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#वह कवि है
naveensarohasblog · 10 months
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पूर्ण परमात्मा पर हमें ढृढ विश्वास होना चाहिए तभी हम पूर्ण परमात्मा से लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।परंतु वह पूर्ण परमात्मा कौन है जो हमें सर्व सुख प्रदान करते हैं ।उसका क्या नाम है, वह कहाँ रहता है ।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव चारों युगों में आए हैं। सृष्टी व वेदों की रचना से पूर्व भी अनामी लोक में मानव सदृश कविर्देव नाम से विद्यमान थे। कबीर परमात्मा ने फिर सतलोक की रचना की, बाद में परब्रह्म, ब्रह्म के लोकों व वेदों की रचना की इसलिए वेदों में कविर्देव का विवरण है।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सतलोक में रहता है। - ऋग्वेद
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा गया है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
और अधिक जानकारी के लिए सुनिये जगत गुरू रामपाल जी महाराज के अमृत प्रवचन सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों के आधार पर आधारित साधना टीवी पर रात्रि 7.30
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crapunzal · 2 months
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मैं तुम्हें इसलिए प्यार नहीं करता
कि तुम बहुत सुंदर हो,
और मुझे बहुत अच्छी लगती हो।
मैं तुम्हें इसलिए प्यार करता हूँ
कि जब मैं तुम्हें देखता हूँ,
तो मुझे लगता है कि क्रांति होगी।
तुम्हारा सौंदर्य मुझे बिस्तर से समर की ओर ढकेलता है।
और मेरे संघर्ष की भावना
सैकड़ों तो क्या,
सहस्त्रों गुना बढ़ जाती है।
मैं सोचता हूँ
कि तुम कहो तो मैं तलवार उठा लूँ,
तुम कहो तो मैं दुनिया को पलट दूँ,
तुम कहो तो मैं तुम्हारे क़दमों में जान दे दूँ,
ताकि मेरा नाम इस दुनिया में रह जाए।
मैं सोचता हूँ,
तुम्हारे हाथों में बंदूक़ बहुत सुंदर लगेगी,
और उसकी एक भी गोली
बर्बाद नहीं जाएगी।
वह वहीं लगेगी,
जहाँ तुम मारोगी।
लेकिन मेरे पास तुम्हारे लिए
इससे भी सुंदर परिकल्पना है प्रिये!
जब तुम्हें गोली लगेगी,
और तुम्हारा ख़ून धरती पर बहेगा,
तो क्रांति पागल की तरह उन्मत्त हो जाएगी,
लाल झंडा लहराकर भहरा पड़ेगा
दुश्मन के वक्षस्थल पर,
और
तब मैं तुम्हारा अकिंचन
प्रेमी कवि—
अपनी क़मीज़ फाड़कर
तुम्हारे घावों पर महरमपट्टी करने के अलावा
और क्या कर सकता हूँ।
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prince-kumar · 10 months
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#आदिपुरुष_कबीर
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा गया है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर्  ही है।
Kabir Is God
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helputrust · 4 months
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इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
तुमको लग जाएंगी सदियां हमें भुलाने में।
आज भी होती है दुनिया पागल
जाने क्या बात है नीरज के गुनगुनाने में।
लखनऊ 04.01.2024 | गीत ऋषि पद्मभूषण डॉ गोपाल दास नीरज जी द्वारा लिखी गई यह पंक्तियां उनके शानदार व्यक्तित्व व सफलता की कहानी कहती हैं  | नीरज जी जैसे व्यक्तित्व को भूल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है | आज नीरज जी 99वी जन्म जयंती के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के सेक्टर 25, इंदिरा नगर स्थित कार्यालय मे, ट्रस्ट के पूर्व संरक्षक तथा महाकवि "गीतों के दरवेश" पद्मभूषण (डॉ०) गोपाल दास 'नीरज' जी को श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम के अंतर्गत ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने नीरज जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें सादर नमन किया |
नीरज जी के साथ अपनी यादों को ताजा करते हुए ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्षवर्धन अग्रवाल ने बताया कि, " अपने पूरे जीवन में हमने नीरज जी जैसा व्यक्तित्व नहीं देखा | इतने महान शायर, जिंदा दिल कवि, मशहूर गीतकार, मस्त मौला संचालक व पद्म भूषण गोपाल दास नीरज जी ने कभी अपनी सफलता का घमंड नहीं किया | वह सबको एक ही नजरों से देखते थे | उनका रहन-सहन इतना साधारण था कि पहली बार उनसे मिलने पर किसी को यकीन ही नहीं होता कि वह अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पद्म भूषण माननीय गोपाल दास नीरज जी हैं, जिनके गीतों की धूम सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विदेशों तक गूंजती है | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट से नीरज जीका बहुत ही गहरा नाता था | ट्रस्ट के संरक्षक के रूप में उन्होंने हमें  हमेशा समाज व देश के लिए कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित किया | आज उन्हीं के आशीर्वाद से हम निरंतर ही जनहित में कार्य कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे | आज नीरज जी की 99वी जन्म जयंती पर उन्हें शत-शत नमन |"
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yogi-1988 · 2 months
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Shraddha TV Satsang 23-02-2024 || Episode: 2480 || Sant Rampal Ji Mahara...
#MustListenSatsang
कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर प्रभु) ही है।
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premaadi · 2 months
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📚पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वह्निमरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्राम् अत्येति रेभन्।।17।।
विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञानको अपनी कविर्गिभिः अर्थात् कबीर बाणी द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात् पुण्यात्मा अनुयाइयों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात् उच्चारण करके वर्णन करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।
Sant Rampal Ji Maharaj
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suryabhansingh · 10 months
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💐ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा गया है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
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junusworld · 10 months
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🍁कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।🍁
कबीर परमेश्वर 600 वर्ष पहले सिर्फ कलयुग में ही लीला करने नहीं आए बल्कि वे चारों युगों में आते हैं।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं।
यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25:-
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कबीर प्रभु ही आता है।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
कबीर परमात्मा अन्य रूप धारण करके कभी भी प्रकट होकर अपनी लीला करके अन्तर्ध्यान हो जाते हैं। उस समय लीला करने आए परमेश्वर को प्रभु चाहने वाले श्रद्धालु नहीं पहचान पाते, क्योंकि सर्व महर्षियों व संत कहलाने वालों ने प्रभु को निराकार बताया है। वास्तव में परमात्मा आकार में है। मनुष्य सदृश शरीर युक्त है।
परमेश्वर का शरीर नाड़ियों के योग से बना पांच तत्व का नहीं है। एक नूर तत्व से बना है। पूर्ण परमात्मा जब चाहे यहाँ प्रकट हो जाते हैं वे कभी मां से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे सर्व के उत्पत्ति कर्ता हैं।
द्वापर युग में भक्ति को जिंदा रखने के लिए कबीर परमेश्वर ने ही द्रौपदी का चीर बढ़ाया जिसे जन समाज मानता है कि वह भगवान कृष्ण ने बढ़ाया। कृष्ण भगवान तो उस वक्त अपनी पत्नी रुकमणी के साथ चौसर खेल रहे थे।
गरीब, पीतांबर कूं पारि करि, द्रौपदी दिन्ही लीर।
अंधेकू कोपीन कसि, धनी कबीर बधाये चीर।।
कोई कहता था कि त्रेता युग में हनुमान जी ने पत्थर पर राम का नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोई कहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोई कहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु सत्य यह है कि समुद्र पर पुल त्रेतायुग में ऋषि मुनिदर जी रूप में आए कबीर साहेब जी के आशीर्वाद से बना। प्रमाणित वाणी:-
रहे नल नील जतन कर हार। तब सतगुरू से करी पुकार।।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिराने वाले। धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वह्निमरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।
विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञान को अपनी कविर्गिभिः अर्थात् कबीर बाणी द्वारा पुण्यात्मा अनुयायियों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा वर्णन करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।
#SantRampalJiMaharaj
#AppearanceOfGodKabirInKalyug
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
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kagazaurlafz · 3 months
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कथा है ये एक संन्यासी की, वचनों मैं बंधे महान व्यक्ति की,
जो राजपाठ त्याग चले, ये कथा है इसी एक मधुर वाणी की।।
सूर्य जैसा तेज जिसका, ये कथा है दशरथ पुत्र श्री राम की,
पुरुषोत्तम जो कहलाए है, ये कथा है राजा श्री राम की।।
"रघुकुल वंश बड़ो सुख पायो, श्री राम जन्म संग घनो सुख लायो
बालक श्री राम, दशरथ को बरे प्यारे, तीनों माताओं के वो बरे दुलारे।।
ज्ञान के स्वरूप शक्षत श्री राम, अहंकारी राजाओं के बीच
स्वयंवर में शिव धनुष का किया संथान, कुछ ऐसे सरल हमारे श्री राम।।"
वक्त अब श्री राम का अपनी जानकी से मिलन का।।
माँ सीता सबको बहुत लुभाती थी, बड़ी चंचल नटखट वो,
बहनों संग दोनो भाईयो को चुप चुप देखा करती थी,
पर श्री राम शमाख्स बड़ी वो शर्माती थी।।
श्री राम को भी आभास हुआ,
मां सीता की व्याकुलता से अब उन्हें भी प्यार हुआ।।
श्री राम माँ सीता को कुछ ऐसे देखते जैसे, चकोर चांद को,
जैसे तितली चाहती है आसाम को।।
विवाह प्रसंग।।
मंदिर बड़ा भव्य सजे, कली-कली हर रंग के पुष्प लगे,
दृश्य ऐसा, दिल मनोहारी भर जाए,
नयन में सबके सिर्फ एक ही इच्छा जाग आई,
सिया राम संग, एक झलक उन्हें दिख पाए।।
दोनो जब साथ नजर आए, मधुर गीत कोकिल भी गए,
दृश्य ऐसा जैसे स्वैम लक्ष्मी नारायण साथ नज़र आए।।
ध्यान्य वक्त ऐसा, पवित्र साथ ऐसा।।
जब वह वरमाला एक दूसरे को पहनाए, सब फूल उनपे बरसाए,
विवाह दोनो का कुछ ऐसा भव्य, सारे भगवान भी उनपे स्वर्ग समित फूल बरसाए।।
यूं फिर दोनो धाम यूं मिले,
बाकी तीनों भाईयो के दिल भी माँ सीता के बहन संग जा खिले।।
विवाह समाप्त हुआ, समय के चक्र यूं चले
जनक नंदिनी, सारे दशरथ के संतानों के अर्धनगणि बने।।
प्रसंग श्री राम माँ सीता को अपने प्रेम का अर्थ समझते हुए।।
अगर जीवन जीने की आधार हू मैं, तो जीवन को नेव हो तुम
अगर ग्रन्थों का सर हू मैं, तो ग्रंथो की नगरी जहा बसे, वो गीता हो तुम।
अगर शास्त्रों को धारण जो करे वो शक्ति ही मैं,
तो शस्त्रात की दिव्य ज्ञान हो तुम,
अगर जिंदगी के निबंध का एक शीश हु मै, वो उसमें बसे हर एक अक्षर की अर्थ हो तुम।
अगर श्लोक हू मैं तो उसमें छिपी भाव हो तुम,
अगर एक कवि हु मैं तो उस कही की आराधना हो तुम,
अगर गीत हु मैं तो मधुर सी राग हो तुम,
राम हु मैं, मेरी सीता हो तुम।।
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kisturdas · 4 months
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"परमेश्वर कबीर साहेब जी" ने बताया है कि श्री त्रिदेव भगवान केवल 16 कलाओं के भगवान हैं।
इनसे अलग इनके पिता निरंजन भगवान (ब्रह्म /ॐ/ विराट पुरुष) हैं, वह 1000 कलाओं के भगवान है। ऊससे आगे परब्रह्म 10000 कलाओ के भगवान है
उससे आगे असंख्य कलाओं का प्रभु भी है जिसका भेद मेरे पास है। उसकी भक्ति से पूर्ण सुख, परम शान्ति व मोक्ष मिलेगा।
________________________________
कबीर, चार भुजा के भजन में, भूल परे सब संत ।
कबीरा सुमरै तासु को, जाके भुजा अंनत ।।
गरीब, चतुर्भुजी षोडस कला, सहंस भुजा बैराट ।
दश सहंस अक्षर भुजा, गुरु लखाई बाट ।।
गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर ।
दास गरीब सतपुरुष भजो, अवगत कला कबीर ।।
_________________________________
भावार्थ :- संत गरीबदास जी ने बताया है कि परमेश्वर कबीर साहेब जी सब पदवी के के मूल हैं यानि पूर्ण सतगुरू की पदवी, पूर्ण कवि की पदवी तथा पूर्ण परमात्मा की पदवी उन्हीं के पास है। सर्व सिद्धियां भी उन्हीं के पास है। वे स्वयं सत्यपुरुष कबीर जी सब कलाओं के स्वामी हैं, उनकी भक्ति करो।
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casualwinnerzombie · 4 months
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2D Animation Story | Uncovering the Story of Sant Garib Das: A Fascinati...
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#KabirIsGod
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा गया है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, सन्त व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
#SantRampalJiMaharaj
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naveensarohasblog · 1 year
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#Gita tera Gyan Amrit
दो शब्द || भाग- ब
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"सभी पवित्र पुस्तकों में कुछ समानता"
पवित्र पुस्तक बाइबिल में, उत्पत्ति के अध्याय में, यह भी रहा है
कहा कि "जब आदम और उसकी पत्नी, ईव, ने पेड़ों के फल खाए
बगीचे के बीच, अच्छे बुरे से हो गए उनको खबर। शाम को जब खुदा चमन में टहलने आया तो जान लिया
एडम और ईव ने पेड़ के फल खाए हैं जिससे कोई जागरूक होता है
अच्छे और बुरे की। फिर उस भगवान ने कहा कि "अच्छा और" के बारे में जागरूक होकर
बुरा", आदम और उसकी पत्नी ईव हम में से एक की तरह हो गए हैं। यह हो सकता है
ताकि वे उन वृक्षों के फल खा सकें जो अमरता का कारण हैं, और
वे अमर हो सकते हैं। इसलिए, आदम और उसकी पत्नी, ईव, थे
स्वर्ग के बगीचे से निकाल कर पृथ्वी पर छोड़ दिया। " (अंश समाप्त होता है। )
व्याख्या :- इससे साबित होता है कि "एक से बढ़कर एक भगवान हैं",
क्योंकि भगवान ने ऊपर कहा कि अच्छे बुरे से अवगत होने के कारण,
वे हम में से एक की तरह हो गए हैं। तो पवित्र पुस्तक बाइबिल में कहा गया है कि
ममरे के पेड़ों के नीचे बैठा था " इब्राहिम " उसने तीन भगवान देखे। वह
उन्हें खाना खिलाया; सजदा किया और उनकी दुआ ली। इससे साबित होता है
बाइबिल में तीन देवताओं को स्वीकार किया गया है।
मुस्लिम धर्म में "चार यारी" माना जाता है
बाल रूप में बने रहें। सुख्म वेद में अर्थात तत्वज्ञान में कहा गया है :-
Vahi Sanak Sanandana, vahi Chaar Yaari |
Tatvgyan jaane bina, bigdi baat saari ||
अर्थ:- हिन्दू धर्म में सनक, सनंदन, सनातन, और
संतकुमार जो बाल रूप में रहते हैं, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। अंदर
मुस्लिम धर्म, इन्हें ही "चार यारी" कहते हैं, चार बच्चे
मित्रों।
फिर सुख्म वेद में कहा गया है कि :-
Vahi Mohammad vahi Mahadev, vahi Adam vahi Brahma |
Das Garib doosra koyi nahin, dekh aapne gharma ||
अर्थ:- मुस्लिम धर्म के संस्थापक, पैगंबर मोहम्मद,
एक पुण्य आत्मा थी जो भगवान शिव की दुनिया से आई थी उसने इस्तेमाल किया
गुफा में बैठकर अपनी धार्मिक साधना करना। गणो में से एक
शिव जी के ग्यारह रूद्रा में से एक (हाजिर) मुहम्मद जी से मिले
उस गुफा में। मुहम्मद जी की भाषा (अरबी भाषा) में उन्होंने सुनाई
काल भगवान का आदेश, अर्थात मुहम्मद से ब्रह्म। मुसलमान कहते हैं कि
रूद्रा एंजेल जिबरील के रूप में। यह एक शरीफ फरिश्ता माना जाता है।
यही तो है कि पैगंबर मुहम्मद भी शिव के बच्चे हैं।
मुस्लिम धर्म की पवित्र मज़ार "काबा" की शक्ल में पत्थर है
भगवान शिव के लिंग की मुसलमानों को इसके आगे झुकाना।
2. आदम बाबा :- पुराणों में और जैन धर्म के पवित्र ग्रंथों में,
एक प्रसंग है जो इस प्रकार है :- ऋषभदेव जी के पुत्र थे
King Nabhiraj. Nabhiraj was the king of Ayodhya. Rishabhdev ji had
एक सौ बेटे और एक बेटी। एक दिन, एक संत में सर्वोच्च भगवान
रिषभदेव जी से मिला फॉर्म, भक्ति करने की प्रेरित किया, ज्ञान दिया
उसके लिए कि अगर मनुष्य के जीवन में पूजा के अनुसार नहीं की जाती है
शास्त्र, तो मनुष्य का जीवन व्यर्थ हो जाता है। वर्तमान में जो कुछ भी है
प्राप्त किया, उसने या उसने इसे अच्छे कर्मों और उसके फलस्वरूप प्राप्त किया है
पिछले जन्मों में किए गए पाप। तू राजा है ये तो फलस्वरूप है
आपके एक पिछले पुण्य कार्य का। अब भक्ति नहीं करोगे तो तुम
भक्ति और सद्गुणों की शक्ति से मुक्त हो जायेंगे, और
नर्क में गिरो, फिर दूसरे जीवों के शरीर में कष्ट भोगोगे।
(जैसे कि इनवर्टर की बैटरी चार्ज हो और चार्जर हो
मुख्य से डिस्कनेक्ट हो गया है; फिर भी बैटरी काम कर रही है।
इन्वर्टर से पंखा चल रहा है और बल्ब और ट्यूब भी जल रहे है।
अगर चार्जर को दोबारा कनेक्ट नहीं किया गया और बैटरी दोबारा चार्ज नहीं किया गया तो
थोड़ी देर बाद इनवर्टर सभी कार्यों को करना बंद कर देगा। कोई भी नहीं
क्या पंखा चलेगा, न बल्ब या ट्यूब चलेगा। इसी तरह एक इंसान
शरीर भी एक इन्वर्टर की तरह है। शास्त्र आधारित भक्ति चार्जर है।
परमात्मा की शक्ति से मनुष्य का रिचार्ज होता है अर्थात सद्गुणों और भक्ति की शक्ति से समृद्ध होता है।
यह ज्ञान सुनकर उस भगवान के मुख कमल से प्रकट हो गए
ऋषि रूप में ऋषभदेव जी ने दृढ़ता से भक्ति करने का निश्चय किया। जब
ऋषभदेव जी ने ऋषि का नाम पूछा, ऋषि ने उनका नाम "कवि देव" बताया,
अर्थात कविर्देव, और उन्होंने भी कहा कि मैं स्वयं ही पूर्ण परमात्मा हूँ।
चारों वेदों में मेरा नाम "कविर्देव" रखा है। मैं हूँ
वह परम अक्षर ब्रह्म है।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी प्राप्त करने के लिए संत रामपाल जी महाराज के मंगल आध्यात्मिक प्रवचन अवश्य सुनें Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर रोजाना 7:30-8:30 बजे तक। संत रामपाल जी महाराज ही इस संसार में एकमात्र पूर्ण गुरु है। आप सभी से विनम्र निवेदन है कि संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा निशुल्क ले एक सेकंड भी व्यर्थ करे,और अपना मानव जीवन सफल करे।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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फ़रवरी
देवी प्रसाद मिश्र
(एक)
युवा होने के ख़तरों से मैं दूर आ गया हूँ लेकिन नसों में कितनी ही फ़रवरियों का ख़ून बह रहा है
फ़रवरी में फ़रवरी से बेहतर महीना ढूँढने का
यह वक्त नहीं है
मनुष्यों से अधिक पेड़
एक नयी दुनिया बनाने के संकल्प से भरे हैं
लेकिन नये पत्ते नये अर्थ का प्रतीक बनने से
गुरेज़ कर रहे हैं
कौन जाने यह वसंत है भी कि नहीं –
अनिश्चयों के इस शमशेर सन्नाटे में
राजनीति को मैं बदल नहीं सका
पर्दे मैंने बदल दिये हैं कि तुम आओगी
नई माचिस ले आया हूं कि रगड़ते ही जल उठें तीलियाँ और भक्क से निकलने वाली हँसी और आग में मैं चाय बनाता रहूँ
और तुम मुझे देखो
एक मनमाने स्वतंत्रचेता पशु की
लाल आँखों से कि
कोई भी प्रेम अपूर्णता ही क्यों है
व्यक्तियों को न बदलने के अवसाद के साथ मैंने चादर बदल दी है अधिक फूलों वाली चादर की जगह ज़मीन के रंग वाली चादर बिछा दी है
यह एक अनाथ भूभाग है
इच्छाएं हमें जहाँ निर्लज्ज बना देंगी
लालसा के तारे दमक रहे होंगे
विद्रोही वासना के सूने आकाश में
होगा उल्कापात पूरी रात
तामसिक उजाले में हम होते जाएंगे अगाध और अप्रमेय की गोधूलि का झुटपुटा
वैधता का धर्मग्रंथ मैं फाड़ दूँगा
कुछ भी नहीं होगा सोशली करेक्ट
पोलिटिकल करेक्टनेस हासिल कर लेंगे
ठीक ही कहा था लेनिन ने कि
रणनीतियाँ प्रक्रिया में बनती हैं;
बहुत पहले से तो पूर्वग्रह होते हैं- यह मैंने कहा लेकिन क्या तुमने सुना
हमारे बीच हुई
हिंसाओं में दृष्टिकोण,
चयन और आग्रहों का रक्तपात है
तुम्हारा आना एक दृष्टिकोण का आना है जिसकी जगह बनाने के लिए मैंने कमरों की जो सफाई शुरू की तो इतनी धूल उड़ी कि पड़ोसी गोली मारने आ गया जिससे मैंने कहा कि प्रेम करने के बाद मैं मरने के लिए उसके घर आ जाऊँगा ज़्यादा नाराज़ होकर वह लौट गया यह कहते हुए कि उसकी हिंदू चाय को लेकर मेरी अन्यमनस्कता मुझे महँगी पड़ेगी
मुझसे बेहतर कवि होने के लिए
मुझसे अधिक दुख उठाने होंगे
और मुझसे खराब कविता लिखने के लिए
करने होंगे वैचारिक अपराध
भागती रेलगाड़ी की खिड़की के पास बैठा अच्छी कविता लिखने का फार्मूला बाहर फेंकता ब्लू-ब्लैक स्याही की दवात-सा मैं प्रगाढ़तर होता उजास हूँ अगर हवास हूँ
मेरे गाँव का नाम हरखपुर है- यहाँ के नारीवाद पर मैं किताब ढूँढ रहा हूँ कवितावली वाली अवधी में राउटलेज और सेज की किताबें मध्यवर्गीय धर्मग्रंथ हैं
नहाने की जगह मैंने रगड़कर साफ़ की
तेज़ाब से मेरी जल गईं उंगलियाँ
दुनिया के दाग़दार फर्श को इतनी ही शिद्दत से साफ़ करूँगा यह तय किया है
बाथरूम के शीशे में मेरा चेहरा उस आदमी के चेहरे-सा था जिसके राज्यसत्ता के साथ बहुत बुरे सम्बन्ध रहे- वह स्याह पूरे घर में फैल गया है
भारतीय वसंत और पतझड़ के बीच फैले इस अपारदर्शी में अब और भी जरूरत है मुझे तुम्हारी प्यार और अपरायजिंग में होती पराजयों ने मुझे
रोते हुए हँसने का नमूना बना रखा है
मेरे पास आना एक ज़ख्मी आदमी की
कराह सुनने के धीरज के साथ आना है
मेरे और निराला के तख्त के बीच बमुश्किल तीन मील का फासला होगा- मैं इलाहाबाद की आंख और घाव से टपका खून का आख़िरी कतरा तो नहीं ही हूँ
मैंने घर को तुम्हारे आने के लिए तैयार कर रखा है जबकि तुमने कह दिया है कि तुम नहीं आओगी फ़रवरी में – कारण न मैं जानता हूँ न तुम
प्रेम एक टेढ़ी नदी है जो पहाड़ों की घाटियों से शिखरों की तरफ बहती है उल्टी
उल्टियाँ करने का मेरा मन होता रहा है
सिर कितना घूमताssरहा है गेंदबाज़ चंद्रशेखर की लेग स्पिन- सा
तुम्हें याद करना एक बोझ उठाना है
और न याद करना निरुद्देश्य पर्वतारोही हो जाना है
शोकसभा के बाद बिछी रह गई दरी सी है
फरवरी
अट्ठाईस दिनों की फ़रवरी में अगर तुम नहीं आ रही हो तो इसे मैं तीस और इकतीस दिनों का कर दूँगा
इससे ज्यादा क्या चाहती हो क्या कर दूँ पूरा कैलेंडर बदल दूँ ?
(दो)
मैं तुम्हें विचलित करने के लिए कहता हूँ कि तुम अविश्वसनीय हो इसलिए उत्तेजक हो
तुम कहती हो कि तीन साल पुराना प्रेम डेढ क्विंटल राख है
प्रेम के फ़ायरप्लेस में अब संस्मरणों की सूखी लकड़ियाँ जल रही हैं
जलाने के लिए तुम्हारी चिट्ठियाँ नहीं हैं मेरे पास तुम्हारी आवाज़ है और उसके अपरिमित संस्करण जो मुझे पहाड़ों की तरह घेरे रहते हैं और ऐन छत को छूकर गुज़रते हवाई जहाज़ की तरह गूँजते हैं
यह बता पाना मुश्किल है कि तुम्हें याद करना वृत्त में घूमना है या एक दीवार को छूकर दूसरी दीवार ��क जाना है- तुम्हारी स्मृति कारावास है या आभासीय आवासीयता का अनोखा आसमान
हम अलगाव के उजाड़ तुग़लकाबाद में घूम रहे हैं
हमने गणतंत्र दिवस पर एक दूसरे से स्वतंत्र होने का अभिनय किया दो राष्ट्र बना लिए और एक कँटीली फेंस डाल दी बीच में और ज़ल्दबाज़ी में एक दूसरे का संविधान उठा लाये
इतना दुख था कि जैसे प्रेम में घायलों की आख़िरी प्रजाति थे हम और आसक्ति की संस्कृति में कई बार मरने के क्रम का पहला मरना
हमारी स्वायत्तता अब
हमारा अकेलापन है
मालूम है
आधुनिकता अपारगम्य कलह है
तुम्हारी तरफ जाने वाला रास्ता
और मेरी तरफ आने वाली पगडंडी
इस बात की मिसाल हैं
कि हमने सरल को समाधान नहीं माना
मंगलेश के साथ हिंदी के हर सरल वाक्य की मृत्यु हो गई क्या
तुम्हारा फोन नहीं आ रहा इक्कीसवीं सदी के पहले चतुर्थांश का यह अहंवाद है जिसमें स्त्री बोहेमियन हो सकती है
मेरे पास हजारों साल पुराना पुरुष होने का नियंत्रक अहंकार है जो एकनिष्ठ होने का नाट्य कर सकता है और जो एकाधिकार की दार्शनिकता को अभिपुष्ट कर सकता है
मोबाइल एक ब्लैक बोर्ड की तरह ख़ाली है जहाँ नहीं चमकता तुम्हारे संदेश का लाल तारा
व्हाट्सऐप हरे चौकोर घास के मैदान सा निर्जन है
यह डूबने के लिए झुका हुआ जहाज है
पूरा नहीं ध्वस्त है आधा जला बंदरगाह
भूख के उदाहरणों से भरे शहर में
प्रेम छीन लिया गया
जैसे थाली हटा ली जाती है
बुभुक्षु के सामने से
क्या प्रेम सेक्स के रनवे  तक पहुँचने की खड़ंजा वाली मनरेगा रोड भर है
तुमसे अलग होने का दुख पूछता रहा है कि क्यों खत्म होता है आरंभ- वह चाहता है कि लौट आए उस पहले वाक्य की उदग्रता उस दूसरे वाक्य की उसाँस उस तीसरे वाक्य का धैर्य उस नवें वाक्य की असहमति उस तेरहवें वाक्य का विषण्ण और जो इस निरुपाय हठ से भरा है कि फरवरी के फर फर में उड़ती धूप के पर्दे पर उसकी कथा फिल्म देखी जाये निस्सहायता परिभाषित हो और पारस्परिकता के नष्ट होने को एक बड़ी त्रासदी माना जाये
यह प्यार का एकेश्वरवाद था- पत्थरों की उपासना के वैविध्य से भरा बहुदेववाद: पत्थर के सनम, तुझे हमने मुहब्बत का ख़ुदा माना
एक ढहते हुए रेस्तरां में एक मेज़ और आमने सामने रखी घुन खाई दो कुर्सियाँ संवाद के आख़िरी नमूने हैं
उच्चस्थानीय एक प्रतिशत के पास चालीस प्रतिशत और आखिरी पचास प्रतिशत के पास तीन प्रतिशत परिसंपत्ति है और यही हमारी केंद्रीय विपत्ति है, यह कहकर हमने एक दूसरे को कॉमरेड कहा और फिर कभी बात न करने का फैसला किया
रेनेसां की बजाय हमारे पास धार्मिक छिछोरापन है, गाय बचाने की पाशविकता और मनुष्य मारने का सलफास और नागरिकता का मुँह चमकाने की फिटकिरी और हर साल कला और साहित्य के लिए दिये गये पुरस्कारों का कई टन तांबा, टीन और लक्कड़
जले हुए प्रेम के पुस्तकालय के नालंदा के उजाड़ में हैं हम
पत्तों के वस्त्र पहनकर मैं जंगल की तरफ जा रहा हूँ तुम भी आ जाओ री, अनिवारणीय ! सुबह के झुटपुटे अनार के रंग वाली
आओ,
हम प्रकृति के दो पर्ण हो जाएँ
और हिंदी के आरंभिक
उत्तर-मनुष्य
हम दुर्भाग्य के मारे हैं हमारे पास
न नवजागरण है और न साम्यवाद
और न अनीश्वरवाद का महास्नान
एक डग डग प्रधानमंत्री और एक धक धक पूंजीपति के बीच हम क्रांति में न मरने का जेनेटिक डिज़ाइन
और वंशानुगत इनसेस्टुअस मतदाता होने की हेडलाइन हैं भारतीय लोकतंत्र में इच्छाओं
का प्रतिनिधित्व नहीं आसान
क्या अपराधी ही बनाते हैं सरकार, मेरी जान.
_______________
(देवी प्रसाद मिश्र की कविता फ़रवरी का पहला हिस्सा ‘फ़रवरी-एक’ सदानीरा पत्रिका  में भी प्रकाशित हुई है. यह उसका संवर्धित रूप है.)
देवी प्रसाद मिश्र
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bakaity-poetry · 1 year
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शायरी, कविता, नज़्म, गजल, सिर्फ दिल्लगी का मसला नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि कविता ने हमेशा इंसान को सांस लेने की सहूलियत दी है। जब चारों ओर से दुनिया घेरती है; घटनाओं और सूचनाओं के तेज प्रवाह में हमारा विवेक चीजों को छान-घोंट के अलग-अलग करने में नाकाम रहता है; और विराट ब्रह्मांड की शाश्वत धक्कापेल के बीच किसी किस्म की व्यवस्था को देख पाने में असमर्थ आदमी का दम घुटने लगता है; जबकि उसके पास उपलब्ध भाषा उसे अपनी स्थिति बयां कर पाने में नाकाफी मालूम देती है; तभी वह कविता की ओर भागता है। जर्मन दार्शनिक विटगेंस्टाइन कहते हैं कि हमारी भाषा की सीमा जितनी है, हमारा दुनिया का ज्ञान भी उतना ही है। यह बात कितनी अहम है, इसे दुनिया को परिभाषित करने में कवियों के प्रयासों से बेहतर समझा जा सकता है।
कबीर को उलटबांसी लिखने की जरूरत क्यों पड़ी? खुसरो डूबने के बाद ही पार लगने की बात क्यों कहते हैं? गालिब के यहां दर्द हद से गुजरने के बाद दवा कैसे हो जाता है? पाश अपनी-अपनी रक्त की नदी को तैर कर पार करने और सूरज को बदनामी से बचाने के लिए रात भर खुद जलने को क्यों कहते हैं? फैज़ वस्ल की राहत के सिवा बाकी राहतों से क्या इशारा कर रहे हैं? दरअसल, एक जबरदस्त हिंसक मानवरोधी सभ्यता में मनुष्य अपनी सीमित भाषा को ही अपनी सुरक्षा छतरी बना कर उसे अपने सिर के ऊपर तान लेता है। उसकी छांव में वह दुनियावी कोलाहल को अपने ढंग से परिभाषित करता है, अपनी ठोस राय बनाता है और उसके भीतर अपनी जगह तय करता है। एक कवि और शायर ऐसा नहीं करता। वह भाषा की तनी हुई छतरी में सीधा छेद कर देता है, ताकि इस छेद से बाहर की दुनिया को देख सके और थोड़ी सांस ले सक���। इस तरह वह अपने विनाश की कीमत पर अपने अस्तित्व की संभावनाओं को टटोलता है और दुनिया को उन आयामों में संभवत: समझ लेता है, जो आम लोगों की नजर से प्रायः ओझल होते हैं।
भाषा की सीमाओं के खिलाफ उठी हुई कवि की उंगली दरअसल मनुष्यरोधी कोलाहल से बगावत है। गैलीलियो की कटी हुई उंगली इस बगावत का आदिम प्रतीक है। जरूरी नहीं कि कवि कोलाहल को दुश्मन ही बनाए। वह ��ससे दोस्ती गांठ कर उसे अपने सोच की नई पृष्ठभूमि में तब्दील कर सकता है। यही उसकी ताकत है। पाश इसीलिए पुलिसिये को भी संबोधित करते हैं। सच्चा कवि कोलाहल से बाइनरी नहीं बनाता। कविता का बाइनरी में जाना कविता की मौत है। कोलाहल से शब्दों को खींच लाना और धूप की तरह आकाश पर उसे उकेर देना कवि का काम है।
कुमाऊं के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ इस बात को बखूबी समझते थे। एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक जनसभा में उन्होंने फ़ैज़ का गीत 'हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे' गाया, तो देखा कि कोने में बैठा एक मजदूर निर्विकार भाव से बैठा ही रहा। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, गोया कुछ समझ ही न आया हो। तब उन्हें लगा कि फ़ैज़ को स्थानीय बनाना होगा। कुमाऊंनी में उनकी लिखी फ़ैज़ की ये पंक्तियां उत्तराखंड में अब अमर हो चुकी हैं: ‘हम ओढ़, बारुड़ी, ल्वार, कुल्ली-कभाड़ी, जै दिन यो दुनी धैं हिसाब ल्यूंलो, एक हांग नि मांगूं, एक भांग नि मांगू, सब खसरा खतौनी किताब ल्यूंलो।'
प्रेमचंद सौ साल पहले कह गए कि साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है, लेकिन उसे हमने बिना अर्थ समझे रट लिया। गिरदा ने अपनी एक कविता में इसे बरतने का क्या खूबसूरत सूत्र दिया है:
ध्वनियों से अक्षर ले आना क्या कहने हैं
अक्षर से फिर ध्वनियों तक जाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाना क्या कहने हैं
गीतों से कोहराम मचाना क्या कहने हैं
प्यार, पीर, संघर्षों से भाषा बनती है
ये मेरा तुमको समझाना क्या कहने हैं
कोलाहल को गीत बनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? डेल्यूज और गटारी अपनी किताब ह्वॉट इज फिलोसॉफी में लिखते हैं कि दो सौ साल पुरानी पूंजी केंद्रित आधुनिकता हमें कोलाहल से बचाने के लिए एक व्यवस्था देने आई थी। हमने खुद को भूख या बर्बरों के हाथों मारे जाने से बचाने के लिए उस व्यवस्था का गुलाम बनना स्वीकार किया। श्रम की लूट और तर्क पर आधारित आधुनिकता जब ढहने लगी, तो हमारे रहनुमा ही हमारे शिकारी बन गए। इस तरह हम पर थोपी गई व्यवस्था एक बार फिर से कोलाहल में तब्दील होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ है कि वैश्वीकरण ने इस धरती पर मौजूद आठ अरब लोगों की जिंदगी और गतिविधियों को तो आपस में जोड़ दिया है लेकिन इन्हें जोड़ने वाला एक साझा ऐतिहासिक सूत्र नदारद है। कोई ऐसा वैचारिक ढांचा नहीं जिधर सांस लेने के लिए मनुष्य देख सके। आर्थिक वैश्वीकरण ने तर्क आधारित विवेक की सार्वभौमिकता और अंतरराष्ट्रीयतावाद की भावना को तोड़ डाला है। ऐसे में राष्ट्रवाद, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता आदि हमारी पहचान को तय कर रहे हैं। इतिहास मजाक बन कर रह गया है। यहीं हमारा कवि और शायर घुट रहे लोगों के काम आ रहा है।
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helputrust · 4 months
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लखनऊ, 25.12.2023 | भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं महान कवि भारत रत्न श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की 99वी जन्म जयंती पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के 25/2G, सेक्टर 25, इंदिरा नगर, स्थित कार्यालय में "श्रद्धापूर्ण पुष्पांजलि" कार्यक्रम का आयोजन किया गया | कार्यक्रम के अंतर्गत ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल तथा स्वयंसेवकों ने श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें सादर नमन किया |
इस अवसर पर श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि "आज हम श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की 99वी जन्म जयंती मना रहे हैं | आज के दिन को सुशासन दिवस के रूप में भी मनाया जाता है | श्रद्धेय अटल जी एक महान राजनेता ही नहीं  बल्कि एक प्रबुद्ध पत्रकार एवं महान कवि थे | उनके द्वारा लिखी गई कविताओं ने न सिर्फ लोगों  की सोच को एक नई दिशा दी बल्कि युवा वर्ग के मन में छिपे हुए देश प्रेम को झकझोरकर रख दिया | उनकी राजनीतिक सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी कार्यक्रम में जब वह बोलते थे तो विरोधियों के मुंह बंद हो जाया करते थे | यह हमारे लिए अत्यंत गर्व की बात है कि वर्तमान में हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी श्रद्धेय अटल जी द्वारा देश हित में देखे हुए हर सपने को पूरा कर रहे हैं व देश को उन्नति के शिखर पर ले जाने का संपूर्ण प्रयास कर रहे हैं | हम सब भारत रत्न श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की 99वी जन्म जयंती के अवसर पर उन्हें शत-शत नमन करते है |"
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buttercupspotify · 2 years
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• अपूर्ण मानचित्र हैं हम तुम
जब तुम्हें अपलक निहारते हुए
सोचने लगा था कि तुम्हारे कटिभाग के दक्षिण में
ये कैसी रेखाएँ उभरी हुई हैं समुद्री लहरों से भरी हुई
वह कौन-सा कोषागार है
जिसे खोजा नहीं जा सका अभीतक
मैं रेखा-विद्या से अपरिचित रहा जीवनपर्यंत
तुम्हारे प्रेम ने मुझे कवि से
देह के भूगोल की ओर आकृष्ट
एक जिज्ञासु विद्यार्थी बना दिया था
जिसे स्मरण होने लगे थे
नदियों, झीलों, अरण्यों और पर्वतों के नाम
बिना किसी प्रयास के
अपने खाली बचे समय में
अकारण चुम्बनों की गणनाएँ की हमने
मानो जान बूझकर अक्षम्य अपराध कर रहे हों
जिसका कहीं कोई प्रायश्चित नहीं
जिसकी कहीं कोई क्षमायाचना नहीं
अंततः वह दुर्दिन भी दिख जाता है
जब पृथ्वी से टकराते एक उद्दंड उल्कापिंड की भांति
देह से विरह टकराता है
और सबकुछ स्मृतियों म��ं बदल जाता है
जैविक-अजैविक अवशेष भर रह जाते हैं बिखरे हुए
देखते ही देखते
हम-तुम किसी प्राचीन नगर का अपूर्ण मानचित्र बन गए
हमारा पुनर्मिलन प्रेम की नष्ट हो चुकी
एक अज्ञात सभ्यता की खोज भर है
हम प्रेम के लिए नहीं
प्रेम की परिभाषाओं के सत्यापन के लिए खोजे जाएँगे
• समर्पिता ♡
Picture Credit @tarunchouhan_ph on Instagram
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