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#संघर्षों का दौर
sharpbharat · 8 months
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Jharkhand cm falicitates students - मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने पीवीटीजी के युवक-युवतियों के लिए विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए निःशुल्क आवासीय कोचिंग का किया शुभारंभ, मुख्यमंत्री ने कहा - प्रतियोगिताओं के इस दौर में वही आगे बढ़ेंगे , जिनके पास तमाम चुनौतियों और संघर्षों से निपटने की क्षमता होगी
रांची : आज प्रतियोगिता का जमाना है। समाज में समय के साथ तेजी से कई बदलाव आ रहे हैं. इसमें आदिवासी समुदाय को आगे बढ़ने की जरूरत है। इसके लिए आपको संघर्ष करना होगा. कई चुनौतियां से निपटना होगा. कड़ी मेहनत करनी होगी. नए रास्ते बनाने होंगे. अपनी गति को बनाए रखनी होगी, तभी, आप आगे बढ़ेंगे. मुझे पूरा विश्वास है कि आप इन तमाम परिस्थितियों से निकलते हुए कामयाबी की मंजिल प्राप्त करेंगे. मुख्यमंत्री हेमन्त…
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ashfaqqahmad · 9 months
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सर्वाइवर्स ऑफ़ द अर्थ
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यह कहानी है दो हज़ार पचास के उस दौर की, जब हम इंसानों ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते-करते उसे प्रतिक्रिया देने, पलटवार करने पर मजबूर कर दिया था और प्रकृति जब अपनी पर आती है तो इंसान जैसी ताक़तवर प्रजाति भी उसके सामने कुछ नहीं।
कहानी के केंद्र में चार लोग हैं जो दुनिया के चार अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। एक राजस्थान भारत का रहने वाला विनोद है— जो अपने आप से संघर्ष कर रहा है। उसे डिग्री हासिल करने और उसके बाद की ज़िंदगी की हकीक़त से सामना करने के बाद अब अफसोस है कि उसने अपनी ऊर्जा अन्न हासिल करने के पीछे क्यों न लगाई, बजाय ज्ञान हासिल करने के… और वह पश्चाताप करने के लिये माँ और बहनों के जिस्मों से गुज़र कर उसके पेट तक पहुंचते अन्न को त्याग कर चल देता है ज़िंदगी के संघर्षों का सामना करने।
दूसरी ऑकलैंड, न्यूजीलैण्ड में पैदा होने वाली एमिली है— जिसे न सिर्फ दूसरे कहते हैं बल्कि ख़ुद उसने भी स्वीकार कर रखा है कि वह मन्हूस है। उसकी ईश्वर में कोई आस्था नहीं थी और न ही वह किस्मत को मानती थी, लेकिन कभी इस पहेली को सुलझा नहीं पाई थी कि क्यों कोई अदृश्य शक्ति जैसे लगातार उस पर नज़र रखती है और उसके बनते काम भी बिगाड़ देती है। वह इतनी मन्हूस थी कि मरने की कोशिशों में भी इस तरह नाकाम हुई थी कि ज़िंदगी में सज़ा के तौर पर कई बार काफी बुरा खामियाजा भुगतना पड़ा था। कभी अमीर कारोबारी रहा पिता उसकी वजह से होने वाले नुकसानों की भरपाई करते-करते कंगाली की कगार पे पहुंच गया था तो उसने एमिली को घर से ही निकाल दिया था और अब वह आस्ट्रेलिया और आसपास के छोटे-छोटे देशों में रोज़ी-रोटी के पीछे भटकती फिर रही थी, लेकिन बुरे इत्तेफाक कहीं भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे।
तीसरा है माली में रहने वाला सावो— जो कभी नाईजर नदी के किनारे बसे एक खुशहाल कबीले में रहा करता था लेकिन बदलते मौसम ने उसे ऐसे ठिकाने लगाया था कि अब उसके लिये दाने-दाने के पीछे संघर्ष था और जो थोड़ा बहुत उसे मिल भी रहा था, उसकी जड़ में उसकी बहन थी, जिसके लिये उसने मान लिय��� था कि बहन पेट से बड़ी नहीं हो सकती। वह उस ज़मीन पर था, जहां कोई फसल नहीं थी और जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर था, लेकिन बदलते मौसम ने पूरी दुनिया में ऐसी तबाही फैला रखी थी कि खाद्यान्न उत्पादक देश भी अब बेबस हो गये थे और नतीजे में वे देश जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर थे, एक-एक दाने के लिये खूनी संघर्ष में फंसे हुए थे। सावो भी बहन और अमेरिकी बेस के सहारे जो कुछ पा रहा था, वह इसी संघर्ष के हत्थे चढ़ जाता है और उसे फिर चल देना पड़ता है किसी नयी ज़मीन की तरफ।
चौथा कैरेक्टर है इजाबेल— जो कैनेडा की रहने वाली है और जहां एक तरफ तीन चौथाई दुनिया संघर्षों में फंसी थी, वहीं वह उन चंद लोगों में थी जिनके लिये इस बर्बादी में भी बेहतरी थी। इजाबेल हद दर्जे की कन्फ्यूज्ड कैरेक्टर थी जो लड़कों की ज़िंदगी भी जीना चाहती थी, लेकिन अपने स्त्रीत्व से भी मुक्त नहीं होना चाहती और अंततः एक दोहरी ज़िंदगी जीती है। जहां निजी पलों में वह एक लड़की होती है, वहीं बाहरी दुनिया में वह एक लड़का होती है। उसके लिये अगर कोई चीज़ बुरी थी तो वह था मौसम… कनाडा ऊपरी ग्लोब पर होने की वजह से बेशुमार चक्रवाती तूफानों की चपेट में रहता है और बढ़ता समुद्री जलस्तर जहां बाकी दुनिया के तटीय शहरों को निगल रहा था— वहीं उसके शहर को भी उसने आधा कर दिया था और एक चक्रवाती तूफान के साथ जिस दिन पूरी तरह गर्क कर देने पर उतारू था... वह शहर छोड़ कर चल तो देती है लेकिन बदनसीबी ऐसी कि कुछ ऐसे लोगों के चक्कर में फंस जाती है जो तस्कर थे।
चारों अपने-अपने सफ़र में हैं कि तभी प्रकृति अपना तांडव शुरू करती है और नव निर्माण से पूर्व के विध्वंस का सिलसिला शुरू हो जाता है। वह विध्वंस जो ज़मीनों को उखाड़ देता है, पहाड़ों को तोड़ देता है और समुद्रों को उबाल देता है। कुदरत हर निर्माण को ध्वस्त कर देती है और पृथ्वी एक प्रलय को आत्मसात कर के जैसे अपनी पिछली केंचुली को उतार कर एक नये रूप का वरण करना चाहती है। यह चारों किरदार किस तरह मौत से लगातार जूझते और संघर्ष करते इंसानी जींस को इस कयामत से गुज़ार कर अगले दौर में ले जाते हैं और नयी पीढ़ी की बुनियाद रखते हैं… यह जानने के लिये आपको इस कहानी के साथ जीना पड़ेगा।
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digitalpanda28 · 10 months
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सी.इ.ओ ऑफ़ शब्द प्रोडक्शन हाउस - अनुराग श्रीवास्तव
हर इंसान का सपना होता है जीवन के सबसे ऊँचे मुकाम पर पहुंचने का और यह सपना हर किसी का पूरा नहीं होता है। दुनिया के करोड़ो ऐसे लोग है जो ��स ऊंचाई को हासिल कर पाते है। और इस ऊंचाई को हासिल करने के लिए उन्हें कई बाधाओं और संघर्षों से गुजरना पड़ता है। आज हम जिस सख्श की बात करने जा रहे वह भी आम इंसान की तरह है वह कम उम्र में संघर्ष करते हुए आज के समय एक जाना पहचाना चेहरा है। उन्होंने ऊँचे मुकाम पर पहुंचने के लिए एंडी चोटी का जोर लगाया और कई कठिनाइयों को दरकिनार करते हुए सफलता के मुकाम को हासिल किया। इस शख्स  के बारे में जानने के लिए आप हमारी आज की इस वीडियो में बने रहे। 
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 एक छोटे से शहर के करीब एक गावं में रहने वाले इस शख्श का नाम अनुराग श्रीवास्तव है। इन्हे बिल्कुल अंदाजा नहीं था की जिस जगह वह रह रहे है। शायद उस जगह से निकलकर एक बड़े शहर पहुंच जायेंगे और  स्टार्टअप शुरू करके उन चंद लोगो में शामिल हो जायेंगे जो अपने सपने को पूरा करने के लिए गावं से निकलकर बड़े शहर जाते है। खैर आपको बता दू की अनुराग श्रीवास्तव जी ने अपने करियर को बनाने के लिए लखनऊ जैसे बड़े शहर में कदम रखा वह भी युवा ऐज में। जब लोग अपनी जिंदगी को जीने में व्यस्त होते है वही अनुराग श्रीवास्तव जी अपने सपने को पूरा करने में लगे हुआ थे। 
इन्होने अपने करियर की शुरुआत एक छोटी से कंपनी से की और कई सालो तक उस कंपनी में काम करते रहे। और वंहा पर उन्होंने हर उस चीज़ को सीखा जो उनके सपने को पूरा कर सकती थी। अपनी मेहनत और जज्बे से अनुराग श्रीवास्तव  दिन रात  सपने को पूरा करने के लिए जुटे रहे। और आपको तो पता है जो इंसान मेहनत और भरोसे से किसी काम को अंजाम देता है वह जरूर पूरा होता है। कुछ साल कम्पनी में एक छोटी जॉब करने के बाद इन्होने अपने सपने को धरातल पर उतारने की कोशिश की लेकिन इन्होने जब अपने काम को माइंड मेकअप किया वह समय कठिनाइयों से भरा हुआ था। 
बात 2019  की है जब इन्होने अपने सपने को धरातल पर उतारने का सोचा लेकिन यह दौर कोरोना काल का था। जंहा इस दौर में कई छोटी बड़ी कंपनियां बंद होने के कगार पर खड़ी थी वही अनुराग श्रीवास्तव जी ने अपने सपने को 2020 में अंजाम दे दिया। और यही से शुरू हुई इस कंपनी की शुरुआत। और इसका नाम शब्द प्रोडक्शन हाउस था। वैसे बता दू यह कंपनी तो छोटी थी और इसकी टीम भी छोटी थी लेकिन इसका सपना बहुत बड़ा था एक छोटी जगह से कम्पनी को शुरु करने के बाद अनुराग श्रीवास्तव दिन रात इस कम्पनी को बढ़ाने में लग गए। अगर उस समय इसके फाउंडर अनुराग श्रीवास्तव की बात करे तो उनकी उम्र करीब 25 साल के करीब थी। 
शब्द प्रोडक्शन हाउस डिजिटल मार्किट की एक कंपनी है।  जंहा कई कम्पनिया इस फील्ड में काम कर रही थी वंही शब्द प्रोडशन हाउस को भी मार्केट में लाना आसान नहीं था। अगर कंपनी की  सर्विस की बात करे तो शब्द प्रोडक्शन हाउस वीडियो एडिटिंग , ग्राफ़िक डिजाइनिंग , ब्रांड परमोशन ,लोगो डिजाइनिंग और दूसरी कई सर्विसेज देती है। आज के समय जंहा सोशल मीडिया के दौर में हर कोई दुनिया की अलग अलग चीज़ो का लुफ्त उठाना चाहता है। वंही यह कंपनी इन लोगो को इनके तक ये सुबिधाये पहुँचती है। यूट्यूब के इस ज़माने में हर कोई बिजी रहता है और रहे भी क्यों न क्योकि दुनिया की मजेदार चीज़े यही पर मिलती है। शब्द प्रोडक्शन हाउस अपने क्लाइंट को बेहतरीन सर्विस देती है। इसके अलावा यह कम्पनी डिजिटल मार्किट में अच्छे कंटेंट और वीडियो एडिटिंग के लिए जानी जाती है। 
इसका जीता जागता प्रमाण इसके क्लाइंट है। जो शब्द प्रोडक्शन हाउस से ही इस तरह की सर्विसेज की डिमांड करती है। और यह कंपनी अपने क्लाइंट की उम्मीदों पर भी खरी उतरती भी है। इस कंपनी का मोटो है  आवर क्रिएटिविटी इस योर पावर और इसी मोटिव के साथ यह कंपनी आगे बढ़ रही है। अनुराग श्रीवास्तव लगातार उन चीज़ो पर काम कर रहे है जो इस कम्पनी के ग्रोथ के लिए जरुरी है। बता दे की इस कंपनी को आगे बढ़ाने में इस कंपनी के फाउंडर के अलावा वह टीम है जो दिन रात एक करके इसके विज़न को पूरा करने के लिए जुटी हुई है। आज के समय शब्द प्रॉडक्शन हाउस डिजिटल मार्केट की एक जानी मानी कंपनी बन गई है। और इस कंपनी की  सर्विसेज तेजी से अपने पावं पसार रही है। 
शब्द प्रोडक्शन हाउस जंहा अपनी सर्विस और ट्रस्ट के लिए डिजिटल मार्केट में जानी जाती है वंही दूसरी कंपनियां पैसे कमाने के लिए जानी जाती है। जब से यह कमपनी शुरू हुई है तब से लाखो की संख्या में यह कम्पनी अपने क्लाइंट को प्रोजेक्ट क्लियर करके दे चुकी है। अगर इस कम्पनी के प्रोडक्ट के बारे में कहे तो यह कंपनी अच्छा कंटेंट और गुड वीडियो एडिटिंग के द्वारा नाम कमा रही है। अच्छा से अच्छा कंटेंट और सर्विस देना ही इस कम्पनी का aim होता है जिससे क्लाइंट शब्द प्रोडक्शन हाउस पर भरोसा जताते है। तीन साल बीतने के बाद कम्पनी काफी आगे बढ़ चुकी है। और इसको बढ़ाने का श्रेय अनुराग श्रीवास्तव और उनकी टीम को जाता है। जंहा यह कम्पनी कुछ टीम के साथ शुरू हुई थी वंही आज के समय इस  कम्पनी में तीस से  भी ज्यादा टीम मेंबर्स है। जो मेहनत और लगन से अपने काम को अंजाम देते है और कंपनी को बढ़ाने में योगदान कर रहे है। 
अनुराग श्रीवास्तव जी मेहनत और जज्बे से काम तो करते ही है इसके साथ ही वह अपनी सादगी के लिए भी जाने जाते है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है की वह अपने जूनियर के साथ अच्छा और फ्रैंक behave करते है। उनके अंदर मोटीवेट करने की कैपेसिटी है जिससे वह अपने टीम के मेंबर्स को भी मोटीवेट करते है। इसी सादगी के साथ वह ऑफिस में सबके साथ अच्छा व्यवहार करते है। और अगर वह डांटते भी है उसका अंदाज ही अलग होता है टीम मेंबर्स चुपचाप उनकी बात को सुन लेते है। 
दोस्तों शब्द प्रोडक्शन हाउस एक यूनिक कंपनी तो है ही इसके अलावा इस कंपनी के फाउंडर भी अच्छे इंसानो में आते है। जिनकी बदौलत कई लोगो का करियर सेट होता है।
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mwsnewshindi · 2 years
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लीग कप ड्रा: मैनचेस्टर सिटी टू फेस चेल्सी, मैनचेस्टर यूनाइटेड टेक ऑन एस्टन विला | फुटबॉल समाचार
लीग कप ड्रा: मैनचेस्टर सिटी टू फेस चेल्सी, मैनचेस्टर यूनाइटेड टेक ऑन एस्टन विला | फुटबॉल समाचार
प्रीमियर लीग में तीन मैचों के बाद मैनचेस्टर सिटी नाबाद है।© एएफपी बुधवार को तीसरे दौर के लिए ड्रा होने के बाद मैनचेस्टर सिटी का सामना इंग्लिश लीग कप के मुकाबले में चेल्सी से होगा। यह मैनचेस्टर यूनाइटेड बनाम एस्टन विला के साथ पिछले 32 में छह ऑल-प्रीमियर लीग संघर्षों में से एक है। अन्य में, आर्सेनल का सामना ब्राइटन से, नॉटिंघम फ़ॉरेस्ट का टोटेनहम से, वॉल्व्स ने लीड्स का सामना किया, जबकि एवर्टन ने…
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nationalnewsindia · 2 years
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allgyan · 3 years
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सेक्सिस्म या लिंगवाद टर्म कब हुआ पहला प्रयोग -
सेक्सिस्म या लिंगवाद नाम से पता चलता है |जो भी लिंग के आधार पर भेद करता है |इसका आशय है की लिंगवाद किसी व्यक्ति के लिंग के आधार पर पक्षपात या भेदभाव को मानना है|सेक्सिस्म जो टर्म है उसका सबसे पहले 1960 में प्रयोग हुआ ये दौर स्त्रीवाद का था |पहले के लोग जो सेक्सिस्म या लिंगवाद के हिमायती थे उनका मानना था की एक लिंग श्रेष्ट होता है दूसरे के अपेक्षा |और जबरदस्ती वो नियम कानून लगाते है की लड़का क्या कर सकता है और लड़की क्या नहीं कर सकती है |
फीमेल को दोयम दर्जा का समझते है |ऐसा शुरुआत हर धर्म में देखा गया है | आज के समाज में भी जो अधिकार लड़के को जन्मते मिला जाता है लेकिन लड़कियों को उन अधिकारों पाने के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ा  |ऐसे समाज से में बहुत से अभी भी भेद है जो समाज में व्याप्त है |ये बस उस दौर की कोशिश थी पितृसत्तात्मकता को मनाये रखने के लिए |
पूंजीवाद और सेक्सिस्म -
पहला का दौर और समाज की संरचना ऐसे बना था |की उसमे ये दुसंगति रहा करती थी | ये एक जरिया थी किसी का भी आर्थिक शोषण का | क्योकि समाज ये विसंगति रहेगी तो समाज के एक बड़ी आबादी को उनकी बहुत मांगों से दूर किया जा सकता था |और इसलिए पूंजीवाद समाज का लाभ के आलावा कोई चरित्र नहीं होता है |पूंजीवाद की उस समय की मांग यही थी | और आज के दौर में भी आप इसे देख सकते है | जैसा मैंने कहा आज कई ऐसे देश में सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा मिला हुआ है | ये पूंजीवाद ही तो है जो महिला को एक उत्पाद के रूप में बेच रही है | हद तो तब है की आप कोई विज्ञापन देख लीजिये |जो भी उत्पाद जो महिलाये अपने प्रयोग में लाती है उनका तो महिला विज्ञापन कर रही है साथ साथ में पुरषों के प्रयोग की वस्तु का भी महिला ही विज्ञापन कर रही है |उनके शरीर को दिखाकर कई उत्पाद बेचे जा रहे है |
सेक्सिस्म या लिंगवाद क्या आर्थिक शोषण का कारण -
क्योकि बाज़ारवाद भी इसका एक प्रमुख कारण है | जो कुछ ऐसी परिस्थितयां बनायीं रखना चाहती है जिससे ऐसी स्तिथि बनी रही है | इससे उन्हें आर्थिक शोषण करने का अधिकार मिलता है | उन्हें लाभ होता है | आप देखेंगे आज भी बॉलीवुड में मेल एक्टर को फीमेल एक्ट्रेस से हमेशा ज्यादा वेतन मिलता है |कई फीमेल एक्ट्रेस इसके लिए आवाज उठा चुकी है | एक ही कंपनी है जो अमेरिका में वो गोरा करना वाला प्रोडक्ट नहीं बेचने की हिम्मत जुटा पा रही है लेकिन वही आपके देश में धड़ल्ले से बेच रही है |वही कंपनी है विकसीत देशों के हर रूल रेगुलेशन मान रही है लेकिन आपके देश में ऐसा नहीं कर रही है | समाज में वैसे तो कई बुराई है लेकिन इसके पीछे लाभ ही मुख्या कारण है जो अक्सर आपके सामने गुज़र जाता है और आपको दीखता नहीं है |
लिंगवाद को खतम करने के लिए संघर्ष -
लिंगवाद को बनाया रखना के कारण उन तबको को समाज में हिस्सेदारी से भी है |महिलाओं को बहुत दिन बाद वोट देने का अधिकार मिला |इसका साफ़ और सीधा मतलब की आप उससे भी नहीं चुन सकते जो आपके देश को चलाएगा |और कानून बनाएगा | इसलिए मुफ्त कोई चीज नहीं मिलती है संघर्षों से छीनना पड़ता है | रही बात समाज में जब ऐसी बुराई धीरे -धीरे महिलाये लड़कर ख़तम कर रही है वो महिलाये और संघठन काबिले तारीफ़ भी है |जैसे आप ने देखा एक प्राइवेट कंपनी ने माहवारी के लिए ऑफ का प्रयोजन अपनी कंपनी में जोड़ा |भारत युवा लोगों का देश है इसलिए हमे भी इन बारे में विचार जरूर करना चाहिए | सेक्सिस्म या लिंगवाद को एकदम भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए |
महिलाये हवाई जहाज तक उड़ा रही है -
कई बार आप देख्नेगे की महिलाओं के लिए पुरष कहते मिल जायेंगे की -ये महिलाये अच्छी कार नहीं चला सकती और अच्छा नेता नहीं बन सकती क्योकि उनके अंदर इमोशंस होते है वो किसी भी कंपनी को लीड नहीं कर सकती है | लेकिन कौन उन्हें बताया की आज के दौर की लड़किया हवाई जहाज उड़ा रही है | भारत की महिला प्रधानमंत्री के बारे में इंदिरा गाँधी के बारे में नहीं जानते है तो उन्हें जानना चाहिए |एक समय ऐसा भी था जब देश सब प्रतिष्ठ बैंकों में महिला ही उनके सबसे बड़े पदों पर आसीन थी |ये मानसिकता को छोर के खुद के अंदर समनता का भाव लाना चाहिए |मेरी उन लोगों से बस अपील है |
क्या बोलियाँ भी लिंगवाद को बढ़ावा देती है ?
समाज में बहुत दिनों से ऐसे भेदभाव होते रहने से हमारी आपकी बोली में भी सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है | जैसा कहा जाता रहा चूड़ी पहन लो , ये एक सेक्सिस्म शब्द जो हम अक्सर बोलते है जिसे हमे पता नहीं है लेकिन आपको बताता हूँ |इसमें कमजोरता या कहे हीनता को दर्शाने के लिए पुरषों को कहा जाता है | इसका क्या मतलब है चुडिया पहनने वाले कमजोर होते है और चुडिया लड़किया का ही गहना है |ऐसे कई शब्द है जो हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते है |इसलिए इन चीजों को कृपया ध्यान दे |लेकिन कुछ ऐसे भी है जो इन सेक्सिस्म या लिंगवाद और फेमनिस्म को अपने फायदे के लिए प्रयोग लाते है | जहा भी इससे इनके कुछ सुविधा मिलती है उसको उठाती है |और फिर आपको बाहर फेमिनिस्म का झंडा उठाते दिख जाती है |ऐसे लोगों से बचें जो कभी दुखिया नारी तो कभी शशक्त महिला बनके उभरती है |शायद ये बात आपको लोग को कड़वी लग सकती है लेकिन मैं अपने अनुभव से आपको बताया है |और फेमिनिस्म का सपोर्ट करे लिंगवाद को खतम करने की कोशिश करे |
#हीनता को दर्शाने के#स्त्रीवाद#सेक्सिस्मयालिंगवादकोबढ़ावा#सेक्सिस्मयालिंगवाद#सेक्सिस्म#समानताकाभाव#समाजकीसंरचना#संघर्षोंसेछीननापड़ता#शरीरकोदिखाकरकईउत्पाद#लिंगवादटर्म#लिंगवादकोखतमकरनेकेलिए संघर्ष#लिंगवादकेहिमायती#लिंगवाद#लिंगकेआधारपरभेद#लाभकेआलावाकोईचरित्रनहीं#लड़कियाहवाईजहाजउड़ारही#महिलाकोएकउत्पादकेरूप#महिलाविज्ञापन#बोलियाँभीलिंगवादकोबढ़ावादेती#बाज़ारवाद#फेमिनिस्मकासपोर्टकरे#फीमेलकोदोयम दर्जा#प्रतिष्ठबैंकोंमेंमहिला#पूंजीवादऔरसेक्सिस्म#पितृसत्तात्मकता#चूड़ियाँलड़कियाकाहीगहना#चुडिया पहनने#लिंगवादयौनउत्पीड़न#गोराकरनावालाप्रोडक्ट#आर्थिकशोषणकाकारण
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प्रकाश गुप्ता "हमसफ़र" की ग्यारह प्रतिनिधि कविताएं
प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र” की ग्यारह प्रतिनिधि कविताएं
मेरी प्रतिनिधि कविताएं -प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र” प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र” प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र” की ग्यारह प्रतिनिधि कविताएं 1.आशीर्वचन जा! ….तेरे गीत इतने मारक होंकि विश्वरूपी आँगन परमुखरित हो उठेंतेरा आन्दोलित स्वरघोर कालिमामयीरात्रि के …सन्नाटों को भेदकरहृदयों को जागृत कर देतेरा प्रबल विश्वाससिन्धु की …तेज गर्जनाओं से भीटकरा उठेऔर ….तेरे स्वप्न …इतने विशाल होंकि समस्त दिशाओं मेंस्नेह रुपी ….फूल…
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newsxpaper · 3 years
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जोकोविच क्वालीफायर के खिलाफ खुले, मरे का सामना करने के लिए त्सित्सिपास | टेनिस समाचार - टाइम्स ऑफ इंडिया
जोकोविच क्वालीफायर के खिलाफ खुले, मरे का सामना करने के लिए त्सित्सिपास | टेनिस समाचार – टाइम्स ऑफ इंडिया
नोवाक जोकोविच कैलेंडर-वर्ष के ग्रैंड स्लैम को पूरा करने के लिए अपनी बोली शुरू करेंगे यूएस ओपन एक क्वालीफायर के खिलाफ, लेकिन संभावित संघर्षों के साथ उसका रास्ता बहुत कठिन हो जाता है माटेओ बेरेटिनी तथा अलेक्जेंडर ज्वेरेव. फ्रेंच ओपन उपविजेता और तीसरी वरीयता प्राप्त स्टेफानोस त्सित्सिपास पूर्व चैंपियन से भिड़ेंगे एंडी मरे पहले दौर के मैचों के चयन में। मरे अब दुनिया में 114 वें स्थान पर हैं क्योंकि…
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abhay121996-blog · 3 years
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मीराबाई चानू: आधी आबादी के लिए बड़ी प्रेरणा Divya Sandesh
#Divyasandesh
मीराबाई चानू: आधी आबादी के लिए बड़ी प्रेरणा
योगेश कुमार गोयल डेस्क। ओलम्पिक खेलों में भारत के लिए मीराबाई चानू की जीत से अच्छी शुरुआत नहीं हो सकती थी। टोक्यो में 23 जुलाई से शुरू हुए इन खेलों में पहले ही दिन इस भारतीय महिला खिलाड़ी द्वारा देश के लिए पहला पदक जीतना हर भारतीय के लिए बेहद गौरवान्वित करने वाला पल था। हालांकि 2016 के रियो ओलम्पिक में हार के बाद चानू को गहरा सदमा लगा था और उस हार के बाद वह इस कदर टूट गई थी कि उन्हें लगने लगा ���ा कि ओलम्पिक में उनका सफर वहीं खत्म हो गया है लेकिन इस हताशा से उबरने के बाद चानू बुलंद हौंसलों के साथ ऐसी ‘आयरन लेडी’ बनकर उभरी कि भारोत्तोलन में उन्होंने न केवल भारत का 21 वर्ष का सूखा खत्म किया बल्कि ओलम्पिक में भारोत्तोलन में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी भी बनीं।
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चानू के बुलंद हौंसलों का ही प्रतिफल है कि उसी की बदौलत ओलम्पिक खेलों के पहले ही दिन टोक्यो में पोडियम में भारतीय तिरंगा शान से लहराया। हालांकि रियो ओलम्पिक में हार का सामना करने के बाद चानू मंच से रोती हुई गई थी लेकिन टोक्यो ओलम्पिक के लिए उनके बुलंद हौंसलों का परिचय तभी मिल गया था, जब उन्होंने ओलम्पिक की तैयारी के दौरान कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर अपनी एक पोस्ट में लिखा था, ”मेहनत लगती है, चोट भी लगती है, असफलता का अनुभव होता है….लेकिन सफलता की राह कभी भी किसी के लिए आसान नहीं होती !” भारत के लिए मणिपुर की 26 वर्षीया स्टार वेट लिफ्टर मीराबाई चानू की यह जीत इसलिए भी बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि आधुनिक ओलम्पिक खेलों के 121 वर्षों के सफर में भारत का यह केवल 17वां व्यक्तिगत पदक है। व्यक्तिगत स्पर्धा में भी नॉर्मन पिचार्ड, राज्यवर्धन सिंह राठौर, सुशील कुमार, विजय कुमार और पीवी सिंधु के बाद ओलम्पिक में भारत का यह छठा रजत पदक ही है। चानू पीवी सिंधू के बाद दूसरी ऐसी भारतीय महिला खिलाड़ी हैं, जिसने ओलम्पिक के अबतक के इतिहास में रजत पदक जीता है। भारत के लिए चानू की यह जीत इसलिए भी गौरवान्वित करने वाली है क्योंकि इससे पहले भारत ओलम्पिक खेलों में पहले दिन कभी कोई पदक जीतने में सफल नहीं हुआ।चानू की ऐतिहासिक जीत के बाद भारत पदक तालिका में दूसरे स्थान पर पहुंच गया, यह उपलब्धि भी देश को इससे पहले कभी हासिल नहीं हुई। 2004 के एथेंस ओलम्पिक में अभिनव बिंद्रा ने तीन दिन बाद शूटिंग में स्वर्ण पदक जीता था, 2012 के लंदन ओलम्पिक में गगन नारंग ने भी तीन बाद ही शूटिंग में कांस्य पदक जीता था जबकि शूटिंग में राज्यवर्धन सिंह राठौर 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में पांचवें दिन, 2016 के रियो ओलम्पिक में पहलवान साक्षी मलिक 12वें दिन, 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में टेनिस स्टार लिएंडर पेस 14वें दिन पदक जीतने में सफल हुए थे।
मीराबाई टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली एकमात्र भारोत्तोलक हैं, जो रियो ओलम्पिक में क्लीन एवं जर्क में तीन में से एक भी प्रयास में वैलिड वेट नहीं उठा सकी थी लेकिन टोक्यो ओलम्पिक में 49 किलोग्राम भारोत्तोलन स्पर्धा में उसने रजत पदक जीतकर न सिर्फ देश का खाता खोला बल्कि भारोत्तोलन स्पर्धा में देश का 21 साल लंबा इंतजार भी खत्म किया। इससे पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 के सिडनी ओलम्पिक में 69 किलो श्रेणी में कांस्य पदक जीता था जबकि चानू ने ओलम्पिक में क्लीन एवं जर्क में 115 किलोग्राम और स्नैच में 87 किलोग्राम से कुल 202 किलोग्राम वजन उठाकर भारत को भारोत्तोलन स्पर्धा में पहली बार रजत पदक दिलाया। स्वर्ण पदक कुल 210 किलोग्राम (स्नैच में 94 और क्लीन एवं जर्क में 116 किलोग्राम) से चीन की होऊ झिऊई के नाम रहा। वैसे मीराबाई के नाम महिला 49 किलोग्राम वर्ग में क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड भी है। ओलम्पिक में उन्होंने क्लीन एवं जर्क में 115 किलोग्राम वजन उठाया जबकि ओलम्पिक से पहले उन्होंने अपने आखिरी टूर्नामेंट ‘एशियाई चैम्पियनशिप’ में 119 किलोग्राम वजन उठाकर इस वर्ग में स्वर्ण और ओवरऑल वजन में कांस्य पदक जीता था। इस चैम्पियनशिप में यह शानदार प्रदर्शन करने के बाद ही उन्हें टोक्यो ओलम्पिक का टिकट हासिल हुआ था।
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8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में जन्मी मीराबाई चानू हालांकि बचपन में तीरंदाज बनना चाहती थी लेकिन शायद उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, जो उसे वेट लिफ्टिंग की ओर ले गई। दरअसल आठवीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में उसने जब इम्फाल की ही रहने वाली भारत की विख्यात भारोत्तोलक कुंजुरानी देवी के बारे में पढ़ा तो उसने भी उसी की भांति भारोत्तोलक बनने और देश के कुछ विशेष करने का निश्चय किया। उल्लेखनीय है कि कोई भी भारतीय महिला भारोत्तोलक अब तक कुंजुरानी से ज्यादा पदक नहीं जीत सकी है। जब चानू ने भारोत्तोलक बनने का निश्चय किया, उस समय तक उन्हें ओलम्पिक खेलों के बारे में कुछ नहीं पता था, तब उनका एक ही सपना था कि वह इस खेल में कोई बड़ा सा पदक जीतें। 2007 में जब मीराबाई ने प्रैक्टिस शुरू की तो उनके पास लोहे का बार नहीं था, इसलिए वह तब बांस से ही प्रैक्टिस किया करती थी। चूंकि गांव में कोई ट्रेनिंग सेंटर नहीं था, इसलिए वह 12 साल की उम्र में प्रैक्टिस के लिए ट्रक पर सवार होकर 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थी। हालांकि चानू का बचपन पहाड़ से जलावन की लकडि़यां बीनते हुए संघर्षों के दौर से गुजरा लेकिन इन संघर्षों का मजबूती से सामना करते हुए ओलम्पिक विजेता बनकर 4 फुट 11 इंच की छोटे से कद की चानू ने साबित कर दिखाया कि हौसले बुलंद हों तो मंजिल तक पहुंचना नामुमकिन नहीं होता।
मीराबाई 17 साल की उम्र में जूनियर चैम्पियन बन गई थी और जिस कुंजुरानी की बदौलत उन्होंने स्वयं भी भारोत्तेलक बनने का निश्चय किया था, उसी कुंजुरानी के 12 वर्ष पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को उन्होंने 2016 में 192 किलोग्राम वजन उठाकर तोड़ दिया था। 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में 48 किलो भारवर्ग में चानू ने भारत के लिए रजत पदक जीता था और उसके बाद भी लगातार अच्छे प्रदर्शन की बदौलत ही उन्हें रियो ओलम्पिक का टिकट मिला था। रियो अेालम्पिक में पराजय के बाद मीराबाई ने 2017 में अनाहेम में हुई विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में कुल 194 किलो (स्नैच में 85 और क्लीन एंड जर्क में 107) वजन उठाकर स्वर्ण पदक जीता था। इसके लिए उन्हें वर्ष 2018 में राजीव गांधी खेल रत्न और उसके बाद पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। 2018 में कॉमनवेल्थ खेलों में भी वह स्वर्ण जीतने में सफल हुई और उसी साल सीनियर महिला राष्ट्रीय भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में भी दूसरी बार स्वर्ण पदक जीता। 2020 में ताशकंद एशियाई चैम्पियनशिप में मीराबाई को कांस्य पदक हासिल हुआ था। बहरहाल, प्रधानमंत्री ने मीराबाई चानू की सफलता को हर भारतीय को प्रेरित करने वाला बताया है। सही मायनों में देश की आधी आबादी के लिए तो मीराबाई चानू की यह सफलता और भी ज्यादा प्रेरणादायी है। उन्होंने आधी आबादी को संदेश देते कहा भी है कि देश की महिलाओं को अगर कोई खेलने से रोकता है, मना करता है, फिर भी वे खेलों की ओर आगे बढ़ें और मेरी तरह पदक जीतकर भारत का नाम रोशन करें और देश के स्वाभिमान को नई ऊंचाई पर ले जाएं।
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janbhaashahindi · 3 years
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शिव खेड़ा : सर्वश्रेष्ठ प्रेरक वक्ता
शिव खेड़ा : सर्वश्रेष्ठ प्रेरक वक्ता
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The Best Motivational Speaker : Shiv Khera
       दोस्तों, कहा जाता है कि विपरीत परिस्थिति आने पर कुछ लोग टूट जाते हैं और उनके अंदर निराशा घर कर जाती है। परन्तु इसके विपरीत कुछ लोग विपरीत परिस्थिति आने पर भी टूटते नहीं हैं और परिस्थिति से लड़ते हुए सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करते हैं। फिर ऐसे व्यक्ति अपने अनुभव और चिंतन से दुनिया को भी सफलता और ख़ुशी की राह दिखाते हैं। ऐसे ही व्यक्तियों में से एक हैं शिव खेड़ा। संघर्षों से जूझते हुए शिव खेड़ा ने अपना वह मुकाम बनाया है जहाँ से वह औरों के जीवन की निराशा को आशा में परिवर्तित करने का भागीरथ प्रयास कर रहे हैं।
     शिव खेड़ा दुनिया के उन प्रभावशाली वक्ताओं, लेखकों और चिंतकों में से एक हैं जिन्होंने लाखों लोगों की जिन्दगी को अपने विचारों से सकारात्मक दिशा में मोड़ने में मदद की है। उन्होंने कई प्रेरणादायी पुस्तकें लिखीं हैं। उनकी लिखी पुस्तकों को जो भी एक बार पढ़ लेता है उसका जीवन पूर्ण आत्मविश्वास से भर उठता है। सोशल साईट ट्विटर पर उनके चाहने वालों की भारी तादाद है। लाखों लोग रोजाना इंटरनेट पर शिव खेड़ा के जीवन और उनके प्रेरक विचारों की जिज्ञासा लिए उनसे संबंधित सामग्री की खोज करते हैं। उनका जीवन के प्रति जो सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण है, वह अद्भुत है।
शिव खेड़ा का प्रारंभिक जीवन-
Early Life Of The Best Motivational Speaker Shiv Khera:
      ५५ वर्षीय शिव खेड़ा का जन्म २३ अगस्त १९६१ को झारखण्ड राज्य के धनबाद में एक व्यवसायी परिवार में हुआ था। उनके पिता कोयला खादान के व्यवसाय से जुड़े हुए थे और माँ एक गृहणी थीं। बाद के दिनों में जब कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, तब इस परिवार को भारी मुसीबतों के दौर से गुजरना पड़ा था। इसी दौरान शिव खेड़ा ने एक स्थानीय सरकारी स्कूल से अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। स्कूल के दिनों में वह एक औसत दर्जे के विद्यार्थी थे। १०वीं की परीक्षा में एक बार वह फेल भी हो गए थे। परन्तु इसके बाद उनके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया और उन्होंने एक सकारात्मक सोच के अपने जीवन की चुनौती को स्वीकार किया, जिसका परिणाम उन्हें उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में मिला। इस परीक्षा में वे प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुए। स्कूल के बाद उन्होंने बिहार के एक कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। शिव खेड़ा के चिंतन का पंचलाइन है – ‘जो विजेता हैं वह कुछ अलग नहीं करते हैं बल्कि उनका करने का तरीका अलग होता है।’
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https://www.janbhaashahindi.com/2020/06/Shiv-Khera-Sarvashreshth-Prerak-Vakta..html
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जवाहर कला केंद्र जयपुर, राजस्थान में 06.04.2021 से 08.04.2021 तक त्रिदिवसीय ममूर्तिकला (टेराकोटा) कार्यशाला का बेहतरीन आयोजन किया गया । जिसमें देश भर के अलग-अलग राज्यों से लगभग पंद्रह वरिष्ठ व युवा कलाकार प्रतिभागी बन अपनी उम्दा कलात्मक समझ के साथ कलाकृतियों का निर्माण किया । मैं लंबे समय बाद किसी कार्यशाला का हिस्सा बना हूँ । कुछ इसके कारण और कुछ मेरे कई पुराने मित्रों के अलावा अनेकों नये मित्रों के साथ न सिर्फ काम किया बल्कि उनके साथ इस वक़्त को जिया इसलिए ये कार्यशाला ये मुझमें फ़िर से नई उत्साह से भर दिया । श्रेयांशी जी, Santoo भाई, आकाश, L. N Naga भाई, मेघा, हंसराज भाई, सनी दा, CP भाई, हेमंत दा, Renubala देवांशी और नीरज के अलावा अन्य कई मित्रों का प्यार मिला ! जयपुर के अनेकों बेहतरीन पकवानों में बेसन का चिल्ला और उबले हुए चने के खट्टे-मीठे स्वाद ख़ास जगह बना लिया । सबों के साथ बीते पल मेरी ख़ूबसूरत यादों के ग़ुलाबी कोश में सदा संरक्षित रहेगा । मुझ पर भरोसा कर कार्य करने और मुझे इतना सबकुछ देने के लिए कार्यक्रम की सूत्रधार साथी श्रेयांशी को बहुत-बहुत शुक्रिया ! ❤️😊 एक वर्ष से अधिक दिनों से पूरी दुनिया में फ़ैली कोरोना महामारी ने समकालीन व लोक कला और कलाकारों के साथ आम नागरिकों को एक गहरे संघर्षों की आग में झोंक दिया है ! जिससे हिंदुस्तान भी अछूता नहीं है । हम नित्य नये चुनौतियों के साथ अनिश्चितकालीन आपदाओं का सामना कर रहे हैं । ऐसे मुश्किल भरे दौर में इस तरह के कोई भी आयोजन हर तरह से हम जैसे संघर्षशील युवा कलाकारों के प्राणवायु की तरह हीं है । समकालीन भारतीय कला बाज़ार में लंबे समय से मंदी के कारण हमारे साथ अन्य असंख्य युवा कलाकारों में आर्थिक शून्यता पहले से हीं थी । ग़र हम स्पष्टता के साथ कहें तो हम सभी लंबे समय से लगभग पूर्णतः कमीशन वर्क पर हीं निर्भर थे । अभी कहीं भी कोई काम नहीं मिल पा रहा है और मिल भी रहा है तो उसका उचित क़ीमत नहीं मिल पा रहा है । चारों तरफ़ घोर आर्थिक शून्यता के साथ ग़हरी उदासीनता का आलम है । ऐसे में कलाकारों को कार्य करने का अवसर देकर आर्थिक सहयोग कर उन्हें बचाना न सिर्फ़ कला और बचाना है बल्कि देश की मौजूदा सांस्कृतिक विरासत के साथ अब तक के कलात्मक विकास को बचाना है । इन्हें बचाना आनेवाले भविष्य की कला सांस्कृतिक उत्थान की बुनियाद को बचाना है । हम समझते हैं कि समकालीन कला बाज़ार की घोर उदासीन समय में, कोरोना जैसे विकट परिस्थितियों के बावजूद साथी Shryansy Manu तहेदिल से इस कार्य मे लगी हुई हैं । https://www.instagram.com/p/CNe6qdJlCQV/?igshid=l7zo521ruatz
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nationalnewsindia · 2 years
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allgyan · 3 years
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सेक्सिस्म या लिंगवाद टर्म कब हुआ पहला प्रयोग -
सेक्सिस्म या लिंगवाद नाम से पता चलता है |जो भी लिंग के आधार पर भेद करता है |इसका आशय है की लिंगवाद किसी व्यक्ति के लिंग के आधार पर पक्षपात या भेदभाव को मानना है|सेक्सिस्म जो टर्म है उसका सबसे पहले 1960 में प्रयोग हुआ ये दौर स्त्रीवाद का था |पहले के लोग जो सेक्सिस्म या लिंगवाद के हिमायती थे उनका मानना था की एक लिंग श्रेष्ट होता है दूसरे के अपेक्षा |और जबरदस्ती वो नियम कानून लगाते है की लड़का क्या कर सकता है और लड़की क्या नहीं कर सकती है |
फीमेल को दोयम दर्जा का समझते है |ऐसा शुरुआत हर धर्म में देखा गया है | आज के समाज में भी जो अधिकार लड़के को जन्मते मिला जाता है लेकिन लड़कियों को उन अधिकारों पाने के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ा  |ऐसे समाज से में बहुत से अभी भी भेद है जो समाज में व्याप्त है |ये बस उस दौर की कोशिश थी पितृसत्तात्मकता को मनाये रखने के लिए |
पूंजीवाद और सेक्सिस्म -
पहला का दौर और समाज की संरचना ऐसे बना था |की उसमे ये दुसंगति रहा करती थी | ये एक जरिया थी किसी का भी आर्थिक शोषण का | क्योकि समाज ये विसंगति रहेगी तो समाज के एक बड़ी आबादी को उनकी बहुत मांगों से दूर किया जा सकता था |और इसलिए पूंजीवाद समाज का लाभ के आलावा कोई चरित्र नहीं होता है |पूंजीवाद की उस समय की मांग यही थी | और आज के दौर में भी आप इसे देख सकते है | जैसा मैंने कहा आज कई ऐसे देश में सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा मिला हुआ है | ये पूंजीवाद ही तो है जो महिला को एक उत्पाद के रूप में बेच रही है | हद तो तब है की आप कोई विज्ञापन देख लीजिये |जो भी उत्पाद जो महिलाये अपने प्रयोग में लाती है उनका तो महिला विज्ञापन कर रही है साथ साथ में पुरषों के प्रयोग की वस्तु का भी महिला ही विज्ञापन कर रही है |उनके शरीर को दिखाकर कई उत्पाद बेचे जा रहे है |
सेक्सिस्म या लिंगवाद क्या आर्थिक शोषण का कारण -
क्योकि बाज़ारवाद भी इसका एक प्रमुख कारण है | जो कुछ ऐसी परिस्थितयां बनायीं रखना चाहती है जिससे ऐसी स्तिथि बनी रही है | इससे उन्हें आर्थिक शोषण करने का अधिकार मिलता है | उन्हें लाभ होता है | आप देखेंगे आज भी बॉलीवुड में मेल एक्टर को फीमेल एक्ट्रेस से हमेशा ज्यादा वेतन मिलता है |कई फीमेल एक्ट्रेस इसके लिए आवाज उठा चुकी है | एक ही कंपनी है जो अमेरिका में वो गोरा करना वाला प्रोडक्ट नहीं बेचने की हिम्मत जुटा पा रही है लेकिन वही आपके देश में धड़ल्ले से बेच रही है |वही कंपनी है विकसीत देशों के हर रूल रेगुलेशन मान रही है लेकिन आपके देश में ऐसा नहीं कर रही है | समाज में वैसे तो कई बुराई है लेकिन इसके पीछे लाभ ही मुख्या कारण है जो अक्सर आपके सामने गुज़र जाता है और आपको दीखता नहीं है |
लिंगवाद को खतम करने के लिए संघर्ष -
लिंगवाद को बनाया रखना के कारण उन तबको को समाज में हिस्सेदारी से भी है |महिलाओं को बहुत दिन बाद वोट देने का अधिकार मिला |इसका साफ़ और सीधा मतलब की आप उससे भी नहीं चुन सकते जो आपके देश को चलाएगा |और कानून बनाएगा | इसलिए मुफ्त कोई चीज नहीं मिलती है संघर्षो��� से छीनना पड़ता है | रही बात समाज में जब ऐसी बुराई धीरे -धीरे महिलाये लड़कर ख़तम कर रही है वो महिलाये और संघठन काबिले तारीफ़ भी है |जैसे आप ने देखा एक प्राइवेट कंपनी ने माहवारी के लिए ऑफ का प्रयोजन अपनी कंपनी में जोड़ा |भारत युवा लोगों का देश है इसलिए हमे भी इन बारे में विचार जरूर करना चाहिए | सेक्सिस्म या लिंगवाद को एकदम भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए |
महिलाये हवाई जहाज तक उड़ा रही है -
कई बार आप देख्नेगे की महिलाओं के लिए पुरष कहते मिल जायेंगे की -ये महिलाये अच्छी कार नहीं चला सकती और अच्छा नेता नहीं बन सकती क्योकि उनके अंदर इमोशंस होते है वो किसी भी कंपनी को लीड नहीं कर सकती है | लेकिन कौन उन्हें बताया की आज के दौर की लड़किया हवाई जहाज उड़ा रही है | भारत की महिला प्रधानमंत्री के बारे में इंदिरा गाँधी के बारे में नहीं जानते है तो उन्हें जानना चाहिए |एक समय ऐसा भी था जब देश सब प्रतिष्ठ बैंकों में महिला ही उनके सबसे बड़े पदों पर आसीन थी |ये मानसिकता को छोर के खुद के अंदर समनता का भाव लाना चाहिए |मेरी उन लोगों से बस अपील है |
क्या बोलियाँ भी लिंगवाद को बढ़ावा देती है ?
समाज में बहुत दिनों से ऐसे भेदभाव होते रहने से हमारी आपकी बोली में भी सेक्सिस्म या लिंगवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है | जैसा कहा जाता रहा चूड़ी पहन लो , ये एक सेक्सिस्म शब्द जो हम अक्सर बोलते है जिसे हमे पता नहीं है लेकिन आपको बताता हूँ |इसमें कमजोरता या कहे हीनता को दर्शाने के लिए पुरषों को कहा जाता है | इसका क्या मतलब है चुडिया पहनने वाले कमजोर होते है और चुडिया लड़किया का ही गहना है |ऐसे कई शब्द है जो हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते है |इसलिए इन चीजों को कृपया ध्यान दे |लेकिन कुछ ऐसे भी है जो इन सेक्सिस्म या लिंगवाद और फेमनिस्म को अपने फायदे के लिए प्रयोग लाते है | जहा भी इससे इनके कुछ सुविधा मिलती है उसको उठाती है |और फिर आपको बाहर फेमिनिस्म का झंडा उठाते दिख जाती है |ऐसे लोगों से बचें जो कभी दुखिया नारी तो कभी शशक्त महिला बनके उभरती है |शायद ये बात आपको लोग को कड़वी लग सकती है लेकिन मैं अपने अनुभव से आपको बताया है |और फेमिनिस्म का सपोर्ट करे लिंगवाद को खतम करने की कोशिश करे |
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doonitedin · 3 years
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नव चेतना समिति की अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
नव चेतना समिति की अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
SGRR Inter College में नव चेतना समिति की अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की तैयारियों सम्बंधित बैठक समन्ना हुई । बैठक में नव चेतना समिति की संयोजिका दीप्ति रावत ने कहा कि दुनिया के इतिहास में प्रमुख व दिशा निर्धारक भूमिका निभाने वाले महान किसान आंदोलन के इस दौर में महिला संघर्षों के सम्मान के पर्व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का महत्व और भी अधिक हो गया है। नव चेतना समिति उन सभी बहनों को अपना अभिवादन करती है,…
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himachal24news · 4 years
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देहरा में हर्षोल्लास से मनाया गया उपमंडल स्तरीय स्वतंत्रता दिवस विनायक ठाकुर/देहरा देहरा में 74वां उपमंडल स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह कोरोना संबंधित सभी सावधानियां बरतते हुए लघु सचिवालय परिसर में बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर मुख्यातिथि एसडीएम देहरा धनबीर ठाकुर ने राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए पुलिस के जवानों द्वारा सलामी ली। इस अवसर पर एसडीएम ने देहरा उपमंडल के बलिदानी जवानों के परिजनों को सम्मानित करते हुए उनके योगदान को नमन किया। मुख्यातिथि ने कोरोना काल में योद्धाओं की तरह सेवा का कार्य करने वाले कोरोना वॉरियरस को भी इस अवसर पर सम्मानित किया। स्वतंत्रता दिवस समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए एसडीएम ने अपने संदेश में सबको 74वें स्वतंत्रता दिवस की मंगलकामनाएं देते हुए कहा कि स्वतंत्रता दिवस का यह अवसर, उन महान देशभक्तों व स्वतंत्रता सेनानियों को स्मरण करने का भी है, जिन्होंने मां भारती को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश का इतिहास सैनिकों के पराक्रम, शौर्य और बलिदान से ओत-प्रोत है। देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के बाद हुए विभिन्न युद्धों व संघर्षों में, इस प्रदेश के नौजवानों ने सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है तथा अदम्य साहस का परिचय दिया है। उन्होंने कहा कि इन 74 वर्षों में देश के साथ हमारे छोटे से पहाड़ी देश ने भी प्रगति के कईं आयाम स्थापित किए, जिसका श्रेय यहां की कर्मशील जनता को जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानियों, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों, सैनिकों, भूतपूर्व सैनिकों और उनके परिवारजनों के कल्याण के प्रति वचनबद्ध है। जिस हेतु सरकार द्वारा इस वर्ग के कल्याण के लिए कईं योजनाएं आज चलाई जा रही हैं।उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने जनकल्याण की अनेक नईं योजनाएं आरम्भ करके विकास को नई दिशा देने का प्रयास किया है और हमारा उपमडल भी विकास की गति से अछूता नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि आज कि कोरोना महामारी के चलते इस समय पूरा विश्व संकट के दौर से गुजर रहा है। इसके बावजूद हमारे छोटे से प्रदेश में सरकार द्वारा समय से उठाए गए प्रभावशाली कदमों से प्रदेश की जनता को हर संभव सहायता उपलब्ध करवाई गई। इस अवसर पर उन्होंने उपमंडल देहरा में उत्कृष्ठ कार्य करने वाले लोगों का आभार प्रकट कर उन्हें सम्मानित भी किया।उन्होंने इस अवसर पर अपील करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा दिए गए मंत्र ‘दो गज की दूरी है बेहद जरूरी’ का पालन करें तथा शारिरिक दूरी बनाए रखते हुए मास्क, सेनिटाइजर आदि का प्रयोग करें। इस अवसर पर बीडीओ देहरा डॉ.
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