I can't believe it-I can't believe I watched Neil Breen on the big screen. I cannot believe I watched Neil Breen on the big screen. How could I do this? How could I watch Neil Breen on the big screen?
Aurora by iFi Audio is an all-in-one stereo and speakers combo, That makes a beautiful focal point in your home, with amazing iFi sound! It delivers a sound that combines the purity of tone with a high level of engagement, speed and dynamic gusto, ensuring the emotive quality of music is delivered in full effect. With Auto Room Tailoring, the Aurora can auto-configure the speaker array according to its position in the room. The effect is similar to the adjustments made by a sound engineer at a live venue. Aurora uses Bluetooth5.0 — the very latest version with the newest Qualcomm 5100 series chipset. There’s also the super-smooth ESS Sabre DAC chip.
Being a Neptunia fan in Australia sucks some times. It's bad enough that we don't often get physical releases of the games (and when we do, they're in limited stock).
But now, with Game Maker R:Evolution on the horizon, I'm realising that A: There is no page for it on the Australian Eshop. And B: It's not even rated by our useless as shit classification board.
I am really not wanting to make another Eshop account just for one game. I've already got one that I only used to get the english versions of Super Robot Wars V, X, and T, and a JP one that I haven't used in the slightest.
मैं रोज सुबह आजकल देर से उठ रहा था, अपने पिता के साथ रहने का ये परिणाम हो गया था कि अब वो मेरे लिए नाश्ता बना दिया करते थे। बाबा के जाने के बाद से दादी माँ के साथ रहने लगीं और मैं और पिताजी मुंबई आ गए मेरे भाग्य सुधारने। घर के काम मैं कर लेता हूँ, और कभी कभी करता भी हूँ लेकिन जब तक मैं कॉफी इत्मीनान से हलक से नीचे उतार पाता हूँ, तब तक वे आधी दुनिया से जीत चुके होते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे पिताजी के लिए कर्म सबसे ऊपर है, तो वे बिना सोचे काम करते ही जाते हैं, उन कामों मे अब उनके बेटे के लिए नाश्ता बनाना या उसके कपड़े प्रेस के लिए देना आम बात हो गई थी। ये सब उनकी दिनचर्या मे शामिल होता जा रहा था।
ऐसा नहीं है कि मैं पास खड़े सब देखूँ और मुझे लज्जा ना आए, मैं तो अंदर ही अंदर खुद को बहुत कोसता हूँ लेकिन आजकल दिन ऐसे हैं कि काम की थकावट के चलते मेरा शरीर मुझे दिन के अंत मे ज्यादा कुछ करने की अनुमति नहीं देता। और ये अपने आप मे एक बहाना लगने लगता है जिसके चलते दिमाग मन को खूब गालियां देता है।
एक दिन की बात है जब मैं प्रेस किये हुए कपड़ों को अलमारी मे रख रहा था, मैंने देखा कि प्रेस करने मे लापरवाही की गई है। मुझे ये बिल्कुल पसंद न आया और मैंने झट से पिताजी से शिकायत की। उन्होंने भी यही सोचा होगा कि एक तो इसका काम करो ऊपर से नखरे सुनो। लेकिन हमेशा की तरह उन्होंने इन भावों को अपनी शब्दावली से दूर रखा। कहने लगे, चलो किसी और प���रेसवाले को ढूंढते हैं। मैंने सिर हिलाकर प्रेस किये हुए कपड़े अलमारी मे रख दिए।
कुछ दिनों तक ये चलता रहा। दरअसल जब हम दिल्ली मे रहते थे, तो जीवन बहुत सरल हुआ करता था। मुंबई आने पर कठिनाईयां तो सामने आई, पर मैंने पाया कि उनसे भागने की जगह उन्हे तालाब समझ कर उसमे लेट जाओ तो तैरने मे मज़ा आने लगता है।
मुझे सज धज के टिंच होकर काम पर जाना बहुत अच्छा लगता था, तो अगर मेरी शर्ट ढंग से प्रेस न हुई हो तो आज भी बहुत चिढ़ मचती है। मुझे ऐसा लगने लगा कि हमारे प्रेसवालेने बहुत ज्यादा ही काम उठा लिया था और अब उससे ढंग से ��ाम हो नहीं पा रहा था। लगातार शिकायतों के बाद एक दिन पिताजी ने मुझे डांटा, कि तुम खुद भी तो ढूंढ सकते हो एक नया प्रेसवाला।
माँ बाप की डांट हमेशा कडवे करेले की भांति मुख पर चार चाँटों की तरह लगती है। सारा अभिमान धरा का धरा रह जाता है और आप चींटी समान हो जाते हैं। आप जितना भी हीरो बन लें, एक बार उनका स्वर घूमा तो आप घूम जाते हैं। और मैंने ये पाया है कि उनकी डांट सच से परिपूर्ण होती है। और सच करेले की तरह (लास्ट टाइम आई चेक्ड) कड़वा ही होता है। पर करेला स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।
जी हाँ, तो इस डांट के बाद मुझे लगा बात तो सही कह रहे हैं पर फिर भी मैं किसी को न ढूंढ पाया और इस बारे मे हमारी दोबारा बात नहीं हुई।
एक दिन सुबह 11 बजे उठने पर मैंने सुबह की कॉफी के बाद, नहाने से पहले कपड़े निकालकर रखना चाहा। मैंने जो देखा उससे मैं बहुत प्रसन्न हुआ। पिताजी की उँगलियाँ कीबोर्ड पर शताब्दी एक्स्प्रेस की तरह दौड़ रहीं थी। मैंने उनकी तरफ देखा तो वे मगन होकर लिख रहे थे और लिखते समय मैं उन्हे टोकने की गलती कभी नहीं करता था। एक लेखक इसके पीछे का कारण जरूर समझेगा।
अब मैं आपको बताता हूँ कि मैंने क्या देखा। सटीक किनारे, महसूस करने मे एकदम कड़क, चमचमाती और साफ सुथरी शर्ट जिसपर प्रेस बहुत अच्छे से हुआ था। मुझे बहुत खुशी हुई देखकर। मैंने आखिर मे पिताजी को बोल ही दिया कि अरे वाह, ये प्रेस वाला तो लगता है सीख गया। पिताजी पहले तो कुछ न बोले, थोड़ा मुस्कुराये और फिर कहा हाँ, आज आया था तो बता रहा था नया लड़का रख लिया है, वो गठरी थोड़ी ढीली बांधता है। ये कहकर वे वापस से लिखने लगे।
मैं खुशी खुशी नहाकर ऑफिस चल गया। शाम को घर आया तो अपनी वाली चाबी से घर का दरवाजा खोला। घर पर मैं अकेला था, पिताजी शाम को अक्सर मीटिंग और प्रोग्रामों मे जाते थे। चाबी खूंटी मे टाँगने के बाद जब मैंने जूतों वाली अलमारी खोली तो उसमे पीछे एक नया कपड़ा किसी चीज को ढ़क रहा था, कपड़ा उठाया तो वहाँ एक नई प्रेस रखी थी। प्रेसवाले ने जो नया लड़का रखा था, वो मुझे इस कदर भावुक कर देगा, ये कौन सोच सकता था।
Dub Shepherds - Night And Day. | Despite its musical diversity, there are enough tracks featured that will strike a chord with reggae fans. #DubShepherds #NightAndDay #Dub
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Mark Skelter 2 - Will it ever going to be released on the Playstation 4 in the West?
A follow-up video on, "Idea Factory International 10th Anniversary @ Anime-Expo 2023", I was hoping in that presentation, IFI would announced Mary Skelter 2 for Playstation 4 in the West, but alas no mention whatsoever. In actually, the chance of Marky Skelter 2 being considered is very slim and the common theory is the "Purification Mode", where the players "purified" the maiden by "rubbing" them, and that's a concern. It was the same situation in Fire Emblem: Fates, Rich, a Market Personnel admit that Nintendo was concern about that. I give my thoughts on this theory and why I keep voicing for Mary Skelter 2 for Playstation 4 to be released in the West. Just a side note, IFI are well aware, but can't do anything about it until Playstation changed their ways.
Facts: "Fictional characters DOES NOT hurt in real life society!"