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#जस्टिसएसअब्दुलनज़ीर
allgyan · 3 years
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महिला को फांसी किस जुर्म में -
महिला को फांसी तो वैसे लगती रही है लेकिन ये घटना जो होने वाली है वो पहली बार होगी। क्योकि जब से भारत स्वतंत्र हुआ है तब से किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है। पुरषों को तो फांसी हो चुकी है लेकिन महिलाओं को अब तक नहीं हुई थी।इसलिए ये जो भी घटना होने वाली है बहुत ही विभस्थ्य होने वाली है। फांसी उसी को होती है जिसका अपराध माफ़ी योग्य न हो या कह सकते है की उसने ऐसा कृत्य किया हो जो माफ़ करने योग्य न हो।स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी दी जा सकती है।आगरा के डीआईजी (जेल) अखिलेश कुमार ने कहा कि मथुरा की ज़िला जेल में शबनम को फांसी दिए जाने की तैयारियां चल रही है।अब जानने चाहोगे की सबनम का जुर्म क्या है जो उसे अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है।अमरोहा के रहने वाले शबनम और उनके प्रेमी सलीम ने 14-15 अप्रैल 2008 की दरमियानी रात को परिवार के सात लोगों को नशीला पदार्थ देकर उनका गला काट दिया थ। इनमें एक 10 महीने का बच्चा भी था जिसका गला घोंट दिया गया थ। उस समय 24 वर्षीय शबनम एक स्कूल में पढ़ाती थीं और सलीम से प्रेम करती थीं लेकिन उनके घरवाले उनके संबंध के ख़िलाफ़ थे ।
सुप्रीम कोर्ट ने भी मौत की सज़ा को रखा बरक़रार-
2010 में ट्रायल कोर्ट ने दोनों को मौत की सज़ा सुनाई थी जिसको 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरक़रार रखा था।राष्ट्रपति भवन उनकी दया याचिका को ठुकरा चुका है और पिछले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने कहा था कि दोनों शादी के बाद शबनम के परिजनों की संपत्ति हथियाना चाहते थे।  ये फांसी हो सके तो मथुरा जेल में हो क्योकि महिलाओं को मथुरा जेल में ही फांसी देने की व्यवस्था है लेकिन कई वर्षों से वहाँ किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है इसलिए उसकी देख -रेख भी नहीं हुई है और जिससे वो जगह जहाँ फांसी दी जाती है बहुत जर्जर हो चुकी है।
पवन जल्लाद ही अमरोहा की सबनम को फांसी दे सकते है-
कहा जा रहा है की पवन जल्लाद ही अमरोहा की सबनम को फांसी दे सकते है पवन वही जल्लाद है जिन्होंने निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया था।  मेरठ से पवन 6 महीने पहले इन्होने ही मथुरा जेल के व्यवस्था देखी थी। यूपी के इकलौते महिला फांसीघर में आजादी के 73 साल  बाद पहली बार किसी महिला को फांसी दी जानीहै ।पवन पहली बार किसी महिला को फांसी पर लटकाने वाले है। जिस तख्ते पर खड़ा करके दोषी को फांसी दी जाती है वह भी टूटा हुआ थ।पवन के अनुसार उसे अब बदलवा दिया गया है । वहीं उन्होनें कहा कि लीवर की खिंचाई भी ठीक से नहीं हो रही थी तो तेल लगवाकर लीवर को अब नरम कर दिया गया है  । मथुरा की जिला कारागार 1870 में बनी, तभी से यहां पर महिला फांसी घर बना हुआ है । लेकिन आज तक कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि किसी महिला को यहां फांसी दी गई हो
फांसी के वक़्त कौन -कौन लोग होते है मौजूद -
फांसी के वक्त फांसी घर की चार दीवारी के भीतर मजिस्ट्रेट, जेल सुपरिंटेंडेंट, असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट-जेलर, मेडिकल आफिसर (डाक्टर), एक या दो जल्लाद, फांसी की सजा पाया आरोपी, जेल के कानून अफसर सहित कुल जमा 5 से 8 लोग मौजूद होते हैं  इनमें से किसी को किसी से बोलने की इजाजत नहीं होती  सब मुंह और हाथ के इशारों से या फिर कलम-कागज की मदद से लिखकर ही बात करते हैं फांसी देने के तय समय से 18 से 24 घंटे पहले आरोपी बताया जाता है  जेल सुपरिंटेंडेंट काल कोठरी के बाहर खड़ा रहकर आरोपी को ‘डेथ-वारंट’ पढ़कर सुनाता है मौत की सजा पाए शख्स जल्लाद का चेहरा नहीं देख पाता है। जल्लाद के बारे में जो भी धारणाएं हों, मगर वो हमारी-आपकी तरह आम-इंसान है  न वो भीमकाय है न काला-भुजंग या फिर शक्ल से डरावना। देश में कुछ जल्लाद (लक्ष्मन, कल्लू, पवन आदि) तो ऐसे हैं, जिन्हें आमने-सामने देखकर कोई अंदाजा ही नहीं लगा सकता है कि, ये लोग जीते-जागते इंसान को फांसी पर लटकाने जैसा दुस्साहसिक काम करते होंगे।
फांसी होने वाले शख्स के आँखे पर पट्टी क्यों बंधी रहती है -
आरोपी (मौत की सजा पाने वाला), जल्लाद या किसी और को या फिर फांसी के फंदे को अपनी आंखों से देखकर गुस्से में विरोध पर न उतर आए, इसलिए उसका मुंह रुमाल से काल-कोठरी के भीतर ही ढंक दिया जाता है  ताकि उसे अपने आस-पास लोगों के होने का अहसास तो हो सके, लेकिन वो किसी से नजर न मिला सके।  फांसी से ठीक पहले अगर मरने वाला अपनी कोई वसीयत लिखाने की इच्छा जाहिर करे, तो वसीयत लिखने की जिम्मेदारी/ प्रक्रिया फांसी घर में मौजूद मजिस्ट्रेट पूरी करता है  फांसी पर लटकाए जाने वाले इंसान के पांव में उसी के वजन की रेते की बोरियां बांधी जाती है, ताकि फंदे पर कुएं में झूलते समय उसके प्राण हर हाल में निकल जायें।  साथ ही रेत की बोरियों के वजन से फांसी के समय इंसान का शरीर तड़पता हुआ फांसी-कुएं की दीवारों से न टकराए। हमारा काम है आप को नए -नए जानकारियों से अवगत कराना है ।आप हमे समर्थन दे।
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allgyan · 3 years
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महिला को फांसी किस जुर्म में -
महिला को फांसी तो वैसे लगती रही है लेकिन ये घटना जो होने वाली है वो पहली बार होगी। क्योकि जब से भारत स्वतंत्र हुआ है तब से किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है। पुरषों को तो फांसी हो चुकी है लेकिन महिलाओं को अब तक नहीं हुई थी।इसलिए ये जो भी घटना होने वाली है बहुत ही विभस्थ्य होने वाली है। फांसी उसी को होती है जिसका अपराध माफ़ी योग्य न हो या कह सकते है की उसने ऐसा कृत्य किया हो जो माफ़ करने योग्य न हो।स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी दी जा सकती है।आगरा के डीआईजी (जेल) अखिलेश कुमार ने कहा कि मथुरा की ज़िला जेल में शबनम को फांसी दिए जाने की तैयारियां चल रही है।अब जानने चाहोगे की सबनम का जुर्म क्या है जो उसे अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है।अमरोहा के रहने वाले शबनम और उनके प्रेमी सलीम ने 14-15 अप्रैल 2008 की दरमियानी रात को परिवार के सात लोगों को नशीला पदार्थ देकर उनका गला काट दिया थ। इनमें एक 10 महीने का बच्चा भी था जिसका गला घोंट दिया गया थ। उस समय 24 वर्षीय शबनम एक स्कूल में पढ़ाती थीं और सलीम से प्रेम करती थीं लेकिन उनके घरवाले उनके संबंध के ख़िलाफ़ थे ।
सुप्रीम कोर्ट ने भी मौत की सज़ा को रखा बरक़रार-
2010 में ट्रायल कोर्ट ने दोनों को मौत की सज़ा सुनाई थी जिसको 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरक़रार रखा था।राष्ट्रपति भवन उनकी दया याचिका को ठुकरा चुका है और पिछले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने कहा था कि दोनों शादी के बाद शबनम के परिजनों की संपत्ति हथियाना चाहते थे।  ये फांसी हो सके तो मथुरा जेल में हो क्योकि महिलाओं को मथुरा जेल में ही फांसी देने की व्यवस्था है लेकिन कई वर्षों से वहाँ किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है इसलिए उसकी देख -रेख भी नहीं हुई है और जिससे वो जगह जहाँ फांसी दी जाती है बहुत जर्जर हो चुकी है।
पवन जल्लाद ही अमरोहा की सबनम को फांसी दे सकते है-
कहा जा रहा है की पवन जल्लाद ही अमरोहा की सबनम को फांसी दे सकते है पवन वही जल्लाद है जिन्होंने निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया था।  मेरठ से पवन 6 महीने पहले इन्होने ही मथुरा जेल के व्यवस्था देखी थी। यूपी के इकलौते महिला फांसीघर में आजादी के 73 साल  बाद पहली बार किसी महिला को फांसी दी जानीहै ।पवन पहली बार किसी महिला को फांसी पर लटकाने वाले है। जिस तख्ते पर खड़ा करके दोषी को फांसी दी जाती है वह भी टूटा हुआ थ।पवन के अनुसार उसे अब बदलवा दिया गया है । वहीं उन्होनें कहा कि लीवर की खिंचाई भी ठीक से नहीं हो रही थी तो तेल लगवाकर लीवर को अब नरम कर दिया गया है  । मथुरा की जिला कारागार 1870 में बनी, तभी से यहां पर महिला फांसी घर बना हुआ है । लेकिन आज तक कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि किसी महिला को यहां फांसी दी गई हो
फांसी के वक़्त कौन -कौन लोग होते है मौजूद -
फांसी के वक्त फांसी घर की चार दीवारी के भीतर मजिस्ट्रेट, जेल सुपरिंटेंडेंट, असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट-जेलर, मेडिकल आफिसर (डाक्टर), एक या दो जल्लाद, फांसी की सजा पाया आरोपी, जेल के कानून अफसर सहित कुल जमा 5 से 8 लोग मौजूद होते हैं  इनमें से किसी को किसी से बोलने की इजाजत नहीं होती  सब मुंह और हाथ के इशारों से या फिर कलम-कागज की मदद से लिखकर ही बात करते हैं फांसी देने के तय समय से 18 से 24 घंटे पहले आरोपी बताया जाता है  जेल सुपरिंटेंडेंट काल कोठरी के बाहर खड़ा रहकर आरोपी को ‘डेथ-वारंट’ पढ़कर सुनाता है मौत की सजा पाए शख्स जल्लाद का चेहरा नहीं देख पाता है। जल्लाद के बारे में जो भी धारणाएं हों, मगर वो हमारी-आपकी तरह आम-इंसान है  न वो भीमकाय है न काला-भुजंग या फिर शक्ल से डरावना। देश में कुछ जल्लाद (लक्ष्मन, कल्लू, पवन आदि) तो ऐसे हैं, जिन्हें आमने-सामने देखकर कोई अंदाजा ही नहीं लगा सकता है कि, ये लोग जीते-जागते इंसान को फांसी पर लटकाने जैसा दुस्साहसिक काम करते होंगे।
फांसी होने वाले शख्स के आँखे पर पट्टी क्यों बंधी रहती है -
आरोपी (मौत की सजा पाने वाला), ��ल्लाद या किसी और को या फिर फांसी के फंदे को अपनी आंखों से देखकर गुस्से में विरोध पर न उतर आए, इसलिए उसका मुंह रुमाल से काल-कोठरी के भीतर ही ढंक दिया जाता है  ताकि उसे अपने आस-पास लोगों के होने का अहसास तो हो सके, लेकिन वो किसी से नजर न मिला सके।  फांसी से ठीक पहले अगर मरने वाला अपनी कोई वसीयत लिखाने की इच्छा जाहिर करे, तो वसीयत लिखने की जिम्मेदारी/ प्रक्रिया फांसी घर में मौजूद मजिस्ट्रेट पूरी करता है  फांसी पर लटकाए जाने वाले इंसान के पांव में उसी के वजन की रेते की बोरियां बांधी जाती है, ताकि फंदे पर कुएं में झूलते समय उसके प्राण हर हाल में निकल जायें।  साथ ही रेत की बोरियों के वजन से फांसी के समय इंसान का शरीर तड़पता हुआ फांसी-कुएं की दीवारों से न टकराए। हमारा काम है आप को नए -नए जानकारियों से अवगत कराना है ।आप हमे समर्थन दे।
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allgyan · 3 years
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महिला को फांसी:फ्री इंडिया में पहली बार महिला को फांसी -
महिला को फांसी किस जुर्म में -
महिला को फांसी तो वैसे लगती रही है लेकिन ये घटना जो होने वाली है वो पहली बार होगी। क्योकि जब से भारत स्वतंत्र हुआ है तब से किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है। पुरषों को तो फांसी हो चुकी है लेकिन महिलाओं को अब तक नहीं हुई थी।इसलिए ये जो भी घटना होने वाली है बहुत ही विभस्थ्य होने वाली है। फांसी उसी को होती है जिसका अपराध माफ़ी योग्य न हो या कह सकते है की उसने ऐसा कृत्य किया हो जो माफ़ करने योग्य न हो।स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी महिला को फांसी दी जा सकती है।आगरा के डीआईजी (जेल) अखिलेश कुमार ने कहा कि मथुरा की ज़िला जेल में शबनम को फांसी दिए जाने की तैयारियां चल रही है।अब जानने चाहोगे की सबनम का जुर्म क्या है जो उसे अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है।अमरोहा के रहने वाले शबनम और उनके प्रेमी सलीम ने 14-15 अप्रैल 2008 की दरमियानी रात को परिवार के सात लोगों को नशीला पदार्थ देकर उनका गला काट दिया थ। इनमें एक 10 महीने का बच्चा भी था जिसका गला घोंट दिया गया थ। उस समय 24 वर्षीय शबनम एक स्कूल में पढ़ाती थीं और सलीम से प्रेम करती थीं लेकिन उनके घरवाले उनके संबंध के ख़िलाफ़ थे ।
सुप्रीम कोर्ट ने भी मौत की सज़ा को रखा बरक़रार-
2010 में ट्रायल कोर्ट ने दोनों को मौत की सज़ा सुनाई थी जिसको 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरक़रार रखा था।राष्ट्रपति भवन उनकी दया याचिका को ठुकरा चुका है और पिछले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने कहा था कि दोनों शादी के बाद शबनम के परिजनों की संपत्ति हथियाना चाहते थे।  ये फांसी हो सके तो मथुरा जेल में हो क्योकि महिलाओं को मथुरा जेल में ही फांसी देने की व्यवस्था है लेकिन कई वर्षों से वहाँ किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है इसलिए उसकी देख -रेख भी नहीं हुई है और जिससे वो जगह जहाँ फांसी दी जाती है बहुत जर्जर हो चुकी है।
पवन जल्लाद ही अमरोहा की सबनम को फांसी दे सकते है-
कहा जा रहा है की पवन जल्लाद ही अमरोहा की सबनम को फांसी दे सकते है पवन वही जल्लाद है जिन्होंने निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाया था।  मेरठ से पवन 6 महीने पहले इन्होने ही मथुरा जेल के व्यवस्था देखी थी। यूपी के इकलौते महिला फांसीघर में आजादी के 73 साल  बाद पहली बार किसी महिला को फांसी दी जानीहै ।पवन पहली बार किसी महिला को फांसी पर लटकाने वाले है। जिस तख्ते पर खड़ा करके दोषी को फांसी दी जाती है वह भी टूटा हुआ थ।पवन के अनुसार उसे अब बदलवा दिया गया है । वहीं उन्होनें कहा कि लीवर की खिंचाई भी ठीक से नहीं हो रही थी तो तेल लगवाकर लीवर को अब नरम कर दिया गया है  । मथुरा की जिला कारागार 1870 में बनी, तभी से यहां पर महिला फांसी घर बना हुआ है । लेकिन आज तक कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि किसी महिला को यहां फांसी दी गई हो
फांसी के वक़्त कौन -कौन लोग होते है मौजूद -
फांसी के वक्त फांसी घर की चार दीवारी के भीतर मजिस्ट्रेट, जेल सुपरिंटेंडेंट, असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट-जेलर, मेडिकल आफिसर (डाक्टर), एक या दो जल्लाद, फांसी की सजा पाया आरोपी, जेल के कानून अफसर सहित कुल जमा 5 से 8 लोग मौजूद होते हैं  इनमें से किसी को किसी से बोलने की इजाजत नहीं होती  सब मुंह और हाथ के इशारों से या फिर कलम-कागज की मदद से लिखकर ही बात करते हैं फांसी देने के तय समय से 18 से 24 घंटे पहले आरोपी बताया जाता है  जेल सुपरिंटेंडेंट काल कोठरी के बाहर खड़ा रहकर आरोपी को ‘डेथ-वारंट’ पढ़कर सुनाता है मौत की सजा पाए शख्स जल्लाद का चेहरा नहीं देख पाता है। जल्लाद के बारे में जो भी धारणाएं हों, मगर वो हमारी-आपकी तरह आम-इंसान है  न वो भीमकाय है न काला-भुजंग या फिर शक्ल से डरावना। देश में कुछ जल्लाद (लक्ष्मन, कल्लू, पवन आदि) तो ऐसे हैं, जिन्हें आमने-सामने देखकर कोई अंदाजा ही नहीं लगा सकता है कि, ये लोग जीते-जागते इंसान को फांसी पर लटकाने जैसा दुस्साहसिक काम करते होंगे।
फांसी होने वाले शख्स के आँखे पर पट्टी क्यों बंधी रहती है -
आरोपी (मौत की सजा पाने वाला), जल्लाद या किसी और को या फिर फांसी के फंदे को अपनी आंखों से दे��कर गुस्से में विरोध पर न उतर आए, इसलिए उसका मुंह रुमाल से काल-कोठरी के भीतर ही ढंक दिया जाता है  ताकि उसे अपने आस-पास लोगों के होने का अहसास तो हो सके, लेकिन वो किसी से नजर न मिला सके।  फांसी से ठीक पहले अगर मरने वाला अपनी कोई वसीयत लिखाने की इच्छा जाहिर करे, तो वसीयत लिखने की जिम्मेदारी/ प्रक्रिया फांसी घर में मौजूद मजिस्ट्रेट पूरी करता है  फांसी पर लटकाए जाने वाले इंसान के पांव में उसी के वजन की रेते की बोरियां बांधी जाती है, ताकि फंदे पर कुएं में झूलते समय उसके प्राण हर हाल में निकल जायें।  साथ ही रेत की बोरियों के वजन से फांसी के समय इंसान का शरीर तड़पता हुआ फांसी-कुएं की दीवारों से न टकराए। हमारा काम है आप को नए -नए जानकारियों से अवगत कराना है ।आप हमे समर्थन दे।
पूरा जानने के लिए -http://bit.ly/3dsmE1x
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