मिलेगी। साथ ही कोई खास खुशखबरी भी मिलेगी। आपके पास कुछ नयी जिम्मेदारियां आयेंगी, जिन्हें पूरा करने में आप सफल होंगे। आप अपने करियर में सफलता के बेहद करीब होंगे। ऑफिस में साथ काम करने वाले लोगों से आपको पूरा-पूरा सहयोग प्राप्त होगा। कुछ नए विचार आपके दिमाग में आयेंगे। आप कोई नई योजना बनायेंगे। साथ ही आप इसमें सफल भी होंगे। 
मकर राशि आज आपका दिन अच्छा रहेगा। शाम तक किसी दूर के रिश्तेदार से कोई शुभ समाचार मिलेगा। आज आपका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा। लवमेट के लिए आज का दिन मिठास भरा रहेगा। इस राशि के स्टूडेंट्स को करियर में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। दूसरे लोगों की मदद करने का आपको मौका मिलेगा। परिवार वालों के साथ आज घर पर ही डिनर करेंगे। कार्यों में माता पिता का सहयोग मिलता रहेगा। बड़े भाई के सहयोग से कोई रुका हुआ कार्य पूरा कर लेंगे। 
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राशिफल 1 जुलाई 2020
कुंभ राशि आज आपका दिन फेवरेबल रहेगा। अपनी काबिलियत से सभी काम को आप  सरलतापूर्वक पूरा कर लेंगे। दाम्पत्य जीवन में आपसी सामंजस्य बना रहेगा। स्वास्थ्य बेहतर रहेगा। नए लोगों से मुलाकात आपके भविष्य के लिए लाभदायक होगी। आप में आत्मविश्वास की अधिकता रहेगी। उच्चाधिकारी वर्ग आपसे प्रसन्न रहेंगे। आपके विचारों को महत्व दिया जायेगा। अविवाहित लोगों को विवाह के प्रस्ताव आयेंगे। आज आपकी रूचि सामाजिक कार्यों की तरफ रहेगी। छात्र किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करेंगे। 
मीन राशि आज आपका दिन मिला-जुला रहेगा। आपको किसी मामले में बड़ा निर्णय लेना पड़ेगा। साथ ही आप इसमें सफल भी होंगे। कारोबारियों को कोई बड़ा फायदा होने के योग बन रहे है। आपकी समझदारी आपको हर प्रकार की मुसीबतों से दूर रखेगी। आज आपके रुके हुये पैसे वापस मिलेंगे। ऑफिस में कोई नयी जिम्मेदारी मिलेगी, जिसको निभाने में आप सफल होंगे। दाम्पत्य जीवन बेहतरीन रहेगा। लवमेटस एक दुसरे के भावनाओं की कद्र करेंगे, जिससे रिश्तों में और मजबूती आएगी।
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chaitanyabharatnews · 3 years
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देवशयनी एकादशी आज, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम, जाने पूजा विधि और महत्व
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चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है जो कि इस बार 20 जुलाई को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत पर अगले चार महीने के लिए विराम लग जाएगा। इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं और वे वहां चार मास विश्राम करते हैं। इस बीच पृथ्वी लोक की देखभाल भगवान शिव करते हैं। इसीलिए चातुर्मास में सावन का विशेष महत्व बताया गया है।सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जब भगवान विष्णु पाताल लोक चले जाते हैं तो सभी मांगलिक कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस समय किये गए किसी मांगलिक कार्य का शुभ फल नहीं मिलता है। देवशयनी एकादशी के चार मास बाद देवउठनी एकादशी के दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण कर क्षिर सागर से बाहर आकर पृथ्वी की बागड़ोर अपने हाथों में लेते हैं। चातुर्मास में क्‍या नहीं करना चाह‍िए चातुर्मास का सबसे पहला नियम यह है कि इन 4 महीनों में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और तमाम सोलह संस्कार नहीं किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन सभी कार्यों पर सनातन धर्म के सभी दे��ी-देवताओं को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है मगर भगवान विष्णु शयन काल में रहते हैं इसीलिए वह आशीर्वाद देने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए लोग इन 4 महीनों को छोड़कर अन्य महीनों में शुभ कार्य करते हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें। इसके साथ चातुर्मास के पहले महीने यानि सावन में हरी सब्जियां, भादो में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का सेवन करना वर्जित माना गया है। इसके साथ इन 4 महीनों में तामसिक भोजन, मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। चातुर्मास के नियमों के अनुसार इन 4 महीनों में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए। इसके अलावा इन 4 महीनों में मूली, परवल, शहद, गुड़ तथा बैंगन का सेवन करना वर्जित माना गया है। देवशयनी एकादशी की पूजा-विधि देवशयनी एकादशी के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान कर घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के पुष्पों से पूजन करना बहुत शुभ माना ��ाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इन चार महीनों के दौरान भगवान शिवजी सृष्टि को चलाते हैं। इसलिए विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कथा सुनें। देवशयनी एकादशी की पूजा के बाद गरीबों को फल दान करें। देवशयनी एकादशी : चार महीने भगवान विष्णु करेंगे विश्राम, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम देवशयनी एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सुनकर मिलता है व्रत का पूर्ण फल जानिए कब है देवशयनी एकादशी, इसका महत्व और पूजा विधि देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय Read the full article
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chaitanyabharatnews · 3 years
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देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय
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चैतन्य भारत न्यूज सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। बता दें सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। मान्‍यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ हो गया है। आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है। देवशयनी एकादशी पारण पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 2 जुलाई, 05:32 to 04:14 एकादशी तिथि प्रारम्भ - 30 जून, 2020, 19:49 बजे से एकादशी तिथि समाप्त - 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 3 years
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देवशयनी एकादशी आज, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम, जाने पूजा विधि और महत्व
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चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक बार कृष्ण पक्ष में और एक बार शुक्ल पक्ष में। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है जो कि इस बार 20 जुलाई को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत पर अगले चार महीने के लिए विराम लग जाएगा। इसी दिन से चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं और वे वहां चार मास विश्राम करते हैं। इस बीच पृथ्वी लोक की देखभाल भगवान शिव करते हैं। इसीलिए चातुर्मास में सावन का विशेष महत्व बताया गया है।सावन के महीने में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जब भगवान विष्णु पाताल लोक चले जाते हैं तो सभी मांगलिक कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस समय किये गए किसी मांगलिक कार्य का शुभ फल नहीं मिलता है। देवशयनी एकादशी के चार मास बाद देवउठनी एकादशी के दिन से पुनः मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण कर क्षिर सागर से बाहर आकर पृथ्वी की बागड़ोर अपने हाथों में लेते हैं। चातुर्मास में क्‍या नहीं करना चाह‍िए चातुर्मास का सबसे पहला नियम यह है कि इन 4 महीनों में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और तमाम सोलह संस्कार नहीं किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन सभी कार्यों पर सनातन धर्म के सभी देवी-देवताओं को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया जाता है मगर भगवान विष्णु शयन काल में रहते हैं इसीलिए वह आशीर्वाद देने नहीं आ पाते हैं। ऐसे में भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए लोग इन 4 महीनों को छोड़कर अन्य महीनों में शुभ कार्य करते हैं। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें। इसके साथ चातुर्मास के पहले महीने यानि सावन में हरी सब्जियां, भादो में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का सेवन करना वर्जित माना गया है। इसके साथ इन 4 महीनों में तामसिक भोजन, मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए। चातुर्मास के नियमों के अनुसार इन 4 महीनों में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए और किसी की निंदा करने से बचना चाहिए। इसके अलावा इन 4 महीनों में मूली, परवल, शहद, गुड़ तथा बैंगन का सेवन करना वर्जित माना गया है। देवशयनी एकादशी की पूजा-विधि देवशयनी एकादशी के दिन सबसे पहले जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें। स्नान कर घर में पवित्र जल का छिड़काव करें। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के पुष्पों से पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इन चार महीनों के दौरान भगवान शिवजी सृष्टि को चलाते हैं। इसलिए विष्णु के साथ भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कथा सुनें। देवशयनी एकादशी की पूजा के बाद गरीबों को फल दान करें। देवशयनी एकादशी : चार महीने भगवान विष्णु करेंगे विश्राम, इस दौरान भूलकर भी ना करें ये काम देवशयनी एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, सुनकर मिलता है व्रत का पूर्ण फल जानिए कब है देवशयनी एकादशी, इसका महत्व और पूजा विधि देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय Read the full article
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kisansatta · 4 years
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संत समाज को चातुर्मास स्वाध्याय -विकास का अवसर—स्वामी उपेन्द्रानन्द
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नैमिषारण्य तीर्थ् के दण्डी स्वामी श्री मदजगदाचार्य उपेन्द्रानन्द सरस्वती जी बताते है कि चर्तमास प्रत्येक संत के लिए परम आवश्यक है यह समय उपासना व स्वाध्याय का समय होता है इससे जगत कल्याण की प्रेरणा मिलती है।
भारतीय दर्शन के आधार पर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में चातुर्मास का विशेष महत्व है। विशेषकर वर्षाकालीन चातुर्मास का, हमारे यहां मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ होती हैं- ग्रीष्म, वर्षा और शरद। वर्ष के बारह महीनों को इनमें बॉंट दें, तो प्रत्येक ऋतु चार-चार महीने की हो जाती है। वर्षा ऋतु के चार महीनों के लिए ‘चातुर्मास’ शब्द का प्रयोग होता है। चार माह की यह अवधि साधना-काल की होती है। एक ही स्थान पर रहकर साधना की जाती है।यदि कोई किसी गांव में तो प्राय:वही रह कर चार माह व्यतीत किये जाते है।
हिन्दू धर्म और विशेषतः सनातन धर्म में इन चार महीने सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक में उपवास, व्रत और जप-तप का विशेष महत्व होता है। हिन्दू धर्म में देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है जो कार्तिक के देव प्रबोधिनी एकादशी तक चलती है, जबकि सनातन धर्म में आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस समय में श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है। इसी अवधि में ही आषाढ़ के महीने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था और राजा बलि से तीन पग में सारी सृष्टी दान में ले ली थी। उन्होंने राजा बलि को उसके पाताल लोक की रक्षा करने का वचन दिया था। फलस्वरूप श्री हरि अपने समस्त स्वरूपों से राजा बलि के राज्य की पहरेदारी करते हैं। इस अवस्था में कहा जाता है कि भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते हैं। इस बार हिन्दू चातुर्मास 1 जुलाई से 25 नवंबर तक रहेगा जबकि जैन धर्म का चातुर्मास 5 जुलाई से प्रारंभ होकर 30 नवम्बर तक चलेगा।
वास्तव में पुराने समय में वर्षाकाल पूरे समाज के लिए विश्राम काल बन जाता था किन्तु संन्यासियों, श्रावकों, भिक्षुओं आदि के संगठित संप्रदायों ने इसे साधना काल के रूप में विकसित किया। इसलिए वे निर्धारित नियमानुसार एक निश्चित तिथि को अपना वर्षावास या चातुर्मास शुरू करते थे और उसी तरह एक निश्चित तिथि को उसे समाप्त करते थे। चातुर्मास शुभारंभ पर सम्पूर्ण देश में जगह-जगह आध्यात्मिक कार्यक्रमों की गरिमापूर्ण प्रस्तुति देखने को मिलती है। इस दिन से तप की गंगा प्रवहमान हो जाती है।
सनातन परम्परा में आषाढ़ी पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक का समय तथा वैदिक परम्परा में आषाढ़ से आसोज तक का समय चातुर्मास कहलाता है। धन-धान्य की अभिवृद्धि के कारण उपलब्धियों भरा यह समय स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार, आत्म-वैभव को पाने एवं अध्यात्म की फसल उगाने की दृष्टि से भी सर्वोत्तम माना गया है।इसका एक यह भी महत्व है कि जन-जन को सुखी, शांत और पवित्र जीवन की कला का प्रशिक्षण मिलता है।गृहस्थ को उनके सान्निध्य में आत्म उपासना का भी अपूर्व अवसर उपलब्ध होता है।
यों तो हर व्यक्ति को जीने के लिये तीन सौ पैंसठ दिन हर वर्ष मिलते, लेकिन उनमें वर्षावास की यह अवधि हमें जागते मन से जीने को प्रेरित करती है, इसके लिये जैन धर्म में विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं उपक्रम किये जाते हैं। यह अवधि चरित्र निर्माण की चैकसी का आव्हान करती है ताकि कहीं कोई कदम गलत न उठ जाये। यह अवधि एक ऐसा मौसम और माहौल देती है जिसमें हम अपने मन को इतना मांज लेने को अग्रसर होते हैं कि समय का हर पल जागृति के साथ जीया जा सके।
संतों के लिये यह अवधि ज्ञान-योग, ध्यान-योग और स्वाध्याय-योग में आत्मा में अवस्थित होने का दुर्लभ अवसर है। वे इसका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिये तत्पर होते हैं। वे चातुर्मास प्रवास में अध्यात्म की ऊंचाइयों का स��पर्श करते हैं, वे आधि, व्याधि, उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंचने की साधना करते हैं। वे आत्म-कल्याण ही नहीं पर-कल्याण के लिये भी उत्सुक होते हैं। यही कारण है कि श्रावक समाज भी उनसे नई जीवन दृष्टि प्राप्त करता है। स्वस्थ जीवनशैली का निर्धारण करता है।
हम सही अर्थों में जीना सीखें। औरों को समझना और सहना सीखें । जीवन मूल्यों की सुरक्षा के साथ सबका सम्मान करना भी जानें। इसी दृष्टि से वर्षाकाल है प्रशिक्षण का अनूठा अवसर। यह अवसर जहां प्रकृति के अणु-अणु में प्राणवत्ता का संचार करता है, भूगर्भगत उर्वरता की अनंत संभावनाओं को उभार देता है, वहां वह व्यक्ति और समाज की आध्यात्मिक चेतना को जगाने एवं संस्कार बीजों को बोने और उगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह इंसान को इंसान बनाने एवं स्वस्थ जीवन-शैली की स्थापना का उपक्रम है। जिसमें संतों के साथ-साथ श्रावक भी अपने जीवन को उन्नत बनाने को प्रेरित होता है।
संतों के अध्यात्म एवं शुद्धता से अनुप्राणित आभामंडल समूचे वातावरण को शांति, ज्योति और आनंद के परमाणुओं से भर देता है। वे कर्म संस्कार के रूप में चेतना पर परत-दर-परत जमी राख को भी हवा देते हैं। इससे जीवन-रूपी सारे रास्ते उजालों से भर जाते हैं। लोक चेतना शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्त हो जाती है। उसे द्वंद्व एवं दुविधाओं से त्राण मिलता है। भावनात्मक स्वास्थ्य उपलब्ध होता है।
संत धरती के कल्पवृक्ष होते हैं। संस्कृति के प्रतीक, परम्परा के संवाहक, जीवन कला के मर्मज्ञ और ज्ञान के रत्नदीप होते हैं। उनके सामीप्य में संस्कृति, परम्परा, इतिहास, धर्म और दर्शन का व्यवस्थित प्रशिक्षण लिया जा सकता है। उनका उपदेश किसी की ज्ञान चेतना को जगाता है तो किसी की विवेक चेतना को विकसित करता है।
किसी को आत्महित में प्रवृत्त करता है तो किसी को चित्तगत संक्लेशों से निवृत्त करता है। ठीक इसी तरह श्रावक भी संवेदनाओं एवं करुणाशीलता के फैलाव के लिये जागरूक बनते हैं। यह इस अवधि और इसकी साधना का ही प्रभाव है कि श्रावक की संवेदनशीलता इतनी गहरी और पवित्र हो जाती है कि वह अपने सुख की खोज में किसी को सुख से वंचित नहीं करता। किसी के प्रति अन्याय, अनीति और अत्याचार नहीं होने देता। यहां तक की वह हरे-भरे वृक्षों को भी नहीं काटता और पर्यावरण को दूषित करने से भी वह बचता है। चातुर्मास का महत्व शांति और सौहार्द की स्थापना के साथ-साथ भौतिक उपलब्धियों के लिये भी महत्वपूर्ण माना गया है।
इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जहां चातुर्मास या वर्षावास और उनमें संतों की गहन साधना से अनेक चमत्कार घटित हुए है। यह अवधि जिसमें कुछ व्यक्ति सामूहिक रूप से ध्यान, साधना, तपोयोग या मंत्र अनुष्ठान करना चाहें, उनके लिये उपहार की भंाति है। जिस क्षेत्र की स्थिति विषम हो।
जनता विग्रह, अशांति, अराजकता या अत्याचारी शासक की क्रूरता की शिकार हो, उस समस्या के समाधान हेतु शांति और समता के प्रतीक साधु-साध्वियों का चातुर्मास वहां करवाया जाकर परिवर्तन को घटित होते हुए देखा गया है। क्योंकि संत वस्तुतः वही होता है जो औरों को शांति प्रदान करे। बाहर-भीतर के वातावरण को शंाति से भर दे। जो स्वयं शांत रस में सराबोर रहता है तथा औरों के लिए सदा शांति का अमृत छलकाता रहता है। एक तरह से अध्यात्म एवं पवित्र गुणों से किसी क्षेत्र और उसके लोगों को अभिस्नात करने के लिये चातुर्मास एक स्वर्णिम अवसर है।
वर्षावास जैन परम्परा में साधना का विशेष अवसर माना जाता है। इसलिए इस काल में वे आत्मा से परमात्मा की ओर, वासना से उपासना की ओर, अहं से अर्हम् की ओर, आसक्ति से अनासक्ति की ओर, भोग से योग की ओर, हिंसा से अहिंसा की ओर, बाहर से भीतर की ओर आने का प्रयास करते हैं। वह क्षेत्र सौभाग्यशाली माना जाता है, जहां साधु-साध्वियों का चातुर्मास होता है। उनके अध्यात्म प्रवचन ज्ञान के स्रोत तथा जीवन के मंत्र सूत्र बन जाते हैं। उनके सान्निध्य का अर्थ है- बाहरी के साथ-साथ आंतरिक बदलाव घटित होना।
आज की भौतिक सुखवादिता एवं सुविधावादी दृष्टिकोण ने जहां प्राकृतिक क्षेत्र में प्रदूषण फैलाया है, कोरोना महाव्याधि ने मानव जीवन को संकट में डाला है, उससे कहीं ज्यादा मन के गलत विचारों ने मानवीय संवेदना को प्रदूषित किया है। कोरोना कहर के इन जटिल से जटिल होने हालातों को बदलने के लिये और जीवन को सकारात्मक दिशाएं देने के लिये चातुर्मास एक सशक्त माध्यम है। यह आत्म-निरीक्षण का अनुष्ठान है।
यह महत्वाकांक्षाओं को थामता है। इन्द्रियों की आसक्ति को विवेक द्वारा समेटता है। मन की सतह पर जमी राग-द्वेष की दूषित परतों को उघाड़ता है। करणीय और अकरणीय का ज्ञान देता है तभी जीवन की दिशायें बदलती है। चातुर्मास में ज्ञानी मुनिजनों के मुख से शास्त्र-वाणी का श्रवण करने से भौतिकता के साथ-साथ आध्यात्मिक का भाव पुष्ट होता है। त्याग-प्रत्याख्यान में वृद्धि होती है। कर्म निर्जरा के लिए पराक्रम के प्रस्फोट की पे्ररणा मिलती है।
गांव और घर-घर में तप आराधना का ज्वार-सा आ जाता है। जो न केवल जीवन की दिशाओं को ही नहीं बदलता बल्कि जीवन का ही सर्वांगीण रूपान्तरण भी कर देता है। चातुर्मास संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। जरूरत है इस सांस्कृतिक परम्परा को अक्षुण्ण बनाने की। ऐसी परम्पराओं पर हमें गर्व और गौरव होना चाहिए कि जहां जीवन की हर सुबह सफलताओं की धूप बांटें और हर शाम चारित्र धर्म की आराधना के नये आयाम उद्घाटित करें। क्योंकि यही अहिंसा, शांति और सह-अस्तित्व की त्रिपथगा सत्यं, शिवं, सुंदरम् का निनाद करती हुई समाज की उर्वरा में ज्योति की फसलें उगाती है।
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chaitanyabharatnews · 4 years
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देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय
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चैतन्य भारत न्यूज सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। बता दें सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। मान्‍यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ हो गया है। आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है। देवशयनी एकादशी पारण पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 2 जुलाई, 05:32 to 04:14 एकादशी तिथि प्रारम्भ - 30 जून, 2020, 19:49 बजे से एकादशी तिथि समाप्त - 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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देवशयनी एकादशी: आज से 5 माह तक योग निद्रा में चले जाएंगे भगवान विष्णु, जानें व्रत रखने का शुभ मुहूर्त और पारण का समय
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चैतन्य भारत न्यूज सनातन धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। बता दें सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। मान्‍यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ हो गया है। आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि जिस वर्ष 24 एकादशी के स्थान पर 26 एकादशी होती हैं तो चार्तुमास अधिक लंबा होता है। इस कारण इस बार चार्तुमास की अवधि लगभग 5 माह की रहेगी। चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं। इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है। देवशयनी एकादशी पारण पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 2 जुलाई, 05:32 to 04:14 एकादशी तिथि प्रारम्भ - 30 जून, 2020, 19:49 बजे से एकादशी तिथि समाप्त - 1 जुलाई, 2020 को 14:29 बजे एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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पाना चाहते हैं लक्ष्मी माता की कृपा, तो शुक्रवार को इस विधि से करें मां की पूजा-अर्चना
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चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। इन नौ दिनों में देवी की विशेष रूप से पूजा की जाती है। शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की आराधना की जाती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को चंचला कहा गया है। चंचला का मतलब है ऐसी देवी जिनका किसी एक स्थान पर अधि‍क समय तक रहना तय नहीं। जिन लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं चल रही है वे लोग शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा खासतौर से करें। इस‍ दिन व्रत रखने का भी प्रावधान है। आइए जानते हैं मां लक्ष्मी की पूजा-विधि..
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मां लक्ष्मी की पूजा-विधि- मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है। पूजा के दौरान पान का पत्ता, रोली, केसर, चावल, सुपारी, फल, फूल, नारियल, तांबे का कलश, लाल कपड़ा और घी होना चाहिए। इसके बाद मां लक्ष्मी और गणपति बप्पा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कर गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद सबसे पहले गणपति बप्पा और फिर लक्ष्मीजी का पूजन करें। इस पूजा में गणपति बप्पा और लक्ष्मीजी के साथ भगवान विष्णु की स्थापना जरूर करें। शुक्रवार के दिन भोजन और धन दान करना बेहद शुभ माना गया है। मां लक्ष्मी के विशेष स्वरूप हैं, जिनकी उपासना शुक्रवार के दिन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। ये भी पढ़े... शुक्रवार को दही खाने का होता है विशेष महत्व, जानिए वजह शुक्रवार की रात मां लक्ष्मी को ऐसे करें प्रसन्न, इन उपायों को अपनाएंगे तो हमेशा बरसेगी कृपा गुप्‍त नवरात्रि, देवशयनी एकादशी से लेकर गुरु पूर्णिमा तक, जुलाई में आने वाले हैं ये महत्वपूर्ण तीज-त्योहार   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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पाना चाहते हैं लक्ष्मी माता की कृपा, तो शुक्रवार को इस विधि से करें मां की पूजा-अर्चना
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चैतन्य भारत न्यूज हिंदू धर्म में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। इन नौ दिनों में देवी की विशेष रूप से पूजा की जाती है। शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की आराधना की जाती है। शास्त्रों में लक्ष्मी को चंचला कहा गया है। चंचला का मतलब है ऐसी देवी जिनका किसी एक स्थान पर अधि‍क समय तक रहना तय नहीं। जिन लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं चल रही है वे लोग शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा खासतौर से करें। इस‍ दिन व्रत रखने का भी प्रावधान है। आइए जानते हैं मां लक्ष्मी की पूजा-विधि..
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मां लक्ष्मी की पूजा-विधि- मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है। पूजा के दौरान पान का पत्ता, रोली, केसर, चावल, सुपारी, फल, फूल, नारियल, तांबे का कलश, लाल कपड़ा और घी होना चाहिए। इसके बाद मां लक्ष्मी और गणपति बप्पा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कर गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद सबसे पहले गणपति बप्पा और फिर लक्ष्मीजी का पूजन करें। इस पूजा में गणपति बप्पा और लक्ष्मीजी के साथ भगवान विष्णु की स्थापना जरूर करें। शुक्रवार के दिन भोजन और धन दान करना बेहद शुभ माना गया है। मां लक्ष्मी के विशेष स्वरूप हैं, जिनकी उपासना शुक्रवार के दिन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। ये भी पढ़े... शुक्रवार को दही खाने का होता है विशेष महत्व, जानिए वजह शुक्रवार की रात मां लक्ष्मी को ऐसे करें प्रसन्न, इन उपायों को अपनाएंगे तो हमेशा बरसेगी कृपा गुप्‍त नवरात्रि, देवशयनी एकादशी से लेकर गुरु पूर्णिमा तक, जुलाई में आने वाले हैं ये महत्वपूर्ण तीज-त्योहार   Read the full article
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ivxtimes · 4 years
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देवशयनी एकादशी Image Source : INSTRAGRAM/LORDVISHNU_SE
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हरिशयनी एकादशी के अलावा देवशयनी, योगनिद्रा और 'पद्मनाभा' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु विश्राम के लिए क्षीर सागर में चले जाएंगे और पूरे चार महीनों तक वहीं पर रहेंगे। भगवान श्री हरि के शयनकाल के इन चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है | चातुर्मास के आरंभ होने के साथ ही अगले चार महीनों तक शादी-ब्याह आदि सभी शुभ कार्य बंद हो जायेंगे। आज के दिन भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है तथा श्रीहरि का आशीर्वाद सदैव मिलता रहता है |
एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि शुरू:  30 जून 7 बजकर  50 मिनट तक। 
एकादशी समाप्त: 1 जुलाई को शाम 5 बजकर 30 मिनट तक।
ऐसे गुण वाले व्यक्ति को ही सौंपे जिम्मेदार पद, वरना होगा बड़ा नुकसान, चाणक्य की नीति आज भी है कारगर
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार एकादशी शुरू होने के एक दिन पहले से ही इसके नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। फिर स्वच्छ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। घी का दीप अवश्य जलाए। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पा��� हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। साथ ही भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।
गुरु ने बदली अपनी चाल, वृष, मिथुन सहित इन राशियों का पलटेगा भाग्य
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एकादशी
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं।
एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया  सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।
उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि कहाँ रह जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी।
राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।
वहाँ विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल मंगल पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।
तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा-  महात्मन्‌ सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें। यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है।
इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव है।
किंतु राजा का हृदय एक नरपराधशूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा: हे देव मैं उस निरपराध को मार दूं, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएं। महर्षि अंगिरा ने बताया- आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।
राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।  
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