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#मातृभाषा
corvidsindia · 7 months
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सम्पूर्ण भारत देश को एकता के सूत्र में बांधने वाली हिन्दी केवल एक भाषा नहीं अपितु भावो की अभिव्यक्ति है, और हमारी मात्र भाषा का सम्मान करना प्रत्येक देश वासी का कर्तव्य हैं। 
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vertexonindia · 7 months
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हिंदी दिवस के इस खास मौके पर, हम सभी मिलकर हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका की याद करते हैं। 📖
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sarhadkasakshi · 1 year
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फाउंडेशन लर्निंग के लिये उचित माध्यम है मातृभाषा: डाॅ. धन सिंह रावत
फाउंडेशन लर्निंग के लिये उचित माध्यम है मातृभाषा: डाॅ. धन सिंह रावत
कहा, एनईपी-2020 में स्कूलों को मातृभाषा में पढ़ाने की अनुमति फाउंडेशन लर्निंग के लिये उचित माध्यम है मातृभाषा, यह बात विद्यालयी शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ने वर्चुअल माध्यम से ‘मातृभाषा उत्सव’ के उद्घाटन अवसर पर कही। लोक भाषाओं में बच्चों की अभिव्यक्ति बढ़ाने एवं मातृभाषा के प्रति बच्चों में सम्मान की भावना विकसित करने के उद्देश्य से राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखंड द्वारा…
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rebel-bulletin · 2 years
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ज्ञान, विज्ञान आणि तंत्रशिक्षणात मातृभाषा आणि राष्ट्रभाषेचा उपयोग करण्यात येणार – सांस्कृतिक कार्यमंत्री सुधीर मुनगंटीवार
ज्ञान, विज्ञान आणि तंत्रशिक्षणात मातृभाषा आणि राष्ट्रभाषेचा उपयोग करण्यात येणार – सांस्कृतिक कार्यमंत्री सुधीर मुनगंटीवार
मुंबई : मराठी ही आपली मातृभाषा आहे तर हिंदी ही आपली राष्ट्रभाषा आहे. ज्ञान, विज्ञान  आणि तंत्रशिक्षणात अधिकाधिक मातृभाषा आणि राष्ट्रभाषेचा उपयोग दैनंदिन वापरात करण्यावर भर देण्यात येणार असल्याचे सांस्कृतिक कार्य मंत्री सुधीर मुनगंटीवार यांनी सांगितले. आज सह्याद्री अतिथीगृह येथे हिंदी दिवस साजरा करण्यात आला. त्यावेळी हिंदी साहित्यिक डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे आणि आनंद सिंह यांच्यासह सांस्कृतिक कार्य…
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humsabkaadvisor · 2 years
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हमसबका एडवाइजर की ओर से सभी देशवासियों को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
कॉल या व्हाट्सएप करें: 7669256170/ 87008 46995 https://humsabkaadvisor.com/
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todaypostlive · 1 year
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मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा पर राज्यस्तरीय सम्मेलन का आयोजन
मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा पर राज्यस्तरीय सम्मेलन का आयोजन
रांची। झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद,  यूनिसेफ और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट के सहयोग से  27 से 29 तक होटल बीएनआर चाणक्या रांची में “मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा” पर राज्य स्तरीय सम्मलेन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि  किरण कुमारी पासी, राज्य परियोजना निर्देशक डॉक्टर अविनव कुमार,  राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी एवं सुनीशा आहूजा, शिक्षा विशेषज्ञ यूनिसेफ दिल्ली पारुल शर्मा,  शिक्षा…
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studycarewithgsbrar · 2 years
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KISS ने मातृभाषा आधारित शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित यूनेस्को साक्षरता पुरस्कार 2022 जीता - टाइम्स ऑफ इंडिया
KISS ने मातृभाषा आधारित शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित यूनेस्को साक्षरता पुरस्कार 2022 जीता – टाइम्स ऑफ इंडिया
कलिंग सामाजिक विज्ञान संस्थान (केआई���सएस), भुवनेश्वर ने अंतरराष्ट्रीय जूरी की सिफारिशों के आधार पर अपने उत्कृष्ट साक्षरता कार्यक्रम के लिए प्रतिष्ठित यूनेस्को किंग सेजोंग साक्षरता पुरस्कार 2022 जीता है। यूनेस्को किंग सेजोंग साक्षरता पुरस्कार कोरिया गणराज्य की सरकार द्वारा प्रायोजित है और मातृभाषा आधारित साक्षरता विकास में योगदान को मान्यता देता है। KISS को ‘मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा’…
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helputrust · 7 months
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लखनऊ, 16.09.2023 | हिंदी दिवस-2023 के उपलक्ष्य  में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में "स्वरचित कविता पाठ, वाद विवाद प्रतियोगिता एवं पुरस्कार वितरण" कार्यक्रम का आयोजन भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, गोमती नगर, लखनऊ में किया गया | कार्यक्रम में कॉलेज की छात्राओं ने अपने द्वारा लिखी हुई कविताओं का पाठ किया तथा "इंडिया बनाम भारत" विषय पर पक्ष एवं विपक्ष में अपने विचार रखें जिन्हें निर्णायक मंडल में उपस्थित डॉ अलका पांडे, प्रोफेसर, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय तथा डॉ अलका निवेदन, प्राचार्या, भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज गोमती नगर, लखनऊ  द्वारा जज किया गया |
छात्राओं ने अपनी कविता व विचारों के माध्यम से समाज मे हिंदी भाषा की दशा पर कटाक्ष किया व यह भी बताया कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारा अभिमान है| हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए |
स्वरचित कविता पाठ की प्रथम तीन विजेताओं को डॉ अलका पांडे व डॉ अलका निवेदन नें स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र एवं वाद विवाद प्रतियोगिता में पक्ष एवं विपक्ष की प्रथम विजेताओं को स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया |
स्वरचित कविता पाठ तथा वाद विवाद प्रतियोगिता की विजेताओं के नाम इस प्रकार हैं:
1. प्रथम पुरस्कार:  अर्चना कुमारी (B.A.lll year)
2. द्वितीय पुरस्कार: सुप्रिया श्रीवास्तव ( B.A.lll year)
3. तृतीय पुरस्कार:  प्रतीक्षा (B.A. lll year)
4. सांत्वना पुरस्कार:  प्रिया मिश्रा (B.A. ll year) एवं पलक मिश्रा (B.A. lll year)
वाद विवाद प्रतियोगिता
1. संस्कृति पाठक (B.A.ll year)
2. आयुषी जायसवाल (B.A.ll year)
इस अवसर पर डॉ अलका पांडे ने हिंदी भाषा के परिष्कृत व्याकरण पर प्रकाश डालते हुए वैश्विक स्तर पर उसके महत्व की विवेचना की ।
डॉ अलका निवेदन ने प्रमुख हिंदी साहित्यकारों का उदाहरण देते हुए छात्राओं को जीवन मे अधिकाधिक हिंदी भाषा के प्रयोग हेतु प्रे��ित किया ।
कार्यक्रम में भारतीय विद्या भवन गर्ल्स डिग्री कॉलेज के उप प्राचार्य डॉ संदीप बाजपेई तथा शिक्षिकाओं डॉ छवि निगम, डॉ प्रियंका सिंह, पलक सिंह, ममता यादव, श्वेता विश्वकर्मा, प्रिया श्रीवास्तव, डॉ चित्रा मोदी, नजमा शकील, डॉ नम्रता सिंह, यामिनी शर्मा, रसिका कनौजिया,आलोक मिश्रा तथा छात्राओं  की गरिमामयी उपस्थिति रही |
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helpukiranagarwal · 3 months
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भरी-पूरी हों सभी बोलियाँ, यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी, यही साधना हिंदी है।
विश्व के समस्त हिन्दी प्रेमियों को 'विश्व हिन्दी दिवस' की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
हमारी मातृभाषा हिन्दी अनेकता में एकता के मूल्यों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय सभ्‍यता, संस्कृति एवं परम्पराओं को अपने में संजोए हुए विश्व की सर्वाधिक प्राचीन समृद्ध व सरल भाषा है ।
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drmullaadamali · 1 year
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International Mother Language Day 2023: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है?
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drrupal-helputrust · 7 months
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
समस्त हिंदी प्रेमी साहित्यकारों, भाषाविदों, लेखकों एवं शिक्षकों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
हमारी हिंदी भाषा भारतीय सनातनी संस्कृति और परंपरा एवं अपनी मधुरता व अपने साहित्य के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात है ।
आइए हम सब अपने लेखन एवं वार्तालाप में अपनी मातृभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करने का संकल्प करें ।
#हिंदी_दिवस_2023
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helputrust-drrupal · 7 months
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
समस्त हिंदी प्रेमी साहित्यकारों, भाषाविदों, लेखकों एवं शिक्षकों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
हमारी हिंदी भाषा भारतीय सनातनी संस्कृति और परंपरा एवं अपनी मधुरता व अपने साहित्य के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात है ।
आइए हम सब अपने लेखन एवं वार्तालाप में अपनी मातृभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करने का संकल्प करें ।
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helputrust-harsh · 7 months
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।
समस्त हिंदी प्रेमी साहित्यकारों, भाषाविदों, लेखकों एवं शिक्षकों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
हमारी हिंदी भाषा भारतीय सनातनी संस्कृति और परंपरा एवं अपनी मधुरता व अपने साहित्य के लिए संपूर्ण विश्व में विख्यात है ।
आइए हम सब अपने लेखन एवं वार्तालाप में अपनी मातृभाषा हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करने का संकल्प करें ।
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trucksquared · 1 year
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शुभ मातृभाषा uh. talk day
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naveensarohasblog · 2 years
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#कबीर_बड़ा_या_कृष्ण_Part92
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‘‘वेदों में कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर का प्रमाण‘‘
(पवित्र वेदों में प्रवेश से पहले)
प्रभु जानकारी के लिए पवित्र चारों वेद प्रमाणित शास्त्र हैं। पवित्र वेदों की रचना उस समय हुई थी जब कोई अन्य धर्म नहीं था। इसलिए पवित्र वेदवाणी किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है, केवल आत्म कल्याण के लिए है। इनको जानने के लिए निम्न व्याख्या बहुत ध्यान तथा विवेक के साथ पढ़नी तथा विचारनी होगी।
प्रभु की विस्तृत तथा सत्य महिमा वेद बताते हैं। (अन्य शास्त्र‘‘श्री गीता जी व चारों वेदों तथा पूर्वोक्त प्रभु प्राप्त महान संतों तथा स्वयं कबीर साहेब(कविर्देव) जी की अपनी पूर्ण परमात्मा की अमृत वाणी के अतिरिक्त‘‘ अन्य किसी ऋषि साधक की अपनी उपलब्धि है। जैसे छः शास्त्र ग्यारह उपनिषद् तथा सत्यार्थ प्रकाश आदि। यदि ये वेदों की कसौटी में खरे नहीं उतरते हैं तो यह सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है।)
पवित्र वेद तथा गीता जी स्वयं काल प्रभु(ब्रह्म) दत्त हैं। जिन में भक्ति विधि तथा उपलब्धि दोनों सही तौर पर वर्णित हैं। इनके अतिरिक्त जो पूजा विधि तथा अनुभव हैं वह अधूरा समझें। यदि इन्हीं के अनुसार कोई साधक अनुभव बताए तो सत्य जानें। क्योंकि कोई भी प्राणी प्रभु से अधिक नहीं जान सकता।
वेदों के ज्ञान से पूर्वोक्त महात्माओं का विवरण सही मिलता है। इससे सिद्ध हुआ कि वे सर्व महात्मा पूर्ण थे। पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार हुआ है तथा बताया है वह परमात्मा कबीर साहेब(कविर् देव) है।
वही ज्ञान चारों पवित्र वेद तथा पवित्र गीता जी भी बताते हैं।
कलियुगी ऋषियों ने वेदों का टीका (भाषा भाष्य) ऐसे कर दिया जैसे कहीं दूध की महिमा कही गई हो और जिसने कभी जीवन में दूध देखा ही न हो और वह अनुवाद कर रहा हो, वह ऐसे करता है:-
पोष्टिकाहार असि। पेय पदार्थ असि। श्वेदसि।
अमृत उपमा सर्वा मनुषानाम पेय्याम् सः दूग्धः असिः।
(पौष्टिकाहार असि)=कोई शरीर पुष्ट कर ने वाला आहार है (पेय पदार्थ) पीने का तरल पदार्थ (असि) है। (श्वेत्) सफेद (असि) है। (अमृत उपमा) अमृत सदृश है (सर्व) सब (मनुषानाम्) मनुष्यों के (पेय्याम्) पीने योग्य (सः) वह (दूग्धः) पौष्टिक तरल (असि) है।
भावार्थ किया:- कोई सफेद पीने का तरल पदार्थ है जो अमृत समान है, बहुत पौष्टिक है, सब मनुष्यों के पीने योग्य है, वह स्वयं तरल है। फिर कोई पूछे कि वह तरल पदार्थ कहाँ है? उत्तर मिले वह तो निराकार है। प्राप्त नहीं हो सकता। यहाँ पर दूग्धः को तरल पदार्थ लिख दिया जाए तो उस वस्तु ‘‘दूध‘‘ को कैसे पाया व जाना जाए जिसकी उपमा ऊपर की है? यहाँ पर (दूग्धः) को दूध लिखना था जिससे पता चले कि वह पौष्टिक आहार दूध है। फिर व्यक्ति दूध नाम से उसे प्राप्त कर सकता है।
विचार:- यदि कोई कहे दुग्धः को दूध कैसे लिख दिया? यह तो वाद-विवाद का प्रत्यक्ष प्रमाण ही हो सकता है। जैसे दुग्ध का दूध अर्थ गलत नहीं है। भाषा भिन्न होने से हिन्दी में दूध तथा क्षेत्रीय भाषा में दूधू लिखना भी संस्कृत भाषा में लिखे दुग्ध का ही बोध है। जैसे पलवल शहर के आसपास के ग्रामीण परवर कहते हैं। यदि कोई कहे कि परवर को पलवल कैसे सिद्ध कर दिया, मैं नहीं मानता। यह तो व्यर्थ का वाद विवाद है। ठीक इसी प्रकार कोई कहे कि कविर्देव को कबीर परमेश्वर कैसे सिद्ध कर दिया यह तो व्यर्थ का वाद-विवाद ही है। जैसे ‘‘यजुर्वेद‘‘ है यह एक धार्मिक पवित्र पुस्तक है जिसमें प्रभु की यज्ञिय स्तुतियों की ऋचाऐं लिखी हैं तथा प्रभु कैसा है? कैसे पाया जाता है? सब विस्तृत वर्णन है।
अब पवित्र यजुर्वेद की महिमा कहें कि प्रभु की यज्ञीय स्तुतियों की ऋचाओं का भण्डार है। बहुत अच्छी विधि वर्णित है। एक अनमोल जानकारी है और यह लिखें नहीं कि वह ‘‘यजुर्वेद‘‘ है अपितु यजुर्वेद का अर्थ लिख दें कि यज्ञीय स्तुतियों का ज्ञान है। तो उस वस्तु (पवित्र पुस्तक) को कैसे पाया जा सके? उसके लिए लिखना होगा कि वह पवित्र पुस्तक ‘‘यजुर्वेद‘‘ है जिसमें यज्ञीय ऋचाऐं हैं।
अब यजुर्वेद की सन्धिच्छेद करके लिखें। यजुर्$वेद, भी वही पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध है। यजुः+वेद भी वही पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध है। जिसमें यज्ञीय स्तुति की ऋचाऐं हैं। उस धार्मिक पुस्तक को यजुर्वेद कहते हैं। ठीक इसी प्रकार चारों पवित्र वेदों में लिखा है कि वह कविर्देव(कबीर परमेश्वर) है। जो सर्व शक्तिमान, जगत्पिता, सर्व सृष्टि रचनहार, कुल मालिक तथा पाप विनाशक व काल की कारागार से छुटवाने वाला अर्थात् बंदी छोड़ है।
इसको कविर्+देव लिखें तो भी कबीर परमेश्वर का बोध है। कविः+देव लिखें तो भी कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर् प्रभु का ही बोध है।
इसलिए कविर्देव उसी कबीर साहेब का ही बोध करवाता है:- सर्व शक्तिमान, अजर-अमर, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार कुल मालिक है क्योंकि पूर्वोक्त प्रभु प्राप्त सन्तों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में ‘कविर्‘ को ‘कबीर‘ बोला है तथा ‘वेद‘ को ‘बेद‘ बोला है। इसलिए ‘व‘ और ‘ब‘ के अंतर हो जाने पर भी पवित्र शास्त्र वेद का ही बोध है।
विचार:- जैसे कोई अंग्रेजी भाषा में लिखें कि God Kavir (Kaveer) is almighty इसका हिन्दी अनुवाद करके लिखें कविर या कवीर परमेश्वर सर्व शक्तिमान है।
अब अंग्रेजी भाषा में तो हलन्त ( ् ) की व्यवस्था ही नहीं है। फिर मात्र भाषा में इसी को कबीर कहने तथा लिखने लगे।
यही परमात्मा कविर्देव(कबीर परमेश्वर) तीन युगों में नामान्तर करके आते हैं जिनमें इनके नाम रहते हैं - सतयुग में सत सुकृत, त्रेतायुग में मुनिन्द्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर देव (कविर्देव)। वास्तविक नाम उस पूर्ण ब्रह्म का कविर् देव ही है। जो सृष्टि रचना से पहले भी अनामी लोक में विद्यमान थे। इन्हीं के उपमात्मक नाम सतपुरुष, अकाल मूर्त, पूर्ण ब्रह्म, अलख पुरुष, अगम पुरुष, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। उसी परमात्मा को चारों पवित्र वेदों में ‘‘कविरमितौजा‘‘, ‘‘कविरघांरि‘‘, ‘‘कविरग्नि‘‘ तथा ‘‘कविर्देव‘‘, कहा है तथा सर्वशक्तिमान, सर्व सृष्टि रचनहार बताया है। पवित्र कुरान शरीफ में सुरत फुर्कानी नं. 25 आयत नं. 19,21,52,58,59 में भी प्रमाण है। कई एक का विरोध है कि जो शब्द कविर्देव‘ है इसको सन्धिच्छेद करने से कविः$देवः बन जाता है यह कबिर् परमेश्वर या कबीर साहेब कैसे सिद्ध किया? व को ब तथा छोटी इ ( ि) की मात्र को बड़ी ई ( ी) की मात्रा करना बेसमझी है।
विचार:- एक ग्रामीण लड़के की सरकारी नौकरी लगी। जिसका नाम कर्मवीर पुत्र श्री धर्मवीर सरकारी कागजों में तथा करमबिर पुत्र श्री धरमबिर पुत्र परताप गाँव के चैकीदार की डायरी में जन्म के समय का लिखा था। सरकार की तरफ से नौकरी लगने के बाद जाँच पड़ताल कराई जाती है। एक सरकारी कर्मचारी जाँच के लिए आया। उसने पूछा कर्मवीर पुत्र श्री धर्मवीर का मकान कौन-सा है, उसकी अमूक विभाग में नौकरी लगी है। गाँव में कर्मवीर को कर्मा तथा उसके पिता जी को धर्मा तथा दादा जी को प्रता आदि उर्फ नामों से जानते थे। व्यक्तियों ने कहा इस नाम का लड़का इस गाँव में नहीं है। काफी पूछताछ के बाद एक लड़का जो कर्मवीर का सहपाठी था, उसने बताया यह कर्मा की नौकरी के बारे में है। तब उस बच्चे ने बताया यही कर्मबीर उर्फ कर्मा तथा धर्मबीर उर्फ धर्मा ��ी है। फिर उस कर्मचारी को शंका उत्पन्न हुई कि कर्मबीर नहीं कर्मवीर है। उसने कहा चैकीदार की डायरी लाओ, उसमें भी लिखा था - ‘‘करमबिर पुत्र धरमबिर पुत्र परताप‘‘ पूरा ‘‘र‘‘ ‘‘व‘‘ के स्थान पर ‘‘ब‘‘ तथा छोटी ‘‘‘ि‘ की मात्रा लगी थी। तो भी वही बच्चा कर्मवीर ही सिद्ध हुआ, क्योंकि गाँव के नम्बरदारों तथा प्रधानों ने भी गवाही दी कि बेशक मात्रा छोटी बड़ी या ‘‘र‘‘ आधा या पूरा है, लड़का सही इसी गाँव का है। सरकारी कर्मचारी ने कहा नम्बरदार अपने हाथ से लिख दे। नम्बरदार ने लिख दिया मैं करमविर पूतर धरमविर को जानता हूँ जो इस गाम का बासी है और हस्त्ताक्षर कर दिए। बेशक नम्बरदार ने विर में छोटी ई()ि) की मात्रा का तथा करम में बड़े ‘‘र‘‘ का प्रयोग किया है, परन्तु हस्त्ताक्षर करने वाला गाँव का गणमान्य व्यक्ति है। किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि नाम की स्पेलिंग गलत नहीं होती।
ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा का नाम सरकारी दस्त्तावेज (वेदों) में कविर्देव है, परन्तु गाँव(पृथ्वी) पर अपनी-2 मातृ भाषा में कबीर, कबिर, कबीरा, कबीरन् आदि नामों से जाना जाता है। इसी को नम्बरदारों(आँखों देखा विवरण अपनी पवित्र वाणी में ठोक कर गवाही देते हुए आदरणीय पूर्वोक्त सन्तों) ने कविर्देव को हक्का कबीर, सत् कबीर, कबीरा, कबीरन्, खबीरा, खबीरन् आदि लिख कर हस्त्ताक्षर कर रखे हैं।
वर्तमान (सन् 2006)से लगभग 600 वर्ष पूर्व जब परमात्मा कबीर जी (कविर्देव जी) स्वयं प्रकट हुए थे उस समय सर्व सद्ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान लोकोक्तियों (दोहों, चोपाईयों, शब्दों अर्थात् कविताओं) के माध्यम से साधारण भाषा में जन साधारण को बताया था। उस तत्त्व ज्ञान को उस समय के संस्कृत भाषा व हिन्दी भाषा के ज्ञाताओं ने यह कह कर ठुकरा दिया कि कबीर जी तो अशिक्षित है। इस के द्वारा कहा गया ज्ञान व उस में उपयोग की गई भाषा व्याकरण दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। जैसे कबीर जी ने कहा है:-
कबीर बेद मेरा भेद है, मैं ना बेदों माहीं।
जौण बेद से मैं मिलु ये बेद जानते नाहीं।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी ने कहा है कि जो चार वेद है ये मेरे विषय में ही ज्ञान बता रहे हैं परन्तु इन चारों वेदों में वर्णित विधि द्वारा मैं (पूर्ण ब्रह्म) प्राप्त नहीं हो सकता। जिस वेद (स्वसम अर्थात् सूक्ष्म वेद) में मेरी प्राप्ति का ज्ञान है। उस को चारों वेदों के ज्ञाता नहीं जानते। इस वचन को सुनकर। उस समय के आचार्यजन कहते थे कि कबीर जी को भाषा का ज्ञान नहीं है। देखो वेद का बेद कहा है। नहीं का नाहीं कहा है। ऐसे व्यक्ति को शास्त्रों का क्या ज्ञान हो सकता है? इसलिए कबीर जी मिथ्या भाषण करते हैं। इस की बातों पर विश्वास नहीं करना। स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास ग्यारह पृष्ठ 306 पर कबीर जी के विषय में यही कहा है। वर्तमान में मुझ दास (संत रामपाल दास) के विषय में विज्ञापनों में लिखे लेख पर आर्य समाज के आचार्यों ने यही आपत्ति व्यक्त की थी कि रामपाल को हिन्दी भाषा भी सही नहीं लिखनी आती व को ब लिखता है छोटी-बड़ी मात्राओं को गलत लिखता है। कोमा व हलन्त भी नहीं लगाता। इसका ज्ञान कैसे सही माना जाए।
विचार:- किसी लड़के का विवाह एक सुन्दर सुशील युवती से हो गया। उसने साधारण वस्त्र पहने थे। मेकअप (हार, सिंगार) नहीं कर रखा था। उस के विषय में कोई कहे कि ‘‘यह भी कोई विवाह है। वधु ने मेकअप (हार, सिंगार-आभूषण आदि नहीं पहने) नहीं किया है। विचार करें विवाह का अर्थ है पुरूष को पत्नी प्राप्ति। यदि मेकअप (श्रृंगार) नहीं कर रखा तो वांच्छित वस्तु प्राप्त है। यदि श्रृंगार कर रखा है लड़की ने तो भी बुरा नहीं किया, परन्तु एक श्रृंगार के अभाव से विवाह को ही नकार देना कौन सी बुद्धिमता है। ठीक इसी प्रकार परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ तथा संत रामपाल दास जी महाराज द्वारा दिया तत्त्व ज्ञान है। वास्तविक ज्ञान प्राप्त है। यदि भाषा में श्रृंगार का अभाव अर्थात् मात्राओं व हलन्तों की कमी है तो विद्वान पुरूष कृप्या ठीक करके पढ़ें।
इस तरह इस उलझी हुई ज्ञानगुत्थी को सुलझाया जाएगा। इसमें भाषा तथा व्याकरण की भूमिका क्या है?
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने अपने द्वारा रचे पवित्र उपनिषद् ‘‘सत्यार्थ प्रकाश‘‘ के सातवें समुलास में (पृष्ठ नं. 217, 212 अजमेर से प्रकाशित तथा पृष्ठ संख्या 173 दीनानगर दयानन्द मठ पंजाब से प्रकाशित) लिखा है, उसका भावार्थ है कि ब्रह्म ने वेद वाणी चार ऋषियों में जीवस्थ रूप से बोले। जैसे लग रहा था कि ऋषि वेद बोल रहे थे, परन्तु ब्रह्म बोल रहा था तथा ऋषियों का मुख प्रयोग कर रहा था। (‘‘जीवस्थ रूप‘‘ का भावार्थ है जैसे ऋषियों के अन्दर कोई और जीव स्थापित होकर बोल रहा हो) बाद में उन ऋषियों को कुछ मालूम नहीं कि क्या बोला, क्या लिखा? (जैसे कोई प्रेतात्मा किसी के शरीर में प्रवेश करके बोलती है। उस समय लग रहा होता है कि शरीर वाला जीव ही बोल रहा है, परन्तु प्रेत के निकल जाने के बाद उस शरीर वाले जीव को कुछ मालूम नहीं होता, मैंने क्या बोला था)।
इसी प्रकार बाद में ऋषियों ने वेद भाषा को जानने के ��िए व्याकरण निघटु आदि की रचना की। जो स्वामी दयानन्द जी के शब्दों में सत्यार्थ प्रकाश तीसरे समुल्लास (पृष्ठ नं. 80, अजमेर से प्रकाशित तथा पृष्ठ संख्या 64 दीनानगर पंजाब से प्रकाशित) में पवित्र चारों वेद ईश्वर कृत होने से निभ्रात हैं, वेदों का प्रमाण वेद ही हैं। चारों ब्राह्मण, व्याकरण, निघटु आदि ऋषियों कृत होने से त्रुटि युक्त हो सकते हैं। उपरोक्त विचार स्वामी दयानन्द जी के हैं।
विचार करें वेद पढ़ने वाले ऋषियों के अपने विचारों से रचे उपनिषद् एक दूसरे के विपरीत व्याख्या कर रहे हैं। इसलिए वेद ज्ञान को तत्त्वज्ञान से ही समझा जा सकता है। तत्त्वज्ञान (स्वसम वेद) पूर्ण ब्रह्म कविर्देव ने स्वयं आकर बताया है तथा चारों वेदों का ज्ञान ब्रह्म द्वारा बताया गया है और वेदों को बोलने वाला ब्रह्म स्वयं पवित्र यजुर्वेद अध्याय नं. 40 मन्त्रा नं. 10 में कह रहा है कि उस पूर्ण ब्रह्म को कोई तो (सम्भवात्) जन्म लेकर प्रकट होने वाला अर्थात् आकार में(आहुः) कहता है तथा कोई (असम्भवात्) जन्म न लेने वाला अर्थात् व निराकार(आहुः) कहते हैं। परन्तु इसका वास्तविक ज्ञान तो(धीराणाम्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्त्वदर्शी संतजन (विचचक्षिरे) पूर्ण निर्णायक भिन्न भिन्न बताते हैं (शुश्रुम्) उसको ध्यानपूर्वक सुनो। इससे स्वसिद्ध है कि वेद बोलने वाला ब्रह्म भी स्वयं कह रहा है कि उस पूर्ण ब्रह्म के बारे में मैं भी पूर्ण ज्ञान नहीं रखता। उसको तो कोई तत्त्वदर्शी संत ही बता सकता है। इसी प्रकार इसी अध्याय के मन्त्रा नं. 13 में कहा है कि कोई तो (विद्याया) अक्षर ज्ञानी एक भाषा के जानने वाले को ही विद्वान कहते हैं, दूसरे (अविद्याया) निरक्षर को अज्ञानी कहते हैं, यह जानकारी भी (धीराणाम्) तत्त्वदर्शी संतजन ही (विचचक्षिरे) विस्तृत व्याख्या ब्यान करते हैं (तत्) उस तत्त्वज्ञान को उन्हीं से (शुश्रुम्) ध्यानपूर्वक सुनो अर्थात् वही तत्त्वदर्शी संत ही बताएगा कि विद्वान अर्थात् ज्ञानी कौन है तथा अज्ञानी अर्थात् अविद्वान कौन है।
विशेष:- उपरोक्त प्रमाणों को विवेचन करके सद्भावना पूर्वक पुनर्विचार करें तथा व को ब तथा छोटी बड़ी मात्राओं की शुद्धि-अशुद्धि से ही ज्ञानी व अज्ञानी की पहचान नहीं होती, वह तो तत्त्वज्ञान से ही होती है।
(कविर् देव) = कबीर परमेश्वर के विषय में ‘व‘ को ‘ब‘ कैसे सिद्ध किया है? छोटी इ( ि) की मात्रा बड़ी ई( ी) की मात्रा कैसे सिद्ध हो सकती है? इस वाद-विवाद में न पड़कर तत्त्वज्ञान को समझना है।
जैसे यजुर्वेद है, यह एक पवित्र पुस्तक है। इसके विषय में कहीं संस्कृत भाषा में विवरण किया हो जहां यजुः या यजुम् आदि शब्द लिखें हो तो भी पवित्र पुस्तक यजुर्वेद का ही बोध समझा जाता है। इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव है। इसी को भिन्न-भिन्न भाषा में कबीर साहेब, कबीर परमेश्वर कहने लगे। कई श्रद्धालु शंका व्यक्त करते हैं कि कविर् को कबीर कैसे सिद्ध कर दिया। व्याकरण दृष्टिकोण से कविः का अर्थ सर्वज्ञ होता है। दास की प्रार्थना है कि प्रत्येक शब्द का कोई न कोई अर्थ तो बनता ही है। रही बात व्याकरण की। भाषा प्रथम बनी क्योंकि वेद वाणी प्रभु द्वारा कही है, तथा व्याकरण बाद में ऋषियों द्वारा बनाई है। यह त्रुटियुक्त हो सकती है। वेद के अनुवाद (भाषा-भाष्य) में व्याकरण व्यतय है अर्थात् असंगत तथा विरोध भाव है। क्योंकि वेद वाणी मंत्रों द्वारा पदों में है। जैसे पलवल शहर के आस-पास के व्यक्ति पलवल को परवर बोलते हैं। यदि कोई कहे कि पलवल को कैसे परवर सिद्ध कर दिया। यही कविर् को कबीर कैसे सिद्ध कर दिया कहना मात्र है। जैसे क्षेत्रीय भाषा में पलवल शहर को परवर कहते हैं। इसी प्रकार कविर् को कबीर बोलते हैं, प्रभु वही है। महर्षि दयानन्द जी ने ‘‘सत्यार्थ प्रकाश’’ समुल्लास 4 पृष्ठ 100 पर (दयानन्द मठ दीनानगर पंजाब से प्रकाशित पर) ‘‘देवृकामा’’का अर्थ देवर की कामना करने किया है देवृ को पूरा ‘‘ र ’’ लिख कर देवर किया है। कविर् को कविर फिर भाषा भिन्न कबीर लिखने व बोलने में कोई आपत्ति या व्याकरण की त्रुटि नहीं है। पूर्ण परमात्मा कविर्देव है, यह प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 तथा सामवेद संख्या 1400 में भी है जो निम्न है:-
यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25 (संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य):-
समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।
समिद्धः अद्य मनुषः दुरोणे देवः देवान्य ज्अ सि जातवेदः आ च वह मित्रमहः चिकित्वान्त्व म् दूतः कविर् असि प्रचेताः
अनुवाद:- (अद्य) आज अर्थात् वर्तमान में (दुरोणे) शरीर रूप महल में दुराचार पूर्वक (मनुषः) झूठी पूजा में लीन मननशील व्यक्तियों को (समिद्धः) लगाई हुई आग अर्थात् शास्त्र विधि रहित वर्तमान पूजा जो हानिकारक होती है, उसके स्थान पर (देवान्) देवताओं के (देवः) देवता (जातवेदः) पूर्ण परमात्मा सतपुरूष की वास्तविक (यज्) पूजा (असि) है। (आ) दयालु (मित्रमहः) जीव का वास्तविक साथी पूर्ण परमात्मा ही अपने (चिकित्वान्) स्वस्थ ज्ञान अर्थात यथार्थ भक्ति को (दूतः) संदेशवाहक रूप में (वह) लेकर आने वाला (च) तथा (प्रचेताः) बोध कराने वाला (त्वम्) आप (कविरसि) कविर्देव है अर्थात् कबीर परमेश्वर हैं।
भावार्थ - जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्त्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आता है।
संख्या नं. 1400 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5
(संत रामपाल दास द्वारा भाषा-भाष्य):-
भद्रा वस्त्र समन्या3वसानो महान् कविर्निवचनानि शंसन्।
आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ।।5।।
भद्रा वस्त्र समन्या वसानः महान् कविर् निवचनानि शंसन् आवच्यस्व चम्वोः पूयमानः विचक्षणः जागृविः देव वीतौ
अनुवाद:- (सम् अन्या) अपने शरीर जैसा अन्य (भद्रा वस्त्रा) सुन्दर चोला यानि शरीर (वसानः) धारण करके (महान् कविर्) समर्थ कविर्देव यानि कबीर परमेश्वर (निवचनानि शंसन्) अपने मुख कमल से वाणी बोलकर यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है, यथार्थ वर्णन करता है। जिस कारण से (देव) परमेश्वर की (वितौ) भक्ति के लाभ को (जागृविः) जागृत यानि प्रकाशित करता है। (विचक्षणः) कथित विद्वान सत्य साधना के स्थान पर (आ वच्यस्व) अपने वचनों से (पूयमानः) आन-उपासना रूपी मवाद (चम्वोः) आचमन करा रखा होता है यानि गलत ज्ञान बता रखा होता है।
भावार्थ:- जैसे यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र एक में कहा है कि ‘अग्नेः तनुः असि = परमेश्वर सशरीर है। विष्णवे त्वा सोमस्य तनुः असि = उस अमर प्रभु का पालन पोषण करने के लिए अन्य शरीर है जो अतिथि रूप में कुछ दिन संसार में आता है। तत्त्व ज्ञान से अज्ञान निंद्रा में सोए प्रभु प्रेमियों को जगाता है। वही प्रमाण इस मंत्र में है कि कुछ समय के लिए पूर्ण परमात्मा कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु अपना रूप बदलकर सामान्य व्यक्ति जैसा रूप बनाकर पृथ्वी मण्डल पर प्रकट होता है तथा कविर्निवचनानि शंसन् अर्थात् कविर्वाणी बोलता है। जिसके माध्यम से तत्त्वज्ञान को जगाता है तथा उस समय महर्षि कहलाने वाले चतुर प्राणी मिथ्याज्ञान के आधार पर शास्त्र विधि अनुसार सत्य साधना रूपी अमृत के स्थान पर शास्त्र विधि रहित पूजा रूपी मवाद को श्रद्धा के साथ आचमन अर्थात् पूजा करा रहे होते हैं। उस समय पूर्ण परमात्मा स्वयं प्रकट होकर तत्त्वज्ञान द्वारा शास्त्र विधि अनुसार साधना का ज्ञान प्रदान करता है।
पवित्र ऋग्वेद के निम्न मंत्रों में भी पहचान बताई है कि जब वह पूर्ण परमात्मा कुछ समय संसार में लीला करने आता है तो शिशु रूप धारण करता है। उस पूर्ण परमात्मा की परवरिश (अध्न्य धेनवः) कंवारी गाय द्वारा होती है। फिर लीलावत् बड़ा होता है तो अपने पाने व सतलोक जाने अर्थात् पूर्ण मोक्ष मार्ग का तत्त्वज्ञान (कविर्गिभिः) कबीर बाणी द्वारा कविताओं द्वारा बोलता है, जिस कारण से प्रसिद्ध कवि कहलाता है, परन्तु वह स्वयं कविर्देव पूर्ण परमात्मा ही होता है जो तीसरे मुक्ति धाम सतलोक में रहता है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 तथा सूक्त 96 मंत्र 17 से 20:-
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
अनुवाद:- (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुख सुविधाओं द्वारा अर्थात् खाने-पीने द्वारा जो शरीर वृद्धि को प्राप्त होता है उसे (पातवे) वृद्धि के लिए (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हो अर्थात् कंवारी गाय द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
भावार्थ - पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
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itoffshore · 2 years
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समस्त प्रदेशवासियों को हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएं!
आज 14 सितंबर, 2022 को हमारा देश हिंदी दिवस के रूप में मना रहा है। करोड़ों लोगों की मातृभाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए इस दिवस का आयोजन हर साल किया जाता है। हिंदी भाषा का प्रयोग भारत के लगभग आधे क्षेत्र में किया जाता है। इसके अलावा कई अन्य देश भी है जहां हिंदी भाषियों की संख्या अच्छी खासी है। हिंदी को अब देश से लेकर विदेशों तक में बढ़ावा दिया जाता है। इसी मकसद से आज की तारीख को हर साल राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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