प्रमुख तिथियाँ
कैबिनेट मिषन का भारत आगमन- 24 मार्च, 1946
संविधान सभा की प्रथम बैठक-9 दिसम्बर 1946
डाॅ राजेन्दर प्रसाद संविधान सभा के स्थायी सभापति बने- 11 दिसंबर, 1946
जवाहर लाल नेहरु द्वारा संविधान सभा में ’उद्देष्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत - 13 दिसंबर, 1946
भारत स्वतंत्र - 15 अगस्त, 1947
प्रारुप समिति का गठन - 29 अगस्त, 1947
संविधान सभा में संविधान को अंगीकृत अधिनियमित व आत्मार्पित किया गया - 26 नवंबर, 1949
राष्ट्रगान अपनाया गया (जन-गन-मन) - 24 जनवरी, 1950
प्रथम राष्ट्रपति का चुनाव - 24 जनवरी, 1950
निर्वाचन आयोग का गठन - 25 जनवरी, 1950
भारत का संपूर्ण संविधान लागू हुआ। - 26 जनवरी, 1950
भारतीय गणतंत्र की स्थापना - 26 जनवरी, 1950
राजचिन्ह अपनाया गया - 26 जनवरी, 1950
योजना आयोग का गठन - 15 मार्च, 1950
सर्वप्रथम राष्ट्रपति शासन लागू - 20 जून, 1951 (पंजाब राज्य मे)ं
प्रथम आम चुनाव - 1951-1952
संविधान के तहत् राष्ट्रपति का विधिवत चुनाव - मई, 1952
पंचायती राज का विधिवत प्रारंभ - 2 अक्टूबर, 1952
प्रथम बार राष्ट्रपति आपातकाल (अनु.352) की उद्घोषणा - 26 अक्टूबर, 1962
प्रथम बार लोकसभा भंग - 1970
प्रथम बार मध्यावधि चुनाव - 1971
आंतरिक अषांति के कारण आपातकाल लागू - 26 जून, 1975
वन संरक्षण - 1980
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम - 1986
बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम - 1986
73 वाँ संविधान संषोधन अधिनियम लागू - 24 अपै्रल, 1993
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मषीन म्टड का प्रयोग - नवंबर, 1998
म्टड से किसी राज्य के संपूर्ण लोकसभा चुनाव - June, 1999 (गोवा राज्य में )
सूचना के अधिकार का अधिनियम प्रारंभ - 12 अक्टूबर, 2005
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम प्रारंभ (भारत के जम्मू-कष्मीर राज्य को छोड़कर संपूर्ण देष में लागू) - 2 अक्टूबर, 2005
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम संपूर्ण देश में प्रारंभ - 1 अपै्रल, 2008
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संविधान संशोधन अनु0 368:-
भारतीय संविधान के भाग 20 व अनु0 368 में कहा गया है कि आवश्यकता पडने पर संविधान में कुछ नया जोडा जा सकता है। या पुराना हटाया जा सकता है। या परिवर्तन किया जा सकता है।
पहला संशोधन (1951) - इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से सम्बन्धित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने सम्बन्धी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया। साथ ही, इस संषोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोडा गया, जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायलय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्ग परीक्षा नही की जा सकती है।
दूसरा संशोधन (1952) - इसकेे अंतर्गत 1951 की जनगणना के आधार पर लोकसभा में प्रतिनिधित्व को पुनव्र्यवस्थित किया गया।
चौथा संशोधन (1955) - इसके अंतर्गत व्यक्तिगत संपŸिा को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थ्तिि में , न्यायलय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती।
7वाँ संशोधन (1956) - इस संषोधन द्वारा भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पहले के तीन श्रेणियों (अ, ब , स) में राज्यों केे वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केन्द्र एवं राज्य के विधान मण्डलों में सीटों को पुनव्र्यवस्थित किया गया।
9 वाँ संशोधन (1960) - इसकेे द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्ताें के अनुसार बेरूबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान कोे प्रदान कर दिये गये।
10वाँ संशोधन (1961) - इसके अंतर्गत पुर्तगाली उपनिवेष के अंतः क्षेत्रों दादर एवं नगर हवेली को भारत मेंे शामिल कर उन्हें केन्द्र शासित प्रदेष का दर्जा दिया गया।
12वाँ संशोधन (1962) - इसके अतंर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संषोधन कर गोवा, दमन एवं दीव को भारत में केन्द्रषासित प्रदेष के रूप में शामिल किया गया।
13वाँ संशोधन (1962) - इसके अंतर्गत नगालैंड के सम्बन्ध में विषेष प्रावधान अपनाकर उसे एक पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
14वाँ संशोधन (1963) - इसके द्वारा केन्द्रषासित प्रदेष पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया। साथ ह���, इसके द्वारा हिमाचल प्रदेष, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमण एवं दीव एवं पुदुचेरी केन्द्रषासित प्रदेषों में विधानपालिका एवं मंत्रिपरिषद् की स्थापना की गई।
15वाँ संशोधन (1963) - उच्च न्यायलय के न्यायाधीषों की सेवामुक्ति की आयु 60 से बढाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा अवकाष प्राप्त न्यायाधीषों की उच्च न्यायलय में नियुक्ति से सम्बन्धित प्रावधान बनाए गए।
16वाँ संशोधन (1963) - इसके द्वारा देष की सम्प्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के प्रावधान रखे गये। साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत ‘‘मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखण्डता को बनाए रखूँगा।’’ जोडा गया।
18वाँ संशोधन (1966) - पंजाब का भाषायी आधार पर पुनगर्ठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिन्दी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया। पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेष को दे दिए गए तथा चंडीगढ को केन्द्रषासित प्रदेष बनाया गया।
21वाँ संशोधन (1967) - सिन्धी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल किया गया।
24वाँ संशोधन (1971) - संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया कि वह संविधान के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं, संषोधित कर सकती है।
27वाँ संशोधन (1971) - पूर्वोŸार के मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेष को केन्द्रषासित प्रदेषों के रूप में स्थापित किया गया।
29वाँ संशोधन (1972) - केरल भू-सुधार अधिनियम, 1969 तथा केरल भू-सुधार अधिनियम, 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया।
31वाँ संशोधन (1973) - लोकसभा के सदस्यों की संख्या बढाकर 525 से 545 कर दी गई तथा केन्द्रषासित प्रदेषों का प्रतिनिधित्व 25 से घटाकर 20 कर दिया गया।
36वाँ संशोधन (1975) - सिक्किम को भारत का 22वाँ पूर्ण राज्य बनाया गया।
37वाँ संशोधन (1975) - आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केन्द्रषासित प्रदेषों के प्रषासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेष जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया।
39वाँ संशोधन (1975) - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोकसभाध्यक्ष के निर्वाचन सम्बन्धी विवादों को न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया।
41वाँ संशोधन (1976) - राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा मुक्ति की आयु सीमा 60 से बढाकर 62 कर दी गई, पर संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा- निवृŸिा की अधिकतम आयु 65 वर्ष रहने दी गई।
42वाँ संशोधन(1976) -
इस संविधान संषोधन को ‘मिनी संविधान’ भी कहा जाता है। इसके द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन लाए गए, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित है -
संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘अखण्डता’ आदि शब्द जोड़े गए।
सभी नीति-निर्देषक सिद्वान्तों की मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिष्चित की गई।
संविधान में 10 मौलिक कव्यों को अनुच्छेद 51 (क), (भाग 4 क) के अंतर्गत जोड़ा गया।
इसके द्वारा संविधान को न्यायिक परीक्षण से मुक्त किया गया।
लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि को 5 से 6 वर्ष कर दिया गया।
इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि किसी केन्द्रीय कानून की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के कानून की वैधता का उच्च न्यायालय ही परीक्षण करेगा। साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया कि किसी संवैधानिक वैधता के प्रष्न पर 5 से अधिक न्यायाधीषों की बेंच द्वारा दो-तिहाई बहुमत से निर्णय दिया जाना चाहिए और यदि न्यायाधीषों की संख्या 5 तक हो तो निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए।
इसके द्वारा वन सम्पदा, षिक्षा, जनसंख्या-नियंत्रण आदि विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची के अंतर्गत कर दिया गया।
इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् एवं उसके प्रमुख प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
44वाँ संषोधन (1978) -
इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए ‘आंतरिक अषांति’ के स्थान पर ‘सैन्य विद्रोह’ का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति सम्बन्धी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग न हो।
इसके द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटा कर विधिक (कानूनी) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया ।
लोकसभा तथा राज्य विधान सभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई।
उच्चतम न्यायलय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई।
52वाँ संषोधन (1985) - इस संषोधन के द्वारा राजनैतिक दल-बदल कर अंकुष लगाने का लक्ष्य रखा गया।
55वाँ संषोधन (1986) - इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेष को राज्य बनाया गया।
58वाँ संषोधन (1987) - इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिन्दी संस्करण प्रकाषित करने के लिए अधिकृत किया गया।
61वाँ संषोधन (1989) - इसके द्वारा मतदान के लिए आयु सीमा 21 से घटाकर 18 लाने का प्रस्ताव था।
65वाँ संषोधन (1990) - इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संषोधन करके अनुसूचीत जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है।
69वाँ संषोधन (1991) - दिल्ली को राष्ट्रीय क्षेत्र बनाया गया तथा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद् का उपबंध किया गया।
70वाँ संषोधन (1992) - दिल्ली और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया।
73वाँ संषोधन (1992-93) - इसके अंतर्गत संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी। इसमें पंचायती राज सम्बन्धी प्रावधानों को जोडा गया।
84वाँ संषोधन (2001) - इस संषोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है।
86वाँ संषोधन (2002) -
इस संषोधन अधिनियम द्वारा देष के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःषुल्क षिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने सम्बन्धी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान जोड़ा गया है।
इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 तथा अनुच्छेद 51 (क) में संषोधन किए जाने का प्रावधान है।
87वाँ संषोधन (2003) -
परिसीमन में जनसंख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है।
91वाँ संषोधन (2003) -
दल बदल व्यवस्था में संषोधन, केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता, केन्द्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद् के सदस्य संख्या क्रमषः लोकसभा तथा विधानसभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिषत होगा (जहाँ सदन की सदस्य संख्या 40-40 है, वहाँ अधिकतम 12 होगी।)
92वाँ संषोधन (2003) -
संविधान की 8वीं अनुसूची में बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली भाषाओं का समावेष किया गया। (कुल 22 भाषाऐँ)
95वाँ संषोधन (2010) -
इस संषोधन द्वारा अनुच्छेद 334 मेें वर्णित लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में अनुसूचीत जाति और अनुसूचीत जनजाति के लिए स्थानों के आरक्षण की समय सीमा 60 वर्ष से बढाकर 70 वर्ष कर दिया गया है। साथ ही आंग्ल भारतीयों के नाम निर्देषन के प्रावधान को भी 10 वर्ष बढा दिया गया है। अब यह प्रावधान वर्ष 2020 तक लागू रहेगा।
97वाँ संषोधन (2012) -
इस संविधान संषोधन के द्वारा संविधान के भाग-3 (मूल अधिकार) के अनुच्छेद 19(1)(ग) में ‘सहकारी समितियाँ’ शब्द जोड़ा गया है।
संविधान के भाग-4 (राज्य के नीति निदेषक तत्व) में अनुच्छेद 43ख जोडा़ गयाहै। नये अनुच्छेद के अनुसार सहकारी समितियों के गठन, नियंत्रण व प्रबंधन को विकसित करने का प्रयास करना राज्य का कर्Ÿाव्य होगा।
इस प्रकार 97वें संविधान संषोधन अधिनियम द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक मान्यता प्रदान कर उनके गठन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया है।
99वाँ संषोधन (2014) -
इस संविधान संषोधन अधिनियम ���्वारा उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीषों की नियुक्ति की काॅलेजियम प्रणाली के स्थान पर ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का प्रावधान किया गया है।
1993 में उच्च न्यायलय ने उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिये काॅलेजियम प्रणाली शुरू किया थी। इसमें देष के 5 शीर्ष जज शामिल होते हैं।
नोट - सर्वोच्च न्यायलय की पाँच सदस्यीय पीठ ने उच्च न्यायपालिका में न्यायधीषों की नियुक्ति के दो दषकों पुराने काॅलेजियम प्रणाली के स्थान लेने वाले ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ को 16 अक्टूबर, 2015 को असवैंधानिक घोषित कर दिया।
न्यायधीष जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वोच्च न्यायलय और 24 अन्य उच्च न्यायलयों में न्यायधीषों की नियुक्ति की 22 वर्ष पुराने काॅलेजियम सिस्टम को ही मान्य बताया। इससे संविधान का अनुच्छेद 124ए (1) असंवैधानिक हो गया है।
100वाँ संषोधन (2015) - भारत व बांग्लादेष के बीच भूखंडों की अदला-बदली का भूमि सीमा समझौता का प्रावधान किया गया। भूमि समझौते के अमल में आने से अवैध रूप से बांग्लादेषियों के भारत में घुसने और बसने का मामला हल हो सकेगा। भारत की 111 बस्तियाँ बांग्लादेष को मिलेगी जबकि बांग्लादेष 51 बस्तियाँ भारत को सौंपेगा।
http://advancestudytricks.blogspot.com/2020/04/0-368-constitution-amendment-article-368.html
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स्थानीय स्वशासन राज्य सूची का विषय है।
प्रकार - दो
1. ग्रामीण स्वशासन
2. शहरी स्वशासन
स्थानीय स्वशासन का जनक - लार्ड रिपन
1882 ई. में लार्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के संदर्भ में एक प्रस्ताव पेश किया जिसे स्थानीय स्वशासन का मेग्नाकार्टा कहा जाता है।
शासन काल शासन की छोटी ईकाई शासन का मुख्या
बौद्ध कालीन ग्राम ग्रामयोजक
गुप्तकाल ग्राम ग्रामीक/ग्रामणी
मुगलकाल ग्राम मुकदम
आधुनिक काल ग्राम संरपच
लार्ड मेयों ने 1870 ई. में राज्य प्रशासन को निम्न लिखित तीन विषयों - शिक्षा, स्वास्थ्य व पंचायत राज पर आर्थिक संसाधन उपलब्ध करावायें जाये।
भारत में आर्थिक/वित्तीय विक्रेन्दीकरण का जनक लार्ड मेया को माना जाता है।
जे.एल. नेहरू ने स्थानीय स्वशासन को प्रजातंत्र का आधार स्तम्भ तथा लोकतंत्र कि प्रथम पाठशाला माना है जहां से स्थानीय लोग राजनीति सीखना प्रारम्भ करते है।
लोकतंत्रात्मक विकेन्द्रीकरण स्थानीय स्वशासन में निहित है।
ग्रामीण स्वशासन/पंचायती राज -
अनुच्छेद 40 - राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करेगा।
महात्मा गांधी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक - My
picture of free India में ग्राम स्वराज्य कि कल्पना कि थी।
पंचायती राज से सम्बंधित प्रमुख समितियां -
2 अक्टूबर 1952 को भारत सरकार के द्वारा गांवों में विकास के लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम चलाया गया जो असफल रहा।
अध्यक्ष - नरेन्द्र कुमार
सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता के बाद भारत सरकार ने बलवंत राय मेहता समिति का गठन (1957) किया।
प्रधानमंत्री - जवाहरलाल नेहरू
रिपोर्ट - त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था प्रारम्भ कि जायें।
ग्राम स्तर - ग्राम पंचायत
खण्ड स्तर - पंचायत समिति
जिला स्तर - जिला परिषद्
नोट - इस समिति कि सिफारिस पर भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 1959 को भारत में सर्वप्रथम राजस्थान राज्य के नागौर जिले के बगदरी गांव में पंचायती राज व्यवसथा को प्रारम्भ किया। जिसका उद्घाटन - जे.एल. नेहरू ने किया।
नोट - 2 अक्टूबर 2009 को पंचायती राज व्यवस्था के 50 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष पर बगदरी गांव में पंचायती राज स्मारक/मेमोरेण्डम कि स्थापना की जिसका उद्घाटन - सोनिया गांधी ने किया।
11 अक्टूबर 1959 को आंध्रप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था को प्रारम्भ करने वाला दुसरा राज्य था।
पंचायती राज का जनक - बलवंतराय मेहता।
आधनिक पंचायती राज का जनक - राजीव गांधी।
राजस्थान में पंचायती राज का जनक- मोहनलाल सुखाड़िया।
अशोक मेहता समिति - 1977
पी.एम. मोरार जी देसाई
रिपोर्ट - द्विस्तरीय पंचायती राज शुरू कि किया जाये।
जिला स्तर - जिला परिषद
ग्राम स्तर - मण्डल पंचायत
जी.वी.के. राॅव समिति - 1985
प्रधानमंत्री - राजीव गांधी
रिपोर्ट - ग्रामीण विकास व गरीबी उन्मूलन कि सिफारिस।
चार स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था प्रारम्भ कि जाये।
राज्य स्तर - राज्य विकास परिषद
जिला स्तर - जिला परिषद
खण्ड स्तर - पंचायत समिति
ग्राम स्तर - ग्राम पंचायत
नोट: पं. बंगाल में वर्तमान में चार स्तरीय पचायती राज व्यवसथा है।
एल.एम. सिंघवी समिति- 1986
पी.एम. राजीव गांधी
रिपोर्ट - पंचायती राज व्यवथा को संवैधानिक मान्यता दि जाये।
पंचायत राज व्यवस्था को वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाना।
पी.के. थुगंन - 1988,
पी.एम. राजीव गांधी
रिपोर्ट - पंचायती राज व्यवस्था के नियत कालीन चुनाव (5 वर्ष) होने चाहिए।
-पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया जाये।
नोट: 1989 ई. में राजीव गांधी सरकार के समय पंचायती राज और शहरी स्वशासन से जुडे हुये 64वां व 65वां
संविधान संसोधन लोकसभा में पारित किया गया परन्तु राज्य सभा में पारित नहीं हुये।
पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के समय - 1992 में
73वां संविधान संसोधन, 74वां संविधान संसोधन किया गया।
73वां - 1992 - 11वीं अनुसूचि - पंचायती राज - भाग 9 - विषय 29 - अनुच्छेद 243 व 243 ए से ओ
नोट - पंचायती राज अधिनियम 24 अप्रेल 1993 को भारत में लागु किया गया।
पंचायती राज अधिनियम 23 अप्रेल 1994 को राजस्थान में लागु किया गया।
नोट: पंचायती राज दिवस 24 अप्रेल को मनाया जाता है।
संवैधानिक मान्यता प्राप्ति के बाद पंचायती राज अधिनियम को लागु करने वाला भारत का पहला राज्य ‘मध्यप्रदेश’
अनुच्छेद 243 - परिभाषाऐं
अनुच्छेद 243A ग्राम सभा
अनुच्छेद 243C पंचायतों का गठन
अनुच्छेद 243D आरक्षण
अनुच्छेद 243E कार्यकाल
अनुच्छेद 243F योग्यता
अनुच्छेद 243I वित्त आयोग
अनुच्छेद 243K राज्य निर्वाचन आयोग
वर्तमान मंे राजस्थान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त प्रेमसिंह मेहरा
राजस्थान में पंचायत राज से सम्बंधित प्रमुख गठित समितियां सादिक अली समिति - 1964
सी.एम. मोहनलाल सुखाड़िया
रिपोर्ट - ग्राम सभा व वार्ड सभा को संवैधानिक दर्जा दिया जाये।
गिरधारी लाल व्यास कमेटी - 1973
सी.एम. हरिदेव जोशी
रिपोर्ट - ग्राम पंचायत में ग्राम सेवक का पद सृजित किया जायें।
नाथुराम मिर्धा समिति - 1993
मुख्यमंत्री - भैरूसिंह शेखावत
इस समिति कि सिफारिश पर राजस्थान में 73वें संविधान संसोधन को लागु किया।
गुलाबचंद कटारिया समिति - 2009
मुख्यमंत्री - अशोक गहलोत
रिपोर्ट - इस समिति ने यह कहा कि जिला प्रबन्ध समिति (आयोजना समिति) का अध्यक्ष कलेक्टर को हटाकर जिला प्रमुख को मनाया जाये।
वी.एस. व्यास कमेटी - 2010
सी.एम. अशोक गहलोत, इस कमेटी कि सिफारिश पर राज. सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 2010 में पंचायत राज को 5 नये कार्य दिये गये। जो निम्न है -
प्राथमिक शिक्षा
कृषि
सामाजिक न्याय व अधिकारिता
महिला एवं बाल विकास
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य
नोट: राजस्थान में वर्तमान में पंचायती राज के पास कुल 23 कार्य (विषय) है।
राजस्थान में पंचायती राज
1928 बीकानेर राज. में पहली देशी रियासत थी जिन्होंने ग्राम पंचायत अधिनियम बनाया।
1949 राज. में पंचायती राज विभाग कि स्थापना कि गई।
1953 राज. ग्राम पंचायत अधिनियम बनाया गया।
राजस्थान में पंचायती राज के सर्वप्रथम चुनाव 1960 में हुये। राजस्थान में पंचायती राज कि विशेषताएं -
वर्तमान में त्रिस्तरीय पचायती राज व्यवस्था है -
जिला परिषद - उच्च स्तर - 33 (वर्तमान)
पंचायत समिति - मध्यम स्तर - 295 (वर्तमान)
ग्राम पंचायत - निम्न स्तर - 9891 (वर्तमान)
गठन
ग्राम पंचायत न्यु जनसंख्या 3000 न्यु सदस्य 9, अतिरिक्त सदस्य 1000 = +2
पंचायत समिति न्यु जनसंख्या 1 लाख, न्यु सदस्य 15, अतिरिक्त सदस्य 15000 = +2
जिला परिषद न्यु जनसंख्या 4 लाख, न्यु सदस्य 17, अतिरिक्त सदस्य 1 लाख = +2
निवार्चन प्रणाली -
जिला परिषद Election system
शपथ - पीठासीन अधिकारी (Retarning Officer)
ग्राम पंचायत - Teacher
पचायत समिति - RAS
जिला परिषद - IAS
त्यागपत्र -
वार्ड पंच व सरपंच - खण्ड विकास अधिकारी
पंचायत समिति सदस्य - प्रधान
प्रधान - जिला प्रमुख
जिला परिषद सदस्य - जिला प्रमुख
जिला प्रमुख - सम्भागीय आयुक्त
प्रशासनिक अधिकारी -
ग्राम पचायत - ग्राम सेवक
पंचायत समिति - बी.डी.ओ. (खण्ड विका अधिकारी)
जिला परिषद - सी.ई.ओ. (मुख्य कार्यकारी अधिकारी)
बैठक
ग्राम पचायत - 15 दिन में 1 बार
अध्यक्षता - सरपंच
बैठक में भाग - वार्ड पंच
पंचायत समिति
प्रत्येक माह में 1 बार
अध्यक्षता - प्रधान
भाग - सदस्य (ब्लाक मैबर)
जिला परिषद - प्रत्येक 3 माह में 1 बार
अध्यक्षता - जिला प्रमुख
भाग - जिला परिषद सदस्य
ग्राम सभा - बैठक वर्ष में चार बार
26 जनवरी
1 मई
15 अगस्त
2 अक्टूबर
अध्यक्षता - सरपंच
सदस्य - ग्राम पंचायत के सभी मतदाता
नोट - भारत में ग्राम सभा एक मात्र प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण हेै
वार्ड सभा - वर्ष 2 बैठक (कभी भी)
अध्यक्षता - वार्ड पंच
सदस्य - वार्ड के सभी मतदाता
पंचायती राज कि सबसे छोटी ईकाई वार्ड सभा
पदेन सदस्य -
पंचायत समिति - पंचायत समिति में सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच
पंचायत समिति के क्षेत्र का विधान सभा सदस्य।
जिला परिषद -
जिले में सभी पंचायत समितियों के प्रधान व जिला परिषद क्षेत्र के लोकसभा व विधानसभा सदस्य।
पंचायत राज के प्रमुख प्रावधान
योग्यता - न्यूनतम आयु - 21 वर्ष
कार्यकाल - 5 वर्ष
शैक्षणिक योग्यता -
वार्ड पंच - 5वीं पास,
सरपंच - 8वीं पास,
पंचायत समिति व जिला परिषद सदस्य - 10वीं पास
नोट: नवम्बर 1995 के बाद जिस व्यक्ति के तीसरी सन्तान पैदा होती है वह इन चुनावों के लिए अयोग्य है।
आरक्षण - एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. को क्षेत्र कि जनसंख्या के आधार पर तथा महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण
नोट: महिलाओं का आरक्षण चक्राकार है।
पद से हटाने कि प्रक्रिया - दो वर्ष बाद ही अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। एक बार पारित न होने पर पुनः 1 वर्ष बाद लाया जाता है। प्रस्ताव पारित करने के लिए 3/4 बहुमत कि आवश्यता होती है।
चुनाव -
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा करवाये जाते है। जिसकी अधिसूचना राज्यपाल के द्वारा जारी कि जाती है।
वर्तमान में मुख्य राज्य निर्वाचन आयुक्त - प्रेमसिंह मेहरा
वेतन - राज्य वित्त आयोग
लोक सभा व विधानसभा का सदस्य पंचायती राज का चुनाव नहीं लड़ सकता।
व्यक्ति एक साथ किसी एक जगह से ही पंचायत राज का चुनाव लड़ सकता।
जो व्यक्ति (ग्राम पंचायत) जिस जगह से चुनाव लड़ता है। उस मतदाता सूची में उसका नाम होना अनिवार्य है।
1996 का पैसा अधिनियम -
सविधान के भाग 9 तथा 5वीं अनुसुचि में वर्णित क्षेत्रों पर लागु नहीं होता परन्तु संसद इन प्रावधानों को कुछ अपवादों तथा संशोधन करके उक्त क्षेत्रों पर लागु कर सकती है।
यह अधिनियम वर्तमान में 9 राज्यों में लागु है - ओडिसा, मध्यप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखण्ड, छतीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश,
ट्रिक - ओम आम खाकर रांझा बनकर छगु के साथ हिमाचल चला गया।
शहरी स्वशासन
सन् 1687 ई. को भारत में सर्वप्रथम मद्रास में नगर निगम कि स्थापना कर शहरी स्वशासन को प्रारम्भ किया।
सन् 1864 ई. को माउन्ट आबू में प्रथम नगर पालिका स्थापित करके राजस्थान में शहरी स्वशासन कि शुरूआत कि गई।
राजस्थान की प्रथम निर्वाचित नगरपालिका ब्यावर।
स्वतंत्रता के पश्चात राजस्थान में सर्वप्रथम 1951 में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम पारित करके लागु किया गया।
1959 में संशोधित नगरपालिका अधिनियम पारित करके लागु किया गया।
नोट - 74वां संविधान संशोधन (1992) केे द्वारा सविधान में अनुसूची 12 को जोड़ा गया।
उल्लेख - शहरी निकाय
भाग - 9 क
विषय - 18
अनुच्छेद 243 P (त) से 243 ZG (त छ)
नोट: शहरी स्वशासन को 1 जुन 1993 को सम्पूर्ण भारत में एक साथ लागु किया गया।
शहरी स्वशासन के निकाय -
गठन -
1. नगर पालिका - न्युनतम जनसंख्या 20,000 - 1,00,000
2. नगर परिषद - न्युनतम जनसंख्या 1,00000 - 5,00000
3. नगर निगम - न्युनतम जनसंख्या 5,00000 से अधिक
नोट: नगरपालिका व नगरपरिषद में न्युनतम सदस्य संख्या - 13
निर्वाचन प्रणाली -
नगर निगम
अध्यक्ष - मेयर/महापौर - अप्रत्यक्ष
सदस्य - वार्ड पार्षद - प्रत्यक्ष
नगर परिषद
अध्यक्ष - Chairperson/सभापति - अप्रत्यक्ष
सदस्य - वार्ड पार्षद - प्रत्यक्ष
नगर पालिका
अध्यक्ष - Chairmen/सभापति - अप्रत्यक्ष
सदस्य - वार्ड पार्षद - प्रत्यक्ष
नोट - 2014 को राजस्थान सरकार अध्यादेश के द्वारा शहरी निकायों के अध्यक्षों की निर्वाचन प्रणाली को अप्रत्यक्ष किया गया।
योग्यता - न्युनत्तम आयु 21 वर्ष
शैक्षणिक योग्यता - 10वीं पास
कार्यकाल - 5 वर्ष
आरक्षण - महिलाओं को 33 प्रतिशत
राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 2009 के द्वारा महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया।
2010 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा महिलाओं के 50 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगा दी गई।
अविश्वास प्रस्ताव
दो वर्ष बाद कुल सदस्यों के 1/3 बहुमत से प्रस्ताव पेश किया जाता है। तथा प्रस्ताव पारित करने के लिये 3/4 बहुमत कि आवश्यकता होती है। प्रस्ताव पारीत करने के बाद Right to Recall का प्रावधान है।
राजस्थान में अब तक एक बार Right to Recall का प्रयोग किया गया है।
इसका प्रयोग 2012 में मंगरोल (बारा) नगरपालिका के अध्यक्ष अशोक जैन के विरूद्ध किया गया लेकिन जनमत संग्रह अशोक जैन के पक्ष में रहा।
वर्तमान में नगरपलिका - 149
वर्तमान में नगर परिषद - 34
वर्तमान में नगर निगम - 7 (सभी संभाग मुख्यालयों पर)
प्रमुख अधिकारी -
नगरपालिका - ई.ओ.
नगर परिषद - सी.ई.ओ.
नगर निगम - कमिश्नर (आयुक्त)
नगरीय स्वशासन की अन्य संस्थाऐं -
नगर विकास न्यास
कुल संख्या - 15
नगर विकास न्यास का अध्यक्ष - राज्य सरकार नियुक्त करती है।
नगर विकास प्राधिकरण
कुल संख्या - 3
1. जयपुर 2. जोधपुर 3. अजमेर (14 अगस्त 2013)
नोट: राज. में एक मात्र छावनी मण्डल - नसीराबाद (अजमेर) जिसका अध्यक्ष कमांडिग आॅफिसर होता है।
जिला आयोजना समिति -
अध्यक्ष - जिला प्रमुख
कुल सदस्य - 25 (जिनमें 3 पदेन, 2 राज्य सरकार द्वारा मनोनित तथा 20 सदस्य जिले की ग्रामीण व नगरिय क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में जिला परिषद व नगर निकायों के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों में से निर्वाचित होते है।
अनुच्छेद - 243T आक्षरण
अनुच्छेद - 243U कार्यकाल
अनुच्छेद - 243V योग्यता
नोट - स्थानिय स्वशासन की किसी भी संस्था के अध्यक्षता पद
मध्यावधि में रिक्त होने पर अधिकत 6 माह में पुनः निर्वाचन होना आवश्यक है तथा पुनः निर्वाचित अध्यक्ष का कार्यकाल शेष अवधि के लिए होता है।
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राजस्थान उच्च न्यायालय
स्थापना - 29 अगस्त 1949 को जयपुर में कि गई।
1958 ई. में पी. सत्यनारायण राव समिति कि सिफारिश पर राजस्थान उच्च न्यायालय का मुख्यालय जोधपुर स्थानान्तरित किया गया।
1977 में राजस्थान उच्च न्यायालय कि ब्रांच/खण्डपीठ जयपुर में स्थापित कि गई।
राजस्थान उच्च न्यायालय में वर्तमान में न्यायधीशों के कुल
पद = 1 + 49 = 50
राजस्थान उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (प्रथम) = कमलकान्त वर्मा
वर्तमान में राजस्थान उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश - प्रदीप नन्दराजोग
नोट - वे उच्च न्यायालय जो एक से अधिक राज्यों के लिए काम करते हैं - कोलकता, हैदराबाद, मुम्बई, चैन्नई, चण्डीगढ़, एर्नाकुलम।
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महाधिवक्ता
उल्लेख - अनुच्छेद 165
राज्य सरकार का सबसे बड़ा व प्रथम कानुनी अधिकारी होता है।
नियुक्ति शपथ व त्यागपत्र - राज्यपाल
योग्यता - उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों के समान
कार्यकाल -राज्यपाल के प्रर्साद पर्यन्त
नोट: एकमात्र व्यक्ति जो विधान मण्डल का सदस्य न होते हुये भी उसकी कार्यवाही में भाग लेता है।
वर्तमान में महाधिक्ता - एन.एम. लोढा (नरपतमल लोढा)
राज्य की न्यायपालिका
भाग - 6 व अनुच्छेद 214 से 231 तक राज्यों के उच्च न्ययालय के बारे में प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद 214- राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
अनुच्छेद 215 - उच्व्च न्यायालय को अभिलेखिय न्यायालय कहा जाता है।
अनुच्छेद 216 - उच्च न्यायालय का गठन।
अनुच्छेद 217 - न्यायाधिशों की नियुक्ति।
अनुच्छेद 219 - न्यायाधिशों की शपथ।
अनुच्छेद 221 - न्यायाधिशों का वेतन।
अनुच्छेद 222 - किसी न्यायाधिश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण।
अनुच्छेद 223 - कार्यवाहक मुख्य न्यायाधिश की नियुक्ति।
अनुच्छेद 224 - अतिरिक्त एवं कार्यवाहक न्यायाधिशों की नियुक्ति।
अनुच्छेद 231 - दो या अधिक राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय की स्थापना।
1861 भारत परिषद अधिनियम के द्वारा 1862 ई. को भारत में सर्वप्रथम कलकता बम्बई व मद्रास में उच्च न्यायालय स्थापित किये गये।
सतवें सविधान संशोधन 1956 के द्वारा यह प्रावधान किया गया कि दो या दो से अधिक राज्यों एवम् एक संघ राज्य क्षेत्र के लिये उच्च न्यायालय की स्थापना की जा सकती है।
सम्पूर्ण भारत में वर्तमान में कुल उच्च न्यायालयों कि
संख्या = 24
23 सभी राज्यों में और 1 केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली (1966)
भारत में गठित नवीनतम उच्च न्यायालय -
मणिपुर - 25 मार्च 2013
मेघालय - 25 मार्च 2013
त्रिपुरा - 26 मार्च 2013 (सबसे नवीनतम)
अधिकार क्षेत्र कि दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय गोवाहटी (असम)
जो चार राज्यों हेतु कार्यरत है -
असम
अरूणाचल प्रदेश
नागालेण्ड
मिजोरम
न्यायाधीशों कि संख्या मे भारत का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय - इलाहबाद (यूपी)
वे उच्च न्यायालय जो एक से अधिक राज्यों के लिए काम करते है - मुम्बई, कोलकता, गुवाहटी, चेन्नई, चण्डीगढ़, एर्नाकुलम (केरल)
नोट - केन्द्रीय मंत्री मण्डल में 5 जुलाई 2016 को बाॅम्बे, मद्रास और कोलकता उच्च न्यायालय का नाम बदलकर मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता उच्च न्यायालय कर दिया।
योग्यतायें
भारत का नागरीक हो।
5 वर्षो तक एक या एक से अधिक जिला/स्तर न्यायालय में न्यायधीश रह चुका है। अथवा 10 वर्षो तक किसी उच्च न्यायालय में वकिल (अधिवक्ता) रह चुका है। अथवा 10 वर्षो तक राज्य स्तर के किसी न्यायिक पद पर कार्य कर चुका है।
कार्यकाल - 62 वर्ष कि आयु तक
न्यायाधिशों को हटाने की प्रक्रिया - महाभियोग द्वारा।
उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के द्वारा मूल अधिकारों कि सुरक्षा के लिए रिट जारी करता है।
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मुख्यमंत्री (अनु. 163)
अनुच्छेद 164 - विधान सभा में बहुमत दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करता है।
शपथ व त्यागपत्र - राज्यपाल
कार्यकाल - 5 वर्ष / विधानसभा के विश्वास तक/अनिश्चित काल
योग्यता - न्युनतम आयु 25 वर्ष
नोट - बिना विधानमण्डल सदस्य कोई भी व्यक्ति अधिकतम 6 माह तक मुख्यमंत्री बन सकता है। इससे आगे मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए विधानमण्डल के किसी भी एक सदन की सदस्यता प्राप्त करनी अनिवार्य है।
पद से हटाने की प्रक्रिया - विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित करके।
कार्य -
मंत्रियों की नियुक्ति के लिए राज्यपाल को सलाह देना।
मंत्रियों को मंत्रालय आंवटित करना।
मंत्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करना।
राज्य का राजनैतिक प्रमुख होता है।
राज्य आयोजना बोर्ड का अध्यक्ष होता है।
राष्ट्रीय विकास परिषद व अन्र्तराजीय परिषद का सदस्य होता है।
विधानसभा का नेता होता है।
राज्य सरकार का मुख्य वक्ता या प्रवक्ता होता है।
राज्य की मंत्री परिषद व राज्यपाल के मध्य कड़ी का काम करता है।
अनुच्छेद 167 -इसमें मुख्यमंत्री के कार्य/दायित्वों का उल्लेख है। जो निम्न है -
मुख्यमंत्री शासन सम्बन्धी सूचनाएं राज्यपाल को देता है।
राज्यपाल द्वारा सूचना मांगने पर सूचना उपलब्ध करवाना।
किसी मंत्री के द्वारा किसी विषय पर निर्णय लेने पर उसकी सूचना मंत्री परिषद में प्रस्तुत करना।
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राज्य की मंत्रिपरिषद
अनुच्छेद 163- राज्यपाल की सहायता व परामर्श के लिए राज्य में एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका मुखिया मुख्यमंत्री होता है।
मंत्री तीन प्रकार के होते हैं -
केबिनेट मंत्री -
राज्य मंत्री - 1 स्वतंत्र राज्य मंत्री, 2 अधिनस्थ राज्य मंत्री
उपमंत्री
अनुच्छेद 164 - मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है। तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह से राज्यपाल करता है।
नोट - संसदीय सचिव प्रकार के मंत्रियों का संविधान में उल्लेख नहीं है। इस प्रकार के मंत्रियों की नियुक्ति, शपथ व त्याग-पत्र मुख्यमत्री करता है।
मंत्रियों को पद से हटाने की प्रक्रिया - विधान सभा में अविश्वास के प्रस्ताव के आधार पर।
योग्यता - मंत्री परिषद के सभी सदस्यों के लिए आवष्यक है की वे विधानमण्डल के किसी सदन के सदस्य हो परन्तु मुख्यमंत्री किसी ऐसे व्यक्ति को भी मंत्री परिषद में शामिल कर सकता है जो विधानमण्डल का सदस्य नहीं है। किन्तु शर्त यह है कि उसे 6 माह के भीतर विधानमण्डल की सदस्यता प्राप्त करना आवष्यक है।
शपथ
राज्यपाल के द्वारा दो प्रकार की शपथ दिलाई जाती है।
पहली पद की तथा दूसरी गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है।
राज्य की मंत्रीपरिषद में अधिकतम मंत्रियों की संख्या- 91वें संविधान संसोधन 2003 के द्वारा मुख्यमंत्री सहित विधान सभा की कुल सीटो का 15 प्रतिशत
राजस्थान राज्य की मंत्रीपरिषद में अधिकतम मंत्रियों की संख्या - 30
मंत्रीपरिषद में न्युनतम संख्या - 12
नोट - दिल्ली व पुदुचेरी की मंत्रीपरिषद में मंत्रियों की नियुक्ति, शपथ व त्यागपत्र राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। दिल्ली में 10 प्रतिशत या 7 मंत्री बन सकते है।
राज्य की मंत्री परिषद सामुहिक रूप से विधानसभा के प्रति तथा व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होती है।
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राजस्थान राज्यपाल
एकीकरण से पूर्व राज. में राज्यपाल के पद से पूर्व पद का नाम राज प्रमुख था।
राजस्थान के एकमात्र राज प्रमुख - सवाई मानसिंह द्वितीय (30 मार्च 1949 - 31 अक्टूबर 1956)
1 नवम्बर 1956 को राज प्रमुख के पद की जगह राज्यपाल के पद की शुरूआत की गई।
प्रथम राज्यपाल - गुरूमुख निहाल सिंह
वर्तमान में राज्यपाल - कल्याणसिंह
राजस्थान राज्यपाल पद पर रहते हुए, मृत्यु -
दरबारा सिंह, निर्मल चन्द जैन, एस.के. सिंह, प्रभा राव
राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल -
प्रतिभा देवी सिंह पाटिल
जे.एल. नेहरू - राज्यपाल की स्थिति गाड़ी के 5वें पहिये के समान है।
सरोजनी नायडू - राज्यपाल के पद को सोने के पिंजरे में कैद करके रखी गई चिड़ीया बताया था।
पी.सीतारमैया - राज्यपाल का यह कार्य है की मेहमानों की इज्जत करना तथा उन्हें भोजन व दावत देना।
प्रकाश शाह - ‘‘राज्यपाल का काम है की नियत स्थान पर हस्ताक्षर करना।’’
नोट - भारत की प्रथम महिला राज्यपाल (यू.पी.) सरोजनी नायडू
जम्मू कष्मीर का राज्यपाल 1965 से पूर्व सदर-ए-रियासत के नाम से जाना जाता था।
भारत में सर्वप्रथम 1980 में तमिलनाडू के राज्यपाल प्रभुदास पटवारी को बर्खास्त किया गया था।
राजस्थान में बर्खास्त होने वाले प्रथम राज्यपाल रघुकुल तिलक (198
राजस्थान के राज्यपाल
क्र.स. नाम कार्यकाल कब से कब तक
1 सवाई मानसिंह महाराज (राजप्रमुख) 30.03.1949 31.10.1956
2 सरदार गुरूमुख निहाल सिंह 01.11.1956 15.04.1962
3 डाॅं. संपूर्णानंद 16.04.1962 15.04.1967
4 सरदार हुकूम सिंह 16.04.1967 19.11.1970
5 जगत नारायण (कार्यवाहक) 20.11.1970 23.12.1970
6 हुकूम सिंह 24.12.1970 30.06.1972
7 सरदार जोगिन्दर सिंह 01.07.1972 14.02.1977
8 वेदपाल त्यागी (कार्यवाहक) 15.02.1977 11.05.1977
8 रघूकुल तिलक 12.05.1977 08.08.1981
9 क.ेडी. शर्मा (कार्यवाहक) 09.08.1981 05.03.1982
10 आ.ेपी. मेहरा 06.03.1982 04.01.1985
11 पी.के. बनर्जी (कार्यवाहक) 05.01.1985 31.01.1985
12 आ.े पी. मेहरा 01.02.1985 03.11.1985
13 डी.पी. गुप्ता (कार्यवाहक) 04.11.1985 19.11.1985
14 वसन्त राव पाटील 20.11.1985 14.10.1987
15 जगदीश शरण वर्मा (कार्यवाहक) 15.10.1987 19.02.1988
16 सुखदेव प्रसाद 20.02.1988 02.02.1989
17 जगदीश शरण वर्मा (कार्यवाहक) 03.02.1989 19.02.1989
18 सुखदेव प्रसाद 20.02.1989 02.02.1990
19 मिलाप चन्द जैन (कार्यवाहक) 03.02.1990 13.02.1990
20 प्रो. देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय 14.02.1990 25.08.1991
21 डाॅ. स्वरूप सिंह (राज्यपाल,गुजरात) (अतिरिक्त कार्यभार) 26.08.1991 04.02.1992
22 डाॅ. एम. चेन्ना रेड्डी 05.02.1992 30.05.1993
23 धनिकलाल मण्डल (राज्यपाल, हरियाणा) (अतिरिक्त कार्यभार) 31.05.1993 29.06.1993
24 बलिराम भगत 30.06.1993 30.04.1998
24 दरबारा सिंह 01.05.1998 24.05.1998
25 नवरंग लाल टिबरेवाल (कार्यवाहक) 25.05.1998 15.01.1999
26 अंशुमान सिंह 16.01.1999 13.05.2003
27 निर्मल चन्द जैन 14.05.2003 22.09.2003
28 कैलाशपति मिश्र (राज्यपाल, गुजरात) (अतिरिक्त कार्यभार) 22.09.2003 13.01.2004
29 मदन लाल खुराना 14.01.2004 01.11.2004
30 टी.वी. राजेश्वर (राज्यपाल, उ.प्र.) (अतिरिक्त कार्यभार) 01.11.2004 08.11.2004
31 श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील 08.11.2004 23.06.2007
32 डाॅ. ए. आर. किदवई (राज्यपाल, हरियाणा) (अतिरिक्त कार्यभार) 23.06.2007 06.09.2007
33 श्री एस. के. सिंह 06.09.2007 01.12.2009
34 श्रीमती प्रभा राव (राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश) (अतिरिक्त कार्यभार) 03.12.2009 24.01.2010
35 श्रीमती प्रभा राव 25.01.2010 26.04.2010
36 शिवराज पाटिल (राज्यपाल, पंजाब) (अतिरिक्त कार्यभार) 28.04.2010 12.05.2012
37 श्रीमती माग्र्रेट आल्वा 12.05.2012 07.08.2014
38 राम नाईक (अतिरिक्त कार्यभार) 08.08.2014 03.09.2014
39 कल्याण सिंह 04.09.2014 लगातार......
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राज्यपाल की शक्तियाँ -
कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति
अनुच्छेद 164, मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है।
अनुच्छेद 164 मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति
अनुच्छेद 165 महाधिवक्ता
लोकायुक्त
राज्य के विभिन्न आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति
राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपत्तियों की नियुक्ति।
नोट - क्योंकि राज्यपाल विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है।
अनुच्छेद 167 -
राज्यपाल मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त कर सकता है।
किसी मंत्री द्वारा लिये गये किसी निर्णय को विचार के लिए मंत्री परिषद के समक्ष रखवा सकता है।
अनुच्छेद 356
राज्य का संवेधानिक तंत्र विफल होने पर राज्यपाल, राष्ट्रपति शासन की सिफारिष करता है। तथा राष्ट्रपति शासन लागू होने पर केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप् में राज्य का शासन चलता है।
विद्यायी शक्तियाँ -
अनुच्छेद 168 - राज्यपाल विधानमंण्डल का अंग होता है।
अनुच्छेद 174 - विधान मण्डल के सत्र को प्रारम्भ व समाप्त करता है।
अनुच्छेद 174 - समय से पूर्व मुख्यमंत्री की सलाह से विधानसभा को भंग कर सकता है।
विधान मण्डल के सदस्यों की योग्यता व अयोग्यता का निर्णय राज्यपाल के द्वारा किया जाता है।
अनुच्छेद 171 के द्वारा विधान परिषद में 1/6 सदस्य किसी कला, साहित्य, विज्ञान व समाज सेवा से जुड़े हुए व्यक्तियों को मनोनित करता है।
अनुच्छेद 333 विधान सभा में एक आंग्ल भारतीय को मनोनित करता है।
अनुच्छेंद 175 - राज्चपाल विधानसभा में या विधान परिषद वाले राज्यों में विधानमण्डल के किसी सदन में या एक साथ दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकता है। साथ ही विधान मण्डल में लम्बित किसी विधेयक के सम्बन्ध में या किसी अन्य विषय पर षिघ्रता से विचार के लिए संदेष भेज सकता है।
अनुच्छेद 176 - विधान मण्डल का संयुक्त अधिवेषन बुलाकर विषेष अभिभाषण करता है।
सामान्य विधेयक से सम्बन्धीत शक्ति
विधेयक को स्वीकृति प्रदान करना।
विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखना।
विधेयक को पुनर्विचार के लिये विधानमण्डल के पास वापिस भेजना।
नोट - विधानमण्डल द्वारा विधेयक में संषोधन किये अथवा विना संषोधन किये। पुनः राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है। तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल अपनी स्वीकृति देने के लिए बाध्य है।
अनुच्छेद 200 - कोई भी विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर के बिना कानून नही बन सकता।
अनुुच्छेद 201 - राज्यपाल निम्न विषयों पर किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए अपने पास सुरक्षित रख सकता है-
उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से संब���धित
समवर्ती सूची से संबंधित
व्यक्तिगत सम्पति के अधिग्रहण से सम्बन्धित
विधेयक संविधान के उपबंधों के विरूद्ध हो।
निति निदेषक तत्वों के विरूद्ध हो।
अनुच्छेद 224 - राज्यपाल राज्य के किसी भी क्षेत्र को अनुसूचीत जाति का घोषित कर सकता है।
अनुच्छेद 213 - अध्यादेष का अधिकार
अध्यादेश से तात्पर्य तत्कालीन कानून/अस्थाई कानून से है।
अध्यादेश की अधिकत्तम समयावधि - 6 माह
विधान मण्डल का सत्र प्रारम्भ होने के बाद अधिकतम समयावधि - 6 सप्ताह (42 दिन)
न्यायिक शक्तियां - (अनु. 161)
माफ = क्षमादान
कम = लघुकरण
परिवर्तन = परिहार
मृत्युदण्ड को माफ करने का अधिकार राज्यपाल के पास नहीं है।
अनुन्छेद 233 - राज्य उच्च न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधिषों की नियुक्ति, स्थानान्तरण व पदोन्नति करता है।
वित्तीय शक्तियां -
अनु. 243 (I) के अनुसार प्रत्येक 5 वर्ष के लिए एक वित्त आयोग का गठन करता है।
राजस्थान के वित्त आयोग -
अध्यक्ष समय
के.के. गोयल 1995-2000
हीरालाल देवपुरा 2001-2005
माणिकचन्द सुराणा 2006-2010
बी.डी. कल्ला 2011-2015
नोट - जून 2015 में ज्योति किरण की अध्यक्षता में 5वें वित्त आयोग का गठन किया गया।
समय - 2015 से 2020
अनुच्छेद 202 - राज्य की आकस्मिक निधि राज्यपाल के अधीन होती है।
राज्य लोकसेवा आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन तथा महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन प्राप्त करता हैं। तथा विधानमण्डल के समक्ष रखता है।
राज्यपाल प्रत्येक वर्ष विधानमण्डल में बजट पेश करवाता है।
स्वविवेकीय शक्तियाँ -(अनु. - 163)
विधान सभा में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को राज्यपाल मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त कर सकता है।
सरकार को बर्खास्त करना।
विधानसभा को भंग करना।
विधान सभा को 6 माह के लिए निलम्बित करना।
अनुच्छेद 356 (राज्य में राष्ट्रपति शासन) के प्रयोग की सिफारिष
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राज्य की कार्यपालिका
राज्यपाल (अनुच्छेद 153)
राज्यों में संसदात्मक शासन प्रणाली होने के कारण राज्य की कार्यपालिका के 2 भाग है -
औपचारिक कार्यपालिका - राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख व नाममात्र की कार्यपालिका होता है।
वास्तविक कार्यपालिका - मुख्यमंत्री व राज्य की मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यपालिका होती है।
अनुच्छेद 153- प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा।
नोट - 7वें संविधान संसोधन (1956) के द्वारा एक व्यक्ति एक साथ एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल बन सकता है।
तथ्य - राज्यपाल राज्य का प्रथम नागरिक होता हैे तथा उसकी राज्य में वही स्थिति है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की हैै।
अनुच्छेद 154 - राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होता है तथा राज्य की कार्यपालिका शक्ति व विधायी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है।
राज्यों में राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।
अनुच्छेद 155 (नियुक्ति) - राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
नोट - यहाँ पर राज्यपाल की नियुक्ति में राष्ट्रपति केन्द्रीय मंत्रिपरिषद से सलाह लेता है।
अनुच्छेद 156 (कार्यकाल) - 5 वर्ष/राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त
अनुच्छेद 157( योग्यताएं) - न्युनतम आयु 35 वर्ष तथा विधानसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
अनुच्छेद 158 (पद की शर्ते) -
किसी लाभ के पद पर न हो
संसद व विधान मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति सदस्य है तो उसे राज्यपाल बनने से पूर्व पद से त्यागपत्र देना पड़ता है।
अनुच्छेद 159 (शपथ) - उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश राज्यपाल को शपथ दिलाता है।
त्यागपत्र - राष्ट्रपति को।
नोट - राज्यपाल को पद से हटाने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।
वेतन:- 1 लाख 10 हजार रूपये (2009 के बाद)
नोट - राज्यपाल को वेतन राज्य की संचित निधि में से दिया जाता है।
1983 में केन्द्र-राज्य में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए रणजीत सिंह सरकारिया आयोग का गठन किया गया। जिसने राज्यपाल के पद के बारें में जो विचार दिये वो निम्न लिखित है -
राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व संबन्धित राज्य के मुख्यमंत्री से सलाह करना।
दलगत राजनीति से जुड़े हुये व्यक्ति को राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए।
जो व्यक्ति जिस राज्य का नागरिक होता है उसे उस राज्य का राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए।
नोट: इस परम्परा का एक बार उल्लंघन हुआ है एच.सी. मुर्खजी प. बंगाल का नागरिक तथा प. बंगाल का ही राज्यपाल बनाया गया।
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राज्य सरकार
राज्य की व्यवस्थापिका = विधान मण्डल
विधान मण्डल का उल्लेख - अनुच्छेद 168
विधानमण्डल = राज्यपाल$ विधानसभा$ विधान ���रिषद्
नोट - विधानमण्डल के तीन अंग तथा दो सदन होते है- विधान सभा तथा विधान परिषद
जिस राज्य की विधायिका/व्यवस्थापिका का गठन राज्यपाल, विधान सभा व विधान परिषद से मिलकर होता है। उस राज्य की विधायिका को राज्य विधान मण्डल कहा जाता है।
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वर्तमान में राज्य विधान मण्डलों की संख्या - 7
जिस राज्य की व्यवस्थापिका/विधायिका का गठन राज्यपाल व विधानसभा से मिलकर होता है उस राज्य की व्यवस्थापिका को राज्य विधान सभा कहा जाता है।
वर्तमान में 22 राज्यों में राज्य विधानसभा है।
राज्यों में विधान मण्डलों की कुल संख्या - 29
केन्द्रशासित प्रदेशों में विधानमण्डलों की कुल संख्या- 2
भारत में विधान मण्डलो की कुल संख्या - 31
भारत में एक सदनात्मक (विधानसभा) कुल विधानमण्डल - 24
राज्यों में एक सदनात्मक विधान मण्डल - 22
केन्द्रशासित प्रदेशों में एक सदनात्मक विधानमण्डल - 2
(दिल्ली व पुद्दुचेरी (पाण्डीचेरी))
भारत में कुल द्विसदनात्मक (विधानसभा व विधान परिषद) विधान मण्डलों की संख्या-7
विधान परिषद (अनु.169)
गठन - उस राज्य की विधानसभा के द्वारा 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संसद के पास भेजा जाता है अगर संसद साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित कर दे तो उस राज्य में विधान परिषद का गठन हो जाता है।
नोट: इसी प्रक्रिया के द्वारा विधान परिषद को समाप्त भी किया जा सकता है।
वर्तमान मेें भारत में कुल 7 विधान परिषद है जो निम्न लिखित है -
जम्मु कश्मीर (36)
उत्तर प्रदेश (99)
बिहार (75)
कर्नाटक (75)
महाराष्ट्र (78)
आन्ध्रप्रदेश (50)
तेलगांना (40)
योग्यता - न्यूनतम आयु 30 वर्ष
किसी राज्य की विधान परिषद में अधिकतम सीटे उस राज्य की विधान सभा की सीटों का 1/3 भाग होता है।
न्यूनतम सीटे - 40
सर्वाधिक सीटें - 99 (यू.पी.)
न्यूनतम सीटे - 36 (जम्मू एण्ड कश्मीर) अपवाद
नोट: राजस्थान में विधान परिषद प्रस्तावित है जिसमें कुल 66 सीटे होगी।
नोट - विधान परिषद् साधारण विधेयक को प्रथम बार अधिकतम 3 माह तक रोक सकती है। यदि विधानसभा ने वही विधेयक विधान परिषद को पुनः भेजा है तो विधान परिषद उसे अधिकतम एक माह तक रोक सकती है।
विधान परिषद् की संरचना (अनु.171)
कुल सदस्यों का 1/6 राज्यपाल के द्वारा मनोनित किये जाते है।
कुल सदस्यों का 1/3 विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किये जाते है।
कुल सदस्यो का 1/3 स्थानीय निकायो के सदस्यों द्वारा निर्वाचित
कुल सदस्यों का 1/12 सैकण्डरी स्तर के शिक्षकों द्वारा जिन्हे कम से कम 3 वर्ष का सैकण्डरी विद्यालय का अनुभव हो।
कुल सदस्यों का 1/12 स्नातको के द्वारा जिन्हे कम से कम 3 वर्ष का अनुभव हो।
निर्वाचन प्रणाली - प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों
पदाधिकारी - विधानपरिषद के सदस्य अपने में से एक सभापति व एक उपसभापति चुनते है। इन दोनों को विधान परिषद के सदस्य बहुमत द्वारा हटा सकते है। कोरम (गणपूर्ति) कम से कम 1/10 सदस्य।
नोट - विधान परिषद का चुनाव लड़ने के लिए संबंधित राज्य का मतदाता होना चाहिए।
विधानसभा (अनुच्छेद 170)
विशेषताएं - विधान मण्डल का प्रथम, निम्न व अस्थाई तथा सबसे लोकप्रिय एवं जन प्रतिनिधि सदन है
नोट - राज्य विधानसभा को 7वीं अनुसूची में वर्णित राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है।
योग्यता - न्युनतम आयु 25 वर्ष
निर्वाचन प्रणाली - प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित
कार्यकाल -(अनु. 172) - 5 वर्ष तक/विधानसभा के विश्वास तक
नोट: जम्मू एण्ड कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष
अनु. 174 के तहत् राज्यपाल समय से पूर्व भी विधानसभा को भंग कर सकता है और समय से पूर्व भंग होने पर 6 माह में चुनाव कराना अनिवार्य होता है।
ध्यात्वय रहे - अनु. 352 (राष्ट्रीय आपातकाल) के तहत् लागू आपातकाल में इसकी अवधि एक वर्ष तक संसद द्वारा बढायी जा सकती है परन्तु आपालकाल समाप्त होने के बाद 6 माह से अधिक समय तक विधानसभा को भंग नहीं रखा जा सकता।
सदस्य संख्या - किसी भी राज्य की विधानसभा में सदस्यों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करती है।
प्रत्येक सदस्य कम से कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
किसी भी विधानसभा में अधिकतम सीटे - 500
न्यूनतम सीटे - 60
सर्वाधिक विधानसभा की सीटे - यू.पी. (403)
अपवाद स्वरूप सबसे कम सीटे - पांडेचरी (30), सिक्किम (32), मिजोरम (40), गोवा (40)
पदाधिकारी -
अध्यक्ष - व उपाध्यक्ष इन दोनों का चुनाव विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही करते है। तथा इनका कार्यकाल विधानसभा के कार्यकाल तक होता है।
अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष त्यागपत्र अध्यक्ष को देता है।
पद से हटाने की प्रक्रिया - विधानसभा सदस्यों के बहुमत द्वारा।
विधानसभा अध्यक्ष के कार्य -
विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता है।
सामान्य परिस्थिति में वह सदन में मतदान में भाग नहीं लेता लेकिन यदि किसी प्रष्न पर पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आये, तो वह ‘निर्णयक मत’ का प्रयोग करता है।
कोई विधेयक धन-विधेयक है अथवा नहीं इसका निर्णय करता है।
दल-बदल सम्बन्धी याचिकाओं पर निर्णय देता है।
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केन्द्रीय न्यायपालिका
सुप्रीम कोर्ट/सर्वोच्च/उच्चतम न्यायालय
संविधान के भाग 5 व अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित प्रावधान किये गये है।
भारत की शासन प्रणाली संघीय है किन्तु न्यायापालिका एकिकृत है।
भारत में स्वतंत्र व सर्वोच्च न्याय व्यवस्था अमेरिका से ली गई है।
1773 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा भारत में सर्वप्रथम 1774 ई को कोलकता में सर्वोच्च न्यायालय (एस.सी.) स्थापित किया गया।
प्रथम मुख्य न्यायधीश - एलिजा ईम्फे
1935 भारत सरकार/शासन अधिनियम -
इस अधिनियम के द्वारा 1 अक्टूबर 1937 को दिल्ली के संसद भवन में संघीय न्यायालय - फैडरल कार्ट आॅफ इण्डिया के नाम के स्थापित किया गया।
नोट - संघीय न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायधिश मोरिस ग्वेयर थे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरूद्ध ब्रिटिश संसद के उच्च सदन लार्ड सभा कि कानुनी समिति प्रिवी काॅसिल में अपील कि जा सकती थी।
संविधान लागु होने के बाद 28 जनवरी 1950 को संघीय न्यायलय को सर���वोच्च न्यायलय कहा गया।
अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना एवं गठन का प्रावधान किया गया है।
भारत का सबसे बड़ा न्यायालय
अन्तिम अपीलिय न्यायालय है।
भारतीय संविधान व मूल अधिकारों का रक्षक
संविधान की व्याख्या का अधिकार
सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय - नई दिल्ली
कुल न्यायधीशों की संख्या -
मूलतः (28 जनवरी 1950) 1 $ 7 = 8
2008 से लेकर वर्तमान तक - 1 $ 30 = 31
प्रथम मुख्य न्यायधीश - हीरालाल जे कानिया
वर्तमान में मुख्य न्यायधीश - रंजन गोगोई
योग्यताएं -
अनुच्छेद 124
एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगतार कम से कम 5 वर्षो तक न्यायाधिष के रूप में कार्य कर चुका हो।
अथवा
एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार कम से कम 10 वर्ष अधिवक्ता रह चुका हो।
अथवा
राष्ट्रपति की दृष्टि से विधि विशेषज्ञ हो।
नोट - सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों में वृद्धि व न्यायधीशों की संख्या में वृद्धि का अधिकार भारतीय संसद के पास है।
न्यायधीशों की नियुक्ति -
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष की नियुक्त राष्ट्रपति करता है तथा अन्य न्यायधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीष के परामर्ष से राष्ट्रपति करता
नोट - काॅलेजियम प्रणाली - 1993 में दिये गये निर्णय के अनुसार एक पांच (5) सदस्यी समिति होगी जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश होना अनिवार्य है। शेष सदस्य सर्वोच्च न्यायालय से ही होगें।
नोट - इस प्रणाली की जगह न्यायधीशों की नियुक्ति के लिए भाजपा सरकार ने न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया।
एन.जे.ए.सी. (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) -
नरेन्द्र मोदी कि सरकार ने 121 (99वां) संविधान संसोधन अगस्त 2014 में एन.जे.ए.सी. के गठन हेतु संविधान संसोधन किया गया।
इसके द्वारा 1993 से न्यायधीशों कि नियुक्ति करने में चली आ रही काॅलेजियम प्रणाली को समाप्त कर उसके स्थान पर एन.जे.ए.सी. की स्थापना कि गई।
इस आयोग में अध्यक्ष सहित 6 सदस्य होगें।
अध्यक्ष - सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायधीश
अन्य सदस्य -2 सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायधीश
एक केन्द्रीय विधि/कानुन मंत्रि दो देश के प्रबुद्ध नागरिक
दो प्रबुद्ध नागरिकों के चयन हेतु प्रधानमंत्री कि अध्यक्षता में तीन सदस्य चेन समिति का गठन किया गया।
चेन समिति
अध्यक्ष - प्रधानमंत्री अन्य सदस्य - केबिनेट मंत्री
लोकसभा में विपक्ष का नेता/लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी का नेता।
नोट - 16 अक्टूबर 2015 को सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्य समिति ने इसे अवैध घोषित कर दिया।
नोट - वर्तमान में न्यायधीशों की नियुक्ति काॅलेजियम प्रणाली के आधार पर ही होती है।न्यायधीशों नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर की जाती है।
शपथ - मुख्य न्यायाधीष को राष्ट्रपति द्वारा तथा अन्य न्यायाधीयों को मुख्य न्यायाधीष दिलाता है।
कार्यकाल -
पद ग्रहण कि तिथि से 65 वर्ष तक कि आयु तक।
पद से हटाने कि प्रक्रिया -
अनुच्छेद 124 में न्यायाधीषों को हटाये जाने (महाभियोग शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है) की प्रक्रियां का उल्लेख किया गया है।
न्यायाधीषों को हटाये जाने की प्रक्रिया की शुरूआत संसद के किसी भी सदन में की जा सकती है।
यदि लोकसभा करे तो 100 व राज्यसभा करें तो 50 सदस्यों
हस्ताक्षर कर उसकी सुचना अपने अध्यक्ष को देते है।
अध्यक्ष जांच करेगा व सही पाने पर एक तीन सदस्यी समिति बनाता है।
समिति जांच करके यदि हां कर देते है तथा दो सदनों के विशेष बहुमत से पारित होने पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर के बाद संबंधित न्यायाधिश उसी दिन पद हट जाता है।
रामास्वामी - पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश।
इसके विरूद्ध लोकसभा में महाभियोग कि प्रक्रिया को प्रारम्भ किया गया लेकिन दक्षिण भारत के कांग्रेस सांसदों के विरोध के कारण महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में पारीत नहीं हुआ।
सोमित्र सेन - कलकता उच्.च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश इनके विरू़द्ध राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव पारित कर दिया गया तथा लोकसभा में प्रस्ताव पेश होने से पूर्व इन्होंने राष्ट्रपति को त्यागपत्र दे दिया।
पी डी दीनाकरण - सिकिम्म उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश इनके विरूद्ध राज्य सभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश करने कि प्रक्रिया प्रारम्भ कि गई।
प्रक्रिया प्रारम्भ होने से पहले ही इन्होंने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे दिया।
नोट - अब तक महाभियोग से किसी भी न्यायधिश को हटाया नहीं गया है।
अनुच्छेद 125(1) - वेतन व भत्ते
मुख्य न्यायधीश 1 लाख मासिक
अन्य न्यायधीश 90 हजार मासिक
अनुच्छेद 126 - सर्वोच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीष नियुक्त का प्रावधान है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीष की नियुक्त राष्ट्रपति करता है।
अनुच्छेद 127 - तदर्थ न्यायधीश
यदि न्यायधीशों की गणपूर्ति (कोरम) पूरी नहीं होती है तो मुख्य न्यायधीश राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से अस्थाई न्यायधीशों की नियुक्ति कर सकता है।
नोट- किसी उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश को जो उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश नियुक्त किये जाने कि योग्यता रखता हो।
नोट- सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायधिशों की नियुक्ति सम्बन्धी प्रावधान फ्रांस से लिया गया है।
नोट- तदर्थ न्यायाधीष केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही नियुक्त किये जाते है। उच्च न्यायालय में नहीं ।
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधीकार तथा शक्तियां -
अनुच्छेद 131 प्रारम्भिक /प्राथमिक अधिकार क्षेत्र
ऐसे विवाद जिनमें एक तरफ भारत सरकार हो तथा दूसरी तरह एक या एक से अधिक राज्यों की सरकारें।
ऐसे विवाद जिनमें एक तरफ एक या एकाधिक राज्य हों तथा दूसरी तरफ भी एक या एकाधिक राज्य हों।
ऐसे विवाद जिनमें एक और भारत सरकार तथा एक या एकाधिक राज्य हो तथा दूसरी और एक या एकधिक राज्य हों।
अपीलीय अधिकार क्षेत्र - (भारत का अंतिम अपिलिय न्यायालय)
अनुच्छेद 132 - सवैधानिक मामलों की अपील
अनुच्छेद 133 - दीवानी/सिविल मामलों के अपील
अनुच्छेद 134 - फौजदारी मामलों की अपील
अनुच्छेद 136 - वे अपील जो महान्यायवादी की पूर्व अनुमति से की जाती है।
नोट-
देश के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरूध अपील सुनने का अधिकार है।
स्वयं अपने निर्णय के विरूद्ध भी अपील सुनने का अधिकार है।
अनुच्छेद 137 के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णय का पुनर्विलोकन भी कर सकता है।
अभिलेखिय न्यायालय - (अनुच्छेद 129)
सुप्रीम कोर्ट के सभी निर्णय एवं कार्यवाही प्रकाशित होती है जिसका सभी अधिनस्थ न्यायालय अनुसरण करते है।
सविधान की व्याख्या का अधिकार
परामर्श दात्री क्षेत्रधिकार - अनुच्छेद 143
सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को किसी संवैधानिक विषय के संदर्भ में अपना सुझाव दे सकता है परन्तु बाध्य नहीं है। तथा ना राष्ट्रपति बाध्यकारी है।
न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति -
संविधान के किसी भी अनुच्छेद में इस शक्ति का स्पष्ट नहीं किया गया है। परन्तु अनुच्छेद 13, 32, 132 तथा 133 के द्वारा प्रयोग करता है।
संसद के द्वारा बनाये गये कानून अगर संविधान के विरूद्ध होता है तो उस कानून को सर्वोच्च न्यायालय निरस्त कर सकता है।
लोक अदालत
न्यायपालिका कि नवीन अवधारणा जिसके अन्तर्गत स्थानीय स्तर के विभिन्न मुकदमों को स्थानीय न्यायधीशों द्वारा सम्बन्धित पक्षों में सहमति के आधार पर निर्णय देना।
नोट-राज्य कि प्रथम लोक अदालत कोटा में स्थापित कि गई।
लोक अदालतों कि संस्थापना प्रत्येक जिला मुख्यालय पर होती है।
ग्राम न्यायालय
राजस्थान ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अन्तर्गत 2009 में बस्सी (जयपुर) में राज्य का प्रथम ग्राम न्यायलय स्थापित किया गया।
जनहित याचिका
जनता के हित से जुड़े हुये विभिन्न ���िषयों को किसी व्यक्ति अथवा समूह द्वारा सर्वोच्च न्यायलय में प्रस्तुत करना इस प्रार्थना पत्र को जनहित याचिका कहते है।
मुख्य न्यायाधीष पी.एन. भगवती को जनहीत याचिका का प्रणेता कहा जाता है।
प्रथम दलित मुख्य न्यायाधीष - के.जी. बालकृष्णन
प्रथम महिला न्यायाधीश - फातिमा बीबी।
सर्वाधिक कार्यकाल के रूप में मुख्य न्यायधीष -
वाई.वी. चन्द्रचुड़
सबसे न्यूनतम कार्यकाल - कमल नारायण सिंह
स्वतंत्र भारत में जन्म लेने वाले भारत के प्रथम मुख्य न्यायधिश - एस.एच. कपाडिया।
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लोकसभा अध्यक्ष/स्पीकर
अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष व उपाध्यक्ष चुनते है।
योग्यता - लोकसभा का सदस्य होना चाहिए।
न्यूनतम आयु - 25 वर्ष
शपथ - कोई नहीं दिलाता क्योंकि वह पहले से ही लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ले लेता।
कार्यकाल - 5 वर्ष/लोकसभा के विश्वास तक
त्यागपत्र - लोकसभा उपाध्यक्ष को।
नोट - लोकसभा उपाध्याक्ष अपना त्यागपत्र लोकसभा अध्यक्ष को देता है।
वेतन - संविधान के अनुसार संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है। (मासिक वेतन 1,25,000)
पद से हटाने की प्रक्रिया -
14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
लोकसभा के सदस्यों द्वारा बहुमत से प्रस्ताव पारित करके।
प्रोटेम स्पीकर
प्रोटेम स्पीकर/अंतरिम अध्यक्ष
15वीं लोकसभा 16वीं लोकसभा
अध्यक्ष अध्यक्ष
मीरा कुमार कमल नाथ सुमित्रा महाजन
नियुक्त - राष्ट्रपति
कार्य -
लोकसभा कि अध्यक्षता करता है।
लोकसभा को स्थगित करता है।
संसद के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।
अनुच्छेद 110 कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका अंतिम निर्णय लोकसभा अध्यक्ष करता है।
लोकसभा विपक्षी दल के नेता के रूप में सहमति देता है।
अनुच्छेद 100 (1) लोकसभा अध्यक्ष को निर्णायक मत डालने का अधिकार है।
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महान्यायवादी/एटोर्नी जनरल
उल्लेख - अनुच्छेद 76
भारत सरकार का सबसे बड़ा/प्रथम कानुनी अधिकारी
नियुक्ति - संघीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा
शपथ व त्यागपत्र - राष्ट्रपति
योग्यता - स्र्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान
कार्यकाल - अनुच्छेद 76(4), 65 वर्ष की आयु तक/राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त।
शक्तियां - अनुच्छेद 76(3) के अनुसार महान्यायवादी को अपने कर्तव्य के पालन के लिए भारत के राज्य क्षेत्र स्थिति सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।
अनुच्छेद-88 के अनुसार महान्यायवादी को संसद के किसी सदन, दोनों सदनों की संयुक्त बैठक तथा संसद की किसी समिति जिसका वह सदस्य है, की कार्यवाही में भाग लेने तथा बोलने का भी अधिकार है किन्तु उसे संसद में किसी विधेयक पर मत देने का अधिकार नहीं है।
भारत सरकार से संबंधित मामलों को लेकर उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार की ओर के पेष होना।
अनुच्छेद-143 के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा उच्चतम न्यायाल में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
सरकार से संबंधित किसी मामले में उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार।
नोट - एकमात्र व्यक्ति जो संसद का सदस्य न होते हुये भी संसद की कार्यवाही में भाग लेता है।
वर्तमान में महान्यायवादी - के.के. वेणुगोपाल
भारत का महाधिवक्ता -
महाधिवक्ता भारत सरकार का दुसरा विधि अधिकारी है जिसका प्रमुख कार्य महान्यायवादी की सहायता करना है।
अपर महाधिवक्ता -
इसकी नियुक्ति महाधिवक्ता की सहायता करने के लिए की जाती है।
नोट - महान्यायवादी एक संवैधानिक पद है तथा महाधिवक्ता व अपर महाधिवक्ता एक वैधानिक पद है।
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प्रधानमंत्री
अनुच्छेद 74 के अनुसार भारत में लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल को राष्ट्रपति सरकार बनने के लिए आमन्त्रित करता है व मंत्रिपरिषद का गठन करता है जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।
अनुच्छेद 75(1) के अनुसार लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करता है।
नोट: अगर लोकसभा में किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति अपने स्वयं विवेक से किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त कर सकता है।
शपथ - प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति पद एवं गोपनियता की शपथ दिलवाता है।
त्यागपत्र - राष्ट्रपति
योग्यता - न्यूनतम आयु 25 वर्ष
नोट - बगैर संसद सदस्य कोई भी व्यक्ति 6 माह तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर सकता है तथा इससे आगे संसद के किसी भी एक सदन कि सदस्यता प्राप्त करनी अनिवार्य है।
कार्यकाल - 5 वर्ष/राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त
कार्य एवं शक्तियां -
केन्द्र में मंत्रियों कि नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति को सलाह देता है।
मंत्रियों को मंत्रालय आंवटित करता है।
मंत्रिमण्डल कि बैठकों कि अध्यक्षता करता है।
भारत सरकार का मुख्य वक्ता या प्रवक्ता होता है।
प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद व राष्ट्रपति के मध्य एक कड़ी के रूप में काम करता है।
संसदीय शासन प्रणाली में सभी मंत्री प्रधानमंत्री के साथ तैरते है व प्रधानमंत्री के साथ डुबते है।
संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री का कत्र्तव्य है कि राष्ट्रपति के द्वारा पूछे जाने वाली सभी सूचनाओं को सदन के पटल पर रखे।
प्रधानमंत्री सामान्तया लोकसभा में सदन का नेता होता है।
प्रधानमंत्री समय से पूर्व लोकसभा का भंग करने की सिफारिष राष्ट्रपति को कर सकता है।
प्रधानमंत्री सेनाओं का राजनैतिक प्रमुख होता है।
राष्ट्रीय विकास परिषद व नीति आयोग का अध्यक्ष होता है।
वर्तमान नीति आयोग के अध्यक्ष - नरेन्द्र मोदी
वर्तमान नीति आयोग के उपाध्यक्ष - राजीव कुमार
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केन्द्रीय मंत्रिपरिषद
अनुच्छेत 53 के अनुसार भारत/संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति के कार्यो में सहायता व सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती है जिसका प्रधान/प्रमुख प्रधानमंत्री होता है।
संघ की संवैधानिक प्रमुख कार्यपालिका राष्ट्रपति।
संघ की वास्तविक कार्यपालिका केन्द्रीय मंत्रिपरिषद को कहा जाता है। जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है।
सविधान में मंत्रियों के प्रकार - 3
1. केबिनेट मंत्री - मंत्रीमण्डल
2. राज्य मंत्री - 1 अधिनस्थ प्रभार
2. स्वतंत्र प्रभार
3. उपमंत्री
अनुच्छेद 75 (1) के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री के रूप नियुक्त करता है।
यदि लोकसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तब राष्ट्रपति अपने विवेकानुसार लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करता है।
म्ंत्रियों का चयन -
म्ंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री के परामर्ष से राष्ट्रपति करता है।
शपथ-
पद ग्रहण से पूर्व प्रधानमंत्री सहित प्रत्येक मंत्री को अनुसूचि 3 में दिये गये प्रारूप के अनुसार राष्ट्रपति के समक्ष पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है।
योग्यता -
अनुच्छेद 75 (5) - मंत्रीपरिषद का सदस्य बनने के लिए यह आवष्यक है कि व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य हो।
यदि कोई व्यक्ति मंत्री बनते समय संसद का सदस्य नहीं है, तो उसे 6 माह के अन्दर संसद सदस्य बनना अनिवार्य है।
कार्यकाल - अनिष्चित काल
मंत्रिपरिषद तभी तक अपने पद पर रहती है, जब तक की उसे लोकसभा का विष्वास प्राप्त हो।
मंत्रिपरिषद का अधिक से अधिक कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल तक, जो समान्यत्या 5 वर्ष होता है।
मंत्रियों के वेतन तथा भत्तों का निर्धारण संसद के द्वारा किया जाता है।
यदि प्रधानमंत्री का पद रिक्त हो जाये तो पुरा मंत्रिपरिषद भंग हो जाता है।
मंत्रिमण्डल का आकार मंत्रिपरिषद के आकार से छोटा होता है।
मंत्रिपरिषद का आकार -
मूल संविधान में मंत्रिपरिषद के आकार से सम्बन्धीत कोई प्रावधान नहीं था।
अनुच्छेद 75 (1क) - 91वें संविधान संसोधन 2003 के द्वारा केन्द्रीय मंत्री परिषद में अधिकतम मंत्रियों कि संख्या लोकसभा की कुल सीटों का 15 प्रतिशत (प्रधानमंत्री सहित)
दल-बदल कानून के आधार पर संसद के सदस्यों की अयोग्यता की स्थिति में मंत्री पद के लिए वह मंत्री अयोग्य हो जाता है।
केन्द्रीय मंत्रीपरिषद में मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर रहते है।
अनुच्छेद 75 (3) केन्द्रीय मंत्रिपरिषद सामुहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी मंत्री के कार्य के लिए अकेला वही मंत्री उत्तरदायी नहीं होगा बल्कि उसके कार्य के लिए सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद उत्तरदायी होती है।
नोट - यदि मत्रिपरिषद के किसी एक सदस्य के विरूद्ध अविष्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो उस स्थिति में सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद को अपना त्यागपत्र देना होता है।
मंत्री चाहे किसी भी सदन से हो सामूहिक रूप से उत्तदायी लोकसभा के प्रति होता है।
व्यक्तिगत रूप से केन्द्रीय मंत्रीपरिषद राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होती है।
नोट - 44वें संविधान संसोधन 1978 के द्वारा मंत्रिमण्डल शब्द को संविधान में जोड़ा गया जिसका उल्लेख अनुच्छेद 352 में मिलता है।
नोट: संसदीय सचिव प्रकार के मंत्रियों कि नियुक्ति प्रधानमंत्री के द्वारा जी जाती है। इस प्रकार के मंत्रीपद का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है।
अनुच्छेद 88 - केन्द्रीय मंत्रीपरिषद के किसी भी सदस्य को संसद के दोनों सदन में बोलने एवं कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है।
वर्तमान में केन्दीय मंत्री परिषद में राजस्थान से कुल मंत्रियों की संख्या - 7
कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़
लोकसभा क्षेत्र - जयपुर ग्रामीण
कार्यभार - युवा कार्य एवं खेलमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री)
अर्जनराम मेघवाल (राज्य मंत्री)
लोकसभा क्षेत्र - बीकानेर
कार्यभार - संसदीय मामले मंत्रालय, जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संक्षरण मंत्रालय
सी.आर. चैधरी (राज्य मंत्री)
लोकसभा क्षेत्र - नागौर
कार्यभार - उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण, वाणिज्य व उद्योग
पी.पी. चैधरी (राज्य मंत्री)
लोकसभा क्षेत्र - पाली
कार्यभार - कानून व न्याय, काॅरपोरेट मामले
विजय गोयल (राज्य मंत्री)
राज्य सभा सांसद
कार्यभार - संसदीय कार्य मंत्रालय
अल्फोंस काननाधानम (स्वतंत्र प्रभार, राज्यमंत्री)
राज्यसभा सांसद
कार्यभार - पर्यटन मंत्री
गजेन्द्र सिंह शेखावत , लोकसभा क्षेत्र - जोधपुर, कार्यभार - कृषि व किसान सुधार मंत्रालय
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक- Art.148
महालेखा परीक्षक लोकवित का संरक्षक होने के साथ-साथ देश की सम्पूर्ण वितीय व्यवस्था का नियंत्रक होता है।
नियुक्ति:-
शपथ - राष्ट्रपति भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा ओर निष्ठा की शपथ लेता है।
त्यागपत्र - राष्ट्रपति
कार्यकाल - 6 वर्ष/65 वर्ष की आयु तक
पद से हटाने की प्रक्रिया - उच्चत्तम न्यायालय के न्यायाधीश के समान अर्थात संसद के द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करके।
नोट:- किसी मंत्री के द्वारा संसद में नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिनिधित्व नही किया जा सकता तथा उसके किसी कार्य की जिम्मेदारी नही ले सकता।
कार्य:-
भारत एवं राज्य की संचित निधि तथा उस संघ शासित प्रदेश जहा विधानसभा हैै, ये सभी व्यय सम्बन्धी लेखाओं की लेखा परीक्षा करता है।
संघ तथा राज्यों की आकस्मिक निधि तथा लोक लेखाओं (पॅब्लिक अकाउंट) से किये जाने सभी व्यय की संपरीक्षा (आॅडीट) करेगा तथा उन पर अपना प्रतिवेदन देगा।
संघ व राज्य के विभिन्न विभागों द्वारा किये गये सभी व्यापार, निर्माण, लाभ तथा हानि लेखाओं की आॅडिट करेंगा।
नोट:- 1976 से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य में परिवर्तन करते हुए उसे लेखांकन (लेखों की तैैयारी) के दायित्व से मुक्त कर दिया गया है।
इस प्रकार वह वर्तमान में संघ के लिए सिर्फ लेखा परीक्षक का तथा राज्यों के लिए लेखांकन तथा लेखा परीक्षक दोनो प्रकार कार्य करता है।
संपरीक्षा प्रतिवेदन:-
Art.148 प्रत्येक वितीय वर्ष के अन्त में संघ के लेखाओं सम्बन्धी प्रतिवेदन को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है जो उसे संसद के समक्ष रखवाता है। तथा राज्यों के लेखाओं सम्बन्धी प्रतिवेदनों को राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करता हैैै।
जो उसे राज्य के विधानमण्डल के समक्ष रखवाता है।
नोट:- नियंत्रक एवं महालेखा द्वारा पेश की रिपोर्ट को जाँच के लिए संसद की लोकलेखा समिति तथा राज्य विधानमण्डल की लोक समिति को सोंपी जाती है
नोट:- अतः नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को लोक लेखा समिति का मार्गदर्शक एवं मित्र कहा जाता है।
वेतन 90,000 मासिक
प्रथम वी. नरहरि राव
वर्तमान - राजीव महषि
http://advancestudytricks.blogspot.com/2020/01/niyantrak-evan-mahaalekha-pareekshak.html
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