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यह शख्स बनने वाला था भारत का प्रधानमंत्री, पर बन नहीं पाया, क्या आप इनका नाम जानते हैं?
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ये है अपनी बानगी...
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How to improve your Tempo of Speech
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My Journey as a Journalist
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rocketnews · 6 years
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भारत में किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए इन चार मानकों पर काम करने की ज़रुरत
कुमार विवेक
बीते 11-12 मार्च को हमने - आपने टीवी पर किसान आंदोलन की जो तसवीरें देखीं वो शहरों की आबादी के लिए चौकाने वाली थी। नासिक से निकला करीब 30 हजार किसानों का जत्था पैदल मुम्बई पहुंचा था। ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) के बैनर तले किसानों का यह समूह कर्जमाफी की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन पर था. 
किसानों के इस जत्थे ने 5 मार्च को 180 किलोमीटर की यात्रा के लिए सेंट्रल नासिक के सीबीएस चौक से कूच शुरू किया था. हर रोज 30 किलोमीटर पदयात्रा करते ये किसान 12 मार्च को मुंबई में महाराष्ट्र विधानसभा घेरने पहुंचे थे। 
आनन - फानन में सरकार ने मांगे मान लेने का मरहम लगाकर इस मार्च को समाप्त तो करा दिया। पर पावँ में छाले लिए ये किसान जब घर लौट रहे थे तो उन्हें संदेह था कि सरकार द्वारा कुछ मांगे मान लेने से उनके वर्षों से चले आ रहे जख्म भर पाएंगे। 
भारत सरकार के ताज़ा आर्थिक सर्वे के अनुसार देश के किसानों की आमदनी में आने वाले सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण 20-25 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। 
  प्राकृतिक आपदाओं, तापमान में वृद्धि, वर्षा में कमी आदि कारणों ने किसानों की आमदनी को दुगना करने के सरकार के एजेंडे को गहरा धक्का पहुँचाया है। 
हालाँकि अगर मंशा हो तो इस परिस्थिति से अब भी निपटा जा सकता है। बेहतर कृषि प्रबंधन और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाया जा सकता है। दूरगामी सुधार के लिए यह भी ज़रूरी है कि सरकार कृषि अनुसंधान पर पर्याप्त और उचित बजट का प्रबंध करे। 
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि क्षेत्र 50 प्रतिशत रोज़गार उपलब्ध कराता है। देश की जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 18 फीसद है। भारत के 80 फीसद से अधिक किसान छोटी जोत वाले हैं, मतलब ऐसे किसान जिनके पास दो एकड़ या उससे कम जमींन है। यहाँ मुख्य रूप से गेहूं , धान, मक्का, गन्ना, दलहन, तिलहन आदि फसलों की खेती होती है। 
पर सिक्के का दूसरा और दुखद पहलु ये है कि भारतीय किसानों के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं । उन्हें ख़राब मौसम, बड़े किसानों और फ़ूड कॉरपोरेशनों से प्रतियोगिता, न्यूनतम बाजार मूल्य में कमी जैसी समस्याओं से हर सीजन रुबरु होना पड़ता है। 
छोटे किसान परिवेश, बाज़ार और आर्थिक दवाब के चपेट में रहते हैं । विश्व की कुल भूखी आबादी के 25 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं। इससे तनाव पैदा होता है और परिणाम किसानों के आत्महत्या के रूप में सामने आता है। पिछले तीन दशकों में 60,000 से अधिक किसान आत्महत्या के मामले सामने आ चुके हैं। 
इन परिस्थितियों में मौसम, तापमान और वर्षा में हो रहे बदलाव कृषि उत्पादों और एक बड़ी आबादी पर बड़ा प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं । 
जलवायु परिवर्तन 
ताज़ा सरकारी रिपोर्ट में मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार जहाँ देशभर में औसत तापमान साल दर साल बढ़ रहा है वहीँ वर्षा में कमी हो रही है। इन आंकड़ों के अनुसार हाल के वर्षों में सबसे गर्म दिनों और सबसे ठन्डे दिनों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। 
औसत से अधिक तापमान के कारण जहाँ 4.7 प्रतिशत फसल बर्बाद हुए वहीँ औसत से बहुत कम तापमान के कारण भी कुल उत्पादन में 12.8 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई। प्रतिकूल मौसम का सबसे अधिक प्रभाव ऐसे इलाक़ों पर पड़ा जहाँ सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है। 
कम फसल का मतलब है किसान की कम आमदनी। आर्थिक सर्वे रिपॉर्ट के अनुसार बढ़ते तापमान के कारण किसानों की आमदनी में 4.3 प्रतिशत की गिरावट आयी। वहीं, अतिवृष्टि ने किसानों की आमदनी का 13.7 फीसद लील लिया। 
जिन इलाक़ों में सिंचाई की कमी है वहां यह देखा गया है कि साल में तापमान में 1 डिग्री  वृद्धि से किसानों की आमदनी में अनुमानतः 6.2 फीसद की गिरावट आ जाती है। वहीँ अगर साल में वर्षा का औसत 100मिमी रहता है तो कृषकों की आमद में 15 फीसद की गिरावट दर्ज होती है । 
मौसम के आंकड़ों के गहन अध्ययन से ये उम्मीद की जा रही है कि 21 वीं सदी के उत्तरार्ध तक भारत के औसत तापमान में 3 से 4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जायेगी और ऐसे में आने वाले सालों में असिंचित क्षेत्र के किसानों की आय में 20 से 25 फीसद की कमी आएगी ये लगभग तय है। ऐसे में बदहाल किसान और बदहाल होंगे ये भी तय है। 
पर सरकार अगर समय रहते कुछ ठोस फैसले ले तो निश्चित रूप रूप से परिस्थितियों में बहुत हद तक सुधार संभव है। ऐसे पाँच महत्वपूर्ण मानक हैं जिन पर खर्च कर किसानों को राहत पहुँचाया जा सकता है। इन पर काम किये जाने की तत्काल ज़रुरत है।
1. सिचाई का स्मार्ट प्रबंधन : 
खेती के लिए पानी की कमी और लगातार गिरते भूजल के स्तर को देखते हुए बेहतर जल प्रबंधन के साथ सिंचाई की आधुनिक और स्मार्ट तकनीक पर काम किये जाने की नितान्त आवश्यकता है। हमारे देश के कृषि क्षेत्र का 50 प्रतिशत से अधिक भाग गैर सिंचित है। 
जलवायु परिवर्तन और सिंचाई के समुचित आभाव में कर्णाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड आदि राज्यों को हाल के वर्षों में सबसे बड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ा है। ऐसे में जहाँ - जहाँ सिंचाई के अभाव में फसल प्रभावित होती है ऐसे क्षेत्रों में स्मार्ट सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप, स्प्रिंकल एवं समुचित जल प्रबंधन की अन्य वैज्ञानिक तकनीकों पर प्राथमिकता के आधार पर काम किये जाने की आवश्यकता है। 
2. तैयार फसल की क्षति में कमी लाना : 
देश में वर्ष में लगभग 13 बिलियन मूल्य के फसल की हानि हो जाती है। साल 2015 में फल तथा सब्जियों के कुल उत्पाद का लगभग 16 प्रतिशत जिनका बाज़ार मूल्य करीब 6 बिलियन डॉलर था, खराब हो गए । सबसे अधिक ख़राब होने वाले कृषि उत्पादों फल तथा सब्जियों की उपज का केवल 2.2 प्रतिशत का ही उपयोग हेतु पैकेजिंग संभव हो पाया। जबकि, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण के मामले में अमरीका 65 प्रतिशत और चीन 23 प्रतिशत हमसे कहीं आगे रहे । 
काम रैयत वाले किसानों का इस कारण सबसे अधिक नुकसान हुआ। उनके लिए आर्थिक रूप से ये संभव नहीं था कि वे अपने तैयार कच्चे फसल को बड़ी और केंद्रीयकृत प्रोसेसिंग यूनिटों तक पहुंचा सकें। लोकल सस्तर पर उनके पास प्रोसेसिंग या भण्डारण की कोई सुविधा नहीं थी, जिसका नतीजा हुआ बड़ा नुकसान। आग में घी का काम किया यातायात की अपर्याप्त व्यवस्था ने। 
खराब रास्तों, बार-बार लोडिंग, अनलोडिंग, और रेफ्रिजरेशन की कमीं के कारण फल और सब्जियों के उत्पादन का बड़ा हिस्सा ख़राब हो गया। 
छोटे किसानों को अपने उत्पादन को बेचने के लिए मध्यस्थों पर निर्भर होना पड़ता है इसका भी खामियाज़ा उन्हें उठाना पड़ता है। कभी कभी इन किसानों को अपनी फसल लागत से भी कम कीमत पर बेचना पड़ता है। 
ऐसे में उस बात की परम आवश्यकता है कि लोकल स्तर पर प्रोसेसिंग, स्मार्ट पैकेजिंग एवं यातायात के साधनों में सुधार के लिए अत्याधुनिक तकनीकों पर जल्द से जल्द काम शुरू हो। 
3. आंकड़ों पर आधारित आपूर्ति प्रबंधन - 
भारतीय कृषि के अब यह ज़रूरी हो गया है की सप्लाई चैन का प्रबंधन आंकड़ों पर आधारित हो। सेंसर्स, जीपीएस, सेटेलाइट इमेजिंग आदि का प्रयोग कर विश्वशनीय सप्लाई चैन से जुड़े विश्वसनीय आंकड़ों का संकलन किया जा सकता है, ऐसा करने से देश के को बहुत हद तक मदद मिल सकती है। इससे सप्लाई चैन के विभिन्न स्तरों को पर्यावरण और दूसरे कारणों को ध्यान में रखते हुए मॉनिटर करने में भी सहूलियत मिलेगी। इससे फसल की बर्बादी बहुत हद तक कम हो सकेगी। 
4. पर्याप्त फसल बीमा 
जलवायु में अकस्मात् परिवर्तन से किसानों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए फसल बीमा कार्यक्रम चलाये जाते हैं। ऐसे कई कार्यक्रम वर्तमान में भी चल रहे हैं, दुखद रूप से वे बहुत अपर्याप्त हैं । हालांकि इन दिनों में हमने देखा है कि फसल बीमा के नाम पर कई प्रदेशों में किसानों को 1-1, 2-2 रुपयों का चेक दिया गया है, ये मज़ाक नहीं तो और क्या है? फिलहाल जो फसल बीमा योजनाएं चल रहीं हैं किसानों से अधिक बीमा कंपनियों का फायदा कराती हैं। ऐसे फसल बीमा योजना पर काम कर उसे लागू किये जाने की ज़रुरत है जिसमें कम काम प्रीमियम के भुगतान पर किसानों को अधिक से अधिक कवर मिले । ताकि किसानों का भला हो सके। 
फसलों की पैदावार की दृष्टि से कृषि अनुसंधान का बड़ा महत्व है। कृषि अनुसंधान पर एक नई और इनोवेटिव सोच के साथ काम किये जाने की ज़रुरत है। कृषि अनुसंधान का कार्य केवल फसलों की पैदावार बढ़ाना न होकर जलवायु परिवर्तन और दूसरे कारणों से होने वाले नुकसानों का अध्ययन भी होना चाहिए। 
ये ऐसे मानक है जिनसे फसल की पैदावार और सिंचाई प्रबंधन को बहुत हद तक बेहतर किया जा सकता है। एक और महत्वपूर्ण बात ये की ये सुधार केवल सरकार के भरोसे संभव नहीं। हम सब को मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। इन क़दमों पर अमल से कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी कम होगा । इनसे छोटे जोत वाले साधारण किसानों को त्वरित लाभ मिलेगा। उत्पादन बढ़ेगी, आमदनी बढ़ेगी, तो किसान आत्महत्या करने हेतु विवश भी नहीं होंगे। न ही उन्हें किसी के बहकावे में आकर 200 किमी लंबा पैदल मार्च करना पड़ेगा । 
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rocketnews · 6 years
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Eight things great teachers do differently
Eight things great teachers do differently
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Here’s what makes a great teacher. Shutterstock
Samantha Twiselton, Sheffield Hallam University
Teaching is one of the most important professions in society and touches every aspect, of every community in the world in some way.
I was recently lucky enough to attend the Varkey Foundation’s Global Education and Teaching Forum in Dubai, which culminated in the announcement of the US$1m Global Teacher Prize, which was won by Andria Zafirakou, who teaches art and textiles in north London.
The ten shortlisted teachers from across the globe were announced in a video from Bill Gates and they are all outstanding individuals making a significant difference to the lives of their students and their communities – some of which are in very challenging contexts.
To witness teaching excellence celebrated on such a global platform was really encouraging, inspiring and humbling. But it also got me thinking, is it possible to pinpoint what makes a great teacher?
Here are eight traits that I believe help to make the best teachers:
1. They embrace their powers
The best teachers recognise and embrace their potential to have a transformative impact on the wider future of the nation, and beyond. By promoting positive values, including tolerance, understanding and inclusion, this sense of moral purpose is the engine that drives the best teachers.
2. Encourage pupils to shoot for the stars
Good teachers set themselves and their pupils aspirational targets and have belief, confidence and a clear vision of where they are heading – both for the immediate future and the longer term.
Students who have experienced what they consider a “great” teacher will often use the word “inspiring”. Having the opportunity to inspire and be inspired by young people is something all teachers should actively seek – for themselves and their students.
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Great teachers encourage children to dream big. shutterstock
3. Face challenges head on
Great teachers plan how to anticipate, address and learn from challenges – even the most difficult ones. Only by going through this process can a teacher overcome an obstacle, learn from it and continue to move forwards.
In the same way, good teachers also address and challenge any negatives. This is important, because of course, some pupils have negative thoughts about school and their education. And it is part of a teacher’s development to understand the factors contributing to this. If teachers don’t, then they cannot expect positive change to happen.
4. Know how to listen
Teaching, like other professions, can at times be guilty of navel-gazing and introspection. This can mean those with the most important opinions – the learners and students themselves – can sometimes end up being ignored.
We always ask our student teachers what they think makes a good teacher – most commonly we hear qualities such as making time, enthusiasm and being knowledgeable and supportive. We listen, and we encourage our teachers to listen to their pupils too.
5. A love of learning
Great teachers, in my experience, demonstrate a relentless pursuit of learning for themselves – as well as being deeply fascinated by the learning of others. This can be engaging in new ideas, building knowledge and developing broader perspectives on an academic and social level. As well as the confidence to admit you can never know it all.
6. They can adapt and overcome
We live in a fast paced world, with teaching often feeling the effects of that relentless pace. An acceptance or acknowledgement of this and the ability to respond to change accordingly makes for a much more effective teacher. And a great teacher knows every day is different – sometimes exciting, often challenging – but ultimately worthwhile.
It’s also important that teachers are able to take an evidence-based approach to how they respond to change. Not all new initiatives are equal and teachers need to be able to critically interrogate them before deciding how to proceed.
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Finding new ways to solve old problems. Shutterstock
7. Are able to connect the dots
The depth and breadth of knowledge and skill needed to be an excellent teacher is often underestimated. Not only do teachers have to have a good understanding of – and ideally passion for – the subject(s) they teach, but they also need to know how to make this accessible and meaningful for their pupils.
To do this they need to understand a complex and massively interrelated range of factors. This includes child development, cognitive science, social, emotional and behavioural sciences and the practical implications of these – in terms of how pupils behave and what they need to succeed and thrive.
They also need to be able to combine these different kinds of knowledge, effortlessly and automatically to make the best decisions on a moment-by-moment basis as learning unfolds. It is not surprising that this can feel exhausting for teachers (but also extremely rewarding) at times.
8. They recognise the privilege
This is not a profession that should be entered lightly, it is not for the fainthearted, or for those who are trying to make a quick fix. It is a privilege to be a teacher, to have the opportunity to impact positively on the lives of so many young people, their families and ultimately their communities.
Teachers get to make a difference to the lives of children and young people – improving their life chances and helping to secure their futures. And in this way, teachers have the most important job of all.
Samantha Twiselton, Director of Sheffield Institute of Education and Professor of Education, Sheffield Hallam University
This article was originally published on The Conversation. Read the original article.
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rocketnews · 6 years
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नीतीश जी की शराबबंदी ने बिहार को कितना बदल दिया? VIDEO
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rocketnews · 6 years
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इस गुलाबी बाल वाले ने खोल दी फेसबुक की पोल
कुमार विवेक आखों पर कला चशमा, गुलाबी बाल, कानो में रिंग, सूट टाइ पहने तस्वीर में दिखने वाला शख्स है क्रिश्टोफर वाईली। यही वो व्यक्ति है  जिसने व्हिस्लब्लोवर बनकर कैंब्रिज अनालिटिका नाम के कंपनी द्वारा फेसबुक डेटा चोरी करने का भंडाफोड़ किया। बकौल वाईली, उन्होंने कैंब्रिज अनालिटिका में काम करते हुए कुछ असहज गड़बड़िया देखी और साल २०१४ में उन्होंने कंपनी छोड़ दी. वाईली की ही  मदद से गार्डियन समूह की पत्रकार कैरोल कार्डवेल्डर ने दुनिया के सामने यह भंडाफोड़ किया कि कैसे कैम्ब्रिज अनलिटिका ने 5 करोड़ फेसबुक यूजर के डेटा को चोरी किया और इसका इस्तेमाल कर लोगो के राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल तैयार किये. आगे चल कर इसका इस्तेमाल वोटरों को लुभाने के लिए किया गया. कैरोल करड़वाल्डेर कार्डवेल्डर वाईली को आकड़ों के विज्ञान में तेज़ दिमाग का आदमी बताती हैं. इस भंडाफोड़ के बाद हालाँकि फेसबुक अपने ऊपर लगे आरोपों से इंकार करते हुए कह रही है कि  उसे नहीं पता था कि उसकी साइट से लिए गए डाटा का इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि इस सवाल का जवाब तो फेसबुक को देना ही होगा कि आखिर 5 करोड़ यूजरों के डाटा कैम्ब्रिज एनालिटिका तक पहुंचे कैसे. उधर, इस जानकरी के सामने आने के बाद फेसबुक के शेयरों में लगातार गिरावट आ रही है और पिछले 10 दिनों में करीब 70 अरब डॉलर का नुकसान फेसबुक को झेलना पड़ा है. हालाँकि इन दिनों में कंपनी और ज़ुकरबर्ग की ओर से बीच - बचाव की काफी कोशिशें की गई है. वाईली के अनुसार, उन्होंने पहले कानून पढ़ा फिर फैशन और उसके बाद वो ब्रिटेन की राजनीति में लिबरल डेमोक्रैट्स के लिए काम करने उतरे. 2014 में वह स्ट्रैटजिक कम्युनिकेशन लैबोरेट्रीज के रिसर्च डाइरेक्टर बने. यही कैम्ब्रिज एनालिटिका की मातृ कंपनी है. एक अखबार से इंटरव्यू में कैम्ब्रिज एनालिटिका के बारे में उन्होंने कहा, "मैंने कंपनी को बनाने में मदद की. मैं जो काम कर रहा था उसमें अपनी ही उत्सुकता के कारण फंस गया. यह कोई बहाना नहीं है लेकिन मैंने एक रिसर्च का काम देखा जो मैं करना चाहता था, इसका बजट कई लाख का था, यह बहुत लुभावना था." शुरुआत में उन्हें दुनिया भर की सैर करने, मंत्रियों से मिलने में खूब मजा आया. लेकिन जल्दी ही सब बदल गया जब उन्हें पता चला कि उनके पूर्ववर्ती की मौत केन्या के एक होटल में हुई. वो मानते है कि उस शख्स ने "एक सौदे के बिगड़ने" की कीमत चुकाई."
वाइली ने ब्रिटिश सांसदों से इस मामले की गहराई से छानबीन करने का अनुरोध किया है. उन्होंने जोर दे कर कहा है कि उनकी चिंता राजनीति नहीं है बल्कि वो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को होने वाले नुकसान से चिंतित हैं, उनमें ब्रेक्जिट पर रायशुमारी के लिए चला अभियान भी शामिल है. वाइली का मानना है कि कैम्ब्रिज एनालिटिका ने ब्रेक्जिट वोट को प्रभावित किया हो यह सोचना "बहुत वाजिब" है. वाइली ने इसके साथ ही यह भी कहा कि वे फेसबुक या सोशल मीडिया के विरोधी नहीं हैं. उन्होंने कहा, मैं ये नहीं कहता कि "फेसबुक डिलीट" करो बल्कि मैं "फेसबुक को रिपेयर" करो कहता हूं.
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rocketnews · 6 years
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क्यों मोदी के पीएम रहते भी सोशल मीडिया पर फ़िसड्डी साबित हो रही सरकार?
मोदी के मंत्रालय डिजिटल मोर्चे पर कर रहे हैं निराश  प्रधानमंत्री का डिजिटल इंडिया का सपना अधर में 
जब मई २०१४ में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो मीडिया ने उन्हें सोशल मीडिया प्राइम मिनिस्टर के नाम से नवाजा. तकनीक के प्रति उनके रुझान की तुलना अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति  बराक ओबामा तक से की गयी. इतना ही नहीं, साल २०१६ में टाइम मैगज़ीन ने उन्हें दुनिया के ३० सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया. तकरीबन ४ करोड़  फेसबुक फॉलोवर्स  के साथ नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे अधिक फॉलो किये जाने वाले विश्व नेताओं में एक हैं. अपने मुखिया के सोशल मीडिया और ऑनलाइन माध्यमों में इस दिलचस्पी और सक्रियता की वजह से लोगो को उम्मीद थी कि  भारत सरकार के अन्य विभाग भी ऑनलाइन प्लेटफार्म पर अधिकाधिक सक्रिय होंगे. डिजिटल इंडिया को लेकर हो रहे प्रयास नाकाफी  पर सच्चाई में हुआ बिलकुल उसके उलट. पीयू रिसर्च सेंटर के अनुसार, ८७ प्रतिशत अमेरिकी व्यस्क इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि भारत के मामले में यह आकड़ा केवल २७ फीसदी का हैं. भारत में दस में से केवल २ लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का नियमित रूप से इस्तेमाल करते हैं, वहीँ अमरीका में दस में से तक़रीबन ७ लोग ऐसा करते हैं. डिजिटल इंडिया के तहत भ���रत सरकार की प्राथमिकता अधिक से अधिक लोगों के वेब से जोड़ने का रहा है. इस दिशा में काफी हद तक सफलता भी मिली हैं. २५००००  ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा गया है. भारत की पहली बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली के रूप में आधार का इकोसिस्टम तैयार कर लिया गया है. इससे मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाइन बैंकिंग  और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (लाभुक को सीधे खाते  में भुगतान) काफी हद तक आसान हुआ है. गवर्नेंस में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने mygov.in नमक प्लेटफार्म भी विकसित किया है. अब तक ४० लाख लोग इस पर रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं. लगभग १८ लाख लोगो ने अपने विचार इस पर साझा किये हैं और तकरीबन साढ़े तीन करोड़ कमेंट इस पर आ चुके हैं. भारत में इंफ्रास्ट्रचर को बेहतर करने की दिशा में ये कदम मील का पत्थर साबित हुए हैं. समय - समय पर पीएमओ की  और से दूसरे मंत्रालयों को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर सजग रहने के सलाह दी गयी है. कुछ मंत्रालय इस मामले में काफी एक्टिव भी रहे हैं उदहारण के तौर पर रेलवे (सुरेश प्रभु / पीयूष गोयल) , विदेश मंत्रालय (सुषमा स्वराज) और पीडीएस (रामविलास पासवान) का मंत्रालय। पर अधिकतर मंत्रालयों ने अपने सोशल मीडिया खातों को सिद्दत से अपडेट करने में रुचि नहीं दिखाई हैं.  ये निराशा की बात हैं, ऐसे समय में जब सरकार का मुखिया सोशल मीडिया पर इतना एक्टिव हैं. गंभीर मुद्दों पर चुप्पी हैरान करने वाला  सामान्य तौर पर ऐसा देखा जा रहा है की विभिन्न मंत्रालयों के ट्विटर अकाउंट जनहित में सवाल पूछे जाने पर और आलोचना किये जाने पर आश्चर्यजनक रूप से खामोश हो जाते हैं. खुद प्रधानमंत्री मोदी जो लगभग हर दिन ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं, ने दादरी घाटना के बाद दस दिनों चुप्पी साध रखी थी. दादरी में एक युवक को गो हत्या शक में पीट पीट कर मार डाला गया था. सोशल मीडिया पर अपने आलोचकों को ब्लॉक करने और उचित सवाल के जवाब देने में कतराने से निश्चित तौर पर सरकार की साख और विश्वाश गिरावट लाता है. किसी मंत्री का स्टेशन पर बेबी diapers से संबंधित ट्वीट करना  और किसी एक्सीडेंट के मामले में सोशल मीडिया पर खामोश रह जाना. धार्मिक उन्माद के समय में जब लोगो को नेताओं से प्रतिक्रिया की उम्मीद होती है, किसी नेता द्वारा चुप रह जाना सरकार की साख पर जरूर ही बट्टा लगाता है. सूचनाओं के आदान - प्रदान के मामले में भी सजग नहीं सरकार सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थंति के साथ ही मोदी साकार के मंत्रालय जरूरी सूचनाओं के आदान - प्रदान के मामले भी कमतर साबित हुए हैं. २०१५ में चेन्नई में बाढ़  के कारण हज़ारों  लोग बेघर हो गए. लगभग ५०० लोगो की मौत हो गयी. इस विपदा की घडी में भी सिविल सोसाइटी की और से  लोगो को जरूरी सूचना पहुंचाने के लिए नेटवर्क तैयार किया गया जबकि ये काम समय रहते सरकार की ओर से किया जाना चाहिए था. इसके साथ ही कई सरकारी वेबसाइट पर आंकड़े अपडेट ही नहीं किये जाते या पुराने आंकड़े पड़ोस दिए जा रहे हैं. निराशा की एक और वजह यह भी है की सरकार को यह भी कतई बर्दाश्त नहीं की उसके अंदर का कोई व्यक्ति उसके सही या गलत कदम पर कोई नकारात्मक टिपण्णी करे हाल ही में सिविल सेवा के अधिकारिओं के लिए एक सोशल मीडिया कोड ऑफ़ कंडक्ट जारी किया गया था, जो अपने आप में ही आधा अधूरा था. भक्तों की ओर से पड़ोसा जा रहा ऑनलाइन कचड़ा  सरकारी तंत्र के सोशल मीडिया के  इस्तेमाल पर सामान विचाररधारा के पार्टियों और ऐसे लोग के जिन्हे हम अंध भक्त सकते हैं वे भी खासा प्रभाव डालते हैं. राइट, लेफ्ट या किसी और विचारधारा की आड़ में सोशल मीडिया पर हाल के दिनों में इतना कचड़ा पड़ोसा गया है कि  वहां किसी मामले में स्वस्थ बहस की सम्भावना ही समाप्त हो गयी है. दुर्भाग्य की बात ये है की ऐसा पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से किया जा रहा है. सरकार से उम्मीद  लोकतान्त्रिक सरकारों से सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर मुख्य रूप से दो उम्मीद की जानी चाहिए पहला उचित विनियमन और बेहतरीन सेवा के प्रावधान। भारत सरकार इन दोनों ही मामलो में विफल साबित होती दिख रही है. ग्लोबल कंपनियों द्वारा डेटा चोरी के ताज़ा मामले सच को बयां कर रहे हैं. एक विनियामक के रूप में सरकार को चाहिये वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्र को बनाये रखते हुए सोशल मीडिया पर पडोसी जानी वाली सामग्री का बिना कोई पक्षपात किये सम्मानजनक स्तर बनाये रखे. नियामक के रूप में मोदी प्रशासन का काम अधिकारिओं की इच्छाशक्ति में कमी और ट्रेनिंग के आभाव में काफी निराशाजनक रहा है. दूसरी तरफ एक डिजिटल सेवा प्रदाता के रूप में सरकार को अपने ऑनलाइन यूजर को एक ऑनलाइन सिटीजन मानते हुए आलोचना की स्थिति में भी उसके साथ यथोचित व्यवहार करना चाहिए। निश्चित तौर पर व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन माध्यमों और सोशल मीडिया का बहुत ही प्रभावशाली इस्तेमाल किया है, पर उनके सरकार के मुखिया रहते पूरी सरकार के बारे में आज के समय में ऐसा नहीं कहा जा सकता हैं, ये दुर्भाग्यपूर्ण है. By : Kumar Vivek
Pic courtsey : www.yourstory.com
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rocketnews · 7 years
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माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों का वर्णन
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rocketnews · 7 years
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Maa Durga Ke Nau roopon ka varnan
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rocketnews · 7 years
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हवाई यात्रा के दौरान बदतमीज़ी करने पर अब ये सजा मिलेगी !
दुनिया में पहली बार भारत में ऐसे नियम जारी किये गए हवाई यात्रा पर लग सकता है दो साल का प्रतिबन्ध नई नज़र डेस्क  नागरिक उड्यन मंत्रालय ने आज हवाई यात्रा के दौरान यात्रियों के द्वारा अभद्र और परेशानी पैदा करने वाले व्यवहार पर नियंत्रण के लिये नियम जारी किये। मीडिया से बातचीत में नागिरक विमानन मंत्री श्री पी. अशोक गजपति राजू ने कहा कि नये नियमों की मदद से ऐसे अभद्र यात्रियों की एक राष्ट्रव्यापी सूची तैयार की जा सकेगी। उन्होंने कहा भारत द्वारा उड़ान भरने से प्रतिबंधित व्यक्तियों की सूची तैयार करना दुनिया में इस तरह का पहला कदम है। सुरक्षा सुनिश्चित करने की सरकार की प्रतिबद्धता पर बल देते हुये श्री राजू ने कहा कि इस सूची का विचार केवल सुरक्षा खतरे पर नहीं बल्कि यात्रियों, विमान कर्मियों और विमान की सुरक्षा की चिंता पर आधारित है। डीजीसीए ने इसके लिये नागर विमानन आवश्यकता ( अभद्र यात्रियों से निपटना: सीएआर सेक्शन 3, सीरीज -एम, खण्ड VI) के प्रासंगिक नियमों में बदलाव किया है ताकि हवाई यात्रा के दौरान अभद्रता करने वाले यात्रियों से निपटा जा सके। यह संशोधन 1963 के टोक्यो समझौते के प्रावधानों के अनुसार है। संशोधित नियम हवाई यात्रा के दौरान अभद्र यात्रियों से निपटने से संबंधित हैं। हवाई अड्डों पर यात्रियों के अभद्र व्यवहार से निपटना प्रचलित दण्ड कानूनों के अनुसार सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी रहेगा। संशोधित नियम सभी भारतीय एयरलाइनों पर लागू होगा जिसमें सूचित एवं अनुसूचित एवं ढुलाई सेवायें शामिल हैं, यह भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय यात्रियों दोनों के मामलों में लागू होगा। 1963 के टोक्यो समझौते के अनुसार यह नियम विदेशी एयरलाइन्स पर भी लागू होगा। इस मौके पर नागर विमानन राज्य मंत्री श्री जयंत सिन्हा ने कहा कि नये नियम सभी संबंधित पक्षों से व्यापक बातचीत के बाद तैयार किये गये हैं। इनका उद्देश्य हवाई यात्रा के दौरान यात्रियों, विमान चालक दल और एयरलाइन के हितों की सुरक्षा करना है। नये नियमों में अभद्र व्यवहार के तीन स्तर परिभाषित किये गये हैं, पहले स्तर में मौखिक अभद्रता शामिल है जिसमें 3 महीने तक के प्रतिबंध का प्रावधान है; दूसरे स्तर में शारीरिक रूप से भी अभद्रता शामिल है जिसके लिये 6 महीने का प्रतिबंध हो सकता है, तीसरे स्तर में जीवन को जोखिम में डालने वाली अभद्रता है जिसके लिये कम से कम प्रतिबंध 2 वर्ष का है। अभद्रता की शिकायत पायलट-इन-कमाण्ड के द्वारा दर्ज करायी जायेगी जिसकी जांच विमान कंपनी द्वारा गठित एक आंतरिक समिति द्वारा की जायेगी। इस समिति के अध्यक्ष एक सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश होंगे और इसमें विमान कंपनियों, यात्री संगठनो, उपभोक्ता संगठनों के प्रतिनिधि और जिला उपभोक्ता परिषद के सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल होंगे। नियमों के मुताबिक समिति को 30 दिनों में फैसला लेना होगा और यात्री पर प्रतिबंध की अवधि तय करनी होगी। जांच पर फैसला आने की पहले की अवधि के दौरान संबंधित एयरलाइन उस यात्री के उड़ान भरने पर रोक लगा सकेगी। और अभद्रता की पुनरावृत्ति पर दण्ड की अवधि पहले से दुगुनी होगी। एयलाइन्स को यह सूची साझा करनी होगी और यह डीजीसीए की वेबसाइट पर भी उपलब्ध होगी। लेकिन दूसरी विमान कंपनियां इसको मानने के लिये बाध्य नहीं होंगी। इस सूची में दो तरह के यात्री होंगे, पहला जिन्हें अवधि विशेष के लिये प्रतिबंधित किया गया है और दूसरा जिन्हें गृहमंत्रालय के मुताबिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा माना गया है। दूसरी सूची वेबसाइट पर जारी नहीं की जायेगी। संशोधित नियमों में प्रतिबंध के खिलाफ अपील का भी प्रावधान है। पीड़ित व्यक्ति (जिसमें गृहमंत्रालय से प्रतिबंधित व्यक्ति शामिल नहीं हैं), प्रतिबंध के 60 दिनों के अंदर नागर विमानन मंत्रालय द्वारा अपीलीय अधिकरण के सामने अपील दाखिल कर सकेंगे, इस समिति में उपभोक्ता समूहों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
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rocketnews · 7 years
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BRICS 2017 Highlights : from Chinese perspective
XIAMEN, Sept. 5 (Xinhua) -- President Xi Jinping on Tuesday said healthy and stable relations between China and India are in line with the fundamental interests of their people. China is willing to work with India on the basis of the Five Principles of Peaceful Coexistence to improve political mutual trust, promote mutually beneficial cooperation, and push Sino-Indian ties along the right track, he said. Xi made the remarks when meeting with Indian Prime Minister Narendra Modi in the southeastern city of Xiamen after the ninth BRICS summit. The Five Principles of Peaceful Coexistence are: mutual respect for sovereignty and territorial integrity, mutual non-aggression, non-interference in each other's internal affairs, equality and mutual benefit, and peaceful coexistence. The principles were endorsed by China and India in the 1950s, and have been widely accepted as norms for relations between countries. Noting that the two neighboring countries are the world's two largest emerging market and developing countries, Xi told Modi that healthy and stable bilateral relations are also in line with the expectations of the region and the international community. For his part, Modi congratulated Xi on a successful BRICS summit. He said the world is undergoing fast changes and the BRICS countries need to step up cooperation under such circumstances, adding that the Xiamen summit played a key role in this regard. Xi and Modi's meeting came following a military stand-off lasting more than two months after more than 270 armed Indian troops with two bulldozers crossed the boundary in mid-June into the Dong Lang (Doklam) area in the Chinese territory to obstruct infrastructure construction. On Aug. 28, China confirmed that India had withdrawn personnel and equipment from Dong Lang, and said its armed forces would strengthen patrolling and defense of the area to resolutely safeguard the country's sovereign security.
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