Tumgik
#ममता बनर्जी का सच
deshbandhu · 1 month
Text
भाजपा ने वीडियो डॉक्यूमेंट्री जारी कर ममता पर संदेशखाली का सच छुपाने का लगाया आरोप
संदेशखाली में महिलाओं के साथ हुए अपराध को लेकर राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर हमलावर भाजपा ने गुरुवार को एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री जारी कर ममता बनर्जी पर संदेशखाली का सच छुपाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
0 notes
indiakasatya · 9 months
Text
ये है ममता बनर्जी का असली चेहरा | राजीव भाई ने बताया सच Rajiv Dixit #mamatabanerjee #sharadpawar
http://dlvr.it/SrxWN6
0 notes
bakaity-poetry · 4 years
Text
नए साल पर जलते-बंटते मुल्क में मीडिया-रुदन / अभिषेक श्रीवास्तव
पिछले ही हफ्ते ओलिंपिक खेलों में प्रवेश के लिए मुक्केबाज़ी का ट्रायल हुआ था. मशहूर मुक्केबाज़ मेरी कॉम ने निख़त ज़रीन नाम की युवा मुक्केबाज़ को हरा दिया. इस घटना से पहले और बाद में क्या-क्या हुआ, वह दूर की बात है. मुक्केबाज़ी के इस मैच और उसके नतीजे की ख़बर ही अपने आप में जिस रूप में सामने आयी, वह मुझे काम की लगी. किसी ने ट्विटर पर किसी प्रकाशन में छपी ख़बर की हेडिंग का स्क्रीनशॉट लगाकर उस पर सवाल उठाया था. हेडिंग में लिखा थाः “इंडियाज़ मेरी कॉम बीट्स निखत...” ट्विटर यूज़र ने मेरी कॉम के नाम से पहले “इंडिया” लगाने पर आपत्ति जतायी थी और पूछा था कि इसके पीछे की मंशा क्या है.
विचार में लिपटी घटना
इधर बीच लंबे समय से एसा हो रहा है कि पहली बार जब कोई घटना नज़र के सामने आ रही है, चाहे किसी भी प्लेटफॉर्म पर, तो वह विशुद्ध घटना की तरह नहीं आ रही, एक ओपिनियन यानी टिप्पणी/राय के रूप में आ रही है. वास्तव में, मूल घटना ओपिनियन के साथ नत्थी मिलती है और ओपिनियन असल में एक पक्ष होता है, घटना के समर्थन में या विरोध में. ऐसे में मूल घटना को जानने के लिए काफी पीछे जाना पड़ता है. अगर आप दैनंदिन की घटनाओं से रीयल टाइम में अपडेट नहीं हैं, तो बहुत मुमकिन है कि सबसे पहले सूचना के रूप में उक्त घटना आपके पास न पहुंचे बल्कि आपके पास पहुंचने तक उक्त घटना पर समाज में खिंच चुके पालों के हिसाब से एक धारणा, एक ओपिनियन पहुंचे. जो धारणा/राय/नज़रिया/ओपिनियन आप तक पहुंचेगी, वह ज़ाहिर है आपकी सामाजिक अवस्थिति पर निर्भर करेगा.
मुक्केबाज़ी वाली ख़बर लिखते वक्त जिसने मेरी कॉम के नाम के आगे “इंडियाज़” लगाया होगा, उसके दिमाग में एक विभाजन काम कर रहा होगा. जिसने इसे पढ़ा और टिप्पणी की, उसके दिमाग में भी एक विभाजन काम कर रहा था, कि वह बाल की खाल को पकड़ सका. गौर से देखें तो हम आपस में रोजमर्रा जो बातचीत करते हैं, संवाद करते हैं, वाक्य बोलते हैं, लिखते हैं, सोचते हैं, सब कुछ सतह पर या सतह के नीचे विभाजनों के खांचे में ही शक्ल लेता है. हम अपने विभाजनों को सहज पकड़ नहीं पाते. दूसरे के विभाजन हमें साफ़ दिखते हैं. यह इस पर निर्भर करता है कि हमारा संदर्भ क्या है, सामाजिक स्थिति क्या है.
मसलन, आप शहर में हैं या गांव/कस्बे में, इससे आप तक पहुंचने वाली राय तय होगी. आप किस माध्यम से सूचना का उपभोग करते हैं, वह आप तक पहुंचने वाली राय को उतना तय नहीं करेगा बल्कि किन्हीं भी माध्यमों में आप कैसे समूहों से जुड़े हैं, यह आपकी खुराक़ को तय करेगा. आपकी पढ़ाई-लिखाई के स्तर से इसका खास लेना−देना नहीं है, हां आपकी जागरूकता ���र संपन्नता बेशक यह तय करेगी कि आपके पास जो सूचना विचारों में लिपट कर आ रही है उसे आप कैसे ग्रहण करते हैं.
नए-पुराने सामाजिक पाले
मोटे तौर पर अगर हमें अपने समाज के भीतर रेडीमेड पाले देखने हों, जो सूचना की प्राप्ति को प्रभावित करते हैं तो इन्हें गिनवाना बहुत मुश्किल नहीः
− सामाजिक तबका (उच्च तबका बनाम कामगार)
− जाति (उच्च बनाम निम्न)
− लैंगिकता (पुरुष वर्चस्व बनाम समान अधिकार)
− धर्म (हिंदू बनाम मुसलमान/अन्य)
− भाषा (हिंदी बनाम अन्य, अंग्रेज़ी के साथ)
− क्षेत्र (राज्य बनाम राज्य) 
ये सब पुराने विभाजन हैं. हमारे समाज में बरसों से कायम हैं. अंग्रेज़ी जानने वाले शहरी लोगों के जेहन में कुछ नए विभाजन भी काम करते हैं, मसलन विचार के इलाके में वाम बनाम दक्षिण, धार्मिकता के क्षेत्र में सेकुलर बनाम साम्प्रदायिक, आधुनिक बनाम पिछड़ा, इत्यादि. ज्यादा पढ़ा लिखा आदमी ज्यादा महीन खाता है, तो वह कहीं ज्यादा बारीक विभाजक कोटियां खोजेगा. ठीक वैसे ही जैसे आंख का डॉक्टर अगर और आधुनिक शिक्षा लेना चाहे, तो वह एक ही आंख का विशेषज्ञ बन सकेगा, दाईं या बाईं. आजकल तो चलने वाले, दौड़ने वाले, जॉग करने वाले, खेलने वाले और ट्रेकिंग करने वाले जूते भी अलग-अलग आते हैं. तर्ज़ ये कि चीज़ें जितना बढ़ती हैं, उतना ही बंटती जाती हैं.
समस्या तब पैदा होती है जब हम चीज़ों को केवल दो खांचे में बांट कर देखना शुरू करते हैं. या तो ये या फिर वो. दिस ऑर दैट. हम या वे. इसे संक्षिप्त में बाइनरी कहते हैं, मने आपके पास दो ही विकल्प हैं− हां कहिए या नहीं. जैसे आप टीवी स्टूडियो में अर्णब गोस्वामी के सामने बैठे हों और आपसे कहा जा रहा हो कि देश आज रात जानना चाहता है कि आप फलाने के साथ हैं या खिलाफ़. आपके पास तीसरा रास्ता नहीं है. बीच की ज़मीन छिन चुकी है.
तटस्थता के आपराधीकरण के नाम पर इस बाइनरी को पुष्ट करने का काम बहुत पहले से चला आ रहा है. आज, अपने देश में संचार और संवाद के इलाके में जब समूचा विमर्श ही गोदी बनाम अगोदी, भक्त बनाम द्रोही की दुई में तौला जा रहा है तो जिंदगी का कोई भी पहलू इससे अछूता नहीं रह गया है. यह समझ पाना उतना मुश्किल नहीं है कि इस विभाजन को सबसे पहले पैदा किसने किया- राजनीति ने, मीडिया ने या समाज ने. हम जानते हैं कि हमारे समाज में विभाजनकारी कोटियां पहले से थीं, इन्हें बस पर्याप्त हवा दी गयी है. समझने वाली बात ये है कि यह विभाजन अब ध्रुवीकरण की जिस सीमा तक पहुंच चुका है, वहां से आगे की तस्वीर क्या होनी है.
ध्रुवीकरण के अपराधी?
मनु जोसेफ ने बीते लोकसभा चुनावों के बीच द मिन्ट में एक पीस लिखकर समझाने की कोशिश की थी कि ध्रुवीकरण (पोलराइज़ेशन) उतनी बुरी चीज़ नहीं है. इस पीस को स्वराज मैगज़ीन के संपादक आर. जगन्नाथन ने बड़े उत्साह से ट्वीट करते हुए कहा था, “मनु का हर लेख शाश्वत मूल्य वाला है.” लेख को समझने के लिए बहुत नीचे जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती यदि इस ट्वीटर के थ्रेड को आप देखें. मधुमिता मजूमदार प्रतिक्रिया में लिखती हैं, “मनु यह मानकर लिखते हैं कि वे हर मुद्दे पर सही हैं. ध्रुवीकरण पर यह लेख अतिसरलीकृत है. और जग्गी को इसमें मूल्य दिख रहा है, यही अपने आप में मेरे बिंदु की पुष्टि करता है.”
ध्रुवीकरण बुरा नहीं है, मनु जोसेफ ने यह लिखकर अपने पाठकों में ध्रुवीकरण पैदा कर दिया. इनकी दलीलों पर बेशक बात हो सकती है, लेकिन समूचे लेख में हमारे तात्कालिक काम का एक वाक्य है जिसे मैं बेशक उद्धृत करना चाहूंगा. मनु लिखते है- “राजनीति हमें यह सबक सिखलाती है कि व्यवस्था में जब कोई ध्रुवीकरण नहीं होता, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि सत्य जीत गया है, इसका मतलब बस इतना होता है कि एक वर्ग की जीत हुई है.”
सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण के संदर्भ में भारतीय मीडिया की भावी भूमिका पर आने के लिए इसे थोड़ा समझना ज़रूरी है. 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए. बीस फीसद मुसलमानों की आबादी वाले इस राज्य में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित जनादेश मिला, बावजूद इसके कि उसने एक भी मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. जब बहस मुख्यमंत्री के चेहरे पर आयी, तो योगी आदित्यनाथ के नाम पर दो खेमे बन गए. काफी खींचतान के बाद मुख्यमंत्री योगी ही बने, जिसके परिणाम आज हम साफ़ देख पा रहे हैं. इसी बीच बहस में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने इंडिया टुडे से बातचीत में योगी की (कम्यूनल) भाषा का बचाव करते हुए एक बात कही थी-
"अस्सी के दशक से जमीनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों से ऐसे लोगों का उभार हुआ जो अतीत के उन अंग्रेजी शिक्षित राजनेताओं की अभिजात्य व सूक्ष्म शैली से मेल नहीं खाते थे जिन्हें वास्तविकता से ज्यादा अपनी छवि की चिंता हुआ करती थी. नए दौर के नेता समुदाय से निकले विमर्श को आगे बढ़ाते हैं इसलिए उनकी भाषा को प्रत्यक्षतः नहीं लिया जाना चाहिए. इसे समझे बगैर आप न योगी को समझ पाएंगे, न लालू (प्रसाद यादव) को और न ही ममता (बनर्जी) को."
राकेश सिन्हा और मनु जोसेफ क्या एक ही बात कह रहे हैं? मनु ध्रुवीकरण की गैर−मौजूदगी वाली स्थिति में जिस वर्ग की जीत बता रहे हैं, क्या यह वही वर्ग है जो राकेश सिन्हा के यहां अंग्रेजी शिक्षित राजनेताओं के रूप में आता है, जिसे वास्तविकता से ज्यादा अपनी छवि की चिंता हुआ करती थी?
उसी लेख से मनु जोसेफ का एक शुरुआती वाक्य देखे-
“वास्तव में, यह तथ्य कि एक समाज ध्रुवीकृत है, इस बात का संकेत है कि एक वर्ग के लोगों का मुख्यधारा के विमर्शों पर एकाधिकार नहीं रह गया है. ध्रुवीकरण को बदनाम करने का काम वे लोग करते हैं जिनका विचारों के प्रसार से नियंत्रण खत्म हो चुका है.”
राकेश सिन्हा “समुदाय से निकले विमर्श को आगे” बढाने वाले जिन “नए दौर के नेताओं” का ज़िक्र कर रहे हैं, मनु जोसेफ के मुताबिक क्या इन्होंने ही “मुख्यधारा के विमर्शों पर एकाधिकार” को तोड़ने का काम किया है? इस तराजू में ममता बनर्जी, योगी और लालू प्रसाद यादव को यदि एक साथ सिन्हा की तरह हम तौल दें तो फिर साम्प्रदायिकता के मसले पर ठीक उलटे ध्रुव पर खड़े लालू प्रसाद यादव और योगी को कैसे अलगाएंगे? फिर तो हमें काफी पीछे जाकर नए सिरे से यह तय करना होगा कि ध्रुवीकरण की शुरुआत लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से हुई थी या लालू प्रसाद यादव द्वारा उसे रोके जाने के कृत्य से? 
फिर तो हमें आशुतोष वार्ष्णेय की इस थियरी पर भी ध्यान देना होगा कि अर्थव्यवस्था को निजीकरण और उदारीकरण के लिए खोले जाने पर नरसिंहराव के दौर में संसद में चली शुरुआती बहसों में भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टियों का पक्ष एक था और कांग्रेस अल्पमत में थी, इसके बावजूद कम्युनिस्ट पार्टियों ने साम्प्रदायिकता के मुद्दे को आर्थिक मुद्दे पर तरजीह देते हुए मनमोहन सिंह के प्रोजेक्ट को चुपचाप हामी दे दी. यह तो बहुत बाद में जाकर लोगों ने समझा कि उदारवाद और साम्प्रदायिकता एक ही झोले में साथ आए थे, वामपंथियों को ही साम्प्रदायिकता का मोतियाबिंद हुआ पड़ा था.
फिर क्या बुरा है कि सईद नकवी की पुस्तक (बींग दि अदर) को ही प्रस्थान बिंदु मानकर कांग्रेस को ध्रुवीकरण का शुरुआती अपराधी मान लिया जाए? (आखिर वे भी तो इतना मानते ही हैं कि भारत को दो ऐसी अतियों में तब्दील कर दिया गया है जो परस्पर द्वंद्व में हैं!) और इसके बरअक्स भारतीय जनता पार्टी सहित तमाम क्षेत्रीय दलों, उनसे जुड़े हित समूहों, जाति समूहों, समुदायों, पिछड़ी चेतनाओं और “समुदायों से निकले विमर्श को आगे बढ़ाने वाले नए दौर के नेताओं” (राकेश सिन्हा) को द्वंद्व का दूसरा सिरा मानते हुए इन्हें अपने अंतर्विरोधों के भरोसे छोड़ दिया जाए? ब्राह्मण पहले तय करे कि वह हिंदू है या ब्राह्मण. पिछड़ा, दलित और आदिवासी खुद तय करे कि उसे अपनी पहचान के साथ जीने में फायदा है या हिंदू पहचान के साथ. विभाजन के बाद भारत में रह गए मुसलमानों को चूंकि यह अहसास होने में बहुत वक्त नहीं लगा था कि यहां उनके साथ दोयम दरजे का बरताव हो रहा है (नक़वी, बींग दि अदर), लिहाजा उन्हें तब तक कुछ नहीं तय करने की ज़रूरत है जब तक कि उन्हें जबरन हिंदू न बनाया जाए.
अब्दुल्ला दीवाने की चिंता
मीडिया इस समूचे रायते में दीवाने अब्दुल्ला की तरह होश खोया नज़र आता है. पत्रकारिता की बॉटमलाइन यह है कि मीडिया मालिकों को कुल मिलाकर अपनी दुकान बचाए रखने और मीडियाकर्मियों को अपना वेतन और नौकरी बचाए रखने की चिंता है. इसीलिए ध्रुवीकरण के अपराध का जो हिस्सा मीडिया और इसके कर्मियों के सिर आता है, मेरे खयाल में यह न केवल ध्रुवीकरण को समझने में आने वाली जटिलताओं से बचने के लिए किया जाने वाला सरलीकरण है बल्कि गलत लीक भी है जो हमें कहीं नहीं पहुंचाती.
यह सच है कि मीडिया बांटता है, इसके स्थापित चेहरे विभाजनकारी हैं, लेकिन ध्रुवीकरण अपनी पूरी जटिलता में सबसे आसान तरीके से मीडिया में ही पकड़ में आता है यह भी एक तथ्य है. जो दिखता है, वह साफ़ पकड़ा जाता है. जो नहीं दिखता, या कम दिखता है, वह ज़रूरी नहीं कि ज्यादा ख़तरनाक न हो. इंगलहार्ट और नोरिस ने 2016 के अपने एक शोध में बताया है कि वंचित तबकों के बीच बढ़ती आर्थिक असुरक्षा उनके भीतर जिस असंतोष को बढ़ाती है, उसी के चलते वे विभाजनकारी नेताओं के लोकरंजक मुहावरों में फंसते जाते हैं. मीडिया इसमें केवल मध्यस्थ का काम करता है.
एक ध्रुवीकृत समाज में मीडिया से कहीं ज्यादा यह प्रक्रिया आपसी संवादों संपर्कों से कारगर होती है. विभाजित समाज में एक व्यक्ति अपने जैसा सोचने वाला पार्टनर तलाश करता है. इससे उसके पहले से बने मूल्य और धारणाएं और मजबूत होती जाती हैं. पी. साईनाथ इस परिघटना को “पीएलयू” (पीपुल लाइक असद) का नाम देते हैं. इसी संदर्भ में एक शोध बताता है कि दूसरे खयालों के व्यक्तियों के साथ संवाद करने पर अपनी धारणा और दूसरे की धारणा के बीच दूरी और ज्यादा बन जाती है. यही वजह है कि ज़ी न्यूज़ देखने वाला दर्शक एनडीटीवी देखकर ज़ी न्यूज़ के प्रति और समर्पित हो जाता है और एनडीटीवी के दर्शक के साथ भी बिल्कुल यही होता है जब वह ज़ी न्यूज़ देखता है.
यह समस्या केवल मीडिया के दायरे में नहीं समझी जा सकती है. मीडिया का संकट अकेले मीडिया का नहीं, समाज और संस्कृति का संकट है बल्कि उससे कहीं ज्यादा इंसानी मनोविज्ञान का संकट है. इसे बहुत बेहतर तरीके से हूगो मर्सियर और डान स्पर्बर ने अपनी पुस्तक “दि एनिग्मा ऑफ रीज़न” में समझाया है. यह पुस्तक विमर्श के क्षेत्र में उतनी चर्चित नहीं हो सकी, लेकिन इंसानी नस्ल के सोचने समझने की क्षमता और सही या गलत के बीच फैसला करने की “रेशनलिटी” के संदर्भ में इस किताब ने बिलकुल नयी प्रस्थापना दी है जिस पर मुकम्मल बात होना बाकी है.
यदि हम लेखकद्वय को मानें, तो चार सौ पन्ने की किताब का कुल निचोड़ यह निकलता है कि मनुष्य की कुल तर्कक्षमता और विवेक का काम उसकी पूर्वधारणाओं को पुष्ट करना है. वे कहते हैं कि मनुष्य की रेशनलिटी सही या गलत का फैसला करने के लिए नहीं है बल्कि जिसे सही मानती है उसे सही ठहराने के लिए है. वे सवाल उठाते हैं कि यदि धरती पर मनुष्य ही सोचने समझने वाला तर्कशील प्राणी है तो फिर वह अतार्किक हरकतें और बातें क्यों करता है? इसके बाद की विवेचना को समझने के लिए यह किताब पढ़ी जानी चाहिए, लेकिन मूल बात वही है कि मीडिया का संकट दरअसल हमारी सांस्कृतिकता और मनुष्यता का संकट है जिसमें हमारा अतीत, हमारे सामुदायिक अहसास, पृष्ठभूमि, आर्थिक हालात, सब कुछ एक साथ काम करते हैं.
चूंकि मीडिया की गति खुद मीडिया नहीं तय करता, उसकी डोर अपने मालिकान से भी ज्यादा राजनीति और समाज के हाथों में है इसलिए आने वाले दिनों में यह मीडिया समाज की गति के हिसाब से ही अपनी भूमिका निभाएगा. जाहिर है यह भूमिका समुदायों से निकलने वाली आवाजें तय करेंगी. वे वास्तविक समुदाय हों या कल्पित. इसे ऐसे समझें कि अगर राजनीति समुदाय विशेष के किसी कल्पित भविष्य की बात करेगी तो मीडिया उससे अलग नहीं जाएगा. यदि हिंदू राष्ट्र एक कल्पना है तो मीडिया उस कल्पना को साकार करने तक की दूरी तय करेगा. यदि रामराज्य एक कल्पना है तो मीडिया रामराज्य लाने का काम करेगा भले ही खुद उस कल्पना में उसका विश्वास न हो. “कल्पित समुदायों” और “भूमियों” की अवधारणा ध्रुवीकृत समाज में बहुत तेज़ काम करती है. इसी तर्ज पर काल्पनिक दुश्मन गढ़े जाएंगे, काल्पनिक दोस्त बनाए जाएंगे, काल्पनिक अवतार गढ़े जाएंगे. यह सब कुछ मीडिया उतनी ही सहजता से करेगा जितनी सहजता से उसने आज से पंद्रह साल पहले भूत, प्रेत, चुड़ैलों की कहानियां दिखायी थी.
ऐसा करते हुए मीडिया और उसमें काम करने वाले लोग इस बात से बेखबर होंगे कि वे किनके हाथों में खेल रहे हैं. एक अदृश्य गुलामी होगी जो कर्इ अदृश्य गुलामियों को पैदा करेगी. ठीक वैसे ही जैसे गूगल का सर्च इंजन काम करता है. मीडिया की भूमिका क्या और कैसी होगी, इसे केवल गूगल के इकलौते उदाहरण से समझा जा सकता है. अमेरिका में 2012 के चुनाव में गूगल और उसके आला अधिकारियों ने 8 लाख डॉलर से ज्‍यादा चंदा बराक ओबामा को दिया था जबकि केवल 37,000 डॉलर मिट रोमनी को. अपने शोध लेख में एप्‍सटीन और रॉबर्टसन ने गणना की है कि आज की तारीख में गूगल के पास इतनी ताकत है कि वह दुनिया में होने वाले 25 फीसदी चुनावों को प्रभावित कर सकता है. प्रयोक्‍ताओं की सूचनाएं इकट्ठा करने और उन्‍हें प्रभावित करने के मामले में फेसबुक आज भी गूगल के मुकाबले काफी पीछे है. जीमेल इस्‍तेमाल करने वाले लोगों को यह नहीं पता कि उनके लिखे हर मेल को गूगल सुरक्षित रखता है, संदेशों का विश्‍लेषण करता है, यहां तक कि न भेजे जाने वाले ड्राफ्ट को भी पढ़ता है और कहीं से भी आ रहे मेल को पढ़ता है. गूगल पर हमारी प्राइवेसी बिलकुल नहीं है लेकिन गूगल की अपनी प्राइवेसी सबसे पवित्र है.
जैसा कि एडवर्ड स्‍नोडेन के उद्घाटन बताते हैं, हम बहुत तेज़ी से एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं जहां सरकारें और कॉरपोरेशन- जो अक्सर मिलकर काम करते हैं- हममें से हर एक के बारे में रोज़ाना ढेर सारा डेटा इकट्ठा कर रहे हैं और जहां इसके इस्‍तेमाल को लेकर कहीं कोई कानून नहीं है. जब आप डेटा संग्रहण के साथ नियंत्रित करने की इच्‍छा को मिला देते हैं तो सबसे खतरनाक सूरत पैदा होती है. वहां ऊपर से दिखने वाली लोकतांत्रिक सरकार के भीतर एक अदृश्‍य तानाशाही आपके ऊपर राज करती है.
आज एनपीआर, एनआरसी, सीएए पर जो बवाल मचा हुआ है उसके प्रति मुख्यधारा के मीडिया का भक्तिपूर्ण रवैया देखकर आप आसानी से स्नोडेन की बात को समझ सकते हैं.
सांस्कृतिक विकल्प का सवाल
मीडिया और तकनीक के रास्ते सत्‍ता में बैठी ताकतों की इंसानी दिमाग पर नियंत्रण कायम करने की इच्‍छा और उनकी निवेश क्षमता का क्‍या कोई काट है? भारत जैसे देश में, जो अब भी सांस्‍कृतिक रूप से एकाश्‍म नहीं है, किसी भी सत्ता के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट संस्कृति ही होती है. मीडिया, संस्कृति का एक अहम अंग है. इसीलिए हम पाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नारे राजनीतिक नहीं, सांस्‍कृतिक होते हैं, जो मीडिया को आकर्षित कर सकें. इन्‍हीं सांस्‍कृतिक नारों के हिसाब से प्रच्‍छन्‍न व संक्षिप्‍त संदेश तैयार करके फैलाये जाते हैं. क्‍या किसी और के पास भाजपा के बरअक्स कोई सांस्‍कृतिक योजना है?
पिछले कुछ वर्षों से भारत में भाजपा के राज के संदर्भ में विपक्षी विमर्श ने सबसे ज्‍यादा जिस शब्‍द का प्रयोग किया है वह है ''नैरेटिव''. नैरेटिव यानी वह केंद्रीय सूत्र जिस पर राजनीति की जानी है. हारा हुआ पक्ष हमेशा मानता है कि जीते हुए के पास एक मज़बूत नैरेटिव था. हां, यह शायद नहीं पूछा जाता कि विजेता के नैरेटिव के घटक क्‍या-क्‍या थे. आखिर उन घटकों को आपस में मिलाकर उसने एक ठोस नैरेटिव कैसे गढ़ा. सारे वाद्य मिलकर एक ऑर्केस्‍ट्रा में कैसे तब्‍दील हो गये.
ध्‍यान दीजिएगा कि भारत की किसी भी विपक्षी राजनीतिक पार्टी के पास सांस्‍कृतिक एजेंडा नहीं है. रणनीति तो दूर की बात रही. कुछ हद तक अस्मिताओं को ये दल समझते हैं, लेकिन सारा मामला सामाजिक न्‍याय के नाम पर आरक्षण तक जाकर सिमट जाता है. भाजपा के सांस्‍कृतिक नारे व संदेशों पर बाकी दलों ने अब तक केवल प्रतिक्रिया दी है. अपना सांस्‍कृतिक विमर्श नहीं गढ़ा. लिहाजा, वे जनता में जो संदेश पहुंचाते हैं उनका कोई सांस्‍कृतिक तर्क नहीं होता. कोई मुलम्‍मा नहीं होता. वे भाजपा की तरह प्रच्‍छन्‍न मैसेजिंग नहीं कर पाते. यह सहज बात कोई भी समझ सकता है कि आपके पास सारे हरबे हथियार हों तो क्‍या हुआ, युद्धकौशल का होना सबसे ज़रूरी है. जब संदेश ही नहीं है, तो माध्‍यम क्‍या कर लेगा? मीडिया क्या कर लेगा?
द इकनॉमिस्‍ट पत्रिका के मई 2019 अंक में यूरोप के बाहरी इलाकों की राजनीति पर एक कॉलम छपा था जिसमें एक बात कही गयी थी जो भारत पर भी लागू होती है- ''यूरोप की राजनीति पर सांस्‍कृतिक जंग ने कब्‍ज़ा कर लिया है और वाम बनाम दक्षिण के पुराने फ़र्क को पाट दिया है.'' भारत में भी सांस्‍कृतिक युद्ध ही चल रहा है लेकिन इसे कभी कहा नहीं गया. तमाम दलों ने 2019 के आम चुनाव में डेटा एजेंसियों, पोल प्रबंधकों, इमेज प्रबंधकों, पीआर कंपनियों, ईवेंट मैनेजरों का सहारा लिया लेकिन भाजपा के अलावा किसी को नहीं पता था कि सांस्‍कृतिक मोर्चे पर क्‍या लाइन लेनी है. राहुल गांधी ने राम के अलावा छोटे-छोटे भगवानों के मंदिरों में चक्‍कर लगाकर जनता से जुड़ने की कोशिश तो की, लेकिन किसी ठोस सांस्‍कृतिक रणनीति और नैरेटिव के अभाव में इसका लाभ भी पलट कर भाजपा को मिला.
जवाहरलाल नेहरू के जिंदा रहने तक कांग्रेस की राजनीति में एक सांस्‍कृतिक आयाम हुआ करता था. महात्‍मा गांधी के ''रघुपति राघव राजा राम'' में प्रचुर सांस्‍कृतिक नैरेटिव था और नेहरू के साइंटिफिक टेम्‍पर का भी एक सांस्‍कृतिक आयाम था. इंदिरा गांधी के दौर से मामला विशुद्ध सत्‍ता का बन गया और कांग्रेस की राजनीति से संस्‍कृति का आयाम विलुप्‍त हो गया. इसका नतीजा हम आज बड़ी आसानी से देख पाते हैं.
भूखा मीडिया, नदारद नैरेटिव
मीडिया को आज की तारीख में नैरेटिव चाहिए. नारे चाहिए. संदेश चाहिए. उसकी खुराक उसे नहीं मिल रही है. एक बार को मीडिया के सामाजिक दायित्व की अवधारणा को किनारे रख दें, अपनी मासूमियत छोड़ दें. इसके बाद मीडिया से कोई सवाल पूछने से पहले खुद से हम क्या यह सवाल पूछ सकते हैं कि हमारे पास मीडिया को देने के लिए क्या है? 
कोई चारा? कोई चेहरा? कोई नारा? कोई गीत? कोई भाषण? याद करिए यह वही मीडिया है जिसने जेल से छूटने के बाद कन्हैया कुमार का भाषण दिखलाया था. उसके बाद क्या किसी ने उस दरजे का एक भी भाषण इस देश में दिया? यह मीडिया का बचाव नहीं है. यहां केवल इतना समझने वाली बात है कि मीडिया अपने आप नैरेटिव खोजने नहीं जाएगा. यह पीड़ितों की लड़ाई अपनी ओर से नहीं लड़ेगा.
इसे मजबूर करना होगा, एजेंडा देना होगा जिसे यह फॉलो कर सके. यह एजेंडा और नैरेटिव मुहैया कराना विपक्ष का काम है, लड़ रही जनता का काम है. यह काम मुश्किल है, नामुमकिन नहीं. अगर आज यह नहीं किया गया तो मीडिया के पास सत्ता का एजेंडा पहले से रखा हुआ है. उसे न तो हिंदू राष्ट्र से कोई परहेज है, न आपके संविधान से कोई प्रेम. वह सब कुछ जलाकर खाक कर देगा. खुद को भी.
1 note · View note
abhay121996-blog · 3 years
Text
ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ीं, कलकत्ता हाई कोर्ट ने नंदीग्राम मामले की सुनवाई को 3 महीनों के लिए टाला Divya Sandesh
#Divyasandesh
ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ीं, कलकत्ता हाई कोर्ट ने नंदीग्राम मामले की सुनवाई को 3 महीनों के लिए टाला
कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नंदीग्राम मामले को अगले तीन महीनों के लिए टालते हुए सुनवाई को 15 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल काँग्रेस (TMC) ने भारी संख्या में सीटें जीती थी, जिससे वह बहुमत में सरकार बनाने की स्थिति में थी, मगर TMC के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार ममता बनर्जी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सुवेंदु अधिकारी से नंदीग्राम सीट से चुनाव हार गई थी। मगर इसके बावजूद 5 मई 2021 को ममता बनर्जी ने बंगाल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
यह खबर भी पढ़ें: .. तो इसलिए महिलाएं आंखों में लगाती है काजल, आप भी जानिए
चूंकि, संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति के मंत्री पद के शपथ लेने के समय अगर वह सदन का सदस्य नहीं है तो उसे 6 महीनों के भीतर सदन का सदस्य बनना अनिवार्य है। अन्यथा उस व्यक्ति को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ जाता है। चूंकि, ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए हुए 3 महीनों से अधिक समय बीत चुका है, इसलिए ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के सदन की सदस्यता लेने के लिए तमाम प्रयास कर रही हैं।
यह खबर भी पढ़ें: क्या सच में मोर के आंसू पीकर गर्भवती हो जाती है मोरनी, जानिए सच्चाई
इसके तहत ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी के चुनाव को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी, जिसमें ममता बनर्जी ने सुवेंदु अधिकारी के विधानसभा में जीत को अवैध बताया है। इसी मामले की सुनवाई के दौरान कलकत्ता हाई कोर्ट ने आज वृहस्पतिवार 12 अगस्त को इस मामले को 15 नवंबर तक के लिए टाल दिया है। ममता बनर्जी के साथ एक और मुश्किल है कि चुनाव आयोग कोविड महामारी के कारण विगत कुछ समय से देश के किसी हिस्से में चुनाव या उपचुनाव करवाने से बच रहा है।
Download app: अपने शहर की तरो ताज़ा खबरें पढ़ने के लिए डाउनलोड करें संजीवनी टुडे ऐप
0 notes
kisansatta · 3 years
Photo
Tumblr media
संयुक्त किसान मोर्चा का आरोप - केंद्र किसानों के आंदोलन को बदनाम कर रहा, खत्म नहीं होगा प्रदर्शन
Tumblr media
नई दिल्ली: संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को बदनाम कर रही है और अगर सरकार उम्मीद कर रही कि आंदोलन खत्म हो जाएगा तो ऐसा नहीं होने वाला!
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में 40 किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं! एसकेएम ने दावा किया कि कई राज्य सरकारें आंदोलन के साथ मजबूती से खड़ी हैं और आंदोलन से जुड़ने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन स्थल पर और किसान पहुंच गए हैं! तीन कृषि कानूनों को खत्म करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए कानून की मांग को लेकर मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान पिछले छह महीने से ज्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं!
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा, ‘‘प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने का कोई भी मौका छोड़ा नहीं जा रहा! हालांकि, उनकी नीति इस बार भी नाकाम होगी!’’ बयान में कहा गया, ‘‘किसान जो मांग रहे हैं, वह यह है कि उनके आजीविका के मौलिक अधिकार की रक्षा की जाए! लोकतंत्र में यह अपेक्षा की जाती है कि सरकार उनकी जायज मांगों को मान लेगी! इसके बजाय, बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार अनावश्यक रूप से आंदोलन को लंबा खींच रही है, इसे बदनाम कर रही है और उम्मीद कर रही है कि यह ऐसे ही खत्म हो जाएगा! यह नहीं होने वाला है!’’
संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि बीजेपी के कई नेता केंद्र सरकार से किसानों के मुद्दे का समाधान करने के लिए कह रहे हैं! बयान में कहा गया, ‘‘तमिलनाडु के मुख्यमंत्री (एम के स्टालिन) ने हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन में तीनों कृषि कानूनों को रद्द किए जाने का मुद्दा उठाया! महाराष्ट्र भी किसानों पर केंद्रीय कानूनों के बुरे प्रभावों को बेअसर करने के लिए अपने कानून में संशोधन करने की प्रक्रिया में है! पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) भी लगातार कहती रही हैं कि आंदोलनकारी किसानों की मांगें पूरी होनी चाहिए! कुछ अन्य राज्यों में अन्य दलों की सरकारें भी किसानों के आंदोल�� के साथ खड़ी हैं!’’
संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि उत्तराखंड के जसपुर से सैकड़ों किसान गुरुवार को गाजीपुर सीमा पर पहुंचे और भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के नेतृत्व में बड़ा काफिला पांच दिनों तक पैदल चलने के बाद शुक्रवार को गाजीपुर सीमा पर पहुंचा!
https://kisansatta.com/allegation-of-united-kisan-morcha-center-is-defaming-the-farmers-movement-the-demonstration-will-not-end/ #कसनआदलन, #कसनमरच, #कषकनन #किसान आंदोलन, #किसान मोर्चा, #कृषि कानून Farming, In Focus #Farming, #InFocus KISAN SATTA - सच का संकल्प
0 notes
24gnews · 3 years
Text
मोदी का आरोप 'आधा सच', ममता ने कहा | इंडिया न्यूज़ - टाइम्स ऑफ़ इंडिया
मोदी का आरोप ‘आधा सच’, ममता ने कहा | इंडिया न्यूज़ – टाइम्स ऑफ़ इंडिया
कोलकाता पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुकाबला पीएम नरेंद्र मोदीउसकी सरकार के खिलाफ आरोपों को अवरुद्ध करने का केंद्रीय योजना के लिये किसानों इसके कारण राजनीतिक एजेंडा और पीएम-किसान योजना के तहत राज्य के 70 लाख से अधिक किसानों को धन देने से इनकार करते हुए, उन्हें “हफ़्फ़ुथ्रू और विकृत तथ्य” कहा गया और साथ ही चुनाव में बंगाल में राज्य को दरकिनार करते हुए किसानों को नकद लाभ देने में सेंट्रे के…
View On WordPress
0 notes
jainyupdates · 3 years
Text
आधे सच के साथ जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं प्रधानमंत्री: ममता बनर्जी
आधे सच के साथ जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं प्रधानमंत्री: ममता बनर्जी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोलकाता Updated Fri, 25 Dec 2020 07:36 PM IST ममता बनर्जी (फाइल फोटो) – फोटो : Facebook पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर कहीं भी, कभी भी। *Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP! पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला। बनर्जी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने किसानों के मुद्दों का समाधान करने के लिए काम करने के स्थान…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
khabaruttarakhandki · 4 years
Text
लॉकडाउन: ममता सरकार ने कहा, केंद्र के आदेशों का पूरी तरह पालन करेंगे
Tumblr media
पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि यह ‘‘सच नहीं है’’ कि राज्य में कोविड-19 स्थिति का आकलन करने के लिए तैनात केंद्रीय टीम का सहयोग नहीं किया गया। बंगाल ने आश्वासन दिया कि वह लॉकडाउन पर केंद्र सरकार के सभी आदेशों का पालन करेगी। यह आश्वासन तब दिया गया जब केंद्र ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार पर कोरोना वायरस के जमीनी हालात का आकलन करने के लिए तैनात केंद्रीय टीम के काम में बाधा डालने का आरोप लगाया। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को लिखे पत्र में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने कहा कि यह सच नहीं है कि राज्य सरकार ने दो अंतर मंत्रालयी केंद्रीय दलों (आईएमसीटी) को कोई सहयोग नहीं दिया।उन्होंने एक टीम के साथ दो बैठकें की थी और दूसरी के साथ संपर्क में थे।
राज्य के मुख्य सचिव ने केंद्रीय गृह सचिव से कहा, ‘‘मैं आश्वासन देना चाहता हूं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ आपदा प्रबंधन कानून के तहत जारी केंद्र सरकार के आदेशों को लागू किया जाएगा।’’ केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को दो केंद्रीय टीमों के काम में बाधा न डालने का निर्देश दिया था जिसके कुछ घंटों बाद मंगलवार रात को पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ने पत्र भेजा।केंद्र सरकार ने ममता सरकार पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगायाकेंद्र ने पश्चिम बंगाल सरकार पर केंद्रीय दलों के साथ सहयोग न करने का भी आरोप लगाया था और कहा कि राज्य सरकार टीमों को खासतौर से स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बातचीत करने और प्रभावित इलाकों का दौरा करने से रोक रही है। पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ने लिखा, ‘‘यह सच नहीं है कि आईएमसीटी ने राज्य सरकार को कोई सहयोग नहीं दिया।
’’उन्होंने कहा, ‘‘बल्कि टीमें हमसे पूर्व परामर्श किए बगैर पहुंची थी और इसलिए उन्हें 19 अप्रैल के आदेश में शामिल कोई साजोसामान संबंधी सहयोग मुहैया कराने का मौका नहीं मिला और न ही टीम ने किसी मदद के लिए कहा।’’ मुख्य सचिव ने कहा कि कोलकाता और पास के जिलों का दौरा कर रही टीम कोलकाता में बीएसएफ के अतिथि गृह में ठहरी और जलपाईगुड़ी, दार्जीलिंग तथा कलिम्पोंग का दौरा कर रही टीम खुद ही सिलीगुड़ी में एसएसबी के अतिथि गृह में ठहरी।सिन्हा ने कहा, ‘‘इस संबंध में यह सूचित किया जाता है कि अपूर्वा चंद्रा के नेतृत्व में कोलकाता में आईएमसीटी ने 20 अप्रैल को मुझसे मेरे कार्यालय में मुलाकात की और कोविड-19 पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार के लॉकडाउन संबंधी कदमों तथा अन्य प्रयायों को लागू करने के बारे में बातचीत की।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं सिलीगुड़ी में आईएमसीटी के विनीत जोशी के संपर्क में भी हूं और उन्हें मेल पर हमारी रिपोर्टें साझा करने के साथ ही राज्य सरकार द्वारा उठाए कदमों के बारे में अवगत कराया।
’’उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने 21 अप्रैल को कोलकाता में टीम से बीएसएफ मेस में मुलाकात की, जहां वह ठहरी हुई थी और रिपोर्टें साझा कीं। मुख्य सचिव ने कहा, ‘‘वे लॉकडाउन कदमों के क्रियान्वयन के जमीनी आकलन के लिए शहर के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर रहे हैं।’’ सिन्हा ने 21 अप्रैल को भल्ला के साथ फोन पर हुई बातचीत का भी जिक्र किया और कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन संबंधी कदमों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए राज्य सरकार के सक्रिय कदमों के बारे में भी जानकारी दी।लॉकडाउन लागू करवाने दो टीमें पश्चिम बंगाल पहुंचीमहाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में जमीनी हालात का आकलन करने के बाद लॉकडाउन संबंधी कदमों को लागू करने की समीक्षा करने के वास्ते आईएमसीटी की कुल छह टीमों को तैनात किया गया है। इनमें से दो टीमों को पश्चिम बंगाल भेजा गया है। एक टीम को कोलकाता, हावड़ा, उत्तर 24 परगना तथा पूर्व मेदिनीपुर तथा दूसरी टीम को जलपाईगुड़ी, दार्जीलिंग तथा कलिम्पोंग का दौरा करना है।
पहली टीम का नेतृत्व चंद्रा जबकि दूसरी का जोशी कर रहे हैं। दोनों केंद्र सरकार में अतिरिक्त सचिव रैंक के अधिकारी हैं।भल्ला ने मंगलवार के अपने पत्र में उच्चतम न्यायालय की हाल की टिप्पणी का भी जिक्र किया कि राज्य सरकार जन सुरक्षा के हित में केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों और आदेशों का पूरी तरह पालन करेगी। गृह मंत्रालय ने सोमवार को कहा था कि कोविड-19 हालात मुंबई, पुणे, जयपुर, कोलकाता और पश्चिम बंगाल में कुछ अन्य स्थानों पर ‘‘खासतौर से गंभीर’’ हैं तथा लॉकडाउन संबंधी कदमों के उल्लंघन से कोरोना वायरस फैलने का खतरा है। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हालांकि केंद्रीय टीमों के दौरे को ‘‘एडवेंचर टूरिज्म’’ बताया था और पूछा था कि ऐसे प्रतिनिधिमंडलों को उन राज्यों में क्यों नहीं भेजा गया जहां संक्रमण के अधिक मामले हैं।
  from WordPress https://ift.tt/2VuGv6S
0 notes
chaitanyabharatnews · 4 years
Text
बेलूर मठ से पीएम मोदी का ममता को जवाब- युवा समझ गए CAA, लेकिन कुछ नेता समझना नहीं चाहते
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज कोलकाता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय कोलकाता दौरे पर हैं। रविवार सुबह पीएम मोदी ने रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय बेलूर मठ (Belur Math) में ध्यान किया। उन्होंने मठ में ही शनिवार की पूरी रात बिताई। उनके मठ में ठहरने की खास वजह 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती बताई जा रही है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); 'मैं बंगाल सरकार का आभारी हूं' प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, 'मैं पश्चिम बंगाल सरकार का आभारी हूं, जिन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर बेलूर मठ में रात बिताने का मौका दिया।' उन्होंने आगे कहा कि, 'मेरा अतीत बेलूर मठ से जुड़ा है। बेलूर मठ में मुझे सिखाया गया था जनसेवा ही प्रभु सेवा है। बेलूर मठ की धरती पर आना मेरे लिए तीर्थयात्रा करने जैसा है। पिछली बार जब यहां आया था तो गुरुजी, स्वामी आत्मआस्थानंद जी के आशीर्वच�� लेकर गया था। आज वो शारीरिक रूप से हमारे बीच विद्यमान नहीं हैं। लेकिन उनका काम, उनका दिखाया मार्ग, रामकृष्ण मिशन के रूप में सदा हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।' Our Govt has only delivered on the wishes of our great freedom fighters who got us Independence. We've only done what Mahatma Gandhi had said decades ago. In this Citizenship Amendment Act, we're only giving citizenship. We aren't taking away anyone's citizenship: PM Modi pic.twitter.com/FOfeQP8xDR — BJP (@BJP4India) January 12, 2020 नागरिकता कानून को लेकर भ्रम फैलाया गया बता दें स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। युवाओं को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि, 'इस देश के युवाओं से भारत को ही नहीं दुनिया को भी बड़ी अपेक्षाएं हैं।' साथ ही उन्होंने नागरिकता कानून का जिक्र करते हुए कहा कि, 'भारत सरकार ने रातों रात कोई कानून नहीं बनाया है। देश में इसको लेकर काफी चर्चा हुई, लेकिन इसको लेकर युवाओं में भ्रम फैलाया गया। इस कानून के मुताबिक किसी भी देश का कोई भी व्यक्ति जो भारत से आस्था रखता है वह भारत की नागरिक हो सकता है।' नागरिकता कानून का सरल किया पीएम मोदी ने कहा कि, नागरिकता कानून किसी भी नागरिकता छीनता नहीं बल्कि नागरिकता देता है। उन्होंने आगे कहा कि, 'नागरिकता कानून को लेकर कुछ युवा गलतफहमी का शिकार हैं। हमने नागरिकता कानून का सरल किया।' पीएम मोदी ने बताया कि, 'ये कानून रातों-रात नहीं बनाया गया बल्कि महात्मा गांधी भी ऐसा चाहते थे। इतनी स्पष्टता के बावजूद कुछ लोग इस कानून को लेकर भ्रम फैला रहे हैं।' ममता बनर्जी पर कसा तंज इस दौरान पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर इशारा करते हुए कहा कि, 'जो बात यहां बैठे बच्चों को समझ में आ गई वह बात राजनीतिक खेल खेलने वालों को समझ में नहीं आती है। दरअसल, वे इसे समझना ही नहीं चाहते हैं।' पूर्वोत्तर की संस्कृति पर गर्व प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में पूर्वोत्तर के राज्यों का भी जिक्र किया और कहा कि, उन्हें पूर्वोत्तर की संस्कृति पर गर्व हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि, 'CAA की वजह से पूर्वोत्तर के किसी संवैधानिक व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लोगों से किया यह सवाल पाकिस्तान के बारे में बात करते हुए पीएम ने कहा कि, 'पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर जो अत्याचार होता है उसका पर्दाफाश सीएए की वजह से हो सका है, और युवाओं ने पाकिस्तान के इस सच को सामने लाने में अहम भूमिका निभाई है। दुनिया भर में पाकिस्तान के जुल्म के खिलाफ भारत का युवा आवाज उठा रहा है। पाकिस्तान को जवाब देना पड़ेगा कि 70 साल में वहां अल्पसंख्यकों के साथ जुल्म क्यों हुआ।' साथ ही मोदी ने बेलूर मठ में मौजूद लोगों से सवाल किया कि, 'क्या भारत आए शरणार्थियों को मरने के लिए छोड़ देना चाहिए, क्या उन्हें लेकर हमारी जिम्मेदारी नहीं है? नागरिकता कानून को लेकर विरोध क्यों? गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर शुरू से देश के कुछ हिस्सों में विरोध किया जा रहा है। नागरिकता संशोधन विधेयक को 10 दिसंबर को लोकसभा ने पारित किया गया था। राज्य सभा में यह विधेयक 11 दिसंबर को पारित हुआ। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद 12 दिसंबर को यह विधेयक कानून बन गया। सबसे पहले इस कानून का विरोध पूर्वोत्तर राज्यों में शुरू हुआ। असम में लोग इस कानून से लोग सबसे ज्यादा गुस्से में हैं। साथ ही राजधानी दिल्ली में भी इस कानून के खिलाफ आग भड़की है। यह विरोध उत्तर प्रदेश होते हुए पश्चिम बंगाल तक पहुंच गया है। बता दें नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की एक वजह यह भी है कि इसे मुस्लिमों के खिलाफ माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस कानून के चलते उनकी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी। कांग्रेस सहित कुछ प्रमुख विपक्षी दल इस कानून के खिलाफ हैं। लेकिन हम आपको बता दें इस कानून में देश के मुस्लिम नागरिकों के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। इस कानून से उनका कोई संबंध नहीं है। ये भी पढ़े... नागरिकता कानून के समर्थन में पीएम मोदी ने शुरू किया #IndiaSupportsCAA अभियान, ट्वीट कर छेड़ी मुहिम नागरिकता कानून पर बवाल, विरोध में सत्याग्रह पर बैठी कांग्रेस, सोनिया-राहुल-मनमोहन ने पढ़ा संविधान का प्रस्तावना उप्र में नागरिकता कानून पर बवाल, 9 लोगों की मौत, 21 जिलों में इंटरनेट बैन, 31 जनवरी तक धारा 144 लागू Read the full article
0 notes
factcrescendo-blog · 5 years
Link
0 notes
bhaskarhindinews · 5 years
Text
Cm mamata banerjee ask people to vote for bjp viral fact check
No Fake News: ममता बनर्जी ने मांगे भाजपा के लिए वोट?
Tumblr media
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए इससे अच्छी बात क्या होगी। जब पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री बीजेपी को वोट देने की अपील करें, लेकिन सच में ऐसा दावा किया जा रहा है। भाजपा बंगाल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर एक 19 सेकंड का वीडियो शेयर किया है। वीडियो के साथ दावा किया जा रहा है कि सीएम ममता बनर्जी ने लोगों से भाजपा को वोट देने की अपील की है। ट्वीट के कैप्शन में लिखा है, मोदी सुनामी का असर। ममता बनर्जी ने भाजपा को वोट देने की अपील की है। पहली बार उन्होंने ठीक बात कही है। धन्यवाद, दीदी। आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें - https://www.bhaskarhindi.com/news/cm-mamata-banerjee-ask-people-to-vote-for-bjp-viral-fact-check-66235
0 notes
toldnews-blog · 5 years
Photo
Tumblr media
New Post has been published on https://toldnews.com/hindi/%e0%a4%ab%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%9a%e0%a5%87%e0%a4%95-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e0%a5%87%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%93%e0%a4%82/
फैक्ट चेक: विपक्षी नेताओं पर देशभक्ति के नारे नहीं लगाने का अमित शाह का दावा गलत - Fact check bjp amit shah claim opposition leaders not raising patriotic slogans incorrect atrc
Tumblr media
देशभक्ति के नारे फिर राजनीतिक विवाद के केंद्र में हैं. कोलकाता में विपक्षी नेताओं की हालिया रैली पर निशाना साधते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि एक भी विपक्षी नेता ने वहां ‘भारत माता की जय’ या ‘वंदेमातरम’ का नारा लगाने की जरूरत नहीं समझी. शाह ने ये दावा मंगलवार को पश्चिम बंगाल के माल्दा ज़िले में रैली के दौरान किया.
इंडिया टुडे फैक्ट चेक ने अपनी पड़ताल में इस दावे को गलत पाया. असल में विपक्षी महागठबंधन की रैली में कई नेताओं ने देशभक्ति के नारे लगाए. शाह ने दावा किया, ‘इतने बड़ा ब्रिगेड समावेश था साब… एक भी भारत माता की जय नहीं लगी… लगी थी क्या???… एक भी वंदेमातरम बोला था क्या???’. मालदा रैली में अमित शाह के भाषण के वीडियो में इसे 13.40 मिनट पर सुना जा सकता है.
बीजेपी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल पर भी इस दावे को हेशटैग #AmitShahInMalda के साथ पोस्ट किया गया है.
जिस गठबंधन की रैली में भारत माता की जय का जयकारा ना लगता हो, वन्दे मातरम् के नारे नहीं लगते हो, वो देश का क्या भला करेंगे? श्री अमित शाह #AmitShahInMalda
— BJP (@BJP4India) January 22, 2019
इसे यहां भी आर्काइव देखा जा सकता है.
इस स्टोरी को लिखे जाने तक इस पोस्ट को हजारों लाइक कर चुके थे और सैकडों ने शेयर किया था. अमित शाह विपक्ष की जिस ‘यूनाइटेड इंडिया रैली’ का हवाला दे रहे थे वो 19 जनवरी को कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में हुई थी. इस रैली में अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, फारूक अब्दुल्ला, एमके स्टालिन और एचडी कुमारस्वामी समेत कई विपक्षी नेताओं ने हिस्सा लिया था.
हमने रैली में शामिल प्रमुख विपक्षी नेताओं के भाषणों का विश्लेषण किया.
शाह के दावे के उलट हमने पाया कि ममता बनर्जी ने खुद अपने भाषण के अंत में तीन बार ‘वंदेमातरम’ बोला. ममता बनर्जी ने वहां यह भी कहा कि हम उन लोगों का सम्मान करते हैं जिनका नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ है. उस कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ.   
ना सिर्फ ममता बनर्जी बल्कि विपक्ष के कई नेताओं- फारूक अब्दुल्ला, एचडी कुमारस्वामी, देवेगौड़ा और तेजस्वी यादव ने भी अपने भाषणों का समापन ‘जय हिन्द’ के साथ किया. गुजरात के युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने अपने भाषण के अंत में ‘भारत माता की जय’ कहा.   
हैरानी की बात है कि शाह के इस दावा करने से पहले हिन्दी अखबार की क्लिपिंग जैसी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जाने लगी थी, इसमें भी वैसा ही दावा किया गया जैसा शाह ने किया कि विपक्षी नेता कभी देशभक्ति के नारे नहीं लगाते हैं. क्लिपिंग की तस्वीर वाले दावे को झूठा ही आजतक न्यूज चैनल की एक प्रमुख एंकर श्वेता सिंह के नाम के साथ जोड़ दिया गया.
Tumblr media
इस पोस्ट को स्टोरी लिखे जाने तक 11,000 से अधिक बार शेयर किया जा चुका है. हमने पाया कि एंकर के नाम पर बनाए गए एक पैरोडी अकाउंट से इसे पहली बार पोस्ट किया गया जिसे कई लोगों ने सच मान लिया.
श्वेता सिंह ने वायरल पोस्ट को खारिज करने के साथ दावा किया कि उन्होंने कभी भी ऐसा कुछ नहीं लिखा और ये तथ्य सच नहीं हैं.
अगर किसी को मालूम है ये कौन सा अख़बार है, तो कृपया बताएँ। ना तो मैंने ऐसा कुछ कहा है। ना लिखा है। ना ये तथ्यात्मक तौर पर सही है। क्योंकि उस रैली के अंत में जय हिंद का नारा लगा था। ग़ज़ब है, अब पैरोडी अकाउंट भी छापे जाएँगे! pic.twitter.com/h0PYfwKd9T
— Sweta Singh (@SwetaSinghAT) January 22, 2019
हमें ऐसे किसी भी हिन्दी अख़बार की कोई क्लिपिंग नहीं मिली जिसमें श्वेता सिंह के हवाले से ऐसा दावा किया गया हो. जाहिर है कि वायरल तस्वीर फोटोशॉप से गढ़ी गई.
पाएं आजतक की ताज़ा खबरें! news लिखकर 52424 पर SMS करें. एयरटेल, वोडाफ़ोन और आइडिया यूज़र्स. शर्तें लागू
आजतक के नए ऐप से अपने फोन पर पाएं रियल टाइम अलर्ट और सभी खबरें. डाउनलोड करें
Tumblr media Tumblr media
amazing)
0 notes
abhay121996-blog · 3 years
Text
पेगासस जासूसी कांड का सच क्या? जांच आयोग बनाने वाला पहला राज्य बना बंगाल Divya Sandesh
#Divyasandesh
पेगासस जासूसी कांड का सच क्या? जांच आयोग बनाने वाला पहला राज्य बना बंगाल
कोलकाता पेगासस जासूसी कांड की पड़ताल के लिए पश्चिम बंगाल सरकार ने जांच आयोग का गठन किया है। सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि ऐसा करने वाला पश्चिम बंगाल पहला राज्य है। ममता ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि केंद्र इस मामले में कुछ करेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
ममता ने कहा, ‘पेगासस के जरिए हर कोई न्यायपालिका से लेकर नागरिकों तक सभी को सर्विलांस में रखा गया। हमें उम्मीद थी कि संसद के दौरान केंद्र सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच करेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पश्चिम बंगाल जांच आयोग शुरू करने वाला पहला राज्य है।’
ममता ने आगे कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन भीमराव और कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य के नेतृत्व में हमने आयोग का गठन किया है। यह आयोग अवैध हैकिंग, मॉनिटरिंग, सर्विलांस, फोन रेकॉर्डिंग वगैरह की जांच करेंगे।’
क्या है पेगासस जासूसी कांड? संसद के मॉनसून सत्र की शुरुआत के एक दिन पहले ही पेगासस जासूसी कांड का खुलासा हुआ। आरोप है कि इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए गए। इनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर सहित कई पत्रकार भी शामिल हैं।
ममता बनर्जी ने वॉटरगेट से ज्यादा खतरनाक बताया इस मामले में ममता बनर्जी और टीएमसी शुरू से ही आक्रामक रही। ममता बनर्जी नेपेगासस स्पाईवेयर की तुलना अमेरिका के वॉटरगेट से की थी। उन्होंने कहा था कि पेगासस का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों, नेताओं और अन्य की जासूसी कराने का प्रकरण अमेरिका में रिचर्ड निक्सन के शासनकाल में सामने आए ‘वॉटरगेट’ प्रकरण से भी अधिक खतरनाक है।
टीएमसी सांसद को संसद से किया गया सस्पेंड पेगासस जासूसी मामले में संसद के मॉनसून सत्र का पहला हफ्ता हंगामे में ही बीत दिया। एक भी दिन सदन की कार्यवाही पूरी नहीं हो सकी। ममता बनर्जी और टीएमसी ने शुरुआत से ही इस मामले में आक्रामक रुख अपनाया है। पिछले दिनों टीएमसी के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन ने आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथ से कागज छीनकर फाड़ दिया था। उन्हें पूरे सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
0 notes
Photo
Tumblr media
सच जुबान पर आ ही जाता है : मोदी ममता के मंच पर शरद यादव ने किया बोफोर्स का जिक्र पणजी, 20 जनवरी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को महाराष्ट्र और गोवा के भाजपा कार्यकर्ताओं से वीडियो कॉन्फेंसिंग के जरिए संवाद किया। इस दौरान उन्होंने कोलकाता में हुई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की रैली और महागठबंधन को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा। मोदी ने लोकतांत्रिक जनता दल प्रमुख शरद यादव के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि कल कोलकाता के जिस मंच से ये लोग (विपक्ष) देश और लोकतंत्र बचाने की बात कर रहे थे, उसी मंच से एक नेता ने बोफोर्स घोटाले की याद दिला दी। आखिर सच्चाई कभी तो जुबान पर आ ही जाती है। ममता बनर्जी ने शनिवार को कोलकाता में महारैली बुलाई थी। इसमें कांग्रेस समेत 15 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे। इस दौरान शरद यादव ने बोफोर्स घोटाले का जिक्र कर दिया। उन्होंने कहा था, बोफोर्स की लूट, फौज का हथियार और फौज का जहाज यहां लाने का काम हुआ है। ये जो सरकार है, भारत के लोग सीमा पर शहादत दे रहे हैं और डकैती डालने ���ा काम बोफोर्स में हुआ, डकैती हो गई है। इसके बाद टीएमसी नेता के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने अपनी गलती सुधारी। उन्होंने कहा- राफेल, माफ करना मैं गलती से बोफोर्स बोल गया था। ये नामदारों, भाई-भतीजावाद का महागठबंधन: प्रधानमंत्री ने कहा, ये महागठबंधन एक अनोखा बंधन है। ये बंधन नामदारों का बंधन है। ये बंधन भाई-भतीजेवाद का बंधन है। ये बंधन भ्रष्टाचार और घोटालों का बंधन है। ये बंधन नकारत्मकता का बंधन है। अस्थिरता और असमानता का बंधन है।
0 notes
kisansatta · 3 years
Photo
Tumblr media
तेजस्वी यादव आज पश्चिम बंगाल के दौरे पर
Tumblr media
कोलकाताः राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है! इसी के मद्देनजर इन दिनों तेजस्वी यादव असम और पश्चिम बंगाल दौरे पर हैं! वे आज दोपहर 12 बजे गुवाहाटी से कोलकाता पहुंचेगे! इसके बाद तेजस्वी यादव दोपहर को ही कोलकाता में आरजेडी के कार्यकर्ताओं से मिलेंगे!
तेजस्वी के कोलकाता के दौरे के समय आज शाम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करने की संभावना है! तेजस्वी, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में आरजेडी की भूमिका को लेकर भी ममता बनर्जी से बात कर सकते हैं!
पार्टी का करना चाहते हैं विस्तार
असम और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में आरजेडी की भूमिका के सवाल पर तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि वह इन राज्यों में अपनी पार्टी का विस्तार करना चाहते हैं! उन्होंनों ने कहा है कि पार्टी कितनी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, इसको लेकर फिलहाल फैसला नहीं हुआ है!
दोनों राज्यों में गठबंधन की कोशिश
आरजेडी, असम और पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहती है! असम के यात्रा के दौरान तेजस्वी ने कांग्रेस नेता रिपुन बोरा से मुलाकात की! वह असम में कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहे हैं! वहीं, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ गठबंधन की संभावना तलाश रहे हैं!
गौरतलब है कि तेजस्वी ने दोनों राज्यों के लिए पार्टी के दो वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और श्याम रजक को प्रभारी बनाया था! इन दोनों नेताओं ने लगातार असम और पश्चिम बंगाल के दौरे किए थे! इसके बाद अब तेजस्वी यादव असम और पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं!
https://kisansatta.com/tejashwi-yadav-on-tour-of-west-bengal-today/ #TejashwiYadav, #TourOfWestBengal #Tejashwi Yadav, #tour of West Bengal National, State #National, #State KISAN SATTA - सच का संकल्प
0 notes
newsaryavart · 4 years
Text
बंगाल में कोरोना के आंकड़ों पर बवाल, 68 या 140 मौतें....सच क्या है?
बंगाल में कोरोना के आंकड़ों पर बवाल, 68 या 140 मौतें….सच क्या है?
[ad_1]
Edited By Sudhakar Singh | न���भारतटाइम्स.कॉम | Updated: 06 May 2020, 12:07:00 PM IST
ममता बनर्जी (फाइल फोटो) हाइलाइट्स
पश्चिम बंगाल में कोरोना के आंकड़ों पर स्थिति साफ नहीं है
ममता बनर्जी सरकार के मुताबिक अब तक 68 मौतें हुईं
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 140 मौतें
72 मौतों के आंकड़ों पर विवाद, डेटा देने में देरी का आरोप
कोलकाता पश्चिम बंगाल में मंगलवार को कोरोना से 7 और…
View On WordPress
0 notes